गुरुवार, 9 अगस्त 2018

कहानी-मैं मैसेज और तज़ीन

                                     मैं, मैसेज और तज़ीन

                                        - प्रदीप श्रीवास्तव                                                                                   

पिछले करीब डेढ़ बरस कुछ ठीक बीते थे। खाने-पीने रोज की ज़रूरतों की चीजें ज़्यादा आसानी से मिल जा रही थीं। हम दोनों बहनों, भाई की स्कूल की फीस भी आसानी से जाने लगी थी। इसके साथ ही एक और बात हो रही थी कि मेरी पढ़ाई अब डिस्टर्ब होने लगी थी। क्योंकि अब मेरा थोड़ा बहुत नहीं कई-कई घंटे, दिन हो या रात फ़ोन पर बातें करते बीतता था। रात चाहे दस बजे हों या ग्यारह-बारह या फिर दो मेरे मोबाइल की घंटी बजती रहती थी। मैं आने वाली इन कॉल्स को चाह कर भी इग्नोर नहीं कर सकती थी। क्योंकि आखिर इन्हीं कॉल्स के कारण ही तो डेढ़ बरस से दिन अच्छे बीतने लगे थे। तो आखिर इनको इग्नोर करके अच्छे बीतते दिनों को खराब क्यों करती और कैसे करती। इसलिए घंटी किसी भी समय बजे मैं उस कॉल को लपक कर रिसीव करती। मेरे इस काम में रुकावट न आए इस गरज से घर के बाकी लोगों से अपने को अलग-थलग कर लिया था। खाना सबसे अलग खाने लगी थी। यहां तक कि बाथरूम में भी मोबाइल अपने से अलग न करती।
मैं इन सब की कीमत भी चुका रही थी। नींद पूरी नहीं होती थी। आंखों में जलन होती रहती थी, सिर में दर्द बराबर बना रहता था। सबसे बड़ी बात यह कि जब फीस के लाले थे तब मेरे पास पढ़ने के लिए ढेर सारा टाइम था। जब फीस आसानी से देने की व्यवस्था हो गई थी तो लिखने-पढ़ने के लिए टाइम नहीं था। बस हर समय बात-बात, घंटी बजते ही बात। तरह-तरह के अंजान लोगों से बात। और बात भी कैसी, जिनका कोई मतलब नहीं। गंदी, फुहड़ता में सनी बातें। सेक्स से शुरू होतीं और सेक्स पर ही खतम होती बातें। ऐसी-ऐसी बातें जो सारे-भाव, सारा मूड एकदम गड़बड़ा देतीं। भ्रमित कर देतीं।
डेढ़ बरस पहले भले ही पैसे की बहुत तंगी थी। खाने, पीने, फीस के लाले थे। मगर तब जीवन में चैन था। इस डेढ़ बरस में मेरी जिंदगी को उलट-पलट देने का काम किया पापा के मोबाइल पर बार-बार आने वाले एक ख़ास तरह के मैसेज ने। पापा वकालत करते हैं। लखनऊ की लोअर कोर्ट में वकालत करते उन्हें बीस साल हो गए हैं। मगर आज भी वह उन्हीं वकीलों की कतार में खड़े हैं जो दिनभर में बस किसी तरह रोटी-दाल का जुगाड़ कर लेते हैं। किसी तरह बच्चों को हाई-स्कूल इंटर तक पढ़ा भी लेते हैं। पापा आज भी शादी में मिली मोटर साइकिल से ही कोर्ट जाते हैं।
जिस दिन पेट्रोल का पैसा नहीं होता उस दिन निशातगंज की  सातों गलियों को पैदल ही नाप देने की उनकी आदत पड़ गई है। शाम को भी जैसे-तैसे आते हैं। थक कर एकदम चूर। नौ बजते-बजते एकदम बेसुध हो सो जाते हैं। गनीमत है तो सिर्फ़ इतना कि मकान निजी है। बाबा की मौत के बाद पुश्तैनी मकान के चार हिस्से हुए। तीनों चाचा अपना-अपना हिस्सा बेच कर, और पैसा लगाकर दूसरी जगहों पर बडे़ मकान बना कर रहने लगे। लेकिन पापा तंगहाली के चलते यह नहीं कर सके। मिले हिस्से की मरम्मत कराना ही उनके लिए नया मकान बनाने जैसा था और अब भी है। चौथा हिस्सा जो मिला वह रेलगाड़ी के एक डिब्बे जैसा मात्र पंद्रह फुट चौड़ा और पचास फुट लंबा। आगे पीछे लाइन से तीन कमरे। बीच में एक आंगन जिस पर ऊपर जाल पड़ा है। जर्जर हालत में ऊपर जाने को जीना। उसी के नीचे लैट्रिन, बाथरूम। और एकदम पीछे की तरफ एक रसोई। ऊपर छत पर एक कमरा जिस पर टिन शेड पड़ा है। जो गर्मियों में भट्टी सा तपता है। और जाड़ों में बर्फ की कोठरी बन जाता है।
पापा-अम्मा गर्मियों में एक बीस साल पुराने ऊषा के खड़-खड़ कर चलने वाले टेबिल फ़ैन के सहारे सोते हैं। और जाड़ों  की ठिठुरती सर्दियों में एक पुरानी रजाई, एक पुराने से कंबल के सहारे रात बिताते हैं। कंबल जब पुराना हो जाने के करण कई जगह से फट गया था, छेद हो गए थे तो मां ने अपनी पुरानी धोतियों को उस पर चढ़ाकर कथरी की तरह सिल दिया। ऐसा दो-तीन बार वह कर चुकीं हैं जिससे वह काफी भारी हो गया है। मगर ठंड से बचने में मदद ज़रूर करता है।
टिन शेड वाले इस कमरे में बाबा के जमाने का ही मज़बूत और बड़ा तखत, यही बिस्तर और एक पुराना रेडियो जो अकसर खराब रहता, पापा-अम्मा के कमरे का अभिन्न हिस्सा हैं। इसी में पापा की कोर्ट-कचेहरी के सारे पेपर्स, फाइलें भी रहती हैं। जिन्हें हममें से किसी बच्चे को छूने की इज़ाज़त नहीं है। बेहद संतोषी, सीधे-सादे मेरे पापा और अम्मा मानो एक दूसरे के लिए ही बने हैं। हम सब के साथ पापा-अम्मा एक साथ मिलकर खाना खाते थे। मगर मोबाइल पर लगे रहने के चलते मैं डांट-डपट के बावजूद अलग खाने का मौका ढूढ़ती रहती और फिर स्थाई रूप से अकेले ही खाने लगी। पापा नौ बजते और बाकी सब दस बजते-बजते बिस्तर पर पहुंच जाते हैं। मां ऊपर कमरे में जाने से पहले मुख्य दरवाजा चेक करना आज भी नहीं भूलतीं। हम सबका बिस्तर भी ठीक करना उनकी आदत सी है। हम लोग लाख अपने बिस्तर लगा लें, लेकिन उन्हें चेक किए बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता। पापा-अम्मा को आज तक हमने अलग सोते या किसी भी बात पर कभी झगड़ते छोड़िए, कभी तेज़ आवाज़ में बोलते भी नहीं सुना।
डेढ़ बरस पहले पापा नौ बजे ऊपर जाते वक्त मोबाइल ऑफ कर देते थे। फिर उसे खोलकर बैट्री निकालकर एक जुगाडू चार्जर में रातभर के लिए लगा देते। मोबाइल का चार्जर काफी समय से खराब हो गया था। लेकिन नया चार्जर लाख कोशिशों के बाद भी तब खरीदना संभव नहीं हो पाया था। सुबह जल्दी उठना, और आधा घंटे योग, ध्यान करना पापा-अम्मा की दिनचर्या में शामिल है। हम लोगों का भी सुबह जल्दी उठना, योग-ध्यान करना ज़रूरी था। यह सब हमारे परिवार की सेहत को बहुत बढ़िया बनाए हुए था बल्कि यह कहें कि अभी भी बनाए हुए है।
मगर मोबाइल की घंटियों ने मुझे इससे भी अलग कर दिया। दिनचर्या बरबाद कर दी तो सेहत बिगड़ने लगी। इसकी नींव उस दिन पड़ी जिस दिन मैंने पापा के मोबाइल में पहली बार मैसेज पढ़ा किसी भी समय बनाए प्यारे दोस्त, वॉयस चैटिंग करें। मस्त बातें करें। मुझे है इंतजार एक ऐसे दोस्त की जिससे मैं दिल की हर बात कर सकूं। करिए दोस्तों से गर्मागर्म चटपटी बातें किसी भी वक़्त।मैंने यह मैसेज तब पढ़ा था जब एक दिन मेरी एक फ्रेंड ने कहा था यार जब भी तुमसे बात करने के लिए फ़ोन करती हूं तो वह बंद ही रहता है।मेरी वह सहेली देर रात तक जागने, टी.वी. देखने, दोस्तों से बातें करने की आदी है। उसके पास उसका अपना बढ़िया सा मोबाइल है। मेरे पास मोबाइल होने का कोई प्रश्न ही नहीं था। किसी भी समय क्लाइंट से संपर्क बनाए रखने की गरज से पापा बड़ी जोड़-तोड़ करके मोबाइल ले पाए थे। मेरा मन भी लोगों का मोबाइल देखकर मचल उठता था। बाबा आदम के जमाने के टी.वी. पर रोज मोबाइल के ऐड देख-देख कर एकदम दिवानी हो उठती थी। मगर तब तो हमारे लिए सपना था।
उस दिन जब उस सहेली ने ताना मारा तो मैंने पापा-अम्मा के सो जाने के बाद मोबाइल की बैट्री लगा कर उसे ऑन किया था। सोचा शायद उस सहेली की कॉल आ जाए। फिर उत्सुकतावश ही उसका मैसेज बॉक्स खोला जिसमें तमाम मैसेज़ ऐसे थे जिन्हें पापा ने खोला ही न था। मैंने खोला तो उसमें कुछ क्लाइंट्स के थे तो कुछ यही चैटिंग के। उन्हें पढ़ा तो जाने कैसी उत्सुकता जागी कि मैंने दिए गए नंबर पर कॉल कर दिया। छूटते ही उधर से आवाज़ आई हैलो स्वागत है आपका वॉयसचैट सर्विस में, आप जिनसे बातें करना चाहते हैं वह अभी व्यस्त हैं। आप लाइन पर बने रहें  हम शीघ्र ही आपको कनेक्ट करेंगे।और फिर ऐसा ही हुआ। मिनट भर भी न बीता था कि एक लड़की आई लाईन पर और बड़ा इठलाते हुए बोली हेलो .... कौन बोल रहा है।मैंने तुरंत अपना नाम बता दिया तापसी .... आप कौन’, उसने तुरंत उसी तरह इठलाते हुए कहा तापसी मैं नेहा बोल रही हूं। तुम्हारी आवाज़ बहुत अच्छी है।
उसकी शुरुआती बातचीत से ही मुझे अजीब सा लगा कि यह कैसी दोस्ती न जान न पहचान और सीधे इतनी अंतरंग बातें, मैं कुछ घबरा भी गई तो कहा रखती हूं दिन में बातें करूंगी। बहुत रात हो रही है।इस पर वह एकदम बोली नहीं प्लीज तापसी ऐसा नहीं करना। तुमसे बात करके बहुत अच्छा लग रहा है।
इसके बाद वह तुरंत सेक्स की बातों पर उतर आई। मैं अकेले होती हूं तो ऐसा करती हूं, तुम क्या करती हो। अपना फिगर बताने लगी, मेरा पूछने लगी ऐसी-ऐसी बातें कीं, कि मैं हक्का-बक्का हो गई। शर्म सी महसूस हो रही थी और डर भी रही थी कि कहीं पास ही में सो रहे भाई-बहन जाग न जाएं। मैं उसकी बातों में ऐसा उलझ गई कि फ़ोन काट दूं यह भी न कर पाई। अचानक पंद्रह मिनट बाद लाइन अपने आप ही कट गई तो मेरे जान में जान पड़ी। मगर जैसे ही पता चला कि यह बैलेंस खतम होने के कारण हुआ तो मैं डर गई कि सवेरे पापा को पता चलेगा तो बहुत गुस्सा होंगे। हैरान-परेशान मैंने फिर से फ़ोन खोलकर उसी तरह बैट्री चार्ज होने के लिए लगा दी।
नेहा की बातों के कारण मैं उस दिन देर तक सो नहीं सकी थी। वैसी बातें मैंने पहली बार की थीं। तमाम बातें पहली बार सुनी थीं। उसकी बेलाग बातों में से जहां कुछ शर्म पैदा कर रही थीं, वहीं कुछ बातें रोमांचित कर रही थीं। अजीब सा तनाव पैदा कर रही थीं। बहुत देर से सोने के कारण सवेरे मां की आवाज़ पर उठ तो गई लेकिन आंखें दिन भर कड़वाती रहीं। दिन भर शाम को पापा डाटेंगे यह सोच-सोच कर भी परेशान होती रही। पढ़ाई में दिनभर मन नहीं लगा। अपनी उन सहेलियों को देखा जो मोबाइल पर कॉलेज में भी किसी न किसी तरह बातें करती ही रहती थीं। तमाम रोक के बावजूद वो मोबाइल लाने, मौका मिलते ही बातें करने से बाज नहीं आती थीं। ऐसी दो सहेलियां थीं जिनसे मेरी ज़्यादा करीबी दोस्ती थी बल्कि आज भी है। एक नमिता और दूसरी काव्या। कॉलेज में मौका मिलते ही मैंने इस बारे में दोनों से बात की। यह छिपाते हुए कि पैसे की तंगी के कारण मेरे घर में मोबाइल का टोटा है। एक जर्जर मोबाइल किसी तरह पापा की या यह कहें कि घर भर की गाड़ी खींच रहा है।
उन दोनों से मैंने नेहा की एक-एक बात बता दी। सेक्स वाली बातें भी जस की तस बता दीं। जिन्हें सुनकर दोनों कभी हंसती तो कभी बेशर्मों की तरह आहें भरतीं, पूछतीं तुमको कैसा लग रहा था। मुझसे बार-बार वही बातें रिपीट करवातीं जो नेहा ने कही थीं। मैं जब गुस्सा होकर वहां से चलने को होती तो दोनों मुझे पकड़ लेतीं। मुक्ति तब मिली जब फिर क्लास का टाइम हुआ।
उस दिन घर पहुंचने तक भी मेरी बेचैनी कम नहीं हुई थी बल्कि पापा के आने और उनकी डांट को लेकर बढ़ गई थी। यही सोच-सोच कर परेशान थी कि वो पूछेंगे कि किसको फ़ोन किया था तब क्या बताऊंगी। हालांकि डायल नंबर तो डिलीट कर दिया था। घंटों की यह बेचैनी तब खत्म हुई जब शाम को पापा आए और कुछ भी नहीं कहा। मैं डरी-सहमी सारे काम करती रही। और फिर देखते-देखते रात का खाना-पीना सब खत्म हुआ और रोज की तरह सब अपनी-अपनी जगह सो गए। मगर मुझे नींद नहीं आ रही थी।
नेहा की बातें दिमाग में अब फिर से ज़्यादा उमड़नें-घुमड़नें लगीं थीं। नज़र बार-बार प्लग में लगे ज़ुगाडू चार्जर की जलती-बुझती छोटी सी लाल लाइट पर जा रही थी। जिसे मैज़िक चार्जर कहते हैं। जैसे-जैसे रात बीतने लगी नेहा से बातें करने को मन मचलने लगा। बार-बार अपनी जगह से सिर उठाकर भाई-बहन को चेक करने लगी कि दोनों सो गए कि नहीं। घंटे भर इंतजार करने के बाद जब मुझे लगा कि दोनों सो गए हैं, तो इतमिनान कर लेने की गरज से बाथरूम जाने के बहाने उठी कि ठीक से जांच लूं कि दोनों सो गए हैं। बाथरूम जाकर लौटने के बाद जब मुझे यकीन हो गया कि दोनों सो गए हैं तो मुझे ऐसा लगा कि मानो मैं आज़ाद हो गई हूं।
कदम जैसे अपने आप ही चार्जर की तरफ बढ़ गए। जल्दी-जल्दी मोबाइल फिट किया और उस पर्ची को निकाल कर नेहा को नंबर मिला दिया जिस पर कल नंबर नोट कर मैंने रख लिया था। नंबर तुरंत मिल गया। नेहा तुरंत लाइन पर आ गई। उस दिन उसकी बातों से यह भी पता चला कि यह नंबर ही उसकी आई.डी. है। इसे डॉयल करने पर सीधे उसे ही मिलेगा। उसने यह भी बताया कि जैसे ही एंगेज मिले तो फ़ोन काट दिया करो। नहीं तो किसी दूसरी आई.डी. पर मिल जाएगा। मुझसे बात नहीं हो पाएगी। उस दिन भी नेहा ने ऐसी-ऐसी बातें कीं कि फ़ोन काटने का मन ही न कर रहा था।
मन के एक कोने में यह डर भी सता रहा था कि बैलेंस खत्म हो रहा है। मगर नेहा की बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं। उसकी बातों से जब शरीर में कई जगह मैं तनाव, सिहरन सी महसूस करने लगी तो फ़ोन काटकर डॉयल नंबर डिलीट किया और चार्जर में बैट्री लगा कर अपने बिस्तर पर लेट गई। नेहा ने ऐसी बातें कहीं थीं कि तन-मन कल्पना के रंगीन सागर में गोते लगाने लगा था। उस दिन जीवन में पहली बार अपने ही अंगों को अपने ही तन को जगह-जगह कुछ अलग सा अहसास करते हुए छुआ। अंगों के साथ अजीब से खिलवाड़ भी किए जैसा नेहा से सीखा। इन सबसे जैसी अनुभूति हुई वह सब मेरे लिए पहला अनुभव था।
अगले दिन काव्या और नमिता से मैं बात करने की सोच ही रही थी कि दोनों ने मौका मिलते ही खुद ही पूछताछ शुरू कर दी। मैंने कई बातों को छुपाते हुए तमाम बातें फिर बता दीं। फिर उस दिन दोनों ने मुझे जो बताया उससे मैं असमंजस में पड़ गई। उन दोनों ने बताया कि यह सब तो मोबाइल कंपनियों का धंधा है। जिसे वॉयस चैटिंग कहते हैं। जहां तक उन्हें मालूम है कि ये कंपनियां अपने सभी मोबाइल यूजर्स को ऐसी चैटिंग करने के लिए मैसेज भेजती रहती हैं। मैसेज की लैंग्वेज ऐसी होती है कि पढ़ने वाला एक बार तो रिंग कर ही देता है। और इन नंबरों पर रिंग करने पर जो लड़कियां बात करती हैं उन सबकी अपनी एक आई.डी. होती है। बात करने वाला चाहे तो उसी आई.डी. पर बात करे या फिर बदलता रहे। इन लड़कियों को बात करने केे बदले ये कंपनियां पैसा देती हैं। जितनी ज़्यादा बात उतना ही ज़्यादा पैसा। इसलिए लड़कियां फ़ोन करने वाले से ऐसी बातें करतीं हैं कि आदमी ज़्यादा से ज़्यादा देर तक बातें करे फ़ोन काटे न। या वह जिस तरह की बात करना चाहते हैं वैसी ही बातें करती हैं।
फ़ोन पर बिना जाने बूझे, किसी से बिना मिले दोस्ती का कोई मतलब ही नहीं होता। इसमें लड़कियों या बात करने वाला जब तक न चाहे तब तक कोई एक दूसरे का असली परिचय या मोबाइल नंबर भी नहीं जान सकता। लड़कियों की आई.डी. पर फ़ोन करने वालों का नंबर शो नहीं होता। फ़ोन करने वाले जब फ़ोन करते हैं तब कंपनी किसी आई.डी. पर कनेक्ट कर देती है। मतलब की जब तक दोनों खुद न चाहें कोई एक दूसरे को जान नहीं सकता। सारा खेल लुक-छिप के जुबानी-जुबानी मस्ती करने, पैसा कमाने का है। ज़्यादा से ज़्यादा पैसे के चक्कर में लड़कियां हर वक़्त बतियाने को तैयार रहती हैं। बात करने वाले को एक ऐसा प्लेट-फॉर्म मिल जाता है जहां वह बिना किसी लाग-लपेट, शर्म-संकोच के अपनी सारी बातें कह लेता है। एक-आध लोग तो ठीक बातें करते हैं बाकी सब वही गंदी, अश्लील और सिर्फ़ सेक्स की ही बातें करते हैं। वास्तव में ये सब अपनी दमित इच्छाओं को यहां निकालते हैं। फ़ोन करने वाले सब के सब मर्द ही होते हैं। लड़कियां, औरतें कोई भूले-भटके या रेअर ही करती हैं। इन आई.डी. पर बात करने वाली कम उम्र की लड़कियां ही नहीं हैं। बल्कि हर उम्र लड़कियां हैं, औरतें हैं। यहां तक की पचास-पचपन की औरतें भी।
सहेलियों की इन बातों ने मेरी धुकधुकी और बढ़ा दी कि यार बैठे-बैठे पैसा भी मिलता है। मुफ्त की मस्ती भरी बातें भी, मजा ही मजा है। उस दिन मैंने रात में फिर बात की। मगर नेहा की जगह किसी और की आई.डी. मिली। वह कोई बहुत मैच्योर महिला थी। घर में जैसी आवाज़ें आ रही थीं उससे साफ जाहिर था कि घर में कई लोग थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसे में कैसे बात कर ले रही है। मैंने फ़ोन काट दिया। दूसरी बार नेहा की आई.डी. फिर एंगेज मिली। ऑपरेटर की जैसे ही यह आवाज़ सुनाई दी कि आप जिनसे बात करना चाहते हैं वह अभी व्यस्त हैं, यह सुनकर मैं फ़ोन काटने ही जा रही थी कि तभी लाइन कनेक्ट हो गई।
आवाज़ बहुत ही सुरीली थी। मैंने कहा नेहातो वह बोली मैं नग़मा बोल रही हूं।मैंने कहा मैंने तो नेहा को मिलाया था।तो वह बोली वह बिजी रही होगी इसलिए ऑपरेटर ने मुझे कनेक्ट कर दिया होगा।फिर उसने मुझसे बिना रुके बातेें शुरू कर दीं। मैं फ़ोन काट न दूं इसलिए उसने वही हथकंडे अपनाने शुरू किए जो नेहा ने अपनाए थे। मुझसे पूछा तापसी जानती हो तुम इतनी रात हो जाने के बाद भी क्यों जाग रही हो।मैंने कहा नहींतो वह बोली क्योंकि तुम अब यंग हो रही हो और तुम्हें ऐसे रंगीन सपने दिखने लगे होंगे जो तुम्हें गुद-गुदाते होंगे, गहरी सांसेें लेती होगी, एक्साइटेड होती होगी। मस्ती में डूब जाना चाहती होगी। चाहती होगी कि कोई तुम्हारे सपनों का राजकुमार हो जो तुम्हें प्यार करे, तुम्हें बांहों में भर कर ऐसा किस करे कि तुम मारे रोमांच के आंखें बंद कर उसी में समा जाओ।
उसने देखते-देखते वाकई अपनी बातों से मुझे रोमांचित कर दिया। मेरे दिमाग से नेहा एकदम निकल गई। यह नेहा से बहुत आगे थी। चालाकी, और जानकारी दोनों में ही। बातें लंबी होती जा रही थीं, मैं उनमें उलझती जा रही थी। पापा की गाढ़ी कमाई का पैसा फुन्क रहा है यह सब भूल गई थी। नग़मा ने मुझे बांध लिया था। उसने अपनी एक से एक कहानी शुरू कर दी। जिन्हें अधूरा छोड़ने का मन सोच ही नहीं पा रहा था। उसने बताया कि उसने कैसे मात्र पंद्रह की उम्र में ही पुरुष को एकदम नग्न देखा था। फिर क्या किया, कैसे फिर बार-बार देखा। और फिर साल भर के भीतर उसका अपने एक ब्वायफ्रेंड से रिश्ता बना। पहली बार उसके साथ किया सेक्स आज भी नहीं भूली है। मगर जल्दी ही उससे ब्रेकप हो गया। क्योंकि वह कई अन्य लड़कियों से संबंध बना चुका था, उसके लिए उसके पास टाइम नहीं था। और आजकल वह अपने एक नए ब्वायफ्रेंड नमन के साथ बहुत एंज्वाय कर रही है। ही इज सो हैंडसम एंड सो हॉट।
नग़मा की इन सारी बातों को मैंने तब सच समझा था लेकिन आज जब चैटिंग की दुनिया का ककहरा ही नहीं उसकी नस-नस जान चुकी हूं तो यही समझती हूं कि उसकी सारी कहानियां झूठ का पुलिंदा थीं। बाकी भी यही करती थीं। महज अपने कस्टमर को बांधे रखने के लिए। मैं भी बंधी रही उसकी बातों में तब तक जब तक कि पहले की तरह बैलेंस खत्म होने के कारण फ़ोन कट नहीं गया। जब बैलेंस खत्म हो गया तो एक बार मैं फिर घबड़ाई की कल फिर पापा कहेंगे कि कंपनी वाले बिना कुछ बताए ही अनाप-शनाप पैसा काट लेते हैं। मैं यह सोच कर और डर गई कि उन्होंने कस्टमर-केयर फ़ोन करके बात कर ली तो उन्हें चैटिंग का पता चल जाएगा। फिर तो वह खाल ही खींच डालेंगे। मगर यह सारी बातें, डर कुछ ही देर तक रहा। जितनी देर बैट्री चार्जिंग के लिए लगाकर बिस्तर पर लेट नहीं गई।
लेटते वक़्त टाइम देखा तो एक बज रहे थे। मगर नेहा की ही तरह नगमा की बातें सोने नहीं दे रही थीं। रात कितने बजे सोई पता नहीं लेकिन सुबह मां के उठाने पर ही जागी। सुबह डर रही थी कि पापा कहीं किसी को फ़ोन न लगा दें । नहीं तो बैलेंस न होने पर पोल सुबह-सुबह ही खुल सकती है। मगर भगवान की दया से ऐसा कुछ नहीं हुआ। पापा कोर्ट गए और मैं भी कॉलेज पहुंच गई। वहां नमिता, काव्या से फिर बात की। दोनों सुन-सुन कर खूब हंसती रहीं। खिल-खिलाती रहीं, छेड़छाड़ करती रहीं। उस दिन काव्या ने मेरे एक अहम ऊपरी अंग को बड़े झटके से अचानक ही मसल दिया था। उसकी इस अप्रत्याशित हरकत से मैं एकदम चिहुंक पड़ी थी। हतप्रभ थी। हल्का दर्द भी महसूस किया था। मैं गुस्सा हुई तो उसी वक़्त नमिता ने एक ऐसी बात कही कि हम सब हंसी रोक नहीं सके। बात थी तो बहुत ही भद्दी, वल्गर लेकिन हंसा-हंसा कर लोट-पोट करने के लिए काफी थी।
जिस बात का डर था शाम को घर पर वही हुआ। बार-बार बैलेंस गायब होने से खिन्नाए पापा ने कस्टमर-केयर से बात कर ली। वहां से उन्हें मालूम हो गया कि बैलेंस क्यों गायब हो रहा है। घर पर आते ही वह स्वभाव के विपरीत बिफर पड़े। मां ने समझाया तो भी काफी देर बाद शांत हुए। वकील आदमी, उन्हें कड़ी जोड़ते देर न लगी। मैं पकड़ ली गई। मां के चलते मार खाने से तो बच गई लेकिन डांट इतनी पड़ी जितनी कि पहले कभी नहीं पड़ी थी। दुनिया भर की बात पूछ डाली, क्या बात की, किससे की, क्यों की। लेकिन मैं बताती भी तो क्या ?
पापा ने नाश्ता करने के बाद ऊपर कमरे का जर्जर बिजली बोर्ड खुद ही खोलकर प्लग ठीक किया और उस दिन से मोबाइल ऊपर ही रखने लगे। भाई, बहन भी उस दिन उनके रौद्र रूप से कांप गए थे। मैं उन दोनों के सामने बड़ी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी। अगले दिन कॉलेज जाते समय मां की सीधे घर आने की नसीहत पहली बार मिली। कॉलेज में मेरा मन नहीं लग रहा था। बड़ा उखड़ा-उखड़ा सा था। नमिता-काव्या की हंसी ठिठोली भी अच्छी नहीं लगी। टाइम मिलते ही दोनों ने वजह पूछी तो मैंने इधर-उधर की बातें बताते हुए सिर्फ़ इतना ही बताया कि चैटिंग करते वक़्त मदर ने बातें सुन लीं और मेरा मोबाइल छीन लिया गया। पापा को भी सब मालूम हो गया है। अब मुझ पर सख्त नज़र रखी जा रही है। इस पर दोनों बोली अरे! यार परेशान होने की ज़रूरत नहीं। पैरेंट्स हैं कुछ दिन तो टाइट रहेंगे ही।मैंने कहा जो भी हो लेकिन अब मोबाइल तो नहीं मिलेगा न।इस पर दोनों ने कहा यार ये कोई प्रॉब्लम नहीं है, तू तैयार तो हो, मोबाइल अरेंज हो जाएगा। और मंथली इंकम भी होगी अलग से।
फिर दोनों ने पहली बार यह भी बताया कि वह दोनों मोबाइल चैट सर्विस से जुड़ी हुई हैं। मुझे भी शामिल होने को कहा तो मैंने कहा अभी नहीं सोचने दो। मैं अंदर-अंदर डर रही थी, इसलिए हां नहीं कर पाई। इसके बाद आठ-दस दिन और बीत गए। मैं रात होते ही चैटिंग के लिए मचल उठती, मगर मोबाइल तो मेरे लिए दूर की कौड़ी थी। मुझे इतनी बेचैनी, इतनी खीझ, इतना गुस्सा आता कि सो न पाती। इधर कॉलेज में नमिता, काव्या रोज दबाव डाल रही थीं। इतना ही नहीं दिन में एक दो बार चैटिंग के लिए अपना मोबाइल भी दे देतीं। मगर मेरी व्यग्रता व्याकुलता कम न होती। रात होने के साथ ही वह बढ़ती ही जाती।
एक दिन काव्या के मोबाइल से चैटिंग कर रही थी। दूसरी तरफ से जिस महिला ने बात शुरू की वह कोई चालीस-पैंतालीस साल की प्रौढ़ महिला थी। उसने अपना नाम हुमा बताया और बड़े प्यार से बात की। एक भी ओछी या अश्लील  बात नहीं की। उसने बड़ी साफ-गोई से बताया कि उसके हसबैंड दर्जी हैं। एक गुमटी में उनकी दुकान है। उसके तीन लड़कियां और तीन ही लड़के हैं। घर का खर्च चल सके इसलिए वह चैटिंग भी करती है। मगर मुझसे बात करके उसे इसलिए आश्चर्य हुआ कि इस चैट सर्विस में बात करने वाले सब मर्द होते हैं। वह इस फील्ड में साल भर से है लेकिन मैं उससे चैटिंग करने वाली पहली लड़की हूं। हुमा की बातें मुझे बहुत अच्छी लगीं। मेरी बातें खत्म नहीं हुई थीं लेकिन क्लास का टाइम हो गया तो कट करना पड़ा।
उस रात हुमा से बात करने को मेरा मन ऐसा तड़पा कि मैंने डिसाइड कर लिया कि कल जैसे भी हो नमिता-काव्या से कह कर इस सर्विस के साथ जुडुंगी ज़रूर। मोबाइल तो मिलेगा ही पैसा भी मिलेगा। घर की आर्थिक तंगी कुछ तो कम होगी। हम सब की पढ़ाई भी सही से चल सकेगी। नहीं तो कभी फीस का रोना, कभी कॉपी-किताब का। कभी टूटी चप्पल तो कभी-कभी पुरानी पड़ चुकी ड्रेस परेशानी का कारण बने रहते हैं। मां का चश्मा टूटे कई महीने बीत गए हैं लेकिन बन नहीं पा रहा है। बेचारा पुनीत पिछले महीने अपने दोस्त की बर्थ डे पार्टी में नहीं जा सका। उसके पास ढंग का एक भी कपड़ा नहीं है। और खाना-पीना, तो बस किसी तरह पेट भरता है। कभी सब्जी है तो दाल नहीं, दाल है तो सब्जी नहीं। त्योहारों में भी कुछ ख़ास बनना बड़ा मुश्किल होता है। यह सब सोचते-विचारते सो गई। सवेरे उठी तो अपने निर्णय पर और दृढ़ हो गई।
दिन में बडे़ उत्साह के साथ काव्या और नमिता से बात की। कहा मुझे भी जुड़ना है इस सर्विस से।वह दोनों जैसे मुझसे यही सुनने का इंतजार कर रही थीं। कॉलेज से एक क्लास पहले ही निकल लेने का प्लान बना। वह दोनों मुझे अपनी उस सहेली के पास ले जाने वाली थीं जो यह सब बैठे-बैठे अरेंज करा देती है। वह मास्टर है इस फील्ड की। कॉलेज से निकल कर पंद्रह-बीस मिनट में कॉफी हाउस के पास नरही में एक गर्ल्स हॉस्टल के पास पहुंचे, जहां वह मिलने वाली थी। काव्या ने अपने मोबाइल से अपनी सहेली को मिस कॉल दी तो वह पांच मिनट में आ गई। हॉस्टल के ऊपरी हिस्से में वह रहती थी। काव्या ने उससे परिचय कराते हुए कहा तज़ीन यही है तापसी।
यह नाम मैं पहली बार सुन रही थी। तज़ीन बड़े उत्साह के साथ हम तीनों से मिली। हम तीनों को लेकर ऊपर कमरे में पहुंची। मकान हॉस्टल के उद्देश्य से ही बनवाया गया था। एक-एक रूम सेट थे। कमरे बमुश्किल बारह फीट लंबे और दस फिट चौड़े थे। मगर बने थे अच्छे ढंग से। ज़्यादा से ज़्यादा सामान अलमारी में ही आ जाए इसके लिए कई बड़ी अलमारियां थीं। कमरे में सारी चीजें, उनकी हालत देख कर लग रहा था कि रहने वाला साफ-सफाई, सलीके से रहने में ज़्यादा यकीन नहीं करता है।
बेड पर अस्त-व्यस्त चादर-तकिया, कई मैग्ज़ीन, चिप्स का पैकेट पड़ा था। मेज पर, अलमारी पर किताबें भी अस्त-व्यस्त पड़ी थीं। एक बढ़िया लैपटॉप, टैबलेट और कई मोबाइल भी थे। लाखों रुपए सेे ऊपर के यह सारे इलेक्ट्रॉनिक सामान देख कर मैं दंग रह गई। कमरे की हालत और तज़ीन की हालत दोनों एक सी थी। एक अच्छा-खासा कमरा अस्त-व्यस्त चीजों के कारण मन में खिन्नता पैदा कर रहा था। ऐसे ही खूबसूरत तज़ीन के अस्त-व्यस्त कपड़े और केयरलेसनेस ने उसे भी नॉन अपीलिंग बना दिया था। उसने पतले कपड़े का ट्राऊजर और वैसी ही एक टी-शर्ट पहन रखी थी। बालों को देख कर ऐसा लग रहा था मानो कई दिन से कंघी नहीं की है। कंधे से थोड़ा नीचे तक कटे हुए बालों को ऊपर समेट कर सी-पिन लगा रखी थी। औसत कद की बेहद गोरी भरे-पूरे शरीर की तज़ीन बहुत आकर्षक नैन-नक्स वाली थी। मगर अपने को उसने कमरे की ही तरह अस्त-व्यस्त बना रखा था। वह काव्या और नमिता से जिस तरह खुलकर बातें कर रही थी, उससे साफ था कि वे सब आपस में गहरी मित्र्र हैं।
तज़ीन बड़ी खूबसूरती से मुझे भी बातों में शामिल कर रही थी जिससे मैं बोर नहीं होऊं। उसने चिप्स के दो नए पैकेट खोल कर हम सबके सामने रख दिए। मेरा संकोच देख वह बार-बार मुझे लेने को कह रही थी। जैसी हंसी-मजाक वह कर रही थी उससे साफ था कि वह बहुत बिंदास किस्म की तेज़-तर्रार लड़की है। नमिता-काव्या ने कुछ मिनट के बाद ही चैट सर्विस के लिए मेरी इच्छा बता दी। उसने सुनते ही एक नज़र मुझ पर डाली और कहा यार तापसी सोच ले एक बार। चैटिंग के लिए साले एक से एक कमीने लाइन पर आते हैं। छूटते ही ऐसी बातें करते हैं कि तन-बदन में आग लग जाए। मन करता है कि साले सामने पड़ जाएं तो बीचो-बीच से चीर कर रख दें । साले बात सीधे प्राइवेट पार्ट से ही स्टार्ट कर देते हैं। भूले-भटके कुछ अच्छे भी मिल जाते हैं। मगर इन सबके बावजूद इन को ज़्यादा से ज़्यादा समय तक लाइन पर एंगेज किए रखना ही इस लाइन में सक्सेज की एक मात्र चाबी है। सोच लो कर पाओगी।
मेरे कुछ बोलने से पहले ही काव्या बोली तज़ीन, तापसी पहले ही हफ्तों बात कर चुकी है। यह सब जान चुकी है कि कैसे सक्सेज मिलेगी।यह सुनते ही तज़ीन बोली ओह मतलब टेस्टेड ओके। स्मार्ट गर्ल। ठीक है अभी अरेंज करती हूं।
उसके इतना बोलते ही नमिता बोली तज़ीन एक प्रॉब्लम है। तापसी के पास अभी पैसे नहीं है। तुझको ये भी मैनेज करना पड़ेगा।नमिता की बात सुनकर तज़ीन एक पल को रुकी फिर बोली यार तूने तो मुश्किल में डाल दिया।
उसकी इस बात से मेरी धड़कन बढ़ गई कि कहीं मना न कर दे। लेकिन तभी वह बोली ठीक है मैनेज करती हूं। तुम लोग यहीं रुको मैं दस मिनट में आती हूं।यह कहते हुए उसने हैंगर पर से जींस और बदन पर से ट्राऊजर उतारा फिर जींस पहनकर चली गई। मेरी आंखों में उसके इस अंदाज पर थोड़ा आश्चर्य देखकर काव्या बोली हे! तापसी इतना परेशान क्यों हो रही है। उसे ऐसे क्यों देख रही थी। उसने कपड़े ही तो चेंज  किए थे।मेरे बोलने से पहले ही नमिता ने जोड़ा अरे! यार लड़कों को देखो साले कैसे फ्रेंची पहने अंदर बाहर होते रहते हैं।
क्षण भर में उसने अपने भाई का किस्सा सुना डाला कि केवल अंडर-वियर पहने ही घर भर में घूमता है। जिस समय पापा की, अपनी गाड़ी धोता है उस दिन बाहर लॉन में घंटों अंडर-वियर में ही रहता है। धुलाई-सफाई करते भीगा हुआ पहने रहता है। सब आते-जाते देखते रहते हैं लेकिन उस पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं तो उसे मोगली कह कर चिढ़ाती हूं। लड़के कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? मैं तो मम्मी से भी कह देती हूं सिर्फ़ मुझे ही नहीं भाई को भी कहा करो। लो-वेस्ट कपड़े पहनने पर मुझ पर नाक भौं सिकोड़े बिना नहीं रहतीं।उसके चुप होते ही काव्या चालू हो गई। बोली यार ये पैरेंट्स भी न बस लड़कियों पर ही सारा हुकुम चला पाते हैं। मैं भी मम्मी को बोल देती हूं कि भइया को नहीं बोलती बस मुझे ही कहती रहती हो।
दोनों की इन बातों का मैं सिर्फ़ इतना ही जवाब दे सकी कि यहां हम तीनों बाहरी हैं। घर पर तो भाई परिवार के सदस्य हैं। क्या तुम दोनों  इस तरह फ्रेंड्स के सामने अपने कपड़े चेंज कर लोगी। मेरा इतना बोलना जैसे उन दोनों को तज़ीन के आने तक बोलने की एनर्जी दे गया। दोनों बिना हिचक बोलीं यार मेरे को इसमें कोई प्रॉब्लम नज़र नहीं आती।काव्या सबसे आगे निकल जाने की जैसे ठान चुकी थी बोली यार हॉस्टल में रहते हुए मैं फ्रेंड्स के सामने ट्राऊजर तो क्या सारे कपड़े चेंज़ कर सकती हूं। मैं परवाह नहीं करती इन सारी चीजों की।
सच यह भी था कि उन दोनों की बातें मुझे ठीक भी लग रही थीं। कि शर्म हया सिर्फ़ हम लड़कियों के लिए ही क्यों ? पुनीत भी घर में यही सब करता है। जब देखो तब अंडर-वियर में ही घूमता है। गर्मी के दिनों में तो अंडर-वियर ही पहन कर सोता है। जब कि हम दोनों बहनें चाहे जितनी गर्मी हो कपड़ों में ढकी-मुंदी ही रहती हैं। घर का बूढ़ा हो चुका पंखा बदन पर कपड़ों के अंदर बहता पसीना सुखा नहीं पाता। मगर मजाल है कि कपड़ों को जरा खुला छोड़ दें। देखते ही मां घुड़क देती है कपड़े ठीक करो बदन दिख रहा है।लड़का है तो सारा बदन दिखा दे। लड़की है तो इंच भर भी न दिखे। कपड़ों पर तब तक हम तीनों की बहस चलती रही जब तक दस मिनट को कहकर गई तज़ीन पचीस मिनट में वापस नहीं आ गई।
वह जब आई तो कुछ जल्दी में लग रही थी। उसने मेज की ड्रॉअर से एक मोबाइल निकाला उसमें  एक सिम और मेमोरी कार्ड लगा कर मुझे पकड़ाते हुए समझाया कि सारा कुछ कैसे करना है। असल में उसने अपनी कई आई.डी. में से एक मुझे थमा दी थी। उसका जो पैसा आता वह मुझे देती। मगर सबसे पहले वह मोबाइल में  लगाया अपना सारा पैसा लेगी। वह फिर से यह बताना भी नहीं भूली कि जितना ज़्यादा बात करोगी उतना ही ज़्यादा फायदा है। तज़ीन हम तीनों से यही कोई चार-पांच साल बड़ी थी। और वह हमारे साथ व्यवहार भी एक सीनियर की ही तरह कर रही थी।
सारे दिशा-निर्देश लेकर हम तीनों वहां से निकल लिए। आते-आते तज़ीन मुझे मेरा आई.डी. नेम तान्या बताना नहीं भूली। मुझे इसी फेक नेम से बात करनी थी। मोबाइल ऑन किए दस मिनट भी नहीं बीता था कि कॉल्स आनी शुरू हो गई थीं। हम तीनों ही अपने-अपने मोबाइल पर आने वाली कॉल्स रिसीव कर रहे थे। मोबाइल पाकर मैं खुश थी। मेरी खुशी दोहरी थी कि चैटिंग तो करूंगी ही पैसे भी मिलेंगे। पहले पैसे देने पड़ते थे। शाम को घर पहुंचने से पहले ही मैंने मोबाइल साइलेंट मोड में करके बैग में रख दिया था।
घर पर मैं नई समस्या का सामना कर रही थी कि बात कैसे करूं। पता चलने पर क्या बताऊंगी कि मोबाइल कहां से मिला। हालांकि आते समय नमिता-काव्या दोनों से मैंने कह दिया था कि यदि घर में पकड़ी गई तो मैं तुममें से ही किसी एक का नाम बताऊंगी, कहूंगी कि कुछ दिन के लिए बस ऐसे ही ले लिया है। घर पहुंचने पर सबसे पहले तो मां को दो घंटे देर से पहुंचने का हिसाब देना पड़ा। लाख सफाई के बावजूद झिड़की मिल ही गई। मेरा मन बराबर मोबाइल पर लगा हुआ था। सबके सो जाने का इंतजार करती रही। रात ग्यारह बजे तक चला यह इंतजार मुझे बरसों लंबा लगा।
रात मैंने ग्यारह बजे जब मोबाइल निकाला तो शाम से लेकर तब तक डेढ़ दर्जन से अधिक मिस कॉल पड़ी थीं। मतलब की अच्छा-खासा नुकसान हुआ था। शुरुआत नुकसान से होगी यह मैंने नहीं सोचा था। कैसे क्या करूं कुछ समझ नहीं पा रही थी। मोबाइल हाथ में लिए उसे तरह-तरह से चेक कर रही थी। मैंने महसूस किया कि मेरी दोनों हथेलियां पसीने से नम हैं। जबकि दीपावली को बीते एक हफ्ता हो चुका था। रात का टेंप्रेचर उन्नीस-बीस डिग्री तक हो जा रहा था। पकड़े जाने का डर मुझे परेशान किए हुए था। मोबाइल हाथ में लिए दस मिनट हो रहे थे लेकिन कोई कॉल नहीं आई थी। तज़ीन ने बताया था कि यह चैटिंग का पीक हॉवर्स होता है। तभी मुझे पेशाब महसूस हुई मैं उठकर जाने लगी कि उसी वक्त कॉॅल आ गई। टॉयलेट जाने का मतलब था कि कॉल खत्म, मैं एक और नुकसान नहीं उठाना चाहती थी। इसलिए फ़ोन कॉल रिसीव कर ली।
मन चैटिंग के लिए तो पहले से ही मचल रहा था। पेशाब जाना भूल गई। कॉल सुमित नाम के एक व्यक्ति की थी। वह तान्या से रोज इसी टाइम चैट करता था। तान्या यानी तज़ीन से। मेरी आवाज़ उसने पहचान ली। मैंने बार-बार कहा कि मैं ही तान्या हूं लेकिन वह नहीं माना। फिर उसने पहले की गईं तमाम बातों के बारे में पूछ लिया। मैं नहीं बता पाई। हार कर कह दिया कि तान्या मेरी सहेली है। आजकल वह बीमार है तो यह आई.डी. ठीक होने तक मुझे दे दी है। यह जानने के बाद उसने एक से एक बातें शुरू कर दीं। इस बीच पेशाब ने जोर मारा तो फ़ोन लिए-लिए बात करते हुए टॉयलेट चली गई। वहां उसने कुछ और बड़ी गंदी, फूहड़ बातें कीं, जिन्हें सुनकर मुझे घिन सी आने लगी। लेकिन तज़ीन की बात याद आई कि जितना बात करोगी उतना ही पैसा बनेगा। मुझे इस बात की भी चिंता थी कि उसको मोबाइल का पैसा देना है। इस पहली कॉल से छुटकारा पाए कुछ ही मिनट बीते थे कि फिर कॉल आ गई। सबके सब एक सी ही बातें कर रहे थे। सेक्सुअल रिलेशनशिप को लेकर ऐसी-ऐसी कल्पनाएं कि मैं सिहर उठी। मैं तमाम बातें पहली बार जान-सुन रही थी। लगभग साढ़े तीन बजे मैंने फिर से मोबाइल साइलेंट मोड में करके पहले ही की तरह बैग में रख दिया।
मेरे सामने जितनी बड़ी समस्या थी बात करने की उतनी ही बड़ी समस्या थी मोबाइल को चार्ज रखने की। जब तक बात करती चार्जिंग में लगाए ही रहती थी। मेरे लिए केवल एक बात अच्छी थी कि मेरे दोनों भाई-बहन सोने में बड़े उस्ताद हैं। घोड़ा बेचकर सोते हैं। सुबह उठाने पर ही उठते हैं। मैं इसका फायदा उठाती थी।
चैटिंग का यह सिलसिला चल निकला। रात ग्यारह से तीन साढ़े तीन बजे तक बात करती थी। कॉलेज जाती तो भी चैटिंग के लिए वक़्त निकाल लेती। मेरी पढ़ाई-लिखाई यह चैटिंग चट करने लगी। नमिता-काव्या और मैं अब और करीब आ गई थीं। तीनों चैटिंग में हुई बातों को शेयर भी करते। कब एक महीना बीत गया पता नहीं चला। तज़ीन से पैसा भी ले आई। जो मात्र दो हज़ार था क्योंकि बाकी सारे पैसे उसने मोबाइल और आई.डी. देने के नाम पर रख लिए थे। तज़ीन भी अपने आप में कम से कम मेरे लिए अजूबा ही थी।
उसके मां-बाप और बाकी के भाई-बहन ट्रांसफर होने के कारण लखीमपुर में रहते थे। वह बी.एस.सी. कर रही थी साथ ही किसी प्राइवेट इंस्टीट्यूट में विजुवल इफेक्ट्स का भी कोई कोर्स कर रही थी। पढ़ाई, कॅरियर के चलते मां-बाप ने लखनऊ में उसे पहले मौसी के यहां रखा था। मगर महीने भर बाद ही वह चौक की तंग गलियों में मौसी का मकान छोड़कर हॉस्टल में रहने लगी। फादर टेªड टैक्स विभाग में थे, पैसे की कमी नहीं थी, ऊपर की कमाई खूब थी लेकिन उनके पास वक़्त की कमी ही कमी थी।
तज़ीन मौसी के घर सख्त पाबंदियों के चलते महीने भर में त्रस्त हो गई थी। हॉस्टल में रहने की बात जब उसने अब्बू-अम्मी से की थी तो पहले तो वह बिल्कुल तैयार नहीं हुए। लेकिन जब उसने अम्मी को मौसेरे भाई की हरकतों के बारे में बताया कि कैसे वह उसके साथ गलत हरकतें  करता है। मौका मिलते ही छेड़-छाड़ से बाज नहीं आता तो अम्मी ने अब्बू को भी तैयार कर लिया था कि तज़ीन हॉस्टल में अकेले रहे। उससे हम तीनों महीने में दो-चार बार ही मिलते थे। उसने ऐसी तमाम आई.डी. देकर अपनी इंकम का बढ़िया जरिया बना रखा था। हालांकि घर से उसके पास काफी पैसा आता था लेकिन उसकी शाहखर्ची के आगे वह कम ही पड़ते थे।
मुझे जब पहली रकम मिली तो उसे मैं खर्च कैसे करूं मेरे लिए यह बात भी बड़ी चिंता का कारण बन गई। किसी तरह की कोई आदत थी नहीं। घर के लिए कुछ करूं तो हिसाब कहां से दूंगी कि पैसा कहां से आया। बार-बार मेरा मन मां का चश्मा बनवाने, भाई के लिए अच्छी ड्रेस लेने तो कभी पापा के लिए एक अच्छा जूता लाने का करता। बेचारे बहुत दिन से घिस चुका जूता पहन कर जा रहे था। फिर छोटी बहन की टूटी चप्पलें याद आतीं जिसे वह बार-बार क्विकफिक्स से जोड़-जोड़ कर पहन रही थी। यह सोचते-सोचते दो दिन निकल गए। डेढ़ सौ रुपए नमिता-काव्या को ट्रीट देने में निकल गए। तीसरे दिन कॉलेज पहुंचते-पहुँचते मेरे दिमाग में एक योजना आई। मैंने सोचा आज ही इस योजना को अमल में भी लाना है। क्योंकि घर में तभी कुछ कर पाऊंगी अन्यथा नहीं। इसके लिए मैंने एक बार फिर से नमिता-काव्या को साजिश में शामिल कर लिया।
उस दिन घर पर मां से कहा मां मेरी एक सहेली अपने घर पर कई बच्चों को ट्युशन देती है। वो कह रही थी कि मेरी मैथ, साइंस, इंग्लिश ठीक है। मैं भी पढ़ा दूं तो पैसा मिलेगा। कॉलेज से सीधे वहीं जाऊंगी पढ़ाकर तब घर आऊंगी। इससे आने-जाने का समय, किराए के पैसे भी बच जाएंगे। मां ने छूटते ही मना कर दिया। लेकिन मैंने बहुत समझाया, एक तरह से जिद पर अड़ गई तब बड़ी मुश्किल से दबे मन से मां ने हां की। मगर एक महीना तो और इंतजार करना ही था। पैसा तुरंत तो मिलता नहीं। ट्युशन पढ़ाने के एक महिने बाद मिलता है। इसलिए कुछ रुपए अपने पास रखकर बाकी करीब डेढ़ हज़ार मैंने एक किताब में रख कर छिपा दिए। मगर मैं अपने को दो हफ्ते से ज़्यादा न रोक पाई।
किताब से पैसे निकाल कर अपने एवं छोटी बहन के लिए चप्पलें लेती आई। भाई की कुछ किताबें बाकी थीं वह भी लेती आई। मां को समझा दिया कि सहेली से ले लिया है, दो हफ्ते बाद ट्यूशन के पैसे मिलेंगे तब वापस कर दूंगी। पहले तो मां खूब भुन-भुनाई, फिर मान गई। मगर रात ही उन्होंने पापा को बता दिया। सवेरे पापा ने पुछताछ शुरू कर दी। डरते-घबराते मैंने काव्या से बात करा के उन्हें संतुष्ट कर दिया कि काव्या के घर पर उसी के साथ ट्यूशन पढ़ाती हूं। साजिश में शामिल काव्या ने अपना रोल बखूबी निभाया। अब मैं निश्चिंत हो कर चैटिंग में लग गई। अगले महीने मैं मां का चश्मा, पापा के लिए जूता, घर का और काफी सामान ले आई। सब खुश थे। मां-पापा के मन में कहीं फिर भी हिचक थी। मगर यह सिलसिला चल निकला। लेकिन तीन महीने बाद ही समस्या उस समय खड़ी हो गई जब एक दिन मां ने छत पर मोबाइल पर चैट करते हुए पकड़ लिया। मैंने फिर झूठ बोला कि ट्यूशन का ही पैसा बचा कर खरीदा है।
मां को चैटिंग-फैटिंग के बारे में  पता नहीं था। उनके हाथ पैर जोड़ कर मैंने मना लिया कि वे पापा को नही बताएंगी। चैटिंग फिर चलती रही। और इसके सहारे घर की घिसटती गाड़ी थोड़ा आराम से आगे बढ़ने लगी। सात-आठ महीने आराम से निकल गए। मेरे मोबाइल पर भाई-बहन की नज़र न रहे इसलिए मैंने एक और मोबाइल लेकर मां को दे दिया था। यह कहते हुए कि यह हमेशा घर पर ही रहेगा। जिससे घर के सभी लोग संपर्क में रहें। मैं जानती थी कि दे तो रही हूं मां को लेकिन यह रहेगा भाई-बहन के ही हाथों में । इससे दोनों उसी में लगे रहेंगे। मां को देने का सिर्फ़ एक ही फायदा था, एक ही उद्देश्य कि इससे भाई-बहन के हाथ में मोबाइल रहेगा तो ज़रूर लेकिन वो बाहर लेकर कम जाएंगे।
इन सात-आठ महीनों में चैटिंग के चलते घर की स्थिति में भले ही थोड़ा बहुत फ़र्क पड़ा या कुछ ज़्यादा। मगर मेरी ज़िन्दगी , मेरी शारीरिक स्थिति, मेरी मानसिक स्थिति और मुख्य रूप से पढ़ाई पर खूब फर्क पड़ा। इस दुनिया में शामिल होकर ही यह जान पाई कि इसका असर नमिता-काव्या पर कैसा पड़ा है। चैटिंग में होने वाली बातों ने मुझे उम्र से बहुत पहले ही बड़ा, परिपक्व बना दिया। शारीरिक संबंधों के बारे में इतना कुछ जान समझ चुकी थी जो सामान्यतः अगले कई वर्षों में जान पाती। हालांकि इनमें से अधिकांश बातें सेक्सुअल रूप से एक से एक भ्रमित, अतृप्त विकृति सोच वाले अधिकांश ओछे लोगों की ही थीं।
मेरी दिनचर्या पूरी तरह से बिगड़ चुकी थी। इन बातों के कारण रोज ही मैं कई-कई बार बेहद उत्तेजित होती। यह उत्तेजना सोने से पहले अपने तन के साथ अत्याचार पर ही खत्म होती थी। चैटिंग के दौरान भी तन के साथ अत्याचार हो ही जाता था। मैं चैटिंग नहीं कर रही होती तो भी यह कामुक बातें दिमाग में उथल-पुथल मचाए ही रहतीं थीं। आठ-नौ महीने में ही मैंने ऐसा महसूस किया कि मेरा शरीर कई जगह बड़ी तेजी से भर गया है। जिन्हें देखकर मैं खुश होती कि मैं कितनी सुन्दर हो गई हूं। एक और बात जो बहुत ज़्यादा विचलित करने लगी थी वह यह कि मेरा मन अब किसी लड़के का साथ पाने के लिए मचल उठता। किसी लड़के को अपनी ओर देखता पाकर मैं बड़ी देर तक तनाव से भर उठती। इस स्थिति से एक बार बर्बाद होते-होते बची। भगवान ने दलदल में फंसने से आखिरी समय में बचा लिया था।
हुआ यह था कि चैटिंग में एक ऐसा आदमी मिला जो करीब-करीब रोज ही एक बजे रात में बात करता। मुझसे रोज कहता कि इस टाइम मुझसे बात करने के लिए अपनी आई.डी. फ्री रखा करो। शुरू में उसने खूब शालीनता से बात की। फिर प्यार जताने लगा। मुझे लेकर शेरो-शायरी करने लगा। उसके मतलब भी समझाता। सब मेरी तारीफ के पुलिंदे ही होते। फिर जल्दी ही वह मेरे तन की पूरी रूप-रेखा पूछता और उसी पर केंद्रित शेर सुनाता। कुछ दिन बीततेे ही वह मिलने की बात करने लगा। मैं टालती रही। लेकिन आखिर उसकी बातों  में आकर एक दिन मिलने की ठान ली और हां कर दी। तब उसने अपना नंबर दिया। उसने मेरा नंबर मांगा तो मैंने कह दिया कि मेरे पास आई.डी. से अलग कोई नंबर नहीं है। वह फ्रेंड के मोबाइल से खुद ही फ़ोन कर लेगी।
मुझे तज़ीन की बात याद आ गई कि कुछ भी करना, कभी कोई बखेड़ा नहीं चाहती हो तो कभी भी किसी साले को अपना कॉन्टेक्ट नंबर या घर का एड्रेस मत देना। मिलने का स्थान लोहिया पार्क, गोमती नगर तय हुआ। उसने अपनी बाइक का नंबर दिया था। जिससे पहचानने में आसानी हो। उस दिन कॉलेज कट कर एक बजे लोहिया पार्क पहुंच गई थी। गेट के ठीक सामने मिलना तय हुआ था। मैं अंदर-अंदर डर रही थी। पूरी सावधानी बरतती हुई रोड की दूसरी तरफ खड़ी हुई थी। वहां चाट, आइसक्रीम, भेलपूरी, चाय के ठेले खड़े थे। सिटी बस के इंतजार में खड़े लोगों के कारण यहां अच्छी-खासी भीड़ हमेशा बनी रहती है। मैं उसी भीड़ के पीछे इस ढंग से खड़ी हुई कि मुझ पर जल्दी उसकी नज़र न पड़े। वहां गेट के पास कई बाइक पर लोगों को देखा। मैं जहां खड़ी थी वहां से उन बाइक्स के नंबर नहीं देख सकती थी। इनमें वो कौन है यह जानने के लिए उसके नंबर पर रिंग किया। मैं एक कान में ईयर-फ़ोन लगाए हुए थी। मोबाइल हाथ में पकड़े दुपट्टे से ढके हुए थी। कॉलेज ड्रेस में थी। रिंग होते ही उन बाइक सवारों में से एक ने हेलमेट उतारा और जेब से मोबाइल निकाल कर हैलो बोला।
मैंने पूछा आप पहुंच गए ?’ तो वह बड़ा खुश होकर बोला हां।उसे खुशी इस बात की भी थी कि वह एक और कदम मेरे करीब आ गया। मेरा नंबर अब उसके मोबाइल में था। उसने तुरंत पूछा कहां हो तुम ?’ मैंने तुरंत कहा बस पांच मिनट में पहुंच रही हूं।वह एकदम उतावला हो उठा कि बताओ कहां हो मैं आ कर ले लेता हूं। मैंने कहा नहीं बस पहुंच ही गई।फिर फ़ोन काटकर देखने लगी उसे ध्यान से कि वह वही है जिसे रिंग किया। उसका भी फ़ोन कट गया। लेकिन देखा वह कॉलबैक कर रहा है। मेरे मोबाइल में रिंग हुई मैंने काट दिया। कुछ देर में फिर रिंग कर कह दिया कि पहुंच रही हूं। जब मुझे कंफर्म हो गया कि यही वह आदमी है तो मैं उसे देखकर परेशान हो गई। फ़ोन पर खुद को इंजीनियरिंग का स्टूडेंट बताता था। लेकिन यह तो चालीस-पैंतालिस साल का प्रौढ़ आदमी है। मेहंदी में रंगे बाल। बड़ी स्टाइल में हल्की सी कटी दाढ़ी। जींस और टी-शर्ट पहने था। देखने में दो-तीन बच्चों का बाप लग रहा था। मुझे उसकी धोखा-धड़ी पर बहुत गुस्सा आया।
उसकी बार-बार आने वाली रिंग ने गुस्सा और बढ़ाया । अंततः मैंने पांच मिनट बाद रिसीव कर कह दिया कि तुम धोखेेबाज हो मैंने तुम्हें देख लिया है। मैं नहीं मिल सकती। मुझे फ़ोन नहीं करना। इस पर वह बोला एक बार मिल लो मैं तुम्हें सारा सच बता दूंगा। मेरी मजबूरी को समझो। मेरी बात जानने के बाद अगर तुम्हें ठीक लगे तो आगे मिलना नहीं तो न मिलना। आखिर बताओ तो तुम किधर हो।मैंने जब बार-बार मिलने से मना कर दिया, जब उसे यकीन हो गया कि नहीं मिलूंगी तो वह अपने असली रूप में आ गया और ऐसी गंदी-गंदी गालियां देने लगा कि जवाब नहीं। मैंने मोबाइल ऑफ कर दिया और उस पर नज़र  गड़ाए रही कि अब ये क्या करेगा है। मेरा मोबाइल ऑफ होते ही उसने किसी और को रिंग किया। मुश्किल से पांच मिनट बीते होंगे  कि एक बाइक पर उसी की उमर के लफंगे जैसे दो लोग आकर रुके।
कुछ देर तीनों ने बात की और फिर लोहिया पार्क से वापस हजरतगंज की ओर चले गए। मुझे समझते देर न लगी कि मैं लफंगों के गैंग के चंगुल में फंसते-फंसते बची। भगवान को धन्यवाद देती, निशातगंज चौराहे पर बने मंदिर गई, प्रसाद चढ़ाया। घर आ गई। घर आने के पहले काव्या को बताया। तो वह बिगड़ कर बोली थी यार तू खुद तो मरेगी हम सबको भी मरवाएगी। तज़ीन ने बार-बार मना किया है कि किसी साले को नंबर मत देना। और तुमने बता दिया और मिलने भी चली गई।इसी बीच उसका फ़ोन फिर आने लगा। मैंने काव्या से कहा तो वह बोली सुन उसने तुम्हें गाली दी थी न तो हिसाब तो बराबर करना है। पहले तू फ़ोन रिसीव करके उसे खूब गाली दे। और फिर तुरंत ऑफ कर सिम निकाल कर फेंक दे नाली में। कल दूसरा सिम ले लेंगे। नहीं तो यह छोड़ने वाला नहीं।मैं घबरा रही थी। उसकी बराबर कॉल पर कॉल आ रही थी। पहले सोचा कमीने को गाली दूं। मुझे बड़ी गंदी-गंदी बातें कही हैं, मगर हिम्मत न पड़ी और फ़ोन ऑफ कर सिम निकाल कर फेंक दिया।
रात आई.डी. पर उसका फ़ोन फिर आया तो बड़ी शालीनता से बात करते हुए माफी मांगने लगा। मैंने उसकी बात का कोई जवाब न दिया। बस सुनती रही। जब उसे लगा कि मैं जवाब नहीं दूंगी तो उसने फिर गाली दी, फ़ोन काट दिया। उसका बिल बढ़ रहा था। पांच रुपए मिनट के हिसाब से।
अगले दिन काव्या-नमिता ने मुझे मेरी बेवकूफी पर बहुत लताड़ा। जल्दी ही इग्ज़ाम के टाइम आ गए। खींच तान कर वो भी दे दिया। मगर पर्सेंटेज  बुरी तरह खराब हुई। घर में पापा-अम्मा ने अपना गुस्सा जाहिर किया कुछ न बोल कर। परसेंट् खराब होने के कारण बी.ए. में मन चाहे विषय नहीं मिले। बी.ए. की क्लासेज शुरू ही हुई थीं कि एक रात मैंने पापा-अम्मा को अपनी शादी की बात करते सुन लिया। दोनों के हिसाब से पढ़ने-लिखने में मेरा मन नहीं लग रहा है। शादी कर देनी चाहिए। मां बोली इधर देखते-देखते इसका बदन इस तेजी से भर गया है कि अभी से पचीस-छब्बीस की लग रही है। कैसे बोलूं कि खाने-पीने पर थोड़ा कंट्रोल कर ले। नहीं तो भारी शरीर के चलते शादी करनी मुश्किल हो जाएगी। उनकी बातों में शादी के लिए दहेज बटोरने से लेकर मुझ पर निगाह रखने तक की बात शामिल थी। मतलब साफ था कि मेरे मां-बाप का मुझ पर से विश्वास ही उठ गया था। मुझे बड़ा दुख हुआ। चैटिंग नहीं कर पाई। मोबाइल ऑफ करके लेटी रही बिस्तर पर। अपने भविष्य को लेकर मां-बाप की चिंता ने मुझे बहुत भावुक कर दिया था। मैंने उनका विश्वास तोड़ दिया है यह बात मुझे बहुत कचोटने लगी थी।
मेरे मन में बार-बार यह डर सताने लगा था कि आखिर मां-बाप को मेरी ऐसी कौन बात पता चल गई कि मुझ पर से उनका विश्वास इस कदर उठ गया है कि मुझ पर निगाह रखने की बात हो रही। कहीं चैटिंग की बात तो पता नहीं चल गई। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। चैटिंग का सच जानने के बाद तो वह मुझे घर से निकलने ही नहीं देेंगे। तो क्या यह बात है कि मेरी गतिविधियों ने उनकी नज़र में संदेह पैदा कर दिया है। और उन्हें प्रमाण का इंतजार है। और जब बात निगरानी की आ गई है तो एक दिन प्रमाण भी पा लेंगे। किसी दिन पिता का वकीलों वाला दिमाग सनक गया और कहें चलो दिखाओ कहां किन बच्चों को पढ़ा रही हो ट्यूशन तब क्या करूंगी। ऐसे तो उनका विश्वास एकदम चकनाचूर हो जाएगा। फिर सब जीवनभर मुझसे बात नहीं करेंगे। भाई-बहन भी।
तब यह भी कहा जाएगा कि तुमसे किसने कहा था कि घर की चिंता करो। इस कल्पना से ही मैं सिहर उठी। और सच तो यही था कि इस चैटिंग के कारण ही तो मैं अपनी मन-मर्जी कर रही थी। पापा-अम्मा से एक से एक झूठ बोल रही थी। ऐसे काम कर रही थी जो सही तो नहीं कहे जा सकते थे। किस्मत से दलदल में फंसते-फंसते बची थी। उस लफंगे ने फंसा ही लिया था। मगर ऐसे कितने दिन बचुंगी। किसी दिन फंस ही जाऊंगी। आखिर एक दलदल में फंसी ही काव्या-नमिता के साथ।
बीयर पार्टी, नहीं वो नमिता के शब्दों में लाईफ वेव पार्टी। यह पार्टी  काव्या के यहां अमूमन हर महिने होती थी। काव्या के मां-बाप हर महीने एक दिन के लिए दिल्ली जाते हैं। रात की ट्रेन से वहां किसी गुरु की कृपा लेने। अगले दिन गोमती ट्रेन से रात में ही वापसी करते हैं। उस एक रात के लिए काव्या नमिता को उसके मां-बाप से कह कर अपने यहां सोने के लिए बुला लेती है। दोनों के घर पास हैं। फिर दोनों अगले दिन भी साथ रहती हैं।
काव्या के दो भाई भी हैं। बैंगलुरू में जल्दी ही नौकरी में लगे थे। ऐसी स्थिति में काव्या ने एक बार दिन में मुझे भी बुला लिया था। कॉलेज के लिए कह कर निकली मगर पहुंची उस के घर। वहां दोनों ने खाने-पीने के लिए के.एफ.सी. केे चिकन, पिज्जा आदि तो मंगाए ही थे साथ में बीयर भी थी। मैं अचंभे में पड़ गई थी कि यह सब क्या। दोनों के प्रेशर के आगे मेरा सारा संकोच इंकार धरा रह गया। जीवन में  पहली बार न सिर्फ़ चिकन खाया बल्कि बीयर भी पी। और जब शुरूर में आ गई तो और पी गई।
होम थिएटर पर वेस्टर्न म्यूजिक सुनना ही काफी नहीं था, काव्या ने कंप्यूटर पर पॉर्न साइट भी खोल दी थी। चैटिंग कर-कर इन सब चीजों में हम तीनों पारंगत थे ही। अब वह सब देख कर तीनों और बहक गए।  वह दोनों तो खैर बहुत पहले से ही बहकी थीं। बीयर के शुरूर में हम तीनों ने खूब डांस किया। उसी में एक दूसरे को पकड़ते, किस करते आखिर हम तीनों फिज़िकल रिलेशनशिप के दौर से भी गुजर गए। जब शुरूर कम हुआ तो मुझे रोना आ गया। मैंने नमिता की टॉवल ही पहन कर खूब नहाया, ब्रश किया और घर आ गई। जब कि वह दोनों यही कहती रहीं जस्ट फ़न यार इसमें रोना कैसा। इट्स अ पार्ट ऑफ लाइफ यार इंज्वाय इट।उनकी बातों से मैं कंविंस न हो पाई। लेकिन जब अगले महीने दोनों ने फिर बुलाया तो रोक न सकी थी खुद को। मुंह से न करती रही मगर चली गई।
पार्टी का पूरा मजा लिया। मगर इस बार रोना नहीं आया। दलदल में जो फंस चुकी थी। फिर यह क्रम हर महीने चला। मैंने सोचा यह सब एक दिन खुल ही जाएगा। उधर तज़ीन एक और दलदल में फंसाने जा रही है। किस ऑफ लव मूवमेंटमें शामिल होने के लिए कह रही है। एक संगठन के ऑफ़िस के सामने मूवमेंट में शामिल लड़के-लड़कियां एक दूसरे को सबके सामने लिप-लॉक किस करेंगे। इससे वह मॉरल पुलिसिंग के खिलाफ विरोध दर्ज कराएंगे। चोरी-छिपे उसने हम सब को दो-दो हज़ार रुपए भी दिए हैं।
यह सारा काम तज़ीन और उसका एक दोस्त पैट्रिक चौधरी मिलकर कर रहे हैं। पिछले हफ्ते ही वह करने वाले थे। लेकिन लड़के-लड़कियों की कम संख्या के कारण अगले हफ्ते करने का निर्णय लिया था। यह बात तो छिप ही न पाएगी, बाकी सारी बातें खोल देगी अलग से। आखिर फायदा क्या इन सारी चीजों का, मुझे नहीं रहना अब इस दलदल में। अब ट्यूशन सच में ही पढ़ाऊंगी। सचमुच पढ़ाऊंगी अपने घर पर ही पढ़ाऊंगी। भाई-बहन को भी शामिल कर लूंगी। चैटिंग से कम पैसा नहीं आएगा। कल जाकर तज़ीन को वापस कर दूंगी मोबाइल। कह दूंगी कि नहीं करनी चैटिंग। नहीं बरबाद करनी अपनी नींद, सेहत, भविष्य और घर की इज्जत। नहीं शामिल होना तुम्हारे किस ऑफ लव मूवमेंट में नहीं चाहिए दो हजार रुपए, नहीं बनना किराए का टट्टू। नहीं जाना अब लाईफ वेव पार्टी में। जब मैं यह निर्णय करके लेटी बिस्तर पर तो बड़ा रिलैक्स महसूस कर रही थी। बड़ा हल्का महसूस कर रही थी। मोबाइल ऑफ कर बैग में रख दिया था।
अगले दिन सुबह नौ बजे ही घर वाले फ़ोन पर नमिता का फ़ोन आया था। वह बड़ी घबराई हुई बोली थी तुमने पेपर देखा।मैंने कहा था नहीं।मैंने उसे यह कभी नहीं बताया था कि मेरे यहां पैसे के कारण पेपर नहीं आता। उसने बताया कि पेपर में तज़ीन की फोटो निकली है। उसकी किसी ने हत्या कर दी है। उसे बड़ी बुरी तरह से रेप करने के बाद मारा गया है। पुलिस को हॉस्टल से कई मोबाइल, करीब एक लाख रुपए और कई आपत्तिजनक कागजात मिले हैं। हम सब के पास जो चैटिंग के मोबाइल हैं यह भी उसी के हैं। क्या करा जाए।कुछ ही देर में हम तीनों ने आपस में बात करके सारे मोबाइल कॉलेज जाते समय रास्ते में पड़ने वाले बहुत दिन से खुले पड़े एक गटर में फेंक दिए थे। उन्हें फेंकने से पहले तोड़कर कई टुकड़े कर दिए थे। उस दिन हम तीनों शाम तक साथ थे। मगर कोई बात नहीं कर रहे थे। हम तीनों इतने सहमे हुए थे कि उसी पेपर में किस ऑफ लव मूवमेंटके सूत्रधार की गिरफ्तारी की फोटो सहित खबर को पढ़कर भी एक शब्द नहीं बोल पाए थे। वह दोनों सेक्स रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। इस खबर ने हमारी दहशत और बढ़ा दी थी। मेरी नज़रों के सामने बार-बार तज़ीन की बिंदास तस्वीर आ रही थी। उसका खुलकर हंसना, बेलौस बातचीत और बोल्ड पहनावा भी। मुझे पूरा यकीन है कि उसका वह डेढ़ बरस का साथ मैं कभी भुला नहीं पाऊंगी। आखिर उसी की वजह से तो घर को आर्थिक मजबूती मिली थी। भले ही उसके कारण हतप्रभ करने वाले अनुभव मुझे जीवन भर कुरेदते रहेंगे। और अब जो घर पर ही इतने दिनों से ट्यूशन पढ़ाकर पैसा कमा रही हूं इसके पीछे भी अंततः है तो वही। 
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                                                                          पता - प्रदीप श्रीवास्तव
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