किसी ने नहीं सुना
-प्रदीप श्रीवास्तव
रक्षा-बंधन का वह दिन मेरे जीवन का सबसे
बड़ा अभिशप्त दिन है। जो मुझे तिल-तिल कर मार रहा है। आठ साल हो गए जेल की इस कोठरी
में घुट-घुटकर मरते हुए। तब उस दिन सफाई देते-देते शब्द खत्म हो गए थे। चिल्लाते-चिल्लाते
मुंह खून से भर गया था। मगर किसी ने यकीन नहीं किया। पुलिस, कानून, दोस्त, रिश्तेदार, बच्चे और बीवी किसी ने भी नहीं। सभी की नज़रों में मुझे घृणा दिख रही थी। सभी मुझे
गलत मान रहे थे। मेरी हर सफाई, हर प्रयास घृणा की उस आग में जलकर खाक हो
गए थे।
ज़िंदगी भर से सुनता
आ रहा हूं, कानून के हाथ बड़े लंबे होते हैं, उससे बड़े से बड़ा चालाक अपराधी भी नहीं
बच सकता, लेकिन यहां अपराधी आठ बरस से आराम से घूम रहे हैं, मस्त जीवन जी रहे हैं। अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए एक निर्दोष को धोखे से फंसा कर
अपराधी साबित कर दिया। कानून के शिकंजे में वे नहीं बल्कि उन सबने उसे अपने शिकंजे
में कर प्रयोग कर लिया। और उनकी साजिश का शिकार बना मैं जेल में सड़ रहा हूं। वो भी
दुनिया के सबसे घृणित अपराध के आरोप में । एक बलात्कारी के रूप मेें। अपनी ही साथी
से बर्बरतापूर्वक बलात्कार करने, उसकी हत्या करने के प्रयास के आरोप में।
धारा तीन सौ छिहत्तर, तीन सौ सात के तहत। आज भी बीवी से नज़र मिला नहीं पाता। बहन राखी बंधवाने फिर आने
लगी है। शुरू के दो बरस तो वह आई ही नहीं। हां न जाने क्यों बहनोई शुरू से ही अन्य
सबकी अपेक्षा मेरे प्रति नरम रहे हैं और ढांढ़स बंधाते रहते हैं, और जिस साले को मैं उठाईगीर, छुट्ट भैया नेता मानता था वह सबसे ज़्यादा
काम आया।
उस दिन भी जब मैं
राखी बंधवाने के बाद वापस घर आने के लिए निकला और बहनोई के पैर छूने लगा तो उन्होंने
गले से लगाकर कहा था,
‘नीरज गाड़ी आराम से चलाना। यार कहना तो नहीं चाह रहा था लेकिन बात क्योंकि तुम मियां-बीवी
के बीच खटास का कारण बनती जा रही है, इसलिए कह रहा हूं। इसे एक बहनोई की
नहीं एक सच्चे मित्र की सलाह मानकर विचार करना। देखो बाहर जो भी करो मगर इसका ध्यान
रखो कि उससे तुम्हारा परिवार डिस्टर्ब न हो। घर की शांति न भंग हो। क्योंकि घर की शांति
गई तो समझ लो सब गया। ऑफ़िस में संजना के साथ तुम्हारे जो भी संबंध हैं उसे मैं तुम्हारा
पर्सनल मैटर मानता हूं।
मगर जब कोई मैटर
अच्छे ख़ासे खुशहाल परिवार की नींव हिलाने लगे तो ज़रूर सोचना चाहिए। तुुम एक खुशहाल
परिवार के मालिक हो। दो होनहार बच्चे हैं। और बहुत खुशकिस्मत हो कि नीला जैसी बेहद
समझदार पढ़ी-लिखी बीवी मिली है। ऐसे में संजना जैसी औरत की तुम्हारी ज़िंदगी में कैसे
कोई अहमियत हो सकती है। कम से कम मैं तो नहीं समझता। गंभीरता से विचार करो। नीला और
बच्चों में ही तुम्हारी सब खुशी है, सारा संसार है और उन सबका तुम में।
तुम अपने परिवार की खुशी छीन कर कहीं और लुटा रहे हो, नीरज। जबकि वह तुम्हें पहले ही एक बार चीट कर चुकी है। यदि मेरी बात अच्छी न लगे
तो क्षमा करना।’
उन्होंने इतना कहकर
बड़े प्यार से कंधा थप-थपाकर बिदा किया था। उनकी बात में, कंधा थप-थपाने में एक पिता का सा भाव था। अपनत्व की शीतलता थी। लेकिन तब मेरी मति
पर पत्थर पड़ा था। संजना के प्यार नहीं बल्कि उसके छद्म प्यार की काली छाया थी मुझ पर, और मुझे उनकी बात बुरी लगी थी। तब मेरे मन में आया था कि यह समझाना-बुझाना ज़्यादा
हुआ तो आना ही बंद कर दूंगा। बहन पर भी गुस्सा आया था कि वह भी कभी फ़ोन पर, कभी मिलने पर संजना को लेकर व्यंग्य करना नहीं भूलती। भले ही मजाक के रूप में कहे, कहती ज़रूर है। गुस्सा बीवी पर भी बहुत आया था। उसे मन ही मन न जाने कितनी गालियां
दी थीं। कोई भी ऐसी भद्दी गाली न थी जो उस वक़्त न दी हो। घर पहुंच कर पीटने का भी
मन कर रहा था कि यह मेरी बातें बताती क्यों है मेरी बहन बहनोई से। और न जाने किस-किस
से बताती रहती है। गुस्सा इतना बढ़ गया था कि घर न जाकर एक होटल में बैठ गया था। फिर
वहीं चाय नाश्ता करते-करते गुस्से से उबलते-उबलते संजना को फ़ोन कर दिया था। मन में
उस वक़्त चल रहा था कि रोकना हो तो रोक लो। जितना कहोगे उतना जाऊंगा। इन सबसे मेरी
ज़रा सी खुशी देखी नहीं जाती। सब सिर्फ़ पैसे के साथी हैं। अपने-अपने सुखों के लिए मरते
रहते हैं। मैं दो पल की खुशी कहीं ढूंढ़ लेता हूं तो सब भड़क उठते हैं। गुस्सा और प्रतिशोध
उस वक़्त इतना बढ़ गया था कि संजना से फ़ोन पर उस वक़्त यह सारी बातें शेयर कर डाली थीं।
बीच में कुछ दिनों गंभीर अनबन के बाद संजना से दुबारा मेरे रिश्ते जब से मधुर हुए थे तब से मैं उसको लेकर और भी ज़्यादा
पजेशिव हो गया था।
यह सब बताते-बताते
एकदम भावुक हो उठा था। उस वक़्त बीवी बच्चे सब मुझे सबसे बड़े दुश्मन लग रहे थे और संजना
सबसे बड़ी हितैषी। तब की अपनी सबसे बड़ी हितैषी से मैंने तुरंत मिलने के लिए कहा। पहले
वह तैयार न हुई। बहुत जोर देने पर दो घंटे बाद आई थी। उसे देखकर मैं खुशी से एकदम फूल
गया था। मुझे अपनी सारी खुशियां उसी में दिख रही थीं। इत्तेफ़ाक से वह भी अपने घर वालों
से झगड़ा करके आई थी। अपनी मां और अपने इकलौते भाई से। उसकी चार बहनें थीं उनसे भी उसकी
पटती नहीं थी। दरअसल वह अपने मायके में ही रहती थी। अपने पति से अलग रहते उसे तीन साल
हो गए थे। जब छोड़कर आई थी तो अपने छः वर्षीय बेटे को भी साथ ले आई थी। उसके ससुरालियों
का कहना था कि वह बेहद झगड़ालू है, किसी के साथ उसकी नहीं निभ सकती। पति ने
जब अलग रहने की उसकी बात नहीं मानी थी तब उसने उन्हें भी छोड़ने का फैसला एक झटके में
ले लिया था।
पति की मर्जी के
खिलाफ उसने नौकरी भी शुरू की थी। यह भी दोनों के बीच झगड़े का एक और कारण था। पति कहता
था जितना कमाता हूं वह काफी है। लेकिन वह कहती तुम्हारा बिजनेस बाकी भाइयों की तरह
अच्छा नहीं चल रहा। इसलिए मैं भी कमाऊंगी। जिठानियों, देवरानियों के पैसों को लेकर जो कमेंट होते हैं मैं एक सेकेंड को सहन नहीं करूंगी।
मैं किसी से कम नहीं रह सकती। तुम अपना हिस्सा लेकर अलग क्यों नहीं रहते। पति जब नहीं
माना तो छोड़ आई घर, रहने लगी थी मायके में।
यह संयोग ही था
कि उसकी एक और बहन भी मायके में ही रहती थी। उसके आदमी ने उसे शादी के कुछ ही महीनों
बाद छोड़ दिया था। कि वह पत्नी धर्म निभा ही नहीं सकती। धोखे से शादी कर उसकी ज़िंदगी
बर्बाद कर दी। पर अब और नहीं। संजना की अपनी ऐसी संन्यासिनी बहन से भी नहीं पटती थी।
सन्यासिनी इसलिए कि पति से संबंध-विच्छेद के बाद उसका अधिकांश समय पूजा पाठ में ही
बीतता था। चार-छः महीने में ही कभी बोल-चाल हो पाती थी। घर वाले भी उसकी सारी ज़्यादती
इसलिए सहते कि फिलहाल दो साल से पूरे घर का खर्च वही चला रही थी। क्योंकि भाई का बिज़नेस
ठप्प पड़ गया था, और फादर को रिटायर हुए कई साल हो गए थे। बीमार अलग। वह घर की इस स्थिति का पूरा
फ़ायदा उठाती थी। जो चाहती थी करती थी।
ऐसी संजना जो अपनों
की, अपने पति की नहीं थी,
अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकती थी। मैं उसी का दिवाना बना
हुआ था। दिवानगी ऐसी थी कि उसके लिए मैं भी अपनों, अपनी पत्नी, बच्चों को दरकिनार कर बैठा था। उस दिन बहनोई ने सब समझाया तो अंदर ही अंदर तिलमिला
उठा था। और रोम-रोम, संजना-संजना चिल्ला उठा था। उससे मिलने के लिए बेवकूफों की तरह उसका देर तक इंतजार
किया था। जब आई तो घर भर की शिकायत कर डाली थी उससे। और उसने भी बताया कि वह भी झगड़
कर आई है। और जीभर कर अंडबंड अपने घर वालों को कहा। भाई को भी राखी बांधने के आधे घंटे
बाद ही खूब खरी-खोटी सुनाई और हिदायत भी दी कि वह छोटा है छोटे की ही तरह रहे। उससे
कोई पूछताछ न किया करे। उसने यह धमकी उसके माध्यम से वास्तव में पूरे घर को दी थी।
अपने घर वालों पर जीभर भड़ास-निकालने के साथ ही उसने होटल में जीभर कर पकौड़ी और दही
बड़े खाए थे।
उसका हाथ फेंक-फेंक
कर, आंखें नचा-नचाकर बातें करना उस समय मुझे बहुत भाया था। वह बला की खूबसूरत लग रही
थी। उसकी बातों से साफ था कि झगड़कर आने के कारण उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं है।
तभी मेरे दिमाग
में पत्नी से पिछली रात को हुई बहस याद आ गई जिसकी तरफ से घर पहुंचने पर ही ध्यान हटा
था। उस रात खाने के वक़्त वह उदास सी लग रही थी। मैंने तब कोई ध्यान नहीं दिया था।
ड्रॉइंगरूम में टी.वी. पर देर तक मैच देखकर जब बेडरूम पहुंचा तो देखा लाइट ऑफ थी। नाइट
लैंप भी ऑफ था। लाइट ऑन की तो देखा वह बेड पर एक तरफ करवट किए लेटी है। पीठ मेरी तरफ
थी इसलिए यह नहीं जान पाया कि सो रही है कि जाग रही है। आज फिर उसने कई दिन पहले की
तरह स्लीपिंग गाऊन की जगह साड़ी ही पहन रखी थी। यानी कपड़े चेंज नहीं किए थे। साड़ी भी
अस्त-व्यस्त सी थी कुछ-कुछ अध-खुली सी। कुछ क्षण देखने के बाद मैंने लाइट ऑफ की और
नाइट लैंप ऑन कर उसकी बगल में लेट गया। सो
रही हो पूछने पर जब कोई उत्तर नहीं मिला तो उसे पकड़कर चेहरा उसका अपनी तरफ करना चाहा
तो उसने शरीर एकदम कड़ा कर लिया। मैंने और ताक़त लगाई तो उसने और कड़ा कर लिया। तो मैंने
पूछा,
‘क्यों आज क्या तमाशा है ?’
‘कुछ नहीं, तबीयत ठीक नहीं है।’
‘क्या हुआ ? ऐसे लेटने से सही हो जाएगी क्या ?’
इस पर उसने कोई
जवाब नहीं दिया और लेटी रही निश्चल तो उसे पकड़ कर मैंने फिर से अपनी तरफ करने का प्रयास
करते हुए कहा,
‘मेरे पास आओ तबीयत ठीक हो जाएगी।’
मगर उसने पहले की
तरह शरीर को कड़ा किए रखा। मेरी इच्छा जितनी प्रबल होती जा रही थी नीला का प्रतिरोध
भी उतना ही प्रगाढ होता जा रहा था। लेकिन मेरी इच्छा हावी हो ही गई। नीला का प्रतिरोध
हार गया। उसने अंततः समर्पण कर दिया। मैंने जब अपनी मनमानी कर ली तब मेरा ध्यान उसकी
सिसकी और उस कम रोशनी में आंसू से भरी उसकी आंखों की तरफ गया। मैं अंदर ही अंदर और
गुस्से से भर रहा था कि तभी उसने भर्रायी आवाज़ में कहा,
‘बस दिखा ली ताकत, और कुछ नहीं करना है। जो बाकी रह गया हो वह भी कर लो, मैं कुछ भी नहीं कहने वाली।’
उसके इस ताने को
जज्ब करने की कोशिश करते हुए मैंने कहा,
‘मेरा दिमाग मत खराब करो समझी। आजकल कुछ ज़्यादा ही सिर पर सवार हो रही हो।’
‘दिमाग किसका खराब है यह अच्छी तरह जानते हो। और मेरी हैसियत ही तुमने इस घर में
क्या बना रखी है जो मैं सिर पर सवार होऊंगी। मेरी हालत एक गुलाम से बदतर है, दिन भर सारी ज़िम्मेदारियों को पूरा करो उसके बाद तुम जैसा चाहो वैसे यूज करो। बस
यही हैसियत है मेरी।’
‘मैं यूज करता हूं तुम्हें ?’
‘और क्या करते हो ? अभी जो किया वह यूज करना नहीं तो और क्या है।’
‘तो क्यों ड्रॉमा कर रही थी ?’
‘मैं कोई ड्रामा नहीें कर रही थी। अगर संजना से संबंध नहीं तोड़ सकते तो मुझे छोड़
दो। क्योंकि मैं किसी भी सूरत में अब यह नहीं बर्दाश्त कर पाऊंगी कि तुम जब मेरे पास
आओ तो तुम्हारे तन-मन से,
कपड़ों से उस बदजात औरत की गंदी बदबू भी साथ आए।’
‘जुबान संभाल कर बात करो तो ज़्यादा अच्छा है समझी।’
‘मेरी जुबान संभालने के बजाय आप अपने को संभालिए। क्यों अपने बसे बसाए घर को अपने
ही हाथों आग के हवाले कर रहे हो।’
‘आग के हवाले मैं नहीं तुम कर रही हो। पिछले आठ-नौ महीनों से तुमने जीना हराम कर
रखा है। जब तक घर में रहो तब तक ताने मारती हो। तुम्हारे हर काम में ताना, व्यंग्य, नफ़रत नज़र आती है। यहां तक कि बच्चों को बिना उनकी गलती के मेरे सामने पीटती हो।
वास्तव में उस समय तुम बच्चों को नहीं एक तरह से मुझे पीट रही होती हो। घर को आग के
हवाले तो तुम कर रही हो।’
‘मैं ऐसा कुछ नहीं कर रही हूं, यदि यह हो रहा है तो इसका कारण भी अच्छी
तरह जान समझ रहे हो। और जब कारण जानते हो तो उसे दूर क्यों नहीं करते। क्यों चिपकाए
हुए संजना को अपने साथ। जबकि वो जब चाहती है तब आती है तुम्हारे पास, तभी मिलती है तुमसे। उसके चक्कर में इतना तमाशा हो गया। नौकरी जाते-जाते बची आखिर
क्या मज़बूरी है आपकी, क्या ज़रूरत है उसको साथ चिपकाने की। लोग तरह-तरह की बातें करते हैं तुम्हें ज़रा
भी शर्म संकोच नहीं आती।’
नीला की बातों से
मेरा क्रोध और बढ़ गाया। मैं करीब-करीब चीखते हुए बोला।
‘संजना-संजना-संजना दिमाग खराब कर रखा है, किसी से बात करना भी मुश्किल कर दिया
है।’
मेरी इस बात पर
नीला भी और उत्तेजित होकर बोली थी।
‘बात करने के लिए कौन मना करता है। बात तो और भी तमाम औरतों से करते हो। और किसी
के साथ तो यह समस्या नहीं है। क्यों कि और किसी के साथ तो कोई समस्या है ही नहीं। समस्या
सिर्फ़ इसी के साथ है इसलिए लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। यह बातें छिपती नहीं हैं।
ऑफ़िस से लेकर यहां कॉलोनी तक में आप और संजना चर्चा का विषय बने हुए हैं। पता सब आपको
भी है। घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। बच्चे बड़े हो रहे हैं, क्या असर पड़ेगा उन पर।’
‘लोगों की बातों, अफवाहों पर तुम्हें बड़ा यकीन हो गया है। और मैं जो कहता हूं उस पर यकीन नहीं है।’
‘मैं किसी की बात पर या अफवाहों पर ध्यान देकर नहीं बोलती। आठ-नौ महीनों से खुद
जो देख सुन रही हूं उससे आंखें नहीं मूंद सकती। रात बारह-एक बजे तक उससे बतियातें रहते
हैं। उसको लेकर न जाने कहां-कहां घूमते रहते हैं। उससे कैसी-कैसी क्या-क्या बातें करते
हैं यह सब मुझसे छिपा नहीं है।’
‘झूठ है सब। ऐसे बोल रही हो जैसे हमेशा मेरे पीछे-पीछे चलती हो और मैं या संजना
खुद आकर तुमको सारी बातें बताते हैं। अफवाहें तो तुम खुद उड़ा रही हो मनगढंत कहानी बना-बना
कर।’
‘मेरी एक-एक बात सच है मैं कोई मनगढंत कहानी नहीं बता रही समझे।’
नीला की इस बात
पर मैंने कड़ा प्रतिरोध करते हुए कहा था कि-
‘कुछ भी सच नहीं है सब बकवास है समझी।’
मेरे इतना कहने
पर नीला ने मेरा मोबाइल उठा लिया तो मुझे लगा कि शायद यह किसी को फ़ोन करने जा रही है।
शायद संजना को ही। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता उसने मोबाइल की ऑटो कॉल रिकॉर्ड का
फोल्डर ओपन कर रिकॉर्ड बातों में से किसी एक फोल्डर को ऑन कर दिया। जिसमें मेरी और
संजना की अश्लील बातें सुनाई देने लगीं। यह पूरा हो इससे पहले उसने दूसरा ऑन कर दिया
जिसमें वह मुझसे फ़ोन पर ही ओरल सेक्स करने का मजा देने को बोल रही थी। और मैं बोल रहा
था।
‘यार ये थ्रू सेटेलाइट सेक्स में मजा नहीं।’ तो वह बोली,
‘क्यों ?’ मैंने कहा,
‘तुमसे थ्रू सेटेलाइट सेक्स करते-करते मैं एक्साइटेड हो जाऊंगा और फिर बीवी पर टूट
पडूंगा। और आजकल उसका मूड खराब रहता है इसलिए उसके नखरे उठाने पड़ेंगे।’
यह बात पूरी हो
इसके पहले नीला ने अगले फोल्डर को ऑन कर दिया। जिसमें वह अपने अंगो के बारे में बता
रही थी। और मैं अपने। यह बात हमारे उसके बीच सेक्स रिलेशनशिप बनने से पहले की थीं।
जिसमें वह अपने सौंदर्य को बनाए रखने के लिए की जाने वाली कोशिशों और अल्ट्रा इनर पहनने
के बारे में बोल रही थी। और मैं उसे और सेक्सी बनने के नुस्खे बताए जा रहा था। नीला
जितने फोल्डर ओपन करती सबमें एक से बढ़कर एक अश्लील बातें सुनाई देतीं।
मैं एकदम हक्का-बक्का
था। मेरे मोबाइल ने मुझे मेरी बीवी के सामने एकदम नंगा कर दिया था। अपने को दबंग किस्म
का मानने वाला मैं उस समय बीवी के सामने सहमा सा महसूस कर रहा था। बड़ा आश्चर्य तो मुझे
इस बात का था कि मेरी बातें मेरे मोबाइल में रिकॉर्ड हैं और यह मुझे पता ही नहीं। मेरी
बीवी सब जानती है। मुझे यह भी पता नहीं था कि मेरे मोबाइल में बातचीत रिकॉर्ड हो जाती
है। जब कि पिछले छः महीने से यह मोबाइल मेरे पास था।
संयोग यह कि इसे
मैंने एक बार संजना के यह कहने पर ही खरीदा था कि यार कब तक पुराने मोबाइल पर लगे रहोगे।
इससे आवाज़ साफ नहीं आती। नया लो न। आज उसी मोबाइल ने हमारी पोल खोल दी थी। मुझे हक्का-बक्का
देखकर बीवी कुछ क्षण मुझे देखती रही फिर मोबाइल मेरी तरफ धीरे से उछाल दिया। उसकी आंखें
भरी थीं। वह बेड से उतर कर अलमारी से अपना नाइट गाउन निकालने को चल दी। मेरी एक नजर
उसके बदन पर गई मगर मेरा मन शून्य हो गया था। भावनाहीन हो गया था। गाऊन पहनकर उसने
बेड पर से साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट उठाकर एक तरफ रख दिया। फिर भरे गले से बोली,
‘मुझे नहीं लगता कि मैंने पत्नी धर्म निभाने में कभी कोई गलती की है कि तुम्हें
किसी और की तरफ देखने की ज़रूरत हो। फिर ऐसा क्यों कर रहे हो ? अरे! इतनी सी बात आपकी समझ में नहीं आ रही कि जो औरत अपने पति की नहीं हुई, तुम्हीं बता चुके हो कि उसका पति महीनों से बीमार पड़ा है लेकिन वह देखने को कौन
कहे उससे बात तक नहीं करती,
जो अपने भाई-बहन, मां-बाप की न हुई आप की क्या होगी।
अरे! इतना भी आपकी समझ में नहीं आ रहा जो पति के रहते गैर मर्द से अपने अंग-अंग का
बखान करे, फ़ोन पर सेक्स करने का मजा ले। खुद कहे कल वहां चलो मजा करते हैं, यह कहे कि एक बच्चा मैं तुमसे चाहती हूं। एक बच्चा जो है उसको तो पाल नहीं पा रही
उसे लावारिस सा डे बोर्डिग में छोड़ रखा है। और एक बच्चा तुमसे और चाहती है। अरे! यह
सब उसकी कुटिल साजिश है। तुम को फंसाकर तुम्हारी सारी संपत्ति हड़प लेगी। ठीक वैसे ही
जैसे सुख शांति घर का खुशहाल माहौल छीन लिया है। इस समय इतने तनाव में हो तुम, हम यह पूरा माहौल सिर्फ़ एक उसकी वजह से जिससे तुम्हें क्षणिक छद्म सुख के सिवा
सिर्फ़ बर्बादी ही मिलती है।’
बीवी की बातें मुझे
उस वक़्त काटने को दौड़ती लग रही थीें। तब मेरे दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि बातें
रिकॉर्ड कैसे हुईं मैंने पूछ लिया तो उसने जो बताया उससे मेरा मन और ज़्यादा खिन्न
हो गया। उसने नफरत भरे शब्दों में कहा कि,
‘एक दिन बेटे के हाथ में मोबाइल लग गया और उसने रिकॉर्डिंग ऑन कर ली। जब बातें मेरे
कानों में पड़ीं तो मोबाइल लेकर मैंने चेक किया। तब पता चला कि इसमें तो ऑटो कॉल रिकॉर्डिंग
का भी सिस्टम है। उसे ऑन करने पर सब रिकॉर्ड हो जाएगा। उसके बाद मैं बराबर रिकॉर्डिंग
सुनती रही। सोचा कि एक दिन साफ-साफ बात करूंगी इस बारे में।’
इसके बाद नीला दूसरी
तरफ मुंह किए लेटी रही। कुछ देर उसकी सिसकियां भी सुनाई दीं। मैं उस वक़्त नीला को
अपने दुश्मन की तरह देख रहा था। मैं खुद पर इस बात के लिए भी खीझ रहा था कि मैं मोबाइल, कम्प्यूटर आदि के बारे में अच्छे से जानकारी क्यों नहीं रखता हूं।
आज जब जेल में हूं, तब नीला की सारी बातें इतनी अच्छी, इतनी तर्कपूर्ण लग रही हैं कि मन मसोस
कर रह जाता है कि काश उसकी बातें मान लेता।
आज भी नहीं भूल
पाया हूं संजना के साथ किया गया वह पहला लंच। जब वह लंच के वक़्त अपना लंच बॉक्स लेकर
निसंकोच मेरे पास आकर बोली थी,
‘नीरज जी मैं आज लंच आप के साथ करूंगी। आप को कोई ऐतराज तो नहीं है।’
उस दिन उसे नौकरी
ज्वाइन किए मुश्किल से हफ़्ता भर हुआ था। उसका इस तरह बोलना मुझे कुछ चौंका गया। क्योंकि
इतने दिनों में मेरी उससे हाय-हैलो के अलावा और कोई बात नहीं हुई थी। दूसरे वह सेक्शन
की महिलाओं के साथ मिक्सअप होने के बजाय मेरे पास आई थी। जबकि सेक्शन की सारी महिलाएं
एक गुट में आती थीं। साथ ही लंच करती थीं। पुरुषों का भी यही हाल था। कुछ-कुछ लोगों
के कई गुट थे। सभी लंच ऊपर कैंटीन में जाकर करते थे। लेकिन मैं कैंटीन न जाकर अपनी
टेबल पर ही करता था। संयोग से उस दिन लंच मैंने ही बनाया था। क्योंकि नीला कई दिन से
बुखार में तप रही थी।
लंच करते वक़्त
वह चपर-चपर बातें भी किए जा रही थी जो मुझे अच्छी नहीं लग रहीं थीं। अचानक मुझे लगा
कि वह साड़ी का आंचल खिसक जाने के बावजूद जानबूझ कर उस पर ध्यान नहीं दे रही है। जबकि
स्तनों का अच्छा-खासा हिस्सा दिख रहा है। मुझे यह भी लगा कि वह जानबूझ कर लंच को लंबा
खींच रही है। उसने अपने लंच के काफी हिस्से की अदला-बदला कर ली थी। मैं अजीब सी स्थिति
का अहसास करते हुए लंच जल्दी खत्म करने की कोशिश में था, क्योंकि उसके स्तन जिसकी गोलाइयों के बीच में उसकी सोने की पतली सी चेन गहराई तक
उतर गई थी मुझे असहज किए जा रहे थे। दूसरे बाकी लोग लंच करके वापस आने लगे थे और हम
दोनों पर अर्थपूर्ण नजरें डालते हुए आगे जा रहे थे। मुझे जल्दी लंच खत्म कर लेने पर
उसने कहा ‘आप बहुत स्पीड में लंच करते हैं।’ फिर जल्दी ही खत्म कर कहा,
‘भाभी जी खाना अच्छा बनाती हैं।’
मुझे लगा वह जली
हुई सब्जी और मोटे-मोटे बेडौल से पराठों पर व्यंग्य मार रही है तो अनायास मैंने सारी
बातेें बताते हुए कह दिया कि,
‘मैंने बनाया है।’
मेरा इतना कहना था कि उसने चौंकने का नाटक
करते हुए मेरी हथेली को तेजी से मुंह के पास खींचकर चूम लिया। मुझे लगा कि उसने जानबूझ
कर मेरे हाथ को ठुड्डी के नीचे रखकर इस ढंग से चूमा कि मेरा हाथ उसके स्तनों को छू
जाए। मैं अपनी सकपकाहट को छिपाने की कोशिश में लंच बॉक्स बंद करने लगा। और वह अपने
को बेखबर सा दिखाते हुए बोली,
‘वाकई आप बहुत अच्छा खाना बनाते हैं। भाभी जी को छुट्टियों में तो आपके हाथों के
बने टेस्टी खाने का मजा मिलता ही होगा। वह बड़ी लकी हैं। सॉरी नीरज जी मैंने एक्साइटेड
हो कर आपके हाथ को किस कर लिया उसमें जूठा लगा गया होगा। लाइए मैं साफ कर देती हूं।’
इसके पहले कि वह
मेरा हाथ पकड़ती मैंने उसे मना कर दिया और उठकर चल दिया बाथरुम की ओर। उसके बदन का स्पर्श
मुझे शाम को घर पहुंचने तक कुछ ज़्यादा ही परेशान करने लगा। मैंने रात में सोते वक़्त
नीला से सारी बातें शेयर की तो वह तमककर बोली थी।
‘ऐसी बेशर्म औरत से दूर ही रहिए। आप उसे डांट कर हटा भी सकते थे। पक्का वो अपना
कोई स्वार्थ सिद्ध करने के लिए तुम्हारे पीछे पड़ गई है।’
मुझे उस वक़्त नीला
की यह बात एक पत्नी का दूसरी औरत का अपने पति की तरफ देखना बर्दाश्त न कर पाने जैसी
ही लगी थी। तब यह अनुमान नहीं था कि नीला की यह बातें आगे चलकर अक्षरशः सच साबित होने
वाली हैं।
लंच वाली घटना के
अगले ही दिन से संजना से मुझे रोज एक नया अनुभव एक नया अहसास मिलने लगा था। दो-चार
दिन में वह बातचीत में इतना घुल-मिल गई थी कि लगता जैसे न जाने कितने बरसों से मेरे
साथ ही रह रही है। मेरा ध्यान जब इस तरफ जाता तो मैं हैरान हो जाता कि मैं तो इस बात
के लिए जाना जाता हूं कि मैं किसी से जल्दी मिक्सअप नहीं होता, वह भी औरतों से तो और भी नहीं। फिर इसने ऐसा क्या जादू कर दिया है कि लगता है कि
यह मेरे पास ही बैठी रही।
दो-तीन हफ्ते बीतते-बीतते
ही हम दोनों की दोस्ती लोगों के बीच काना-फूसी का सबब बन गई। लोग देखते ही व्यंग्य
भरी मुस्कुराहटें फेंकने लगे। मैं इस बात से जब कुछ अचकचाता तो संजना का सीधा जवाब
होता ‘क्या राजा जी तुम भी कमाल करते हो। ऐसी बातों की इतनी परवाह करते हो। मैं तो ऐसी
बातों को सुनने के लायक भी नहीं समझती कि इन्हें एक कान से सुनो फिर दूसरे कान से निकालने
की जहमत उठाओ। फिर आप क्यों इतना परेशान होते हैं। ये सब जब भौंकते-भौंकते थक जाएंगे
तो अपने आप चुप हो जाएंगे।’
उसकी इस बात से
मैं दंग रह गया। इस बीच मेरा काम बढ़ गया था। उसका भी काम मुझे करना पड़ रहा था। क्योंकि
वह इतने प्यार, मनुहार के साथ अपना काम करने को कहती कि मैं इंकार न कर पाता। काम सारा मैं करता
और वह अपने नाम से उसे आगे बढ़ाती। जल्दी ही लोगों के बीच यह भी चर्चा का विषय बन गया।
जब मैं अकेले होता तो रोज सोचता कि अब यह सब नहीं करूंगा। लेकिन उसके आते ही मैं सब
भूल जाता, सम्मोहित सा हो जाता और मन प्राण से उसका हो जाता।
डेढ़-दो महीने में
ही हम दोनों के संबंध अंतरंगता की सारी सीमा तोड़ने को मचल उठे। दीपावली की छुट्टी के
बाद जब वह ऑफ़िस आई तो बहुत ही तड़क-भड़क के साथ। सरसों के फूल सी पीली साड़ी जिस पर आसमानी
रंग के चौड़े बार्डर और बीच में सिल्वर कलर की बुंदियां थीं। अल्ट्राडीप नेक, बैक ब्लाउज के साथ उसने अल्ट्रा लो वेस्ट साड़ी पहन रखी थी। अन्य लोग जहां उसकी
इस अदा को फूहड़ता बता रहे थे वहीं वह मुझे न जाने क्यों सेक्स बम लग रही थी। मिलते
ही मैंने उससे कहा भी यही,
‘जानेमन इस ड्रेस में तो एटम बम लग रही हो। कहां गिरेगा
यह बम।’
इस पर उसने बेहद
उत्तेजक हावभाव बनाते हुए कहा
‘घबराते क्यों हो राजा जी तुम्हीं पर गिरेगा।’
फिर मैंने उसकी
क्लीविज और उसके खुले पेट पर तीखी नज़र डालते हुए भेदभरी आवाज़ में कहा,
‘थोड़ा और डीप नहीं जा सकती थी क्या ?’
मेरा यह कहना था
कि वह कामुकता भरी नजरों से देखते हुए अपने चेहरे को मेरे बहुत करीब लाकर बोली।
‘और डीप जाती राजा जी तो एल.ओ.सी. क्रॉस हो जाती और तुम सारे मर्द मधुमक्ख्यिों
की तरह चिपक जाते मुझसे।’
मुझे वह मिक्सअप
होने के डेढ दो हफ्ते बाद से ही बड़े मादक अंदाज में राजाजी बोलने लगी थी। उसकी बात
पर मैंने पूछा ‘जानेमन यह एल.ओ.सी. क्या है?’
‘हद हो गई लाइन ऑफ कंट्रोल नहीं जानते। साड़ी और डीप ले जाती तो एल.ओ.सी. का अतिक्रमण
हो जाता।’
मैंने कहा
‘जब एल.ओ.सी. का अतिक्रमण
हो यह नहीं चाहती तो इतना भी डीप जाने की क्या ज़रुरत थी। साड़ी और ऊपर से बांधती।’
‘मैंने ये कब कहा राजाजी की मैं एल.ओ.सी. का अतिक्रमण नहीं चाहती। मगर इसका अधिकार
सबको थोडे़ ही है।’
‘तो वह लकी पर्सन कौन है जिसको तुमने अपनी एल.ओ.सी. के अतिक्रमण का अधिकार दे रखा
है।’
‘कमाल है, तुम्हारे सिवा किसी और को यहां यह अधिकार दे सकती हूं क्या ?’
उसकी इस बात ने
मुझमें अजीब सी सनसनी पैदा कर दी। पलभर चुप रहकर मैंने कहा-
‘नहीं कमाल तो ये है कि मुझे तुम ने अपनी एल.ओ.सी. के अतिक्रमण का अधिकार दिया है।
वो भी अपने पति के रहते। और ये अधिकार दिया कब यह पहले कभी बताया ही नहीं।’
मेरी इस बात पर
वह अचानक ही एकदम उदास हो उठी। आंखें भर आईं। कुछ इस कदर कि आंसू बस बह ही चलेंगे।
उसकी अचानक बदली इस स्थिति को देखकर मैं सकपका गया कि अभी कुछ देर पहले तक कितना हंस
बोल रही थी। रोमांटिक हुई जा रही थी यह अचानक क्या हो गया है। मेरी बात से नाराज या
दुखी हो गई है क्या? मैं परेशान इसलिए भी हो उठा कि कहीं इसके आंसूओं को किसी ने देख लिया तो आफ़त हो
जाएगी। न जाने लोग क्या सोच बैठेंगे। दिमाग में यह बातें आते ही मैं एकदम घबरा उठा, डर गया मैं। तुरंत मैंने उससे माफी मांगते हुए कहा,
‘संजना जी सॉरी मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ कीजिएगा। आप को दुखी करने का मेरा
कोई इरादा नहीं था।’
मैं अपनी यह बात
पूरी भी न कर पाया था कि फिर और गड्मड् हो गया। उसने बिना किसी संकोच के अपने दोनों
हाथों से मेरा दाहिना हाथ पकड़ कर कहा,
‘नहीं नीरज, ऐसा क्यों सोचते हो, तुम्हारे जैसे इंसान किसी का दिल दुखाने के लिए नहीं दुख से तड़पते दिलों को सहारा
देने के लिए होते हैं। आंसू तो इसलिए आ गए कि तुम अचानक ही हसबैंड की बात छेड़ बैठे।
जो मुझे लगता है कि मेरी सबसे ज़्यादा दुखती रग है। जो जरा सी छू जाने पर दिल चीर देने
वाली टीस दे जाती है। और तुमने अंजाने ही इस सबसे दुखती रग को छू दिया।
तुम्हारा मेरी इस
बात से शॉक्ड होना सही था कि पति के रहते मैंने एक गैर मर्द को एल.ओ.सी. क्रॉस करने
का अधिकार कैसे दे दिया। लेकिन यदि मेरी बातें सुनोगे तो तुम्हें शॉक नहीं लगेगा। यह
सही है कि मैंने जो तुम्हें एल.ओ.सी. क्रॉस करने का अधिकार दिए जाने की बात कही वह
मजाक नहीं है। मैंने पूरे होशो-हवास में कई दिनों सोच-विचार के तुम्हें एल.ओ.सी. क्रॉस
करने का अधिकार दिया है। तुम्हें इस बात का पूरा अधिकार है कि तुम जितना चाहो उतना
मेरी साड़ी, ब्लाउज डीप ले जा सकते हो। उन्हें डीपेस्ट कर मुझमें जैसे चाहो वैसे समा सकते हो।’
अब तक संजना के
आंसू उसकी पलकों से बाहर नहीं आए थे। वह भरी हुई थीं। मगर उसके चेहरे पर अब अवसाद से
कहीं ज़्यादा दृढ़ता, कठोरता की लकीरें स्पष्ट होती जा रही थीं। और बातों का विस्तार बढ़ता जा रहा था।
मैंने क्योंकि कभी ऐसी स्थिति की कल्पना ही नहीं की थी सो परेशान हो रहा था। संजना
जैसी औरत जिससे मिले चंद रोज ही हुए हैं वह सीधे-सीधे शारीरिक संबंध के लिए खुद ही
कह देगी। वह भी ऑफ़िस में ही सारे अधिकार दे देने की बात करेगी कि जैसे चाहो वैसे उसके
तन को भोगो।
हालांकि यह सच है
कि जिस दिन उसने मेरे साथ पहली बार लंच किया था। और जानबूझ कर मेरे हाथ को अपने स्तनों
का स्पर्श करा दिया था तभी से मेरे मन के किसी कोने में उसके बदन के साथ एकाकार होने
की इच्छा अंकुआ चुकी थी। जिसे संजना की दिन पर दिन होने वाली तमाम हरकतें बराबर पुष्पित
पल्लवित करती जा रही थीं। लेकिन मैंने अपनी तरफ से ऐसी कोई कोशिश कभी नहीं की थी कि
वह अपना तन मेरे तन के साथ एकाकार करे। यह मन में ही रह जाने वाली बात जैसी थी। ठीक
वैसी ही जैसे न जाने कितनी बातें मन में उभर कर फिर वहीं दफन हो जाती हैं सदा के लिए।
जो कभी संभव नहीं बन पाती। जैसे छात्र जीवन में एक बार मैं पड़ोसी मुल्क की एक सिंगर
झुमा लैला की एक मैग्ज़ीन में बेहद बोल्ड तस्वीरें देखकर अर्सें तक एकाकार होता रहा
उसके तन के संग। मगर मन की यह फैंटेसी मन के सागर में कहीं गहरे ही डूब गई थी जल्दी
ही।
मगर उस दिन संजना
के साथ जब एकाकार होने का मन हुआ था तब मैं छात्र जीवन की तरह अकेला नहीं था। तब मेरे
साथ मेरी बीवी नीला थी। जो उस वक़्त मेरी ही बगल में लेटी सो रही थी। और उस दिन इस
इच्छा के चलते उसके साथ ऐसे एकाकार हुआ था मैंने जैसे मेरे रोेम-रोम से संजना-संजना
का स्वर फूट रहा हो। मेरे तन के नीचे पिस रहा था नीला का तन लेकिन मेरा तन संजना के
तन को भोगने का अहसास कर रहा था। नीला के मुंह से निकलने वाली मादक आहों में मुझे संजना
के स्वर सुनाई दे रहे थे। बड़ी ही जटिल स्थिति थी मेरी।
अपनी आदर्श पत्नी, मुझको टूटकर चाहने वाली पत्नी से मिलने
का कोई अहसास नहीं था। यहां तक की तन का संघर्ष समाप्त हो जाने के बाद नीला
सो गई मगर मैं संजना के तन की महक का अहसास कर रहा था। बराबर जाग रहा था। यह स्थिति
दिन पर दिन प्रगाढ़ होती जा रही थी। जल्दी ही हालत यह हो गई थी कि नीला में मुझे हर
कमी नज़र आने लगी थी।
मगर इन सब के बावजूद
मैंने कभी भी संजना के तन को पाने के लिए गंभीरता
से नहीं सोचा था। इसलिए जब अचानक ही उसने एल.ओ.सी. अतिक्रमण का अधिकार मुझे देने की
बात बेहिचक कही तो मैं हतप्रभ रह गया था। मैं व्याकुल हो उठा था इस बात के लिए कि वह
अपनी बातों को विस्तार न दे तुरंत बंद कर दे। लेकिन वह चुप तब हुई जब शाम को कहीं अलग
बैठकर बात करने का प्रोग्राम तय हो गया।
तय स्थान पर पहुंचने
के लिए हम दोनों छुट्टी होने से एक घंटे पहले ही अलग-अलग निकले। सड़क, होटल, मॉल हर जगह त्योहार की छुट्टी के बाद खुलने के कारण भीड़-भाड़ काफी कम थी। एक प्रसिद्ध
रेस्टोरेंट में हम दोनों बैठे कॉफी पी रहे थे। संजना के चेहरे को मैंने पढ़ने की कोशिश
की तो मुझे लगा कि वहां उदासी नहीं बल्कि खिन्नता और उससे भी कहीं ज़्यादा न जाने किस
बात की व्यग्रता दिख रही है। उसका मन जैसे वहां था ही नहीं, जैसे वह जल्दी से जल्दी वहां से निकल लेना चाहती हो। मैं विचारों के मकड़ जाल में
खुद को उलझा सा महसूस कर रहा था। हम दोनों के बीच बातें भी छुटपुट हो रही थीं। इस बीच
मैंने देखा कि जैसे वह मुझे पढ़ने की गरज से बराबर देख रही है। और मैं... मैं भी कभी
पीली साड़ी में बैठी संजना को देखता तो कभी कनखियों से आस-पास के दृश्यों पर भी नज़र
डाल लेता। कुल मिला कर बोरियत ज़्यादा बढ़ी तो मैंने उससे कहा,
‘तुम पति के बारे में कुछ खास बातें करना चाह रही थी।’
इस पर वह कुछ खोई-खोई
सी बोली,
‘हां... लेकिन कहीं ऐसी जगह चलो जहां हम दोनों के अलावा कोई और न हो। ऐसे में मैं
कोई बात कर ही नहीं पाऊंगी।’
उसने इस बात की
ऐसी जिद पकड़ ली कि हार कर मैंने विधायक निवास में रहने वाले अपने एक मित्र से बात की
जो अपने क्षेत्र के विधायक को मिले आवास में अकेले ही रहता था। और दिनभर नेतागिरी या
ये कहें कि दलाली के चक्कर में सत्ता के गलियारों में चक्कर काटता था। और उसके विधायक
जी मंत्री बनने का ख़्वाब पाले दिल्ली में पार्टी के बड़े नेताओं के यहां डेरा डाले रहते
थे। मैंने कुछ घंटे के एकांत के लिए उससे आवास देने को कहा तो वह तुरंत तैयार हो गया।
चाबी देते समय उसने कनखियों से संजना को देखा था फिर मेरे हाथ में चाबी थमाते हुए बोला
था मैं रात दस-ग्यारह बजे के बाद आऊंगा। एक प्रोग्राम में जाना है।
उसकी बात से मैं तुरंत समझ गया था कि वह
फेंक रहा है कि उसे प्रोगाम में जाना है। वह सिर्फ मुझे यह बताना चाह रहा था कि वह
ग्यारह बजे तक नहीं आएगा। तब तक मैं संजना के साथ वक़्त बिता सकता हूं। मेरे घर कई
बार आ चुका था जिससे वह मेरी पत्नी, बच्चों सभी को पहचानता था। संजना को
देख कर वह बाकी के हालात तुरंत ताड़ गया था। यह बात तब और पक्की हो गई थी जब उसने खाने-पीने
का काफी सामान अपने एक आदमी के हाथ पंद्रह-बीस मिनट मेें ही भिजवा दिया था। जिसमें
उस एरिया में फ़ेमस ड्राई बडे़ भी थे। यह सब खाने-पीने के दौरान ही हम दोनों की बातें
चल पड़ी थीं।
संजना पति को लेकर
ऐसी बातें कह रही थी कि मेरे कान खडे़ हुए जा रहे थे। उसकी शारीरिक भाव-भंगिमाओं और
बातों में कहीं कोई सामंजस्य नहीं दिख रहा था। शरीर कुछ कह रहा था और बातें कुछ और।
उसकी बातों का कुल लब्बो-लुआब यह था कि उसका पति बेहद पिछड़ी सोच का है। उसकी बात नहीं
मानता था जिससे बिज़नेस में वह घर में अन्य भाइयों से एकदम पिछड़ कर सबसे दयनीय स्थिति
में था और उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी। वह बहुत भाग्यवादी है।
काम काज का आधा
वक़्त पूजा-पाठ और मंदिरों के चक्कर में बिता देता है। वह पति और पिता का रोल ठीक से
नहीं निभा रहा था। वह जानते ही नहीं कि पति-पिता का रोल क्या होता है। सहस्त्राब्दियों
पहले की बातें करते हैं कि पत्नी केवल संतानोंत्पत्ति के लिए है। हद तो यह कि महीने
में पांच-छः दिन उनके व्रत में निकल जाते हैं। व्रत वाले दिन उसे छूते नहीं थे। कोशिश
करो तो दूसरे कमरे में चले जाते थे। उनके रहते टी.वी. पर मनचाहे सीरियल नहीं देख सकती।
कहने पर दुनिया भर का लेक्चर दे डालते थे। और तीन इंच लंबा तिलक अलग लगाते हैं। कहीं
घूमने-फिरने लेकर नहीं जाते थे। कपड़े ऐसे पहनों कि चेहरे और हाथ के अलावा कुछ नहीं
दिखना चाहिए। खाना-पीना साधुओं सा।
बाहर की चीजों फास्ट-फूड
की बात नहीं कर सकते। विरोध करो तो दुश्मनों की तरह झगड़ा करते हैं। यह सब हद से ज़्यादा
हो गया, ज़िंदगी नरक हो गई तो वह छोड़ आई उन्हें। क्योंकि अब वह अपनी ज़िंदगी व्यर्थ नहीं
काटेगी। अब किसी के लिए वह मुड़कर नहीं देखेगी। वह अब हर जगह से अपने लिए सुख का एक-एक
कतरा बटोर लेगी। जीभर कर अपना आक्रोश निकालने के बाद वह उठकर बाथरूम चली गई। जब लौटी
तो मुंह-हाथ धोकर।
अब उसके चेहरे पर
विषाद की जगह काफी हद तक ताज़गी नज़र आ रही थी। उसने कमरे में बेड पर रखे अपने बैग में
से अपनी हैंकी निकाल कर चेहरा पोछने के बाद वापस रखा और बेड पर लेट गई। उसके पहले उसने
सीलिंग फैन को स्लो स्पीड पर चला दिया था। हालांकि मौसम में अच्छी खासी खुमारी थी।
लगता था कि ठंडक दस्तक देने के लिए कहीं नजदीक आ चुकी है। मगर फिर भी फैन चला दिया, आंचल बेड पर फैला था। और उसके दोनों हाथ भी। उसकी छाती ऊपर-नीचे उठ कर गिर रही
थी। मैं अब भी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठा था। कुछ ही क्षण शांत रहने के बाद उसने
पूछा,
‘नीरज तुम व्रत रखते हो ?’
‘हां’
‘महीने में कितने दिन ?’
उसकी अब तक की बातोें
से मेरा मूड पहले ही खिन्न हो चुका था लेकिन फिर भी मैंने कहा,
‘मैं केवल मंगल का व्रत रखता हूं।’
‘मतलब महीने में चार व्रत तुम भी रखते हो ?’
‘हाँ’
‘और तुम्हारी पत्नी ?’
‘वह प्रदोष वगैरह जैसे व्रत रखती है। महीने में दो-तीन व्रत तो उसके भी हो जाते
हैं। लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रही हो ?’
‘कुछ समझना चाहती हूं। ये बताओ जिस दिन तुम्हारा व्रत होता है उस दिन यदि तुम्हारी
पत्नी तुम से सेक्स की डिमांड करती है तो क्या तुम व्रत की वजह से उसे मना कर देते
हो ?’
‘ये कैसी बातें कर रही हो। क्या जानना चाह रही हो तुम मैं समझ नहीं पा रहा हूं।’
‘मैं जानना नहीं, तुम्हेें बताना चाह रही हूं। तुम्हें वह बातें बताना चाह रही हूं जिन्होंने मेरा
सुख-चैन सब बरबाद ही नहीं कर दिया है बल्कि मेरे हिस्से का सुख-चैन कभी मुझ तक पहुंचने
ही नहीं दिया। जब शादी हुई तो ससुराल में धन-दौलत सारी सुख-सुविधाएं थीं। वह सब देखकर
मैं फूली नहीं समाई थी। लेकिन पति ने पहली ही रात जीवन की शुरुआत ही खराब की। यह जानकर
तुम्हें यकीन नहीं होगा कि सुहागरात को मेरा पति मेरे साथ इसलिए संबंध बनाने से मना
करता है कि वह बरसों से बृहस्पति का व्रत रखता आया है। और क्योंकि रात आधी से ज़्यादा
बीत चुकी थी यानि कि बृहस्पति आ चुका है इसलिए वह व्रत में शारीरिक संबंध नहीं बनाएगा।
इससे उसका व्रत भंग हो जाएगा।
यह सुनकर मैं दंग
रह गई। मुझे लगा कि जैसे मैं किसी संन्यासी के साथ बंध गई हूं। शादी से पहले सहेलियों
से इस पहली रात के बारे में न जाने कितनी बातें की थीं। नई-नई शादी-सुदा सहेलियों और
अन्य के साथ जो हसीन बातें हुईं थीं उससे मैंने भी एक से एक रंगीन सपने बुन रखे थे।
उन सपनों को और रंगीन बनाने के लिए अपनी अनुभवी सहेलियों से जो कुछ जाना था उन सब के
सहारे मैंने अपने को हर तरह से खूब तैयार किया था। मगर यह नहीं जानती थी कि मैं तो
एक संन्यासी से ब्याह दी गई हूं। जो ऋषि-मुनियों से भी बड़ा हठी-व्रती है। औरत की जिस
कमनीय काया के काम बाण से ऋषि-मुनि, देवता भी पल मंे सारे व्रत भूल स्खलित
हो जाते हैं, उस अजेय कामबाण के सारे वार मेरे पति को छू भी न पाएंगे।
मेरे सारे जतन धरे
के धरे रह जाएंगे। मेरी कमनीय काया के सामने पति ऐसे निर्विकार बना रहेगा कि ऋषि-मुनि
भी पानी मांगेंगे। यह सपने में भी नहीं सोचा था। ऐसा नहीं कि यह तान के सो गए, सारी रात बात करते रहे,
मगर सारी बातें ऐसी जैसे कि हमारी शादी के पंद्रह-बीस साल हो
गए हों। मैं अंदर ही अंदर कुढ़ती रही, सुनती रही उनकी बकवास। हालत यह थी कि
चाह कर भी न तो मैं सो पा रही थी। और न ही जो हसीन सपने बुने थे उन्हें हक़ीक़त में तब्दील
कर पा रही थी।’
‘बड़ी अजीब दास्तान सुनाई तुमने, यकीन ही नहीं कर पा रहा हूं कि कोई
आदमी ऐसा भी होगा। पहली रात केवल उबाऊ बातों में बिताएगा इससे बड़ी बात तो यह कि तुम
यह सब सुनती भी रही।’
‘यार तुम भी हद करते हो। मैं क्या कर सकती थी।’
‘क्यों नहीं कर सकती थी। आखिर पत्नी थी। बोल सकती थी कि आज पहली रात है। तो बातें
पहली रात वाली हों न कि पंद्रह साल बाद वाली। और फिर पंद्रह साल बाद भी पति-पत्नी की
बातें ऐसी तो नहीं होतीं।’
‘अच्छा तो मैं उनसे कहती कि आओ रोमांटिक बातें करो, मुझे प्यार करो।’
‘किसी को तो आगे आना ही होता हैै।’
‘अच्छा तो मुझे ये बताओगे कि अगर पहली रात तुम यही सब करते और तुम्हारी बीवी रोमांस
के लिए, सेक्स के लिए पहल करती तो उस समय तुम क्या करते। अपनी पत्नी को किस रूप में लेते।
सच बताना ज़रा भी झूठ नहीं बोलना।’
‘संजना जिन हालात से गुजरा नहीं, जिस बारे में कुछ जानता नहीं उसके बारे
मेें क्या कहूं।’
‘क्यों सोचो और अपने को उस हालात में ले जाकर सोचो फिर जवाब दो। मैं यह अच्छी तरह
जानती हूं कि तुम जवाब दे सकते हो, यदि तुम देना चाहोगे।’
‘तुम्हारी इस जिद पर सिर्फ़ इतना कह सकता हूं कि मैं आश्चर्य में पड़ जाता। शायद
इस आश्चर्य में पड़ जाने के बाद मैं सेक्स कर ही न पाता। फिर उसे परे धकेलकर किसी और
कमरे में चला जाता।’
‘और फिर अगले दिन क्या करते ?’
‘अगले दिन ?’
‘हां अगले दिन तुम क्या करते। बीवी को रखते या उसे करेक्टरलेस या फिर न जाने क्या-क्या
समझ कर वापस कर देते।’
‘ओफ्फ यार मुझे इन बातों में मत उलझाओ। मैं तुम्हारे आदमी की ऐसी विचारधारा को सुनकर
सिर्फ़ हैरत में हूं। कोई आदमी पहली ही रात में ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है। ऐसी हरकतें
तो आदमी उसी हालत में करता है जबकि वह सेक्सुअली कमजोर हो। नहीं तो अमूमन औरतों की
शिकायत यह होती है कि पहली रात को उसका पति इतना दिवाना था कि बातचीत तो बाद में आते
ही टूट पड़ा। या और मन की करके तान कर सो गया। बात तो की ही नहीं। तुम्हारे आदमी के
साथ क्या ऐसी कोई प्रॉब्लम है।’
‘नहीं, भगवान ने शारीरिक दृष्टि से तो उन्हें एक जबरदस्त मर्द बनाकर भेजा है। जो किसी
भी औरत के लिए पसंदीदा मर्द हो सकता है। लेकिन विचारों की दृष्टि से वह एक विरक्त इंसान
हैं। ऐसे में उनके जबरदस्त मर्द होने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। ऐसे विरक्त मर्द
से तो एक कमजोर मर्द ही सही है। कुछ तो करेगा। न पूरी सही कुछ तो भूख शांत करेगा।’
‘समझ में नहीं आता कि तुम्हारा पति कैसा है। और साथ ही तुम भी। तुम कहीं से भी कम
खूबसूरत नहीं हो। न ही किसी बात से अनजान इसलिए आश्चर्य तो यह भी है कि तुम अपने पति
की विरक्ति दूर नहीं कर सकी। बल्कि खुद ही उससे दूर हो गई।’
‘नीरज तुमने बड़ी आसानी से मुझ पर तोहमत लगा दी। मुझे फैल्योर कह दिया। मैं मानती
हूं कि मैं फेल नहीं हूं। मेरे पति के विचारों को बदलना उन्हें स्वाभाविक नजरिया रखने
के लिए तैयार कर पाना मैं क्या किसी भी औरत के लिए संभव नहीं है। तुम यकीन नहीं कर
पाओगे कि शादी के तीसरे दिन हमारे संबंध बने और उन्हें मैंने कहीं पंद्रहवें दिन जाकर
बिना कपड़ों के देखा। नहीं तो सेक्स के समय भी बनियान उतारते ही नहीं थे। मेरे कपड़े
भी बस ऊपर नीचे कर देते थे। और उन्होंने भी उसी दिन मुझे पूरी तरह से बिना कपड़ों के
देखा। और यह भी तब हुआ जब मैंने पंद्रहवें दिन जानबूझकर एक नाटक किया। सोचा कि हम शादी
के पंद्रहवें दिन तीसरी बार संबंध बना रहें हैं। जबकि सहेलियों में से कईयों ने बताया
था कि उन्होंने पहली ही रात को इससे कहीं ज़्यादा बार संबंध बनाए थे।’
‘बड़ा विचित्र है तुम्हारा अनुभव। पति को देख सको इसके लिए तुम्हें नाटक करना पड़ा।
पहली बार सुन रहा हूं यह सब। मगर आश्चर्य यह भी है कि तुमने ऐसा कौन सा नाटक किया था
कि तुम्हारे पति जैसा व्यक्ति फंस गया उसमें।’
‘हुआ यह कि उस रात को मैंने जब देखा कि करीब आधे घंटे की फालतू बातों के साथ यह
कुछ ज़्यादा खुल गए हैं तो मेरे दिमाग में आया कि आज इन्हें इनके दब्बू उबाऊ खोल से
बाहर निकालकर मजेदार खुली दुनिया में ले आऊं। जब यह अपने ऊबाऊ तरीके के साथ आगे बढ़े
तो मैंने हल्की सी सिसकारी ली और अलग हटते हुए कहा,‘लगता है कपड़े में कुछ है, काट रहा है।’
फिर कपड़ों में इधर-उधर
कसमसाते हुए एक-एक कर सारे कपड़े उतार डाले। और कीड़ा ढंूढ़ने को कहती रही। आंहें भरती
रही कि बड़ा दर्द हो रहा है। कुछ देर यही सब बहाना करते हुए इनके भी उतार दिए। मगर हमारे
बैरागी मियां जी अपने खोल से बाहर आकर कुछ ही देर में घबरा उठे। कुछ ही देर में पति
कर्म पूरा किया और फिर लौट गए अपने खोल में। किसी शर्मीली औरत की तरह बंद कर लिया खुद
को कपड़ों में और मुझे भी बंद कर दिया। कुछ पल जो खुली सांस मिली थी कि वह समाप्त हो गई। फिर से घुटन भरी दुनिया
में पहुंच गई। अगले दिन उनसे यह भी सुनने को मिला कि मुझमें शर्मों-हया नाम की चीज
नहीं।
अब इसी बात से अंदाजा
लगाओ कि मेरी ज़िंदगी पति के साथ कैसी बीत रही थी। इतना ही नहीं जब प्रिग्नेंट हुई तो
घर में बात मालूम होते ही सास के हुक्म के चलते डिलीवरी के एक महीने बाद जाकर यह मेरे
कमरे में सोने आए। इस दौरान मैं तड़प कर रह गई कि पति के साथ अकेले में इन अद्भुत क्षणों
को जीयूं। मगर पूरी न हुई यह आस। कुछ बोल नहीं सकती थी क्योंकि पति उनकी सलाह को मानकर
खुद ही दूर भाग रहे थे। मैं कैसे घुट-घुटकर काट रही हूं अपनी ज़िन्दगी यह समझना आसान नहीं है नीरज।’
संजना धारा प्रवाह
एक से एक बातें बताए जा रही थी। जिनका कुल लब्बो-लुआब यह था कि पति की कट्टर दकियानूसी
विचार धारा, आचरण ने उसकी सारी खुशियों को जलाकर राख कर दिया है। जिससे ऊबकर वह खुले में सांस
लेने की गरज से उन्हें छोड़ मायके चली आई। लेकिन यहां परिस्थितियों के चलते पूरे घर
का ही बोझ उस पर आ पड़ा है। उस पर तुर्रा यह कि लोग उस पर हुकुम भी चलाना चाहते हैं।
भाई एक पैसा कमाकर
नहीं लाता है लेकिन चाहता है कि वह उसकी सारी बात माने। साफ-साफ यह बोला कि सारी सैलरी
उसे दो। वह चलाएगा घर। जब यह नहीं किया तो झगड़ा करने लगा। इन सारी चीजों से ऊबकर उसने
मायके में भी बगावत कर दी कि वह जो चाहेगी वह करेगी। इस खुन्नस से लोग उसके बच्चे को
पीटते हैं। इसका अहसास करते ही उसने उसे डे-बोर्डिंग में डाल दिया। और अब वह हर पल
को खुशी के पल में बदलना चाहती है। उसकी बातें काफी हद तक यह बता रही थीं कि वाकई उसके
साथ हर स्तर पर अन्याय हुआ है। उसकी लंबी बातों को खत्म करने की गरज से मैंने कहा,
‘आखिर इन सारी बातों के बीच मुझ से क्या चाहती हो? मैं क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए, भविष्य में क्या करोगी, क्या सोचा है इस बारे में ?’
‘खुशी के पल चाहती हूं,
मुझे पूरा यकीन है कि यह तुम्हीं दे सकते हो। रही बात भविष्य
की तो तुम अगर ऐसे ही सहयोग करोगे तो मेरा कंफर्मेशन आसानी से हो जाएगा। और आगे चल
कर प्रमोशन भी। और यह भी जानती हूं कि यह सब तुम्हारे हाथ में है। तुम चाहोगे तो कोई
रोक नहीं पाएगा।’
संजना की इन बातों
से मैं बड़े पशोपेश में पड़ गया था। मुझसे उसकी यह अपेक्षाएं छोटी नहीं बहुत बड़ी थीं।
मैं सोच में पड़ गया कि उसकी इतनी सारी अपेक्षाओं को पूरा करने में तो जो मुश्किल है
वह है ही। उससे बड़ी बात ये कि यह इतनी ज़्यादा डिमांडिंग है कि इसकी मांगें कभी खत्म
नहीं होंगी। कुछ देर पहले तक जहां मेरा मन उसके तन पर लगा हुआ था, मैं उसके साथ गहन अंतरंग पलों में खोना चाहता था बल्कि उतावला था, उसकी इन बातों ने उतावलेपन पर ठंडा पानी उड़ेलना शुरू कर दिया था। अब तक हम दोनों
खाने-पीने की अधिकांश चीजें चट कर चुके थे। इस बीच उसका मादक अंदाज में बार-बार पहलू
बदलना खुद पर मेरे नियंत्रण को कमजोर करता जा रहा था। मगर इन बातों ने मेरे मन को भ्रमित
कर दिया था। वक़्त बीतता जा रहा था तो मैंने कहा,
‘संजना ऑफ़िस में जो कुछ है मेरे हाथ में है उसके हिसाब से मैं तुम्हारी हर मदद करूंगा।
लेकिन खुशी के पल दे पाऊंगा इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। क्योंकि तुमने जो कुछ बताया
उस हिसाब से तुम पति-ससुराल से सारे संबंध खत्म कर चुकी हो। मायके में भी बस रह रही
हो। और जैसे खुशी के पल मुझसे पाने की बात तुम कर रही हो पता नहीं वह तुम्हें दे पाऊंगा
कि नहीं। मेरी पत्नी है, बच्चे हैं उन्हें छोड़ पाना मेरेे लिए मुमकिन नहीं है। और जैसी खुशी तुम चाहती हो
वह तो पति के साथ ही मिल सकती है। ऐसे में रास्ता यही बचता है कि या तो पति के पास
वापस जाओ और उन्हें समझा-बुझाकर अपने रास्ते पर ले आओ। अगर यह संभव नहीं है तो ऐसे
में बेहतर यही है कि डायवोर्स देकर दूसरी शादी कर लो।’
मेरी इस बात पर
वह बड़ी देर तक मुझे ऐसे देखती रही जैसे मैंने निहायत बेवकूफी भरी बात कह दी है। फिर
बोली-
‘यह दोनों ही संभव नहीं है नीरज। पति के पास वापस जाने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि
उन्हें बदलना असंभव है। कम से कम मेरे वश में तो कतई नहीं है। रही बात डायवोर्स और
दूसरी शादी की तो वह भी संभव नहीं है। एक तो वह डायवोर्स नहीं देंगे यह आखिरी बार झगड़े
के समय ही उन्होंने कह दिया था। इसलिए यह आसान नहीं। यदि मान भी लूं कि किसी तरह यह
हो गया तो दूसरी शादी के बारे में मैं अब सोचना भी नहीं चाहती। पहली शादी का अनुभव
ऐसा है। दूसरी शादी में मन की बात हो जाएगी इस बात की क्या गारंटी। वह मेेरे बच्चे
को स्वीकार करेगा यह मुझे नामुमकिन ही लगता है। यही सब सोच कर मैंने यह तय कर लिया
है कि न पति को डायवोर्स दूंगी न दूसरी शादी करूंगी। कुछ पल खुशी के तुम से मिल सकते
हैं यही सोचकर तुम्हारी तरफ बढ़ी। मुझे खुशी मिलेगी या नहीं यह सब अब तुम्हारे हाथ में
है।’
‘तुम्हें यकीन है कि इस तरह तुम्हें खुशी मिल जाएगी। जैसा चाहती हो वैसा मिल जाएगा।’
‘हां मुझे लगता है कि इन हालातों में जितना चाहती हूं उतना मिला जाएगा। मगर तुम
इतनी बहस क्यों कर रहे हो,
नीरज क्या तुम डर रहे हो?’
‘मैं कोई बहस नहीं कर रहा हूं, न ही इसमें डरने या न डरने जैसी कोई बात
है। मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि क्या तुम सोच समझकर यह क़दम बढ़ा रही हो। यदि
तुम्हारे मन का नहीं हुआ तब क्या करोगी।’
मेरी इस बात पर
संजना फिर लेट गई बेड पर उसके दोनों पैर नीचे लटक रहे थे। कपड़े पहले से ज़्यादा अस्त-व्यस्त
हो रहे थे। बदन पहले से अब कहीं और ज़्यादा उघाड़ हो रहा था। उसका कामुक लुक और ज़्यादा
कामुक हो रहा था। उसकी बॉडी लैंग्वेज और ज़्यादा प्रगाढ़ आमंत्रण दे रही थी। मैं उसके
सामने कुर्सी पर बैठा उसे निहार रहा था। उसने कुछ क्षण मेरी आंखों में देखा फिर बोली,
‘मैंने बहुत सोच समझ कर ही तुम्हारी तरफ यह क़दम बढ़ाया है। तुममें कुछ ख़ास देखा
तभी तो तुम्हें एल.ओ.सी. के अतिक्रण का अधिकार दिया। किसी और के पास तो नहीं गई। फिर
मैं तुमसे तुम्हारी पत्नी,
बच्चों के हिस्से का कुछ नहीं मांग रही हूं। इन सबके हिस्से
से अलग जो वक़्त है तुम्हारा मैं उसी में से थोड़ा समय चाहती हूँ यह भी नहीं कह रही
कि अपना सारा समय मुझे दे दो। भले ही यह समय बहुत थोड़ा होगा। लेकिन मैं उसी में ढूढ़
लूंगी अपनी खुशी। यदि तुम्हें कोई एतराज न हो।’
इतना कहकर जब वह
चुप हो गई तो मैं एक टक उसे देखता रहा। उसकी वासना से भरी आंखें पूरा बदन मुझे बरबस
ही खींचे ले रहे थे। जब मैं उसे कुछ देर ऐसे ही देखता रहा तो उसने दोनों हाथ बढ़ा दिए
मेरी ओर ऐसे जैसे कि बांहों में भर लेना चाहती हो। बिना कुछ बोले मुझे देखे जा रही
थी। अब मेरे दिमाग में तर्क-वितर्क, सोच-विचार एकदम स्थिर हो गए। मैं चेतना
शून्य होता गया। मेरा नियंत्रण संजना के हाथों में चला जा रहा था। मैं खिंचा हुआ सा
उठा और एकाकार हो गया उससे। और तब उसकी अफनाहट इतनी तीव्र थी कि मैं उस स्थिति में
भी दंग रह गया। एकाकार होने का यह क्रम फिर रात साढ़े दस बजे तक चला। इस बीच हम कई बार
एक दूसरे में समाए।
संजना की अफनाहट, चाहत, उसकी कोशिश ही इतनी जबरदस्त थी कि मैं चाहकर भी एक बार में ही ठहर नहीं सकता था।
संजना का वश चलता तो सारी रात रहती मेरे साथ। इस बीच उसके और मेरे घर से फ़ोन आने लगे
थे। हम दोनों ने घर वालों से झूठ बोला। मगर अब रुकना संभव नहीं था। क्योंकि जिस दोस्त
ने चाबी दी थी उसके आने का वक़्त हो रहा था। इसलिए हम दोनों ने जल्दी-जल्दी हाथ मुंह
धोए। कपड़े पहने, वहां की सारी चीजें व्यवस्थित कीं और चल दिए। मैंने संजना को उसके घर छोड़कर अपने
घर की राह ली थी।
मन में संजना की
अफनाहट को लेकर उधेड़बुन चल रही थी। कि उसकी यह अफनाहट इतनी तीव्र न होती यदि पति ने
उसे वह सब दिया होता जो एक पत्नी पति से चाहती है। यदि वह न पूरा सही कुछ ही उसके मन
की करता तो उसे छोड़ती नहीं। बेचारी ऊपर से कितनी हंसमुख सी दिखती है। देखने वाला कह
ही नहीं सकता कि उसे इतनी तक़लीफ है। इतनी सारी तक़लीफों के बाद भी चेहरे पर उदासी नहीं
आने देती। बहुत हिम्मती है। मुझे बड़ा तरस आने लगा था उसकी स्थिति पर। उसकी स्थिति का
आकलन करते-करते मैं जब घर पहुंचा तो करीब बारह बज चुके थे। बच्चे खा पी के सो चुके।
नीला पत्नी धर्म निभाते हुए अभी जाग रही थी। चेहरे पर परेशानी चिंता झलक रही थी। क्योंकि
मैं इतनी देर तक घर से बाहर नहीं रहता था। मैं उससे नज़रें मिलाकर बात करने में कुछ
असहजता महसूस कर रहा था। वह जो कुछ पूछती उसका जवाब दाएं बाएं देखते हुए देता। उसने
समझा मेरा मूड खराब है तो उसने कहा,
‘चेंज करिए मैं खाना लगाती हूं।’
मैंने खाने के लिए
मना कर दिया। क्योंकि वहां इतना खा लिया था कि कुछ और खाने का मन नहीं था। दूसरे पत्नी
के सामने अजीब सी झेंप महसूस कर रहा था। शादी के बाद यह पहला अवसर था जब मैंने पत्नी
के अलावा बाहर किसी अन्य औरत के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। शादी के पहले मेरे किसी
भी लड़की या औरत से संबंध इतने करीबी नहीं थे कि वह शारीरिक सीमा की हद तक पहुंचते।
इसलिए मेरी बड़ी अजीब हालत हो रही थी। मैं चेंज कर के लेट गया बेड पर लेकिन अपनी इस
मनोदशा के चलते नीला से यह कहना भूल गया कि वह खाना खा ले। नीला मुझे खिलाए बिना खाती
नहीं थी। मेरी आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं लेकिन न जाने क्यों सो नहीं पा रहा था।
नीला मुझे गंभीर परेशानी में समझकर कुछ अजीब सी सावधानी बरतती हुई सी लग रही थी। मैं
उसकी तरफ पीठ किए हुए लेटा था। कुछ देर बाद नीला ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखते
हुए कहा,
‘क्या बात है इतना सीरियस क्यों हो? तबियत तो ठीक है न?’
मैं नीला के भावनात्मक
लगाव से भरे इस प्रश्न से एकदम से कुछ हद तक सकते में आ गया। तुरंत कोई जवाब न बन पड़ा
बस हूं कर के रह गया। उसने फिर और ज़्यादा पूछताछ शुरू कर दी। उसकी पूछताछ में भावनात्मक
लगाव का पुट इतना ज़्यादा था कि मैं कई बार पूरी कोशिश के बाद भी उसे चुप नहीं करा
पाया बस ‘हां, कुछ नहीं, बस थकान महसूस कर रहा हूं।‘ कहकर चुप हो गया कि नीला भी चुपचाप सो जाए।
मैं गुनहगार होने
के भाव से ऐसा दबा जा रहा था कि नीला की तरफ मुंह करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा
था। हम दोनों के बीच यह कसमकस कुछ देर यूं ही चलती रही। नीला सब कुछ जानने के लिए कुछ
इस कदर पीछे पड़ी थी जैसे कोई दारोगा जिद पर आ गया हो कि अभियुक्त से सच उगलवा कर रहेगा।
इसके लिए वह हर हथकंडे अपनाता है। नीला कुछ वैसे ही दारोगा की तरह पीछे पड़ी थी। मुझे
लगा जैसे उसे शक हो गया है। वह मेरी चोरी पकड़ चुकी है। लेकिन मेरे मुंह से सुनना चाहती
है। कुछ देर बाद उसने एक पत्नी की तरह नहीं एक शातिर बेहद चालाक औरत वाला हथकंडा अपनाया।
अपने तन का बहुत ही शालीनता से प्रयोग करना शुरू किया। मुझे इस कदर प्यार करना शुरू
किया मानो मैं उससे बरसों बाद मिला हूं और फिर बरसों के लिए दूर चला जाऊंगा।
मैं अंदर ही अंदर
खीज से भरा जा रहा था लेकिन मन मस्तिष्क में अंदर न जाने ऐसा क्या चल रहा था कि नीला
का मैं विरोध नहीं कर पा रहा था। उसे मना करने की जैसे मुझ में ताकत ही न थी। अपराध
बोध ने उस वक़्त जितना पस्त कर दिया था नीला के सामने उसके पहले कभी न किया था। इसका
आधा भी नहीं। जबकि पहले भी कई काम उससे छिपाकर करता रहा था।
मैं नीला से प्यार
के मूड में उस वक्त दो वजहों से नहीं था। एक तो अपराधबोध के तले कुचला जा रहा था। दूसरे
संजना के साथ कई घंटों तक व्यस्त रहने के कारण बुरी तरह थका था। मैं गहरी नींद सोना
चाहता था। एक बात और कि आने के बाद नहाया नहीं था। इन सबके चलते मैं उस रात नीला से
हर हाल में दूर रहना चाहता था। जब नीला ने कोई रास्ता नहीं छोड़ा तो मैं अचानक ही फट
पड़ा। क्योंकि मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं बचा था। मैंने एक हाथ से उसे एक तरफ परे
धकेलते हुए चीख कर कहा,
‘सोने क्यों नहीं देती।’
मैं उस वक़्त यह
भी भूल गया कि बच्चे चीख सुनकर उठ सकते हैं। मेरी इस हरकत से नीला एकदम हतप्रभ हो कुछ
क्षण को जिस पोज में थी उसी में स्थिर हो गई। और मैं गहरी-गहरी सांसें लेते हुए नाइट
लैंप की बेहद कम नीली रोशनी में छत को देखने लगा। कुछ देर बाद नीला धीरे-धीरे यंत्रवत
सी बेड से नीचे उतरी, अपना गाऊन उठाया और कुछ सेकेंड मुझे देखती रही। उस कम रोशनी में भी मैंने अहसास
किया कि उसकी बड़ी-बड़ी आंखें भरी हुई थीं। और शरीर का सारा तनाव विलुप्त हो चुका था।
उसने वैसे ही खड़े-खड़े अपना गाऊन पहना। और हारे हुए जुआरी की तरह, थकी हारी सी कमरे से बाहर चली गई दूसरे कमरे में। मैं कुछ देर तरह-तरह की बातों
में उलझा सो गया।
सुबह करीब चार बजे
ही मेरी नींद खुल गई। मैं सपने में खोया हुआ था संजना के साथ। विधायक के उसी कमरे में।
कि तभी नीला न जाने कहां से आ गई थी और संजना को बालों से पकड़ कर खींचते हुए विधायक
निवास की गैलरी में खीचें जा रही थी। और लोग आंखें फाड़कर-फाड़कर देख रहे थे। मैं उसे
बचाने के लिए उठा था कि नींद खुल गई। रात का दृश्य मेरी नजरों के सामने आ गया। मैं
उठकर कमरे से अटैच बाथरूम में गया पेशाब कर, आ कर फिर बैठ गया।
तरह-तरह के विचारों
में फिर उलझने लगा तो नीला कहां सो रही है यह देखने की गरज से पहले बच्चों के कमरे
में गया। वहां नहीं मिली तो ड्रॉइंगरूम में गया। वहां वह सोफे पर सो रही थी। वह चादर
नीचे गिरी हुई थी जो उसने ओढ़ी थी। गाऊन की जो बेल्ट उसने बांधी थी वह करीब-करीब खुल
चुकी थी। गाऊन का एक तरफ का हिस्सा बेल्ट के पास तक का सोफे से नीचे लटका हुआ था। जिससे
कमर के पास तक का उसका बदन पूरी तरह खुल गया था। जिसे देखकर मेरा मन अचानक ही संजना
के बदन से उसकी तुलना कर बैठा कि कौन ज़्यादा सुंदर है। उस वक़्त संजना का बदन मुझे
नीला से कहीं बेहतर नजर आया था। दोनों की तुलना करता मैं करीब एक मिनट वैसे ही खड़ा
रह गया।
अचानक नीला कुछ
कसमसाई तो मेरा ध्यान भंग हुआ। फिर यह सोचकर मैंने उसका कपड़ा ठीक कर दिया कहीं बच्चे
उठकर आ गए तो नीला को इस हाल में देखना गलत होगा। मैं जाने के लिए जैसे ही मुड़ा कि
गाऊन का वह हिस्सा फिर पहले जैसी हालत मेें आ गया। सिल्क का होने की वजह से तुरंत फिसल
जा रहा था। अंततः मैंने उसे उठाने की कोशिश की कि चलकर सो जाए अंदर क्योंकि उसके उठने
का वक़्त छः बजे है। और अभी दो घंटा बाकी है। लेकिन उसने आंख खुलते ही जैसे ही मुझे देखा तो मेरा हाथ परे झटक दिया। मैंने कहा
इस हालत में बच्चे देख सकते हैं अंदर क्यों नहीं चलती। तो उसने गुस्सा दिखाते हुए गाऊन
की बेल्ट कसी, चादर उठायी उसे कस के लपेटकर फिर सोफे पर ही लेट गई। अमूमन ऐसा गुस्सा दिखाने पर
मैं भड़क उठता लेकिन उस दिन मैं कुछ सहमा सा एकदम चुप रहा। चला आया बेडरूम में और सिगरेट
पीने लगा। फिर लेट गया। बहुत थकान महसूस कर रहा था लेकिन फिर भी दुबारा सो न सका।
सुबह का माहौल बहुत
तनावपूर्ण रहा। सूजा चेहरा,
सूजी आंखें लिए नीला ने सारा काम किया। मुझ पर गुस्सा दिखाते
हुए बच्चों पर चीखती चिल्लाती रही। मैंने कुछ कोशिश की तो मुझसे भी लड़ गई। मैं बिना
चाय नाश्ता किए, लंच लिए बिना ही ऑफिस आ गया। एक तरफ मेरे चेहरे पर जहां तनाव गुस्से की लकीरें
हल्की, गाढ़ी हो रही थीं। वहीं संजना खिलखिलाती हुई मिली। चेहरा ऐसा ताज़गीभरा लग रहा था
मानो कोई बेहद भाग्यशाली नई नवेली दुल्हन पति के साथ ढेर सारा स्वर्गिक आनंद लूटने
के बाद पूरी रात सुख की गहरी नींद सोई हो। और सुबह तरोताजा होकर आई हो। मुझे देखते
ही चहकते हुए पूछा,
‘कैसे हो राजा जी ?’
मैंने उखड़े हुए
मन से कहा,
‘ठीक हूं।’
‘तो चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही हैं ?’
‘कुछ नहीं यार बस ऐसे ही तबियत कुछ ठीक नहीं है।’
‘तबियत ठीक नहीं है। या बीवी से झगड़ा कर के आए हो।’
‘छोड़ो यार काम करने दो बहुत काम पेंडिंग पड़ा हुआ है।’
‘ठीक है काम करो जब मूड ठीक हो जाए तो बताना। कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं।’
इतना कहकर संजना
जाने को मुड़ी तो मैंने रेस्ट लेने की गरज से सिर कुर्सी पर पीछे टिका दिया। आँखें बंद
करने ही जा रहा था कि वह बिजली की फुर्ती से पलटी और सीधे मेरे होठों पर किस कर बोली,
‘अब मूड सही हो जाएगा। ठीक से काम करोगे। लंच साथ करेंगे।’
इससे पहले कि मैं
कुछ बोलता उसने बड़ी अश्लीलतापूर्ण ढ़ंग से आंख मारी और चली गई। यह देख कर बड़ी राहत मिली
कि आस-पास कोई नहीं था। अचानक मुझे होठों का ध्यान आया कि कहीं उसकी लिपस्टिक तो नहीं
लग गई। बाथरूम में देखा तो शक सही निकला। उस वक़्त गुस्सा बहुत आया लेकिन उससे कुछ
कहने की हिम्मत न जुटा सका। आखिर मैं उसके कहने पर एल.ओ.सी. क्रॉस कर चुका था।
लंच का वक़्त आते-आते
भूख से आंतें कुलबुलाने लगी थीं। मैं रेस्टोरेंट जाने के इरादे से उठा ही था कि संजना
आ धमकी लंच बॉक्स लिए हुए। मैंने कहा,
‘मैं लेकर नहीं आया हूं कम पड़ जाएगा।’
लेकिन वह अड़ी रही
और साथ ही लंच करना पड़ा। उसका बनाया पराठा-सब्जी मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगे थे।
जबकि उसने कहा कि उसके लिए भी वह बडे़ प्यार से बना कर ले आई है। मैंने उसके खाने की
झूठी तारीफ कर दी कि अच्छा बना है। लंच के आधे घंटे तक उसने यही बताया कि देर से पहुंचने
के कारण सबने बड़ी हाय-तौबा मचाई लेकिन उसने किसी की परवाह नहीं की। और सबको चुप करा
दिया। बरसों बाद कल वह खूब चैन की नींद सोई थी। इसके लिए उसने मेरा धन्यवाद करते हुए
रिक्वेस्ट की यह वादा करने की कि मैं उसका साथ अब कभी न छोडूंगा। मुझसे वादा कराने
के बाद ही वह मानी। उसकी निश्चिंतता उसकी खुशी देखकर मेरे दिमाग में आया कि यह सच बोल
रही है कि यह बरसों बाद कल चैन की नींद सोई है। इसकी चैन भरी इस नींद की कीमत उधर नीला
ने चुकाई। रातभर तड़पी और सोफे पर पड़ी रही। और मैं भी तभी से तनाव में जी रहा हूं। मगर
मेरा यह सारा तर्क-वितर्क तब धरा का धरा रह जाता जब संजना शुरू हो जाती। जैसे ही वह
अपने प्यार की बयार चलाती मैं वैसे ही उड़ जाता।
यह सिलसिला जब एक
बार शुरू हुआ तो फिर वह चलता ही चला गया। हम दोनों के संबंध अब ऑफ़िस के अलावा बाकी
जगहों में भी चर्चा का विषय बन गए। हालत यह थी कि जो भी मुझे टोकता वही मेरा दुश्मन
बन जाता। मैं उससे संबंध विच्छेद कर लेता। नीला से संबंध तनाव की सीमा तक पहुंच गए
थे। कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जिस दिन तीखी नोंक-झोंक न होती। बच्चे भी मुझसे कटे-कटे
अपनी मां के ही साथ चिपके रहते।
बहुत बाद में मेरे
ध्यान में आया कि नीला की आंखें अब स्थाई रूप से सूजी रहने लगी हैं। आज मैं यह सोच
कर ही सिहर उठता हूं कि कैसे उसने वह अनगिनत रातें काटी होंगी, तड़पती हुई अकेले ही। क्योंकि मेरा रहना तो न रहने के ही बराबर था। उसके हिस्से
का हंसने बोलने का सारा समय सारी बातें तो संजना छीन लेती थी। उसके हिस्से का तन का
सुख भी वही छीन लेती थी।
मुझे अच्छी तरह
याद है कि मैंने उससे उस एक बरस में एक बार भी रात या दिन कभी भी संबंध नहीं बनाए।
क्योंकि संजना के तन का मैं इतना प्यासा था कि उसके सिवा मुझे कुछ दिखता ही नहीं था।
उसके साथ महीने में जितनी बार संबंध बनाता
था पत्नी नीला से तो कभी उतनी बार नहीं बनाया सिवाय शादी के कुछ महीनों बाद।
मेरा रोम-रोम आज
कांप उठता है यह सोचकर कि नीला ने कैसे इतने लंबे समय तक इतना तनाव झेला। कैसे वह फिर
भी पूरे घर को पहले ही की तरह चलाती रही। मेरी वजह से गुस्से, अपमानजनक बातों को सहती, सुनती रही। और अपने तन की भूख पर इतना नियंत्रण
कि कभी इस दौरान भूलकर भी तन की भूख के चलते नहीं आई। बल्कि गुस्सा, प्रतिरोध दर्ज कराने के लिए जान बूझकर ऐसे कपड़े इस ढंग से पहनती कि जैसे कोई पर्दानशीं
बहू अपने ससुर के साथ हो। बच्चों पर शुरू में तो बड़ा गुस्सा दिखाती रही लेकिन बाद में
शांत रहकर उनसे अतिशय प्यार जताने लगी। मैं सैलरी देता तो हाथ न लगाती तो मैं अपने
खर्च के लिए पैसे निकालकर बाकी उसकी अलमारी में रखने लगा। तनावपूर्ण यह माहौल जब एक
बरस के करीब पहुंचा तो एक दिन नीला ने बच्चों को अलगकर तमाम बातें कहने के साथ यह कहा,
‘तुम्हारी हरकतों से घर तबाह हो गया है। बच्चे बड़े हो गए हैं, मैं नहीं चाहती कि तुम्हारी बुरी बातें मेरे बच्चों का भी भविष्य बरबाद करें। मैं
अपनी आंखों के सामने यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसलिए मैं बच्चों को लेकर अलग रहूंगी।
तुम खुश रहो उस डायन के साथ।’
इसके बाद नीला की
कई और तीखी बातों ने माहौल बिगाड़ दिया। तीखी नोंक-झोंक हुई। शादी के बाद मैंने पहली
बार उस पर हाथ उठाया। मगर उसने मुझे हैरत में डालते हुए पूरी मज़बूती से बीच में ही
मेरा हाथ पकड़ कर चीखते हुए कहा,
‘होश में रहो बता दे रही हूं। हद से आगे निकल चुके हो। अब मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी।’
फिर उसने संजना
को एक से बढकर एक गालियां देते हुए साफ कहा ‘आइंदा फिर हाथ उठाने की कोशिश की तो
मैं सीधे पुलिस में जाऊंगी। क्योंकि अब इज़्ज़त मान-मर्यादा या लोग क्या कहेंगे इन बातों
का तो कोई मतलब रहा नहीं। तुम्हारी कीर्ति पताका कॉलोनी का बच्चा-बच्चा जान चुका है।
और आज के बाद तुम मेरे बच्चों की तरफ भी आंख उठाकर नहीं देखोगे। नहीं तो मैं भी अपनी
हद भूल जाऊंगी।’
मैं आज तक उसके
हद भूल जाने की बात का अर्थ नहीं समझा कि क्या वह मेरे हाथ उठाने पर मुझ पर हाथ उठाने
को कह रही थी या जैसे मैं संजना के साथ रिश्ते जी रहा था वैसा ही कुछ करने को कह रही
थी। खैर उस दिन के बाद उसने बेडरूम में आना उसकी साफ-सफाई तक बंद कर दी। बच्चे भी नहीं
आते मेरे पास। एक बदलाव और हुआ सैलरी के दिन आते ही उसने पिचहत्तर प्रतिशत हिस्सा पूरी
दबंगई के साथ लेना शुरू कर दिया। सच यह था कि उसके इस रौद्र रूप से कई बार मैं अंदर
ही अंदर डर जाता था। अब ऑफ़िस से घर आने में कतराने लगा था। ज़्यादा से ज़्यादा समय
बाहर बिताता। संजना के साथ। मेरी सैलरी का बड़ा हिस्सा संजना के ऊपर खर्च होने लगा।
इससे घर पर रकम कम पहुंचने लगी।
एक बार नीला ने
पूछा मैंने ध्यान नहीं दिया। अगली बार जब फिर मैंने सैलरी कम दी तो नीला भड़कते हुए
बोली अगली बार एक पैसा भी कम दिया तो सीधे ऑफ़िस पहुंच जाऊंगी। इतना सब कुछ हो जाने
के बाद भी मुझे यकीन था कि वह बहुत शर्मीली और संकोची है। ऑफ़िस नहीं आएगी। मगर मेरा
यह आकलन गलत निकला। अगली बार जब मैंने फिर सैलरी कम दी तो उसने एक शब्द नहीं बोला, घूर कर जलती हुई एक नजर मुझ पर डाली, पैर पटकती हुई अलमारी के पास जाकर पैसे
रखे फिर पलटकर एक और जलती नजर डाली और चली गई। मैं फिर खो गया संजना में। उसको मैं
उस वक़्त एक क्षण भी भूल नहीं पाता था। उस दिन भी रात में सोने से पहले एक बजे तक मैंने
संजना से बातें कीं। सारी बातें अश्लीलता की एक से बढ़कर एक इबारतें थीं। अगले दिन मैं
संजना में ही खोया ऑफ़िस में था कि नीला का
फ़ोन आया ‘मैं ऑफ़िस के गेट पर हूं। तुरंत आओ नहीं तो मैं अंदर आ जाऊंगी।’
मैं एकदम घबरा गया।
और करीब-करीब दौड़ता हुआ गेट पर पहुंचा। जबसे उसने मेरा हाथ पकड़ा था मैं उसकी दृढ़ता
से वाकिफ़ हो गया था। उसके पास पहुंचते ही मैं सबसे पहले उसे लेकर ऑफ़िस से कुछ दूर गया
फिर बहुत ही नम्रतापूर्वक पूछा,
‘क्या बात है घर पर सब ठीक तो है न ?’
मेरी ओढ़ी हुई नम्रता
को उसने घृणापूर्वक साइड दिखाते हुए कहा,
‘ये घर की याद कहां से आ गई तुम्हें। तुम्हारा जो घर है तुम उसकी चिंता करो।’
‘यहां किस लिए आ गई हो ?’
‘सैलरी के लिए, जितनी सैलरी मुझे चाहिए वह तुम दो महीने से कहने के बाद भी नहीं दे रहे हो। और
मैंने कहा था कि मैं ऑफ़िस आकर ले लूंगी। क्योंकि मैं अपना अपने बच्चों का हिस्सा किसी
और पर नहीं लुटाने दूंगी।’
उसकी बात सुनकर
मैं घबरा गया। चेहरे पर पसीने के आने का अहसास मैंने साफ महसूस किया। उस वक़्त गुस्से
से ज़्यादा मैं उससे डरा हुआ था। मैंने बात संभालने की गरज से कहा,
‘ठीक है अगले महीने पूरे मिल जाएंगे।’
‘अगले महीने नहीं जितने रुपए अब तक कम दिए हैं मुझे वह सारे के सारे आज ही चाहिए।
शाम को यदि मुझे पैसे नहीं मिले तो मैं कल यहां गेट पर आकर फ़ोन नहीं करूंगी। बल्कि
सीधेे अंदर आकर उस छिनार संजना को सबके सामने चप्पलों से मारूंगी फिर तुमसे हिसाब लूंगी
सबके सामने समझे।’
इतना कह कर नीला
ने सुर्ख और सूजी हुई आंखों से मुझे घूरा और पलटकर पैदल ही चल दी। मैं खड़ा उसे देखता
रहा। उसके तेवर से मैं पसीने-पसीने हो गया था। जिस तरह उसने संजना को गाली देकर कहा
था कि आज पैसे न मिलने पर वह कल आकर पीटेगी उसे, उससे यह साफ था कि वह जो
कह रही है वह निसंदेह कर डालेगी। काफी समय से उसकी एक से एक गालियां सुनकर मैं हैरान
रह जाता कि यह मेरी वही नीला है जो मध्यकालीन श्रृंगार रस के कवि विद्यापति की रचनाएं
सस्वर गाकर रिकॉर्ड कर चुकी है। उनकी अधिकांश रचनाएं उसे जुबानी याद हैं। जो महादेवी
वर्मा को अपनी प्रिय लेखिका बताती है। और उनकी भी तमाम रचनाएं याद कर रखी हैं। अवसर
आने पर सुनाती भी है।
हालांकि संजना के
मेरे जीवन में आने के बाद यह अवसर कभी नहीं आया। मैं सोचता आखिर यह इतनी गालियां कहां
से जान गई। और सिर्फ़ जानती ही नहीं इस तरह बेधड़क देती है कि लगता है ऐसे गाली-गलौज
के माहौल में ही पली बढ़ी है। फिर सोचा नहीं समाज में घर-बाहर जो भी है अस्तित्व में वह सब जानते हैं।
बस संस्कार के चलते वही चीजें प्रमुखता से सामने आती हैं जो संस्कार में मिलती हैं।
बाकी एक तरह से सुसुप्त अवस्था में रहती हैं जो अनुकूल वक़्त पर ही उभरती हैं। तो क्या
मैं जो कर रहा हूं वह इस स्तर का है कि नीला जैसी औरत में गाली-गलौज जैसी जो चीजें
सुसुप्तावस्था में थीं उसके लिए अनुकूल स्थिति पैदा हो गई, और उसके मुंह से धड़ाधड़ गालियां निकल रही हैं। जिसके लिए सिर्फ़ मैं जिम्मेदार हूं।
ऐसी तमाम उथल-पुथल
लिए मैं नीला को आगे टेम्पो पर बैठकर जाने तक देखता रहा। इसके बाद मैं भी वापस अपनी
सीट पर पहुंचा। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद मैं बाकी समय कोई काम नहीं कर सका। बस
फाइल खोले बैठा रहा। इस बीच संजना कई बार आई और चुुहुलबाजी कर के चली गई।
छुट्टी के बाद हम दोनों फिर मिले। कहीं घूमने
जाने का प्लान हम सवेरे ही बना चुके थे। लेकिन अब मैं नहीं जाना चाहता था। मेरी चिंता
नीला की धमकी को लेकर थी। शाम को घर पहुंचते ही अगर उसे पैसे नहीं दिए तो कल वह ऑफ़िस
आक़र आफत कर देगी। घूमने जाने से मना किया तो संजना पीछे पड़ गई। जब मैंने उसे सब बताया
तो वो भी चिंता में पड़ गई। फिर कुछ देर चुप रहने के बाद बोली ’चलो पहले कहीं कुछ खाते-पीते हैं। फिर सोचते हैं कुछ।’
एक होटल में कुछ
खाने-पीने के बाद मैंने राहत महसूस की। तमाम बातचीत के बीच मुझे असमंजस में फंसा देख
संजना ने कहा, ‘सुनो... आज तुम उसे पैसा देकर पहले किसी तरह मामले को शांत करो। फिर सोचते हैं
कि इसका परमानेंट सॉल्यूशन क्या होगा।’
‘लेकिन मेरे पास अभी पैसे हैं ही नहीं, सब खत्म हो चुके हैं।’
‘कोई बात नहीं मैं अपने पास से देती हूं। सैलरी मिले तो दे देना।’
फिर संजना ने ए.टी.एम.
से पैसे निकाल कर दिए।
घर पहुंचकर मैंने
पैसे नीला के सामने पटक दिए। मेरे मन में आया कि कहूं कि दोबारा ऑफ़िस आने की कोशिश
मत करना। लेकिन हिम्मत न कर सका। हां गुस्से में मैंने चाय-नाश्ता, खाना-पीना कुछ नहीं किया। संजना के साथ ही इतना खा-पी लिया था कि ज़रूरत ही नहीं
रह गई थी। मैं बेड पर अकेले लेटे-लेटे सोने की कोशिश करने लगा जिससे दिनभर के तनाव
से मुक्ति मिल सके। लेकिन दिन से ही नीला की हरकत कुछ इस तरह दिलो-दिमाग पर हावी हो
गई कि रात दो बज गए लेकिन नींद नहीं आई।
कभी नीला की धमकी
भरी बातें बेचैन करतीं तो कभी संजना का परमानेंट सॉल्यूशन वाला डॉयलाग। मैंने उस दिन
उस वक़्त पहली बार महसूस किया कि मैं दो औरतों के बीच पिस रहा हूं। इसके लिए पूरी तरह
से ज़िम्मेदार भी मैं हूं। मगर कोई रास्ता तो होगा कि इस पिसने की पीड़ा से बाहर आ सकूं।
यह बात आते ही दिमाग में आया कि इन दो पाटों को अलग करना ही मुक्ति दे सकता है। लेकिन
कैसे हो यह समझ नहीं पा रहा था। पहली बार उस दिन दिमाग में आया कि नीला को छोड़ दूं
क्या, अलग हो जाऊं उससे हमेशा के लिए, दे दूं तलाक उसे। इसके अलावा तो परमानेंट
सॉल्यूशन और कुछ हो नहीं सकता। कहीं संजना भी यही तो नहीं कहना चाह रही थी।
इस बिंदू पर आते
ही मुझे लगने लगा कि इसके अलावा मुक्ति का और कोई रास्ता है नहीं। अब तलाक चाहिए ही, रही बात बच्चों कि तो उन्हें भी उसी के साथ दे दूंगा। जैसे चाहेगी पाल लेगी। दे
दूूंगा गुजारा भत्ता। यह मकान भी उसी को दे दूंगा। कोई दूसरा मकान किसी तरह ले लूंगा।
संजना के साथ शादी करने के बाद उसकी सैलरी मेरी आधी सैलरी के आधार पर इतना लोन तो बैंक
से मिल ही जाएगा कि कोई एक ठीक-ठाक मकान ले लूं।
उस वक़्त संजना
को लेकर दिवानगी के चलते मेरे दिमाग में यह नहीं आया कि नीला अकेले बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, लड़की की शादी की जिम्मेदारी कैसे निभा पाएगी। दोनों बच्चे मैंने पैदा किए हैं वह
अकेले क्यों ज़िम्मेदारी उठाए। यह बात भी दिमाग में न आई कि संजना जब मेरे साथ आएगी
तो उसका बेटा भी साथ होगा। उसे मैं कैसे स्वीकार कर पाऊंगा।
अब मुझे यह सोचकर
ही आश्चर्य होता है कि तब मेरे दिमाग में कैसे अपनी पत्नी अपनी नीला को छोड़ने का विचार
इतनी आसानी से आ गया था। लेकिन उस संजना को छोड़ने का विचार एक पल को न आया जिसके कारण
दो पाटों में दब गया था। उस संजना का जो अपने पति की नहीं हुई थी, उसे सिर्फ़ इसलिए छोड़ दिया था उसने क्योंकि झूठ फरेब उससे नहीं होता था। जो उसकी
कामुकता को गलत समझता था। उस संजना को जो मनमानी करने के लिए मां-बाप, भाई-बहन को भी दुत्कार चुकी थी। और मुझसे परिचय के कुछ ही दिन बाद अपना तन खोल
कर खड़ी हो गई कि उसकी भूूख शांत करो क्यों कि उसके पति ने उसके तन की छुधा कभी शांत
ही नहीं की, वह बेहद ठंडा आदमी है,
जो किसी भी औरत के लायक नहीं। इतना ही नहीं तब मेरी आंखें उसके
तन की चमक में ऐसी चुंधियाई हुई थीं कि मैं
उसकी इस हरकत से भी उसकी असलियत का अंदाजा नहीं लगा पाया कि वह ऐसा कोई दिन नहीं जाता
था जिस दिन अपने कंफर्मेशन या प्रमोशन को लेकर बात न करती रही हो। जिस दिन शारीरिक
संबंधों का दौर चलता उस दिन तो पहले और बाद में भी पूरे अधिकार से यह कहती। बल्कि एक
तरह से आदेश देती कि तुम्हें यह करना है। उस वक़्त उसकी यह बातें कुछ खास नहीं लगती
थीं।
जब कंफर्मेशन का
वक़्त निकल गया और कोई कार्यवाही नहीं हुई तो एक दिन फिर उसने मिलन के क्षण से पहले
ही बड़े अधिकार से कहा,
‘लगता है तुम जानबूझकर मेरा कंफर्मेशन, प्रमोशन नहीं करा रहे हो। जिससे मुझे
जब चाहो ऐसे ही यूज करते रहे।’
मुझे उसी वक़्त
उसकी इस बात से चौंक जाना चाहिए था। लेकिन नहीं चौंका, आंखों दिलो-दिमाग पर पर्दा जो पड़ा था। उसकी इस बात पर कान दिए बिना मैं उसके तन
पर टूटा हुआ था। उसके तन पर उस वक़्त सिर्फ़ मैं था। कपड़े के नाम पर एक सूत न था। न
उस पर न मुझ पर मगर ऐसी स्थिति में भी वह इतनी बड़ी बात कह गई थी। मगर मैं बेखबर था।
उसके दिमाग में ऐसी चरम स्थिति में भी यह सब कैलकुलेशन चल रही थी। और मेरे दिमाग में
सिर्फ़ यह कि मेरे तन से उसका तन कभी जुदा न हो।
उस दिन उसकी परमॉनेंट
सॉल्यूशन की बात का भी निहितार्थ मैं समझ न पाया और पत्नी को तलाक देने की सोचने लगा
था। देर रात तक इसी उथल-पुथल में जागता रहा कि कैसे जल्दी से जल्दी इसे तलाक देकर इससे
छुटकारा पा लूं। मेरा ध्यान इस तरफ भी नहीं गया कि नीला ने मेरे सारे कपड़े गंदे, साफ सब लाकर बेडरूम में ही पटक दिए थे। उसका एक बड़ा ढेर बना हुआ था। काफी दिनों
से साफ-सफाई न होने के कारण पूरा बेडरूम कचरा घर नजर आ रहा था। तलाक देने की धुन में
बहुत देर से सोया और जब सुबह उठा तो बहुत देर हो चुकी थी। बहुत जल्दी करने के बावजूद
करीब दो घंटे देर से ऑफ़िस पहुंचा। उस दिन पूरा वक़्त इस उथल-पुथल में बीता कि नीला
से तलाक के बारे में संजना से बात करूं कि न करूं। मेरे उखड़े मूड के बावजूद संजना अपनी
हरकतों से बाज नहीं आई। चुुहुलबाजी उसकी रुकी नहीं। छुट्टी होने से कुछ पहले आकर बोली,
‘सुना है मेरा कंफर्मेंशन लेटर आ गया है। कुछ पता भी करोगे या यूं ही मुंह लटकाए
रहोगे।’
उसकी इस बात से
मैं थोड़ा अचरज में पड़ा गया कि लेटर आ गया इसकी भनक इसको कैसे मिल गई। दूसरे ऐसे बेरूखे
ढंग से बोल रही है। आखिर और किन से इसके संबंध हैं जो इसे सूचना देता है। उसकी इस बात
से मैं इतना गड्मड् हो गया कि शाम को कहीं और चल कर बात करने की बात कहने की हिम्मत
न जुटा सका। और उम्मीद से एकदम विपरीत वह बिना मुझे कुछ बताए चली गई। मुझे इस हरकत
पर बड़ी गुस्सा आई। ऑफ़िस से बाहर निकलते ही मैंने उसे मोबाइल पर फ़ोन किया कई बार ट्राई
करने के बाद उसने कॉल रिसीव की। फिर छूटते ही बोली,
‘अभी बिजी हूं बाद में बात करती हूूं।’
मैं कुछ बोलूं कि
उसके पहले ही काट दिया। मेरा गुस्सा और बढ़ गया। मैंने तुरंत फिर कॉल की लेकिन उसने
रिसीव नहीं की। कई बार किया तो स्विच ऑफ कर दिया। उसने पहली बार ऐसी हरकत की थी।
मैं गुस्से से एकदम
झल्ला उठा। मेरे मुंह से उस वक़्त पहली बार उसके लिए अपशब्द निकला ‘कमीनी कहीं की एक मिनट बात नहीं कर सकती।’ मैंने उस क्षण पहली बार महसूस किया
कि मैं आसमान में कटी पतंग सा भटक रहा हूं। या ओवर एज हो चुके बेरोजगार सा सड़कों पर
निरुद्देश्य चप्पलें चटका रहा हूं। जिसे निकम्मा समझ घर वाले और बाहर वाले दोनों ही
दुत्कार चुके हैं। जिसका न घर में कोई ठिकाना है और न ही कहीं बाहर। मैं सड़क किनारे
काफी देर तक खड़ा रहा मोटर साइकिल खड़ी कर उसी के सहारे। घर जाता तो किसके लिए। बीवी
दुश्मन बन चुकी थी, बच्चे बेगाने। अपने घर में ही मैं कचराघर बन चुके बेडरूम तक सीमित रह गया था। बेहद
तनाव और काफी देर तक खड़े रहने से जब थक गया तो मैं मोटर साइकिल स्टार्ट कर चल दिया।
मगर जाना कहां है दिमाग में ऐसा कुछ नहीं था।
ट्रैफिक से लदीफंदी हांफती सड़क पर बढ़ता रहा और आखिर में
रेलवे स्टेशन के उस कोने पर जा कर खड़ा हो गया जहां लोग सामने बने गेट से प्लेटफार्म
नंबर एक तक अनधिकृत रूप से पहुंच जाते हैं। वहां की सिक्योरिटी में बना यह सबसे बड़ा
छेद जैसा है। आते-जाते लोगों को देखते मन में चलते तुफान से मैं एकदम बिखर सा गया था।
बाइक वहीं खड़ी कर मैं दिशाहीन सा आगे बढ़ता जा रहा था मुझे यह भी होश नहीं था कि बाइक
वहां बिना लॉक किए ही खड़ी कर दी है। जिसके चोरी होने का पूरा खतरा है। मैं आगे बढ़ता
गया और फिर वी.आई.पी. इंट्रेंस से आगे ओवर फुट ब्रिज पर चढ़ गया। और बीच में पहुंचते-पहुंचते
मेरे क़दम थम से गए। मैं रेलिंग के सहारे खड़ा हो गया। और दूर तक नीचे इधर-उधर आते-जाते
लोगों को देखता रहा। खो गया उसी भीड़ में एक तरह से। मगर कोई चेहरा ऊपर से साफ नहीं
दिख रहा था। रात के आठ बज रहे थे। गाड़ियों, दुकानों की लाइट और स्ट्रीट लाइट इतनी
नहीं थी कि ऊपर से किसी को स्पष्ट देखा जा सकता।
मैं संजना तो कभी
नीला में खोया थका हारा रेलिंग के सहारे तब तक खड़ा रहा जब तक कि एक लड़की के ‘एस्क्यूज मी’ शब्द कानों में नहीं पड़े। मैंने गर्दन घुमाकर दाहिनी तरफ आवाज़ की दिशा में देखा।
एक करीब छब्बीस-सत्ताइस साल की लड़की खड़ी थी। वहां रोशनी बहुत कम थी फिर भी मैं देख
पा रहा था कि वह गेंहुएं रंग की थी और मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी। मेरे मुखातिब
होते ही बोली ‘किसी का इंतजार कर रहे हैं क्या?’ मेरे लिए उस वक़्त यह अप्रत्याशित स्थिति
थी। सो तुरंत मुझ से कोई जवाब न बन पड़ा। उसे देखता रहा मैं। औसत कद से कुछ ज़्यादा
लंबी थी वह। भरा-पूरा शरीर था। चुस्त कुर्ता और पजामा पहन रखा था। जिसे लैगी कहते हैं।
वास्तव यह साठ-सत्तर के दशक में हिंदी फिल्मों में हिरोइनों द्वारा खूब पहनी गई स्लेक्स
ही हैं। जब मैं कुछ बोलने के बजाए उसे देखता ही रहा तो वह फिर बड़ी अदा से बोली,
‘कहां खो गए मिस्टर।’
‘कहीं नहीं... लेकिन मैं आपको पहचानता नहीं, आप कौन हैं?’
‘कभी तो पहचान शुरू हो ही जाती है न। बैठकर बातें करेंगे जान जाएंगे एक दूसरे को
और जब जान जाएंगे तो मजे ही मजे करेंगे।’
इस बार उसके और
ज़्यादा इठला के बोलने ने मुझे एकदम सचेत कर दिया, कि यह उस एरिया में चलती-फिरती
गर्म गोश्त की दुकान है जो खुद ही माल भी है और खुद ही विक्रेता भी। यह उनमें से नहीं
है जिनके सौदागर साथ होते हैं। मैं संजना और नीला के चलते बेहद गुस्से और तनाव में
था ही तो दिमाग में एकदम से एक नई स्टोरी चल पड़ी।
सोचा घर जाने का कोई मतलब नहीं है, वहां बीवी-बच्चे कोेई भी पूछने वाला नहीं है। और जिस के लिए अपने भरे-पूरे खुशहाल
परिवार को हासिए पर धकेल रखा है वह आज बात तक नहीं कर रही है। दगाबाज निकली। अच्छा
है आज ज़िदगी का यह अनुभव भी लेते हैं। घर पर फ़ोन भी नहीं करूंगा। देखूं नीला या बच्चों
में से कोई फ़ोन करता है या नहीं। इससे यह भी पता चल जाएगा कि यह सब वाकई मुझसे से नफ़रत
करते हैं या सिर्फ़ गुस्सा मात्र है।
हालांकि ज़िदंगी
में गर्म गोश्त का अनुभव लेने का यह कोई पहला निर्णय नहीं था। इससे करीब पंद्रह वर्ष
पहले पांच दोस्तों के साथ गोवा घूमने गया था। तब शादी नहीं हुई थी। वहां जिस होटल में
रुके थे वहीं के एक वेटर ने यह सेवा भी उपलब्ध कराने का ऑफर दिया था। और हम सबने कुछ
असमंजस के बाद हां कर दी थी। तब उसने रात नौ बजते-बजते सबके लिए व्यवस्था कर दी थी।
इनमें कोई भी लड़की बीस साल से ज़्यादा की नहीं थी। लेकिन अगले दिन सभी संतुष्ट थे कि
जो खर्च किया उसका भरपूर मजा मिला। सभी लड़कियां कस्टमर को कैसे खुश किया जाए इस हुनर
में पारंगत थीं।
आज इस फुट ओवर ब्रिज
पर इस लड़की ने पंद्रह वर्ष पुरानी यादें ताजा कर दी थीं। साथ में एक नया जोश भी। बात
आगे बढ़ाई तो पता चला वह ऊपर जितनी भोली दिख रही है अपने क्षेत्र की अंदर से उतनी ही
ज़्यादा मंझी हुई खिलाड़ी है। पहले तो मेरे सामने समस्या यह थी कि उसे लेकर जाऊं कहां।
यह बात आते ही उसने कहा उसके पास इस समस्या का भी समाधान है, उसे बस पेमेंट करना होगा। मगर मैं उसकी बताई जगह पर रात गुजारने में हिचक रहा था।
तो फिर अपने विधायक वाले मित्र को फ़ोन किया। उसने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा, ‘यार दो दिन से तो विधायक जी रुके हुए हैं।’ लगे हाथ उसने यह मज़ाक भी कर डाला ‘क्या यार भाभी जीे आजकल मजा नहीं दे पा रही हैं क्या? जो इधर-उधर भटक रहा है।’ कुछ और अश्लील बातें भी उसने कहीं जिन्हें
अनसुना कर मैंने बात खत्म कर दी।
फिर नैंशी के साथ उसकी बताई जगह पर पहुंच
गया। जो स्टेशन के नजदीक ही उस एरिया का जाना पहचाना दादा लॉज था। जहां गर्म गोश्त
को लेकर हुए कई कांड पहले भी मीडिया में चर्चा में आ चुके थे। मैं भीतर ही भीतर डरा
लेकिन संजना और नीला के बीच जिस तरह से उलझा था उससे बहुत गुस्से में था। खिन्नता नहीं
आवेश में उबला जा रहा था। जो मेरे डर पर हॉवी हो गया। लॉज में सारी इंट्री नैंशी ही
ने कराईं जो करीब-करीब फर्जी ही थीं। मैंने जब उस कर्मचारी की तरफ देखा तो उसने दाईं
आंख हल्के से दबाते हुए कहा,
‘क्यों परेशान हो रहे हैं सर, नैंशी जी सब मैनेज कर लेती हैं। आप बेफ़िक्र
होकर एंज्वाय करें।’
फिर वह आदमी ऊपर
रूम तक छोड़ने भी आ गया। रूम खोल कर दिखाया, सेवा की तमाम बातें करते हुए खड़ा हो
गया तो नैंशी ने उसे दो सौ रुपए दिलवाते हुए कहा,
‘ये हम दोनों का पूरा ख्याल रखेंगे आप निश्चिंत रहें।’
पैसा पाते ही वह
चला गया। उसके जाते ही नैंशी बड़े ही मादक अंदाज में बोली,
‘आइए नीरज जी बैठिए। कुछ बातें करते हैं। जानते हैं एक दुसरे को फिर ऐश करते हैं।
या फिर डिनर के बाद या जैसा आप कहें।’
यह कहकर वह बेड
पर यूं बैठ गई कि गोया वह बड़ा लंबा सफर तय कर के थक गई है और लंबे समय बाद आराम का
अवसर मिला है। एक बात मैंने गौर की कि उसमें अन्य तमाम सेक्स वर्कर की तरह बाजारूपन
नहीं था। या नाम मात्र का था। मुझे शांत देखकर वह फिर बोली,
‘बैठिए ना नीरज जी, ऐसे क्या देख रहे हैं। है तो सब आप ही के लिए न। और हां थोड़ा रिलैक्स होइए। कोई
टेंशन है तो मैं हूं न, चुटकी बजाते दूर कर दूंगी।’
मैं कुछ बोलूं कि
उसके पहले ही उसने फ़ोन उठाया और दो सूप का ऑर्डर कर दिया। मैंने भी सामने टेबिल पर
हेलमेट रखा और बेड के सामने ही पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। फिर उसने अपने बारे में बातें
शुरू कीं जिन पर मेरा ध्यान बिल्कुल नहीं था। क्योेंकि मेरा ध्यान रह-रहकर संजना पर
चला जाता। मुझे लगता जैसे मेरे सामने वही बैठी बकबक कर रही है। कुछ देर में वेटर सूप
दे गया। जिसे चट करने से पहले उसने बाथरूम में जाकर मुंह धो लिया था। अब उसका चेहरा
ज्यादा ताजगी भरा लग रहा था। मैंने सूप आधा ही छोड़ दिया था।
नैंशी के सूप पीने के ढंग ने बता दिया था
कि उसे टेबल मैनर्स आदि की पूरी जानकारी है। और उसकी यह बात सच है कि वह एक पढ़े-लिखे
अच्छे घर की है। बस किसी वजह से इस फील्ड में भी आ जाती है कभी-कभी। बातचीत में इतनी
एक्सपर्ट थी कि कुछ ही मिनटों में उसने मुझे सारे तनावों, संजना के दायरे से एकदम खींचकर अपने दायरे में शामिल कर लिया।
जल्दी ही मैं उसके
साथ हंसने-खिलखिलाने लगा। तब मुझे लगा कि इसके साथ रात बिताने के लिए पांच हज़ार देना
कोई बुरा सौदा नहीं है। बात उसने दस हज़ार से शुरू की थी। कम करने की बात आई तो कई शर्तें
रखकर उसने मूड खराब कर दिया था कि इतने पैसे मेें यह करने देंगे यह नहीं या इतने पैसे
देंगे तो यह भी कर देंगे। और इतने देंगे तो सबकुछ।
जिस तरह उसने खुल
कर बात की थी उससे मैं दंग रह गया था। उससे पहले यह सब सिर्फ सुना भर था। तब मैं एक
बार को क़दम पीछे हटाने को सोचने लगा था। क्योंकि सौ रुपए ही थे। और दस हज़ार जो अलग
रखे थे वह बीमा के प्रीमियम के लिए था। जो इत्तेफाक से एजेंट के न आ पाने के कारण मेरे
ही पास था। उस दस हज़ार ने नैंशी के साथ क़दम
आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। अन्यथा मैं नैंशी के साथ होता ही नहीं। मगर अब इस
बात को लेकर मैं किसी असमंजस में नहीं था। बल्कि मन के किसी कोने में कहीं संतोष ही
था। एक कोने में कहीं यह भी कि प्रीमियम का कहीं और जुगाड़ देखा जाएगा। अब मैं खोने
लगा था नैंशी की खनक भरी हंसी में।
बातों ही बातों
में उसने डिनर का भी ऑर्डर दे दिया था। जिसमें मेरी पसंद भी उसने पूछी थी। खाना सब
नॉनवेज ही था। जब वेटर डिनर रख कर जाने लगा था तो उसने बाहर डू नॉट डिस्टर्ब का टैग
लगा देने के लिए कह दिया। साथ ही नीचे रिसेप्शन पर भी फ़ोन कर मना कर दिया। डिनर ऑर्डर
करने से पहले उसने अचानक ही शॉवर लेने की बात कर मुझे चौंका दिया था। मैंने जब यह कहा
कि चेंज के लिए कपड़े कहां हैं तो उसने वहां रखे दो टॉवल की ओर इशारा करते हुए कहा होटल
वाले ये इसीलिए तो रखते हैं। फिर उसने बेहिचक सारे कपड़े उतारकर चेयर पर डाल दिए और
बाथरूम की ओर चल दी। हाव-भाव ऐसे थे कि जैसे अपने पति के ही सामने सब कुछ कर रही हो।
दरवाजे पर ठिठक कर बोली,
‘कामऑन यार एक साथ शॉवर लेते हैं। हालांकि ये उस फीस में शामिल नहीं है। लेकिन आपकी
अदा पर यह मेरी तरफ से एक गिफ्ट है।’
मैं उसके बदन और
उसकी बातों में उलझा था कि तभी उसने आकर एक झटके में मेरी बेल्ट खींच दी। कुछ ही देर
में मैं भी उसी की तरह था। फिर दिगंबर ही उसकेे साथ शॉवर लिया, उस पल उसने जो किया उससे मैं सच में एकदम मदमस्त हो गया। उस पल को तब मैंने अपने
जीवन के सबसे हसीन पलों में शामिल किया था। अब भी उस पल को इस सूची से हटाने का मन
नहीं करता। जेल की इस बंद कोठरी में भी नहीं।
बाथरूम में नीला
के साथ बच्चों के बड़ा होने से पहले मैंने कई बार एक साथ शॉवर लिया था। मगर ईमानदारी
से कहूं कि सच यही है कि नैंशी के साथ और नीला के साथ का कोई मुकाबला नहीं था। क्योंकि
दोनों का मिजाज ही एकदम जुदा था। नीला में जहां शर्म-संकोच, शालीनता की तपिश की आंच थी वहीं नैंशी में यह सिरे से नदारद थी।
हां नीला के साथ
नैचुरल शॉवर का जो अनुभव था वह अद्भुत था। नैचुरल शॉवर यानी बारिश में अपनी पत्नी के
साथ भीगने का। यह अनुभव तो करीब-करीब सभी ने लिया होता है लेकिन मैंने जो किया था वह
गिने चुने लोग ही करते हैं। क्योंकि इसमें अहम रोल बारिश का होता है वह भी ऐसी बारिश
जो रात में हो रही हो और लगातार कई घंटों तक रिमझिम बारिश होती ही रहे। साथ ही सबसे
ऊंचा मकान हो, और उसमें दूसरा कोई न हो। सौभाग्य ने मुझे यह सब दे रखा था।
मेरे मकान की छत
अगल-बगल के सारे मकानों से ऊंची थी। शादी को डेढ़ साल हो रहे थे। उस साल मानसून मौसम
विभाग की सारी भविष्य वाणियों को धता बताते हुए एक हफ्ता पहले ही आ गया था। दो-चार
दिन एक आध हल्की फुहारों के बाद एक दिन जो शाम के बाद पहले कुछ ते़ज फिर धीरे-धीरे
बारिश शुरू हुई तो फिर वह बंद होने का नाम ही न ले। फिर लाइट भी चली गई। एमरजेंसी लाइट
या फिर इन्वर्टर जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। मोमबत्ती से काम चल रहा था। गर्मी ने सताया
तो अचानक छत पर घूमने का विचार एकदम से दिमाग में कौंध गया जैसे उस समय आसमान में बार-बार
बिजली कौंध रही थी।
मैंने नीला को भी
कुछ ना नुकुर के बाद साथ ले लिया था। छत पर पहले दोनों एक-दूसरे की कमर में हाथ डाले
चहलक़दमी करते रहे। दूर-दूर तक घुप्प अंधेरा था। दूर सड़कों पर इक्का-दुक्का आती जाती
गाड़ियों की लाइट दिख जाती या फिर आसमान में कौंधती बिजली कुछ पल को आस-पास का इलाका
रोशन कर देती। जिससे नीला डर कर चिपक जाती और फिर कुछ देर में नीचे चलने को बोलने लगी।
लेकिन यह सब मुझे बचपन के हसीन दिन भी याद दिला रहे थे। फिर जल्दी नीला के साथ उसके
भीगे बदन ने मेरा मूड एकदम रोमांटिक कर दिया। मैंने अपनी बातों और हरकतों से उसका मूड
भी अपने जैसा ही बना लिया। फिर बाऊंड्री के बगल में ही मैं उसे लेकर लेट गया था जमीन
पर। फिर वहां हम दोनों ने वह अद्भुत पल जिए। नेचर के साथ नैचुरल कंडीशन में ही। जो
विरलों को ही नसीब होता है नेचर के ही सहयोग से।
इस अद्भुत स्थिति
में हम दोनों करीब घंटे भर रहे। फिर नीला को छींकें आने लगीं तो उसके आग्रह पर मैं
मन न होते हुए भी नीचे चलने को तैयार हुआ। हम दोनों नीचे आधे जीने तक बैठे-बैठे ही
उतरे। क्योंकि छत पर खड़े होकर हम दोनों कपड़े पहनने का रिस्क नहीं लेना चाहते थे कि
कहीं भूले भटके किसी के नजर में न आ जाएं। उस दिन सवेरा होते-होते हम दोनों तेज जुखाम
से पीड़ित थे। आज भी वह पल याद कर मन रोमांचित हो जाता है।
नैंशी के साथ उस
शॉवर ने भी तन-मन में गुदगुदी की थी लेकिन वैसा रोमांच नहीं। बाथरूम से हम दोनों बीस-पच्चीस
मिनट में ही बाहर आ गए थे। जहां कमरे में सिर्फ़ दो तौलिए थे। जिन से हमने तन पोछा
भी और उसे कहने भर को ढंका भी। फिर डिनर किया। तभी लगा गीले तौलिए दिक़्कत कर रहे हैं
तो दोनों ने उन्हें हटा दिया। हम दोनों को अब उनकी ज़रूरत ही कहां थी। रात भर नैंशी
ने जीवन के कई नए अनुभव दिए। कई बार तो ऐसा लगा जैसे एंज्वाय करने के लिए उसने मुझे
हॉयर किया है। एंज्वाय मैं नहीं वह कर रही है। वह भी अपने तरीके से। जैसे चाहे वैसे
मुझे इस्तेमाल कर रही है,
जो चाहे कर या करवा रही है।
सवेरे तक न वह सोई
न ही सोने दिया। एक से एक बातें, काम करती या करवाती रही। सवेरे करीब छः बजे
लॉज से बाहर आए तो उसने अपना सेल नंबर दिया फिर कॉल करने के लिए। फिर ऑटो कर चल दी।
कहां यह नहीं बताया था।
मैंने जब घर की
राह ली तो जेब में मात्र दो हज़ार बचे थे। लॉज का किराया, वहां के कुछ कर्मचारियों को नैंशी ने इस तरह पैसे दिलवाए कि मेरे पास कुछ पूछने
के लिए वक़्त ही नहीं होता था। गोया कि मैं कोई धन पशु हूं। नैंशी के जाते ही मेरे
दिमाग मेें घर हावी होने लगा। रात में कई बार मेरी नज़र मोबाइल पर इस आस में गई कि बस
अब घंटी बजेगी। और नीला तनतनाती हुई पूछेगी कि कहां हो? या बच्चों की आवाज़ कि पापा कहां हो? गुस्से में नीला खुद फ़ोन न करके बच्चों
से ऐसा करा सकती है। लेकिन मेरी आस पूरी नहीं हुई। भूल से भी एक कॉल नहीं आई।
कई बार मन संजना
पर भी गया। फ़ोन करूं या न करूं मैंने इस असमंजस में रात मेें बारह बजे तक अपने को रोके
रखा। फिर उसके बाद जब कॉल की तो उसने फ़ोन काट दिया। मैं गुस्से से तिलमिला उठा था।
पर नैंशी के सामने जाहिर नहीं होने दिया। फिर नैंशी के मायाजाल में ऐसा डूबा था कि
यह सब नेपथ्य में चले गए थे।
मगर अब नैंशी नेपथ्य
में थी। नीला हावी थी। एक बार भी फा़ेन न आने से मैं हैरत में था। सोचने लगा कि संजना
से संबंध बना के क्या मैंने कोई गुनाह किया। और क्या यह गुनाह इतना बड़ा है कि बीवी
बच्चे इस कदर मुंह मोड़ लें कि यह तक जानने की कोशिश न करें कि मैं जिंदा भी हूं या
कहीं मर-खप गया। फिर सोचा नीला ने शायद यह सोचकर फ़ोन न किया हो कि संजना के साथ गुलछर्रे
उड़ा रहा होऊंगा।
विचारों के इस उथल-पुथल
में अचानक ही यह बात भी दिमाग में कौंध गई कि जैसे मैं बाहर औरतों से संबंध बनाए घूम
रहा हूं कहीं नीला भी तो...। यह बात दिमाग में आते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मेरा
गला सूखने लगा। मुझे महसूस हुआ कि अब जल्दी घर न पहुंचा, तुरंत पानी न पिया तो गिर जाऊंगा। मैंने बाइक की स्पीड यह सोचकर और बढ़ा दी। बल्कि
यह कहें कि एक्सीलेटर पर हाथ खुद ही और घूम गया। इस बीच मन के कोने में कहीं यह बात
भी गुनगुनाई, नहीं मैं लाख कुछ भी करूं लेकिन नीला किसी गैर मर्द के सामने अपने को नहीं लाएगी।
मैं कुछ भी करूं
वह मुझसे लड़ाई-झगड़ा सब कर लेगी। लेकिन अपना तन कहीं और नहीं उघाड़ेगी। वह ऐसी औरत है
ही नहीं। उलझन के सागर में डूबता उतराता मैं अंततः घर पहूंचा। गेट पर अंदर से ताला
लगा था। मतलब सब घर में ही थे। मगर सुबह के साढ़े छः बजने वाले थे और ताला लगा था यह
बात कुछ अलग थी। क्योंकि नीला जल्दी उठती है और गेट का ताला खोल कर फिर काम में जुट
जाती है।
कई बार घंटी बजाने
के बाद दरवाजा खुला जो ग्रिल के गेट से करीब पंद्रह फिट दूर था। सामने नीला खड़ी थी।
उससे मैं पूरी तरह नज़र नहीं मिला पा रहा था। करीब आठ-दस सेकेंड वह मुझे एकटक देखती
रही फिर अंदर चली गई। जाहिर है चाबी लेने गई थी। जब आई तो मुझे ऊपर से नीचे तक ऐसे
देख रही थी मानो स्कैन कर रही हो कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है। फिर उसके हिसाब से सवाल
दागे जाएं। मैं मुश्किल से उसके चेहरे पर नज़र डाल पाया था। आंखें चेहरा साफ बता रहे
थे कि वह रात भर सोई नहीं थी। और संभवतः रोई भी बहुत थी। गेट का ताला खोलकर उसने गेट
खोला नहीं बल्कि ताले को कुंडे में चाबी सहित झटके से लटका कर तीक्ष्ण नज़र मुझ पर फिर
डाली और पैर पटकती हुई चली गई अंदर। उसकी बॉडी लैंग्वेज बता रही थी कि स्कैन कर उसने
यह जान समझ लिया था कि मेरे साथ कुछ भी अनहोनी नहीं हुई थी, और मैंने रात भर ऐश की है।
जब मैं अंदर पहुंचा
तो देखा बच्चे सो रहे थे। डाइनिंग टेबिल की स्थिति बता रही थी कि किसी ने भी खाना ठीक
से नहीं खाया। घर की एक-एक चीज इस बात की गवाही दे रही थी कि यहां रहने वाला हर शख्स
बेचैन सा रात में इधर-उधर उठता, बैठता, लेटता रहा है। जागा तो
मैं भी था रातभर। इधर-उधर,
डरता, बैठता, लेटता उस लॉज में नैंशी
के साथ जाने क्या-क्या करता रहा, फ़र्क़ इतना था कि यहां सब हैरान-परेशान व्याकुल
तनाव में पस्त थे। और वहां मैं जश्न मना रहा था ऐश कर था। नींद से आंखें बोझिल हो रही
थीं। और इन सबके पीछे सिर्फ़ एक इफेक्ट संजना इफेक्ट काम कर रहा था। मगर अब मेरी हालत
ऐसी न रह गई थी कि मैं कुछ सोच-विचार पाता। जूते उतार कर वही कपड़े पहने-पहने बेड पर
पसर गया। और कोई मौका होता तो नीला जूते ही नहीं, कपड़े भी उतार कर आराम से
लिटाती। मैं भरे पूरे घर में भी अकेला था। अकेले ही गहरी नींद में सो गया ।
जब मेरी नींद खुली
तो मोबाइल पैंट की जेब में ही बजे जा रहा था। वाइब्रेटर भी ऑन था तो शरीर में झन-झनाहट
भी हो रही थी। जेब से मोबाइल निकालते हुए मैंने घड़ी पर नज़र डाली तो ग्यारह बज रहे थे।
मुझे एक झटका सा लगा। जल्दी से बैठ गया। मोबाइल तब तक बंद हो चुका था। देखा तो सात
मिस्ड कॉल पड़ी थीं। सभी ऑफ़िस की थीं। मैं अंदर ही अंदर सहम गया। फिर उस नंबर पर कॉल
की जो मेरे करीबी कुलिग का था। हां उसके पहले यह जरूर चेक कर लिया था कि कहीं कोई कॉल
संजना की तो नहीं थी। यह देख बेहद निराश हुआ कि उसकी एक भी कॉल नहीं थी। कुलिग लविंदर
सिंह ने फ़ोन उठाने में देर नहीं की। छूटते ही बोला,
‘ओए कहां है तू फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा। तेरे घर फ़ोन किया तो भाभी जी बोलीं कुछ
पता नहीं कहां हैं। कुछ नाराज सी लग रही थीं। तू आखिर है कहां?’
‘कब फ़ोन किया था ?’
‘अरे यार एक घंटे पहले किया था। जब कई बार करने पर भी तूने नहीं रिसीव किया तो घर
वाले नंबर पर ट्राई किया था। तब पता चला कि किसी को भी पता ही नहीं कि तुम कहां हो, तो फिर तुझे मिलाने लगा। आखिर माजरा क्या है।’
लविंदर की बात से
साफ था कि मैं सो रहा था लेकिन नीला ने गुस्से में कह दिया पता नहीं कहां हैं। बात
टालने की गरज से मैंने कहा,
‘माजरा कुछ नहीं है मिलने पर बात करूंगा। ये बताओ ऑफ़िस में कोई पूछ तो नहीं रहा
था।’
‘बॉस सुबह से कई बार पूछ चुके हैं। काफी गुस्से में हैं। तुमसे तुरंत मिलना चाहते
हैं। बल्कि वो कल ही बुलाए थे। लेकिन तुम आधे घंटे पहले ही निकल चुके थे। फिर उन्होंने
कई बार कॉल की तुम्हें लेकिन तुमने कॉल रिसीव नहीं की।’
‘हां ऑफ़िस का लैंडलाइन नंबर देखकर मैंने समझा तुम्हीं लोगों में से कोई बात करना
चाह रहा होगा। इसीलिए नहीं उठाया। मैं जरूरी काम से निकला था।’
‘अरे यार ऐसा भी क्या जरूरी काम था कि दो मिनट बात भी नहीं कर सकते थे। घर भी नहीं
गए।’
‘जब मिलूंगा तब इस बारे में बात करूंगा। बॉस क्यों इतना पूछ रहे हैं। सब ठीक तो
है न ?’
‘मुझे कुछ खास पता नहीं। बस इतना मालूम है कि तुमसे ही जुड़ा कोई सीरियस मैटर है।
इसलिए जैसे भी हो तुरंत आओ।’
लविंदर की बातों
ने मेरे होश उड़ा दिए। कुछ ऐेसे कि संजना, नैंशी भी उड़ गए उसी में। आनन-फानन में
तैयार होकर मैं ऑफ़िस पहुंचा। वहां सब ऐसे देख रहे थे जैसे मैं फांसी के फंदे पर चढ़ने
जा रहा हूं। कईयों के चेहरे पर जहां हवाइयां
उड़ रही थीं वहीं कुछ चेहरों पर व्यंग्य भरी मुस्कुराहट भी साफ दिख रही थी। खासतौर
से लतखोरी लाल के चेहरे पर। मैं उस समय उससे बहस में नहीं उलझना चाहता था। डरता-डरता
अंदर-अंदर सहमता मैं चला गया तमाम उलझनों में उलझा बॉस के चैंबर में।
अंदर जो हुआ वह
मेरी कल्पना से परे था। जो बॉस पिछले पंद्रह वर्षाें से मुझे छोटे भाई की तरह मानता
था और मैं उन्हें बॉस से ज़्यादा बड़ा भाई मानता था, जिसके चलते ऑफ़िस में मेरी
एक अलग ही धाक थी, उसी बॉस ने भाई, ने मुझे क्या नहीं कहा। बेहतर तो यह था कि वह मुझे जूता उतार कर चार जूते मार लेते
मगर वह बातें न कहते जो कहीं। मेरी आंखें भर आईं तब कहीं वह कुछ नरम पड़े मगर आगे जो
बातें कहीं उससे मेरे पैंरों तले जमीन खिसक गई। मैंने हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट की कि मुझे
किसी भी तरह बचा लें । मगर उन्होंने साफ कहा,
‘मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं कि तुम्हारी नौकरी बच जाए। यह कोई सरकारी डिपार्टमेंट
तो है नहीं। लिमिटेड कंपनी है। शहर के सबसे पुराने पब्लिशिंग हाउसेस में गिनती है इसकी।
इतिहास के कई पन्नों में दर्ज हो चुका है। इस समय टॉप मैनेजमेंट बहुत सख्त है। क्योंकि पिछले काफी समय से अव्यवस्था
ज़्यादा फैली है। कई अनियमितताओं में तुम्हारा नाम ऊपर है। पूरे ऑफ़िस में , ऊपर तक यह बात फैली हुई है कि मेरा तुम पर वरदहस्त है। जिससे तुम मनमानी करते हो।
नियमों का उल्लंघन करते हो। संजना के कंफर्मेशन के लिए तुमने जो रिपोर्ट भेजी पूरी
तरह झूठी, बायस्ड, निराधार है।
मैनेजमेंट को उससे
तुम्हारे संबंधों की पूरी जानकारी है। यह भी पता है कि उसका सारा काम तुम करते हो।
उसे कुछ नहीं आता। उसकी गलत साइड लेकर तुम लोगों से मिसबिहैव करते हो ऑफ़िस का पूरा
वर्क कल्चर, वर्क एटमॉस्फियर किल कर दिया है। कुछ लोगों ने सप्रमाण तुम्हारी एनॉनिमस रिपोर्ट
तक की है। मैंने ऊपर समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन प्रमाण इतने पुख्ता हैं कि मैं
कुछ नहीं कर सका। सस्पेंशन के अलावा फिलहाल कोई रास्ता नहीं बचा है। खैर अभी जाओ, धैर्य से काम लो, लंच के बाद आकर मिलना। मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं।’
कुर्सी से जब मैं
उठा तब उन्होंने यह भी कहा ‘चेहरे पर नियंत्रण रखो। ऐसा न हो कि बिना
बोले ही सब कुछ कह दो।’
मगर मुझसे कंट्रोल
कहां होना था। चेहरे पर थकान ऊपर से उड़ती हवाइयों
ने ऐसा बना दिया था मानो मैं अपनी सारी दुनिया ही लुटाकर चला आ रहा हूं। बाहर
निकला तो फिर सब कनखियों से देख रहे थे। मैं किसी से नज़रें नहीं मिला सका। नॉर्मल दिखने
की लाख कोशिशों के बावजूद बुझा-बुझा सा, चुनाव हारा सबसे हॉट उम्मीदवार सा खिसयाया
हुआ अपनी चेयर पर आकर बैठ गया। गला सूख रहा था। एक गिलास पानी पिया। कुछ राहत मिली।
आश्चर्य मुझे अब
इस बात का होता है कि उस विकट स्थिति में भी दिलो-दिमाग के किसी कोने में बराबर संजना-संजना
गूंज रहा था। कुर्सी पर सिर टिकाकर मैंने आंखें बंद कर लीं। मुझे लगा कि एक बार किसी
तरह संजना आ जाती तो अच्छा था। उसे फ़ोन कर बुलाने का मन हुआ। मैं इस बात से अंदर ही
अंदर खौल रहा था कि कल से वह बात क्यों नहीं कर रही है। आ क्यों नहीं रही है।
कई बार उसे फ़ोन
करने के लिए इंटरकॉम की तरफ हाथ बढ़ा-बढ़ा कर मैं ठहर जाता। इस बीच कई लोेगों ने तीन-चार
बार फ़ोन करके हालचाल लेने के बहाने माजरा जानने की कोशिश जरूर की। मैं चतुराई से सबको
साइड दिखाता रहा, नीला, संजना, नैंसी और बॉस की बातों में, उलझता-गड्मड् होता रहा। जैसे-तैसे वक़्त
बीता और लंच के बाद बॉस ने सस्पेंसन लेटर भी थमा दिया।
तब मैंने महसूस
किया जैसे मेरे तन में खून रह ही नहीं गया। मेरी टांगें इतनी कमजोर हो गई हैं कि बदन
का बोझ उठाने में उनका दम निकल सा रहा है। लग रहा था मानो बदन हजारों किलो का हो गया
हो । शाम को किसी तरह घर पहुंचा और कचरा घर बने बेडरूम में पसर गया। कुछ देर बाद मेरी
आंखों की कोरों से आंसू निकलकर कानों तक पहुंचने लगे। मुझे जिस तरह से सबकुछ बताया
गया था उस हिसाब से नौकरी का बच पाना करीब-करीब नामुमकिन ही लग रहा था।
इन सारी स्थितियों
के लिए मुझे अब एकमात्र दोषी संजना ही लग रही थी। मुझे अब वह नागिन सी लगने लगी। मन
में उसके लिए गालियों, अपशब्दों की बाढ़ सी आ गई थी। कुछ देर बाद मुझे भूख-प्यास भी सताने लगी थी। मगर
किससे कहूं? नीला, बच्चों से तो कुछ कहने-सुनने का अधिकार मैं पहले ही खो चुका था। उनसे संवाद के
सारे साधन खत्म थे। इन कुछ क्षणों में ही मैं अपने को इतना अकेला हारा महसूस करनेे
लगा कि जी में आया आत्म-हत्या कर लूं। रह-रह कर संजना को गाली देता। तब मुझे एक बात
शीतल मरहम सी लगी कि ठीक है मैं सस्पेंड हुआ, मगर मुझे धोखा देकर अपना उल्लू सीधा
करने वाली संजना का कंफर्मेशन भी नहीं हुआ। इतना ही नहीं उसे सख्त चेतावनी भी दी गई
है। वैसे तो उसकी नौकरी ही जा रही थी। लेकिन तिकड़मी लतखोरी लाल की तिकड़म उसके काम आ
गई।
अब समझ में आया
था कि तिकड़मी लतखोरी पिछले काफी समय से संजना के आगे-पीछे किसी न किसी बहाने क्यों
लगा रहता था। साथ ही वह कमीनी भी मुझसे नज़्ार बचा-बचाकर मिलती थी उससे। वह वास्तव
में मुझे डॉज दे रही थी। डबल क्रॉस कर रही थी। मैं मुर्ख पगलाया अंधराया हुआ था। मुझे
लतखोरी लाल से मिली यह बहुत बड़ी पराजय लग रही थी। मैं युद्ध के मैदान में खुद को हारा, अकेला खड़ा पा रहा था। जिसके सारे फौजी भी उसका साथ छोड़कर भाग नहीं खड़े हुए थे बल्कि
विपक्षी से जा मिले थे। मुझे लगा अब सब कुछ खत्म हो गया है।
मैं अंतिम सांसें
गिन रहा हूं और मेरा बेड मेरी शरसैय्या है। मगर मेरी किस्मत इतनी काली है कि कोई अर्जुन
की तरह मेरे सूखते गले को धरती का सीना वेधकर शीतल जल कौन कहे, एक गिलास फिल्टर वाला पानी भी देने वाला नहीं है। मैं प्राण निकलने की प्रतीक्षा
करता युद्ध भूमि में घायल सिपाही सा पड़ा था आंखें बंद किए हुए। ना जाने कब तक।
कान तक पहुंचे आंसू अब तक सूख चुके। फिर
अचानक ही माथे पर एक चिरपरिचित शीतल स्पर्श का अहसास किया और बोझिल सी आँखें खुल गईं
। फिर आश्चर्य से निहारती रहीं उस डबडबाई, झील सी गहरी आंखों को। आश्चर्य मिश्रित
खुशी थी मेरे लिए। क्योंकि इस वक़्त उन आंखों में खुद के लिए मैं प्यार, स्नेह का उमड़ता सागर देख रहा था। मैं न हिल सका न कुछ बोल सका। बस आंसू फिर से
कानों तक जाने लगे। जिसे मैं लंबे समय से अपना दुश्मन नंबर एक माने हुए था। उससे छुटकारा
पाना चाहता था वही मेरी पत्नी नीला मेरे सामने खड़ी थी। अपने शीतल स्पर्श से मेरी सारी
पीड़ा खीचें जा रही थी। फिर बोली,
‘उठिए’
आज उसकी आवाज़्ा
मुझे शहद सी मधुर लग रही थी। मुझे निश्चल पड़ा देख मेरा हाथ पकड़ कर उसने उठाया। बाथरूम
में छोडा और कहा,
‘हाथ-मुंह धोकर आइए।’
मैं जब बाथरूम से
आया तो वह लॉबी में खड़ी बोली,
‘आइए... नाश्ता करिए।’
मैं बिना कुछ बोले
आज्ञाकारी फौजी की तरह डाइनिंग टेबिल के गिर्द पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। नीला भी नाश्ता
रखकर सामने बैठ गई। मेरे साथ ऐसे नाश्ता कर रही थी मानो सारी समस्या उसने हलकर ली है।
मैं बडे़ असमंजस में था उसके इस बदले रूप से। नाश्ता ख़त्म होते ही उसने कहा,
‘कपडे़ चेंज करके आप आराम करिए मैं थोड़ी देर में खाना लगाती हूं।’
मेरी किसी प्रतिक्रिया
की प्रतीक्षा किए बिना जाने लगी तो मैंने हौले से बच्चों के बारे में पूछा। नाश्ता
करने के बाद मैं कुछ राहत महसूस कर रहा था। वह किचेन की तरफ बढ़ती हुए बोली,
‘दोनों मामा के यहां गए हैं। कल आएंगे। आज उनके बेटे का बर्थ-डे है।’
‘तुम नहीं गई ?’
इतना कहने पर पलटकर
उसने एक नज़र मुझ पर डाली फिर बोली,
‘बच्चों के कमरे में आराम करिए। बेडरूम कल साफ करूंगी। खाना वहीं लेती आऊंगी।’
मैं समझ गया नीला
इस बारे में कुछ बात नहीं करना चाहती। सारी बात उसने बिना कुछ कहे ही कह दी थी। आगे
कुछ कहने की मैं हिम्मत नहीं कर सका। चेंज करके लेट गया बच्चों के कमरे में। नीला के
बदले रूप को समझने में मैं लगा हुआ था। मगर हर चीज पर भारी था सस्पेंशन। सारी आशाओं
के विपरीत नीला ने बच्चों के बेड पर मेेरे साथ ही पूरे मन से खाना खाया। फिर बच्चों
के अलग पड़े बेड को मिला दिया। डबल बेड बना दिया। इतना ही नहीं जब स्लीपिंग गाउन पहकर
आई तो स्प्रे भी कर लिया था। यहां तक कि बेड पर भी काफी स्प्रे कर दिया।
उसकी इस हरकत से मैं अंदर-अंदर कुढ़ गया।
मन में आया यहां नौकरी जा रही है। कल को खाने के लाले पड़ जाएंगे। और यह रोमांटिक हुई
जा रही है। चाहती तो बच्चों को बुला सकती थी। आखिर उनका घर है ही कितनी दूर। मन में
यही उथल-पुथल लिए मैं लेट गया। उसने मेरी कुढ़न को और बढ़ाते हुए बच्चों के लिए कमरे
में लगे टी.वी. को ऑन कर दिया और फिर बड़े बेफिक्र अंदाज में सटकर लेट गई। मैं आखिर
खुद को रोक न सका।
‘आज बहुत बुरा हुआ। बड़ा मनहूस दिन है मेरे लिए।’ आगे कुछ बोलने से पहले
ही वह बोल पड़ी।
‘सब मालूम है मुझे। परेशान होने की ज़रूरत नहीं। सब ठीक हो जाएगा। तुम चाहोगे तो
आगे भी हमेशा सब ठीक ही रहेगा।’
‘क्या ... ! क्या मालूम है तुम्हें ?’
‘यही कि संजना का कंफर्मेशन रुक गया है। तुम्हें सस्पेंड कर दिया गया है। तुमने
लाख कोशिश की लेकिन वह धूर्त औरत तुमसे बात तक नहीं कर रही है।’
मुझे एकदम करंट
सा लगा। मैं एक झटके में उठकर बैठ गया। और उतनी ही तेज़ी से पूछा,
‘ये सब तुमको कैसे मालूम। और इतनी आसानी से बोले जा रही हो जैसे कोई बात ही नहीं
हुई।’
‘आराम से लेटो सब बताती हूं। रही बात तुम्हारी नौकरी की तो उसे कुछ नहीं होने वाला।
मैंने सब ठीक कर लिया है। आश्चर्य नहीं कि तुमको सस्पेंड करने वाला तुम्हारा बॉस कुछ
दिन बाद अपनी नौकरी बचाने के लिए तुमसे मदद मांगे।’
‘पागल हो गई हो क्या? आयं-बायं-सायं बके जा रही हो। ऑफिस है तुम्हारा घर नहीं कि जो चाहो कर लो। बॉस
कोई ऐसा वैसा आदमी नहीं है। जो मुझसे मदद मांगने आएगा।’
‘आएगा देख लेना। मैं भी कोई ऐसी-वैसी औरत नहीं हूं। मेरा नाम भी नीला है। तुम्हारी
बीवी हूं समझे। और तुम शायद भूल गए कि तुम्हारी कंपनी का मालिक प्रिंट पेपर, किताबों की बिक्री के लिए मेरे उसी नेता भाई पर पूरी तरह डिपेंड है जिससे तुम आवारा, छुटभैया नेता कहकर सारे संबंध खत्म किए हुए हो।
जब तुम रात भर गायब रहे तो उसी ने तुम्हारी
सारी खोज खबर ली। तुम ज़रूर उसे दुत्कारते रहते हो, बरसों से घर तक नहीं आने
देते। उसी छुट्भैया नेता से तुम्हारे ऑफिस के कई लोग बेहद करीबी संबंध बनाए हुए हैं।
इतना तो समझ ही गए होगे कि मुझे पल-पल की जानकारी क्यों रहती है। ऐसे आंखें फाड़कर क्या
देख रहे हो। जो कह रही हूं एकदम सही कह रही हूं। जैसे अचानक सस्पेंशन लेटर मिला है
न वैसे ही जल्दी ही? रिवोक लेटर मिलेगा विथ प्रमोशन लेटर।’
‘अच्छा! वे छुट्भैया इतना बड़ा नेता हो गया है कि बड़े-बड़े बिजनेसमैन उसके आगे हाथ
जोड़ते हैं। मदद मांगते हैं। मेरी नौकरी उसके दम पर है। इतना है तो फिर संजना को बाहर
क्यों नहीं कर दिया अब तक।’
‘जो चाहोगे सब हो जाएगा। अभी तक मैंने उससे कुछ नहीं कहा था सिर्फ़ भाभी के घमंडी
ऐंठू स्वभाव के कारण। कि वह मेरी खिल्ली उड़ाएगी।’
‘अब तो बता दिया अब नहीं उड़ाएगी क्या?’
‘मैंने उनसे बात ही नहीं की। भाई से फ़ोन पर बात की और मना भी कर दिया था कि भाभी
को नहीं बताएं।’
‘और वो मान जाएंगे।’
‘मुझे यकीन है उस पर। आज तक उसने मेरी किसी बात को मना नहीं किया है।’
‘तब तो यह मानकर चलें कि अगले दो-चार दिन में संजना नौकरी से बाहर होगी। और बॉस
अपनी नौकरी बचाने के लिए मेरे सामने गिड़-गिड़ा रहे होंगे।’
‘वो है ही इसी लायक। ऐसी कमीनी है जो चाहे जितनी जगह मुंह मार ले उसकी क्षुधा शांत
नहीं होगी। उसकी चालाकी का अंदाजा इसी बात से लगा लो कि जब उसको वहां के लोगों से भाई की जानकारी हुई तो उसने कंफर्मेशन के लिए
सीधे तुम्हारे बॉस को फांस लिया। तुम्हें मालूम है कि वह पिछले एक हफ्ते में दो रातें
तुम्हारे बॉस के साथ बिता चुकी है। तुम्हारा
बॉस चाहता तो तुम्हें सस्पेंशन से बचा सकता था लेकिन तुमको संजना से अलग कर अकेले यूज
करते रहने के लिए ऐसा नहीं किया। वही बॉस जिसको तुम बड़े भाई की तरह मानते हो।’
‘तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो।’
‘भाई ने सब पता किया। तुम्हारे ऑफ़िस के लोगों ने ही सब बताया। इतना ही नहीं वहां
की बातें सुनकर तो मेरी नसें तनाव से फटने लगीं। मुझे या भाई को लोगों ने इसलिए नहीं
बताया कि वे हमसे डरते हैं या फिर हमारे हितैषी हैं।
इसलिए बताया क्योंकि
सभी वहां एक दूसरेे को जानवर की तरह काट खाने में लगे हैं। मुझे तो उस समय तुम पर बड़ा
तरस आया कि आखिर तुम कैसे रहते हो जानवरों के झुण्ड में। जो लोग सब बता रहे थे वे तुम्हारे मामले के
जरिए अपना-अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए थे। जिसको तुम लोग लतखोरी लाल कहते हो
दरअसल ज़्यादातर लोग उससे त्रस्त हैं। वो लोग उसको इसी बहाने ठिकाने लगाने में लगे
हुए हैं। पहले मुझे लगा कि वहां वह अकेला इतना गंदा इंसान होगा लेकिन भाई जब तह तक
पहुंचा तो पता लगा वहां तो हर तीसरा आदमी ही लतखोरी लाल है।
तुम्हारे मामले
ने जो इतना तूल पकड़ा वह इस लतखोरी के चलते ही हुआ। क्योंकि ऑफ़िस में सीनियारिटी को
लेकर वो तुमसे खुन्नस खाए रहता है। दूसरे संजना की हरकतों के चलते उसे लगा कि वो आसानी
से उसपे हाथ साफ कर लेगा। लेकिन वो अपने स्वार्थ में तुम्हारे सामने बिछ गई। इससे वह
और चिढ़ गया। और तुम्हारे बॉस को चढ़ा दिया कि सर करना आपको है लेकिन संजना के मजे वह
ले रहा है। सर राइट तो सिर्फ़ आपका बनता है। बस चढ़ गए तुम्हारे बॉस।’
‘मगर इतनी अंदर की बात तुम्हें कौन बताएगा ?’
‘मास्टर साहब! जिसको तुम लोग मास्टर साहब कहते हो। तुम्हारे बॉस का चपरासी। उसके
अनुसार उसने यह सब खुद अपने कानों से सुना था।’
‘वो कह रहा है तो मान सकता हूं।’
‘उस पर इतना यकीन है।’
‘उसकी सबसे गंदी आदत है दूसरों की बात सुनना और चुगुलखोरी करना। मगर जो भी बातें
बताता है वह कभी गलत नहीं निकलतीं। बताने का अंदाज मास्टरों सा होता है इसलिए सब मास्टर
साब कहते हैं।’
‘मतलब लतखोरी की बातों में आकर तुम्हारे भाई सामान बॉस ने तुम्हारे साथ गद्दारी
की।’
‘मैं... मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। यकीन नहीं होता मेरे साथ ऐसा विश्वासघात करेंगे।’
‘तुम्हारे यहां के हालात समझने में मैं खुद बहुत उलझ गई। एक नज़र में देखूं तो संजना
ने तुमको यूज किया। मगर यूज हो रही है। लतखोरी फंसा नहीं सका तो बॉस के जाल में फंसवा
दिया। अब वो उसको यूज कर रहे हैं। लतखोरी जिस तरह कुत्ते सा उसके पीछे पड़ा है उससे
यह तय है कि वह और कई अन्य जल्दी ही उसे यूज करेंगे। उसकी हालत गलियों में कुत्तों
के झुंड के बीच फंसी कुतिया सी हो गई है। जिसे हर कुत्ता नोचने में लगा है। कुत्तों
से वह ऐसे घिर गई है कि उसका बचना नामुमकिन है।’
‘यार अब इतना भी नहीं है जितना तुम कह रही हो।’
‘नाराज होने की ज़रूरत नहीं है। जिस मास्टर
की बात पर तुम्हें पूरा भरोसा है न उसी मास्टर की बताई बातों के आधार पर कह रही हूं।’
‘अच्छा और क्या बताया उसने ?’
‘बहुत सी बातें बताई हैं। उसी में एक यह भी है कि लतखोरी और एक और ने मिलकर संजना
की बाथरूम में फ्रेश होने आदि के समय की नेकेड वीडियोग्रॉफी की है।’
‘ये बकवास है वो इतना छोटा सा बाथरूम है कि वहां कौन कैमरा लेकर बैठ सकता है।’
‘यही तो, तुम्हें तो अपने मोबाइल के बारे में ही ठीक से पता नहीं है। वहां पर एक ज़्यादा
जी.बी. वाले मेमोरी कार्ड लगे मोबाइल को नया सिम लगा कर वीडियो रिकॉर्डिंग पर ऑन कर
छिपा दिया। नए सिम का नंबर किसी को दिया नहीं था इसलिए कॉल आ नहीं सकती थी। साइलेंट मोड पर भी था। जानबूझकर सुबह दो घंटे और शाम को
छुट्टी से पहले लगाया गया। क्योंकि महिलाएं सुबह ऑफ़िस पहुंचकर बाथरूम ज़रूर जाती हैं
फ्रेश होने के साथ-साथ अपना मेेकअप और कपड़ा ठीक करने। यही शाम को घर चलने से पहले करती
हैं। ऐसे ही टाइम में संजना और कई अन्य औरतों की रिकॉर्डिंग कर ली गई है।’
‘ये तुमने अच्छा बताया। मैं कल ही पोल खोलकर सालों को ठीक कर दूंगा।’
‘कुछ नहीं होगा। कोई सामने नहीं आएगा। तुम्हारे पास वीडियो क्लिपिंग तो है नहीं।
तो तुम उसे रिकॉर्ड करने वाले का नाम प्रूफ नहीं कर पाओगे। उलटा तुम्हीं अपराधी ठहरा
दिए जाओगे। जब वो सब रिकॉर्डिंग यूज करें, बात खुले तब सामने आओ।’
‘मैंने सोचा भी नहीं था कि ये साले इतने नीचे गिर जाएंगे।’
‘जो कुछ लोगों ने बताया है मुझे उस हिसाब से यह तो नीचता की एक झलक है। तुम्हारे
यहां तो शबीहा, मानसी, श्रृद्धा की ऐसी कहानियां बताई गईं कि लगता
है वहां सेक्सुअली बीमार फ्रस्टेटेड मर्दाें का जमघट है। जो औरतों के लिए नीचता
की कोई भी सीढ़ी चढ़ सकते हैं।’
‘ये दो-चार दिन में ही तुमको सालों साल पुरानी बातें किसने बता दीं।’
‘दो-चार दिन नहीं जब से तुम संजना के दिवाने हुए तभी से लोगों ने फ़ोन करने शुरू
कर दिए थे। वो फ़ोन तो इसलिए करते थे कि ऑफ़िस में आकर तुम्हारी छीछालेदर करूं लेकिन
मैं खुद पर किसी तरह नियंत्रण किए रहती। फ़ोन करने वाले नाम नहीं बताते थे। अविश्वास
करने पर ऐसे-ऐसे प्रमाण देते कि कोई रास्ता न बचता। इस चक्कर में मैं कई बार तुम्हारे
ऑफ़िस तक गई। उसे साथ लेकर तुम्हें जाते हुए भी देखा। इसीलिए घर पर मैं पूरी कड़ाई से
पेश आती।’
‘ये फ़ोन किन नंबरों से आते थे ?’
‘सब पी.सी.ओ. से होते थे। मैं जब भी कॉल बैक करती नंबर पी.सी.ओ. का निकलता। इनमें
एक तो इतना हरामजादा है कि बहुत ही हमदर्द बनकर बात करता। दिनभर में कई बार बात करता।
तबियत कैसी है, कोई दिक़्कत हो तो बताइए मैं आ जाऊं। नीरज जी मेरे बड़े भाई समान है। थोड़ा बहक गए
हैं। भाभी जी क्या करिएगा। कुछ औरतें ऐसी होती हैं कि अच्छे-अच्छे मर्दाें को फंसा
लेती हैं। फिर नीरज जी को क्या कहें। आप जैसी खूबसूरत बीवी घर में है, फिर भी संजना के पीछे पड़े हैं।
अरे! भाभी जी इन
लोगों ने लिमिट क्रॉस कर दी है ऑॅिफ़स हॉवर में ही जाने कहां घंटों बिताकर आ जाते हैं।
भाभी जी आपको यकीन न हो तो जब मैं कहूं तो आ जाइए सब दिखा देता हूं। ऐसी तमाम बातें
सुनती तो मैं अंदर ही अंदर रो पड़ती, खीझ जाती। मगर संभाले रहती खुद को। वह इतनी आत्मीयता से बातें करता कि मेरे मन
में उसके लिए सम्मान उभर आया। उसकी बातों ने एक बार मुझे इतना भावुक कर दिया कि मैंने
रिक्वेस्ट करते हुए कहा,
‘‘भइया किसी तरह उस चुड़ैल से इनको बचाओ।’‘ फिर कुछ बातों के बाद उसने अगले दिन मुझे ऑफ़िस के पास बुलाया। मैं जाने को तैयार
हो गई।’
‘कमीने फ़ोन करते रहे और तुमने मुझे बताया तक नहीं। जिसके पास गई थी वो कौन था उस
हरामजादे का नाम बताओ।’
‘बताती हूं... । मेरी स्थिति का शायद तुम्हें अंदाजा हो गया होगा। तुमने संजना के
साथ जो रिश्ते रखे उससे मुझ पर क्या बीतती है। लोगों के फ़ोन आए चुगुलखोरी के लिए तो
तुम्हें इतना बुरा लगा।’
‘मैंने नाम पूछा कि जब गई तो वहां कौन मिला।’
‘मैं नहीं गई।‘
‘क्यो ?’
‘क्योंकि उसी दिन करीब सात बजे उसका फ़ोन फिर आया। नमक, मिर्च लगा कर बताया कि तुम संजना के साथ ऐश कर रहे हो। मैंने कहा जगह बताइए में
वहीं पहुंच जाऊंगी। तो बोला आप नहीं पहुंच पाएंगी। आप मेरे पास आइए मैं ले चलूँगा आपको। कुछ और बहस के बाद धीरे से हंसते हुए बोला
क्या भाभी जी इतना टेंशन लेकर कोई काम नहीं होता न। थोड़ा प्यार से काम करिए। आप आइए
मैं आपको अपनी बाइक पर बैठा कर ले चलूँगा । उसकी नीचताई पर मैंने सोचा कि आपसे पहले
क्यों न उसी हरामजादे को पकडूं।
यह सोचकर मैंने
कहा ठीक है मैं आपके साथ चलूंगी आप अपना नाम तो बताइए, परिचय दीजिए तो वह धूर्त बोला फलां जगह आप पहुंचिए मैं आपको वहीं मिलूंगा। मैंने
कहा आपको पहचानूंगी कैसे कुछ तो बताइए। मैंने उसको पकड़ने की ठान ली थी इसलिए जानबूझ
कर ऐसे अंदाज में बोली कि उसको ये न लगे कि मैं उसकी हरकतों से नाराज हो रही हूं। लेकिन
इससे उसकी हिम्मत एकदम बढ़ गई।
वह आहें भरते हुए
बोला अरे! भाभी जी आप डर क्यों रही हैं आप जैसी सेक्सी भाभी का मैं सेक्सी देवर हूं।
आपको पूरा एंज्वायमेंट दूंगा फिर आपको पति देव के पास ले चलूंगा। मैं गुस्से से अपना
आपा खोने ही जा रही थी कि बिना रुके ही वह आगे बोल पड़ा अरे! भाभी जी आपकी कर्वी बॉडी
का असली कद्रदान तो मैं ही हूं आइए में आपको पूरा... इसके आगे मैं चिल्ला पड़ी। जीभरकर
गाली देते हुए कहा जा अपनी बहनों का कर्वी बदन देख। इस पर उसने तुरंत फ़ोन काट दिया।
मैंने तुरंत कॉल
बैक किया लेेकिन पहले ही की तरह पी.सी.ओ. का ही नंबर मिला। मैंने पी.सी.ओ. वाले से
बाइक का नंबर देखकर बताने को कहा तो उसने टालमटोल कर फ़ोन काट दिया। इससे मैं इतना आहत
हुई कि बहुत देर तक रोती रही। कि दुनिया में कैसे-कैसे नीच लोग हैं। पति को दूसरी औरत
के साथ देखा तो पत्नी को भी चरित्रहीन समझकर उसी के पीछे पड़ गए। उसको सड़कछाप, चरित्रहीन औरत समझ लिया।
‘तुम उसकी आवाज़ पहचान सकती हो।’
‘किसकी-किसकी पहचान करोगे। कई करते थे। एक-दो को छोड़कर बाकी सब कुत्तों की तरह लार
टपकाते कुछ न कुछ बोल ही देते थे।’
‘तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया। खैर एक न एक दिन पता करके ही रहूंगा। सालों
को छोड़ूंगा नहीं।’
‘पहले अपनी नौकरी ठीक करो फिर निपटना इन सबसे। तुम अगर नहीं भी निपटोगे इन सबसे
तो भी मैं छोड़ने वाली नहीं। मैंने भाई से बात कर रखी है। खासतौर से लतखोरी के लिए क्योंकि
सारे फसाद की जड़ वही है।’
नीला को इसके बाद
मैं इस श्रेणी में आने वाले लोगों के बारे में विस्तार से बताता रहा। खासतौर से लतखोरी
के बारे में कि वो औरतों को फंसाने के लिए कैसे पहले उनकी मदद करता है। घर छोड़ने, सामान खरीदने से लेकर ज़रूरत पड़े तो चप्पल पहनाने तक। इसके बाद धीरे से काम के बहाने
घूमाने निकलता है फिर असली रूप में सामने आता है। शबीहा के साथ उसने यही किया था। उसका
आदमी शराब का लती था। टी.बी. हो गई थी। डॉक्टरों ने कहा तुम्हारे लिए जहर है छूना भी
नहीं लेकिन वह नहीं माना फिर एक दिन सोया तो कभी न उठा।
फिर एक लंबी थकाऊ
प्रक्रिया के बाद उसकी बेगम शबीहा को नौकरी मिली। डिस्पैच का काम देखने में अनजान थी
तो मददगार बड़े पैदा हो गए। सबसे आगे लतीफ था। जो अपने कर्मों के कारण लतखोरी नाम लिए
घूमता है। इसकी बहुत सी हरकतें एक अनाम से साहित्यकार जी.सी. श्रीवास्तव की एक किताब
के करेक्टर से मिलती-जुलती हैं। उसका नाम लतखोरी ही था किताब में, बस सबने उसे ही यह नाम दे दिया। उसने शबीहा का हर काम बडे़े मनोयोग से करके सबसे
पहले उसे अपने वश में किया था। फिर उसके कान भर-भर के उसने पहले उसे सास-ससुर, देवर से अलग कर अलग मकान तक दिला दिया।
अलग कुछ इस तरह
किया कि किसी से बात तक न करे। इसके लिए उसे ऐसा भरा कि वह सब को दुश्मन मानती। अचानक
एक दिन लंच के बाद ही शबीहा के रोने की आवाज़ और साथ ही अनगिनत गालियां सुनाई देने लगी।
लोग पहुंचे तो पता चला लतखोरी कई चप्पल खा चुका। शबीहा ने सारी पोल खोल दी सबके सामने
कि कैसे यह जबरदस्ती घर पहुंच जाता है। पिछले कई महीने से शारीरिक संबंध के लिए तरह-तरह
से नाकेबंदी कर विवश कर रहा है। आए दिन अश्लील फोटो, मोबाइल पर ब्लू फिल्में
दिखाता रहता है। इसके चक्कर में वह घर वालों से लड़ गई अब न घर की रही न घाट की। दस
साल के बेटे के साथ कैसे चलाए ज़िंदगी।
इस घटना को कई कारणों
से दबा दिया गया। किसी नेता ने फ़ोन करे थे। अल्पसंख्यकों के बीच शहर में उसकी बड़ी पकड़
थी। मगर साजिशें बंद न हुईं। महीना भर भी न हुआ कि एक दूसरे मामले में शबीहा को फंसा
दिया गया। जांच के बाद डिमोट कर दी गई इसके बाद भी लतीफ जैसे लोग उसे नोचने में लगे
रहे।
फिर एक दिन पता
चला कि वह अपने एक चचाजात भाई के साथ हैदराबाद भाग गई। निकाह उसने कई महीने पहले ही
कर लिया था। उसके साथ उसे एक-दो बार देखा गया था। जब वह बाइक पर छोड़ने आया था। ऐसी
स्थिति मानसी, श्रद्धा के साथ भी आई थी। दोनों पति के न रहने पर नौकरी करने आयी थीं। भाई लोग
उन दोनों पर भी पिल पड़े थे। लेकिन उनके घर वाले भारी पड़े। लोगों को लेने के देने पड़े
तो उनसे किनारा कर लिया। वह दोनों आज भी पूरी हनक शान से कार्यरत हैं।
मैं ऑफ़िस की ऐसी
ही तमाम घटनाओं में डूबता-उतराता सारी रात जागता रहा। और नीला में लंबे समय बाद एकदम
से उभर आई हनक और उसकी शान भी देखता रहा। इस लंबी बात के बाद उसने मानो बरसों से ढो
रहे किसी बोझ को उतार फेंका था। विजयी भाव उसके चेहरे पर तारी था। अपनी विजय का उसने
जश्न भी अपनी तरह खूब मनाया था।
बच्चों के न होने
का भरपूर फायदा उठा लेने में कोई कोर कसर उसने नहीं छोड़ी थी। बरस भर की अपनी प्यास
उसने जीभर के बुझाई,। बेसुद्ध पड़ी थी। उस दिन नीला इस कदर निश्चिंत और बेधड़क थी कि हमेशा की तरह नाइट
लैंप ऑफ करने पर जोर देने की बात तो दूर उसने ट्यूब लाइट जलाए रखी। ये नहीं कहा कि
अरे! घर में बच्चे हैं जल्दी पहनने दो कपड़े। आज उसके कपड़े किनारे ही पड़े थे। मेरी नज़र
उसकी आंखों पर गई जिसके गिर्द अब काले घेरे साफ दिख रहे थे। जिसके लिए मैं ज़िम्मेदार
था। मैं खुद तो मस्त था संजना और नैंशी जैसी औरतों के साथ और नीला रोती थी, जागती थी। अंदर ही अंदर घुलती थी। इस घुलन ने आंखों के गिर्द स्याह धब्बों के रूप
में अपने परिणाम छोड़ दिए थे और मैं अंधा आज तब उसको देख रहा था जब उन बाजारू औरतों
द्वारा दुत्कारा जा चुका था।
अब मुझे नीला फिर
पहले की तरह दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला लग रही थी। सबसे प्यारी। उसने जो तकलीफें
झेलीं उसको सोचते-सोचते मेरी आंखें भर आईं। मैं एकटक ट्यूब लाईट की दूधिया रोशनी में
उसके तन को मंत्र मुग्ध सा देखता रहा। उसे देख ऐसा लग रहा था कि मानो कोई मुर्तिकार
अपनी कला को चरमोत्कर्ष देने के लिए अपनी स्वप्निल योजना पर काम कर रहा है। और उसकी
मॉडल सौंदर्य देवी उसे सहयोग के लिए अपना योगदान मॉडल बनकर कर रही है। वह अपने अछूते
सौंदर्य को समर्पित कर निश्चिंत पड़ी है। कि मुर्तिकार अपना कार्य सौंदर्य देवी की प्रतिमा
खूबसूरती से बना सके। मैं सौंदर्य देवी को देखते-देखते कब ठीक उसके चेहरे के ऊपर था
पता नहीं चला। अचानक नीला ने चिहंुक कर आंखें खोल दीं। फिर जल्दी-जल्दी कई बार पलकें
झपकाते हुए हाथ से अपने गालों को छुआ और उठ बैठी। दोनों हथेलियों में मेरा चेहरा लेते
हुए बोली,
‘ये क्या! तुम रो रहे हो? हिम्मत से काम लो। मैंने कहा न सब ठीक हो
जाएगा। कुछ होने वाला नहीं। पहले कभी तुम इतने कमजोर नहीं दिखे।’
उस वक़्त नीला मुझे
अक्षतयौवना सी दिखी। न जाने तब उसका कैसा सम्मोहन था मुझपे कि वह मुझे धरा पर ईश्वर
द्वारा भेजी ऐसी सौंदर्य प्रतिमा लगी जिसे ईश्वर शायद वस्त्र पहनाना भूल गया था। क्योंकि
वह अपनी ही बनाई कृति के सौंदर्य में खुद ही सुध-बुध खो बैठा। और मैंने उस ईश्वर की
अनुपम कृति पर कई बूंद आंसू टपका दिए थे जिसने उसमें प्राण डाल दिए थे। जीवित हो उठी
वह प्रतिमा अब मुझे सांत्वना दे रही थी। समझा-बुझा रही थी फिर अपनी बांहो में समेट
लिया। मेरे सब्र की सारी सीमा तब टूट गई और मैं फूटकर रो पड़ा था। वह कुछ न बोली। बांहों
में लिए-लिए ही लेट गई। फिर उसने मुझेे कुछ न सोचने दिया। सुबह दोनों ही तब उठे जब
मोबाइल पर घंटी बजी। बेटी ने मां को फ़ोन किया था।
ऑफ़िस में दिन भर
मैं असाधारण रूप से शांत रहा। संजना दिमाग में ऐसी छायी रही कि निकल ही न सकी। उसके
साथ बिताए एक-एक पल याद करता फिर उसको कई भद्दी गालियां देता। कुछ बातें ऐसी थीं जिनके
मतलब मैं अब समझ पा रहा था। लतखोरी से उसकी जुगलबंदी, बॉस की कुछ ज़्यादा ही तारीफ। जबकि पहले उसी बॉस को गाली देती थी।
जिस-जिस दिन उसने
मुझसे जो-जो कहा था वह अब ऐसे याद आ रहे थे कि लगता है जैसे आंखों के सामने मानो उन्हीं
बातों पर केंद्रित फ़िल्म चल रही हो। मैं तब भी उसकी धूर्तता पकड़ नहीं सका जब वह घटना
से दो-तीन महीने पहले से मुझसे बेरूखी दिखाने लगी थी। बुलाने पर भी नहीं सुनती थी।
तब कुछ लोगों ने संकेतों में कहा भी था कि यह बड़ी धूर्त है, मतलब परस्त है, अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकती है। संभल कर रहो। यह सब काम से मतलब रखने वाले
लोग थे। अपने पति की जगह चपरासी की नौकरी करने वाली जीवन के करीब पांच दशक जी चुकी
ननकई ने तो एक दिन अपने ठेठ अंदाज में कहा था,
‘साहब बुरा न मानो तो एक बात कही ?’
‘कहो।’
‘आप पढे़-लिखे हो, सब जानत हो। मुला हमहू पचास बरीस से दुनिया द्याखित है। हमरे हिआं ऐसी मेहुरूआ
का नगिनया ब्वालत हैं। जेहिका डसा पानिऊ न मांगै।’
‘तुम किसकी बात कर रही हो ?’
‘अब साहब रिसियाओ न, सिजनवा कंहिआ सबै ऐइसे कहत हैं। जब आप रहत हों तौ आपसे बाझि रहत है नाहिं तो अऊर
कई जन हैं उन्हसे बाझि रहत है। कइओ जने कै साथ तौ ऑफ़िसिया के बाद हीआं हुआं घूमा करत
है। अबहिं पाछै महिनवा मा तौ यहू जानि पड़ा कि इ तोमर साहब कै साथ कहूं घूमत रहै तौ
हुवैं उन क्यार बीवी पहुंच गई जिहिसे ऊबोलिन रहे घरै मां कि ऑफ़िस मां काम बहुत हवैं
तो आय न पहिएं।’
‘अच्छा ठीक है। तुम जाओ।’
तब ननकई ने और कई
बातें कहीं थी वह विस्तार से बताना चाहती थी। लेकिन मैं उस वक़्त उसकी बातें बर्दाश्त
नहीं कर पा रहा था। और उसे भगा दिया था। हालांकि उसने जो बताया था, प्रमाण सहित बताया था,
मगर तब संजना इफेक्ट ने मेरा दिमाग शून्य कर दिया था। सच पर
भी मैं गुस्सा हुआ था। मैंने उसके जाते ही संजना को बुलाया वह पहले की तरह हंसते हुए
आ गई। मैंने केवल उसे चेक करने के लिए शाम को घूमने का प्रोग्राम मन न होते हुए भी
बनाया वह एक पल देर किए बिना तैयार हो गई। मुझे ननकई पर तब और गुस्सा आया मगर कुछ सोचकर
शांत हो गया। इस घटना के कुछ हफ्ते बाद मुझे कई चीजें ऐसी मिलीं जो बड़ी अजीब थीं। एक दिन उसने किसी पत्रिका
में रेप और उससे संबंधित कानून, जांच आदि पर केंद्रित एक रिपोर्ट दिखाते
हुए पूछा,
‘ये टी.एफ.टी. टेस्ट क्या होता है?’
मैंने कहा मुझे
नहीं मालूम तो रिपोर्ट के साथ छपे एक बॉक्स को खोलकर सामने करते हुए कहा,
‘यह पढ़ो।’
मैंने पढ़ कर कहा,
‘यह तो बड़ा भयानक है। मेरी नज़र में तो यह जिसके साथ रेप हुआ उसी के साथ कानून के
द्वारा किया जाने वाला एक और रेप है। मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि अंग्रजों के जमाने
के इस अमानवीय कानून को अभी तक हमारी सरकार अमल में क्यों ला रही है।’
‘ला तो रही है लेकिन एक और रेप जैसा क्यों है ?’
‘क्या बेवकूफी भरा प्रश्न है। ये अत्याचार नहीं तो और क्या है। औरत के एक्स्ट्रीम
सीक्रेट पार्ट पर पहले तो अपराधी धावा बोलता है। फिर जांच के लिए महिला के उसी हिस्से
पर जांच करने वाली या वाले की दो अंगुलियां प्रवेश करती हैं। यानी टू फिंगर टेस्ट।
इस पर मुर्खतापूर्ण तर्क यह कि यदि फिंगर ईजली इंसर्ट कर गई तो मतलब महिला हैविचुअल
मानी जाएगी, अपराधी के छूटने के रास्ते खुल जाते हैं। अरे! किसी की शारीरिक बनावट भी तो ऐसी
हो सकती है या फिर चेक करने वाले की अंगुलियां पतली भी तो हो सकती हैं। यह अवैज्ञानिक
मूर्खतापूर्ण तरीका है कि नहीं। शारीरिक चोट, अपमान हर चीज औरत के हिस्से में। फिर
कोर्ट में वकील ऐसे अश्लील,
जलील बातें पूछता है कि पीड़ित महिला थक हार के पस्त हो जाती
है। और मूंछों पर ताव देकर अपराधी फिर निकल पड़ता है अगले शिकार पर। ये तुमको एक और
रेप जैसा नहीं लगता। मुझे लगता है एक औरत के नाते ऐसी औरतों की पीड़ा दर्द,
मुझसे बेहतर तुम समझ सकती हो।’
‘अ....हां... औरतों की पीड़ा का जिक्र इतनी खूबसूरती कर रहे हो कि औरतें खुद भी न
कर पाएं। मगर जनाब की यह कोमल हृदयता तब तो मुझे कहीं नहीं दिखती जब जनाबे आली मेरी
एल.ओ.सी. पर घुसपैठ करते हैं।’
‘ओफ्फो तुम्हें इसके अलावा भी कुछ सूझता है क्या?’
‘हां सूझता क्यों नहीं,
मगर तुम्हारे सामने बस यही सूझता है तो मैं क्या करूं।’
इतना ही नहीं इसके
बाद भी टी.एफ.टी. को लेकर वह बड़ी देर तक निरर्थक फालतू बातें करती रही। वकील क्या-क्या
पूछते हैं यह कुरेद-कुरेदकर पूछा। इसके बाद उसको लेकर मेरा तनाव धीरे-धीरे बढ़ता गया।
और वह उतनी ही तेजी से मुझसे दूर होती गई। मेरे भरसक प्रयासों के बावजूद।
मेरा सस्पेंशन और
उसका कंफर्मेंशन रुकना अपने आप में इस ऑफ़िस की पहली घटना थी। और उससे भी ज़्यादा यह
कि मेरा सस्पेंशन चौथे दिन न सिर्फ़ खत्म हो गया बल्कि पांचवें दिन ही संस्पेंड करने
वाले बॉस ने ही बुला कर प्रमोशन लेटर भी थमा दिया। इस आर्श्चयजनक घटना पर खुशी व्यक्त
करने वालों में लतखोरी लाल सबसे आगे था। उसके दोगलेपन पर मैं भीतर-भीतर कुढ़ा जा रहा
था। मगर साथ ही मन में नीला के भाई को धन्यवाद भी देता जा रहा था। पक्षताता हूं आज
इस बात पर कि तब मैंने अपनी झूठी शान, अकड़ दंभ के चलते उसको एक फ़ोन तक नहीं किया।
इस घटना के अगले
ही दिन यह रियुमर दिन भर उड़ी कि संजना की नौकरी जा रही है। एक बात और कि लतखोरी लाल
तक ने मुझे बधाई दी लेकिन संजना भूलकर भी न आई। अचानक एक दिन उसे मैंने लतखोरी के साथ
बॉस के घर के सामने देखा। मैं वहां रुका रहा, फिर आधे घंटे बाद लतखोरी को वहां से
जाते देखा। संजना उसके साथ नहीं थी। मेरा माथा ठनका मैं रुका रहा। देर तक जब वह न आई
तो भीतर ही भीतर जलता-भुनता घर चला आया। इधर नीला पहले से कहीं ज़्यादा मुझ पर ध्यान
दे रही थी और बच्चे तो मानो दसियों साल बाद मिले हों मुझ से। अब मैं भी पहले सा नीलामय
होता जा रहा था। यह नीला इफेक्ट था।
बॉस के घर जिस दिन
संजना मुझे दिखी थी, उसके हफ्ते भर बाद एक दिन गेट पर उससे आमना-सामना हो गया। मुझे आश्चर्य में डालते
हुए वह एकदम हहा के मिली। मुझे बोलने का मौका दिए बिना न जाने क्या-क्या बोल गई। आखिर
में बेलौस मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली,
‘मैं जानती हूं कि तुम बहुत गुस्सा हो। लेकिन मैं बहुत मुशीबत में हूं। तुमसे मैं
किसी दिन फुरसत में सारी बातें करूंगी।’
इसके बाद सैटर डे
को शाम को कहीं बैठ कर बात करना तय हो गया। मैं उसके समक्ष जैसे चेतना शून्य हो गया
था। रिमोट चालित खिलौना सा। जिसका रिमोट उसके हाथ में था। यह मैं लाख न चाहते हुए भी
तमाम कोशिशों के बावजूद कर बैठा था। पुनः नीलामय होने के बावजूद। बदलकर फिर संजनामय
हो गया। फिर पहले की तरह सारे संबंध बहाल हो गए। और फिर यंत्रवत सा उस रक्षाबंधन के
दिन तय समय पर हम मिले वह अपने भाई को राखी बांध कर आई थी। और मैं अपनी बहन से राखी
बंधवा कर आया था।
उसके ही बताए शहर
के अलग-थलग से एरिया में स्थित एक रेस्त्रां में, घंटे भर की बातचीत में
उसने दुनियाभर की पंचायत बता डाली। दसियों बार माफी मांगी। कहा धोखे से लोगों ने गलतफहमी
पैदा की। मैंने झूठ पकड़ लिया है, मतलब समझ गई हूं। मैं फिर पहले जैसे संबंध
रखूंगी।
इस बार फर्क सिर्फ़
इतना रहा कि नीला से मैं विमुख न होने पाऊं इसका पूरा ध्यान रखा। पूरी कोशिशों के बावजूद
इसमें मैं पूर्णतः सफल नहीं था। असफल मैं लतखोरी और बॉस की साजिश के सामने भी हुआ।
नीला का भाई भी चारो खाने चित हो गया। सच केवल ननकई निकली। उसकी सारी बातें अक्षरशः
सच साबित र्हुइं। संजना एंड कंपनी ने जो डसा तो मैं वाकई आज तक पानी न मांग सका। उसके
साथ अंतरंग क्षण बिताने उसकी ही बताई जगह लखनऊ के प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट कुकरैल के
पास पहुँच गया। वह मकान वन विभाग की जमीन पर बने अवैध निर्माणों में था। जिसके लिए
संजना ने बताया कि यह उसके एक रिश्तेदार का है जिसे उसने किराए पर लिया है। अगले बृहस्पति
को यहां शिफ्ट करेगी। दो घंटे वहां बिताने के बाद हम दोनों वहां से निकले। करीब पचास
कदम चलने पर ही संजना ने रोक दिया। उसने धीरे से कहा आगे देखो लतखोरी खड़ा है। मैंने
देखा लतखोरी दो और लोगों के साथ खड़ा हैं। मैंने कहा क्या फ़र्क पड़ता है चलते हैं। मगर
वह नहीं मानी और मैं कुछ कहूं उसके पहले ही बाइक से उतरकर चली गई वापस। जाते-जाते फुसफुसाकर
बोली कल मिलूंगी।
मैं खुशी के मारे
अंदर-अंदर फूलता पिचकता घर आ गया। थोड़ा वक़्त बच्चों के साथ बिताया। खाया-पिया बेडरूम
में आ गया। नीला ने बताया जब मैं अपने बहनोई के यहां गया था तब उसका भाई अपनी पत्नी
संग आया था। मैंने छूटते ही कहा,
‘अहसान जताने आया होगा।’
वह बिदकते हुई बोली,
‘हमेशा उल्टा ही क्यों बोलते हो। उन दोनों ने इस बारे में बात तक नहीं की।’
इसके बाद हम इधर-उधर
की बातें करते हुए सोने की तैयारी में थे। नींद आने लगी थी। बारह बजने ही वाले थे कि
कॉल बेल बज उठी। हम दोनों चौंके इतनी रात में कौन आ गया। नीला बिन बताए आने वाले मेहमान
की बात सोचकर भनभना उठी कि इतनी रात को खाना-पीना करना पडे़गा। अब दो बजे के पहले सोना
मुश्किल है। मैंने कपड़े पहने और हाथ में मोबाइल लेकर बाहर निकला। बाहर पुलिस जीप और
गेट पर तीन-चार पुलिस वाले देखकर मैं एकदम सकपका गया। अंदर ही अंदर तेज़ी से कैलकुलेशन
चलने लगी। गेट पर पहुंचकर मैं कुछ पूछता कि इसके पहले ही इंसपेक्टर ने पूछा,
‘आप ही नीरज हैं?’
मेरे हां कहते ही
वह कड़क स्वर में बोला,
‘आपके खिलाफ रेप करने की एफ.आई.आर. है। थाने चलिए।’
मुझे यह सुनते ही
ऐसा शॉक लगा कि पल में पसीने से तरबतर हो गया। गला एकदम सूख गया आवाज़ नहीं निकल रही
थी। इस पर इंस्पेक्टर ने गेट का ताला तुरंत खोलने को कहा। मैं घिघियाया हुआ कुछ कहना
चाह रहा था। लेकिन वह कड़क बोला,
‘ताला खोलो।’
मुझे अंदर भाग कर
नीला को बताने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी वह पहले ही सब सुनकर भाई को फ़ोन लगा चुकी थी। भाई
ने इंस्पेक्टर से बात कराने को कहा तो उसने बहुत घुड़कियां देते हुए मुश्किल से बात
की, ‘थाने तो लेकर जाना ही पड़ेगा। रेप का मामला है उसे मारने की कोशिश भी की गई है चोट
के निशान हैं उसकी बॉडी पर। सॉरी यह नहीं हो सकता मैं इन्हें ले जा रहा हूं।’
नीला रोने लगी।
वह हक्का-बक्का कभी मुझे तो कभी पुलिस को देखती, शोर सुनकर बच्चे भी जागकर
बाहर आए और घबरा गए। साले के फ़ोन का फ़र्क यह हुआ कि मुझे कपड़े चेंज करने का वक़्त दे दिया गया। लेकिन जीप में मुझे
खींचतान कर धकेलते हुए ऐसे ठूंसा की मानों मैं कोई हत्यारा हूं। मेरे मन में इस समय
साले को भी लेकर उधेड़बुन चल रही थी। जिसे मैं अब तक टप्पेबाज, छुट्भैया नेता समझता था उसके प्रति अब नजरिया बदल गया था। पहले नौकरी को लेकर उसने
जो किया फिर अब उसके फ़ोन से पुलिस टीम जिस तरह से नरम पड़ी उससे मेरे मन में उसके लिए
सम्मान पैदा हो गया। वह भावनात्मक भाव तब एकदम सातवें आसमान पर पहुँच गया जब मैंने देखा वह अपने दर्जन भर साथियों के
साथ थाने पर मुझसे पहले ही पहुंच कर बैठा हुआ है। एक तरफ कोने में संजना बैठी थी। उसके
कपड़े अजीब से मुड़े-तुड़े खीचें ताने हुए अस्त-व्यस्त से लग रहे थे। चेहरे पर एक जगह
स्याह धब्बा भी दिख रहा था। साले के कारण मुझे भी कुर्सी पर बैठने दिया गया।
इंस्पेक्टर के सामने
संजना सुबुकते हुए बोली,
‘सर यही है जिन्होंने मेरे साथ रेप किया।’
उसके इस आरोप को
सुनकर मैं आवाक रह गया। मेरा मुंह खुला का खुला रह। कोई बोल न निकल सके। उसने आरोप
लगाया कि मैं उसे धोखे से ले गया और नशीली कोल्ड-डिंªक पिलाकर मैंने रेप किया। मैंने हक्का-बक्का उसके आरोप को इंकार करते हुए और सिलसिलेवार
उसके साथ सारे संबंधों के बारे में खुलकर बताया और यह भी कि आज यह मुझे इंकार करने
के बाद जबरदस्ती लेकर वहां गई थी।
इंस्पेक्टर बोला
यह तो इन सब से इंकार कर रही हैं। इसी बीच यह देखकर मैं हैरान रह गया कि लतखोरी लाल
दो मोटर साइकिल पर चार लोगों के साथ आ धमका। आंखें मेरी खुली की खुली रह गईं जब बॉस
को कार से उतरते देखा तो मैंने सोचा शायद यह मामले को रफा-दफा कराने के लिए आए होंगे
जिससे ऑफ़िस की बदनामी न हो। लेकिन उन्होंने भी उसकी एकतरफा तारीफ करते हुए यहां तक
कह डाला कि मैं संजना को महीनों से परेशान कर रहा हूँ उसके पीछे पड़ा हुआ था और मौका
देखते ही मैंने रेप किया।
उसके इस झूठ पर
मैं चीख पड़ा तो इंस्पेक्टर ने मुझे डपट दिया। मैंने साले की तरफ देखा तो उसने बातें
शुरू कीं लेकिन तभी इंस्पेक्टर के लिए कोई फ़ोन आ गया। दो मिनट तक उसने बातें कीं लेकिन
इतनी देर में उसने सिर्फ चौदह-पंद्रह बार यस सर, यस सर ही कहा। रिसीवर रखते
ही मुझे हवालात में डलवा दिया। साले ने विरोध किया तो उसकी भी एक न सुनी। साफ कहा ‘देखिए मैं मज़बूर हूं। कानून जो कहेगा
वही होगा। ये अपराधी हैं या नहीं ये अदालत तय करेगी।‘ साले ने कई फ़ोन लगाए लेकिन बात नहीं बनी।
बात एकदम साफ थी
कि लतखोरी और बॉस ने जबरदस्त साजिश रची थी। इतना बड़ा जैक लगाया कि उसके सामने मेरे
साले का वह जैक बौना साबित हुआ था जिसके जरिए उसने मेरा सस्पेंशन खत्म करा दिया था, प्रमोशन तक करा दिया था। बॉस को मेरे कदमों में खड़़ा कर दिया था। मैं हवालात में
पड़ा, सोचने लगा कि क्या अब मेरे साले से कंपनी को कोई काम नहीं पड़ेगा। या कंपनी ने उसका
कोई विकल्प ढूंढ़ लिया है।
मेरा ये अनुमान
बाद के दिनों में सच निकला था। कंपनी के मालिकान ने साले की सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती
जा रही कमीशन खोरी से आज़िज आकर उससे बड़ा जैक ढूढ़ लिया था। संयोग से उन्हें यह जैक सस्पेंशन
की घटना के बाद जल्दी ही मिल गया था जिसका उन्होंने तुरंत उपयोग कर डाला। एक तीर से
दो निशाने साधे एक तो साले से मुक्ति पाई दूसरे मुझे ठिकाने लगा दिया। इसमें मशीन बने
बॉस, लतखोरी लाल एवं उनकी टीम। मालिकान एवं इस टीम दोनों ने एक दूसरे को यूज किया। बल्कि
इन सबमें सबसे स्मार्ट निकली संजना। जिसकी नौकरी जा रही थी उसने इन सब को यूज किया।
न सिर्फ़ नौकरी बचाई मुझे सदैव के लिए ठिकाने लगा दिया। बॉस और लतखोरी जैसे लोगों को
भी हमेशा के लिए अपनी मुठ्ठी में कर लिया।
हवालात में मैं
बच्चों, नीला के चेहरे, मालिकान और बाकियों की गणित, साले के हश्र आदि के बारे में सोच-सोचकर
हतप्रभ हो रहा था। दिमाग की नशें फटने लगीं थीं। मुझे कानून की जितनी जानकारी थी उससे
भी मुझे साफ पता था कि मुझे अब अदालत में सजा पाने से कोई ताकत नहीं बचा सकती। क्योंकि
एफ.आई.आर. से पहले मैंने ही उससे संबंध बनाए थे। साजिशन यह सब किया गया था। इसलिए गलती
की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी। निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। बस एक बात
मेरी समझ में नहीं आई कि संजना के शरीर पर चोटें
कहां से आईं थीं।
खैर मुकदमा चला।
दोनों पक्षों के वकीलों की जमकर बहस हुई। मेरे साले ने ऐसे मामलों के नामी-गिरामी वकील
को किया था। जिनका इस बात के लिए नाम था, कि वह मुकदमा हारते नहीं लेकिन मेरे
मामले में वह भी असफल हुए। उन्होंने कोर्ट में संजना से एक से बढ़कर एक हिला देने वाले
प्रश्न किए मगर संजना मंजी हुई खिलाड़ी निकली। उसके वकील ने उसेे और पॉलिश कर दिया था।
वकील ने डिगाने उसे तोड़ने के लिए जितने ही ज़्यादा खुलकर प्रश्न किए उसने उतने ही ज़्यादा
बेखौफ जवाब दिया। उसकी हिम्मत उसकी बातें सुनकर जज, वकील कोर्ट, उपस्थित सारे लोग दंग रह जाते थे। केस लोअर कोर्ट में हारने के बाद हाई कोर्ट,
सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन हर जगह हार मिली।
पेपर वालों ने केस को खूब स्पाइसी न्यूज़ की तरह यूज किया।
मेरे वकील की सारी
कोशिशों का अंजाम यह हुआ कि केश कुछ लंबा खिंचा। छः साल में सुप्रीम कोर्ट से भी फैसला
आ गया। मैं मुकदमा हार गया। रेप करने और हत्या के प्रयास में दस साल की सजा हुई। मेरा
जीवन मेरा घर सब बर्बाद हो गया। आर्थिक, सामाजिक, मानसिक तौर से कहीं का नहीं रहा। बेटी की शादी के लिए जो पैसे जोडे़ थे वह भी खत्म
हो गए थे। मैं भी पूरी तरह टूट कर बिखर गया था।
कुछ बचा था तो नीला
की दृढ़ता। उससे संबंध सुधरने के बावजूद फिर संबंध बनाए संजना से इतनी बड़ी बदनामी हुई
सब कुछ तहस-नहस हो गया। और नीला ने अपने भाई के सहयोग से यह शहर भी छोड़ दिया। मायके
भी नहीं गई। तीर्थ राज प्रयाग चली गई। कई लोगों की सलाह के बावजूद उसने टीचिंग जॉब
या अन्य कोई नौकरी नहीं की।
बल्कि भाई के साथ
बिजनेस किया। सारा पैसा साले ने लगाया था। असल में उसने भी कमाई का अपना एक और केंद्र बनाया था। पूरा डिपार्टमेंटल स्टोर चलाने की ज़िम्मेदारी
नीला की थी। क्यों कि पैसा सारा साले का था तो दुकान से होने वाले प्रॉफ़िट पर पिचहत्तर
प्रतिशत हिस्सा उसका निश्चित हुआ। कोई अपनी मेहनत से सारी दुनिया न सही अपनी दुनिया
कैसे बदल देता है यह नीला ने कर दिखाया था। दो साल बीतते-बीतते उसने लखनऊ का मकान बेच
दिया। मेरे लाख मना करने पर भी जेल में उसने मुझ पर खूब दबाव डालकर मुझे राजी कर लिया।
जितना पैसा मिला उतने ही पैसे में प्रयाग में ही थोड़ा सा छोटा मकान ले लिया। किराए
का मकान छोड़कर अपने मकान में रहने से पहले उसने सारा सामान कामभर का नया लिया। किचेन, ड्रॉइंगरूम, डाइनिंगरूम आदि के लिए,
टी.वी., म्यूजिक सिस्टम आदि सब। पहले वाला उसने सारा
सामान लखनऊ में ही बेच डाला। उसमें बहुत सा ऐसा सामान था जो मैंने बड़े प्यार से खरीदा
था।
इसे पागलपन या नफरत
की पराकाष्ठा भी कह सकते हैं कि उसने मेरे, अपने, बच्चों के कपड़े, रुमाल तक या तो किसी को दे दिए या बेच दिए। इसमें हमारी शादी का जोड़ा भी था। उसकी
तमाम बेसकीमती साड़ियां सब कुछ शामिल था। गहने भी सब बेच दिए थे। यह सब करने के बाद
जब वह मुझसे मिलने आयी तब सारा वाक़या बताया तो मैंने अपना माथा पीट लिया। ये तुम मुझे
सजा दे रही हो या कर क्या रही हो? उसने बेहद रूखे स्वर में जो जवाब दिया उसके
आगे जो बात जोड़ी उससे मैं दहल गया। उसके अंदर दहकते ज्वालामुखी से मैं भीतर तक झुलस
गया। उसने साफ कहा,
‘न्यूटन का थर्ड लॉ तो पढ़ा ही है न कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। यह सब जो हो रहा है यह मैं या कोई और नहीं कर रहा
है। यह तुमने जो काम किए हैं वो अच्छे थे या खराब वो तुम जानो ये सब उन्हीं करमों के
प्रतिक्रिया के परिणाम हैं।’
‘मैं कितनी बार कह चुका हूं कि मैंने रेप नहीं किया है।’
‘रेप नहीं किया लेकिन उससे नाजायज संबंध तो बनाए ना। गलत काम का परिणाम कैसे गलत
नहीं होगा।’
नीला के सामने अब
मैं पहले की तरह उससे नजर मिला कर बात नहीं करता था। चुप हो गया उसके तर्कों के सामने।
उसने कहा कि ‘तमाम कोशिशों के बावजूद तुमने कमीनी औरत से संबंध बनाए। मुझ से झगड़ा करते हुए मुझे
क्या-क्या गालियां नहीं देते थे। मोटी, थुल-थुल, बदसूरत, पत्नी कहलाने लायक नहीं। कभी तुम्हारे दिमाग मंे ये नहीं आता था कि यदि पलटकर मैं
यही कहती। तुम्हारी तरह मैं भी पराए पुरुषों से संबंध बनाती। मैं भी कहती कि यदि मैं
दो बच्चों को पैदाकर थुल-थुल हो गई हूं, मेरे अंग लुज-लुजे हो गए हैं, लटक गए हैं तो तुम कौन सा पचीस साल के जोशीले जवान हो, तुम भी तो तोंदियल हो गए हो। सिर पर चांद नज़र आने लगा है, प्रौढ़ता तुम पर भी उतनी ही हावी है जितनी मुझ पर तो तुम्हारे पर क्या बीतती।’
मैं उसकी बातों
के सामने सिर्फ़ सिर झुका सका। ‘बोलो कोई जवाब है तुम्हारे पास। मैं आज की
प्रगतिशील अपने, अधिकारों के लिए लड़ जाने वाली बीवी होती तो क्या अब तक न जाने कब का तुमसे तलाक
ले चुकी होती। तब बच्चों का क्या होता।’
इस पर मैंने कहा
कि
‘तुम यहां मुझे जलील करने आती हो या मिलने?’
‘आती तो हूं मिलने। जहां तक जलील होने की बात है तो जरा ध्यान से सोचो कौन जलील
होता है। वो पत्नी जो अपने उस पति से मिलने आती है जो रेप के केस में सजा काट रहा है।
यहां का स्टाफ और बाकी लोग किस तरह घूर-घूरकर मुझे भेद भरी निगाहों से देखते हैं कभी
इस तरफ देखा। मैं अपने पर लगी गिद्ध सी नज़रों से कैसे खुद को बचाती हूं सोचा है कभी।’
नीला सही तो कह
रही थी कि वास्तव में जलील तो वही हो रही थी। इतना आहत हुआ कि आगे उसकी सारी बातों
पर एक चुप हजार चुप रहने के सिवा कुछ न कर सका। मैं उस दिन से उसकी उपस्थिति से खुद
को कुछ ज्यादा ही आतंकित महसूस करने लगा था।
जेल में बंद हुए
छः साल भी न हुए थे कि एक दिन आकर उसने फिर धमाका कर दिया कि लड़की की शादी तय कर दी
है। तारीख बताई तो मैंने कहा,
‘इतनी सर्दी में कैसे संभालोगी अकेले।’ लड़के के बारे में बताया कि वह भी बिजनेसमैन
है। बड़ा परिवार है।’
फिर मैंने कहा,
’कि अभी वो मुश्किल से उन्नीस की है आखिर इतनी जल्दी क्यों किए हुए हो।’
‘हमारे कामों का असर कहीं बच्चों पर न पड़े वो भी कहीं हमारी राह न पकड़़ लें।’
मैं निरूत्तर था।
तभी वह बेटे के लिए बोली,
’कि मैंने उससे भी कह दिया है कि नौकरी तुझे बिल्कुल नहीं
करनी है। कामभर की पढ़ाई कर ले और बिजनेस संभाल। किसी का पिछलग्गू बनने की ज़रूरत नहीं।
और शादी के लिए भी बोल दिया कि कोई पसंद कर रखी हो तो बता दे वहीं कर दूंगी। मेरी बात
मान सकता है तो ठीक है नहीं तो अपनी दुनिया अपने हिसाब से चला और मेरा पीछा छोड दे।’ उसकी इस बात पर भी मन में तमाम प्रश्नों का बवंडर उठा लेकिन कुछ कहने की मैं हिम्मत
न जुटा सका। देखते-देखते उसने दोनों की शादी कर दी।
मैं बड़ी तैयारी
में था वकील से मिलकर कि वो कानूनी रूप कुछ भी करे लेकिन शादी में कुछ घंटे ही शामिल
होने के लिए मुझे निकाल ले। वकील अपने काम में सफल रहा लेकिन मैं और वकील दोनों ही
नीला के सामने विफल रहे। मुझे शादी में शामिल होने से सख्त मना कर दिया। उसके इस डिसीजन
से मेरा रोयां रोयां कांप उठा था। मैं फूट-फूटकर रो पड़ा। मैंने कहा कि कोर्ट से ज़्यादा
भयानक सजा तो तुम दे रही हो। उसने कहा,
‘निश्चित ही तुम भी मेरी ही तरह बच्चों की भलाई ही चाहते हो। और यदि तुम शादी में
वहां आए तो सब लोग तरह-तरह की पंचायत करेंगे। पूरी शादी खराब हो जाएगी। तुम नहीं रहोगे
बातें तो तब भी होंगी। लेकिन इतनी नहीं कि पूरा माहौल ही बिगड़ जाए। ’
वकील ने कहा कोर्ट
से आदेश ले लेते हैं तब कोई रोक नहीं पाएगा। बीवी के ही खिलाफ कोर्ट जाना वह भी नीला
जैसी बीवी के खिलाफ मुझे दुनिया के सबसे बड़े अपराधों सा लगा तो मैंने वकील से ऐसा कुछ
नहीं करने को कहा।
इस दौरान मैं अंदर
ही अंदर बेहद टूट गया पहले कोर्ट की सजा फिर नीला द्वारा की जाने वाली बातें उसके काम
मुझे हर पल एक नई सजा देने जैसा काम कर रहे थे। हां बीच-बीच में नीला अपनी बातों से
मुझे एक तरह से रिचार्ज भी कर देती थी। लेकिन उसके इस रंग-ढंग से मैं अंततः जेल में
बुरी तरह बीमार पड़ गया। जेल में जब हालत नहीं सुधरी तो मुझे बलरामपुर हॉस्पिटल में
भर्ती कर दिया गया। नीला ने बड़ी देखभाल की।
कुछ दिन बाद वापस
फिर जेल। फिर एक हफ्ते तक नीला नहीं आई उसके बाद जब आई तो उसे गौर से देखता रह गया।
मुझे इन कुछ वर्षों में ही उसके चेहरे पर उभर आई तमाम झुर्रियां उस दिन दिखाई दीं।
अधिकांश बाल अचानक ही सफेद हो गए थे। न जाने क्यों हमेशा टिप-टॉप रहने वाली नीला ने
डाई नहीं किया था। मांग में सिंदूर भी कई दिन पहले का लग रहा था। बिंदी भी अपनी जगह
पर नहीं थी। अपनी तरफ इस तरह देखते पाकर उसने कहा,
‘बहुत अटपटी सी दिख रही हूं न। सोच रहे होगे हमेशा शलीके से रहने वाली मैं इतनी
अस्त-व्यस्त कैसे हूं। क्यों यही बात है न ?’
‘हां ऐसा क्यों कर रही हो?’
‘सलीके से रहने, श्रृंगार करने का कोई कारण अब नहीं रह गया। पहले या मुकदमे के समय भी कई कारण से
सलीके में रहती थी। एक जिससे तुम्हारे मन का भार यह सब देखकर और ज़्यादा न हो। नंबर
दो, दुनिया वाले यह न समझें कि मैं एकदम निसहाय हूं और उठाइगिरे लार टपकाते मदद को
खड़े नज़र आएं। बच्चे भी और ज़्यादा परेशान न हों। लेकिन अब ऐसा कुछ बचा नहीं। और अब
किसी सलीके या श्रृंगार आदि से नफ़रत और बढ़ गई है। आखिर यह करूं तो किसके लिए, यह सारी बातें तो परिवार से सीधे जुड़ी होती हैं। और परिवार जैसा तो अब कुछ रहा
ही नहीं। लड़की अपने ससुराल में खुश है। और खुशी की बात ये है कि बेटा अपने कॅरियर को
लेकर बहुत सेंसियर है लेकिन मेरी तरफ देखना भी उसे पंसद नहीं। कई बार पूछ चुकी हूं
लेकिन वो हां, हूं में भी बात करना पसंद नहीं करता।’
‘क्यों ऐसा क्या हो गया ?’
‘पता नहीं उसका बिहेवियर कुछ इस ढंग का हो गया है कि तुम्हारा या मेरा नाम आते ही
जैसे उसका मुंह कसैला हो जाता है। घर में करीब डेढ़ दो सालों से मैंने उसके चेहरे पर हंसी छोड़िए मुस्कुराहट भी
नहीं देखी। उसकी बीवी का भी यही हाल है। बहन से भी कोई ज़्यादा संपर्क नहीं रखता।’
‘पहले तो ऐसा नहीं था। इतना ज़्यादा चंचल था। तुम जैसे यहां मेरे साथ दुश्मनों सा
ट्रीट करती हो वैसा ही उसके साथ करती होगी। तुम्हीं ज़िम्मेदार हो इसके लिए।’
‘आखिर फिर अपनी खोल में पहुंच ही गए। आज आखिरी बार एक बात बहुत साफ बता दे रही हूं
कि अब कुछ ही साल रह गए हैं यहां से छूटने में । छूटने के बाद यदि दुबारा भूल कर भी
किसी औरत की तरफ देखा या ऐसी कोई हरकत की तो मैं जो करूंगी, जो मैंने निश्चित कर लिया है उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते।’
‘जब तयकर लिया है तो बता भी दो कि क्या करोगी ?’
मेरे यह कहने पर
वह कुछ क्षण मुझे घूरती रही। फिर बोली-
‘तुम को और खुद को गोली मार दूंगी। जिससे मेरे बच्चों का जीवन तुम्हारे कुकर्मों
के कारण और नर्क न बने। मेरा तो बना ही दिया।’
‘हद से कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई हो।’ मेरे यह कहते ही वह फिर कुछ क्षण मुझे घूरने के बाद बोली-
‘हद से ज़्यादा नहीं बढ़ गई हूं। मेरी और तुम्हारी हद क्या है वो बता रही हूं। इसलिए
बता रही हूं जिससे तुम दुबारा अपनी हद न पार करो।’
इसके बाद नीला ने
कई और कठोर, दिल दहला देने वाली बातें कहीं और चली गई। मैं हक्का-बक्का मुंह बाए पड़ा रहा अपनी
कोठरी में। बातों की चाबुक इतनी जबरदस्त थी कि अगले कई दिनों तक मैं सो न सका। रह-रहकर
मेरा गुस्सा कानूून पर टूट पड़ता कि यह इस तरह अपाहिज है कि शातिर लोग साजिश रचकर इसे
अपना हथियार बना अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं। यह अंधा ही नहीं साक्ष्यों का मोहताज
भी है। इस उधेड़बुन ने मुझे एक काम सौंप दिया। कि अभी जो तीन साल जेल में और रहने हैं।
उस समय का उपयोग करूं। एक ऐसी किताब लिखूं दुनिया के लिए जिसमें मेरा और मुझे फंसाने
वालों का पूरा कच्चा चिट्ठा हो। कानून कैसे साजिशकर्ताओं के हाथों यूज हो जाता है यह
भी तो लोग जाने और कानून में आवश्यक संसोधन हो इसका भी प्रयास हो।
यह निर्णय करते ही मैंने दो दिन बाद
ही पेन और राइटिंगपैड मंगा कर लिखना शुरू कर दिया। इस प्रयास के साथ कि रिहा होने से
पूर्व किताब छपकर आ जाए। एक बार फिर मैंने छपाई के लिए छुट्भैय्ये साले की मदद लेने
की भी सोच ली। मैं एक निवेदन अपने सारे देशवासियों से भी करता हूँ, कि यह किताब आए तो एक बार अवश्य पढ़ें। जिससे
मेरी तरह साजिश का शिकार न बनें । मुझे जीवनभर इस बात का भी इंतजार रहेगा कि लतखोरी, संजना और बॉस की गिरेबॉन तक कानून के लंबे
हाथ कब पहुंचेंगे जिससे कानून पर मेरी खंडित आस्था फिर बन सके।
पता - प्रदीप श्रीवास्तव
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मो-७८३९३१७०७२, ९९१९००२०९६
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