संक्रमण
काल के भारत की कहानियां
█ निरुपमा
कपूर
शहरी जीवन में व्याप्त नकारात्मक स्थितियां मनुष्य के जीवन में
उथल-पुथल मचा रही हैं ,इससे उत्पन्न परिस्थितियों के वश में होकर शहरी जीवन दिशाहीन
हो भटकाव की स्थिति में है. यह बड़ी तेजी से सनातन भारतीय परिवार संस्था को छिन्न भिन्न
कर रही है.दरअसल भूमंडलीकरण ने हमारी पारिवारिक संरचना को बड़ी तेजी से प्रभावित किया
है .इसका प्रभाव हमारे नित्य प्रतिदिन के जीवन में भी पड़ रहा है, हमारे भारतीय नैतिक मूल्यों का तेजी से क्षरण
हो रहा है . तकनीक के नए नए प्रयोग बहुत सी समस्याएं भी साथ ला रही हैं .पारिवारिक
मूल्यों का बिखराव स्वार्थपरता , संवेदनहीनता
के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. प्रदीप श्रीवास्तव के कहानी संग्रह मेरी जनहित
याचिका व अन्य कहानियां में इन परिस्थितियों का जीवंत चित्रण किया गया है. संयुक्त
परिवारों में विघटन, एकल परिवारों का
बढ़ता प्रचलन तथा उनमें में टूटते नैतिक मूल्यों तथा नाजायज रिश्तों का बढ़ता प्रचलन उनकी कहानियों के मुख्य बिंदु हैं
.मुख्य कहानी 'मेरी जनहित याचिका' का नायक भी इन्हीं परिस्थितियों का शिकार
होकर पारिवारिक विघटन और नाजायज रिश्ते को जन्म देता है .लेखक ने नायक के चरित्र चित्रण द्वारा यह बखूबी दर्शाया है. साथ ही उसके जरिए यह भी बताया
है कि कैसे मनुष्य परिस्थितियों के हाथों मजबूर हो जाता है. कानून के दुरूपयोग की दृष्टि
से तो यह कहानी झकझोर कर रख देती है . कहानी यह सोचने के लिए विवश कर देती
है कि कानून बनाते समय दोनों पक्षों का समान ध्यान रखा जाए .भावनाओं को हावी न होने
दिया जाए . वहीँ कहानी 'घुसपैठिए से आखरी मुलाकात के बाद' में भी नाजायज रिश्तों का तो चित्रण
है ही आज देश में चर्चा ,विवाद का
प्रमुख विषय बने घुसपैठियों के बारे में आँखें खोल देने वाला वर्णन है .कि ये घुसपैठिए देश के लिए लगातार गंभीर
समस्या बनते जा रहे हैं और राजनीतिज्ञ अपनी राजनीती की दूकान चमकाने में लगें हैं
.कहानी के नायक का देश और परिवार में कौन पहले
बिंदु पर असमंजस बड़ा दिलचस्प है .'हनुवा की
पत्नी' थर्ड जेंडर की मानसिक
स्थितियों को दर्शाती है कि हमारा समाज उनके लिए कितना संवेदनहीन हो गया है. हनुवा के जरिये थर्ड जेंडर के दैहिक, मानसिक
शोषण के वर्णन बड़े मर्मान्तक हैं .चकित कर देते हैं.थर्ड जेंडर की कठोर जिंदगी
का जैसा विस्तृत वर्णन कहानी में है उसे पढ़
कर कोई भी संवेदशील व्यक्ति उनके आसूं पोंछने
के लिए एक बार अवश्य सोचेगा . लेखक ने इनकी अँधेरी दुनिया का कोना कोना जिस
परिश्रम जांच पड़ताल के बाद दुनिया के सामने रखा है इसके लिए वह बधाई का पात्र है.
विश्वाश और अविश्वाश
एवं नास्तिकता तथा आस्तिकता के द्वंद्व
का बढ़िया वर्णन 'जब वह मिला' कहानी में है . वर्तमान समाज के संवेदनहीनता की पराकाष्ठा का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज
कह सकतें है इस कहानी को .शव भी धन कमाने का जरिया बन सकता है इस बात का ह्रदयविदारक
सच है इस कहानी में .
४६४ पृष्ठों के इस बड़े संग्रह में संग्रहीत दस कहानियों में
कुछ को छोड़ कर बाकी सभी लम्बी कहानियां हैं .जिनमें भूमण्डलीकरण के बाद के गावों से लेकर महिलाओं की बदलती सोच,महानगरों में लोगों का संघर्ष, शिक्षा व्यवस्था की दयनीय स्थिति,
इंटरनेट मोबाईल का समाज पर पड़ता नकारात्मक
प्रभाव, सपनों के टूटने
बिखरने की टीस, ठगी के अनोखे अंतर्राष्ट्रीय
खेल के बहुविध रूप हैं . छोटे से किस्से को भी रोचक लम्बी कहानी में परिवर्तित
करने में लेखक सिद्धहस्त है . कहीं-कहीं पर वाक्यों में अंतर्निहित गूढ़ अर्थ हैं जो
कि मुहावरों जैसा प्रभाव छोड़ते हैं . जैसे कि 'सिंगल पेरेंटिंग तपते रेगिस्तान सरीखा है जिसकी तपिस जीवन भर जलाती है और फिर जला जला कर ही खत्म कर
देती है.' या फिर 'यह एक ह्ययूमन एरर की तरह ही गॉड एरर है.' इस प्रकार
के प्रयोग से भाषा अपनी तार्किकता सिद्ध करते हुए प्रभावी बन पड़ी है. समाज के दिन प्रतिदिन के बदलते समीकरणों
पर लेखक की पैनी नज़र है . इस कारण समाज का
सटीक चित्रण पाठकों के समक्ष इन कहानियों के माध्यम से प्रदीप श्रीवास्तव
बड़ी कुशलता से कर सकें हैं . उनकी यह विशेषता उनकी कहानियों को पाठकों के बीच लोकप्रिय
बनाएगी .
निरुपमा कपूर
17 जसवंत स्टेट एक्सटेंशन
देवरी रोड आगरा -२८२००१
मो . 9319163600
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