गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

कहानी :एमी :प्रदीप श्रीवास्तव


                                                           एमी
                                                -प्रदीप श्रीवास्तव
मुझे बाइक चलाना बहुत पसंद है। बहुत ज़्यादा। जुनून की हद तक। जब मैं एट स्टैंडर्ड में पहुंची  तो स्कूल जाने के लिए फादर ने लेडी बर्ड साइकिल दी। उन्हें यकीन था कि नई साइकिल पाकर मैं खुश होऊंगी। लेकिन इसके उलट मुझे गुस्सा आया। क्योंकि मैंने बहुत पहले से ही अपनी पसंद बताते हुए कहा था कि मुझे साइकिल नहीं चाहिए। इसलिए साइकिल देखते ही नाराजगी जाहिर करते हुए मैंने उनसे कहा कि मुझे वह बाइक ले देंगे। लेकिन वह नाराज हो गए। मदर भी फादर की तरह ही नाराज हुईं कि, ‘क्या मूर्खता है। तुम अभी बहुत छोटी हो। टेंथ स्टैंडर्ड में जाओगी तब सोचेंगे कि तुम्हें स्कूटी दी जाए या और दो-तीन साल तुम साइकिल से ही स्कूल जाओ।
मैंने जिद की तो डपटते हुए मदर ने कहा, ‘एमी तुम्हें जिद नहीं करनी चाहिए, तुम एक अच्छी बच्ची हो।मदर की डांट खाकर मैं चुप जरूर हो गई थी, लेकिन बाइक के प्रति मेरा लगाव और बढ़ गया। न्यूटन का थर्ड लॉ यहां काम कर रहा था। क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया हो रही थी। समय के साथ यह लगाव बढ़ता रहा। उस समय तक मेरा भाई पढ़ने के लिए दिल्ली चला गया था। वह एडमिशन वगैरह के बाद अपनी बाइक भी ले गया था। घर में उसके बाद बस एक स्कूटर ही रह गई थी।
फादर सुबह उसे लेकर ऑफ़िस चले जाते थे। और शाम को हमेशा ही देर से आते। महीने में केवल संडे का ही दिन ऐसा होता था जब वह दिन में ड्रिंक नहीं करते थे। और चर्च जाते थे। हम लोगों को भी साथ ले जाते थे। बाकी दिन वह ड्रिंक करके ही आते, डिनर करके फिर और पीते। जिस दिन वह डिनर के बाद कम पीते उस दिन मदर से निश्चित ही झगड़ा करते। बिना किसी बात ही के हंगामा खड़ा करते। मदर के कैरेक्टर पर लांछन लगाते। फिर मदर भी अपना आपा खो बैठती थीं।
मैं जब छोटी थी तब तो डर कर घर के किसी कोने में छिप जाती थी। डर के मारे थर-थर कांपती थी। कई बार बेहोश भी हो जाती थी। उल्टियां होने लगती थीं। एक बार मदर मुझे मेरी इस प्रॉब्लम के लिए अपने हॉस्पिटल ले गईं। चेकअप कराने के लिए। वह एक मिशनरी हॉस्पिटल में आज भी नर्स हैं। वहां डॉक्टर ने फ़ियर फ़ोबिया बताया। उन्होंने कुछ दवाएं दीं और एक मनोचिकित्सक से चेकअप कराने के लिए भी कहा। मेरी इस प्रॉब्लम से मदर काफी डर गई थीं।
उन्होंने जब फादर को यह बात बताई तो वह मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘सॉरी माय चाइल्ड।बस इसके बाद कुछ नहीं बोले। घर के बाहर चले गए। अगले दिन फिर सब कुछ वही। ड्रिंक, मदर से झगड़ा।
यह सब तब भी होता रहा जब मैं इलेवंथ में पहुंच गई। मुझे फिर नई साइकिल दिये जाने की तैयारी थी। लेकिन मैंने साफ मना कर दिया कि मुझे साइकिल नहीं चाहिए। देनी है तो मुझे टू-व्हीलर ही दीजिए। वह भी बाइक, नहीं तो मैं पैदल ही जाऊंगी, और जब खुद जॉब करूंगी तो सबसे पहले बाइक ही खरीदूंगी। लेकिन मेरी बात बिलकुल भी नहीं मानी गई। जबकि मैंने इस बीच छिप-छिप कर फादर का स्कूटर चलाना सीख लिया था।
जब वह नशे में धुत्त रहते थे तो मैं चुपके से चाबी निकाल कर पूरी कॉलोनी में खूब चलाती। तब मदर की अक्सर नाइट ड्यूटी ही रहती थी। अब तक फ़ियर फ़ोबिया की मेरी प्रॉब्लम भी खत्म हो चुकी थी। मगर पैरेंट्स की लड़ाई नहीं खत्म हुई थी। फादर की ड्रिंक करने की आदत और बढ़ गई थी। जल्दी ही मदर ने एक रास्ता निकाला। वह लड़ाई से बचने के लिए चाहतीं कि फादर ड्रिंक इतनी ले लिया करें कि झगड़ा करने के लायक ना रहें। नशे में गहरी नींद सो जाएं। ऐसी स्थिति में वह उन्हें खुद और पिला देतीें। उनका यह प्लान सक्सेस रहा। फादर नशे में धुत्त हो सो जाते थे।
जब मैं बीएससी प्रीवियस में थी तब भी यह सब चलता रहा। फादर हमेशा अपने बीच एक थर्ड पर्सन के होने की बात करते, मदर को गाली देते हुए मुझे और जस्टिन को अपनी संतान मानने से ही मना कर देते। यह सुनकर मुझे बड़ा गुस्सा आता। मैं खुद को अपने कमरे में बंद कर लेती। एक दिन ऐसी स्थिति में मदर ने बहुत ही उग्र रूप धारण कर लिया। वह फादर से हाथापाई पर उतर आईं। उन्होंने उन्हें पूरी ताकत से धक्का देकर बेड पर गिरा दिया। और चीखती हुईं बोलीं, ‘कल सुबह मेरे साथ हॉस्पिटल चलो। एमी को भी ले चलो। डीएनए टेस्ट करा लेंगे कि एमी किसकी बेटी है। अगर तुम्हारी बात सही हुई तो मैं तुम्हें, बच्चों को छोड़कर हमेशा के लिए चली जाऊंगी। नहीं तो तुम दोबारा फिर कभी यह बात नहीं करोगे।
मदर कि इस बात पर फादर और भी ज़्यादा भड़क उठे। वह बेड पर से उठने की कोशिश में फिर उसी पर लुढ़क गए। इससे उनकी खीझ, गुस्सा और बढ़ गया। चीखते हुए मदर को गंदी-गंदी गालियां देने लगे। कहा, ‘तुम तो यही चाहती हो कि मैं तुझे फ्री कर दूं और तू उस सूअर के साथ ...छीः, ऐसी गंदी-गलीच बातें कहीं कि वह मेरी जुबान पर कभी नहीं आ पातीं। गुस्से में उन्होंने पुलिस में मदर के अगेंस्ट कंप्लेंट करने की बात कही। बोले, ‘तुमने मुझे मारने की कोशिश की। मैं तुझे नहीं छोडूंगा। वह लड़खड़ाती जुबान में गंदी-गंदी बातें करते जा रहे थे। मैं कमरे में बंद सुनती रही। मदर भी दूसरे कमरे में चली गईं। उन्हें तैयार होना था। नाइट शिफ्ट में उनकी ड्यूटी थी।
वह तैयार हो ही रही थीं कि पुलिस आ गई। फादर ने हंड्रेड नंबर डायल कर दिया था। मदर और मैं पुलिस देखकर हक्का-बक्का हो गए कि पुलिस क्यों? मदर ने पुलिस ऑफिसर से कहा, ‘कोई बात नहीं हुई है। इन्होंने ड्रिंक कर रखी है। नशे में हैं, गलती से रिंग कर दिया होगा। मैं उनकी तरफ से माफी मांगती हूं।लेकिन पुलिस अड़ गई कि, ‘उन्हें सामने लाइए, वह कह रहे थे कि उन्हें उनकी मिसेज और डॉटर मिलकर मार रही हैं। उनकी जान खतरे में है। उन्हें बचाइए। इस लिए उन्हें सामने लाइए। हम बिना हक़ीक़त जाने नहीं जाएंगे। रिंग करने वाले से बात करनी ही है।विवश होकर मदर पुलिस को लेकर बेडरूम में पहुंचीं। फादर तब-तक गहरी नींद में सो रहे थे। खर्राटे कमरे में गूंज रहे थे। पूरा रूम भयानक बदबू से भरा हुआ था। उनके पैंट की जिप खुली हुई थी। पैर बेड से नीचे लटके हुए थे। पैंट बुरी तरह भीगी हुई थी। पेशाब करने के बाद भी वह गीले कपड़ों में सो रहे थे।
पुलिस के सामने हम शर्म से गड़े जा रहे थे। उनकी हालत देखकर पुलिस समझ गई कि मेरी मदर सच बोल रही हैं। लेकिन वह बेवजह फ़ोन करने के लिए सख्त नाराज होने लगी। कहने लगी, ‘दोबारा ऐसा किया तो अच्छा नहीं होगा। बंद कर देंगे।मदर ने कई बार सॉरी बोलते हुए उन्हें एक हज़ार रुपए देकर शांत किया। मदर उस दिन ऑफ़िस नहीं गईं। फ़ोन कर दिया कि तबीयत बहुत खराब है। उनके सीनियर ने इस तरह अचानक ही मना करने पर बहुत डांटा था। मदर उस दिन बहुत रोईं। मैं भी। हम उस दिन अपनी बहुत इंसल्ट फ़ील कर रहे थे। मैंने भी उस दिन मदर से भावावेश में आकर ऐसी बातें पूछ लीं जो मुझे नहीं पूछनी चाहिए थीं। जिसका मुझे बाद में बहुत पछतावा हुआ।
मैंने उनसे पूछ लिया था कि सच क्या है? फादर आखिर इतने सालों से बार-बार यह बात क्यों पूछ रहे हैं? क्या उनकी बात सच है? वाकई आप के जीवन में कोई और शख्स है। यदि आप उसके साथ ही खुश हैं तो फादर से डायवोर्स ले कर चली जाइए। रोज-रोज का झगड़ा बंद करिए। मुझे और जस्टिन को भूल जाइए। हम दोनों भाई-बहन अपनी लाइफ मैनेज कर लेंगे। आप दोनों जो भी मैटर है उसे एक जैंटल पर्सन की तरह सॉल्व कर लें।
मेरी बात पर मदर शॉक्ड हुईं। बड़ी देर तक मुझे देखती ही रह गईं। फिर आंसुओं से भरी आंखों से ऊपर छत को देखती हुई बोलीं, ‘ओ जीसस मेरी कैसी परीक्षा ले रहा है तू। तू तो सब देख रहा है। जान रहा है। इस बच्ची को क्षमा कर देना। मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूं। मेरी इस प्रॉब्लम को खत्म कर दें। हमारी कितनी इंसल्ट हो रही है, यह आप देख ही रहे हैं।मदर ने बड़ी देर तक प्रभु जीसस से प्रार्थना की। बार-बार की, कि वह उनकी सारी प्रॉब्लम सॉल्व कर दें। लेकिन ना जाने क्यों मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी। कुछ देर बाद मैंने अपना प्रश्न दोबारा पूछ लिया था। इस बार मदर नाराज हो गईं।
उस दिन पहली बार मुझ पर पूरी ताकत से चीखती हुई बोलीं, ‘शटअप, शटअप एमी, तुम्हें मालूम है कि तुम क्या कह रही हो? तुम भी अपने फादर की तरह मेरे कैरेक्टर पर प्रश्न कर रही हो। मुझे कैरेक्टरलेस कह रही हो। आखिर तुम क्या चाहती हो?’ उस समय मैं उनके गुस्से से डर जरूर गई। लेकिन पुलिस, फादर की हालत के कारण तब मन में जो फ़ील कर रही थी, उससे मैं बहुत गुस्से में थी। मैंने खूब बहस की। इस घटना के कुछ ही महीने बाद मेरा बीएससी प्रीवियस का फाइनल एग्ज़ाम खत्म हो गया।
जिस दिन एग्ज़ाम खत्म हुआ, उस दिन मैं अपनी कई फ्रेंड्स के साथ पिकनिक पर गई थी। शहर के उस वाटर पार्क में मैं तीसरी बार गई थी। वहां पर हम सभी फ्रेंड्स ने बहुत मस्ती की थी। बहुत देर शाम को घर पहुंची। बहुत थक गई थी। बाहर दिनभर तरह-तरह की बहुत सी चीजें खाई थीं। इसलिए डिनर वगैरह कुछ नहीं किया।
उस दिन भी मदर की नाइट ड्यूटी थी। वह जल्दी-जल्दी सारे काम पूरे कर रही थीं। उनकी एक गंदी आदत थी बल्कि आज भी है, जिससे मैं और फादर दोनों ही नफरत करते थे। वह काम करते समय भुनभुनाती रहती थीं। उस समय भी भुनभुुना रही थीं, फादर को कोस रही थीं कि, ‘हर तरफ गंदगी फैलाते रहते हैं, लेकिन सफाई में कहने को भी हाथ नहीं बंटाते। बच्चों को भी अपने जैसा बना दिया है।जब वह बच्चों को कहतीं तो मुझे बुरा लगता। क्योंकि भाई जब-तक था तब-तक वह भी काम-धाम में हाथ बंटाता रहता था। मैं और वह अधिकांश काम कर डालते थे। फिर भी मदर....। भाई के जाने के बाद मैं और ज़्यादा काम करती थी कि मदर को आराम मिले। लेकिन फिर भी उनका भुनभुनाना पूर्ववत था।
पिकनिक के चक्कर में उस दिन मैं कुछ ज़्यादा काम नहीं कर पाई थी तो उस दिन मदर कुछ ज़्यादा ही भुनभुना रही थीं। मैंने उनसे कह दिया कि, आप को नाराज होने की जरूरत नहीं है। आप ऑफ़िस जाइए, मैं काम पूरा कर दूंगी। मेरी यह बात उनको बुरी लगी। मुझे झगड़ालू लड़की कहकर चीखने-चिल्लाने लगीं। मैंने सॉरी बोल दिया। फिर भी वह शांत नहीं हुईं, तभी उनके मोबाइल पर रिंग हुई। इस पर भी वह बहुत नाराज हुईं। कई अपशब्द कहते हुए कॉल रिसीव की। उधर से जो भी कहा गया उससे उनके चेहरे का रंग उड़ गया।
वह सिर्फ़ इतना बोलीं, अच्छा मैं तुरंत पहुंच रही हूं। मैंने पूछा क्या हुआ तो वह इतना ही बोलीं, ‘तुम्हें भी मेरे साथ चलना है।उनका गुस्सा उनकी घबराहट देखकर मैं कुछ नहीं बोली, बस उनके साथ चल दी। रास्ते में उन्होंने बताया कि, ‘फादर का एक्सीडेंट हो गया है। ऑफ़िस से आते समय वह रास्ते में एक खुले मैनहोल के कारण स्कूटर सहित गिर गए। साइड से निकलती एक दूसरी बाइक ने भी उनको हिट किया है, जिससे वह बहुत सीरियस हैं।आधे घंटे में जब हम हॉस्पिटल पहुंचे तो सब कुछ समाप्त हो चुका था। हेड इंजरी ने फादर की जान ले ली थी। स्कूटर चलाते समय उन्होंने हेलमेट लगाने के बजाय साइड मिरर पर लटका रखा था। हेलमेट लगाया होता तो बच जाते।
हमने जब हॉस्पिटल की चादर हटा कर उन्हें देखा तो उनका चेहरा चोटों से बुरी तरह भरा हुआ था। इस तरह सूजा हुआ था कि उन्हें पहचानना मुश्किल था। पूरा सिर कॉटन की मोटी लेयर और पट्टियों से ढका हुआ था। मदर उनके चेहरे को बड़ी देर तक एकटक देखती रहीं। उनकी आंखों से आंसू टपक रहे थे। होंठ सख्ती से भिंचे हुए लग रहे थे। फादर की हालत देखकर वह दोनों हाथों से मुंह दबाए रोए जा रही थीं। दो मिनट बाद ही वार्ड ब्वाय, नर्स ने आकर हमें हटा दिया। मैं मदर को संभाले बाहर आ गई। पुलिस ने अपनी कार्रवाई शुरू कर दी। वही फादर को एक्सीडेंट के बाद हॉस्पिटल लेकर पहुंची थी। डेड बॉडी को मोर्चरी में भेज दिया गया। हम घर आ गए।
दिल्ली में भाई और कई रिलेटिव्स को मैंने कॉल कर दी थी। कुछ रिलेटिव रात भर हमारे साथ बने रहे। हमें सांत्वना देते रहे। अगले दिन शाम होने से कुछ पहले ही फादर की बॉडी मिली। मैं चाह रही थी कि फादर को पहले घर लाया जाए। भाई भी यही चाहता था। कुछ रिलेटिव्स भी हमारी बात से एग्री थे । लेकिन मदर नहीं। कुछ रिलेटिव्स भी मदर के साथ थे। अंततः हम हॉस्पिटल से ही उन्हें लेकर सीधे कब्रिस्तान गए। वहां उन्हें अंतिम विदा देकर घर आ गए।
कुछ दोस्त, दो-तीन रिश्तेदारों को छोड़कर बाकी सभी लोग अपने-अपने घरों को चले गए थे। हम रात भर घर में इधर-उधर बैठते,जागते रहे। मदर अपने कमरे में ही बैठी रहीं। हम जितनी बार उन्हें देखने उनके पास पहुंचते उतनी बार उन्हें एकदम शांत बैठे पाते। वह बेंत की चेयर पर बैठी सामने दीवार पर टंगे प्रभु यीशु मसीह के चित्र को बराबर एकटक देखतीं थीं, तो कभी आंखें बंद कर लेतीं थीं। जैसे भीतर-ही-भीतर रो रही हों। उस वक्त बीच-बीच में उनका शरीर एकदम से हिल उठता था, जैसे रोते-रोते हिचकी ली हो। हमें आसपास खड़ा देखतीं तो हाथ से इशारा कर बाहर जाने को कह देतीं। पूरी रात ऐसे ही बीत गई।
हमारा अगला एक हफ्ता ऐसे ही भयानक सन्नाटे में बीता। भाई सहित हम तीन घर में थे। लेकिन लगता जैसे कोई है ही नहीं। इस गहन सन्नाटे को बस एक चीज थी जो हर घंटे बाद तोड़ रही थी, वह थी दीवार घड़ी। हर घंटे के बाद टिन्न-टिन्न करती उसकी आवाज़ कमरों में, आंगन में, बरामदे में सुनाई देती थी। मगर पहले यही आवाज़ केवल उसी कमरे में सुनी जा सकती थी जिस कमरे में वह लगी थी। वह घड़ी आज भी उसी कमरे में वहीं लगी है। भाई जस्टिन की छह-सात दिन बाद ही मदर से किसी बात पर बहस हो गई थी। आवाज़ सुनकर मैं उनके कमरे में पहुंची तो जस्टिन को इतना ही कहते सुना कि, ‘मैं यहां नहीं रह सकता। अब मैं दोबारा नहीं लौटुंगा।मैं बहुत दिन बाद जान पाई कि उस दिन दोनों के बीच किस बात को लेकर बहस हुई थी।
मैंने तब दोनों से बहुत पूछा लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। मदर ऐसे चुप हो जातीं, ऐसे दूसरी तरफ देखने लगतीं जैसे कि मैं किसी और से बात कर रही हूं। जस्टिन बार-बार पूछने पर बहुत नाराज हुआ तो मैंने उससे दोबारा पूछा ही नहीं। वह अगले ही दिन सुबह दिल्ली लौट गया था। फिर उसने काफी समय तक फ़ोन पर भी हम दोनों से बात नहीं की। जाते समय उसने घर में ना खाना खाया, ना चाय-नाश्ता किया। मेरी सारी कोशिश बेकार रही। मदर ने तो खैर कुछ कहा ही नहीं। ऐसी कौन सी बात थी जिसने दोनों के बीच इतनी नफरत पैदा कर दी, यह जानने का प्रयास करना मैंने कुछ समय तक बंद कर दिया था। उस दिन जाने के बाद भाई फिर कभी लौट कर घर नहीं आया।
कुछ दिन तो फ़ोन करने पर मुश्किल से हाल-चाल बता देता था, फिर एक दिन मुझसे बड़े क्लियर वर्ड्स में कहा, ‘हमारी यह आखिरी बातचीत है।मैं कुछ कहती उसके पहले ही उसने फ़ोन काट दिया था। मैंने कॉल किया तो मोबाइल स्विच ऑफ मिला। उसके एड्रेस पर जितने कोरियर मैंने भेजे वह सब अनडिलीवर होकर लौट आए थे। मैंने मदर से इस बारे में बात करनी चाही, लेकिन वह कुछ बोलती ही नहीं थीं। ज़्यादा कहती तो वह उठकर कर दूसरी जगह चली जातीं। उनके इस व्यवहार के कारण मेरा मन भाई से मिलने के लिए बेचैन हो उठा। क्रिसमस एकदम करीब था। मैं चाहती थी कि वह कम से कम क्रिसमस पर तो आ ही जाए। कम से कम त्यौहार पर तो परिवार के सारे लोग मिल कर रहें।
मदर को बोलकर मैं दिल्ली उसके घर पहुंची। तो लैंडलॉर्ड से मालूम हुआ कि भाई ने काफी पहले ही मकान छोड़ दिया है। कहां गए कुछ बताया नहीं। मेरे सामने बड़ी मुसीबत आ खड़ी हुई कि अब मैं क्या करूं। लैंडलॉर्ड ने तभी एक ऐड्रेस बताते हुए कहा कि, ‘आप उनके ऑफ़िस चली जाइए।मेरे लिए यह नई जानकारी थी कि भाई नौकरी कर रहा है।
बड़ी मुश्किल से ऑफ़िस पहुंची तो पता चला भाई ऑफ़िस के काम से आउट ऑफ स्टेशन है, चार दिन बाद लौटेगा। यह सुनते ही मेरा सिर चकरा गया कि अब क्या करूं। मैं शहर से अनजान थी। मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि कहां रुकूँ । वैसे भी मेरे पास पैसे ज़्यादा नहीं थे। आखिर मैंने तय किया कि सीधे स्टेशन चलती हूं, जो भी ट्रेन मिल जाएगी उसी से वापस चल दूंगी। इसके अलावा और कोई रास्ता मेरे लिए नहीं बचा था।
उसके ऑफ़िस में मैंने यह नहीं बताया कि मैं उसकी सिस्टर हूं। स्टेशन पर मैं ना किसी ट्रेन में रिजर्वेशन का ठीक से पता कर पाई, ना कुछ खा-पी सकी। अंदर ही अंदर बहुत डर रही थी। आखिर एक ट्रेन की स्लीपर बोगी में बिना रिजर्वेशन के ही चढ़ गई। टीटी को पेनॉल्टी देनी पड़ी। संयोग से बोगी में एक बहुत ही सभ्य फ़ैमिली मिल गई थी। उनकी महिलाओं ने मुझे अकेला एवं परेशान देखकर अपने साथ कर लिया था। पूरा परिवार किसी तीर्थ स्थान से लौट रहा था। उन्होंने खाने-पीने के लिए बहुत प्रेशर डाला। लेकिन मैं डर के मारे मना करती रही।
वह लोग मेरा डर समझ गए तो उस परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला ने मुझे बेटी-बेटी कहकर बड़े प्यार से समझाया। उनकी अनुभवी आंखों ने मेरे चेहरे से पहचान लिया था कि मैं भूखी-प्यासी हूं। उन्होंने अपनी बातों से मुझे बड़ा इमोशनल कर दिया। फिर मैं मना नहीं कर सकी। उनके साथ पूरा डिनर किया। घर की बनी बहुत ही टेस्टी मिठाई भी खाई। उस महिला ने मिठाई का नाम बालूशाही बताया था। साथ ही यह भी बताया कि यह उनके बड़े बेटे की मिसेज ने बनाया है। वह उसे बहू-बहू कह कर उसकी खूब तारीफ कर रही थीं।
उस बुजुर्ग महिला ने अपनी बर्थ पर ही मुझे रात भर सोने भी दिया। आधे में वह, आधे में मैं सोई। तभी मुझे अनुभव हुआ कि जब शरीर थका हो, भूखा हो। तो वह जो पसंद नहीं करता वह भी खूब खा लेता है। पथरीली ज़मीन पर भी गहरी नींद सो लेता है। सबसे बड़ी बात कि उस परिवार ने मुझे भीड़ की धक्का-मुक्की से बचाया। सुबह आठ बजे जब लखनऊ स्टेशन पर ट्रेन से उतरी तो पूरे परिवार ने मुझे ऐसे विदा किया जैसे मैं उनके परिवार की ही सदस्य हूं।
मैं ट्रेन से उतर कर उनकी खिड़की के सामने खड़ी तब-तक बात करती रही जब-तक ट्रेन चल नहीं दी। बोगी दूर होती जा रही थी और मैं उन्हें देखती तब-तक हाथ हिलाती रही जब-तक कि वह ओझल नहीं हो र्गइं। वह सभी प्रयागराज जा रहे थे। मैं थक कर इतना चूर हो गई थी कि मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। प्लेटफॉर्म एक की बेंच पर बैठी मैं कुछ देर तक आराम करती रही। मैं रात भर जब-तक जगी तब-तक जिस तरह भाई की बेरळखी के बारे में सोच रही थी, वैसे ही तब भी सोच रही थी कि मदर के साथ ऐसी कौन सी बात हुई थी कि उसने अपने दिल में घर के लिए इतनी नफरत भर ली है। इतने दिन से नौकरी कर रहा है यह तक नहीं बताया। मैं बहुत ही परेशान मन के साथ घर आ गई।
मदर नाइट ड्यूटी से लौट कर सो रही थीं। उन्होंने इतनी जल्दी वापस आया देख कर पूछा, ‘सब ठीक तो है।मदर को यह आशा थी कि मैं भाई के पास चार-छः दिन रह कर लौटूंगी। उन्होंने जब पूछा तो न जाने क्यों मुझे गुस्सा आ गई। मैंने बिना कुछ छिपाए जो कुछ हुआ सब बता दिया। मैंने सोचा था मदर गुस्सा होंगी। बहुत सी कड़वी बातें बोलेंगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। वह कुछ देर मेरे पास चुपचाप बैठी रहीं। फिर अपने रूम में जाकर पुनः सो गईं। वह नहीं, मैं शॉक्ड कमरे में बैठी रह गई। मैं शॉक्ड इसलिए हुई कि मदर ने यह तक नहीं पूछा कि जब भाई नहीं मिला तो तुम कहां रही, कैसे आई। इससे ज़्यादा मैं इस बात से शॉक्ड हुई कि भाई कहां है? कैसा है? इस बारे में कुछ पूछा ही नहीं।
मैंने जितना बताया उतना ही सुन लिया। वह भी बेमन से। मैं कंपेयर करने लगी ट्रेन में मिले परिवार से अपने परिवार की, मदद की, बिहैवियर की। कुछ देर को तो मैं अपनी थकान ही भूल गई। मैं इस बात से भी बहुत शॉक्ड हुई कि मदर यह जानकर भी कि मैं कल से ठीक से सोयी नहीं हूं। लगातार जर्नी से बहुत थकी हूं। इसके बाद भी उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा कि एमी आराम करो, मैं ब्रेकफास्ट तैयार करके लाती हूं। कैसी मदर हैं? आखिर ऐसी कौन सी बात है कि इनका व्यवहार ऐसा हो गया है। इतना बदल गया है। शारीरिक थकान से मैं पस्त हुई जा रही थी। लेकिन मदर के बिहेवियर ने मानसिक थकान इतनी दी कि मैं ज़्यादा देर बैठ नहीं सकी। फ्रेश होकर सो गई।
मैंने मन में यह भी डिसाइड कर लिया कि अब मैं इनसे बात तभी करूंगी, उतनी ही करूंगी जब यह कुछ पूछेंगी, बात करेंगी। मैं शाम के करीब उठी। जब भूख महसूस हुई तो किचेन में गई। मैंने सोचा कि खाने के लिए कुछ बनाना पड़ेगा। लेकिन मदर ने मेरे सोने के बाद जो खाना बनाया था वह मेरे लिए भी रखा था। मैंने राहत महसूस की और उसे ही गरम करके खा लिया। खाते वक्त मैंने सोचा जब बनाया था तो मुझे खाने के लिए कह भी सकती थीं। जगा सकती थीं। खाना खाकर मैं फिर सो गई। मेरे मन में आया कि देखूं मदर क्या कर रही हैं, लेकिन फिर सोचा छोड़ो जाने दो, जब बात नहीं कर रही हैं तो क्या जाना उनके पास। रात करीब नौ बजे उन्होंने मुझे उठाया कि दरवाजा बंद कर लूं, वह अपनी नाइट ड्यूटी पर जा रही हैं।
मुझसे बहुत उदास सी आवाज़ में यह भी कहा कि, ‘खाना किचेन में रखा है, खा लेना।मन में सोचा कि अन्य नर्सों की तरह यह भी अपनी नाइट ड्यूटी क्यों नहीं कम करा लेतीं । जब वह चली गईं तो मैंने गेट बंद किया और ड्रॉइंग रूम में बैठकर टीवी देखने लगी। मेरे मन में बराबर यह बात उठती रही कि ऐसे माहौल में कैसे पढ़ूंगी। कैसे रहूंगी। भाई का जो नया नंबर ऑफ़िस से मिला था उस पर कॉल किया तो उसने साफ-साफ कह दिया कि, ‘मैंने सारे रिलेशन खत्म कर दिए हैं। मुझसे कांटेक्ट  करने की कोशिश ना करो।
उसके हद दर्जे के रूखे बिहेवियर से मैं बहुत नाराज हो गई। मैंने भी कह दिया कि अब बात तभी करूंगी जब तुम आओगे या कॉल करोगे। मैंने सोचा भाई ने रिश्ता खत्म किया है। यह मामूली बात नहीं है। मदर भी उनका नाम नहीं ले रहीं। वजह अब जाननी ही पड़ेगी। ऐसे काम नहीं चलेगा। जिस दिन मदर का मूड सही होगा उस दिन जरूर पूछूंगी। उनके सही मूड का इंतजार करते-करते महीनों निकल गए लेकिन उन के मूड में कोई चेंज नहीं आया। ऑफ़िस, घर, बस यही रूटीन था।
मैंने देखा कि फादर के देहांत के बाद उन्होंने एक भी डे ड्यूटी नहीं की। यह बात बिल्कुल साफ थी कि उन्होंने कह कर अपनी नाइट शिफ्ट ही करवा रखी थी। दिन में वह ज़्यादा समय घर का काम करती हुई बितातीं और थोड़ा बहुत समय प्रार्थना में। रोजरी लेकर प्रार्थना करतीं। अब महीने में एकाध संडे को ही चर्च जातीं। मुझसे कभी भूल कर भी नहीं कहतीं कि तुम भी साथ चलो। भाई के यहां से मेरी वापसी के बाद वह क्रिसमस में भी चर्च नहीं गईं। सर्दी का बहाना करके घर पर ही रहीं।
एक दिन मैंने उन्हें अचानक ही देखा कि वह प्रभु यीशु से प्रार्थना करती हुई क्षमा कर दिए जाने की भीख मांग रही हैं। वह चर्च में कन्फ़ेशन करने के बजाय घर में ही कन्फ़ेशन कर रही थीं। प्रभु यीशु से क्षमा कर देने की कृपा करने के लिए गिड़गिड़ा रही थीं। गिड़गिड़ाते हुए कह रही थीं कि, ‘मुझसे बहुत बड़ा पाप हुआ है। मैं पापी हूं। प्रभु तुम तो अपनी शरण में आए बड़े-बड़े पापियों को भी क्षमा कर देते हो, मुझे भी कर दो। उनका यह कन्फ़ेशन मैंने उस दिन संयोगवश ही देख लिया था।
वह मुझे सोया हुआ समझ कर प्रेयर कर रही थीं। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि वह कुछ ज़्यादा ही तेज़ बोल रही हैं। उनकी आवाज़ मुझ तक पहुंच रही है। बहुत बड़े पाप की बात सुनकर मैं शॉक्ड रह गई। समझ नहीं पा रही थी कि उन्होंने कौन-सा पाप किया है? उस दिन मैं फिर अपने को रोक नहीं सकी।
जब उन्होंने प्रेयर खत्म की तो मैं एकदम उनके सामने आ गई। ऐसा मैंने यह सोचकर किया कि इससे वह जान जाएंगी कि मैंने उनकी सारी बातें सुन ली हैं, इसलिए वह कुछ छुपाने का प्रयास ना करें। मुझे अपने सामने देखकर वह चौंकी। उनकी आंखों में नाराज़गी उभर आई। मैंने तुरंत सारी विनम्रता उड़ेलते हुए उनसे माफी मांगी कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई। मुझे ऐसे समय में आपके पास नहीं आना चाहिए था। अपनी विनम्रता से मैंने उनका गुस्सा एकदम शांत कर दिया। उन्हीं के कमरे में उनको बैठा दिया, बेड पर ही। फिर दो कप कॉफ़ी बनाकर ले आई। उन्हें कॉफ़ी बहुत पसंद है। कप उनके हाथों में पकड़ा कर मैंने फिर माफी मांगी।
जब उन्होंने पहली शिप ली तो मैंने पूछा मॉम कॉफ़ी कैसी बनी है? उन्होंने जो जवाब दिया वह मैं पहली बार सुन रही थी। क्योंकि वह हमेशा कहती थीं कि, ‘तुम अच्छी कॉफ़ी नहीं बना सकती। तुम्हें कम से कम कॉफी, चाय, पेस्ट्री, केक बनाना तो आना ही चाहिए।लेकिन उस दिन उन्होंने कहा कि, ‘बढ़िया बनी है।मैं जानती थी कि वह मेरी झूठी प्रशंसा कर रही हैं। लेकिन मैं अनजान बनी रही। मैंने थैंक्यू बोला। कुछ इधर-उधर की बातें तब-तक कीं जब-तक कि कॉफ़ी खत्म नहीं हो गई।
उसके बाद कप किचेन में रख कर मैं वापस उनके पास आ कर बैठ गई। फिर स्टेट फ़ॉरवर्ड बात करने की अपनी आदत के अनुसार ही उनसे पूछा कि जस्टिन से आपका क्या झगड़ा हुआ था, मुझे बताइए। मैं सही बात जानकर जस्टिन से बात करूंगी, उसे समझाऊंगी, मैं कल कॉल करूंगी, मैटर सॉल्व करूंगी, यह कोई तरीका नहीं हुआ कि जस्टिन मामूली सी बात के कारण हमेशा के लिए घर छोड़ दे। अपनी मॉम, सिस्टर को हमेशा के लिए छोड़ दे।
मेरे क्वेश्चन पर मदर चुप्पी साधे रहीं। फिर एक बार वह सामने दीवार पर लगी प्रभु जीसस के कैलेंडर को देखने लगीं। मैंने सोचा यह तो अच्छी बात नहीं है। मदर को बोलना चाहिए कि वह हम सब बच्चों से, अपने बच्चों से, इतनी दूरी बनाकर कैसे रह सकती हैं। मैंने पूरा जोर देकर फिर प्रश्न रिपीट किया। तब वह नाराजगी भरे स्वर में बोलीं, ‘प्लीज मुझे परेशान नहीं करो। मैं इस टॉपिक़ पर कोई बात नहीं करना चाहती। तुम लोग बड़े हो गए हो, जो ठीक समझो करो, मैं कहीं भी किसी के बीच में नहीं हूं। मुझे, और तुम दोनों को भी अपना जीवन अपने हिसाब से जीना चाहिए। प्रभु जीसस ने हमें यह राइट दिया है। हमें किसी के बीच में नहीं आना चाहिए।मदर ने इसी तरह कई बातें बिना रुके ही कह डालीं। उन्होंने जो बातें, जिस टोन में कहीं उस टोन में उन्होंने पहले कभी घर में बात नहीं की थी। मैं बेहद आश्चर्य में थी। मदर को क्या हो गया है। इतने रफ़टोन में क्यों बात कर रही हैं। हम दोनों भाई-बहन इनकी किसी बातचीत में कब आए हैं। यह नौकरी के अलावा कौन सा काम कर भी रही हैं कि हम इनके बीच में आते हैं।
मैं उनके कठोर व्यवहार से नाराज तो तभी से थी जब से वह जस्टिन से लड़ी थीं। जिसके कारण भाई ने हमेशा के लिए घर छोड़ दिया और उन्हें इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी। इनका बिहेवियर तो ऐसा हो रहा है जैसे कि यह हम दोनों की मदर हैं ही नहीं। कोई बाहरी हैं।
इन्हें देख कर तो लगता ही नहीं कि अभी जल्दी ही हमारे फादर, उनके हस्बैंड की एक्सीडेंट में डेथ हो गई है। ओह... जीसस कितनी दर्दनाक थी उनकी डेथ। कितनी भयानक चोटें थीं उनके चेहरे, सिर, सारे शरीर पर। क्या फादर की इतनी दर्दनाक मौत का इन पर कोई असर नहीं है। इन्हें दुख नहीं है। मुझे वह दृश्य एकदम आंखों के सामने चलता हुआ सा दिखा। ऐसा लगा जैसे दृश्य मेरे सामने से गुजरते हुए आगे जा रहा है। जब मैंने हॉस्पिटल में उन्हें खून से लथपथ पट्टियों से भरा देखा था। कितना भयावह हो चुका था उनका चेहरा। यह सब याद आते ही मेरा गुस्सा एकदम बढ़ गया।
मैंने कहा आप कैसी बातें कर रही हैं? आज तक आप ने जस्टिन और मेरे किसी काम में और हम दोनों ने कभी आपके किसी काम में कोई बात कहां की है। ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। फिर आप ऐसी बातें क्यों कर रही हैं। हम लोग आपके लिए अचानक इतने डिस्टर्बिंग एलिमेंट कैसे बन गए, हां फादर को लेकर जो बात है उसे आप खुलकर साफ-साफ बताइए। मेरा टोन भी थोड़ा नाराजगी से भरा था। मैंने पहले कभी भी भाई, पैरेंट्स से इतने खराब टोन में बात नहीं की थी। इसलिए मदर को भी शॉक लगा। वह बड़ी देर तक मुझे देखती रहीं। फिर कहा, ‘तुम्हें मुझसे इतनी बदतमीजी के साथ बात करने का हक़ किसने दिया। क्या तुम इतनी बड़ी हो गई हो कि मुझसे क्वेश्चन करो।
मॉम बहुत नाराज हो गईं। लेकिन मैंने भी वह रीजन जान लेने की ठान ली थी, जिसके कारण वह परिवार से इतना नाराज थीं। हमारी उनकी बहस लंबी होती गई। बहुत ही गर्म भी। आखिर जब मुझे लगा कि मदर मानसिक रूप से सच बताने की स्थिति में आ गई हैं, तो मैंने पूरा प्रेशर देकर कहा, मॉम आप प्रभु जीसस को मानती हैं। उन पर आपका अटूट विश्वास है, मेरा भी है, वह हमारे अच्छे-बुरे सारे कामों को देखते रहते थे, उनसे हम कुछ भी छुपा नहीं सकते हैं। हमारे दुखों का कारण ही यही है कि हम छुपाने का प्रयास करते हैं।
प्रभु यीशु शरण में आए व्यक्ति का दुख दूर करते हैं, जब आप उनसे अपने पाप को माफ करने के लिए प्रार्थना कर रही हैं। आप उनके शरण में है, तो फिर परेशान होने की क्या जरुरत है। वह सब ठीक करेगा। आप जिस पाप की बात कर रही हैं। जिसके कारण आप इतना परेशान हैं। उसे बताइए ना, आखिर हमने क्या किया है, कि आप मुझसे, जस्टिन से, फादर से इतना नाराज़ हैं। जस्टिन ने घर से रिलेशन खत्म कर दिए हैं। आप बार-बार गॉड से माफ़ी मांग रही हैं। सोचिए, सोचिए कितने दुख की बात है कि डैड की डेथ हो गई है। प्लीज बताइए, बताइए क्या बात है? आप बता कर ही प्रॉब्लम सॉल्व कर सकेंगी।
मैं बिल्कुल पीछे पड़ गई। मैंने कन्फ़ेशन की बात भी फिर उठाई। इसके बाद मॉम को लगा कि मैं बहुत कुछ जान चुकी हूं तो अंततः सच बता दिया। जिसे सुनकर मैंने सोचा जस्टिन ने जो किया सही किया। मुझे भी उसी के रास्ते पर जाना चाहिए। गुस्सा इसलिए भी मेरा और ज़्यादा बढ़ रहा था कि मैं यह भी समझ रही थी कि मदर को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है।
फादर की डेथ का एकमात्र कारण वही निकला जिसका आरोप फादर बराबर लगाते थे। और मदर पूरी ढिठाई के साथ झूठ पर झूठ बोलकर उन्हें ही झूठा, शक्की स्वभाव का अनकल्चर्ड आदमी कहकर उनकी इंसल्ट करती थीं। जो सच अब यह स्वीकार करने की हिम्मत कर पाई हैं, यदि यह उसी समय कर लेतीं, प्यार से फादर से माफी मांग लेतीं तो वह निश्चित ही माफ कर देते। वह कितने दयालु, कितने लिबरल थे। कितनी बार रिक्वेस्ट करते थे कि प्लीज सच बता दो मैं कुछ नहीं कहूंगा। गलतियां इंसान से हो ही जाती हैं। हम दोनों एक अच्छे कपल की तरह अपने बच्चों के साथ रहेंगे।
लेकिन मदर ने जो एक बार झूठ को सही कहने की रट लगाई थी तो सच स्वीकार करने से पहले तक लगाती ही रहीं। इनका जो सच है उससे भले ही फादर की यह बात ना सच हो कि जस्टिन और मैं उनके बच्चे नहीं हैं, लेकिन इस बात के सच होने की पूरी संभावना है कि अपने जिस तीसरे चाइल्ड को अबॉर्ट करा दिया था वह फादर का नहीं था। इसीलिए फादर ने जिद करके अबॉर्ट कराया था। और मदर की हरकतों के कारण ही परेशान होकर उन्होंने अंधाधुंध शराब पीनी शुरू कर दी थी। एक तरह से वह शराब के जरिए खुद को खत्म करने पर तुले हुए थे।
बेचारे हम सब को कितना प्यार करते थे, मदर को भी। लेकिन जब से वह हॉस्पिटल में किसी के साथ जुड़ीं तब से सब कुछ बदलता चला गया। इस तरह की बातें छुपी नहीं रहतीं तो फादर से कैसे छिप जातीं। उन तक पहुंच ही गईं। जिसे मदर बार-बार झूठ बताती रहीं। अंततः फादर उनके इस झूठ की बलि चढ़ गए। ऐसी बातें परमाणु विखंडन से भी कहीं तेज़ एक से दो, दो से चार, चार से आठ से भी ज़्यादा तेज़ी से लोगों तक पहुंचती हैं। जस्टिन तक भी पहुंचीं। फादर से तो हम बराबर सुनते ही रहते थे। उनके ना रहने पर आए लोगों में ही वह व्यक्ति भी था जिसकी वाइफ मदर के साथ हॉस्पिटल में है। उसकी वाइफ उससे सब कुछ बताती थी। इस कपल ने फादर की दर्दनाक मौत पर गुस्से में जस्टिन को साफ-साफ सच बता दिया था।
वह दोनों को पनिश कराना चाहते थे। पता नहीं उसकी मंशा पूरी हुई कि नहीं लेकिन जस्टिन सच को मां से ही जानना चाहता था। उसे झटका लगा था कि फादर की जिन बातों को वह झूठ समझता था, एक ड्रिंकर का बेतुका अनर्गल प्रलाप समझता था। वास्तव में वही सच था, सच्चा था। मदर पर लगाए गए उनके एक-एक आरोप सही थे। मदर से उसने बहुत ही अग्रेसिव होकर बात की थी। मदर उस कपल से झगड़ने को तैयार हो गई थीं, जिसने जस्टिन को सब कुछ बताया था।
लेकिन जब जस्टिन ने तमाम बातें साफ-साफ कह दी थीं तो मदर के पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा था। तब वह खीझकर आउट ऑफ कंट्रोल हो गईं थीं. शॉक्ड इसलिए हुईं थीं कि उनका जो बेटा उनकी ही बातों को सच, सही मानता था वह उसी के सामने कंप्लीटली एक्सपोज़ हो गई थीं। उनका एक-एक सच झूठ निकला था।
जस्टिन लोगों के सामने अपनी इंसल्ट बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। इसलिए मदर से बराबर भिड़ गया था। उन मदर से जो अपने झूठ को भी सच साबित करने के लिए फादर के सामने भी एक स्टेप भी कम रखने को तैयार नहीं होती थीं। तो उसके सामने कैसे कमजोर पड़तीं। जस्टिन तो दूसरे हॉस्पिटल में जाने, या नौकरी छोड़ देनेे, उस आदमी से संबंध खत्म करने के लिये कह रहा था तो वह यह कैसे बर्दाश्त कर लेतीं।
जस्टिन भले ही अपनी जगह सही था, लेकिन सच यह भी तो है कि जो संबंध इतने सालों से बने हुए हों वह एक मिनट में, एक दिन में कैसे खत्म हो जाएंगे। मदर जस्टिन से इसलिए भी नफरत करने लगी थीं, क्योंकि जब फादर के ना रहने पर चौथे दिन वह आदमी दुख प्रकट करने के लिए घर आ गया तो हॉस्पिटल के उस फॉर्मेसिस्ट को जस्टिन ने दरवाजे से ही बुरी तरह इंसल्ट कर के भगा दिया था।
उस व्यक्ति की इंसल्ट से मदर इस कदर नाराज हुई थीं कि जस्टिन से साफ कह दिया कि, ‘मैं अपनी लाइफ अपनी तरह से जीने की हकदार हूं। तुम मेरे बेटे हो, तुम्हें मैंने यह अधिकार नहीं दिया कि तुम यह डिसाइड करो कि मैं क्या करूं, क्या ना करूं, ओके यंग ब्लड।जस्टिन भी उखड़ गया था। उसने तब वह बातें भी कहीं जो एक बेटे को मां से किसी भी हालत में नहीं कहनी चाहिए थीं। मदर ने तब यही कहा था।
उन्होंने जो बातें बताईं उसे सुनकर मुझे भी लगा था कि जस्टिन को वह बातें नहीं कहनी चाहिए थीं। मदर ने भले ही बड़ी गलती की है। फिर सोचा जब इतने दिनों बाद सुनकर, एक लड़की होकर, मदर की बातों से दिमाग फट रहा है। खून उबल रहा है तो वह तो लड़का है। एक मर्द है, उससे तो मदर से बहस तब हुई थी जब लोहा बिल्कुल गर्म था। जब फादर के लिए की गई लास्ट प्रेेयर की गूंज भी शांत नहीं हुई थी।
मैंने मदर से उस समय बहुत सोच समझकर कहा, मॉम इतना सब कुछ हो चुका है, अब तो डैडी भी नहीं रहे। यह पूरे यकीन के साथ पूछ रही हूं कि आप जो सच होगा वही कहेंगी। हमारे बीच यहां प्रभु यीशु भी मौजूद हैं। केवल इतना बता दीजिए कि क्या आप उस इंसान को छोड़ नहीं सकतीं जिसके कारण फादर नहीं रहे। घर में हमेशा उस आदमी के कारण फसाद होता रहा। तुम्हारा बेटा तुम्हें हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। मैं अपना कहूं तो अब कितने दिन आपके साथ रह पाऊँगी  बता नहीं सकती। मेरी इन बातों का मदर ने कुछ जवाब नहीं दिया। चुप रहीं। मैंने दो बार रिपीट किया तो भी नहीं बोलीं। फिर ज़्यादा प्रेशर डाला तो बोलीं।
मैंने बहुत कोशिश की माय चाइल्ड, लेकिन मैं विवश हूं। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे वह मुझ में ही समाया हुआ है। इसलिए मैं समझती हूं कि मैं कुछ भी कर लूं, उससे अलग नहीं हो सकती।मदर की इस बात ने मेरे गुस्से को और बढ़ाया। जिससे मैंने उनसे वह प्रश्न पूछ लिया जो निश्चित ही उनके लिए जीवन का सबसे कड़वा प्रश्न था, सबसे कठिन भी, जिसका जवाब सिर्फ़ उन जैसी विकट हिम्मतवाली या एक्सट्रीम बोल्ड लेडी ही दे सकती है। ऐसी लेडी जिसके लिए अपने सुख से बढ़कर और कुछ नहीं है। हस्बैंड भी नहीं, बच्चे भी नहीं। उनकी बातों से मैं खुद को इमोशनली बहुत हर्ट फील कर रही थी, तो मुझे कड़वा प्रश्न पूछने में कोई प्रॉब्लम नहीं हुई थी।
मैंने विदाउट हेज़िटेशन पूछ लिया, मॉम जब उस आदमी से तुम्हारे इतने सालों से रिलेशन हैं तो एक बात मैं प्रभु यीशु के सामने इस यकीन के साथ पूछ रही हूं कि जैसे अभी तक आप इतनी बोल्डनेस के साथ जीसस के सामने सच बोल रही हैं, वैसे ही सच ही बताएंगी। मेरी इस बात पर वह मेरी तरफ देखती हुई बेहद शिकायती लहजे में बोलीं, ‘अब बाकी ही क्या बचा है जो छुपाऊंगी। सब पीछे पड़ जाएं तो कुछ छुपता नहीं है, जो पूछना है पूछो।उनकी बातों को मैंने कड़वे घूंट की तरह पिया और कहा, बहुत सी भले ही ना हों लेकिन एक बात है जिसे आप चाहेंगी तभी पता चल सकेगा।
इस पर वह प्रश्न भरी आंखों से मुझे देखने लगीं, तो मैंने पूछा मॉम अब डैड तो रहे नहीं, इसलिए सच बताने से कोई प्रॉब्लम भी होने वाली नहीं है। यह बात कितनी सच है कि जस्टिन और मैं उनके नहीं तुम्हारे उस फॉर्मेसिस्ट फ्रेंड के बच्चे हैं। मेरा यह पूछना था कि वह चीख पड़ीं थीं, ‘एमीमैं चुप नहीं हुई, डरी नहीं, तो वह बोलीं, ‘अब तुम भी इस तरह से क्वेश्चन कर रही हो। पहले तुम्हारे डैड फिर जस्टिन और अब तुम। मैंने सोचा था कि जस्टिन के बाद इस प्रश्न से हमेशा के लिए पीछा छूट जाएगा।उनकी बात को मैंने ध्यान से सुना, फिर उन्हें पूरी इंपॉर्टेंस देते हुए कहा आपने डैड या उनके बाद जस्टिन को सच बता दिया होता। सही जवाब दे दिया होता तो यह प्रश्न फिर कभी आपके सामने आता ही नहीं। जब-तक उत्तर नहीं बताएंगी तब-तक तो यह प्रश्न बना ही रहेगा। मैं अपनी बात पर अडिग हूं।
उन पर प्रेशर डालती रही तो उन्होंने आखिर वह सच बताया जिसे डैड, जस्टिन नहीं जान पाए। जिसके कारण डैड जीवन से हाथ धो बैठे। जिसे सुनकर मुझे पसीना आ गया। मॉम ने खीझते हुए कहा कि, ‘जस्टिन और तुम डैड के ही बच्चे हो। जो उनका नहीं था उसे उन्होंने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया। मुझे मजबूर कर दिया अबॉर्ट कराने के लिए। टाइम ज़्यादा हो चुका था, इसके बावजूद अगेंस्ट द लॉ जाकर कराया। मेरी लाइफ खतरे में पड़ी, मगर उन्हें अपनी जिद की पड़ी थी। उसे पूरी करके ही माने।मैंने कहा मॉम जब आपने उनकी पहली जिद कि उस आदमी से कोई संबंध नहीं रखने की नहीं मानी, जिसे मान लेने से अब तक जो कुछ हुआ वह होता ही नहीं तो एबॉर्शन की बात इतनी आसानी से कैसे मान ली।
मॉम ने जैसे पहले ही अंदाजा लगा लिया था कि मैं यह प्रश्न करूंगी, इसलिए वह जवाब देने के लिए खुद को एकदम तैयार किए हुए थीं, तुरंत ही कहा, ‘वह बेबी जन्म लेता तो यह कितना बड़ा तमाशा करते दुनिया के सामने, कैसे मुझे बेइज्जत करते इसका अंदाजा तुम भी लगा सकती हो। मुझे पूरा यकीन था कि वह डीएनए चेक करा कर ही मानते। ऐसे में मेरी, बच्चे की और उस आदमी की जो इंसल्ट होती वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। तुम दोनों भी परेशान होते।
मुझे बड़ी गुस्सा आई। सोचा अपने स्वार्थ के लिए अबॉर्ट कराया और ज़िम्मेदार फादर को बता रही हैं। हो तो यह भी सकता है कि वह आदमी भी ना चाहता रहा हो कि उसकी संतान ऐसी जगह जन्म ले, जहां वह जब चाहे तब जा भी नहीं सके। उसे गोद में भी ना ले सके। संतान उसकी होगी और नाम दूसरे का होगा।
इसलिए मैंने सोचा यह बात भी इसी समय क्लीयर कर लूं कि वह आदमी क्या चाहता था। उसने अबॉर्सन के लिए हां कही थी या भरपूर विरोध किया था। पूछने पर मुझे सीधा जवाब नहीं मिल रहा था। फादर को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा था। बहुत कुरेदने, प्रभु यीशु का वास्ता देने पर सच सामने आया, कि वह आदमी भी नहीं चाहता था कि बच्चा जन्म ले। वह शुरू से ही मना करता रहा। उसका कहना था कि उसके तीन बच्चे पहले ही हो गए हैं, एक और बच्चे को वह अभी इस तरह से दूसरे घर में नहीं चाहेगा।
सच जानने के बाद फादर के प्रति सम्मान, उनके प्रति मेरा इमोशनल अटैचमेंट बहुत बढ़ गया। मॉम के प्रति इमोशनल अटैचमेंट कम होना शुरू हो गया था। मैंने जब देखा कि मॉम सारी बातें कह देना चाहती हैं। कुछ इस तरह लग रहा था जैसे कि वह चाहती हैं कि इस टॉपिक पर जितनी बातें करनी हैं, जो कुछ मुझे कहना, सुनना है, वह सब मैं इसी समय कर लूं। इसके बाद फिर कभी इस टॉपिक पर बात नहीं करनी है।
तो मैंने भी सोचा कि यही अच्छा है, रोज-रोज बहस से क्या फायदा। यह उस आदमी को इतना चाहती हैं तो बेहतर तो यह था कि फादर से अलग हो जातीं। डायवोर्स लेकर उसी के साथ रहतीं। दो नावों पर सवारी करने की कोशिश से आखिर क्या मिला? मेरे फादर, एक जेंटलमैन की, एक ग्रेट फादर की जान जरूर चली गई। जस्टिन जैसे भाई से मैं हाथ धो बैठी। यह सब मैंने मॉम से पूछा तो उनका बड़ा अजीब उत्तर मिला।
एक्चुअली मेरे लिए यह पॉसिबल नहीं था। क्योंकि वह व्यक्ति इस बात के लिए तैयार नहीं था कि मुझसे वह शादी करे या मेरे साथ अलग रहे। वह अपनी फ़ैमिली को नहीं छोड़ना चाहता था।मैंने कहा, आश्चर्य है, जो व्यक्ति अपनी फ़ैमिली को फर्स्ट प्रिफेरेंस देता है, उसके बाद कुछ सोचता है, ऐसे व्यक्ति के लिए आपने अपनी फ़ैमिली की लाइफ को नष्ट कर दिया। अपने हस्बैंड को बेमौत मर जाने दिया। सालों-साल वह व्यक्ति पूरे मन से आपको पाने के लिए परेशान रहा। इतना ज़्यादा कि अपने वजूद को बचाए रखने के लिए उसे खुद को शराब में डुबो देना पड़ता था। और अंततः इन्हीं बातों ने उनकी जान ले ली।
मैंने तब बहुत ही ठंडे स्वर में कहा, मॉम आपको यह नहीं लगता कि उस व्यक्ति ने आपको अपना मन बहलाने का एक टूल बना कर रखा हुआ है। जब-तक घर में है, तब-तक फ़ैमिली है, बीवी है। जब आठ-दस घंटे बाहर है, ऑफ़िस में है, तो इतने समय के लिए भी एंजॉयमेंट का कुछ अरेंजमेंट होना चाहिए। तो उसने इतने समय के लिए आपको अपना एंजॉयमेंट टूल बना लिया। क्या आपको ऐसा नहीं लगता। मॉम ने तपाक से उत्तर दिया, ‘अपनी बात को अपोजिट एंगल से देखो, यही बात तो वह भी कह सकता है।मैंने कहा अपोजिट एंगल से बात तब कही जा सकती है जब आप भी उसी की तरह अपने हस्बैंड को, फ़ैमिली को छोड़ने के लिए तैयार ना होतीं।
जैसे वह संबंध घर के बाहर तक रखना चाहता है, वैसे ही आप भी करतीं। मगर आप तो... बीच में ही मदर बोलीं, ‘मैंने पहले ही कहा कि मैं फ़ैमिली को लेकर, तुम्हारे फादर को लेकर भी अवेयर थी। मगर फ़ैमिली को लेकर मैं उतनी कट्टर नहीं हूं जितना कि वह थे। तुम्हारे फादर का विहैवियर जिस तरह इस मैटर को लेकर हार्डकोर होता जा रहा था उससे मुझे अलग होने के लिए ज़्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती।
मैंने कुछ देर और बातें करने के बाद पूछा। मॉम मैं नहीं समझ पा रही हूं कि मुझे पूछना चाहिए कि नहीं, लेकिन पूछ रही हूं कि आप आखिर फादर से ऐसा क्या चाहती थीं जो वह आपको नहीं दे पाते थे, और वह सब आपको उस आदमी से मिलता है नहीं, बल्कि इतना और ऐसा मिलता है कि आप इस कंडीशन में भी उसे छोड़ने को छोड़िए, छोड़ने के बारे में सोच भी नहीं पा रही हैं। बल्कि उसे हस्बैंड से भी ऊपर रखा हुआ है। मॉम चुप रहीं। कई बार पूछने पर कहा, ‘मैं बहुत क्लीयर कुछ नहीं कह सकती, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है कि मैं जिस पीस, सैटिस्फैक्शन को चाहती हूं, वह उसके पास पहुंचते ही मुझे मिल जाते हैं। तुम्हारे फादर को या तो मैं नहीं समझ पायी कि वो मुझसे क्या चाहते हैं, या फिर शायद वह मुझे समझ नहीं पाए, मुझे नहीं समझा सके कि उन्हें मुझसे क्या कुछ चाहिए, कितना चाहिए। शायद दोनों ही एक दूसरे को नहीं समझा सके, ना समझ सके।
उनकी यह चतुराई भरी बातें मुझे बहुत बुरी लगीं। मैं खुद को रोक नहीं सकी। मैंने कहा, मॉम मैं भी बड़ी हो गई हूं। बहुत सी बातें समझती हूं। यह भी जानती हूं कि अनुभव भले ही मेरा कम है, लेकिन घर में सालों से चले आ रहे माहौल ने मुझे बहुत मैच्योर बना दिया है। यहां कुछ कॉम्पलिकेसन जैसी कोई बात ही नहीं थी, कोई भी हस्बैंड यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी नॉलेज में उसकी मिसेज किसी थर्ड पर्सन के साथ रिलेशनशिप में रहे। इसीलिए आपको मना करते थे। आप मानने को तैयार नहीं थीं। बस इतनी सीधी सिंपल सी बात है। सिंपल सी बात को आप सिंपली स्वीकार कर लेतीं तो मैं पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ कहती हूं कि बात जैसे भी हो मैनेज हो जाती। फादर इतने लिबरल थे कि वह कोई ऐसा रास्ता जरूर निकालते, आपके साथ मिलकर ही निकालते कि ऐसी हालत नहीं होती। जो कुछ हुआ ऐसा नहीं है कि उससे आपको कष्ट नहीं हो रहा है। टेंशन में आप भी हैं।
मैं इतना ही चाहती हूं कि जो बिगड़ गया है, फ़ैमिली जो बिखर गई है, यदि आप बातों को ऐसे ही कॉम्प्लिकेटेड बनाए रहेंगी तो जो अब तक बचा रह गया है उसके भी बिखरने में समय नहीं लगेगा। हम दोनों भी हमेशा के लिए अलग हो सकते हैं। इसलिए आपसे रिक्वेस्ट है कि बातों को सिंपली एकदम क्लियरली बोलिए, अब मैं अच्छी तरह समझ चुकी हूं कि आप उस आदमी से रिलेशनशिप के बिना नहीं रह सकतीं। सॉरी मैं यह भी कह देना चाहती हूं कि उसके साथ आपका जो भी रिलेशन है, वह ओवरऑल फिज़िकल ही है। आप दोनों के बीच इमोशनल अटैचमेंट कोई बहुत स्ट्रॉन्ग पोजीशन में नहीं है। बल्कि सच यह है कि कोई इमोशनल अटैचमेंट है ही नहीं। ऐसे में मैं यही कहूंगी कि आप खुश रहें, टेंशन फ्री रहें, ऐसा ही काम करें। आप चाहें तो उसे साथ लाकर यहीं रहें। मैं रेंट पर कहीं और रह लूंगी।
फादर की फ़ैमिली पेंशन आपने मेरे नाम कर ही दी है। मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी, वैसे भी मैं जल्दी ही सेल्फ डिपेंड हो जाऊंगी। आपके ऊपर कोई बर्डन नहीं रहेगा। मैं साथ इसलिए नहीं रह सकती क्योंकि मैं उस व्यक्ति को सहन नहीं कर पाऊंगी जो मेरी फ़ैमिली की बर्बादी का कारण बना, जिसके कारण मेरे डैड की दर्दनाक मौत हुई। लेकिन क्योंकि आप मेरी मदर हैं, आपकी खुशी में मेरी खुशी है। मेरे कारण आप खुश ना रह सकें यह भी गलत है। यह मैं नहीं चाहूंगी। इसलिए मैं आपसे खुशी-खुशी कह रही हूं कि आप उस व्यक्ति के साथ रहें । मॉम यह कहते हुए मैं यह भी सोच रही हूं कि हर मदर को भी औरों की तरह खुश रहने का अधिकार है। जैसे भी वह खुश रहें।
हमारी बहस निर्णायक दौर में पहुंच चुकी थी। मैं सब कुछ उसी समय फाइनल कर देना चाहती थी। कल पर कुछ भी नहीं छोड़ना चाहती थी। और मदर उस व्यक्ति को। तो फाइनली डिसाइड हुआ कि वह उसके साथ अब तक जैसे रह रही हैं वैसे ही रहेंगी। मुझे कहीं जाने की जरूरत नहीं।
इस डिसीजन तक पहुंचने में जितनी और जिस तरह की बातें हम मां-बेटी के बीच हुईं, वह कई बार बहुत बोल्ड, बहुत गुस्से से भरी, तो कभी भावुकता से भरी रहीं। कई बार दोनों की आंखों से खूब आंसू भी टपके। मगर अच्छा यह रहा कि हम एक डिसीजन तक पहुंच गए। और साथ ही मैं एक नए निष्कर्ष पर भी पहुंची, कि सीमोन बोउवार की सेकेंड सेक्स किताब में लिखी यह बात पूरी तरह सच नहीं है कि यह कहना अतिशयोक्ति ना होगी कि पुरुष  नारी का आविष्कार कर लेता, यदि परमात्मा ने नारी की सृष्टि ना की होती।

मैंने मन ही मन कहा कि इस इक्कीसवीं सेंचुरी का पूरा सच यह है कि, ‘नारी ने अपने लिए पुरळष का आविष्कार कर लिया होता यदि परमात्मा ने पुरळष की सृष्टि ना की होती।उस वक्त मुझे अपने कुछ फ्रेंड्स की और उनके रिलेटिव्स की बातें, उनके किए गए काम याद आ रहे थे। जो कि मेरी मॉम से कम नहीं थे, बल्कि दो तो ऐसे विचारों की हैं, ऐसी लाइफ़स्टाइल को जीती हैं कि उसे देखते हुए यह मानने में मुझे कोई शक नहीं कि मेरी मॉम उनसे बहुत पीछे हैं।
मगर इस डिसीजन ने मेरे कॅरियर पर बहुत बुरा प्रभाव डाला। मदर से एक लंबे गैप या यह कहें कि ना के बराबर कम्युनिकेशन होने, इमोशनल रिश्ते के कमजोर से धागे से जुड़े होने के कारण मेरा कॅरियर बिखर गया। मैं स्वयं कॅरियर के लिए पूरा एफ़र्ट नहीं कर पा रही थी। ड्रीम डॉक्टर बनने का था लेकिन वीक एफ़र्ट, मौज-मस्ती की तरफ ज़्यादा झुकाव के चलते डॉक्टर नहीं बन सकी। किसी तरह नर्स बन गई।
यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि मदर से अच्छे रिलेशन होते और वह अपनी खुशियों को सेलिब्रेट करते हुए एक गुड मदर, गुड पेरेंट्स का भी रोल अच्छे से प्ले करतीं तो मैं डॉक्टर बन जाती। पढ़ने में कतई कमजोर नहीं थी। हां तब मेरा स्वभाव ऐसा था कि उसे देखते हुए मुझ पर गुड पैरेंट की एक पतली सी छड़ी की छाया बनी रहनी चाहिए थी। जो मुझे ठीक रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती, उस पर चलने के लिए प्रेशर बनाए रखती। पतली सी छड़ी की छाया ना होने का रिजल्ट यह हुआ कि डिसीजन डे के तीन साल बाद ही मैं बुलेट बाइक ले आई। मदर से पूछा तक नहीं। पूछती भी क्यों, उनसे कोई रिश्ता रह ही कितना गया था।
उन्होंने घर में नई बाइक देखी लेकिन कुछ पूछा तक नहीं। उनके पास अपनी खुशी सेलिब्रेट करने के बाद इतना समय कहां रहता था कि वह यह देखतीं कि मैंने कुछ साल पहले डैड द्वारा साइकिल दिए जाने पर बाइक लाने की जिद की थी। और पढ़ाई पूरी किए बिना ही ले आई। मेरी पढ़ाई कैसी चल रही है, क्या पढ़ रही हूं, क्या करूंगी? कभी कुछ नहीं पूछा। वैसे उनसे यह अपेक्षा करना मूर्खता ही थी। डिसीजन डे के बाद हर महीने में दो तीन बार ऐसा होता था कि वह उसी आदमी के साथ ही कहीं जाकर रहती थीं । यह तक नहीं बताती थीं कि कहां हैं। कब आएंगी। किसके साथ हैं। हालांकि मुझे यह तो मालूम ही रहता था। पहली बार जब गायब हुई थीं तब जरूर पूछा था, लेकिन जो रिप्लाई मिला उसके बाद मैंने कभी नहीं पूछा।
असल में एक मकान में ही हम दो अजनबियों की तरह रह रहे थे। एक दूसरे के कमरे में जाते तक नहीं थे। इस बीच मैंने जस्टिन के बारे में जानने की बहुत कोशिश की लेकिन पता नहीं चला। उसके घर छोड़ने के करीब पांच साल बाद एक रिश्तेदार से बाई चांस ही मालूम हुआ कि वह बेंगलुरू में है। वहीं कोई बिज़नेस कर रहा है। और मैरिज भी कर ली है, एक बेटा भी है। यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई थी। मदर को भी बताया था तब उन्होंने धीरे से कहा, ‘ओह जीसस, थैंक्यू।उनकी आंखों में तब मैंने खुशी की चमक देखी थी। मैंने सोचा चलो ठीक है, कोई किसी के साथ नहीं है। सब अलग रह कर खुश हैं तो यही सही।
मैं नर्स की जॉब से कुल मिलाकर संतुष्ट थी। कुछ बड़ा करने की इच्छा कहीं गहरे दब चुकी थी। नर्स की जॉब करते-करते मुझे पांच साल बीत गए थे। और साथ ही कार्लोस के साथ रिश्ते बने हुए तीन साल। वह बड़ा ही सक्सेसफुल मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था। हॉस्पिटल में ही मुलाकात हुई थी। हम दोनों एक ही तरह की लाइफ स्टाइल पसंद करते थे। इसलिए जल्दी ही बहुत क्लोज हो गए। कुछ दिन बाद ही मैंने मदर से उसका परिचय करा दिया था। मैंने देखा उन्होंने उसे कोई इंपॉर्टेंस नहीं दी। हालांकि तब-तक मेरे लिए इस तरह की बातें कुछ मैटर भी नहीं करती थीं।
वह कुछ कहतीं भी तो क्या? जल्दी ही कार्लोस घर पर रुकने भी लगा। वह एक जबरदस्त बाइकर था। मैं जान छिड़कती थी उसकी बाइकिंग पर। उसकी बाइक भी बुलेट ही थी। छुट्टी मिलते ही हम दोनों लंबी राइड पर निकल देते थे। एक बार हम दोनों ने अपनी बाइकिंग कैपेबिलिटी को चेक करने की सोची। तय किया कि इस बार छुट्टी में किसी हिल एरिया के लिए निकलेंगे।
छुट्टी मिलते ही हम दोनों एक ही बाइक पर हफ्ते भर के टूर पर निकल दिए। लखनऊ से हरिद्वार, देहरादून होते हुए चंपावत तक गए। यह लम्बा रास्ता था। हमें लखीमपुर होते हुए सीधा रास्ता पकड़ना चाहिए था। मगर मस्ती में चूर हमारा जिधर मन हुआ उधर ही चल दिए। सीधा या टेढ़ा कुछ भी हमारे मन में नहीं था। छुट्टियां कम पड़ रही थीं, लेकिन हम दोनों ने तय किया कि हम अपना टूर चंपावत तक पूरा करके ही लौटेंगे।
हम अपनी जर्नी के आखिर में चंपावत स्थित बनबसा के उस स्कूल और अनाथालय भी गए जिसके बारे में फादर ने कई बार बताया था। उनके अनुसार हमारे ग्रैंड फादर उस स्कूल में पढ़े थे। हमें जब पता चला कि स्कूल के संचालक ब्रिटेन के एक नागरिक हैं तो हमने वहां के लोगों से उनका संपर्क नंबर मांगा, मगर न जाने क्यों उन लोगों ने नंबर नहीं दिया। मगर हम निराश नहीं हुए और अपनी रोमांचक जर्नी पूरी कर वापस चल दिए।
जैसी खूबसूरत मस्ती भरी हमारे टूर की रवानगी थी, वापसी उसके उलट अत्यंत दुखद रही। रास्ता पूरा करने के बाद घर के करीब पहुंचे तो रिंग रोड पर हमारी बाइक एक पेट्रोल टैंकर से टकरा गई। कार्लोस ऑन द स्पॉट हमें छोड़कर प्रभु यीशु के पास चला गया। मेरा एक पैर, हाथ, कई पसलियां टूट गर्ईं । दो महीने हॉस्पिटलाईज रही। घर पर भी एक महीना बिस्तर पर ही बीता। इस दौरान मदर ने जिस तरह मेरी देखभाल की वह बहुत अच्छी थी। लेकिन एक मां की तरह नहीं, एक इनक्रेडिबल नर्स की तरह।
इस सारे समय मुझे डैड की बहुत याद आई। कार्लोस ने मुझे बहुत आंसू दिए। मैं बेड पर पड़े-पड़े उसके लिए बहुत रोती। मदर यह देख कर एक बार सिर्फ़ इतना बोलीं, ‘जो नहीं रहा उसके लिए रोते नहीं। जो दुनिया में सामने है उसे देखो।मैंने सोचा क्या देखूं, जो देख रही हूं वह कहीं से कम से कम मेरे लिए तो अच्छा नहीं है। कितनी बार मुझे आपके हेल्प की तुरन्त जरूरत पड़ी, लेकिन आप अपने कमरे में उस बास्टर्ड आदमी के साथ बंद रहीं। आप दोनों की आवाज़ मुझ में कितनी खीज पैदा करती थी इसका अंदाजा आप नहीं लगा सकतीं।

आप दोनों की आवाज़ सुनकर बार-बार डैडी की याद आ जा रही थी। लगता जैसे वह अभी कमरे से निकल कर मेरे पास आएंगे, प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछेंगे, ‘कैसी हो माय चाइल्ड।मदर से मैंने यह भी बताया कि हम उस स्कूल और अनाथालय भी गए थे जहां ग्रैंडफादर ने अपना समय बिताया था। लेकिन मदर ने हमारी बात का कोई रिस्पांस नहीं दिया। वह जब हॉस्पिटल चली जातीं तो मैं दस-बारह घंटे के लिए एकदम अकेली हो जाती। शुरुआती एक महीने तो दस-बारह घंटे मैं डायपर के सहारे ही बिता पाती थी। उस तकलीफ के क्षण कई बार मन में आया कि मैं भी कार्लोस की तरह मर जाती तो अच्छा था। जीसस ने मुझे इस तरह की तकलीफ झेलने के लिए क्यों बचा लिया।
मुझे बड़ा याद आता अपना तब का परिवार जब जस्टिन, मैं, पैरेंट्स पूरा परिवार खुशियों से भरा था। सब एक दूसरे को खूब प्यार करते थे। किसी को जरा भी तकलीफ हो जाए तो बाकी सारे लोग उसकी देखभाल में रात-दिन एक कर देते थे। मगर क्या से क्या हो गया था। मदर ने खुद को, परिवार को कहां से कहां पहुंचा दिया था। बेड पर मैंने जो लम्बा समय बिताया उस दौरान जीवन के कई लेशन भी पढ़े, समझे। मदर को लेकर मेरा जो नजरिया था उसमें भी बड़ा चेंज आ गया।
अब उन्हें मैं मदर से पहले एक फ्रेंड मानने लगी। ऐसी फ्रेंड जो अपनी लाइफ को एंज्वाय करे, ऐसी फ्रेंड जिसे अपनी लाइफ को एंज्वाय करने से कोई भी स्थिति रोक नहीं सकती। कोई मर्यादा, सीमा है उसके लिए तो यही कि उसे अपनी लाइफ अपने एंज्वायमेंट से प्यार है। परिवार उसके एंज्वायमेंट में एक रोड़ा था जिससे छुटकारा पाने में उसे कोई संकोच नहीं हुआ। उसी समय मैंने महसूस किया कि मैं उनके रास्ते से पूरी तरह नहीं हट पाई हूं, इसलिए अब मुझे भी पूरी तरह हट जाना चाहिए। मगर कैसे यह तय नहीं कर पा रही थी। काफी समय इसी उधेड़बुन में बीत रहा था। करीब छः महीने बाद मैंने ऑफ़िस ज्वाइन कर लिया था। लेकिन बाइक चलाने लायक नहीं हो पाई थी। ऑटो से ही जाना-आना हो पा रहा था। उस समय भावेश सान्याल मेरे करीब आया। ऑफ़िस में मेरी बड़ी मदद करने लगा। कुछ समय बाद मैं उसी के बाइक पर आने-जाने लगी।
उसके विहेवियर में मुझे अक्सर कार्लोस की झलक मिलती, जब वह मेरी किसी काम में हेल्प करता तो लगता जैसे डैडी उतर आए हैं। मैं ऑफ़िस जाते समय एक बार अपनी बाइक को अवश्य छूती थी। उसे भरपूर एक नजर अवश्य देखती थी। उस पर नजर पड़ती तो कार्लोस की याद एकदम ताजा हो उठती। मैं तब डॉक्टर से बार-बार पूछती थी कि मैं फिर से बाइक चलाने लायक कब तक हो जाऊंगी। वह मुस्कुरा कर कहतेे, ‘मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा हूं।मैं और जोर देती तो कहते, ‘एक वर्ष तो लग ही जाएगा।जब वह एक वर्ष कहते, वह भी निश्चित नहीं तो मेरा दिल बैठ जाता। बड़ी मायूसी होती। एक नर्स होने के नाते मैं भी इतना जानती हूं कि मेरी मेन प्रॉब्लम क्या है। पसलियों ,प्रपादास्थि या तलुओं की  [मेटाटार्सल]  हड्डियों में भयानक टूट-फूट इतनी जल्दी ठीक होने वाली नहीं है। डॉक्टर की बात सुनकर जब मैं सीरियस हो जाती थी तो भावेश बहुत ढांढ़स बंधाता था।
ऑफ़िस ज्वाइन किए हुए मुझे तीन महीने ही हुए थे कि एक दिन छुट्टियों में मैंने मदर को बाथरूम से बाहर आते देखा। वह हफ्ते भर का कपड़ा मशीन में धुल कर बाहर निकल रही थीं। मैंने आंगन में नेचुरल लाइट में उनका चेहरा देखा तो नजर उनके चेहरे पर टिक गई। फिर कई हिस्सों पर टिकी। मैं साफ देख पा रही थी कि उन्होंने अपने शरीर के कई हिस्सों को अल्टर कराया है। खासतौर से अपने ऊपरी हिस्से में, उनके होंठ, गाल, थुड्डी, गर्दन हर जगह चेंज साफ नजर आ रहा था। उन्होंने बड़ी बारीकी से अपनी प्लास्टिक सर्जरी कराई थी। उन्हें देखकर मुझे खुशी हुई। मैं मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी।
मन ही मन कहा मॉम तो इस उम्र में भी इतनी ब्यूटी कॉन्सेस हैं। वह अपनी उम्र से वाकई छः सात साल कम लग रही थीं। सच में खूबसूरत लग रही थीं। मुझसे रहा नहीं गया।
मैंने बोल ही दिया मॉम आप वाकई बहुत खूबसूरत लग रही हैं। मेरी बात का आशय वह समझ गईं थीं। समझते ही बोलीं, ‘थैंक्यू।उनके चेहरे पर भी मुस्कुराहट थी। लेकिन मुझे लगा कि उन्होंने जो चेंज कराया है, हेयर स्टाइल उस हिसाब से मैच नहीं कर रही है। मैंने कहा मॉम हेयर स्टाइल भी चेंज कर लीजिए। मेलिना ट्रंप जैसी स्टाइल इस लुक को और इंप्रूव कर देगी। वह मुस्कुरा कर रह गईं। मॉम की खुशी देख कर मुझे बहुत अच्छा फील हुआ था।
तेज़ी से एक साल का समय बीत गया। लेकिन मेरा पैर ना मेरी और ना ही डॉक्टरों की अपेक्षानुसार इंप्रूव हो रहा था। हालांकि फिर भी आराम से चलने-फिरने लगी थी। लेकिन बाइक चलाने के लायक नहीं हुई थी। इसी बीच एक दिन अचानक ही पता चला कि उस आदमी ने अपनी बीवी को डायवोर्स दे दिया है। और अब वह और मॉम दोनों मैरिज करने जा रहे हैं। उसने अपने को अपने परिवार से बिल्कुल अलग कर लिया है। उस दिन मैंने सोचा यह अच्छा हुआ दोनों लोग मैरिज करके आराम से खुशी से रहें। मन में यह बात भी बड़ी गहराई से उठी कि यह उस परिवार के एंगिल से अच्छा नहीं हुआ है। बहुत बुरा हुआ उसके परिवार के लिए। उसकी मिसेज तीन-तीन बच्चों को लेकर कैसे अपनी लाइफ जियेगी। वह ज़्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं है।
मॉम और इस आदमी ने अपने व्यक्तिगत सुखों के लिए अपने-अपने परिवार की बलि दे दी है। मैं मॉम से बहुत रिजर्व रह रही थी। मुझे तभी लगा कि अब सही समय है मॉम के रास्ते से पूरी तरह हट जाने का। तो उस दिन सीधे पूछ लिया मैरिज के बारे में तो उन्होंने भी बिना किसी संकोच के बता दिया। समय भी बता दिया कि अगले हफ्ते मैरिज करने जा रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि, ‘मैं आज ही बताने वाली थी लेकिन तुम्हें मालूम हो गया।मैंने कहा मैं खुश हूं। मैं बहुत खुश हूं कि आपने यह डिसीजन लिया। मैं समझती हूं कि यह आपको और पहले ही कर लेना चाहिए था। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने सोचा शादी धूमधाम से होगी लेकिन मॉम ने कहा नहीं।
पांच दिन बाद ही शादी थी। मॉम के मना करने पर भी मैंने पूरे घर को इतने दिनों में जितना रेनोवेट कराया जा सकता था, कराया। उनके कमरे में नया पेंट कराने से लेकर बेड, फर्नीचर, कॉरपेट सब नया बनवा दिया। पांचवें दिन मैरिज के वक्त चर्च में मैं उनके साथ थी। व्हाइट ड्रेस  में मॉम वाकई बड़ी खूबसूरत लग रही थीं। बड़ी मासूम सी। दोनों का पेयर खूब अच्छा लग रहा था। लेकिन आदमी के चेहरे पर नजर जाते ही मुझे उबकाई सी महसूस होने लगती थी। उसकी तरफ से मैं तुरंत मुंह फेर लेती थी। मुझे वह दोनों परिवारों को नष्ट करने वाला निहायत गंदा घिनौना व्यक्ति नजर आ रहा था।
चर्च में गिने-चुने लोगों को ही इनवाइट किया गया था। एक होटल में छोटी सी पार्टी दी गई थी। शादी करके घर पहुंचने पर मैंने ही मॉम को रिसीव किया। कई रस्मों को भी पूरा किया। मॉम नहीं चाहती थीं लेकिन मैं नहीं मानी। मैंने ही उन्हें उनके कमरे में पहुंचाया। जिसे मैंने बहुत प्यारे ढंग से सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वह निहायत गंदा आदमी नए ढंग से सजे ड्रॉइंग रूम में बैठा था। उसके कुछ दोस्त उसके साथ थे। वो लोग उसे भी हैंडसम कह रहे थे। लेकिन वह मुझे गंदा ही लग रहा था। जल्दी ही सारे गेस्ट चले गए। मॉम अपने कमरे में थीं। मॉम को मैंने गोल्ड का एक खूबसूरत गिफ्ट, बुके देकर नए जीवन की शुरुआत के लिए खूब बधाई दी। उन्हें गले से लगाया। उन्होंने भी माय चाइल्ड, माय चाइल्ड’, कहकर मेरी पीठ थपथपाई।
मैंने उन्हें गुड नाईट बोलते हुए कहा, ओके मॉम, कल मिलती हूं। लास्ट में मैंने मैनर्स के चलते उस गंदे इंसान को भी विश किया, गिफ्ट दिया। और भावेश के साथ घर से पांच किलोमीटर दूर उस घर में आ गई जिसे मैंने रेंट पर अपने लिए लिया था। इसी एक हफ्ते में मैंने अपना नया आशियाना भी बना लिया था। इस पूरे एक हफ्ते में भावेश सारे काम में मेरे साथ रहा। मेरा हाथ बंटाता रहा।
घर से जितना मेरा अपना पर्सनल सामान था वह मैं ले आई थी। नेक्स्ट डे सुबह ही मॉम का फ़ोन आया माय चाइल्ड कहां हो?’ मैंने कहा मैं अपने नए घर में हूं। उन्हें शॉक लगा, बोलीं, ‘क्या! तुम्हें घर छोड़कर जाने की क्या जरूरत है।मैंने कहा मॉम अब वह मेरा घर नहीं रहा। कम से कम मैं यही मानती हूं, डैड रहे नहीं, जस्टिन ने छोड़ दिया। और अब आप भी आप नहीं रहीं। सरनेम चेंज हो गया है। आप ही सोचो मॉम घर में हर जगह डैड, जस्टिन, मेरी मॉम की अनगिनत यादें हैं, वहां मैं किसी और को कितनी देर देख पाऊंगी। वह भी उसे जो मेरे घर की इस हालत के लिए ज़िम्मेदार है। इसलिए प्लीज मॉम जैसे आप डैड, जस्टिन को भूल गईं वैसे ही अब मुझे भी भूल जाइए। अपने नए जीवन को एंज्वॉय करिए। मेरा जब मन होगा, ऑफ़िस में आपसे मिल लिया करूंगी। लेकिन वहां कभी नहीं आऊंगी। क्योंकि अब वह मेरा घर नहीं रहा। इसलिए प्लीज मुझे क्षमा कीजिए।
मॉम आप इस बात को भी ठीक से समझ लें कि हमारे आपके लिए यही अच्छा है कि हम दूर रहें। हमारी खुशियां अब इसी दूरी पर डिपेंड हैं। मॉम ने मुझे समझाने की कोशिश की लेकिन मैंने अपना मत स्पष्ट बता दिया। मॉम अब आपकी दुनिया अलग है। मेरी अलग, इस सच को स्वीकारिए। मॉम ने जब यह समझ लिया कि मैं अपनी बात पर अडिग हूं तो उन्होंने भी मुझे अच्छे जीवन की खूब शुभकामनाएं दीं और बात खत्म कर दी। लास्ट में यह बोले बिना नहीं रह सकीं कि माय चाइल्ड कभी-कभी मिलने आओगी तो मुझे बहुत खुशी होगी। उनसे बात खत्म कर मैं भावेश के साथ सामान पैक करने लगी थी। हम एक हफ्ते के लिए चंपावत घूमने जा रहे थे। मगर बुलेट से नहीं। मेरे पैर तब भी मेरा साथ नहीं दे रहे थे। बुलेट मैंने कपड़े से कवर करके पोर्च में खड़ी करवा दी थी। कई बार मन से चाहते हुए भी हम कई चीजों को अपना नहीं पाते।  
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                                                                                                       पता-                                                         प्रदीप श्रीवास्तव
                                                                                                                                               ई६एम/२१२सेक्टर एम
                                                                                                 अलीगंज, लखनऊ-२२६०२४
                                                                मो-७८३९३१७०७२,९९१९००२०९६,८२९९७५६४७४
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