गुरुवार, 29 नवंबर 2018


समीक्ष्य पुस्तक: दस द्वारे का पींजरा
लेखिका  : अनामिका
मूल्य: 300 रुपये
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.,
1-बी, नेता जी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली
                                               सदियों से अनसुनी आवाज़
                                                           -प्रदीप श्रीवास्तव
नारी मुक्ति आंदोलन का एक उत्कृष्ट आख्यान है दस द्वारे का पींजरा। रमाबाई एवं ढेलाबाई इन दो पात्रों के इर्दगिर्द घूमता यह उपन्यास सन् 1949 में विख्यात फ्रेंच लेखिका सीमोन द बोउवार द्वारा पीड़ित नारी समाज की कड़वी सचाई उजागर करने वाली विश्व विख्यात पुस्तक जो हिंदी में स्त्री उपेक्षिताके नाम से आई की याद दिला देती है। कई ऐसे ऐतिहासिक पात्र इस उपन्यास का हिस्सा बने हैं जो देश की आजादी के संघर्षपूर्ण दिनों में विशेष रूप से नारी समाज के उत्थान के लिए सक्रिय थे। इनमें स्वामी दयानंद सरस्वती से लेकर ज्योतिबा फुले, महादेव रानाडे, केशव चंद्र सेन भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर तक शामिल हैं। नायिका रमाबाई एक उच्चकुलीन प्रगतिशील ब्राह्मण परिवार की कन्या है। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि रमाबाई पौराणिक ग्रंथों शास्त्रों आदि का विशद अध्ययन करती है। हमेशा अन्याय के खिलाफ स्वर उठाना उसकी प्रवृत्ति है। जातिगत आधार पर होने वाले अन्याय, स्त्री को कमजोर समझने, उसके साथ होने वाले भेदभाव को वह किसी भी सूरत में सहन नहीं कर पाती। उसकी इस प्रकृति को अपने पिता जो कि स्वयं रुढ़िवादी व्यवस्थाओं परंपराओं के खिलाफ अभियान में लगे हैं जिसके चलते उन्हें ब्राह्मण समाज बहिष्कृत भी कर देता है से और मजबूती मिलती है।
नारी समाज के प्रति परंपराओं नीति आदि के नाम पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ उसके विद्रोही तेवर को समाज का परंपरावादी वर्ग एक पल को भी बर्दाश्त नहीं करता, उसे समाज के नाम पर कलंक मानता है। बागी-तेवर के चलते कई बार उसकी जान के लाले पड़े लेकिन रमाबाई इससे और भी दृढ़ता के साथ उठ खड़ी होती है। किशोरावस्था में ही एक बार वह सती होने के लिए चिता पर बैठाई गई बाल विधवा को भारी भीड़ के बावजूद नीचे खींच लाती है। भीड़ के क्रोध से उसे नायक सदाव्रत किसी तरह बचा लाता है। मगर इसके बावजूद वह प्रश्न करती हैक्यों होगी वह सती, वह जीवित होता तो इसकी खातिर सता होता क्या!वास्तव में सती प्रथा के सहारे नारी समस्या को लेकर उठाया गया यह वो प्रश्न है जो नारी समाज को दोयम दर्जे का मानने वाली मानसिकता के लोगों से भेदभाव का कारण जानना चाहता है। नारी होना दोयम दर्जे का होना कैसे हो गया?जब ईश्वर या प्रकृति ने उसे अबला नहीं बनाया तो पुरुष को उसे अबला बनाने का अधिकार किसने दे दिया। नारी समाज को अबला से सबला बनाने उसे सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अधिकार दिलाने के लिए रमाबाई का प्रयास व शोध समय के साथ जितना तेज होता जाता है उसका विरोध भी उसी रफ्तार से बढ़ता है। अपने पिता के सहयोग से शास्त्रों का गहन अध्ययन कर अनगिनत अकाट्य तर्क वह नारी को अबला बनाए रखने के समर्थकों के समक्ष रखती है कि शास्त्रों में भी नारी को अबला नहीं माना गया है। लेकिन यह वर्ग उल्टे यह प्रश्न खड़ा कर देता है कि रमाबाई नारी होकर यह सब कैसे पूछ सकती है। उसे समाप्त करने के नित नए जतन करता है यह वर्ग। इस संघर्ष यात्रा के दौरान एक-एक कर उसके पिता, माता, भाई उसका साथ छोड़ दुनिया से असमय ही विदा ले लेते हैं। लेकिन रमाबाई का जातिगत भेदभाव, नारीमुक्ति को लेकर संघर्ष और तीव्र होता जाता है। तत्कालीन बड़े-बड़े समाज सुधारकों में से कतिपय को छोड़ कर उसे किसी से भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता। दूसरी तरफ उसका बाल सखा और उसके संघर्षों का साथी बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए लंदन चला जाता है। इस बीच परंपरावादी समाज यह जानकर और भी आग बबूला हो उठता है कि रमाबाई ब्राह्मण होकर भी गैर ब्राह्मण सदाव्रत से ब्याह करेगी। रमाबाई के सामने आने वाली समस्याएं दरअसल तत्कालीन समाज की तसवीर को मुकम्मल करती चलती हैं। एक तरफ जहां देश आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था और अंग्रेज सरकार स्वतंत्रता सेनानियों को साम, दाम, दंड, भेद हर नीति से कुचल रही थी वहीं जातिगत भेदभाव मुक्त समाज, नारीमुक्ति के लिए भी संघर्ष चल रहा था जिसे अंग्रेजी सरकार की ही तर्ज पर रुढ़िवादी सोच के लोग कुचलने में लगे थे। लेकिन रमाबाई जैसे पात्रों के सहारे यह आंदोलन अपनी मंजिल की ओर बढ़ चला था। इस बीच सदाव्रत के लौटने पर रमाबाई उससे विवाह करके अपने अभियान को और ताकत देने में जुट जाती है। लेकिन समाज उससे सदाव्रत को ही छीन लेता है। मगर रमाबाई का संघर्ष फिर भी नहीं कता। अपने अभियान के लिए एक रास्ते एक प्रयोग के तौर पर वह ब्रिटेन पहुंचती है और पादरी के सान्निध्य में ईसाई बन बाइबिल सहित अन्य ग्रंथों का अध्ययन, विद्वानों से विचार-विमर्श कर अपने रास्ते पर आगे बढ़ना चाहती है। लेकिन उसे आश्चर्य होता है कि कई मुद्दों पर तो फ़र्क़ यहां भी नहीं है। वह कहती है कि नई राह पर चलकर देखा कि जाती कहां है तो पता चला, पुरानी वाली भी जाती वहीं थी।कमजोर वर्गों, नारी को लेकर बुनियादी तौर पर हालात एक से ही लगे।
उपन्यास की दूसरी मुख्य पात्र ढेलाबाई एक मुजरेवाली है लेकिन क्रांतिकारियों की मदद से लेकर वह रमाबाई की तरह स्त्रियों की मुक्ति के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करती है। इसके बावजूद समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है। इन दोनों ही पात्रों के माध्यम से उपन्यास इन प्रश्नों के उत्तर चाहता है कि जब स्त्री सृजन कर सकती है। वेदों की ऋचाएं रच सकती है। संतान उत्पत्ति , उसे पालने, संस्कार देने से लेकर आजादी के संघर्ष तक में योगदान दे सकती है। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहां वह सफलतापूर्वक प्रवेश न कर सके तो फिर उसे दोयम दर्जे का मानकर उसे तरह-तरह के बंधन में रखने की जरूरत क्यों है। उसकी बातों को सुना क्यों नहीं जाता। रमाबाई स्वदेश वापस आने पर 1889 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की सभा में बड़ी तल्खी के साथ सभा को संबोधित करते हुए यही पूछती है भाइयो माफ कीजिए, मेरी आवाज आप तक पहुंच नहीं पा रही है। सदियां बीतीं क्या कभी आपने किसी स्त्री की बातें सुनने की कोशिश की? क्या आपने उसको इतनी ताकत दी कि वह अपनी आवाज बुलंद कर सके?’ अनामिका ने रमाबाई के जरिए यह जो प्रश्न किए हैं पुरुष समाज से वह आज भी अपना उत्तर मांग रहे हैं। स्त्रियों की दशा तमाम परिवर्तनों सुधारों के बावजूद आज भी पुरुषों जैसी नहीं है। एक स्त्री होने के नाते उसकी जो पीड़ा छः सात दशक पहले थी उसमें  कोई बड़ा फ़र्क़ नहीं आया है। प्रकृति सर्वगुण संपन्न प्राणी बनाकर भेजती है लेकिन उसे स्त्री बना दिया जाता है। सीमोन द बोउवार के शब्दों में स्त्री पैदा नहीं होती, बल्कि उसे बना दिया जाता है।सहज सरल भाषा में अनामिका ने नारी मुक्ति आंदोलन के बीज पड़ने से लेकर उसके वट वृक्ष बनने की ओर बढ़ते रहने की प्रक्रिया को बहुत ही खूबसूरती से लिखा है। उपन्यास अनामिका की गहन वैचारिक शक्ति, शोध और उनके श्रम का ऐसा प्रतिफल है जो भारतीय समाज का विशेष रूप से स्त्री समाज का खाका खींचने में सफल है। जिसमें जातिगत व्यवस्था, स्त्री-पुरुष विमर्श सहित बहुत कुछ देखा जा सकता है।
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                                                                          पता - प्रदीप श्रीवास्तव
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                                मो-७८३९३१७०७२, ९९१९००२०९६
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बुधवार, 28 नवंबर 2018

समीक्ष्य पुस्तक: यार जुलाहे
संपादन: यतींद्र मिश्र
प्रकाशन: वाणी प्रकाशन
21-, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य:रु=195/-   
          'यार जुलाहे संवेदना और जीवन आनंद'
                                                    प्रदीप श्रीवास्तव
मोरा गोरा रंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे, छुप जाउंगी रात ही में, मोहे पी का संग दई दे।’ 1963 में बंदिनी फ़िल्म के लिए गुलज़ार का लिखा यह पहला फ़िल्मी गीत आज भी सुनने वाले का मन मोह लेता है। सहज सरल शब्दों का ऐसा उत्कृष्ट संयोजन शैलेंद्र, प्रदीप के बाद गुलज़ार में दिखाई दिया। उनका यह हुनर उन्हें शैलेंद्र, प्रदीप के पाए का गीतकार कहने को उत्साहित करता है। इसे संयोग ही कह सकते हैं कि शैलेंद्र के कहने पर ही उन्हें फ़िल्मों में गीत लिखने का अवसर मिला। फिर इसके बाद गुलज़ार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनका यह सफर 2008 में जय होके लिए संगीतकार रहमान के साथ ऑस्कर पुरस्कार मिलने के बाद भी जारी है। पांच दशकों का उनका लेखन बहुआयामी है, मगर उसकी रवानी में कोई कमी आई हो पढ़ने पर ऐसा प्रतीत नहीं होता। हां उसके आद्योपांत पुनर्पाठ की इच्छा जरूर बलवती हो उठती है। और फिर उनकी रचनाओं के एक मुकम्मल संकलन की जरूरत पड़ती है जिसे यार जुलाहेनामक उनकी चुनिंदा रचनाओं का एक उम्दा संकलन पूरा करता है। जिस प्रकार गुलज़ार के संघर्षमय जीवन के कई शेड हैं, वैसे ही इस संकलन में उनकी विभिन्न प्रकार की रचनाएं हैं। नज़्म है तो ग़ज़ल, कविता भी है। उनकी रचनाओं में आप नानक, बुल्लेशाह आदि संत महात्माओं के भी अक़्स देख सकते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो गुलज़ार की प्रकृति मूलतः वीतरागी सी लगती है। लेकिन जब वह छैयां-छैयां’, ‘कजरारे-कजरारेजैसे फ़िल्मी गीत लिखते हैं तो लगता है बेहद मस्त तबियत इंसान हैं। वास्तव में गुलज़ार ने जो जीवन देखा, समझा, जीया और जी रहे हैं उससे प्रकृति का वीतरागी हो जाना संघर्ष को सहजता से लेने का स्वभाव बन जाना आश्चर्य में नहीं डालता। गुलज़ार का जन्म दीना, पाकिस्तान में हुआ था। विडंबना देखिए की जब वह दो माह के दुध-मुंहे बच्चे थे तभी उनकी मां उन्हें छोड़ कर चली गई। पिता ने दो शादियां की थीं और गुलज़ार नौ भाई बहनों में चौथे नंबर पर थे मगर मां-बाप के प्यार-स्नेह से दूर, और जब किशोरावस्था की दहलीज पर पहुंचे तो मुल्क का बंटवारा हो गया। जन्म-भूमि छोड़ जान बचाकर भागना पड़ा और परिवार के कई सदस्य बिछड़ गए। ऐसा वक्त भी आया जब पिता, बड़े भाई ने उन्हें पढ़ाने लिखाने से मना कर दिया और वह दिल्ली में एक पेट्रोल पंप पर काम करने लगे। यहीं उनका कवि हृदय मुखर हो उठता है। उन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला, पर्शियन जैसी भाषाओं पर मजबूत पकड़ बनाई। उर्दू में टैगोर और शरत चंद की रचनाओं के बेहतर अनुवाद ने उन्हें एक राह दिखाई आगे बढ़ने की। उन्होंने एक फ़िल्मकार, गीतकार, संवाद लेखक व साहित्यकार के रूप में आज जो मुकाम बनाया है वह किसी तपस्या से कम नहीं है। अपनी तपस्या के दौरान जब वह बचपन याद करते हुए दीना पर ध्यान लगाते हैं तो बहुत भावुक हो दीना में..., भमीरी, खेत के सब्जे में जैसी मार्मिक रचनाएं रचते हैं। लेकिन ध्यान जब इससे इतर बदले परिवेश पर लगाते हैं तो एक दम वीतरागी हो सूफियाना अंदाज में लिखते हैं मर्सियाजैसी रचना क्या लिए जाते हो तुम कंधो पे यारों, इस जनाजे में तो कोई नहीं है, दर्द है कोई, न हसरत है, न ग़म है मुस्कुराहट की अलामत है न कोई आह का नुक़्ता और निगाहों की कोई तहरीर न आवाज़ का कतरा क़ब्र में क्या दफ़्न करने जा रहे हो।
गुलज़ार की निगाहें चिमटा, उपले से लेकर वनों की बेइंतिहा कटाई तक पर जाती है। बानगी स्वरूप एक उदाहरण देखिए - जंगल से गुजरते थे तो कभी बस्ती मिल जाती थी। अब बस्ती में कोई पेड़ नज़र आ जाए तो जी भर आता है।उनकी रचनाओं में बिंब कहीं से भी आ सकते हैं। तंदूर से लेकर तवा तक से। इतना ही नहीं गुलज़ार ने अपने मित्रों, शुभचिंतकों पर भी रचनाएं लिखी हैं। ख़ासतौर से फ़िल्मी दुनिया के विमल रॉय, पंचम दा, सलिल चौधरी को उन्होंने बहुत ही सम्मान से याद किया है। इन बातों से यह कतई न सोचे कि गुलज़ार केवल वीतराग या संजीदा रचनाएं ही रचते हैं। उनकी रचनाओं में प्रेम का भी राग है, जीवन का उछाह भी है, आनंद भी है। और जय हो जैसी रचनाएं भी। तो जिस प्रकार तमाम शेड की रचनाएं की हैं गुलज़ार ने, ‘कुछ वैसी ही कुशलता से साहित्यकार यतींद्र ने उनकी ढेरों रचनाओं में से हर तरह की चुनिंदा रचनाओं का यह संकलन यार जुलाहेतैयार किया है जो गुलज़ार की रचनाओं की ही तरह लाजवाब है। पूरा संग्रह गोपी गजवानी के रेखांकन से और भी रोचक बन गया है। कुल मिला कर यह कहने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए कि गुलज़ार सा शब्दों का चितेरा जल्दी-जल्दी नहीं मिलता। वास्तव में हम न उन्हें खालिस उर्दू के खांचे में रख सकते हैं और न ही हिंदी। सही मायने में वह हिंदुस्तानी भाषा के रचनाकार हैं। शब्दों का चयन कभी वह भाषा की हद में रह कर नहीं करते। अभिव्यक्ति के लिए जिस शब्द की जरूरत जहां समझते हैं वहां निःसंकोच करते हैं, यह सोचे बिना कि वह किस भाषा का है। इसी लिए वह आमजन हो या खास पढ़ने वाले सभी के दिलों दिमाग पर अपना प्रभाव डालते हैं। इस नुक़्ते नज़र से देखें तो यार जुलाहेबेहद उम्दा संकलन है। यतींद्र मिश्रा ने इसे संकलित कर निश्चित ही काबिले तारीफ काम किया है।
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पता-प्रदीप श्रीवास्तव
ई६एम/२१२सेक्टर एम
अलीगंज, लखनऊ-२२६०२४
मो-७८३९३१७०७२,९९१९००२०९६    


                                                                                                                                                                                                            

सोमवार, 19 नवंबर 2018

पुस्तक समीक्षा:कहानी संग्रह -'मेरी जनहित याचिका एवं अन्य कहानियां'





                                                                                                                                                     
पुस्तक समीक्षा 
कहानी संग्रह -'मेरी जनहित याचिका एवं अन्य कहानियां'
लेखक -प्रदीप श्रीवास्तव
प्रकाशन सहयोग -अनुभूति प्रकाशनलखनऊ
मूल्य -३५० रुपये
संस्करण -प्रथम 
पृष्ट ४६३
प्रकाशन वर्ष -२०१८                           

     सम्वेदनाओं का अद्भुत गुम्फन करता कहानी संग्रह       

               " मेरी जनहित याचिका एवं अन्य कहानियाँ "

                               - सुविधा पंडित

प्रथम प्रगतिशील लेखक संघ की बैठक की अध्यक्षता करते हुए प्रेमचंद ने कहा था कि  "लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है। जो प्रगतिशील नहीं है वह लेखक नहीं है।

"भूमंडलीकरण, बाज़ारीकरण के इस दौर में लेखन में बदलाव भी लाज़मी है। प्रस्तुत कहानी संग्रह "मेरी जनहित याचिका व अन्य कहानियाँ " की कहानियों में प्रगतिशीलता व प्रयोगधर्मिता दोनों ही गुण दृष्टिगत हुए। मैं आलोचना को साहित्य का विवेक मानती हूँ।अतएव समीक्षक को अपना ज़मीर किसी रचनाकार या प्रकाशक के पास गिरवी न रख कर पाठक और समाज की ओर से आलोचना करनी चाहिए। समाज व साहित्य के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण रवैया व तटस्थता समीक्षक के सबसे आवश्यक धर्म हैं। इसी क्रम में कहूंगी कि उक्त संग्रह के कथाकार प्रदीप श्रीवास्तव एक बड़े फलक के कहानीकार के रूप में सामने आए हैं। इनकी कहानियों के विशाल कैनवास पर विस्तृत विश्लेषण अपेक्षित है, अन्यथा सीमित दृष्टिकोण से कहीं सन्दर्भ से इतर होने की संभावना है।एकाग्रता, श्रमसाध्यता, धैर्य, गहन छानबीन व दीर्घदृष्टि की आवश्यकता है।
संग्रह की प्रथम कहानी "मेरी जनहित याचिका" पूर्णरूपेण लेखक के
अंतर्द्वंद्व की निष्पत्ति है।यह एक साथ कई समस्याओं को वहन करती, कई संवेदनाओं के इर्द-गिर्द घूमते कई प्रश्न और हल लिए परिलक्षित होती है।
इसमें मानवता, जिजीविषा, ईमानदारी व मूल्यों को बचाये रखने का संघर्ष दृष्टिगोचर होता है, तो इसके समकक्ष मानवता विरोधी व मूल्यविरोधी परिस्थितियों को देखने की परख एवं विश्लेषण प्रक्रिया भी समानांतर चलती है। इन सबके परे देखें तो यह हमें आज की दुनिया का विद्रूप चेहरा दिखाती है, यथार्थ के साक्षात्कार भी कराती है। जैसे रेव पार्टियों व जिगोलोस के उपकथानक। " मैं कई दिनों से जिगोलोस के साथ रह रहा था। ... इसमे पैसा भी है, मज़ा भी है। जिगोलोस यानी पुरुष वेश्याओं के साथ।" यह समाज की विषैली गंदगी का यथार्थ है, जिसे पढ़कर मन में घिन्न, नफ़रत, और वितृष्णा पैदा होती है, किंतु है तो समाज का यथार्थ ही जो विवश करता है सोचने पर कि हमारी संस्कृति के पतन को कैसे रोका जाए?
इन कहानियों में जीवन की विविधवर्णी झांकियाँ दर्शित होती हैं, जो कभी ऊष्णता, शीतलता, तो कभी वसंत की मादक खुशबू का अहसास देती हैं।कभी रिश्तों में प्रेम व अपनत्व का चरम आंखें भिगो देता है, तो कभी रिश्तों में स्वार्थपरता पलकें गीली कर देती है। "मेरी जनहित याचिका " में पिता की बीमारी से द्रवित होकर...." मैंने तय कर लिया कि पढ़ाई हो न हो, बाबा को छोड़ कर नहीं जाऊंगा।।" वही वृद्ध , बीमार पिता का कहना कि "रात भर के थके होगे। बैठो मैं चाय बनाता हूँ, बाप के इस प्यार ने मेरा कलेजा ही निकल लिया।" दिल को छू जाने वाले संवाद हैं। कहानी में नाजायज़ रिश्तों से बाल मन पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाया है, तो कुछ विचित्र रिश्ते भी बन गए हैं, जो कहीं भी असहज नहीं लगते।
स्वीकार करना होगा कि इन कहानियों का कलेवर सागर सा अथाह फलक लिए है। जिसकी उत्ताल तरंगों पर मानवीय भावों का डूबता-उतराता नर्तन पाठक को भरपूर रस का आस्वाद कराता है।

यथा कहानी " हनुआ की पत्नी " में थर्ड जेंडर की पीड़ा को सशक्त ढंग से उजागर किया है..." यह प्यार वह जाल है,वह छद्म आवरण जो शिकारी अपने शिकार को फंसाने के लिए फैलाता  है। " जीवन की अंतिम हक़ीक़त मृत्यू को मार्मिकता से दिखाया है। "शकबू की गुस्ताखियाँ " में ..." शाज़िया अब थी कहाँ, अब तो उसकी मिट्टी थी। " स्वार्थ व धोखे की पराकाष्ठा को  "शेनेल लौट आएगी "  में सहज अभिव्यक्ति दी है जो क्षुब्ध कर देता है.. .. "याद आते है साथ बिताए ख़ूबसूरत पल। तब अनायास ही मुँह से निकल पड़ता है शेनेल.....।" कहानियों के दौरान नाटककार क्रिस्टोफर मारलो, ईव इंसलर के वजाइना मोनोलोग ड्रामा आदि का ज़िक्र उनकी अध्ययनशीलता का परिचायक है।लेखक की विविधमुखी अध्ययनशीलता ही उसे सक्षम लेखक बनाती है।सामाजिक ,राजनैतिक विषमताओं पर भी लेखक ने अपनी कलम की तेज धार का प्रहार किया है। कहानी " मेरी जनहित याचिका " में डावरी  एक्ट के औचित्य  पर प्रश्न खड़ा कर कानून को आड़े हाथों लिया है " अभी दहेज एक्ट जैसा अंधा,निरंकुश,एकपक्षीय एक्ट नही है जो दूसरे पक्ष की सुने ही न।पूरा परिवार तहस-नहस कर देता है। " विकासशील समाज में औरत की व्यथा-कथा आज भी वही है। "झूमर " कहानी में घिनौने सच देखिए.." क्लाइंट्स के पास जाती तो उनमें से बहुतों की  लपलपाती ज़बान  से अपने लिए लार टपकती देखती।"  " करोगे और  कितने टुकड़े " में राजनीति पर करारे व्यंग्य हैं..."नए सिपाही हो ,क्यों देश की खूंखार ,निर्लज्ज  तानाशाही से लोहा लेने में लगे हो।" लेखन की महत्ता को भी प्रदीप श्रीवास्तव जी ने खूबसूरती से उजागर किया है..."तुम्हारी लेखनी से उसके भीतर उपजा आक्रोश उससे सब करा लेगा। "


लेखक ने धर्म परिवर्तन व दलित विमर्श को भी अपनी कहानी में शरीक किया है,आरक्षण के विषय  में उपाय सुझाया है कि एक ही परिवार को दो से अधिक बार ये मौका न दिया जाए तो सभी लोगों  को आरक्षण का यथोचित लाभ मिल सकता है।ऐसे मौलिक सुझाव ही उनकी कहानियों को सार्थक  सिद्ध करते हैं।आत्मिक प्रेम की पराकाष्ठा का उदाहरण उनकी पहली कहानी से..." वह और मैं दो शख़्स न होकर इतना मिल जाएं कि दो व्यक्तित्व विलीन होकर एक व्यक्ति हो जाएँ । "  "पगडंडी विकास "  में दया,मानवता जैसे मूल्यों को प्रतिष्ठित किया है तो  " जब वह मिला " में नास्तिक से आस्तिक बनने व स्वार्थपरता, हृदयहीनता से दूसरों की खुशी में खुशी ढूंढने की यात्रा का मार्मिक कथानक है।इस संग्रह की समस्त कहानियों में औत्सुक्य,रोचकता,कौतूहल , अतिरंजना,अद्भुत कल्पनाशीलता के साथ यथार्थ का धरातल व मूल्यों का सामंजस्य भी है।इन्हें न पढ़ना हमारे बौद्धिक विकास को संदिग्ध बनाएगा।
कहानियों में शब्दों के सामर्थ्य व वैभव के साथ भाषा की सरल प्रवाहमयता कहीं भी उलझन पैदा नहीं होने देती और दोबारा नहीं पढ़ना पड़ता कुछ भी।भाषा का सम्मोहन ही है कि पाठक बिना अटके पढ़ता चला जाता है।

"आँसू ऐसे झरने लगे जैसे बादल फट पड़ा हो।"
 एक बात जो कही जानी चाहिए वह यह कि कम शब्दों में अधिक कह देना साहित्यकार का अपरिहार्य गुण होना चाहिए और कहानी के कथानक में विषयवस्तु से सम्बद्ध न होने वाले अनावश्यक उपकथानकों से कथाकार को बचना चाहिए।कहानीकार को ये दोनों अभ्यास से सीखने की आवश्यकता है।कहीं कहीं कहानियों में कुछ ऐसे संबंधों को लिखा गया है जो समाज में स्वीकार्य नहीं हैं तथा संस्कृति व संस्कारों का ऐसा अशनिपात दिखाया है जो विचार श्रृंखला को झकझोर देता है।मैं यह बेबाकी से कहना चाहती हूँ कि साहित्य समाज के हित में होना चाहिए,अहितकारी नहीं।अतः अजीबोगरीब,अमर्यादित,उच्श्रृंखल यौन सम्बन्ध साहित्य में न हो तभी समाज को ऊर्ध्व दिशा मिलेगी।

निष्कर्षतः सम्वेदनाओं की गंध,सूक्ष्म भावों की महक , दर्द और खुशी की धड़कनें सब इन कहानियों के दिल में बसे जान पड़ते हैं।कहानी प्रेमियों को संतुष्ट करने में  यह संग्रह सफल होगा और सराहा जाएगा। मैं प्रदीप जी को इसके लिए अशेष शुभकामनायें देती हूँ।

                                                                                             सुविधा पंडित                                                                                            पता :-  १५५ /बी सरदारनगर
शास्त्री स्कूल के पास
तलावड़ी सर्कलअहमदाबाद-382475 (गुजरात )
मो: 9429634785,
 इ-मेल. suvidhapandit77@gmail.com

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

कहानी : शेनेल लौट आएगी :प्रदीप श्रीवास्तव


                                        शेनेल लौट आएगी
                                          - प्रदीप श्रीवास्तव
ऐमिलियो डोरा को मैं आज भी अपनी पत्नी ही मानता हूं। वह आज भी मेरे हृदय के इतने करीब है, मुझमें इतना समायी हुई है कि मैं उसकी महक को महसूस करता हूं। मुझे अब भी ऐसा लगता है कि जैसे वह मेरे सामने मेरे एकदम करीब मुझे स्पर्श करते हुए खड़ी है। मेरे गले में अपनी दोनों बांहों को डाले चेहरे को एकटक देखते हुए। और उसकी गर्म सांसों को मैं चेहरे पर महसूस करते हुए उसी में खोया जा रहा हूं। उसकी नजरों में मैं क्या हूं यह तो वहीं जाने। पता नहीं मैं उसे याद भी हूं या नहीं। वह मुझे कितनी शिद्दत से चाहती है, याद करती है.....या... पता नहीं। मेरे अब तक के जीवन में आई तमाम लड़कियों में एक वही है जिसकी मैंने पूरे रस्मों-रिवाज के साथ मांग भरी थी। गोल्डेन नाइट सेलिब्रेट की थी।
उसी मधुर क्षण में उसे उसके देश सेनेगल से मिलता-जुलता नाम दिया था शेनेल। तब उसने बड़े प्यार से मुझे होठों पर किस करते हुए कहा था वॉओ, कितना प्यारा नाम है, बिल्कुल तुम्हारी तरह। मैं अपने पैरेंट्स, रिलेटिव्स, सारे फ्रेंड्स को बोलूंगी कि अब मुझे मेरे इसी प्यारे नाम से बुलाया करें।मैं उसे उसी क्षण से जब तक वह रही मेरे साथ उसे ऐमिलियो की जगह शेनेल ही बुलाता रहा। ऐमिलियो से जब मेरा संपर्क हुआ तब मैं काफी समय से अकेला ही था।
ई-मेल के जरिए उसने संपर्क किया था। उसकी सारी मेल जो सैकड़ों होंगी, मैंने आज भी सुरक्षित रखी हैं। उसकी याद आने पर उन्हें बार-बार पढ़ता हूं। उसकी यादों में डूबता जाता हूं। शुरुआती कुछ मेल के बाद ही वह बड़ी तेज़ी से मेरे करीब आने लगी थी। वह हर मेल में मुझसे मेरे बारे में सब कुछ जान लेने के प्रयास में रहती थी। ना जाने उसकी बातों, उसके व्यक्तित्व में कैसा जादू था कि मैं जल्दी ही उसे सब बताने भी लगा। ऐसी ही एक बड़ी डिटेल मेल में मैंने उसे लिखा डियर ऐमिलियो डोरा,
मुझे मेरे अधिकांश मित्र, परिचित एवं सारे रिश्तेदार आवारा-बदमाश लोफ़र कहते रहे हैं। अब इधर कुछ बरसों से उन्हीं में से कई रिश्तेदार, मित्र यह कहने लगे हैं कि मैं अब बहुत सुधर गया हूं। ऐसे सारे लोगों को मैं पहले भी मूर्खाधिराज कहता था आज भी कहता हूं। क्योंकि मैं पहले जो कुछ करता था वही सब आज भी करता हूं। हां फर्क़ सिर्फ इतना है कि अब यह सब पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गया है। तो जिन कामों को करते हुए यदि मैं पहले बिगड़ा हुआ था, तो वही सब करते हुए आज सुधरा हुआ कैसे हो गया हूं? क्या यह बद-अच्छा बदनाम बुरा वाली बात है। मगर इस बिंदु पर मैं कहूंगा कि नहीं। जिन कामों को लेकर मुझे आवारा, बदमाश, लोफ़र कहा गया मेरी नजर में वह इस श्रेणी में आते ही नहीं। मेरी नज़र में वह सब एक अलग तरह की समाज-सेवा है।
कोई अगर किसी कमजोर को परेशान कर रहा हो तो उसे मार-तोड़ कर सही कर देना क्या गलत है? बदमाशी है,? देर रात तक बाहर रहना मेरी नज़र में आवारगी नहीं है। हां इस दौरान यदि मैं गैर कानूनी, गैर सामाजिक कार्य करूं तो आवारगी है। बहुत सी लड़कियों या औरतों के साथ संबंध रखना भी मैं गलत नहीं मानता। यदि यह मैं उन सब से जबरदस्ती, धोखे से, बहला-फुसला कर करूं तो निश्चित ही गलत है। लेकिन ऐसा मैं सपने में भी नहीं करता। हां यदि मैं चाहूं तो इन सारे लोगों को बदतमीज कह सकता हूं। गाली दे सकता हूं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता। क्यों कि मैं ऐसे लोगों पर सिर्फ़ तरस खाता हूं। मेरी इस बात से तुम मुझे कोई संत महात्मा नहीं समझ लेना।
ऐमिलियो मेरी प्रकृति ही ऐसी है कि मैं जो करता-धरता हूं वह कभी छिपाता नहीं। साफ-साफ बोल देता हूं। मैं तुम्हें अपनी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहा हूं जिन्हें मैं समझता हूं कि कोई जल्दी नहीं बताता। लेकिन मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती।
किसी बात को अपने में जज्ब किए रहना, अपने में छिपाए रखना मुझे खुद पर भारी बोझ लादे हुए घूमने जैसा लगता है। ऐसे में मुझे घुटन महसूस होती है। यह मुझे अच्छा नहीं लगता। इसीलिए मैं तुम्हें बहुत सी ऐसी बातें बताने जा रहा हूं जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती। ऐसा तुम्हारी जबरदस्त क्यूरिसिटी के कारण कर रहा हूं। क्यों कि पिछली मेल में मैंने मुश्किल से दो चार बातें ही अपने बारे में लिखी थीं। लेकिन तुम पीछे पड़ गई कि मैं और बताऊं।
 शुरू में तुम्हारी कई मेल इसी लिए मैं नजरंदाज करता रहा। लेकिन तुमने तो मेल की झड़ी ही लगा दी। हर दिन दो-तीन मेल। और हर में पहले से ज़्यादा जोर कि मैं सब बताऊं। ऐमिलियो, आगे मैं तुम्हें ऐमिलियो ही लिखुंगा। हां तो मैं अपने बारे में बहुत सारी बातें तुम्हें बताने के लिए इसलिए भी तैयार हुआ क्यों कि पिछले कुछ महिनों में तुम्हारी कई बातें मुझे प्रभावित कर गईं।
जब से तुम अपना नकली चेहरा उतार कर सामने आई हो तो तुम्हारी बातों में मुझे सच्चाई बराबर दिख रही है। सच कहूं कि तुम्हारी तरह ना जाने कितनी लड़कियां रोज मेल करती हैं। पिछले कुछ सालों से रोज ही दो चार मेल इस तरह की आती रही हैं। अब भी आती हैं। जानती हो तुम्हारी तरह सभी मेल में सारी लड़कियां एक ही बात लिखती हैं। अब भी लिखती हैं। यह सभी अव्वल दर्जे की चार सौ बीस लड़कियां हैं। यदि तुम इन्हीं गुट की हो तो कम से कम इन सब को यह बता दो कि ये एक से बढ़ कर एक मूर्ख हैं।
इन्हें यह समझाओ कि जब मेल किया करें मुर्गा फंसाने के लिए, तो कम से कम बातें अलग-अलग लिखा करें। सब एक ही कहानी लिखती हैं। जैसे तुम लिखती थी कि तुम दक्षिण अफ्रीका के गृह युद्ध से ग्रस्त एक देश लाइबेरिया से हो। तुम्हारे पिता एक बड़ी कंपनी में बहुत ऊंचे ओहदे पर थे। इस गृह युद्ध में तुम्हारे मां-बाप दोनों ही की नृशंसतापूर्वक हत्या कर दी गई। तुम्हें मेरा परिचय, ई-मेल आईडी फेसबुक के जरिए मिली।
मेरी प्रोफाइल से तुमने मुझे भला आदमी समझा और अपनी बात शेयर करना चाहती हो। तुम्हारे पैरेंट्स ने करोड़ों डॉलर जो तुम्हारे लिए छोड़े हैं वह तुम लेना चाहती हो। कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए तुम्हें मेरी मदद चाहिए। इसके एवज में करोड़ों रुपए मुझे भी मिल जाएंगे। तुम इस समय डकार, सेनेगल में एक रिफ्यूजी कैंप में बड़ी दयनीय हालत में हो।
जानती हो ऐमिलियो इस तरह की मेल के बारे में मेरे तमाम दोस्त पहले ही बताते रहे थे कि इन फ्रॉडियों के चक्कर में फंस कर अपना एकाउंट नंबर ना दे देना। कहीं उनकी भावुक कर देने वाली कहानी में फंस कर मोटी रकम उनके एकाउंट में डाल मत देना। ऐमिलियो मेरे दोस्त मुझे यह एडवाइज विशेष रूप से ज़्यादा देते हैं, क्योंकि वह यही मानते हैं कि कोई भी लड़की मुझे आसानी से फंसा सकती है। मैं इस बारे में यही कहूंगा कि मेरे बारे में ऐसा सोचने वाले पूरी तरह गलत हैं। मेरे बारे में जब जानोगी, चौथाई भी जान लोगी तो तुम यही कहोगी कि बात तो इसके उलट है। बल्कि लड़कियां मेरी तरफ खिंची चली आती हैं।
वो ही मेरी तरफ अचानक ही दौड़ पड़ती हैं। तुम चाहो तो अपना ही उदाहरण ले लो। अपनी काल्पनिक दुख भरी कहानी लिख कर, अपने बदन की भड़कीली तस्वीरें भेज कर, मुझे फंसा कर ठगने की कोशिश में लगी थी। तुम भी बाकी लड़कियों की ही तरह ठगने की कोशिश कर रही थी। अपने को एक पॉस्टर के नियंत्रण में होना बताया। उनका नंबर वगैरह सब दिया। अपने चंगुल में फंसाने के लिए तुमने यह भी कहा कि रिश्तों के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि मैं चालीस का हूं और तुम चौबीस की।
सवा पांच फीट की गेंहुए रंग की तुम मेरे साथ जीवन बिताने को तैयार हो। मैंं जिस जगह चाहूं वहां तुम्हें लेकर चल सकता हूं। भावनाओं को ब्वॉयलिंग प्वाइंट तक पहुंचाने के लिए तुमने यह भी लिखा कि अब तक तुम्हारा कई लोग शारीरिक शोषण कर चुके हैं। पॉस्टर भी अन्य कई लड़कियों के साथ-साथ तुम्हारा भी आए दिन बर्बरतापूर्वक शारीरिक शोषण कर रहा है। सच बताऊं कि तुम्हारी बातें कई बार यकीन कर लेने को विवश कर देतीं हैं। लेकिन तुम सारी लड़कियों की एक सी कहानी ने क्यों कि पोल खोल रखी है तो यकीन करने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
हां तुम्हारे और बाकी लड़कियों में एक फ़र्क था कि तुम पैसे ऐंठने के अलावा यह भी देख रही हो कि कोई ऐसा भी मित्र मिले जिससे कुछ और भी बातें हो सकें।
यही वजह है कि हम-तुम यहां तक बढ़ सके। नहीं तो बाकी लड़कियों का हाल यह है कि पहले अपनी कहानी शॅार्ट में भेजती हैं। परिचय भी नहीं है लेकिन माय डियर, डियरेस्ट, माय लव से शुरू करती हैंं। यदि रिप्लाई में हाय भी लिख दो तो दिन बीतने से पहले विस्तृत स्टोरी दो-तीन या फिर चार फोटो के साथ आ जाती है। लोगों को फंसाने के लिए काफी बोल्ड फोटोज भेजी जाती हैं। साथ ही डिटेल स्टोरी, वर्क, हॉवी, लाइक्स आदि के बारे में पूछा जाता है।


जानती हो ऐमिलियो मैंने जैसे तुम्हें जवाब दिया था वैसे ही बाकियों को भी दिया था। हाय माई डियर, हाय माई लव। और जब मुझसे डिटेल मांगी गई तो इतना ही लिखा कि मैं एक राइटर हूं। लिखना, पढ़ना, घूमना, मेरा शौक है। सेक्स मेरा फेवरेट गेम है। मैं इस गेम को बहुत पसंद करता हूं। और यह भी लिखा कि मैं तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूं। तुम अपनी फुली नेकेड फोटो भेजो। मैं तुम्हारे बूब्स,थाई एस्ट्रा-एस्ट्रा देखना चाहता हूं। बस ऐमिलियो मेरे यह लिखते ही लड़की गायब हो जाती। फिर दुबारा उसकी कोई मेल नहीं आती।
मैंने तुम्हें भी यही सब लिखा लेकिन तुम भागी नहीं। तुमने बड़ा बैलेंस्ड जवाब दिया कि अभी हमारी फ्रैंडशिप उस लेवल की नहीं है कि तुम अपनी नेकेड फोटो भेज सको। इसके बाद हमारी-तुम्हारी मेल्स लंबी होती गईं। और बातें खुलती गईं । फिर जल्दी ही तुम्हें जब लगा कि सच्चाई मुझे मालूम है तब तुम मुखौटा उतार कर असली रूप में सामने आई।
मुझे यकीन तब भी नहीं था। इसलिए मैंने कई तरह से तुम्हें चेक किया। और तुम हर बार पास होती गई। तब मैंने भी तुम्हें अपनी हक़ीक़त बताई कि मैं इंडियन रेलवे की गुड्स ट्रेन में गार्ड हूं। अनमैरिड हूं। बाकी जो शौक पहले लिखे थे वही हैं। इस बार भी मैंने तुमसे मन चाही फोटो मांगी लेकिन तुमने नहीं भेजी। बाद में बहुत कहने पर तुमने जैसी मैंने मांगी थी वैसी ही नेकेड फोटो भेजी। अब तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें यह कैसे विश्वास दिला सकता हूं कि मैं वाकई तुम्हें चाहता हूं। तुमसे वाकई मित्रता चाहता हूं।
तुम बार-बार मुझसे यह कह रही हो कि मैं चालीस का होकर अपने से आधी उम्र की तुम्हें कैसे लव कर सकता हूं? मैं अब तक सिंगिल ही क्यों हूं? अपने अब तक के जीवन कीे तमाम न भुलाई जा सकने वाली बातें तुमसे शेयर करूं। जिससे तुम यह निष्कर्ष निकाल सको कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करने की हिम्मत रखता हूं। तुम्हें लेकर मैं ज़िंदगी के बहुत से क़दम साथ चल सकता हूं।
ऐमिलियो जब तुमने अन्य लड़कियों की तरह यह लिखा था कि हमारे रिश्तों के बीच कोई बाधा नहीं आएगी तो मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाया था। लेकिन तुम्हारी बातों से लगता है वाकई तुम्हारे साथ एक खास रिश्ता या ये कहें लिवइन में मुझे कोई अड़चन नहीं आएगी। मैं तुम्हें साथ लेकर अपने देश में बहुत सी जगह घूमने चल सकता हूं।

मेरा परिवार कोई बाधा नहीं बनेगा। क्योंकि परिवार से मेरा कोई खास रिश्ता रहा ही कहां है? हुआ यह कि मेरी लापरवाही भरी ज़िंदगी ने मेरे और परिवार के बीच रिश्तों की डोर बहुत पहले ही कमजोर कर दी। क्यों कि मेरे छोटे भाइयों की नौकरी पहले लग गई तो शादी का जोर पड़ने लगा। मैं अपनी आवारगी में मस्त था। गार्जियन का यह दबाव मैं ज़्यादा दिन नहीं झेल पाया कि मैं कुछ करूं जिससे मेरी शादी हो, फिर छोटों का नंबर आए।
मैंने गुस्से में कह दिया कि मुझे जब जो करना होगा तब करूंगा। छोटों की शादी कर दो। आखिर यही हुआ। सारे छोटे भाई-बहनों की शादी हो गई। मैं तब भी मस्त-घूमता रहा। मुझे लगा कि शादी-वादी करके बंध कर रहना मेरे जैसे लोगों के लिए संभव नहीं है। इस बीच मैं भाइयों से ज़्यादा कमाता था और वैसे ही उड़ा भी देता था। ऐमिलियो मैं कई-कई महिने घर से गायब रहता था। बाद में तो हालत यह हो गई कि घर वालों ने यह भी पूछना बंद कर दिया कि कब आओगे? कहां हो?। सब अपने-अपने परिवार में व्यस्त हो गए। मैं और ज़्यादा मस्त हो गया कि बढ़िया है, बेवजह की पूछताछ से मुक्ति मिली।
 ऐमिलियो हमारे देश, समाज में जीवन में किस्मत का रोल बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मैं अब भी आश्चर्य में पड़ जाता हूं, जब अपनी हालत देखता हूं। कि आखिर मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कब और कैसे पूरी हो गई। मैंने आर्टिस्टों के लिए ऑर्ट्स कॉलेज में मॉडलिंग भी की है। रेलवे में गार्ड बनने से पहले मुंबई के एक बड़े प्रतिष्ठित होटल में सिक्योरिटी इंचार्ज रहा। इसके बाद गोवा के एक खूबसूरत बीच पर दो लोगों के साथ मिलकर रेस्टोरेंट भी चलाया।
इन्हीं में एक बंदा ऐसा था जो शेयर मार्केट का माहिर खिलाड़ी था लेकिन जबरदस्त शराबी भी था। उसी के चक्कर में जोरदार ढंग से कमाई कर रहा रेस्टोरेंट रातोंरात छोड़कर भागना पड़ा। नहीं तो स्थानीय गुंडों द्वारा मार ही दिया जाता। तुम बार-बार पूछती हो कि सरकारी नौकरी से पहले मैंने क्या किया? तो यही कहूंगा कि मैंने बहुत कुछ किया। इतना कुछ कि सब कुछ एक समय में ही याद कर पाना, लिख पाना संभव नहीं है।
अभी जो याद आ रहा है वह बता रहा हूं। इस नौकरी से पहले जहां मैंने सबसे ज़्यादा कमाई की वह क्षेत्र है दलाली का। मैं यहां की राजधानी दिल्ली में अपने ही जैसे एक मित्र के साथ वहीं के एक प्रॉपर्टी डीलर के साथ लग गया। किस्मत ने साथ दिया और कुछ ही महीनों में मैंने मोटी रकम कमा ली। इतनी कि दिल्ली ही के पास गौतम बुद्ध नगर में एक ठीक-ठाक मकान खरीद लिया। थ्री बी. एच. के. का यह मकान आठ बरसों से भी ज़्यादा समय तक मेरे कई दोस्तों का भी समय-समय पर ठिकाना बना रहा। तीन-चार साल पहले तक यहां हर छुट्टी में पार्टी-सार्टी अय्याशी होती रहती थी। रेव पार्टी भी कह सकती हो। बस एक चीज जो यहां नहीं होती थी वह थी ड्रग्स।
नशे के नाम पर शराब, सिगरेट तक सीमित था। सेक्स भी जम के था। मगर  प्रॉपर्टी डीलिंग के धंधे से अचानक ही कदम खींचने पड़े। इसके साथ ही यह पार्टी भी खत्म हो गई। इस धंधे से निकलने के बाद मैं कई महीने बेकार रहा। पैसे तेज़़ी से खत्म हो रहे थे। इस बीच स्थिति यह आयी कि बाइक रखी और अपनी एस. यू. वी. बेच दी।
प्रॉपर्टी डीलिंग में इस एस.यू.वी. ने बड़ा साथ दिया था। इसको बेचने से मिले पैसे से कई महीने खूब मजे किए। पहाड़ों पर घूमने निकल गया। रोहतांग दर्रा, लेह लद्दाख तक गया। फिर लौटा तो फॉरेस्ट सफारी पर निकल गया। वहां से लौटा तो एक मित्र के साथ पड़ोसी देश नेपाल गया। वहां की राजधानी काठमांडू में महीने भर घूमता रहा। वही काठमांडू जो कुछ साल पहले अप्रैल में भूकंप से तबाह हो गया था।
मेरा वह दोस्त वहीं नेपाल का रहने वाला है। उसका परिवार वहां बड़ा बिज़नेसमैन है। मेरा दोस्त कुछ-कुछ मेरी ही तबियत का है। काम-धाम मेहनत से करता है। जेब में मोटी रकम इकट्ठा होते ही मौज-मस्ती में तब तक लगा रहता है जब तक कि सारा पैसा फुर्र नहीं हो जाता। वह और मैं जब तक रहे नेपाल में दोनों ने मिलकर घूमने-फिरने, लड़कियों के साथ अय्याशी, खाने-पीने, होटल-बाजी में खूब पैसा और समय खर्च किया।
 जब हम दोनों का पैसा खत्म हो गया तो वह वहीं रुक गया और मैं यहां अपने देश लौट आया। ऐमिलियो तुम यदि मेरी इन बातों से यह सोच रही हो कि मेरा सारा पैसा और समय मौज-मस्ती में ही खर्च होता है और बीतता है, तो काफी हद तक सही हो। और यह भी बता दूं कि यह सब रेलवे में नौकरी में आने के वर्ष भर पहले तक रहा।
मैं नहीं जानता कि तुम्हारी यह बातें कितनी सच हैं कि तुम इंडिया मेरे साथ समय बिताने आओगी। मेरे साथ कोई भी संबंध साफ-साफ कहूं कि सेक्स संबंध में भी तुम्हें खुशी होगी। भारत मेरे साथ ऐसे ही संबंधों के साथ घूमना चाहोगी। कुछ समय ऐसे संबंधों के साथ जीते हुए तुम्हें यदि यह लगता है कि तुम मेरे साथ लाइफ पार्टनर बनकर रह सकती हो तो फिर इंडिया में ही रहोगी। मेरे साथ रहोगी। यहीं की नागरिकता ले लोगी। मेरे साथ ही जीवन बिताओगी।
 मैं तुम्हें स्पष्ट बताऊं कि मैं तुम्हारी इन बातों विशेष रूप से इंडिया में रहने की बात पर पूरा यकीन नहीं कर पा रहा हूं। और जहां तक मेरे मन की बात है तो मैं भी वाकई तुम्हारे साथ जीना चाहता हूं। लेकिन हम दोनों कितना ईमानदार हैं अपनी बातों में यह तो तभी पता चल पाएगा जब तुम इंडिया आओगी। मेरे साथ रहोगी।
हां, इसके पहले बातों के जरिए हम दोनों जो विश्वास आपस में कायम कर सकते हैं, उसी क्रम में तुम्हें बता रहा हूं, कि रेलवे ज्वाइन करने से पहले मैं एक बार सख्त बीमार पड़ गया।
 लापरवाह स्वभाव के कारण बीमारी ने गंभीर रूप धारण कर लिया। मैं गौतमबुद्ध नगर के अपने मकान में अकेले पड़ा था। संयोग से पैसे भी सब खत्म हो गए थे। मैं इतना वीक हो गया था कि ज़्यादा चल-फिर नहीं सकता था। घर में माता-पिता गुजर चुके थे। भाइयों से बरसों से कोई रिश्ता-नाता नहीं था। जो दोस्त थे वह भी अब तक ज़्यादातर सेटल हो चुके थे। अब किसी के पास मेरे लिए ना तो समय था और ना उधार देने के लिए पैसा। दवा की कौन कहे खाने के लिए भी लाले पड़ने लगे।
जितने दोस्तों को फ़ोन करता सब कोई ना कोई बहाना बना कर निकल देते। हालत यह हुई कि दोस्तों ने फ़ोन उठाना ही बंद कर दिया। सही कहूं ऐमिलियो तब मैंने समझा कि ये सब मेरे दोस्त हैं ही नहीं। ये सब पैसे के, मौज-मस्ती के साथी थे। अब ये सब मेरे पास है नहीं तो कोई क्यों आएगा? तभी मैंने यह समझा कि इसमें गलती तो मेरी ही है।
 वास्तव में मैंने कोई दोस्त जीवन में बनाए ही कहां? मेरा मन तब खीझ उठा कि मेरे जैसा आदमी दोस्त कहां बना सकता है। जो अपने को अपने परिवार से जोड़ कर ना रख सके वह क्या दोस्त बनाएगा? तभी मैंने यह तय कर लिया कि यदि जांडिस से जीत गया तो अपनी लाइफ स्टाइल बदलूंगा। अपने को यूं कटी पतंग की तरह आसमान में पत्ताते हुए कहीं भी गिर कर नष्ट हो जाने के लिए नहीं छोड़ दूंगा।
उस समय खाने की कमी और दवा जो कई दिन से बंद थी उसके चलते मेरी तबियत एकदम बिगड़ गई। मेरे सामने अचानक ही बाइक बेचने का ख़याल आया। लेकिन यह तुरंत नहीं हो सकता था। मुझे तुरंत पैसे चाहिए थे। हैरान-परेशान मैंने चेन, अंगूठी, घड़ी निकाली कि मार्केट में बेच दूं।
 तैयार होकर निकलना चाहा तो निकल ही ना सका। चक्कर आते रहे। बेड पर ही पड़ा रह गया। तब मुझे लगा कि अब मेरा बचना संभव नहीं। मोबाइल में नाम चेक नहीं कर पा रहा था। फिर उस समय परिवार की याद आई, मन भाइयों को फ़ोन करने को हुआ। जिनसे मैं कई साल से कभी मिला ही नहीं था। फ़ोन पर बात भी नहीं की थी। मेरे पास भाइयों से बात करने के लिए कोई कॉन्टेक्ट नंबर ही नहीं था।
मौत करीब देख कर उस दिन मैं टूटने लगा। मैं आखिरी कोशिश करते हुए फिर किसी दोस्त को फोन करने की कोशिश करने लगा। लेकिन नॉन पेमेंट के कारण मोबाइल की सर्विस बंद हो चुकी थी। मुझे लगा कि जैसे मेरे खिलाफ साजिश हो रही है। मुझे हर तरफ से मारने का प्रयास हो रहा है। और तब मैंने मन ही में निश्चय किया कि इतनी आसानी से खुद को मरने नहीं दूंगा। मैं पूरी ताकत लगाकर बेड से फिर उठा कि किसी तरह घर से बाहर सड़क पर निकलूं। जेब में अंगूठी, चेन, रख ली थी।
मगर दस-बारह क़दम भी ना चल पाया और जमीन पर गिर पड़ा। मैं अर्ध-बेहोशी की हालत में पड़ा था। इसे तुम मेरा भाग्य कह सकती हो या फिर संयोग कि आधे घंटे बाद ही मेरी एक परिचित आई, जिससे करीब दो वर्ष से बात तक नहीं हुई थी। वह मेरे ही एक मित्र के साथ लिवइन में दिल्ली में रहती थी। अचानक ब्रेकअप हुआ और वह सड़क पर आ गई। नौकरी उसकी कुछ महीने पहले ही गई थी। वह मुझसे मदद मांगने आई थी लेकिन हुआ उल्टा कि उसे मेरी ही मदद करनी पड़ी।
ऐमिलियो उसी ने किसी तरह डॉक्टर वगैरह बुलाया। कुछ दवा खाना-पीना मिलने के बाद मैं बोलने लायक हुआ, तब दोनों ने एक दूसरे की समस्या समझी। समय की यह ज़रूरत थी कि दोनों एक दूसरे की मदद करें। मजबूरी ने हम दोनों को एक कर दिया। उस मित्र शिरीन की मदद से घर का कई सामान बेचा। तब कहीं जाकर खाना-पीना और मेरी दवा हो सकी। मुझे ठीक होने में महीना भर लग गया। शिरीन पैसे से पूरी तरह खाली थी। लिवइन में ठगी का शिकार हुई थी। उसने जी जान से मेरी सेवा कर मुझे ठीक कर दिया था।
देखते-देखते हमारे उसके रिश्ते लिवइन में बदल गए। शिरीन मेरे ठीक होते ही जी जान से नौकरी ढूढ़ने में लग गई। उसी के कहने पर मैंने भी कुछ जगह एप्लाई किया। शिरीन के आने से एक बात यह हुई थी, कि उसने मुझ पर बराबर दबाव बनाया कि मैं अपनी लाइफ पर ध्यान दूं, खानाबदोशी छोड़ दूं। शिरीन की जल्दी ही नौकरी लग गई। उसने घर का, मेरा सारा खर्च उठाना शुरू कर दिया। इधर मैं भी इधर-उधर से अपने भर का जल्दी ही कमाने लगा।
 इस बीच जब कभी ज़्यादा कमाई हो जाती तो शिरीन को खर्च करने के लिए मना कर देता। देखते-देखते दो-ढाई साल निकल गए। इस दौरान मैंने फिर से नई बाइक खरीद ली। इसी बीच एक दिन रेलवे में नौकरी का एप्वाइंटमेंट लेटर मिला। यह फॉर्म मैंने कब भरा था। कब इक्जाम दिया था मुझे कुछ याद नहीं था। ये मेरे लिए अंधे के हाथ बटेर लगने जैसा था। मैं ट्रेनिंग वगैरह करके गॉर्ड बन गया। 
मगर ऐमिलियो अगर ज़िंदगी इतनी ही आसान होती तो दुनिया में सभी खुश ना होते। हम भी, तुम भी। यह जो हम दोनों परिचित हुए आपस में तो यह भी तो परेशानियों के कारण ही हुए। तुम पैसों की अपनी अधिक ज़रूरत के लिए यह जो जाल फैलाती हो यह आखिर क्यों फैलाती?, अगर तुम खुश होती। तो मेरे साथ अब नई समस्या शुरू हो गई।
 हमारे शिरीन के बीच मनमुटाव शुरू हो गया। वजह नई नौकरी में शिरीन का एक साथी था। उसकी नजदीकी शिरीन से बढ़ती जा रही थी। शिरीन को भी मैं उसकी तरफ बढ़ते हुए पा रहा था। इसी के चलते हमारे बीच झगड़ा शुरू हो गया। फिर हम एक छत के नीचे रहने में असमर्थ हो गए। आखिर एक दिन शिरीन अपने उसी साथी के साथ चली गई। फिर जल्दी ही उससे शादी कर ली।
बाद में उसके दो बच्चे हुए। ऐमिलियो शिरीन जब मुझे छोड़कर गई तब भी उसे मैं बहुत चाहता था। मैं नहीं चाहता था कि वो छोड़कर जाए। लेकिन क्यों कि वह शादी करके पारंपरिक दंपत्ति की तरह जीवन बिताना चाहती थी और उसको इसके लिए अपना वह साथी मुझसे ज़्यादा उपयुक्त लगा तो वह चली गई। उसके प्रेम में मैं अनफिट था। उसके इस डिसीजन से मुझे काफी शॉक लगा। मैं अपनी गॉर्ड की नौकरी से भी ऊब रहा था। कहने को तो ड्यूटी आठ घंटे की है लेकिन अमूमन यह बारह घंटे की हो ही जाती है।
ऐमिलियो यह बड़ी ऊबाऊ नौकरी है। सोचो एक गुड्स ट्रेन। जिसमें सौ से ऊपर डिब्बे। ड्राइवर और गॉर्ड के बीच सैकड़ों मीटर की दूरी। गॉर्ड का छोटा सा डिब्बा। उसी में मैं अकेला। गर्मियों के दिन में हालत खराब हो जाती है। और कड़ाके की ठंड में भी। कई बार जब रात के अंधेरे में किसी वजह से ट्रेन वियावान जंगल में खड़ी हो जाती है तो हालत और खराब हो जाती है। तब मैं जरूरत भर को ही केबिन से बाहर निकलता हूं। अपनी लंबी टार्च लेकर इंजन की तरफ देखता हूं। यदि ड्राइवर मेरी तरफ आ रहा है तो मैं भी उधर ही चल देता हूं।

हम दोनों बीच रास्ते में मिलते हैं। जो भी स्थिति रहती है उस पर बात करके वापस अपने डिब्बे में। बड़ी कठिन इस ड्यूटी ने शुरू के दिनों में मुझे बड़ा परेशान किया। मन किया कि छोड़ दूं नौकरी। लेकिन जांडिस के समय जो क्रिटिकल पोजीशन मेरी हुई थी उसकी याद आते ही मैं कांप उठता। और नौकरी छोड़ने की बात से ही तौबा कर लेता। सोचता उस बार तो संयोग से शिरीन आ गई। पूरे मन से मेरी केयर की। एक तरह से मेरी जान उसी ने बचाई। इसीलिए मैं उससे इमोशनली बहुत अटैच हो गया था। यही कारण था उससे ब्रेकअप पर मुझे बहुत दुख हुआ था। जब कि उसके पहले मुझे किसी भी औरत से अलग होने पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था।
 यह रीपिटीशन ही लग रहा है मगर फिर भी कह रहा हूं कि तुम अपने बारे में इधर बीच कुछ ऐसी-ऐसी बातें मेल में ज़्यादा बता रही हो और साथ ही एक तरह से मुझ पर प्रेशर ज़्यादा डाल रही हो कि मैं भी लाइफ की हर उस घटना को जो अब भी मुझे याद है वह तुम्हें ज़्यादा से ज़्यादा बताऊं। जिससे तुम मेरे पास आने से पहले मुझे अच्छी तरह से समझ लो। पिछली मेल में तुमने बताया कि इधर बीच एक पूजा स्थान के पुजारी ने जहां तुम आजकल हो डकार, सेनेगल में, तुम्हारा कई बार शोषण किया है। इसके पहले जब तुम मात्र तेरह-चौदह की थी तभी तुम्हारे एक रिश्तेदार ने तुम्हारा सेक्सुअल हैरेसमेंट किया था।
तुम मुझे यह बताने के साथ ही ज़ोर देकर पूछ रही हो, कि मैंने अपने अब तक के जीवन में कितनी लड़कियों का सेक्सुअल हैरेसमेंट किया? सच कहूं मुझे तुम्हारे इस बचपने पर हंसी आ रही है। किसी भी देश में ऐसा करना निश्चित ही अपराध होगा। अपराधी को सजा दी जाएगी। तो फिर कोई कैसे लिखकर किसी के भी सामने यह स्वीकार कर लेगा कि उसने जीवन में कभी ऐसा किया।
जहां तक बात मेरे देश की है तो यही कहूंगा कि अन्य देशों की तरह हमारे देश में भी बचपन में ही लड़कियों के सेक्सुअल हैरेसमेंट की घटनाएं सामने आती हैं। लड़के भी अकसर शिकार हो ही जाते हैं। औरतों द्वारा भी शोषण की घटनाएं सामने आती हैं। तुम यह पढ़ कर चौंक जाओगी कि मैं स्वयं चौदह की उम्र में एक महिला द्वारा सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार हुआ था। यह बात मैं आज पहली बार किसी से शेयर कर रहा हूं। मेरा शोषण तो मेरे ही घर में, मेरे ही किराएदार की मिसेज ने किया था। पूरे एक साल तक। जबकि उसके तीन बच्चे थे।
मकान छोड़ने के बाद भी वह मुझसे संपर्क बनाए रखने की कोशिश करती रही। तुम्हारे मन में यह क्योश्चन आ रहा होगा कि मैंने अपने पैरेंट्स से शिकायत क्यों नहीं की? तो ऐमिलियो सच यह है कि मेरे लिए यह एक अनोखा अनुभव था। जो अनायास ही मेरे हाथ लग गया था। बिना प्रयास ही वह मिल गया जिसे सोचा ही नहीं था। मुझे आश्चर्य-मिश्रित मजा आ रहा था। तो मैं शिकायत क्यों करता?
कुछ महिनों के बाद तो मैं ही अक्सर उससे खुद बोलता सेक्स के लिए। तो वह प्यार से दांत दबा कर मेरे गाल को नोच लेती। कभी हल्के से काट लेती। वह उम्र में मुझसे करीब बीस साल बड़ी थी। ऐमिलियो जैसा कि तुमने बताया कि फर्स्ट रेप के बाद जब तुम सदमे से उबर गई साल भर में, तो इसके बाद सेक्स के अनुभव के लिए तुम्हारे मन में अक्सर किसी पार्टनर की इच्छा होने लगी थी।
 मैं अपने बारे में यह कहूंगा कि उस औरत ने जब पहला अटेम्ट किया तो उसे मैं शोषण मान सकता हूं। उस समय मैं ऐसी स्थिति से गुजर रहा था जो मुझे एक अनजान दुनिया से गुजरने वाला अनुभव दे रहा था। हां पहली बार के बाद उसने जितनी बार किया उसे मैं शोषण नहीं मानता, क्योंकि उसमें मेरी भी सहमति रहती थी। मैं भी उतना ही मजा लूटता था जितना वो।
ऐमिलियो मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि तुम मेरी बातों से कैसे यह सुनिश्चित कर लोगी कि तुम मेरे पास आने पर जो कुछ जैसा चाहती हो वह तुम्हें मिल जाएगा ,इसका तुम सही-सही अंदाजा लगा लोगी। मेरी बातें कितनी सच हैं यह तुम किस तरह चेक कर पाओगी? लेकिन यह समस्या क्यों कि मेरी नहीं है, इसलिए मैं इस पर और कुछ कहने के बजाय इसे तुम पर छोड़ता हूं।
नौकरी में ड्यूटी के दौरान अब तक हुुई किसी ना भूलने वाली घटना को लिखने को भी तुमने कहा। तो ऐसी ही एक घटना बता रहा हूं। जो मुझे अपने डिब्बे में जाते ही याद आ जाती है। हालांकि नौकरी में रहते हुए इसे डिस्क्लोज़ करना अपने हाथों जानते-बूझते हुए अपनी नौकरी को खतरे में डालने जैसा है। लेकिन चलो ठीक है, तुम्हारे आग्रह के सामने यह खतरा भी उठा ही लेता हूं। सच बताऊं कि पता नहीं क्यों तुम्हारी बातें टाल नहीं पा रहा हूं। हालांकि मैं अब भी यह नहीं समझ पा रहा हूं कि अपनी यह बातें, जो इतनी मेहनत से इतना समय खर्च कर, मैं तुम्हें बता रहा हूं इनकी तुम्हारी नजरों में कितनी अहमियत होगी।
खैर यह बात उस समय कि है जब नौकरी में आए मुझे कई बरस हो गए थे। शिरीन से ब्रेकअप हो चुका था। मैं जीवन में बड़ा अकेलापन महसूस कर रहा था। गॉर्ड के डिब्बे में तो यह एकदम सिर पकड़ लेता है। स्थिति बड़ी बिगड़ती जा रही थी। मुझे लगा कि मैं कहीं डिप्रेशन में ना चला जाऊं। कोई दोस्त वगैरह तो मेरे रह नहीं गए थे। जिनसे मैं अपनी समस्या शेयर करता। गॉर्डों, ड्राइवरों के लिए जिस जगह उनकी ड्यूटी खत्म होती है वहीं विभाग ने उनके रुकने के लिए रिटायरिंग रूम बना रखे हैं। मैं भी इनमें रुकता ही हूं।
ऐसे ही एक बार नार्थ इंडिया के एक शहर में ड्यूटी खत्म करके रुका। हालात ऐसे बने कि दो दिन रुकना पड़ा। वहीं एक कर्मचारी के साथ शाम को घूमने निकल गया। मस्त-मौला, खाने-पीने वाला वह आदमी बड़ा दिलचस्प इंसान था। बातचीत में इतनी जल्दी घुल-मिल गया कि मेरी जुबान पर निसंकोच यह बात भी आ गई कि फिलहाल मैं सिंगिल हूं। इसके पहले कई महिलाएं जीवन में आईं लेकिन सेटिल होकर रहना पसंद नहीं इस लिए ऐसे ही चल रहा है जीवन।
ऐसा पहली बार हुआ है कि दो-तीन साल से जीवन में कोई महिला नहीं है। और शिरीन के साथ बात कुछ अलग तरह से आगे बढ़ चुकी थी इसलिए उससे अलग होना खला था। अब यह खलना मुझे अकेलेपन का कुछ ज़्यादा ही अहसास करा रहे हैं। इस पर उसने कहा आज आप का अकेलापन दूर कर दूंगा।फिर करीब एक घंटे के बाद वह बेहद चंचल सी लड़की रात भर के लिए मेरे रूम में लेकर आया। उसका परिचय कराते हुए बोला सर ये आज आपको कंपनी देंगी। इनकी फ्रेंड मेरे साथ है। सर ये जितनी खूबसूरत हैं, इनका साथ भी उतना ही ज़्यादा खूबसूरत होता है। मैं इतना जरूर कहूंगा कि इनकी कंपनी आप बार-बार पाना चाहेंगे।
ऐमिलियो वाकई उसकी कंपनी इतनी शानदार थी कि मेरा सालों का अकेलापन छूमंतर हो गया। अगले दिन उस आदमी ने जो कहा उससे मैं सन्न रह गया। उसने बताया कि कई ऐसे गॉर्ड हैं जो अपने डिब्बे में ऐसी लड़कियों की कंपनी अपनी ड्यूटी यानी आठ-दस घंटे के दौरान भी लेते हैं। बस गाड़ी रुकने पर या स्टेशन पर इन्हें ज़्यादा बाहर नहीं करें। यदि होम स्टेशन पर रुक रहे हैं तो चाहें तो घर पर या फिर किसी सुरक्षित जगह ठहरा दें। अगली ड्यूटी जब शुरू करें तो फिर पूरे टाइम कंपनी लें।
इस काम की जानकारी तो मुझे थी। लेकिन ऐसे आसानी से होता है यह नहीं जानता था। मैं थोड़ा हिचकिचाया। कहीं चेक हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। उसने मेरी बात को हवा में उड़ाते हुए कहा कि कैसी बात करते हैं। स्टाफ के चलते कुछ खास होता-वोता नहीं। जहां रोका जाए बोल दीजिए बस पिछले स्टेशन पर ट्रेन के चलते ही अचानक ही चढ़ आयी थी, टेªन स्पीड ले चुकी थी और इसकी खराब हालत के कारण हमने मदद कर दी।
अगले स्टेशन पर उतरने को कह रही है। लेकिन अब मैं इसे यहीं उतार दे रहा हूं। इनको क्या कहना है इसे यह अच्छी तरह जानती हैं। यह इस मामले में परफेक्ट हैं। यह पिछले हफ्ते ही एक गॉर्ड को कंपनी दे चुकी हैं।उसके बगल में ही खड़ी उस लड़की पर मैंने एक नज़र डाली, वह हल्की मुस्कान लिए खड़ी थी। उतना मासूम चेहरा कभी-कभी ही देखने को मिलता है।
मैं आश्चर्य में था कि यह वही मासूम है जो रात भर मंझी खिलाड़ी की तरह मेरे साथ ऐसे खेली कि जैसे मैं ना जाने कितने बरसों से उसका साथी खिलाड़ी हूं। रात याद आते ही मेरा डर,संकोच वगैरह रफू-चक्कर हो गए। उस आदमी ने उस लड़की को मेरे डिब्बे में ट्रेन चलने से पहले पहुंचा दिया। उसके साथ एक छोटा स्ट्रॉली बैग भी था। ऐमिलियो यहां गर्मी के दिनों में सुपर फास्ट एक्सप्रेस ट्रेंस भी घंटों लेट हो जाती हैं।
 गुड्स ट्रेंस का तो कोई पुरुषाहाल ही नहीं होता। उस दिन मेरी ट्रेन  के साथ यही हो गया। मुझे जिस स्टेशन पर ड्यूटी दूसरे गॉर्ड को हैंड ओवर करनी थी वहां पहुंचते -पहुंचते बारह घंटे से ऊपर हो गए। वहां सबसे नजर बचा कर पार्टनर को उतार तो लिया। लेकिन मन में यह घबराहट होने लगी कि इसे कहां ठहराऊं? ऐमिलियो मैं एक बात स्पष्ट रूप से बता दूं कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मैं कभी निश्चिंत नहीं रहा।
मैंने उससे पूछा तुम इस शहर में पहले कभी आई हो तो उसने बड़ी संजीदगी से कहा मैं पहले कभी यहां नहीं आई। दरअसल मैं भी उस शहर रांची से ज़्यादा परिचित नहीं था। सोचा यहां के किसी होटल वगैरह में रुका तो एक तो पैसा बहुत खर्च होगा। दूसरे होटल वाले संदेह की दृष्टि से देखेंगे कि अपने से आधी उम्र की लड़की लेकर आया है। स्टाफ के एक आदमी से मदद मांगी। उसने जो समाधान निकाला वह मेरे लिए शानदार था। होटल का सारा खर्चा बच गया। असुरक्षा नाम की कोई चीज नहीं रही। उसने अपने ही एक दोस्त के घर इंतजाम करा दिया। एक दिन एक रात हम वहां रुके। लेकिन अगली ड्यूटी मुझे एक दूसरे ही रूट की मिल गई।
मैं परेशान हो गया कि अब मैं इसे कहां लिए-लिए घूमूं। इसके पैसे भी बढ़ते जा रहे हैं। मैंने उससे दबे मन से कहा कि दूसरी टेªन से बर्थ रिजर्व करा दूं वह चली जाए। लेकिन उसने ना-नूकुर की। हार कर साथ लिया। लेकिन एक के बाद एक मेरी ड्यूटी ऐसी लगती गई कि उसके शहर का नंबर ही नहीं आया। अंततः एक परिचित टीटी के साथ उसे उसके शहर भेज दिया। उसका जितना पैसा बना वह मैंने उसके एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया। वह सारा कैश साथ लेकर नहीं जाना चाह रही थी। कुल मिलाकर चार-पांच दिन का उसका साथ बहुत अच्छा रहा।
कुछ इतना अच्छा ऐमिलियो कि मैं जब भी उसके शहर पहुंचता तो उसे जरूर बुलाता। उसका साथ मुझे इसलिए ज़्यादा अच्छा लग रहा था क्यों कि वह जितने समय तक रहती उतने समय तक एक पल को भी उसके किसी भी काम में कोई प्रोफेशनलिज्म नहीं दिखता था। यह उसके जबरदस्त प्रोफेशनल होने का ही परिणाम था। बेहद अंतरंग क्षणों के समय भी वह ऐसे मिक्सअप होती कि मानों वह लाइफ पार्टनर हो। उसके काम में सेक्स वर्कर होने की छाया भी नहीं होती थी। उसका साथ, उसकी सेवाएं मैं काफी समय तक लेता रहा। एक बार ऐसा हुआ कि ना चाहते हुए भी उसे छोड़ना पड़ा।
असल में हुआ यह कि एक बार ऐसे ड्राइवरों से पाला पड़ गया जो ब्लैकमेल करने लगे। एक जगह वह दोनों भी हाथ साफ करने पर उतारू हो गए। मैंने विरोध किया तो बात बिगड़़ गई। मेरे विरोध के चलते वे मेरी पार्टनर को छू तो नहीं पाए लेकिन अगले स्टेशन पर पहुंचने से पहले उन्होंने खुराफात कर दी। परिणामस्वरूप मैं पकड़ लिया गया। मगर पार्टनर की चाल ने ड्राइवरों की हवा निकाल दी। उसने हमारे सीनियर से पूरे जोर से चिल्ला कर कहा ‘‘ठीक है आपको लगता है कि गलत है तो आप को जो ठीक लगे वह करें। लेकिन इन दोनों ने मेरे साथ रेप करने की कोशिश की। मैं गॉर्ड साहब के कारण ही बच पाई। मुझे थाने में रिपोर्ट लिखाने का मौका दिया जाए।’’
इस बात पर वह इतना ज़्यादा ज़ोर देने लगी, इस तरह अड़ गई, चिल्लाने लगी कि दोनों ड्राइवरों की हालत खराब हो गई। रिपोर्ट लिखाने का मतलब था कि दोनों ड्राइवर अरेस्ट होते। पार्टनर की इस चाल ने उसे और मुझे दोनों को बचा लिया। मगर इसके बाद हमने पार्टनर की सेवा लेना बंद कर दिया। क्योंकि मुझे हर हाल में नौकरी करनी ही है।
इसके बाद अब मुझे ऐसा कुछ करना होता है तो अपने घर पर ही छु्ट्टियों में ही पार्टनर अरेंज करता हूं। ऐमिलियो मुझे लगता है कि मुझे जितनी बातें तुम्हें बतानी चाहिए वह मैंने बता दीं। बल्कि मैं यह कहूंगा कि जो नहीं बतानी चाहिए वह भी बता दीं। अब बात आती है कि तुम्हारे आने के लिए मैं टिकट अरेंज करूं। रास्ते के लिए जो पैसे चाहिए वह तुम अरेंज कर लोगी। तो ठीक है इतना करने के लिये मैं तैयार हूं। तुम वहां के किसी अथॉराइज ट्रैवेल एजेंसी की डिटेल भेजो।
ऐमिलियो पर विश्वास बढ़ने के बाद मैंने पहली बार किसी को इतनी लंबी मेल भेजी। असल में स्टूडेंट लाइफ खत्म होने के बाद यह पहला अवसर था जब मैंने एक बार में इतना कुछ लिखा। इसके बाद ऐसी लंबी मेल का सिलसिला शुरू हो गया। इस तरह महीनों मेल के जरिए मैंने ऐमिलियो से बातचीत की। हम दोनों ने एक दूसरे का विश्वास जीता। फिर मैंने उसके लिए यहीं से टिकट अरेंज किया। इस दौरान भी मेरे पास बहुत सी फ्रॉड लड़कियों की मेल आती रहीं और मैं सबको रिस्पॉंन्स देता रहा। और घर को ऐमिलियो के आने के उपलक्ष्य में ठीक-ठाक कराया। सब कुछ जितना हो सकता था उतना बेहतर किया।
मगर मन के एक कोने में यह डर बराबर बना रहता कि कहीं यह सब बेकार ना हो जाए। आखिर ऐमिलियो भी तो उन्हीं फ्रॉड लड़कियों की गैंग की है। और देखा जाए तो मैं वास्तव में उसकी ठगी का शिकार ही हो रहा हूं। जानते हुए भी वो बराबर जो कह रही है वह कर रहा हूं। वह मुझसे पैसे न ऐंठ पाई तो क्या। मेरे ही पैसे पर दो महीना इंडिया घूमेगी। मेरे ही घर में रहेगी। मुफ्त में मेरे जैसा गाइड होगा जो इस सारे समय उसके साथ लिवइन पार्टनर की तरह रहेगा। कुल मिलाकर चित भी उसकी,पट भी उसकी, अंटा उसके बाप का होगा। इंडिया में वह मेरी होकर रहेगी, लाइफ पार्टनर बनेगी ,यह सब भी दूर की कौड़ी ही लग रहा है।
इन सारी बातों पर मैं खुद को यह समझा कर तसल्ली देता कि जिं़दगी में बहुत से अनुभव लिए। अब विदेश गए बगैर एक विदेशी युवती का अनुभव घर पर ही लूंगा। विदेश यदि दो महिनों के लिए जाऊं तो भी खर्च कम नहीं होगा। पराए देश में किसी युवती का इस तरह पार्टनर के रूप में मिलने का तो प्रश्न ही नहीं है। वहां की सेक्स वर्कर को कितना साथ ले पाऊंगा? पकड़े जाने का डर अलग रहेगा। दूसरे देश में कौन मेरी हेल्प करेगा?
देश में तो मेरा कोई मददगार है नहीं, वहां कौन होगा? यह उधेड़बुन उस वक्त और ज़्यादा थी जब मैं दिल्ली इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर ऐमिलियो को लेने गया। मन में बराबर यह डर बना रहा कि पता नहीं आएगी कि नहीं। कहीं धोखा ना दे दे। मेरे टिकट पर आकर कहीं किसी और के साथ न घूमें। यहां कहीं मुझे पहचाने ही ना। कहीं कोई गफ़लत न हो इसलिए मैंने उसकी मेल की गई फोटो में से एक का ब्रोमाइड प्रिंट साथ ले लिया था। वह अमेरिकी एयरवेज की बोइंग 741 की फ्लाइट से आ रही थी। कुछ समय के इंतजार के बाद ही बोइंग रनवे पर लैंड करता है, मेरी धड़कनें बढत़ी जा रही थीं। जहाज के रुकने पर दरवाजा खुलता है, पैसेंजर उतरना शुरू करते हैं।
मैं उनमें ऐमिलियो को पहचानने की कोशिश करता हूं। करीब दर्जन भर पैसेंजर्स के उतरने के बाद एक लड़की ऐमिलियो से मिलती-जुलती कद काठी की उतरती नजर आती है। मेरी धड़कनें सातवें आसमान पर पहुंच रही थीं। मेरी नजरें उस पर गड़ गईं थीं। जैसे-जैसे करीब आती गई उसका चेहरा साफ होता गया। वह फेडेड हल्के नीले रंग की जींस और स्लीवलेस टी शर्ट में थी। क्लीयरेंस के बाद वह जब आई तो मैं उसके नाम की तख्ती लिए उसके पास पहुंचा।
 पहचान पूरी तरह पुख्ता कर लेने के लिए मैं जिस नाम से उसे मेल में संबोधित करता था उसी नाम से उसे पुकारा मिस ऐमिलियो फ्रॉम सेनेगलवह तुरंत ही बोलती है यस एंड यू..।वह मेरे नाम का प्रोनेंसेसन सही नहीं कर पाई थी। हम दोनों को एक दूसरे को पहचानने में देर नहीं लगी। गर्मजोशी से हम दोनों ने हाथ मिलाया। फिर हाल-चाल पूछते-पूछते उसने अचानक ही बांहों में भर लिया तो मैंने भी उसे कस लिया। कुछ पल के बाद वह अलग होती हुई बोली मैं आ गई
मैंने उससे कहा ऐमिलियो तुम मेरी खुशी का अंदाजा नहीं लगा सकती।मैंने देखा कि वह हंस तो रही है लेकिन उसकी आंखें भरी हैं। उसके साथ दो सूटकेस थे। एक का हैंडिल उसने और एक का मैंने पकड़ा और उसे खींचते हुए बाहर आए। मैं एक टैक्सी लेकर गया था। बाहर आने तक उसने मेरा हाथ पकड़े रखा। मैंने भी। बेहद नर्म थे उसके हाथ।
मैं भीतर-भीतर रोमांचित हुआ जा रहा था। टैक्सी में भी वह मुझ से सट कर बैठी। बार-बार मेरे हाथों को अपने हाथों में ले-ले रही थी। रास्ते भर वह इधर-उधर देखती रही और पूछती रही कई चीजों के बारे में। लंबी जर्नी की थकान उसके चेहरे पर नजर आ रही थी। रास्ते में उसने यह भी बताया कि बीच-बीच में तो कई बार ऐसा लगा कि जर्नी कैंसिल करनी पड़ेगी। लेकिन मेरी बातों से इतना इंप्रेस थी कि हार नहीं मानी और आ गई मेरे पास।
मेल में उसकी बातों से मेरा अनुमान था कि वह बेहद बातूनी होगी लेकिन इसके विपरीत रास्ते भर उसने इतनी बात नहीं की कि उसे बातूनी कहता। मैंने रास्ते में कहीं गाड़ी नहीं रुकवाई। उसके स्वागत के लिए मैंने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी। घर पहुंच कर टैक्सी वाले को मैंने बिदा किया। गेट का ताला खोल रहा था कि तभी उसने एक नजर घर पर डालते हुए कहा नाइस हाऊस रोहिट।मैंने उसे धन्यवाद कहा और पूरे आदर के साथ अंदर ले आया। कहा आओ-आओ ऐमिलियो स्वागत है तुम्हारा मेरे इस घर में। इस घर में आने वाली तुम पहली नॉन इंडियन मेहमान हो।
उसने थैंक्यू बोलते हुए फिर मुझे गले से लगा लिया। काफी देर तक मुझे बाहों में समेटे रही। फिर अलग हुई और कहा रोहिट(वह मेरे रोहित नाम का उच्चारण रोहिट ही करती थी।) मेरे लिए यह अविश्वसनीय क्षण हैं।मैंने कहा मेरे लिए भी, हम दोनों के लिए।उसे सोफे पर बैठा कर मैं किचेन में गया। मिठाई और ठंडा पानी लेकर आया। उसके लिए मैंने स्पेशल मिठाईयां लाकर रखी थीं। उसे मिठाई बहुत पसंद आई। हम दोनों दस मिनट तक आमने-सामने बैठे बातें करते रहे।
वह अपने रास्ते भर का अनुभव बताती रही। उसने बताया यह उसकी दूसरी हवाई जहाज यात्रा थी। रास्ते में एक पैसेंजर ने एयर होस्टेज से बदतमीजी की। मना करने पर मार-पीट पर उतारू हो गया। तो उसे एक जगह लैंड करने पर उतार कर पुलिस के हवाले कर दिया गया।
ऐमिलियो की बातचीत से लगा कि मैंने मेल के जरिए इसे जितना जाना-समझा था यह उससे कहीं ज़्यादा पढ़ी-लिखी, समझदार सुलझी हुई है। और उम्मीदों से कहीं ज़्यादा फ्रैंक, बेबाक और बोल्ड तो गजब की है। हज़ारों किलोमीटर दूर वह एक तरह से बिल्कुल अनजान आदमी के घर मेरे पास आई थी। लेकिन भीतर-भीतर सहम मैं रहा था। और वह ऐसे विहैव कर रही थी कि मानो वह अपने घर में मेरा स्वागत कर रही है।
उसने ड्रॉइंगरूम की तारीफ की तो मैंने उसे पूरा घर दिखाया। वापस बैठा तो उसने घर और मेरी पसंद दोनों की तारीफ की। और साथ ही शॉवर लेने की बात कही जिससे थकान दूर हो। इसके पहले बाथरूम की तारीफ करना भी वह न भूली थी। अति उत्साह में मैंने उसे बाथरूम भी दिखा दिया था। बाथिंग टब और बड़ा होना चाहिए उसने यह भी बेहिचक कह दिया था। मैंने एक अच्छे मेजबान की तरह उसके लिए बाथरूम में तौलिया रख दिया। बाकी चीजें वहां थी हीं। जाते वक्त उसने जींस टी-शर्ट उतार कर वहीं रखे सूटकेस पर ही रखे और बाथरूम में चली गई।
नहा कर तौलिया लपेटे आई और सोफे पर बैठ गई। वह तौलिया उतना बड़ा नहीं था कि एक  सवा पांच फीट लंबी भरे-पूरे जिस्म की लड़की को ठीक से ढंक पाती। लेकिन फिर भी बहुत कुछ ढके हुए थी। फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ तो उसकी इच्छानुसार मैं एक वर्ल्ड वाइड फेमस कंपनी के चिकेन लाली पॉप और दो केन चिल्ड बीयर फ्रिज से ले आया। बीयर के साथ चिकेन का मजा लेते हुए ही एक चक्कर शहर का लगा लेने का प्लान फाइनल हो गया। घूमने की बात शुरू होने पर मेरे दिमाग में यह बात आई कि कुछ देर पहले तक तो यह थकान की बात कर रही थी। मगर इससे से ज़्यादा मैं यह सोच रहा था कि यह तौलिए से निकल कर कपड़े पहन लेती तो अच्छा था। मैं बड़ा ऑड फील कर रहा था।
इस बीच मैं जान-बूझकर ऐसे एंगिल पर बैठा कि बार-बार पहलू बदलते उसके शरीर पर मेरी नजर उलझे नहीं। और वह मुझे बदतमीज ना समझ ले। उसकी हंसी मुझे बड़ी मोहक लग रही थी। वह खुल कर खिलखिलाकर हंसती थी। जब काफी टाइम होने पर भी उसने चलने की बात ना उठाई तो मैंने उसे याद दिलाया कि घूमने को लेकर क्या इरादा है?’ तो उसने कहा कि अभी बड़ी थकान महसूस हो रही है। सोच रही हूं थोड़ा आराम कर लूं तब चलूं।
 मैंने कहा ठीक है ऐसा ही करते हैं। मन ही मन सोचा चलो इसी बहाने कपड़े तो पहन लेगी। लेकिन नहीं वह वैसे ही बेडरूम में जाकर लेट गई। मैंने एसी ऑन कर दिया था। मैं ड्रॉइंगरूम में बैठा टीवी देखता रहा। और डरता रहा कि कोई बखेड़ा ना खड़ा कर देे। दुनिया भर में यौन उत्पीड़न के तमाम केस और वसूली के लिए तमाम फर्जी मामलों को सुन-सुन कर मैं पहले ही बहुत सतर्क था।
घर का कोना-कोना मैंने सी-सी टीवी कैमरे की रेंज में कर रखा था। डर यह था कि यदि कल को इसने कुछ ऐसा-वैसा किया तो इसके जरिए मेरे पास अकाट्य प्रमाण तो होंगे। टीवी देखते-देखते मेरे दिमाग में आया कि आखिर मुझे क्या हो गया है कि मैं इस ऐमिलियो के पीछे इतना पगलाया हुआ हूं। इसके लिए इतनी दिवानगी क्यों है?
सच तो यही है कि यह दिवानगी कोई भावनात्मक लगाव के चलते नहीं है। यहां तो भावनात्मक लगाव का कोई नाम ही नहीं है। यह दिवानगी तो सिर्फ़ इसके शरीर को लेकर है कि यह एक विदेशी है। बड़े आश्चर्यजनक ढंग से देखते-देखते घर आ पहुंची है। और वह भी तो मुफ्त में भारत घूमने के उद्देश्य से आई है।
साथ में घूमने के लिए कोई चाहिए तो मैं मिल गया। रहने के लिए मेरा घर । और उद्देश्य तो अभी भी पता नहीं है। पता नहीं घूमने आई है या लूटने के दूसरे किसी अजीबोगरीब प्लान  के साथ आई है। अभी कुछ दिन पहले ही तो मीडिया में आया था कि दो नाइजीरियन ने यहां एक लड़की से लाखों रुपए ठग लिए। और पैसा मांगा तो लड़की ने पुलिस की मदद ली और दोनों पकड़े गए।
ऐमिलियो कहीं उनसे आगे की चीज ना हो, कि सीधे घर में रहकर ही लूटे। मेरी बेचैनी बढ़ी तो मैंने थोड़ी देर में एक कैन बियर और पी ली। मैंने एक घंटा ऐसे ही बिता दिया। ऐमिलियो के बेडरूम में जाते ही मैंने वहां का कैमरा ऑफ कर दिया था। मुझे कैमरा ऑन रखना उसके प्राइवेट टाइम में छिपकर तांक-झांक करने जैसा निहायत गंदा काम लगा था। करीब दो घंटा बीता तो मुझे लगा देखना चाहिए कि सो रही कि जाग रही है। घूमने चलना है कि नहीं चलना है। जैसा हो वैसा बताए तो उसके हिसाब से खाने-पीने का इंतजाम करूं।
मैं उठा कि दरवाजा नॉक करूं लेकिन फिर आकर बैठ गया। सोचा कि ये पता नहीं क्या सोच ले? अंदर से दरवाजा तो बंद नहीं किया है। फिर मैंने कैमरे की मदद ली। ऑन कर देखा तो मैं बड़े आश्चर्य में पड़ गया। वह बेड पर एकदम निश्चिंत बेधड़क सो रही थी। ऐसे जैसे अपने घर में हो। निश्चिंत इतनी कि तौलिया कहीं था और वह कहीं और। कुछ क्षण उसे ऐसी हालत में देखने से मैं अपने को रोक न सका। लेकिन अपनी गलती का एहसास होते ही कैमरा ऑफ कर दिया। फिर सोफे पर बैठ गया। उसके बारे में सोचते-सोचते मुझे भी नींद आ गई। मैं सोफे पर ही सो गया। अजीब तमाशा हो रहा था।
मेज़बान, मेहमान दोनों सो रहे थे। कहां तो घूमने-फिरने का प्रोग्राम जोर-शोर से बन रहा था। सही ही कहा गया है कि बगल में कोई सो रहा हो तो नींद जागने वाले को भी आ ही जाती है। और मैं जगा तब जब रोहिटआवाज़़ कानों में पड़ी। और साथ ही एक नर्म सा स्पर्श कंधों पर पड़ा। आंखें खोली तो सामने ऐमिलियो खड़ी थी। उसे देखते ही मैं सीधा बैठ गया। और पूछा अरे तुम कब उठीं?’ वह बोली अभी। बाहर आकर देखा तो यहां तुम भी सो रहे थे। मैं कितनी देर तक सोती रही क्या मुझे बताओगे?’
मैंने घड़ी की तरफ देखा। रात के दस बजने वाले थे। मैंने उससे कहा तुम करीब चार घंटे सोती रहीं। और मैं भी दो घंटे सो चुका हूं। इंडियन टाइम के हिसाब से इस समय रात के दस बजे चुके हैं।वह बोली ओह! तो अब क्या करना चाहिए?’ मैंने कहा डिनर का टाइम हो रहा है। चलते हैं बाहर किसी रेस्त्रां में डिनर करते हैं। और थोड़ा घूमते भी हैं।उसने कहा ठीक है। चलने से पहले उसने मेरा लैपटॉप यूज किया। अपनी मदर, फादर और एक फ्रेंड को मेल किया कि वह इंडिया अपने फ्रेंड रोहिट के पास पहुंच गई है। यहां रात के दस बज चुके हैं। मेरे साथ एक सेल्फी लेकर वह भी मेल कर दी।
उसे यह सब करते देखकर मैंने मन में कहा यह बंदी वाकई बड़ी स्मार्ट है। और हिम्मती तो इतनी है कि कुछ कहा ही नहीं जा सकता। कितनी खूबसूरती से मेरे ही घर में बैठकर, मेरे ही लैपटॉप से अपने लोगों को डिटेल्स भेज कर मुझ पर एक दबाव बना दिया है। घर का पूरा एड्रेस तक मुझ से पूछ कर लिखा कि यहां रुकी हूं। मैं उसके साथ से रोमांचित भी हो रहा था और अंदर ही अंदर तमाम सारी आशंकाओं से भयभीत भी हो रहा था। लेकिन वह एकदम निश्चिंत मस्त दिख रही थी। कम से कम ऊपर से तो ऐसा ही दिख रहा था। अंदर-अंदर वह भी मेरी तरह संशयग्रस्त थी या नहीं यह मैं समझ नहीं पाया।
जब उसके साथ डिनर और थोड़ा बहुत घूम-फिर कर लौटा तो रात बारह बज गए थे। मगर क्योंकि हम दोनों पहले ही सो चुके थे इसलिए आंखों में नींद नहीं थी। आते वक्त सिगरेट और वोदका की एक बोतल मैं उसी के कहने पर ले आया था। मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं थी। पहले भी कई पार्टनर मेरे साथ पी चुकी थीं। लेकिन ये पार्टनर सबसे अलग थी। इसलिए मेरी मनःस्थिति भी एकदम अलग थी। मैं यह सोचकर भी परेशान हो रहा था कि यह कहीं ज़्यादा पी कर हंगामा ना करे। वैसे बाहर बेहद शालीनता से पेश आई थी। रेस्त्रां हो या फिर अन्य कोई जगह जहां-जहां गई वहां पूरे शलीके से रही।
आने के बाद ड्रॉइंग रूम में ही बैठा। वहीं उसके कहने पर एक-एक पैग वोदका ली। और सिगरेट भी पी। मेरे डर के विपरीत उसने एक पैग से ज़्यादा लेने से मना कर दिया। तभी एक अंग्रेजी चैनल पर एक पुरानी अंग्रेजी मूवी वाइल्ड ऑर्किडशुरू हुई। उसे देखते ही उसने कहा ओह माई फेवरेट मूवी। रोहिट इसे मेरे साथ देखना चाहोगे? बहुत खूबसूरत फ़िल्म है।मैंने कहा बिल्कुल देखुंगा। मुझे खुशी होगी।इसके अलावा मैं कुछ कह भी तो नहीं सकता था।
इसके पहले कि मैं कुछ कहूं उसने आगे के लिए एक भारतीय बीवी की तरह हुकुम जारी कर दिया कि कपड़े चेंज करते हैं, बेडरूम में टीवी है ही, वहीं आराम से देखते हैं। मैं सोच रहा था कि अलग-अलग कमरे में सोएंगे। लेकिन उसने साफ कहा रोहिट हम यहां तुम्हारे पास आए हैं। तुम्हारे साथ रहने। अलग रहने नहीं।फिर उसने इमोशनल कर देने वाली कई बातें कह दीं। मैं निरुत्तर था। उसकी बातचीत, अंदाज से मुझे लगा कि मैं इसे जितना समझता हूं यह उससे हर बार कहीं आगे निकलती है।
मूवी शुरू हो चुकी थी। वह बेड पर मुझसे सटी बैठी देख रही थी। कभी सिर कंधे पर रख देती, कभी हाथ। उसकी स्लीपिंग ड्रेस भी मेरे हिसाब से कुछ अजीब थी। एक छोटी सी स्लीवलेस बनियान, और बेहद छोटी नेकर। और मेरा बरमुडा उसके सामने पूरा पजामा नजर आ रहा था। और टी-शर्ट कुर्ता। उसकी खुली भरी हुई टांगें, ब्रेस्ट मेरी अजीब सी स्थिति किए हुए थीं।
 जो फ़िल्म चल रही थी वह लेट नाइट की टू एक्स मूवी थी। एक से एक हॉट सीन मन का कमांकला किए जा रहे थे। और वह ध्यान से देख रही थी। बीच-बीच में कुछ बोलती जाती। कभी इधर पहलू बदलती कभी उधर। दो बजे मूवी खत्म होते-होते मुझे नींद आने लगी थी। उसकी आंखें भी मुझे बोझिल लग रही थीं। मूवी खत्म होने के बाद वह वॉशरूम होकर आई। फिर मैं भी हो आया।
आया तो देखा वह फ्रिज से बोतल निकाल कर मुंह ऊपर किए गटागट पानी पिए जा रही थी। मैंने भी पानी पिया। तभी उसने ओढ़ने के लिए चादर मांगी तो मैंने यूं ही कह दिया कि कुलिंग ज़्यादा हो तो कम कर दूं।उसने कहा नहीं कूलिंग ठीक है। एक्चुअली मेरी आदत है चादर ओढ़ कर सोने की। सोते समय मैं कोई कपड़े नहीं पहनती।मेरे लिए उसकी यह दूसरी बात किसी धमाके से कम नहीं थी। देखते-देखते उसने दोनों कपड़े उतारे, उन्हें साइड टेबिल पर डाला और बेड के दूसरी तरफ पड़ी चादर गले तक खींच कर तकिए के सहारे अधलेटी हो बोली तुम कपड़े पहन कर सोते हो क्या?’
 मैंने कहा हां।तो वह बोली चेंज कर दो यह आदत। कम से कम सोते समय तो हमें शरीर को कुछ घंटों के लिए एकदम आज़़ाद कर देना चाहिए। आज की मेडिकल साइंस भी कहती है निर्वस्त्र होकर सोने से ब्लड सर्कुलेशन अच्छा रहता है। सेहत अच्छी रहती है।फिर उसने किसी साइंटिस्ट की एक रिसर्च रिपोेर्ट का हवाला देते हुए कहा चलो रोहिट आज से शुरू कर दो।
कहां तो मैं उसके साथ एक बेड पर सोने से ही हिचक रहा था और कहां वह साथ सोने ही नहीं, निर्वस्त्र होकर सोने के लिए प्रेशर डाल रही थी। प्रेशर इतना था कि मैं भी कपड़े उतार कर लेटा। एक ही चादर में। तब जो रोमांच, जो एक्साइटमेंट मैंने महसूस किया वह पहले कभी नहीं किया था। एक अजीब अनुभव। अकल्पनीय, अवर्णनीय स्थिति से गुजर रहा था मैं। मन की गहराई में एक बात और चल रही थी। कि इतनी हॉट मूवी देखी है इसने। अंतरंग क्षणों के कितने सीन देखे हैं। यह एक्साइटमेंट से भरी है।
अभी सोने से पहले यह अपना एक्साइटमेंट भी मेरे साथ ज़़रूर खत्म करेगी। शायद इसीलिए बहाना बनाया कि कपड़े उतार कर सोते हैं। मैं पहल करूं इसके लिए इसकी यह एक चाल भी हो सकती है। मगर ऐमिलियो को लेकर मेरा हर असेसमेंट गलत हो रहा था। चादर में मेरे घुसते ही उसने करवट ली और मुझे बांहों में भर लिया। चिपक गई मुझसे। फिर गुडनाइट रोहिटकह कर शांत लेटी रही। मैं भी लेटा रहा। कुछ मिनट भी ना बीते होंगे कि वह गहरी नींद में सो गई। उसकी पकड़ एकदम ढीली पड़ गई।
वह एकदम निश्चिंत सो रही थी। कुछ देर बाद मैंने उसे अपने से अलग किया। बहुत ही धीरे से। जिससे उसकी नींद ना खुले। मैं अपने शरीर में बढ़ते तनाव से परेशान हो रहा था। थोड़ी ही देर में मैं चार बार उस चादर में अंदर लेटा और बाहर आया। मैं ऐमिलियो को छूना नहीं चाह रहा था। मैं कोई पहल नहीं करना चाह रहा था। नींद से आंखें कडु़वा रही थीं। आखिर मैं एक बार फिर वॉशरूम हो आया। एक और चादर भी ले आया। फिर अपना बरमुडा पहन कर ऐमिलियो की बगल में अलग चादर ओढ़ कर सो गया।
 जिससे अपने तनाव पर कुछ काबू पा सकूं। ऐमिलियो की चादर भी खींच कर उसे गले तक ढक दिया था। वॉशरूम से जब लौटा था तो उसकी चादर कमर तक हटी हुई थी। मैं बहुत बाद तक भी यह नहीं समझ पाया कि उस वक्त मैं तनाव पर नियंत्रण कैसे कर पाया? शायद कोई डर था जो मुझे रोके रहा। या मेरी प्रौढ़ता ने मुझे उतावलेपन पर कंट्रोल करने की क्षमता दे दी थी। लेटते ही मैं भी जल्दी ही सो गया।
सुबह नींद खुली तो आठ बज गए थे। एसी फुल स्वींग में चल रहा था। उसकी ठंड से ही मेरी नींद खुली थी। नींद खुलते ही ऐमिलियो की याद आई। याद आते ही नजर बगल में गई। तो दिल धक् से हो गया। ऐमिलियो वहां नहीं थी। उसका तकिया करीने से रखा हुआ था। चादर भी। पल में यह बात मन में दौड़ गई कि यह हाथ साफ कर रफूचक्कर हो गई क्या? झटके से उठा, कमरे के बाहर ड्रॉइंगरूम में आया तो वह खाली था। मेरी धड़कन एकदम से और बढ़ गई। मैंने आवाज़ देने की सोची कि देखूं वह बाथरूम में तो नहीं है। लेकिन तभी गुडमॉर्निंगकी हल्की सी आवाज़ मेरे कान में पड़ी।
मुड़कर देखा तो दो कप कॉफी लिए ऐमिलियो खड़ी थी। आश्चर्य भी हुआ। मैंने गुडमॉर्निंग कह कर कहा अरे तुमने क्यों कष्ट किया? बताया होता मैं उठ कर बनाता। आफ्टर ऑल तुम मेरी गेस्ट हो।उसने कहा फॉर्मेलिटी में क्या रखा है रोहिट?’ मुझे मेरी कॉफी  पकड़ा कर फिर बोली तुम्हें बुरा तो नहीं लगा कि तुम्हें बिना बताए किचेन में चली गई।मैंने कहा नहीं।तब वह मुस्कुराती हुई बोली एक्चुअली रोहिट कल तुमने जिस तरह मेरा वेलकम किया उससे मैं बहुत इम्प्रेस थी। मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहती थी।
सुबह जब उठी तब भी दिमाग में कुछ नहीं था। तुम गहरी नींद में सो रहे थे। फिर नजर तुम्हारे कपड़ों पर गई। देखा तुम अपनी आदत कुछ घंटों के लिए भी नहीं छोड़ पाए। और मैं अपनी। मैं कपड़े पहन कर नहीं सो सकती तो नहीं सोई। तुम पहने बिना नहीं सो सकते तो नहीं सोए। उठते ही मुझे बेड टी लेने की आदत है। वह भी ब्लैक। आदत के मुताबिक एकदम से इच्छा हुई। सोचा कि तुम्हें उठाऊं। मगर कपड़ों की कहानी से मैंने अंदाजा लगाया कि तुम मेरे सोने के बाद भी बहुत देर तक जागते रहे हो। इसलिए जगाना अच्छा नहीं समझा। तभी दिमाग में सरप्राइज देने की बात ने आइडिया दिया कि चाय बनाऊं और तुम्हें बेड-टी दूं। किचेन में मैं चाय ढूंढ़ नहीं पाई। कॉेफी मिली तो सोचा चलो यही सही,यह तो और अच्छा है।मैंने कहा हूं,, गुड सरप्राइज, कॉफी बहुत अच्छी बनाई है। वैसे चाय भी वहीं रखी है। ऐमिलियो मेरे लिए ये वाकई सरप्राइज है। रियली यू आर ए ग्रेट लेडी।इस पर वह खिलखिला का हंस पड़ी। इतना ही बोली ओह रोहिट।
इसके बाद हम इधर-उधर की बातें करते रहे। और तैयार भी होते रहे। सुबह का नाश्ता बाहर रेस्त्रां में ही किया। इस बीच सबसे पहले दिल्ली घूमने का प्रोग्राम बना। एक टैक्सी मंगाई और उस दिन उसे लुटियन की दिल्ली के कई हिस्से घुमा कर ले आया। उसे संसद भवन की इतनी बड़ी सर्कल बिल्डिंग आश्चर्यजनक लगी। दिल्ली का कुजीन भी उसे रास आया।
 रात को हम जब लौटे तो डिनर साथ पैक करा कर ले आए। तय हुआ कि रेस्त्रां के बजाय घर पर आराम से करेंगे। लंच और तमाम तरह की चाट वगैरह खाने के चलते डिनर जल्दी करने का मन नहीं हो रहा था। रात करीब ग्यारह बजे घर पहुंच कर हम दोनों नहा-धोकर फ्रेश हुए। दिन भर की थकान दूर की। मैंने दिन भर के उसके व्यवहार से यह समझ लिया कि वह एक बेहद प्रैक्टिकल लेडी है। वह किसी भी काम को करने में केवल दिमाग से काम लेती है। दिल या भावना का नहीं। दिन भर में उसने अपनी बातों व्यवहार से मेरे मन की हिचक, संकोच को कम क्या करीब-करीब खत्म कर दिया। अब मैं भी खुलकर बोल रहा था।
 डिनर पूरा कर हम फिर अपने बेड पर थे। फिर टीवी चल रहा था। हॉलीवुड की एक ऐक्शन मूवी चल रही थी। मेरा बेडरूम बेहद सादगीपूर्ण था। दीवारों पर कोई पेंटिंग, कैलेंडर, शो पीस कुछ नहीं था। इस ओर ध्यान दिलाते हुए उसने कहा इन जगहों पर न्यूड कपल्स की रोमांटिक मूड वाली पेंटिंग्स होनी चाहिए।मैंने कहा मुझे क्या जरूरत है इनकी? सिंगल हूं। कभी यहां या कभी सोफे पर जहां मूड हुआ वहीं सो जाता हूं।उसने कहा नहीं मैं तो मानती हूं कि घर के हर प्रमुख हिस्सों में सेक्सी कपल्स के पोस्टर्स, पेंटिंग्स होनी चाहिए। क्योंकि ये खराब से खराब मूड को सही कर देती हैं। आप खराब मूड लेकर सोने जाएं तो जल्दी नींद नहीं आएगी। नींद पूरी नहीं होगी। और अगला दिन भी खराब बीतेगा। चिड़चिड़ाहट में सारे काम खराब करेंगे।
 मैंने कहा न्यूडिटी या सेक्स कैसे ठीक कर देगा यह सब, मैं नहीं समझ पा रहा हूं।वह बोली वेरी सिम्पल रोहिट। मैं यह मानती हूं कि न्यूडिटी, सेक्स एक ऐसी चीज है जो हर तरफ से लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच लेती है। तमाम तरह की निगेटिव बातों से आप परेशान हों लेकिन एक खूबसूरत न्यूडिटी आपके सामने आ जाए तो आप का ध्यान उधर जाता ही है, मैं तो कम से कम यही मानती हूं। यह भी कहूंगी कि यह मेरा अनुभव रहा है।मैंने देखा आज ऐमिलियो का मूड फिल्म देखने में नहीं लग रहा है। उसका मूड बात करने का है।
उसने सिगरेट की डिब्बी उठा कर एक जला ली और डिब्बी मेरी तरफ भी बढ़ा दी। मैंने भी एक जला ली। ऐश ट्रे को बीच में ही रख लिया। एक दो कश लेने के बाद मैंने कहा तुम्हारा अनुभव क्या है मैं नहीं जानता। लेकिन मेरा मानना है कि मूड का रोल अहम है। मूड खराब हो तो सेक्स, न्यूडिटी क्षण भर को एक ब्रेक दे सकती है लेकिन स्थायी समाधान नहीं। कम से कम यदि मेरा मूड खराब होता है तो सेक्स किसी भी रूप में सामने आ जाए, मैं एक नजर डाल भी लूं लेकिन बाकी सब भूल कर उसमें खो नहीं सकता। सब कुछ भूल कर तुम कैसे खो जाती हो सेक्स में यह मैं नहीं समझ पा रहा।
रोहिट यह अपना-अपना विज़न है। जब मैं टेन्थ स्टैंडर्ड में थी तो किसी बात पर मेरी मदर ने मेरी बहुत इंसल्ट की, और बुरी तरह पीट दिया। संयोग यह हुआ कि हफ्ते भर में तीन बार पिटाई हुई। इससे मुझे बड़ी गुस्सा आई। अपने को मां से इमोशनली हर्ट फील कर रही थी। मैंने डिसाइड किया कि सुसाइड करूंगी। कमरे की खिड़की के पास पहुंच कर मैं उसका दरवाजा बंद करने लगी। तभी मेरी नजर सड़क की दूसरी तरफ एक लड़के, लड़की पर पड़ गई। जो मेरी उम्र के थे। दोनों एक दूसरे को प्यार किए जा रहे थे। इतने उत्तेजित थे कि अपना नियंत्रण खो रहे थे। लड़की, लड़के से भी आगे थी।
मैं उन्हें देख कर खुद भी कसमसाहट सी, तनाव सा महसूस करने लगी। दरवाजा बंद करना भूल कर मैं उन्हें देखती रही। तभी वह दोनों किसी की आहट सुन कर वहां से भाग गए। मगर मैं तब भी खड़ी रही। कुछ देर बाद फिर मुड़ी तो बाहर वाले दरवाजे पर आवाज़ हुई। मैंने वहां जाकर खोला तो मेरा क्लासफेलो था। मैं उसे देखकर और ज़्यादा तनाव महसूस करने लगी।
 वह मेरी मां के पास किसी काम से आया था। मैंने कहा वह तो हैं नहीं, बैठो।वह जाना चाहता था। लेकिन मैंने बैठा लिया। रोहित मैंने कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की लेकिन कर नहीं सकी। खिड़की के बाहर देखे दृश्य ने मुझे आउट ऑफ कंट्रोल कर दिया था। कोई आ ना जाए और बाहर भागे जोड़े की तरह हमें ना भागना पड़े यह सोच कर मैंने बिना समय गंवाए उसके साथ सेक्स किया।
मैं सुसाइड करना भूल गई। सोचा बेवजह अपनी लाइफ नष्ट कर रही थी। जिसमें मजे ही मजे भरे हुए हैं। वह चला गया। लेकिन मैं खुशी के मारे भीतर-भीतर उछल रही थी। मदर की पिटाई का कोई मलाल ही नहीं था। खिड़की के बाहर उस दृश्य के अलावा कुछ और होता तो शायद मेरा ध्यान सुसाइड से इस तरह ना हटा होता। और तभी से मेरा सेक्स, न्यूडिटी को लेकर नजरिया बदल गया है।
उसकी इस बात से मैं सोच में पड़ गया कि जो सुसाइड करने जा रहा हो वह कुछ ही मिनटों में एक कामुक क्षण देखकर कैसे तुरंत बदल जाएगा। और इतना कि सेक्स कर डाले। मन ही मन कहा यह इसके तमाम फरेबों में से एक और फरेब हो सकता है। इसकी हर बात पर यकीन करना मुश्किल है। तब मैंने कहा तुम्हारी बात ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया है।वह बोली इसमें आश्चर्य वाली क्या बात है? मैं तो समझती हूं कि मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता।मैं कुछ देर उसे  देखने के बाद बोला। मेरा तो यह मानना है कि सब ऐसा नहीं कर पाएंगे। हां जो सेक्स पर ज़्यादा ध्यान देते हैं वो ऐसा कर सकते हैं।
मैंने सोचा युवावस्था का जोश, उफान यह करा सकता है। आश्चर्य नहीं करना चाहिए। यहां जो मैं कर रहा हूं। यह क्या है, यह जोश में होश खो बैठने जैसा नहीं है क्या? ना जान ना-पहचान। मेल के जरिए इस बाला ने जो कुछ बताया वह कितना सच है पता नहीं। मगर मैं इसके पीछे पगलाया हुआ हूं। लाखों खर्च करने को तैयार बैठा हूं। इस मैच्योर एज में विदेशी युवती से संबंध जीने के लिए होश खोए बैठा हूं। और सही मायने में तो मैच्योर ये है, कि कितनी योजनाबद्ध ढंग से यहां मेरे बेड तक पर आकर बैठ गई है। वह भी कुछ सोच कर बोली हो सकता है तुम्हारी बात सही हो रोहिट। वैसे हम लोग भी क्या बहस कर रहे हैं। दिन भर घूमा है, एंज्वाय किया है हम दोनों ने। अब आराम भी एंज्वाय करते हैं। इसी के लिए तो मैं सेनेगल से यहां आई हूं, और तुमने ऑफिस से छुट्टी ले रखी है।
इसके बाद ऐमिलियो ने फिर वही किया जो पिछली रात किया था। एक चादर में हम दोनों थे। मूवी चलती रही और हम दोनों का गेम भी खूब चला। इस दौरान ऐमिलियो की हर एक एक्टिीविटी ने साफ-साफ बता दिया कि वह एक्स्पर्ट है इस खेल की। उसने यह खेल खूब खेला है। मैं भले ही दोगुनी उम्र का हूं। इस खेल का पुराना खिलाड़ी हूं। ना जाने कितनी खिलाडियों के संग खेल चुका हूं। लेकिन यह किसी सूरत में उन्नीस नहीं पड़ी।
 मैं इसकी जगह होता, कहीं दूसरे देश में ऐसे पहुंचता तो निश्चित ही किसी से भी उन्नीस ही पड़ता। इसने तो पूरी बोल्डनेस के साथ गेम भी खुद ही शुरू किया। गेम पूरा हुआ तो कैसे आराम से सो गई। जैसे अपने ही घर में सो रही है। सोते-सोते यह कहना नहीं भूली कि मैं उसके सोने के बाद कपड़े ना पहनूं। कैसे लिपटी हुई है पूरे अधिकार के साथ। ऊपर से कैसे हंसते-हंसते ताना मारा कि मेल में तो मैं अपना फेवरेट गेम सेक्स बता रहा था। और उसके साथ सेक्स के लिए बहुत ही ज्यादा एक्साइटेड था। लेकिन जब आ गई तो ऐसा कोई एक्साइटमेंट दिख ही नहीं रहा है। अंततः स्टार्ट भी उसे ही करना पड़ा।
जब मैंने देखा वह गहरी नींद सो गई है, उसकी बांहों की पकड़ मुझ पर बिलकुल ढीली पड़ गई है, तो मैंने धीरे-धीरे उससे अपने को मुक्त किया। बाथरूम गया। फिर फ्रिज से बीयर की एक केन निकाल कर बेड पर ही बैठ कर पीने लगा। मैं सोचने लगा कि कैसे यह ताना मार गई कि मैं अपना फेवरेट गेम छत्तीस घंटे बाद भी स्टार्ट करने की हिम्मत नहीं कर सका। वह उसके साथ रात भर नेकेड ही सोई लेकिन वह ना जाने किस संकोच में पड़ा रहा।
तब उसे दी अपनी सफाई पर भी मुझे हंसी आई कि मैंने कैसी बचकानी बात कही थी, कि उसने कोई पहल नहीं की इसलिए मैंने भी इनिसिएटिव नहीं लिया। उसे देखने से उसका मूड भी ऐसा कुछ करने के लिए नहीं दिख रहा था। इस लिए पहल नहीं की, सो गया। क्यों कि उसकी इच्छा के बिना करता तो यह रेप होता। और रेप मेरी दृष्टि में बहुत गंदा है। जानवरों से भी नीचे गिरने जैसा है।
मेरे इस जवाब पर यह कैसे खिलखिलाई थी। एक तो कई बार इसकी अमरीकन स्टाइल की इंग्लिश भी बातों को समझने में घोरमट्ठा (कंफ्यूजन) पैदा कर देती है। जब तक समझता हूं तब तक यह आगे निकल चुकी होती है। यह तो यही बात हुई कि यह मेरे ही घर में आकर मुझ पर ही हॉवी है। बातें ऐसे करती है कि जैसे मैं मेहमान हूं और यह मेज़बान। और मैं, मैं अपनी ऐंठ, अपनी मनमानी के लिए सबकेे बीच में जाना जाता हूं। मगर यहां तो जो देखेगा वो मुझे भीगी बिल्ली ही कहेगा। बड़ा टेंशन में कर दिया है इसने तो।
मैंने बीयर खत्म कर के केन डस्टविन में डाला। पता नहीं क्यों अजीब सी उलझन महसूस कर रहा था। उठ कर ड्रॉइंगरूम में गया और सिगरेट पीने लगा। टीवी ऑन की मगर मन नहीं लगा। मैं बड़ा अपमानित महसूस करने लगा कि मैं अपना फेवरेट गेम स्टार्ट करने में पिछड़ गया। हिम्मत नहीं कर सका। एक कल की छोकरी मेरी खिल्ली उड़ा रही है। यदि मैं समय से शादी ब्याह करता तो आज मेरे बच्चे इससे कम बड़े नहीं होते। टीवी चल रहा था लेकिन मन अंदर बेडरूम में ऐमिलियो पर लगा था।
मैं अपने अंदर कुछ आवेश सा महसूस कर रहा था। सिगरेट खत्म होने जा रही थी। मैं सोफे पर से उठा और दरवाजा खोला। ऐमिलियो बेसुध सोई पड़ी थी। उसे देखकर ये कहे बिना ना रह सका कि जो भी हो हिम्मत कमाल की है। अपने घर में मैं यहां बेचैन सिगरेट फूंक रहा हूं और यह बेधड़क सो रही है। बिस्तर पर लोट-पोट ऐसी कि चादर नीचे पड़ी है। और खुद..... । उस पर से मेरी नजर नहीं हट रही थी।
जितना मैं देख रहा था उतना ही उबलता जा रहा था। मैं अपने उपहास, अपने प्रति उसके नजरिए को बदल देने के लिए धधकता जा रहा था। मैंने उसे प्यार से छुआ। फिर उसके नर्म मुलायम, नाजुक जगहों पर अपने स्पर्श की गर्मी से उसे जगा दिया। उसकी आंखों में वाकई नींद थी, लेकिन मैं अपने उपहास से आक्रांत था। सब कुछ नजरंदाज किए जा रहा था। उसने मुझे बांहों में भर कर साथ लिया कि सो जाऊं। लेकिन मैं कहां अपने वश में था।
 मुझ पर खुद को प्रमाणित करने का भूत सवार था। और भूत उतरा तब जब मैंने अपने हिसाब से प्रमाणित कर दिया। तब ऐमिलियो ने कहा। मानती हूं कि तुम्हारा फेवरेट गेम क्या है?’ उसकी नींद टूट गई थी। उसने सिगरेट मांगी मैंने दे दिया। उसका आग्रह मैं नहीं टाल सका और मैंने भी सिगरेट सुलगा ली। वह बगल में बैठी कंधे पर सिर टिकाए बोली।
रोहिट मुझे यकीन है कि मैं यहां तुम्हारे साथ पूरा एंज्वाय करूंगी। अगर किस्मत ने चाहा तो हम दोनों पूरा जीवन साथ ही बिताएंगे।मैंने उसकी बातों का कोई जवाब देने के बजाय सिर घुमाकर हौले से उसका चुंबन ले लिया। अब मैं इस बात में उलझने लगा कि मैंने जो किया क्या वह सही था? मेरे ही हिसाब से यह रेप से कम नहीं। इसकी इच्छा इस समय कहां थी। यह तो सोना चाह रही थी। इसने तो एक तरह से यहां सिर्फ़ मैनेज किया है। वास्तव में यह फिर जीती है और मैं हारा हूं। मैं उसके साथ लेटा रहा। वह फिर सो गई थी। मुझे नींद नहीं आ रही थी। अगले दिन भी पहले वही उठी। अपनी कॉफी और मेरे लिए चाय लिए इंतजार कर रही थी। उसका यह रोल मुझे उसकी आदतों, उसकी लाइफ स्टाइल दोनों ही से मेल खाता नहीं लगा।
उसके साथ एक हफ्ते तक दिल्ली में घूमा। फिर गोल्डेन टेंपल अमृतसर गया। उसने कहीं पढ़ रखा था कि वहां सोने का मंदिर है। उसकी इच्छा पर ही स्वर्ण मंदिर गए। फिर दो दिन आराम करने के बाद मैं उसे लेकर शिमला, कुल्लू, मनाली, रोहतांग दर्रा भी हो आया। वहां जबरदस्त ठंड ने मेरी हालत खराब कर दी थी। मुझे वहां पहुंचने पर ही मालूम हुआ कि यह समुद्र तल से चार हज़ार मीटर से ज़्यादा ऊंचाई पर है।
हमेशा बर्फ पड़ी रहती है। कुल्लू से रोहतांग के लिए चलते हुए जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे रास्ता कठिन हो रहा था। ठंड भी बढ़ रही थी। एक बार मन में आया कि यहीं से लौट चलूं। लेकिन जिस तरह आगे खूबसूरत दृश्य मिलते जा रहे थे, उससे मन करता अब यहां तक आकर लौटना बेवकूफी है। व्यास नदी के किनारे वशिष्ठ गांव में तो ऐमिलियो को इतना अच्छा लगा कि वह और ज़्यादा समय तक रुकना चाहती थी।
वहां की ठंड को देखते हुए हमने मनाली से आगे जाते वक्त ही वहां की कड़ाके की ठंड से बचने के लिए खास तरह के कोट और जूते किराए पर ले लिए थे। अपनी सुविधा के लिए मनाली से ही एक जीप किराए पर ली थी।
यहां ऐमिलियो के साथ व्यास नदी का स्रोत, महर्षि वेद व्यास का मंदिर देखा और अद्भुत व्यास कुंड का पानी भी पिया। रोहतांग दर्रे पर से हिमालय का जो चमत्कृत कर देने वाला दृश्य हम दोनों ने देखा तो बड़ी देर तक स्टेच्यू बने देखते ही रह गए। उस दृश्य को मैं जीवन में भूल नहीं सकता। ऐमिलियो का पता नहीं। बादलों को अपनी आंखों से पर्वतों के नीचे देख कर मैं, ऐमिलियो ठगे से रह गए।
वहां पर मैंने ऐमिलियो के साथ स्कीइंग भी की। हमारा ड्राइवर था तो नवयुवक ही लेकिन बेहद जानकार, हंसमुख और हिम्मती आदमी था। उसी ने बताया कि इसका प्राचीन नाम भृगुतुंग था। भगवान शिव ने भृगुतुंग पर्वत कोे अपने त्रिशुुल से काट कर यह बनाया था, इसीलिए इसका नाम  भृगुतुंग पड़ गया था।
ऐमिलियो के साथ मेरी यह यात्रा बड़ी दिलचस्प, रोमांचक रही। ऐमिलियो का बिंदास लुक, विदेशी होना, उसके बेहद उन्मुक्त व्यवहार ने मुझे रोमांचित तो बहुत किया मजा भी खूब दिया। लेकिन घर वापस आने तक कई बार मुश्किल में भी डाला। एक बार कुल्लू में होटल में हंगामा किया। इतना कि होटल वालों ने पुलिस बुला ली। तब किसी तरह रिक्वेस्ट वगैरह करके मामले को शांत करा पाया था। उस रात उसने ज़रूरत से ज़्यादा शराब पी ली थी।
इस रोमांचक टूर से लौटा तो एक मुश्किल और ऑन पड़ी। ऐमिलियो को बुखार हो गया। हफ्ते भर ठीक ही नहीं हुआ। उस समय दिल्ली और आस-पास डेंगी बुखार ने कहर ढा रखा था। पिछले दसियों साल का रिकॉर्ड टूट गया था। मैं डरा कहीं इसे भी डेंगी तो नहीं हो गया। बैठे बिठाए एक आफ़त आ जाएगी। डॉक्टर ने संदेह भर किया तो मैंने सारे चेकप करवा डाले। मगर सौभाग्य से डेंगी नहीं निकला। वायरल ही था जो बिगड़ गया था।
 उसे पूरी तरह ठीक होने में हफ्ता भर लगा। इस बीच चाय-नाश्ता खाना-पीना सब मैं अकेले ही संभालता रहा। बनाने को तो सिर्फ़ चाय-कॉफी ही बनाता था। बाकी सब होटल से ही लाता। जितना हो सका मैंने ऐमिलियो की पूरी देखभाल की। मैं सोचता कि इसे कहीं यह ना लगे कि यह दूर देश में है। और कोई इसकी देखभाल करने वाला नहीं। वह यह ना सोच ले कि मैंने उसे यहां बुलाकर अनदेखी की। वह रोज ही दिन भर में मुझे दस बार थैंक्यू बोलती। बार-बार कहती रोहिट तुम मेरा कितना ध्यान रखते हो। इतना ध्यान तो घर में मेरी मां भी नहीं रखती।
मैं कहता तुम मेरी मेहमान हो। तुम्हारी देखभाल करना मेरा कर्तव्य है।वह मुझसे बार-बार कहती कि तुम्हें भी इंफ़े़क्सन हो जाएगा। अलग सोओ।लेकिन मैं बराबर उसके साथ ही सोता रहा। पता नहीं क्यों मैं बिना उसके सो नहीं पा रहा था। कुछ हद तक मैं यह भी कह सकता हूं कि यह डर भी था कि मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता था।
इस एक हफ्ते में उसने अपने बारे में कई और नई बातें बर्ताइं जो उसकी पहले बताई बातों से मेल नहीं खा रही थीं। लेकिन इसका मुझ पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा था। जैसा कि पहले उसने बताया था कि उसके पैरेंट्स लाइबेरिया में गृहयुद्ध में मारे गए थे। लेकिन उसने बीमारी के समय नई कहानी बताई कि उसकी मां ने जिस व्यक्ति से शादी की थी, वह और मां दोनों एक ही जगह काम करते थे। मां के द्वारा गोरी अंग्रेज औरत होने पर भी नीग्रो से शादी करने के वक्त कई रिश्तेदारों और दोस्तों ने उन्हें मना किया था। लेकिन दोनों ने किसी की परवाह नहीं की। शादी कर ली। शादी के कुछ महीनों बाद ही ऐमिलियो का जन्म हो गया। यही कोई छः महीने बाद। वह शादी से पहले ही प्रिग्नेंट हो चुकी थीं।
नीग्रो-अंग्रेज की संतान के कारण वह एक मिला-जुला रूप लेकर पैदा हुई। ना पूरी तरह अंग्रेज ना पूरी तरह नीग्रो। ऐमिलियो ने बताया कि वह जब छोटी थी तभी उसके मां-बाप अलग हो गए। उसके पिता इस बिना पर अलग हो गए कि मां उनके एक दोस्त से रिलेशन बना चुकी है। इस बात को लेकर दोनों में रोज झगड़ा होता। अंततः दोनों अलग हो गए।
मां ऐमिलियो को अपने साथ ले आईं। उसके पिता ने ज़्यादा वक्त नहीं बिताया और दूसरी शादी कर ली। और मां उसी व्यक्ति के साथ करीब तीन साल रहीं जिसके कारण उनके और पिता के बीच झगड़ा हुआ। और दोनों अलग हो गए। ऐमिलियो की नजरों में यह दूसरा व्यक्ति जो कि एक गिरा हुआ इंसान था, वह उसका सौतेला पिता बन बैठा था। शुरू में तो उसका व्यवहार कुछ अच्छा था लेकिन फिर आए दिन मां से मारपीट करने लगा। और जिस दिन मां उससे अलग हुई उस दिन उन्होंने यह भी कहा कि वो एक गंदा इंसान है। वह उसकी लड़की ऐमिलियो को गंदी नजरों से देखता, छूता, पकड़ता है। उसकी बेटी की लाइफ खतरे में है। उसकी भी। इसलिए वो अब उसके साथ नहीं रहेंगी।
ऐमिलियो की मां ने इसके बाद उसे तीन और सौतेले पिता दिए। जिनमें एक बेहद नेक इंसान है। जिन्हें ऐमिलियो आज भी बहुत याद करती है। लेकिन मां उनके साथ भी साल भर से ज़्यादा नहीं रहीं। उनका आरोप था कि वह भले ही एक नेक इंसान हों, लेकिन अच्छा लाइफ पार्टनर बननेे की काबिलियत उनमें नहीं है। इसलिए उनके साथ एक उबाऊ लिजलिजा जीवन जीना संभव ही नहीं। ऐमिलियो आज भी इसी सौतेले पिता की शुक्रगुजार है। जिसने सेनेगल की राजधानी डकार में उन्हें एक रहने लायक ठीक-ठाक मकान दिया। जिसमें वह मां-बेटी आज भी रहती हैं।
मां से अलग होने के बाद भी इस सौतेले पिता ने अपना मकान वापस नहीं लिया। कभी-कभी वह आज भी ऐमिलियो से मिलता है। उसे महंगे उपहार देता है । लाइबेरिया से आने के बाद उसकी मां जो नौकरी कर रही थी वह कुछ खास नहीं थी। इसी पिता ने उसे अच्छी नौकरी भी दिलाई थी। वह पहले तो मां से अपने बिजनेस में हाथ बंटाने को कह रहे थे। लेकिन मां के नौकरी करने पर अड़े रहने के कारण उन्होंने फिर कभी नहीं कहा। लेकिन उन्हें नौकरी अच्छी दिला दी।
आखिरी पिता से अलग होने के बाद मां पिछले कई बरसों से अकेले ही है। एक व्यक्ति है जिसके साथ वह अकसर देर तक बातें करती हैं। और आए दिन उसके साथ घंटों के लिए कहीं चली जातीं हैं। ऐमिलियो को यह आदमी बहुत धूर्त और मवाली दिखता है। वह मां से उम्र में काफी छोटा लगता है। ऐमिलियो उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती और उसके आने पर अपने को दूसरे कमरे में बंद कर लेती है। मां भी अब उससे कोई ज़्यादा बातचीत नहीं करतीं। उसकी पढ़ाई-लिखाई कॅरियर को लेकर उसे कोई फ़िक्र ही नहीं है।
वह अपने दोस्तों के साथ घंटों के लिए कहीं चली जाए या कई दिन तक ना आए मां तब भी कुछ नहीं पूछतीं। भारत आने की बात भी ऐमिलियो ने बताई तो भी उन्हें कोई फिक्र नहीं थी। इतना ही कहा देखो मुझे किसी मुसीबत में नहीं डालना। पहले ही मैं तुम्हारे कारण कई मुसीबतें झेलती आ रही हूं।ऐमिलियो को उनका यह जवाब बहुत खराब लगा था। बहुत दुख हुआ था उसे।
आने के एक दिन पहले उसने यह बात अपने अच्छे वाले सौतेले पिता को बताई तो उन्होंने कहा था कि मैं तुम्हें रोक तो नहीं सकता। लेकिन मेरी सलाह है कि तुम्हें इस तरह किसी दूसरे देश में नहीं जाना चाहिए। दुनिया में इस समय माहौल बहुत तनावपूर्ण है। तुम जिस व्यक्ति के पास जा रही हो उससे पहले कभी मिली भी नहीं हो।लेकिन ऐमिलियो के अडिग रहने पर कहा कि ठीक है अपनी लोकेशन, अपने इस इंडियन फ्रेंड के बारे में बराबर ज़्यादा से ज़्यादा डिटेल्स मेल करती रहना।
उन्होंने ही आते समय उसे आई फ़ोनफोन दिया था। एयर पोर्ट तक छोड़ने आए थे। जब कि मां घर के दरवाजे पर भी नहीं आयी। बस इतना कहा था ध्यान रखना अपना, फोन करती रहना।ऐमिलियो यह कहते हुए बहुत भावुक हो गई थी। कि वह अपनी मां से ज़्यादा अपने इस अच्छे वाले सौतेले पिता को चाहती है। उसे अपने बॉयोलॉजिकल पिता के बारे में अब कुछ पता नहीं कि अब वह कहां हैं? कैसे हैं? उसे उनका चेहरा भी याद नहीं है। क्यों कि वह जब छोड़कर गए थे तब वह बहुत छोटी थी। और मां ने उनका एक फोटो तक नहीं रखा है कि वह अपने पिता की सूरत भी पहचान सके।
इन बातों को बताते समय ऐमिलियो पिछली कई बार की तरह यह कहना नहीं भूली कि रोहिट मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं। तुम्हें लाइफ पार्टनर बनाना चाहती हूं। तुमसे शादी करना चाहती हूं। इतने दिनों में ही तुम्हारे कंट्री को जितना देखा है उसी से मैं इतना इंप्रेस हुई हूं कि इसे छोड़ कर जाने का जी नहीं कर रहा है।ऐमिलियो की यह नई कहानी मुझे उसकी पहले की कई बातों से ज़्यादा प्रभावकारी लगी। सच के ज़्यादा करीब लगी। वह जिस तरह से बार-बार हमेशा के लिए साथ रहने को कहती उससे मैं सोचने लगता कि इसका प्रस्ताव गलत तो नहीं है।
जब तक उसकी तबियत ठीक नहीं हुई तब तक उसने ना जानें कितनी बातें बताईं। साथ ही हम दोनों अगले टूर पर निकलने की भी तैयारी करते रहे। नेट के जरिए तमाम जानकारियों के बाद एक लंबा प्रोग्राम भी फाइनल कर लिया गया। इस बार ऐमिलियो का ज़्यादा जोर बीच पर चलने का था। इसके लिए मैंने चेन्नई का कोवलंग बीच, गोल्डेन समुद्र तट रिजॉर्ट, मनीला बीच और इसके अलावा गोवा के अगोंडा बीच, कैंडोलिम बीच, कैलोंगुट बीच को चुना। नेट पर ही देखकर ऐमिलियो साउथ की स्थापत्य शिल्प को भी जरूर देखना चाहती थी। खजुराहो की मूर्तिशिल्प कला की तो वह इतनी दिवानी हो गई कि दिन भर में दो तीन बार तो उसके चित्र, उसके वीडियो देखती।
 यात्रा करने में ज़्यादा समय ना बरबाद हो इसके लिए मैंने चेन्नई, गोवा की यात्रा के लिए हवाई यात्रा का विकल्प चुना। मेरे लिए यह एक रोमांच भरा अनुभव भी होता। क्यों कि इसके पहले मैंने हवाई यात्रा नहीं की थी। मेरे पास पैसों को लेकर कोई समस्या नहीं थी। मैंने पर्सनल लोन ले रखा था। यहां तक की मैंने डिपार्टमेंट से दो लाख रुपए लोन के साथ-साथ दो महीने की मेडिकल लीव भी ले रखी थी। यह सब ऐमिलियो के प्रति मेरी दिवानगी का ही प्रतीक है।
चेन्नई के लिए उड़ान से एक दिन पहले ऐमिलियो ने बिल्कुल हिंदुस्तानी पत्नियों की तरह रात बेड पर बड़े प्यार मनुहार के साथ मुझे अपनी बांहों में समेटे हुए कहा रोहिट मेरे पास इन टूर पर जाने के लिए कोई अच्छी ड्रेस  नहीं है। कई दिनों से सोच रही थी लेकिन थोड़ा संकोच में थी।उसने इतने मनुहार के साथ कही थी यह बात कि उस पर मुझे प्यार आ गया।
 दोनों हाथों से उसके दोनों गालों को प्यार से खींचते हुए कहा था ओह डॉर्लिंग तुम्हें  पहले बताना चाहिए था। खैर कोई बात नहीं कल दिन में ही ले आएंगे। उसने मेरे इस प्यार का भरपुर फायदा उठाया। अगले दिन करीब दो लाख रुपए से ज़्यादा की शॉपिंग कर डाली। निक्कॉन का एक शानदार कैमरा भी खरीद लिया कि रोहतांग टूर के समय जो कैमरा यूज किया उसका रिजल्ट अच्छा नहीं है। और इतना ही नहीं लगे हाथ एक आईपैड भी लिया।
अगले दिन चेन्नई के लिए चल दिए। वहां कोवलंग बीच, गोल्डेन समुद्र तट रिसॉर्ट, मनीला बीच पर हम दोनों ने वाकई ना भूलने वाली मस्ती की। ये कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि ऐमिलियो जैसी पार्टनर ना होती तो निश्चित ही इतना मजा नहीं ले पाता। मजा लेना भी अपने आप में एक कला है। जिसमें मैंने पाया कि ऐमिलियो पारंगत है और मैं उसके सामने खिलाड़ी छोड़िए अनाड़ी ही था। चेन्नई में साउथ इंडियन कुजीन में भी उसे बहुत मजा आया। सांभर, डोसा, इडली, रसम उसे बहुत भाए। योगगिरि की पहाड़ियों में छोटे-छोटे गावों  में जाना मुझे बहुत भाया। हां मनीला तट पर एक बार ऐमिलियो के कारण थोड़ा अपमानित होना पड़ा।
उसके नाम मात्र के कपड़ों एवं वल्गर हरकतों के कारण हमें टोका गया। मेरे साथ एक विदेशी युवती वह भी आधी़ उम्र की यह भी लोगों की नजर में हमें तुरंत ला देता था। ऐमिलियो को मैंने आखिर समझाया कि यह इंडिया है। यहां हर बात की अपनी एक सीमा है। जिसका पालन करना ही पड़ेगा। उसने सॉरी बोला और बात खत्म। प्लान तो एक हफ्ते का था। लेकिन वहां दस दिन रुकने के बाद गोवा के लिए चल दिए। गोवा में तो वाकई अपनी अलग ही दुनिया रही। ऐमिलियो ने मुझे वहां वो सुख दिया जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
दो दिन तो वहां हम शहर घूमते रहे। उसके बाद पूरा एक दिन कलिंगोट बीच पर बिताया। लेकिन वहां की भीड़-भाड़ ने हमें बराबर असहज बनाए रखा। ऐमिलियो ना होती तो शायद इतना असहज ना होता। कुल मिला कर वहां का मेरा सारा मजा मारा गया। ऐमिलियो भी मनीला बीच की तरह यहां पर कुछ ख़ास मजा न ले पाई। एक दिन वहां रात में ओवर इटिंग के चलते हम दोनों की तबियत अगले दिन ढीली रही।
हम दिन भर रिसॉर्ट में ही पड़े रहे। अगले दिन हम फिट थे। और थोड़ा सूनसान बीच कौन है यह रिसॉर्ट के इंप्लाई से रात में ही जान लिया था। इस अपेक्षाकृत बहुत कम भीड़-भाड़ वाले बीच अगोंडा में हमने पिछले दो दिन की कसर पूरी की। समुद्र की लहरों में खेलकूद के बाद ऐमिलियो, हमने वहां की प्रसिद्ध काजूफ़ेनी पी। यह अपनी तरह की एक अलग ही वाइन है। एक अलग ही सुरूर देने वाली लोकल लिकर।
इसी के सुरूर में हम दोनों टहलते-टहलते लोगों से दूर बहुत, दूर निकल गए। ताड़ के पेड़ों की छाया में एक जगह बालू में वह पसर गई। ऐमिलियो ने वहां फिर पी। मैंने ना चाहते हुए भी और पी ली। बालू में पसरी ऐमिलियो ने फिर वह खेल खेला जिसके लिए मैंने सोचा भी नहीं था। अपने दोनों ब्रीफ उतार कर वह बार-बार हवा में ऊपर उछालती और ताली बजाकर हंसती। बिना कपड़ों के कभी इधर तो कभी उधर दौड़ती फिर बालू पर ही गिर जाती। मुझे भी बार-बार खींचती और एक बार मेरा भी ब्रीफ खींच ले गई। मैं बार-बार उससे लेकर पहनना चाहता लेकिन वह पहनने ना देती।
 मैं किसी के आ जाने के डर से बराबर डरा जा रहा था। उसके गेहुंए रंग के शरीर पर बालू के कण धूप में चमक रहे थे। हम दोनों ने इस हुड़दंग का समापन समुद्र की लहरों के किनारे बालू पर सूरज की किरणों में नहाए एक घनघोर मिलन के साथ किया। जब हम रिसॉर्ट लौटे तो अंधेरा हो चुका था। हम बेहद थके हुए थे। नहा धो के आराम करने के बाद डिनर कर हम दोनों आलस्य में लेटे हुए थे। तभी ऐमिलियो उठी और फिर लैपटॉप ऑन कर कैमरे से बहुत सी फोटो कॉपी कर डिटेल सहित अपने अच्छे वाले सौतेले पिता को मेल किया।
इंडिया मेरे पास आने के बाद उसका यह डेली का काम था। गोवा में ऐमिलियो का मन ज़्यादा नहीं लगा। जब कि मैं बहुत एंज्वाय कर रहा था। और ज़्यादा रुकना चाहता था। मगर ऐमिलियो की जिद के आगे वहां से खजुराहो चल दिए। खजुराहो में ऐमिलियो के एकदम नए रूप से मेरा सामना हुआ। मैं उसके इस रूप से इस सोच में पड़ गया कि आखिर यह लड़की है क्या? वहां पहुंचने के बाद पहले तो वह दो दिन तक होटल से बाहर ही नहीं निकली।
 होटल ही में खाना-पीना, टीवी या नेट पर कुछ टाइम बिताना या फिर सोना। वह बारह-बारह घंटे सोई। मैं बोर हो जाता। तो उसे कमरे में छोड़ कर कुछ देर को बाहर घूमने चला जाता। लेकिन बाहर भी ज़्यादा ठहर नहीं पाता। मन ऐमिलियो पर लगा रहता था। मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता था। तीसरे दिन सुबह-सुबह घूमने निकलने का प्रोग्राम बना।
स्थापत्य खासतौर से मूर्तिशिल्प के अद्भुत नमूने वहां के मंदिरों को देखकर ऐमिलियो एकदम अवाक रह गई। मंदिरों की भव्यता और बाहर दिवारों पर स्त्री-पुरुषों की अकल्पनीय मैथुनी मुद्राओं में बनीं असंख्य मूर्तियों ने उसे अचंभे में डाल दिया। मैं भी पहली बार देख रहा था। तो अचंभे में मैं भी था। लेकिन ऐमिलियो जितना नहीं। मैं हतप्रभ था यह देखकर कि कैसे सदियों पहले शिल्पियों ने यह बनाया। कला तो अवर्णनीय है ही। सबसे बड़ी बात विषय वस्तु की है। कि इतने समय पहले सेक्स को लेकर समाज की क्या सोच रही होगी।
रात में डिनर के बाद ऐमिलियो के साथ बेड पर बैठा टीवी देख रहा था। और ऐमिलियो दिन भर की डिटेल्स, फोटो मेल कर रही थी। बीच-बीच में मूर्तियों को लेकर कुछ-कुछ बातें भी करती जा रही थी। अपना काम खत्म कर उसने फिर शाम की तरह तमाम क्योश्चन शुरू कर दिए। मैंने कहा देखो गाइड ने जो बताया मैं उतना भी नहीं जानता। इतिहास कभी पढ़ा नहीं इसलिए अपनी इस विरासत धरोहर के बारे में विश्वास से कुछ ज़्यादा नहीं कह सकता। सदियों पहले चंदेल राजाओं ने इन्हें बनवाया था। वास्तव में यह निर्माण बरसों में पूरा हुआ। इसमें कई राजाओं का योगदान है।
मैंने उसे ऋषि वात्स्यायन, मैथुनरत मूर्तियों के बारे में बताया कि शायद तब यहां के लोगों के लिए सेक्स एक प्राकृतिक, स्वाभाविक क्रिया, एक सामान्य काम रहा होगा। ऐसा भी मानते हैं कि अध्यात्म, मोक्ष का एक रास्ता सेक्स से होकर गुजरता माना गया होगा। या मंदिरों में प्रवेश करने वाले विकारों से मुक्त हो प्रवेश करें। यदि वह मुक्त नहीं हैं, तो ये मैथुनरत मूर्तियां और विकारग्रस्त बना देंगी। और वो गंदे मन से अंदर नहीं जाएंगे।
मैंने इसी क्रम में संभोग से समाधि की ओर रजनीश की किताब का उल्लेख करते हुए पूछा कि ऐमिलियो क्या उन मूर्तियों को देखते हुए तुममें उस समय सेक्स करने या इस तरफ दिमाग क्षणभर को भी गया था?’ उसने कहा मैं इमेजिन नहीं कर पा रही थी कि पत्थरों पर ऐसा कुछ बनाया जा सकता है। सारी मूर्तियां लगता है जैसे अभी बोलने ही वाली हैं। जैसे वहां वह मूवी चल रही है और हम दर्शक बने देख रहे हैं। लेकिन इतने समय पहले लोग सेक्स को लेकर इतने ओपेन माइंडेड थे। यह यकीन नहीं कर पा रही हूं।
ऐमिलियो ने उस दिन और फिर आगे कई दिन, जब तक वहां रहे रोज तमाम वीडियो बनाए, फोटो खींची। और तमाम तर्क-वितर्क किए। उसका यह तर्क बड़ा बचकाना सा लगा कि मूर्तिकारों के सामने तमाम स्त्री-पुरुषों ने यही करके दिखाया होगा। तभी वह यह बना पाए। कितने हिम्मती थे वो स्त्री-पुरुष जिन्होंने लोगों के सामने सेक्स किए। ऐसे-ऐसे पोज में।
उस वक्त बातचीत में मैंने उसे जो थोड़ी-बहुत जानकारी़ ऋषि वात्स्यायन की दी थी। वह सब उसके रोमांच उसके एक्साइटमेंट को बढ़ाने वाली साबित हुईं। उस दिन उसने मिलन कई ऐसे पोज में संपन्न किए जो वहां देखे थे। और अमूमन आज एक आम आदमी नहीं करता। लेकिन ऐमिलियो जब तक रही तब तक खजुराहो को दोहराने का प्रयास अवश्य किया। वहां से उसने तमाम चीजें लोहे, तांबे, पत्थर की ऐसी खरीदीं जिनमें सेक्स की कृतिया बनी थीं, या उन मूर्तियों की अनुकृति थीं। वह मेरे साथ वहां से थोड़ी ही दूर कालिंजर और अजेय गढ़ किले को भी देखने गई। लेकिन वहां उसका मन नहीं लगा।
इस पूरी खजुराहो यात्रा में मैंने ऐमिलियो की एक और बात जानी। कि वह सामने वाले को उतना ही अपने बारे में जानने देती है, जितना वह चाहती है। मैं तमाम कोशिशों के बाद भी उससे उतना ही जान पा रहा था जितना कि वह चाह रही थी। उस दिन होटल में मैंने जाना कि वह अंग्रेजी लिट्रेचर भी बहुत अच्छा जानती है। वह ड्रॉमा की बहुत शौकीन है। अंग्रेजी के प्रमुख ड्रामा राइटर्स को उसने खूब पढ़ा है।
बचपन में वह एक्टिंग करना चाहती थी, प्ले करना चाहती थी लेकिन हालात ने उसका यह सपना तोड़ दिया। उसी से मैंने पहली बार जाना कि महान अंग्रेजी नाटक लेखक विलियम शेक्सपीयर से पहले सोलहवीं सदी में उनसे भी बड़े नाटककार क्रिस्टोफर मारलो हुए थे। जो उनतालीस वर्ष में ही मार दिए गए थे। उन्हीं के नाटकों को पढ़ कर शेक्सपीयर आगे बढ़े और महान बने।
इसी क्रम में उसने एक लेखिका का वर्णन किया जिनका नाम मैं क्रिस्टोफर मारलो की ही तरह पहली बार सुन रहा था। यह थीं ईव इंसलर। जिनकी ऐमिलियो दिवानी थी। वह उनको महिलाओं के मनोविज्ञान को समझने वाली सबसे अच्छी लेखिका मानती थी। उसने उनके ड्रामा वजाइना मोनोलॉगको आधुनिक साहित्य का सबसे बोल्ड और कालजयी रचना कहा। मैंने कहा देखो यह तुम्हारा विचार हो सकता है। समय के साथ परिवर्तन होता रहता है।
 अब तुम देखो ना कि हमारे देश में वात्स्यायन जैसे ऋषि हुए जिन्होंने दुनिया का पहला कामसूत्रलिखा। सदियों बाद आज भी वह दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में शामिल है। खजुराहो जैसी सेक्स में रत मूर्तियां बनीं। लेकिन आज देश में हम प्वाइंट वन परसेंट को छोड़ कर अन्य महिलाओं के सामने ईव इंसलर के ड्रामा वजाइना मोनोलॉगका नाम भी नहीं ले सकते। खुलकर बात हुई तभी मुझे याद आया कि भारत में तमाम अड़चनों के बाद एक दो बार यह ड्रामा प्ले हुआ है। वह भी विशेष वर्ग के दर्शकों के सामने।
मैंने उसके बताए डॉयलाग को दोहराते हुए कहा ऐसा यहां पब्लिकली प्ले होने वाले ड्रामा में बोल पाना मुश्किल है। मैं लिट्रेचर के मामले में ऐमिलियो के सामने कहीं नहीं टिक पा रहा था। मैंने कामसूत्र की बात बताई तो उसने जापान के शुंगा एलबम का नाम बताया कि उसमें सेक्स के अनेकों पोज बनाए गए हैं। यह एलबम विशेष अवसर पर लोगों को भेंट किए जाते हैं।
मैंने मन में ही कहा कि भारत में मैंने किसी को कामसूत्रगिफ्ट करते ना देखा है ना सुना। ऐमिलियो कोे जैसी जानकारी थी उससे मुझे लगा कि यदि इसे सही परवरिश, पढ़ने-लिखने का ढंग से मौका मिला होता तो यह एक शानदार कॅरियर बनाती। जैसा इसने बताया उस हिसाब से इसकी मां और इसके देश लाइबेरिया का गृह युद्ध इसकी बरबादी का मुख्य कारण हैं
ऐमिलियो के साथ हफ्तों का भारत भ्रमण कर जब हम वापस घर पहुंचे तब तक मैंने यह अहसास किया कि ऐमिलियो के प्रति मुझमें कुछ भावनात्मक लगाव पैदा हो गया है। उसके पहले तो बस एक दूसरे से एक अजब किस्म की स्थितियों में मिलना और एक दूसरे को कंपनी देने या लेने जैसी ही बातें थीं। ऐमिलियो में भी मैं कई बार ऐसा महसूस कर रहा था। जब वह अंतरंग क्षणों में या यूं ही जिस तरह से मिलती या खाते-पीते समय जैसा विहैव करती, उसमें मैं भावनात्मक लगाव का पुट महसूस करता था। जब हम घर आए तो ऐमिलियो की अपने देश वापसी के मात्र पांच दिन और बचे थे।
यह पांच दिन हमने फिर से दिल्ली घूमने खाने-पीने या फिर घर में ही मौज-मस्ती में बिताए। जहां-जहां गए वहां के बारे में भी खूब बातें हुईं। इस बीच मैंने देखा कि उसके जाने की जैसे-जैसे तारीख निकट आ रही है मेरी बेचैनी वैसे-वैसे ज़्यादा बढ़ती जा रही है। मेरा मन कर रहा था कि ऐमिलियो जाए ही नहीं। वो मेरे ही साथ रहे। इस स्थिति के चलते मैंने ऐमिलियो की जितनी चाहत थी उससे भी कहीं ज़्यादा शॉपिंग कराई। उसकी मन-पसंद चीजों का ढेर लगा दिया। सच यह था कि मेरे मन में उससे शादी कर लेने की भावना एकदम उमड़ सी पड़ रही थी। मैं विधिवत शादी कर उसे अपने देश का नागरिक बनाना चाहता था। जब कि ऐमिलियो ने पहले कई बार लिवइन के लिए संकेत किया था। लेकिन मैं इससे आगे की सोच रहा था।
आखिर जाने को एक दिन रह गए तो मैंने उससे कहा ऐमिलियो तुम्हारे साथ इतने दिनों रहने के बाद मैंने तुम्हें जितना जाना समझा है, मेरे मन पर तुम्हारा जो प्रभाव पड़ा है। उससे मैंने ये डिसाइड किया है कि यदि तुम्हें एतराज ना हो तो मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। तुम्हें यहीं की नागरिकता मिल जाएगी। देखा जाए तो यह दो महीने से लिवइन में तो हैं ही। तुम चाहोगी तो हम दोनों एक बढ़िया जीवन जी सकते हैं। बच्चे भी कर सकते हैं।मेरी इस बात पर ऐमिलियो ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी उससे मैं शुरू में खुशी से एकदम पागल सा हो उठा।
उसने पहले तो कुछ क्षण मुझे एक-टक देखा, मुझे लगा कि उसकी आँखें भर आई हैं। फिर उसने मुझे अपनी बांहों में भर कर दर्जनों जगह चूम लिया। मुझे जकड़े बैठी रही। फिर बोली रोहिट मैं भी यही चाहती हूं। लेकिन डरती हूं कि कहीं मेरी वजह से तुम्हें कोई दिक्कत ना हो जाए। मैं नीग्रो हूं। आज तुम मुझे पसंद कर रहे हो। कहीं जल्दी ही तुम मुझे अधर में ना छोड़ दो।
कहीं यह ना कहो कि हमारे बीच बहुत बड़ा एज गैप है। हमारे विचार इतने नहीं मिलते कि हम जीवनभर साथ रह सकें। इन दो महीनों में मैंने जितना तुम्हारे देश को जाना। जितना देखा है, उससे भी यह सोचती हूं कि तुम अपने कंट्री, अपने लोगों की बातों को कैसे फेस कर पाओगे? रोहिट मैं तो लाइफ पार्टनर बनने का सपना लेकर ही आई हूं तुम्हारे पास। तुम्हें परेशानी ना हो बस यही एक मात्र मेरी चिंता है।उसकी बातों ने मुझे और भावुक कर दिया।
उसे एक बार गले से लगा कर कहा ऐमिलियो तुम जितनी बातें कह रही हो यह कोई मैटर ही नहीं है। रिश्ते में एज गैप के लिए तुमने तो स्वयं पहले ही कहा था कि एज कोई मैटर नहीं रखता। फैमिली से मेरा कोई संबंध ही नहीं है। इसलिए वहां से सहमति-असहमति का प्रश्न ही नहीं। बाकी हमारा समाज अब इतना व्यस्त है कि उसे ये सब देखने की फुरसत ही कहां? सबसे बड़ी बात यह कि तुमने कहा कि तुम नीग्रो हो। इसलिए मैं जल्दी ही अलग हो जाऊंगा। मेरा यकीन करो ऐमिलियो ऐसा कुछ नहीं है। मैं तुम्हें इमोशनली चाहने लगा हूं। असल में मुझे लगता है कि यह तुम्हारा एक डर है और जल्दी ही दूर हो जाएगा। तुम्हारे पास आकर मन का रिश्ता पहले ही बन गया है। तन का बाद में।
 फिर तुम्हारा रंग एकदम नीग्रो जैसा कहां है? तुम्हारे रंग को हम व्हीटिश या गेंहुआ कहते हैं। तुम्हारा रंग मुझसे ज़्यादा दबा नहीं है। ऐमिलियो मैं तुम से बहुत साफ कहना चाहता हूं कि कोई समस्या ही नहीं है। बस तुम्हारी हां चाहिए। जो अभी तक नहीं मिली। हमारे तुम्हारे बीच सही मायने में यही पहली और आखिरी समस्या है।इसके बाद मेरी और कई बातों के बाद ऐमिलियो मेरे गले से लग गई। मुझे बांहों में कस लिया था। वो एकदम चुप थी। कुछ ही पलों बाद मैंने अपने कंधे पर कुछ गीलापन महसूस किया। मैंने दोनों हाथों से पकड़ कर उसका चेहरा सामने किया। वह रो रही थी।
उसके आंसू देख कर मैं भी एकदम भावुक हो उठा। उसे ऐमिलियो-ऐमिलियो कहते हुए बांहों में भर लिया। वह सुबुक पड़ी। उसने सुबुकते हुए कहा। रोहिट मैं जाना ही नहीं चाहती। मैं भी तुम्हारी ही तरह सोच रही हूं। कई दिन से यही सोच रही हूं।
मैंने कहा ऐमिलियो जब हम दोनों यही सोच रहे हैं तो फिर कोई बाधा ही नहीं है। रुक जाओ। तुम जाओ ही नहीं। कानूनी अड़चनों का भी कोई हल निकाल ही लेंगे। तुम चाहो तो कल ही कोर्ट मैरिज कर लेते हैं।
ऐमिलियो ने अलग होते हुए कहा ठीक है रोहिट। हम दोनों शादी करेंगे। लेकिन इसके पहले मुझे एक बार अपने देश जाना ही पड़ेगा।ऐमिलियो की हां ने मेरी खुशियों को एक झटके में सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। खुशी से मैं पागल हो उठा। हमारे बीच यह तय हुुआ कि ठीक है वह अपने देश जाए। और जितनी जल्दी हो अपने सारे काम निपटा कर आ जाए। फिर बिना एक पल गंवाए हम दोनों शादी कर के एक साथ जीवन बिताएंगे। खुशी के मारे मेरे दिमाग में एक बार भी यह नहीं आया कि उससे कहता कि जाने से पहले शादी कर के जाओ।
मैं खुशी से इतना पगलाया हुआ था कि उस दिन ऐमिलियो के साथ फिर घूमने गया। सेनेगल जाने से पहले उसे काफी शॉपिंग करनी थी। अब वह अपने मूल देश लाइबेरिया के बजाय जहां शरणार्थी थी उसी देश सेनेगल को अपना देश कहती थी। उसकी वापसी के पहले मैं शादी के सपने देखते हुए उसे जोश में चार लाख रुपए से अधिक की शॉपिंग करवा बैठा।
उसके लिए एक डायमंड पेंडेंट गोल्ड चेन के साथ लिया। एक शो रूम में साड़ी पहने खड़ी एक खूबसूरत सी डमी देखकर दिमाग में एक खूबसूरत सी शरारत सूझी और ऐमिलियो के लिए एक महंगी साड़ी ब्लाउज का सेट ले आया। लौटते समय ढेर सारी गुलाब की पखुड़ियां, सेंट ले आया। साड़ी और अन्य चीजों के लिए उसने पूछा तो कुछ बताया नहीं। यहां तक की हज़ारों रुपए मेकप के सामान में ही खर्च कर दिए।
उस रात मैंने उसे अपनेे देश सेनेगल जाने से पहले खूबसूरत सरप्राइज देने की ठानी हुई थी। साथ ही खुद भी एक अद्भूत अहसास से गुजरने का अनुभव करना चाहता था। तो रात मैंने कहा जब तक मैं ना कहूं तब तक प्लीज बेडरूम में ना जाना।वह मान गई। फिर मैंने बेडरूम को फूलों से सुहागसेज में बदल दिया। उसके बाद ऐमिलियो को बताया कि यह साड़ी भी तुम्हारे लिए लाया हूं। उसने आश्चर्य मिश्रित खुशी व्यक्त करते हुए कहा इसे पहनेंगे कैसे? मुझे तो आती नहीं।
 मैंने कहा ऐमिलियो गुगल बाबा के रहते यह नामुमकिन नहीं है। फिर यू-ट्यूब पर साड़ी पहनने के तरीके हम दोनों ने देखे। उसके बाद सेंट के पानी से दोनों ने खूब नहाया। फिर मैंने उसे साड़ी-ब्लाउज आदि पहनाया। उसका मेकप किया। मेकप के बाद अपने को शीशे में देख कर उसने खुशी से कहा ओह मॉय गॉड रोहिट इट्स मी। आई कॉन्ट विलीव इट, इट्स अमेजिंग।
संयोग से उसे मैं बहुत अच्छे ढंग से साड़ी पहनाने में सफल हो गया था। वह साउथ इंडियन फ़िल्मों की हिरोइन सी नजर आ रही थी। क्रीम कलर की काफी काम की हुई डिजायनर साड़ी थी। महरून लिपिस्टक, डार्क लिप लाइनर, खूबसूरत लाल बिंदी, बस मांग में सिंदूर नहीं था। उसे भी मैं कुछ देर में भरने वाला था। लेकिन पहले मैंने हिंदी फ़िल्म का यूट्यूब पर विवाह वाला दृश्य दिखाया। और सुहागरात का भी। इसे देखकर वह कुछ गंभीर सी दिखने लगी। मुझसे बोली रोहिट मैं नहीं समझ पा रही हूं कि तुम क्या कर रहे हो?, क्यों कर रहे हो? मगर जो भी है मुझे अच्छा लग रहा है। खुशी हो रही है। मैं रोमांचित हो रही हूं।
मैंने कहा ऐमिलियो मैं खुशी बटोर रहा हूं। अपने लिए, तुम्हारे लिए। मैं अपने और तुम्हारे बिखरे हुए जीवन को एक जगह समेट, सजा कर दुनिया के तमाम खुशहाल कपल्स की तरह जीवन जीना चाहता हूं। मैं उसी की शुरुआत कर रहा हूं। हम दोनों अब हमेशा साथ रहेंगे। खुश रहेंगे। एक कंप्लीट सेटल्ड लाइफ जिएंगे।मेरी बातों का उस पर ना जाने क्या असर हो रहा था कि उसके होंठों, चेहरे पर मैं मुस्कान और भावुकता, की लकीरें साफ देख रहा था।
घर में भगवान का कोई चित्र या मूर्ति के नाम ड्रॉइंगरूम में एक कैलेंडर टंगा था। जिसमें तारीखों के बॉक्स के ऊपर शिव-पार्वती हिमालय पर्वत पर एक हिम खंड पर बैठे हुए थे। मैं उसी कैलेंडर के सामने ऐमिलियो को लेकर खड़ा हुआ और साथ में लाए सिंदूर की डिबिया निकालकर उसे फ़िल्म की शादी की बात याद दिलाई और ईश्वर को साक्षी मान कर ऐमिलियो से मांग भरने की इज़ाज़त मांगी। उसे मैं इसका सारा मतलब साफ-साफ बता चुका था। इज़ाज़त मांगने पर वह कुछ देर मुझे अपलक देखती रही। उस समय उसके चेहरे पर आ रहे तमाम भाव मैं नहीं समझ पा रहा था। मुझे लगा कि उसकी आंखें भरती जा रही हैं। खुद को भी मैं भावुकता में डूबता हुआ महसूस कर रहा था।
करीब पंद्रह सेकेंड के बाद ऐमिलियो ने अपना सिर हल्का सा आगे झुका दिया। उसे मैंने उसकी सहमति समझी और मांग में सिंदूर भर दिया। चुटकी से कितनी बार सिंदूर भरना होता है यह मुझे मालूम नहीं था। तो झट तर्क लगाया, कि सात फेरे लेते हैं। तो सात बार सिंदूर भी भर देते हैं। ईश्वर को साक्षी मानकर कर रहे हैं। पवित्र साफ मन से कर रहे हैं। ईश्वर अंतरयामी है। सब जानता है। गलत, सही वह सब देख समझ लेगा। ठीक कर देगा। सिंदूर भरने के बाद मैंने उसे गले से लगाकर चूम लिया। वह अखंड सुहागन दिखाई दे रही थी। मांग भरने की प्रक्रिया में ना जाने क्या था कि हम दोनों के चेहरे पर भावुकता मुस्कान दोनों साथ-साथ थी। अब हम बोल कम रहे थे। चेहरे के भावों से ज़्यादा बातें  कर रहे थे।
ऐसे मौके पर नई-नवेली दुल्हन को जैसे घर की महिलाएं ख़ास तौर से नंदें, जिठानी जिस प्रकार सुहाग सेज पर ले जाकर बिठा देती हैं, वैसे ही मैंने ऐमिलियो को बेडरूम में खुद सजाए बेड पर बिठा दिया। फूलों की पंखुड़ियों से सजे और सेंट से मह-मह महकते बेड पर उसे बिठा कर मैंने एक शरारत और की। उसका चेहरा घूंघट से ढंक दिया। फिर एक गिलास में केसर मिला दूध लाकर रख दिया।
उसे याद दिला दिया कि फ़िल्म में जो देखा है आगे वह प्रक्रिया तुम पूरी करोगी। इन सब के दौरान वह तीन-चार बार हंसी। और कहा रोहिट यह सब क्या कर रहे हो मैं समझ नहीं पा रही हूं, लेकिन अच्छा लग रहा है।मैंने कहा ऐमिलियो अभी और अच्छा लगेगा। हम एक ऐसे क्षण को एंज्वाय करने वाले हैं जिसका मौका लकिएस्ट पर्सन को ही मिलता है।
फिर मैं कमरे से बाहर आ गया। और अपने कपड़े चेंज कर दो मिनट में ही बेडरूम में पहुंच गया। मैं जानता था कि ऐमिलियो ज़्यादा इंतजार नहीं कर सकती। मगर कमरे में मेरे पहुंचते ही ऐमिलियो ने जिस तरह से मुझे सरप्राइज दिया। मुझे चौंकाया वह अद्भुत था। मेरे लिए अकल्पनीय था। मैं पहुंचा तब भी वह घूंघट किए ही बैठी थी, कि तभी बिजली सी कौंध गई।
जब ऐमिलियो एक भारतीय दुल्हन की तरह उठी और झुक कर दोनों हाथों से मेरे पैर छू लिए। मैं अवाक रह गया। और उसे उठा कर बांहों में भरकर चूम लिया। यूट्यूब पर देख कर वह इतनी निपुणता के साथ यह कर गुजरेगी यह मैंने सोचा भी नहीं था। मैं फिर भावुक हो उठा। मैं उसे लेकर बेड पर बैठ गया। तभी उसने बेड के बगल में रखे दूध का गिलास उठाकर उसे पिलाने-पीने की रस्म भी पूरी कर डाली। और मैंने उसे सुहाग रात का गिफ्ट डायमंड पेंडेंट उसके गले में डाल दिया। उसे पहन कर वह खुशी से भर गई।
 मेरे हाथों को पकड़ कर बोली रोहिट मैंने सब ठीक तो किया। कोई मिस्टेक तो नहीं हुई।उसके चेहरे को दोनों हाथों में भरते हुए मैंने कहा एक्सीलेंट।फिर हमने एक भारतीय नवविवाहित की तरह ही खूब जोरदार ढंग से रात भर सुहागरात मनाई। उसके पहले उसे अपने प्यार की सबसे खूबसूरत बेसकीमती निशानी, नया नाम दिया था। ‘‘शेनेल’’ जिसे सुन कर उसने अपनी खुशी किसकर के व्यक्त की थी।
मैं उस रात को उसके साथ जी भर कर जी लेना चाहता था। निश्चित ही वह भी यही कर रही थी। उस रात मैंने पहले उसकी व्हिस्की की डिमांड यह कह कर मना कर दी थी कि आज हमें नहीं पीना चाहिए।मगर कुछ देर में उसे भी दिया और खुद भी पी कि इसका दिल ना दुखे। हमारी सुहागरात भोर होने के करीब तक चलती रही। अगले दिन हम दोनों बहुत देर से उठे और फिर दिनभर उदास रहे। ना वह ज़्यादा बोल रही थी और ना मैं।
उसके अपने देश जाने का समय जैसे-जैसे करीब आ रहा था यह उदासी और गहरी होती जा रही थी। आखिर यह भारी समय भी बीत गया। और रात में मैं उसे इंदिरा गांधी एयर पोर्ट पर छोड़ने गया। वह बराबर मेरा हाथ पकड़े रही। चेक इन के बाद वह प्लेन के रनवे पर आने पर अन्य यात्रियों की तरह चलने को उठ खड़ी हुई। हम फिर गले मिले। मैंने हैप्पी जर्नीबोला उसने मुझे अपना ख्याल रखने को कहा। फिर चल दी। मुड़-मुड़ कर पीछे देखती, हाथ हिलाती जाती। उसकी आंखों में आंसू चमक रहे थे। और गले में वह डायमंड पेंडेंट भी।
वह छः हज़ार मील दूर अपने देश जा रही थी। लौट कर हमेशा के लिए मेरे पास आने के लिए। मैं उसे ओझल हो जाने तक देखता रहा। और फिर प्लेन को टेक ऑफ कर आसमान में ओझल हो जाने तक। मेरी आंखों से बार-बार आंसू टपक रहे थे। मन बार-बार शेनेल, शेनेल कह रहा था। शेनेल जितनी जल्दी हो चली आना। अब तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है। मैं तुम्हें अपनी लाइफ पार्टनर ही नहीं पत्नी मान चुका हूं। बना चुका हूं। शेनेल, शेनेल, मेरी शेनेल। घर लौटा तो मैं रातभर उसकी याद में जागता रहा। सिगरेट पीता रहा। और लैपटॉप पर बार-बार पिछली रात की वह क्लिपिंग्स देखता रहा जिसे मैंने और शेनेल ने अपने-अपने मोबाइल से बनाया था। और शेनेल ने अपने अच्छे वाले सौतेले पिता को मेल किया था।
अगले पूरे दिन मैं घर पर पड़ा रहा, बार-बार मेल चेक करता। ऐमिलियो के नंबर पर रिंग करता। मगर वह ऑफ मिलता। कोई मेल नहीं आई। मैंने सोचा सफर के थकान के कारण सो रही होगी। उठेगी तो करेगी। मगर धीरे-धीरे एक दिन, दो दिन, और फिर कई दिन बीत गए। ना उसका मोबाइल ऑन हुआ, ना मेल आई। फिर नंबर आउट ऑफ ऑर्डर हो गया। मेल बाउंस होने लगी। उसके अच्छे वाले सौतेले पिता और माता का नंबर भी आऊट ऑफ आर्डर हो गया। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं ठगा गया। तन, मन, धन तीनों तरह से। हर तरह से।
बीतते समय ने अंततः पक्का यकीन करा दिया कि छः हज़ार मील दूर से आकर दो महीने में दस लाख का चुना लगा गई। कितनी अच्छी, लाजवाब थी उसकी साजिश कि विदेश में दो महीने खाना, पीना, घूमना, गाइड, सेक्स पार्टनर सब कुछ। जाते-जाते लाखों का सामान ले गई। सिर्फ साड़ी को छोड़ कर। जिसे गुस्से में मैंने जला दिया। मैं इतना विवश था कि कुछ नहीं कर सकता था। किसको बताता? क्या बताता? शादी का जो वीडियो बनाया था वैसी शादी का कोई कानूनी अर्थ नहीं। कानूनी मदद लूं भी तो दुनिया हंसेगी अलग, कि आधी उम्र की लड़की को दो महीने साथ रखा, ऐश करते रहे तब यह सब पता करने का होश नहीं था। दोस्तों की सलाह तब याद नहीं आई कि देखना इन धूर्त लड़कियों, इनकी बातों में उलझ ना जाना।
मगर उदासियों से हर बार पार पा कर आगे बढ़ जाना तो मेरी आदत है। तो कुछ ही दिनों में इस उदासी को भी तार-तार कर फिर से अपने अब तक के सबसे सुरक्षित वफादार साथी गुड्स ट्रेन के लोहे के घड़-घड़ करते गॉर्ड के डिब्बे में सवार हो गया। मीलों-मील की यात्रा करने। सबका माल सुरक्षित पहुंचाने के लिए। गॉर्ड वोगी की घड़-घड़ाहट दिमाग की नशें चीर दें इससे बचने के लिए मैं फिर अक्सर किसी ड्यूटी पार्टनर को साथ ले लेता हूं।
ड्यूटी पर एक सेक्स वर्कर को साथ लेकर चलने से नौकरी जाने का खतरा है तो क्या? अकेलापन नशों को चीर तो नहीं रहा। और शेनेल! ये नहीं कहूंगा कि उसकी याद नहीं आती। आती है, अब भी आती है। और तब उसके लिए कोई अपशब्द नहीं निकलता। बस हंसी आती है। और याद आते हैं साथ बिताए खूबसूरत पल। तब  अनायास ही मुंह से निकल जाता है। शेनेल.......।
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