शनिवार, 18 जनवरी 2020

कहानी : बस नमक ज्यादा हो गया : प्रदीप श्रीवास्तव


बस नमक ज़्यादा हो गया

प्रदीप श्रीवास्तव

उसके पेरेंट्स कभी नहीं चाहते थे कि वह स्कूल-कॉलेज या कहीं भी खेल में हिस्सा ले। लेकिन वह हिस्सा लेती, अच्छा परफॉर्म करके ट्रॉफी भी जीतती। और मां-बाप बधाई, आशीर्वाद देने के बजाय मुंह फुला कर बैठ जाते थे। कॉलेज पहुंची तो यह धमकी भी मिली कि पढ़ना हो तो ही कॉलेज जाओ, खेलना-कूदना हो तो घर पर ही बैठो। लेकिन वह कॉलेज में चुपचाप पढ़ती और खेलती भी रही। धमकी ज़्यादा मिली तो उसने भी मां से कह दिया कि, ‘कहो तो घर में रहूं या छोड़ दूं। दुनिया खेल रही है। मेरे खेलने से आख़िर ऐसी कौन सी बात हो जाएगी कि पहाड़ टूट पड़ेगा। मैं सीरियसली खेल ही रही हूं, और बहुत सी लड़कियों की तरह बॉयफ्रेंड की लिस्ट नहीं लंबी कर रही हूं। कॉलेज कट कर उनके साथ मौज-मस्ती तो नहीं कर रही हूं।
मां को उसकी बातें जबानदराज़ी लगी। उन्होंने अपने को अपमानित महसूस किया और युवा बेटी पर हाथ उठाने से नहीं चूकीं। लेकिन उसने मार खाने के बाद और भी स्पष्ट शब्दों में कह दिया, ‘यह पहली और आख़िरी बार कह रही हूं कि आज के बाद अगर मुझे रोका या मारा गया तो मैं उसी समय हमेशा के लिए घर छोड़ दूंगी। आप या पापा इस कंफ्यूज़न में नहीं रहें कि मैं मार या गाली से मान जाऊंगी। मैं आपके हर सपने आपके हिसाब से पूरी करने की कोशिश कर रही हूं। लेकिन साथ ही मेरा भी एक सपना है जिसे मैं पूरा करूंगी, जरूर करूंगी। मैं उसे ही पूरा करने की कोशिश कर रही हूं। इससे आप लोगों की इज़्ज़त बढ़ेगी ही घटेगी नहीं। पैसे भी बरस सकते हैं। मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर रही हूं कि आप लोगों को कहीं भी नीचा देखना पड़े। इसके बावजूद आप लोगों को मुझसे परेशानी है, आप नहीं मानते हैं तो ठीक है। मुझे लगता है कि इस घर में रहकर मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी। इसलिए मैं इसी समय घर छोड़कर जा रही हूं।
इतना कहकर उसने अपने कपड़े जरूरी सामान समेटने शुरू कर दिए। उसके हाव-भाव से मां को यह यकीन हो गया कि इसे यदि नहीं रोका गया तो यह निश्चित ही घर छोड़कर चली जाएगी। दुनिया में नाक कट जाएगी। और इसके हाव-भाव साफ-साफ बता रहे हैं कि यह रुकेगी तभी जब इसे खेलने से ना रोका जाए। चलो यही सही, रुकेगी के तो किसी तरह। खेल रही है तो चलो बर्दाश्त करते हैं। इससे कम से कम नाक तो नहीं कटेगी। समझाऊंगी कि बस कपड़े अपने शरीर के हिसाब से पहना करो। जरूरी नहीं है कि खुले-खुले कपड़े पहनकर ही खेल पाओगी। अब बड़ी हो गई हो यह अच्छा नहीं लगता।
वह जितनी जल्दी-जल्दी अपने सामान इकट्ठा कर रही थी, मां उतनी ही तेज़ी से हिसाब-किताब करके बनावटी हेकड़ी दिखाती हुई बोली, ‘अच्छा ज़्यादा दिमाग खराब ना कर। चल जा सामान जहां था वहीं रख। जो खेलना-कूदना है, स्कूल में ही खेल लिया करना। मोहल्ले की पार्क में उछल-कूद करने की ज़रूरत नहीं है।उसको भी अम्मा की बात और उसके भाव को समझने में देर नहीं लगी। उसने सोचा चलो जब परमिशन मिल गई है तो घर छोड़ने का अब कोई कारण बचा नहीं है।
घर छोड़कर पढ़ाई, खेल के साथ-साथ खाने-पीने, रहने का भी इंतजाम करना पड़ेगा। यह सब हो तभी पाएगा, जब नौकरी करके पैसा कमाऊंगी। एक साथ यह सब कर पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ऐसा ना हो कि नौकरी के चक्कर में मेरा जो उद्देश्य है वही पीछे छूट जाए। मेरा सपना पाला छूने से पहले ही दम तोड़ दे। कबड्डी दम या ताक़त का खेल है तो ज़िंदगी को चलाना भी दम का ही खेल है। और यह दम मिलता है पैसे से। आज के जमाने में पैसा कमाना सबसे ज़्यादा दम का काम है।
यह सोचकर उसने सारा सामान जहां से उठाया था वहीं रख दिया, एक आज्ञाकारी छात्रा की तरह। लेकिन पापा की याद आते ही उसने कहा, ‘अम्मा तुमने तो परमिशन दे दी लेकिन पापा ने ना दी तो बात तो वहीं की वहीं रहेगी।उसने सोचा था कि अब तो अम्मा असमंजस में पड़ जाएंगी, कहेंगी कि शाम को जब आएंगे तब पूछा जाएगा। लेकिन उसका अनुमान गलत निकला। अम्मा तड़कती हुई बोलीं, ‘जब मैंने बोल दिया है तो पापा-पापा क्या लगा रखा है। कह दूंगी कि खेलने के लिए मैंने कहा है।अम्मा के रुख से वह समझ गई कि अब उसके लिए कोई दिक़्क़त नहीं है। पापा अगर चाहते भी और अम्मा ना चाहतीं तो यह हो ही नहीं पाता। अम्मा मान गईं तो अब कोई रुकावट ही नहीं सकती।
उसका अनुमान सही था। शाम को ऑफ़िस से आने के बाद चाय-नाश्ता, रात का खाना-पीना सब हो गया। लेकिन अम्मा ने बात ही नहीं की तो वह बेचैन होने लगी। जब सोने का टाइम हुआ तो उसने सोचा कि अम्मा को याद दिलाए, कहीं वह भूल तो नहीं गईं। वह याद दिलाने के लिए अम्मा के पास जाने को उठी ही थी कि तभी उन्होंने बड़े संक्षेप में उसके पापा से इतना ही कहा, ‘सुनो ऑरिषा खेलने की जिद कर रही थी तो मैंने कह दिया ठीक है खेल लिया करो, लेकिन मोहल्ले में नहीं। अब यह कल से क्लास के बाद प्रैक्टिस करके आया करेगी। तुम ऑफ़िस से आते समय इसे जाकर देख लिया करना। हो सके तो साथ में लेकर आया करना। टेंपो-शेंपो से आने में बड़ी देर हो जाती है।
ऑरिषा ने देखा अम्मा ने जल्दी-जल्दी अपनी बात पूरी की और किचन की ओर चली गईं। उनके हाव-भाव से यह कतई नहीं लग रहा था कि उन्हें पापा की किसी प्रतिक्रिया की कोई परवाह है। एक तरह से उन्होंने अपने शब्दों में उन्हें अपना आदेश सुनाया, इस विश्वास के साथ कि उनके आदेश का पालन होना अटल है। ऑरिषा अम्मा से ज़्यादा पापा को देखती रही कि अम्मा के आदेश को वह किस रूप में ले रहे हैं। उनके हाव-भाव से वह आसानी से समझ गई कि पापा ना चाहते हुए भी वह सब करने को तैयार हैं जो अम्मा ने कहा है। साथ ही उसके दिमाग में यह बात भी आई कि पापा के आने से सबसे अच्छा यह होगा कि कोच आए दिन कोचिंग के नाम पर जो-जो बदतमीजियां किया करता है वह बंद हो जाएंगी। बाकी फ्रेंड्स से भी कहूंगी कि वह भी अपने-अपने पेरेंट्स को बुलाएं। रोज आधे भी आने लगेंगे तो वह एकदम सही हो जाएगा। बेवजह ऐसी-ऐसी जगह टच करता है जहां टच करने का कोचिंग से कोई लेना-देना ही नहीं है। जानबूझकर देर तक रोकता है। आधे घंटे कोचिंग देता है तो दो घंटे बदतमीजी करता है।
टीचर से कहो तो सुनती ही नहीं। उल्टा ही ब्लेम करने लगती हैं, ‘शॉर्ट्स पहन कर कबड्डी खेलोगी, तो क्या बिना टच किए ही कोचिंग हो जाएगी।गुड-बैड टच को दिमागी फितूर कहती हैं। प्रिंसिपल के पास जाओ तो स्कूल से ही बाहर करने की धमकी कि, ‘तुम लोग अपनी बेवकूफियों से कॉलेज बदनाम करती हो।कोच की बटरिंग के आगे वह बोल ही नहीं पातीं। अगले दिन कॉलेज ग्राऊंड में पापा को देखकर उसे बड़ी खुशी हुई थी। उसका ज़ोश दोगुना हो गया था। उसने कॉलेज की ही दो टीमों के बीच फ्रेंडली मैच में बहुत ही अच्छे-अच्छे मूव किये। चलते समय उसने जानबूझकर पापा का इंट्रोडक्शन कोच से करवाया। जिससे उसे इस बात का एहसास करा सके कि उसके पेरेंट्स उसका पूरा ध्यान रखते हैं। उसके साथ हैं, पूरा समय देते हैं।
रास्ते में उसने पापा से बात करने की कोशिश की। अपनी खुशी व्यक्त करनी चाही, लेकिन वह चुप रहे। उन्होंने कोई उत्साह नहीं दिखाया। ऑरिषा को दुख हुआ कि आज के पेरेंट्स स्पोर्ट्स में अपने बच्चों की सक्सेस पर कितना खुश होते हैं। और एक मेरे पेरेंट्स हैं कि बोलते ही नहीं, दुखी होते हैं। गुस्सा होते हैं। ना चाहते हुए भी खेलने सिर्फ़ इसलिए दे रहे हैं कि मैं घर छोड़ने लगी। आज प्रोविंस लेविल के टूर्नामेंट के लिए टीम में मेरा सिलेक्शन कर लिया गया। कोच ने खुद बताकर बधाई दी पापा को। कितना जोश से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘आपकी बेटी बहुत अच्छी प्लेयर है। यह ऐसे ही मेहनत करती रही तो मेरी कोचिंग से यह नेशनल टीम में भी सिलेक्ट हो जाएगी। आप बहुत ही लकी हैं।लेकिन पापा ने उनकी बात पर कैसे एक फीकी, जबरदस्ती की मुस्कान के साथ हाथ मिलाया था।
ऑरिषा ने सोचा घर पर यह बात अम्मा को पापा बताएंगे तो अच्छा होगा। देखते हैं वह खुश होती हैं, बधाई देती हैं, आशीर्वाद देती हैं या फिर पापा के ही पीछे-पीछे चलती हैं। लेकिन उसे घर पर बड़ी निराशा हाथ लगी। पापा ने इस बारे में कोई बात करना तो छोड़ो, वह इस तरह विहैव करते रहे, चाय-नाश्ता, खाना-पीना, टीवी देखने में व्यस्त रहे जैसे कि वह उसे लेने गए ही नहीं थे। वह उनके साथ आई ही नहीं। उन्हें कोच ने कुछ बताया ही नहीं
उसे भी गुस्सा गई। उसने सोचा कि अम्मा को बताऊंगी ही नहीं। बताने का क्या फायदा, लेकिन यह भी तो ठीक नहीं होगा। यह सोचकर उसने कोच की, अपने सिलेक्शन की सारी बातें अम्मा को बताईं। लेकिन उन्होंने भी पलट कर एक शब्द नहीं कहा। वह बहुत ही आहत हुई कि यह कैसे मां-बाप हैं। इन्हें अपनी बेटी की किसी भी सक्सेस से कोई खुशी ही नहीं मिलती। लेकिन मैं भी हर हाल में इतना आगे जाऊंगी कि इन्हें खुशी हो। यह हंसे, मुझे आशीर्वाद दें, इसके लिए मुझे आगे जाना है। आगे और आगे सबसे आगे जाना ही है।
ऑरिषा खेलती रही और उसकी पढ़ाई भी चलती ही रही। उसकी कोशिशों से उसके बहुत से फ्रेंड्स के पेरेंट्स या भाई भी लेने आने लगे। इससे कोच की आपत्तिजनक कुचेष्टाओं पर अंकुश लग गया। मगर उसके पापा एक चुप हज़ार चुप ही बने रहे। एक जबरदस्ती की नौकरी करने की तरह उसे लेकर आते-जाते रहे। बातचीत करने के उसके सारे प्रयासों के बावजूद उसके सामने मां-बाप चुप ही रहते। अंततः राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए दिल्ली जाने का समय गया।
उसे कुछ पैसों, कुछ और कपड़ों, सामान की जरूरत थी। कहने पर मां ने मौन व्रत धारण किए-किए ही सारी चीजें उसको उपलब्ध करा दीं। टूर्नामेंट में उसकी टीम रनर अप रही। सिल्वर ट्रॉफी, न्यूज़पेपर्स में निकली न्यूज़ की कटिंग्स के साथ वह घर पहुंची। इस विश्वास के साथ कि इस बार अम्मा-पापा दोनों मौन व्रत तोड़ेंगे, मुस्कुराएंगे, बधाई देंगे, लेकिन नहीं। दोनों लोगों का मौन व्रत चालू रहा। वह मायूसी के साथ अपने कमरे में चली गई। उसने सोचा ऐसा कहीं और किसी के साथ होता है क्या? करीब दस घंटे की लंबी यात्रा की थकान के बावजूद वह बहुत देर रात तक सो नहीं सकी।
बस में बैठे-बैठे यात्रा करने के चलते वह कमर में दर्द भी महसूस कर रही थी। मगर किससे कहे अपनी पीड़ा। अम्मा-पापा तो मुंह फुलाए कब का अपने कमरे में सोने चले गए थे। दर्द से ज़्यादा परेशान होने पर उसने अपनी स्पोर्ट्स किट से पेनकिलर स्प्रे निकाल कर स्प्रे किया। तभी उसे याद आया कि यह जर्नी से नहीं बल्कि खेल के समय लगी चोट के कारण है। उपेक्षा के कारण उसने खाना भी थोड़ा बहुत जबरदस्ती ही खाया था। भूख लगी होने के बावजूद उसे पूरा खाने का मन नहीं हुआ। अगली सुबह उसने उन सारी बातों को तिलांजलि दे दी जिससे उसे मायूसी मिल रही थी, निराशा मिल रही थी। उसने पूरा फ़ोकस अपने सपने, अपने खेल पर कर दिया।
अम्मा-पापा के लिए यह स्पष्ट सोच लिया कि आखिर मां-बाप हैं। एक दिन जब बहुत बड़ी स्टार प्लेयर बन जाऊंगी, जब दुनिया सिर आंखों पर बिठाएगी। जब पैसा चारों ओर से बरसने लगेगा तो इनका मौन व्रत भंग हो जाएगा। अंततः यह खुश होंगे ही। इनकी इस बेरुखी, उपेक्षा को ही अपनी एनर्जी बना लेती हूं। इसी एनर्जी के सहारे मैं आगे बढ़ती रहूंगी। अगले चार साल में वह नेशनल लेवल की स्टार प्लेयर बन गई। तब उसे महसूस हुआ कि उसके मां-बाप का मौन व्रत अब जाकर थोड़ा कमजोर पड़ा है।
मगर उसे इस बात का मलाल बना रहा कि यदि वह गुटबाजी, राजनीति का शिकार ना होती तो अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भी खेलने पहुंच गई होती। ऊंची पहुंच की कमी का परिणाम था कि जो प्लेयर प्रोविंस लेवल पर भी खेलने के काबिल नहीं थीं वह अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेल आईं। और वह केवल अपनी अदम्य इच्छाशक्ति, अपने जबरदस्त खेल के कारण राष्ट्रीय टीम में बनी रह सकी बस। यदि उसके पापा भी इसके लिए गलत नहीं फेयर फेवर की कोशिश करते तो शायद वह भी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेलती।
कई खिलाड़ियों की तरह उसने जब इस बात को गंभीरता से महसूस किया कि अन्य कई खेलों की तरह यह खेल भी उपेक्षित है, अपेक्षित पैसा है, पब्लिसिटी है तो उसने नौकरी करने की ठानी। सोचा इससे कई मौकों पर पैसों की तंगी को महसूस करने से मुक्ति तो मिलेगी। बाकी रहा खेल तो जैसे चल रहा है चलता रहेगा। उसे करीब दो साल की जी-तोड़ कोशिश के बाद स्पोर्ट्स कोटे के चलते पुलिस विभाग में नौकरी मिल भी गई।
नौकरी की बात उसने पेरेंट्स से शेयर नहीं की। सोचा कोई फायदा नहीं, क्योंकि उनका मौन व्रत कुछ कमज़ोर ही हुआ है, खत्म नहीं। लेकिन एक बार फिर उससे रहा नहीं गया तो दो दिन बाद उसने उन्हें बता कर आशीर्वाद मांगा। तो वह उसे मिला मगर बड़े ही कमज़ोर शब्दों में। उसने महसूस किया कि नौकरी ने दोनों लोगों का मौन व्रत थोड़ा और कमज़ोर किया है। यह व्रत उसे तब बहुत कमज़ोर लगा जब प्रशिक्षण के लिए जाते समय उसने चरण-स्पर्श कर आशीर्वाद मांगा। तब मां-बाप दोनों ही लोगों ने करीब सात वर्ष के बाद सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया।
सबसे पहले पिता, फिर मां उनके पीछे-पीछे। वह खुशी के आंसू लिए किसी छोटी बच्ची सी पिता के साथ चिपक गई। तब उन्होंने आशीर्वाद देते हुए उसे अपनी बाहों में भरकर कहा, ‘खुश रहो बेटा। बेटी नहीं तुम बेटा से बढ़कर मेरा नाम बड़ा कर रही हो। इस घर को यश कीर्ति की ज्योति से जगमग कर तुम हमारा जीवन सफल बना रही हो। हमें अंधेरे से आख़िर तुमने निकाल ही लिया, नहीं तो हम अंधेरे में अंधेरा ही लिए समाप्त हो जाते।उनकी आंखें और गला दोनों ही भरे हुए थे। और मां भी खुशी के मारे सारे मौन व्रत तोड़ चुकी थी लेकिन अतिशय खुशी के कारण उनके शब्द सुनाई नहीं दे रहे थे। लग रहा था आंखों से जो आंसू निकल रहे थे, सारे शब्द मानो उसी में घुल कर बहे जा रहे थे।
उसने दोनों को एक साथ बाहों में भर लिया और कहा, ‘मैं जो भी कर पाई आप दोनों के आशीर्वाद और सहयोग से ही कर पाई। अगर आप दोनों पैसे वगैरह से लेकर और सारी चीजें उपलब्ध नहीं कराते तो मैं शायद यह सब कर ही नहीं पाती। पापा आज आपको एक सच बता रही हूं कि अम्मा के कहने पर आप अगर रोज़ मुझे लेने ना पहुंच रहे होते तो या तो मेरा खेल कॅरियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो चुका होता या फिर मैं कोच के द्वारा सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार बनती रहती। मेरा कॅरियर इसके बावजूद बर्बाद ही होता।
इतना ही नहीं पापा आप के चलते बाकी लड़कियां भी बच पाईं। मैं सबको आपका एग्जांपल देकर उन पर प्रेशर बनाती थी कि वह भी अपने पेरेंट्स को जरूर बुलाएं। इस कोशिश के चलते सभी के पेरेंट्स आने लगे। क्योंकि सारी लड़कियां उससे परेशान थीं। जब हम टूर्नामेंट खेलने जाते थे तो वह वहां भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता था। लेकिन हम सब इतने अलर्ट रहते थे कि उसकी एक भी नहीं चल पाई। इसलिए सारा क्रेडिट आप दोनों को ही जाता है।उसकी बातों ने मां-बाप को और भी ज़्यादा भावुक कर दिया। उनके आंसू बह चले। पापा इतना ही बोल सके कि, ‘हम बातों को बड़ी देर से समझ पाए बेटा। अब तो तुम एसआई बन चुकी हो। उस बदतमीज को सीखचों के पीछे अवश्य पहुंचाना। ऐसे गिरे हुए इंसान को सजा मिलनी ही चाहिए जो अपने बच्चों के समान बच्चियों के लिए ऐसी गंदी सोच रखता था, कोशिश करता था।
मैं ज़रूर कोशिश करूंगी पापा। लेकिन क़ानून की भी अपनी सीमाएं हैं। जब-तक कोई रिपोर्ट नहीं लिखवाएगा, शिकायत नहीं करेगा तब-तक हम उस पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाएंगे।’ ‘तो क्या तुम खुद नहीं लिखा सकती।’ ‘मैं भी लिखा सकती हूं पापा। ट्रेनिंग पूरी करके एक बार जॉब में जाऊं पूरी तरह से तब मैं उसे छोडूंगी नहीं।ऑरिषा को तब और बड़ा धक्का लगा जब प्रशिक्षण के दौरान भी कोच जैसे कई लोग उसे मिले। लेकिन पहले ही की तरह वह इन सबको भी उनकी सीमा में रखने में कामयाब रही। मगर जब कुएं में ही भांग गहरे घुली हुई है तो उसे जो पहली तैनाती मिली वहां उसका इमीडिएट बॉस इंस्पेक्टर भी कोच के जैसा ही आदमी मिला।
थाने की हर महिला एम्प्लॉई को वह अपनी रखैल समझता था। सबको उसने कोई ना कोई नाम दे रखा था। ऑरिषा को वह उसके गोरे रंग के कारण चुनौटी कहता था। हर समय लिमिट क्रॉस करने का प्रयास करता था। एक बार फिर से वह कॉलेज और प्रशिक्षण सेंटर की तरह यहां भी सभी लेडीज स्टॉफ की सिक्युरिटी सील्ड बन गई। इंस्पेक्टर उससे दोस्तों की तरह बात करता था। हंसी-मजाक के बहाने कभी-कभी बहुत ही आगे बढ़ने का प्रयास करता था। कहता, ‘तू मेरी चुनौटी, मैं तेरा सुर्ती, दोनों को रगडे़ंगे तो खूब मजा आएगा।ऐसे समय में वह यह भूल जाती थी कि वह उसका सीनियर है।
वह बिंदास होकर गाली बकती हुई कहती, ‘अबे घर वाली चुनौटी संभाल नहीं तो कोई दूसरा सुर्ती रगड़ के मजा ले लेगा।यह कहकर वह ठहाका लगाकर हंसती ज़रूर। उसके साथ बाकी लोग भी खूब मजा लेते। जल्दी ही दोनों चुनौटी सुर्ती के नाम से चर्चित भी हो गए। असल में ऑरिषा प्रशिक्षण के समय ही गाली-गलौज में पारंगत हो गई थी। उसकी झन्नाटेदार गालियां बड़े-बड़े गालीबाजों को भी झनझना कर रख देती थीं। मां-बहन की गालियां उसकी तकिया कलाम बन चुकी थीं।
उसने खुद भी ऐसी तमाम गालियां गढ़ी थीं, जो पुरुष वर्ग को तीर सी चुभती थीं। आए दिन इसके चलते उसकी किसी ना किसी से बहस हो जाती थी। जब उसकी संगी-साथी कहतीं, ‘जिससे तू शादी करेगी उसके लिए तुझे खाना बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। उसका पेट तेरी गालियों से ही हमेशा भरा रहेगा।तो वह हंसकर कहती, ‘घबराओ मत, मैं ऐसे से शादी करूंगी जिसे गाली देने की जरूरत ही नहीं रहेगी। उसका पेट मैं देसी हार्मलेस पिज्जा, चोखा-बाटी से ही भरे रहूंगी।
उसकी मां ने प्रशिक्षण के समय ही उससे पूछ लिया था कि, ‘बेटा तू जैसा कॅरियर चाहती थी वह बना लिया है। शादी की उम्र हो गई है। तू कहे तो तेरे लिए कोई अच्छा सा लड़का देखना शुरू करूं।साथ ही मां ने बहुत स्पष्ट पूछा था, ‘अगर तुमने कहीं देख लिया है तो वह भी बता दो। मैं उसी से ही कर दूंगी। समय से सारा काम हो जाए तो बहुत अच्छा रहता है।उसने कभी सोचा ही नहीं था कि अम्मा ऐसे साफ-साफ, सीधे-सीधे पूछ लेगी। इसलिए कुछ देर तो उन्हंे देखती ही रह गई। फिर उसने भी अम्मा के ही अंदाज में साफ-साफ कहा, ‘अम्मा सच-सच कहूं, ना मैंने कहीं देखा है, ना ही मैं कहीं देखूंगी। क्योंकि मैं मानती हूं कि ऐसे देखा-देखी के बाद होने वाली शादी का कोई चार्म ही नहीं रहता और मैं हर जगह चार्म ढू़ढ़ती हूं। इसलिए तुम ही ढूंढ़ो, जहां कहोगी वहीं करूंगी।
अम्मा ने उससे थोड़े आश्चर्य के बाद कहा, ‘लेकिन बेटा कम से कम अपनी पसंद के बारे में तो बता ही दो। इससे मुझे ढूंढ़नें में बहुत आसानी होगी। सही मायने में वैसा लड़का ढूंढ़ पाऊंगी जैसा तुम चाहती हो। जिसमें तुम्हें तुम्हारी पसंद का चार्म मिल सके।उसने मुस्कुराते हुए बहुत साफ-साफ फिर कहा, ‘अम्मा मेरी पसंद-नापसंद सब समझती हो, जानती हो फिर भी कह रही हो तो ठीक है, सुनो।इसी के साथ उसने चंद शब्दों में अम्मा को अपनी पसंद-नापसंद सब बता दी। जिसे सुनकर वह कई बार हंसी, फिर बोलीं, ‘सच बेटा तू तो बहुत ही स्मार्ट है। मैं तो इतनी एज के बाद भी यह सब सोच ही नहीं पाई। तुम हमारी उम्मीदों से भी बहुत आगे हो बेटा। मैं एड़ी-चोटी का जोर लगा दूंगी। भगवान से प्रार्थना करूंगी कि तेरे मन का लड़का ढूंढ़नें में मैं जल्दी से जल्दी सफल हो जाऊं।

सच में जब वह सफल हुईं तब तक ऑरिषा को नौकरी करते हुए डेढ़ साल ही बीता था। उसके अम्मा-पापा के पैर सातवें आसमान पर थे कि लड़की ने जैसा चाहा था वह बिल्कुल वैसा ही लड़का ढूंढ़नें में सफल रहे। भगवान को कृपा करने के लिए वह दिन भर में सैकड़ों बार धन्यवाद देते रहे। और तैयारियां करते रहे। शादी से चार दिन पहले ऑरिषा कार्ड लेकर थाने पहुंची कि लहगर इंस्पेक्टर को भी कार्ड देकर इंवाइट करे। उसे चिढ़ाएगी कि तेरी चुनौटी तो जा रही है। एक दमदार ख़ास सुर्ती के साथ शादी करके। अब तू अपनी सुर्ती के साथ चिल्ला चुनौटी-चुनौटी। लेकिन थाने पहुंचकर उसे निराशा हाथ लगी। इंस्पेक्टर छुट्टी पर था।
उसकी साथी ने उसे बताया कि उसके साले की शादी है, आज शाम वह ससुराल जा रहा है। तैयारियों के चलते आया ही नहीं। यह सुनकर उसे खुराफ़ात सूझी। उसने साथी से कहा, ‘चल उसको परेशान करते हैं। उसकी चुनौटी को देखते हैं। कार्ड देना ही है।साथी को लेकर वह स्कूटर से ही इंस्पेक्टर के घर पहुंची वह तैयारियों में उलझा हुआ मिला। उसे देखते ही वह बोला, ‘अरे तुम यहां, क्या बात है? सब ठीक तो है ना?’ इंस्पेक्टर की शालीनता देखकर उसने एक बार अपनी साथी को देखा फिर पूरा प्रोटोकॉल मेंटेन करते हुए कहा, ‘यस सर। ठीक है। मैं आपको अपनी शादी में आने के लिए इंवाइट करने आई हूं।
यह कहते हुए उसने कार्ड आगे कर दिया। उसकी बात सुनते ही इंस्पेक्टर ने कहा, ‘शादी!‘ फिर खुश होते हुए कार्ड लेकर उससे हाथ मिलाया, बधाई दी और कार्ड देखने लगा। तभी ऑरिषा ने कहा, ‘सर चुनौटी अपने सुर्ती के साथ चार दिन बाद चली जाएगी।उसकी बात सुनते ही वह ठहाका लगाकर हंस पड़ा। वह मौका चूकना नहीं चाहती थी। इसलिए तुरंत कहा, ‘सर अपनी चुनौटी से मेरा मतलब कि भाभी जी से नहीं मिलवाएंगे क्या?’ यह सुनते ही उसने एक नज़र उस पर डालकर कहा, ‘बैठो, अभी मिलवाता हूं।उसके जाते ही साथी ने उससे कहा, ‘यार यह तो लग ही नहीं रहा है कि वही लहगर इंस्पेक्टर है जो स्टॉफ की किसी भी महिला के साथ लफंगई करने से बाज नहीं आता। कितना जेंटलमैन बना हुआ है।तभी इंस्पेक्टर बीवी के साथ गया। दोनों ने एक साथ उनके सम्मान में उठकर उन्हें नमस्कार किया। वह भी उन दोनों को बहुत हंसमुख और मिलनसार लगीं।
ऑरिषा ने चाय-नाश्ते की फॉर्मेलिटी के लिए उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि, ‘अभी कई जगह जाना है, देर हो जाएगी। आपको भी तैयारियां करनी हैं इसलिए चलती हूं।गेट पर चलते-चलते उसने कहा, ‘चलती हूं सर, चुनौटी की शादी में भाभी जी को लेकर जरूर आइएगा।वह हंसते हुए बोला, ‘जरूर आऊंगा लेकिन अकेले ही क्योंकि मिसेज एक हफ्ते के बाद आएंगी। मैं तो दूसरे दिन ही चला आऊंगा।’ ‘थैंक यू सर। यदि परमीशन हो तो एक बात पूछूं।’ ‘पूछो, ऐसी कौन सी बात है।
सर ऑफ़िस में तो आप, आप नहीं रहते। यहां तो लग ही नहीं रहा कि आप वही हैं जो ऑफ़िस में दिनभर गाली से ही बात, काम सब करते हैं।इंस्पेक्टर ने गहरी सांस लेकर कहा, ‘देखो यही तो घर और ऑफ़िस का फ़र्क़ है। घर-घर ही बना रहे, इसलिए यह फ़र्क़ रखना मैं जरूरी समझता हूं। और सभी समझदार लोग यही करते हैं। तुम भी जिस तरह ड्यूटी ऑवर्स में विहैव करती हो क्या तुम्हारा वही विहैवियर घर पर भी रहता है? निश्चित ही नहीं। और तुम तो शादी चार्टर्ड अकाउंटेंट से कर रही हो। तुमने भी यदि यह डिफ़रेंस मेंटेन नहीं रखा तो अपने लिए प्रॉब्लम खड़ी कर लोगी।ऑरिषा इस मुद्दे पर उससे यह बहस करना चाहती थी कि यही डिफ़रेंस जनता के बीच पुलिस विभाग को बदनाम किए हुए है। जो विहैवियर अपने लिए चाहते हैं, जनता के साथ उसका उल्टा करते हैं। लेकिन समय को देखते हुए वह वापस चल दी। मगर यह तय कर लिया कि इस प्वाइंट पर वह इनसे बात तो जरूर करेगी।
रास्ते में उसकी साथी ने उससे कहा, ‘बड़ा घाघ है, ऑफ़िस में खासतौर से हम लोगों से बदतमीजी की कोई भी ऐसी हद नहीं होती जिसे यह पार करता हो। आए दिन मेरे हिप पर धौल जमाते हुए कहता है, ‘‘सिक्योरिटी टाइट है।’’ तुम थोड़ी ढीली पैंट पहनती हो तो कहता है, ‘‘इसकी सिक्योरिटी कब टाइट होगी?’’ साथी की बात सुनकर ऑरिषा ने कहा, ‘एक बात बताऊं, जिस दिन इसने मेरे हिप को छू लिया ना उस दिन इसे सिखचों के पीछे पहुंचा दूंगी। सिक्योरिटी वाकई टाइट कर दूंगी। तुमको भी सख्ती से पेश आना चाहिए।
क्या करूं, नौकरी करनी है। कब तक किस-किस से भिड़ूंगी। हम लोग तो बहुत निचली पोस्ट पर हैं। अपने यहां तो आईएएस ऑफ़िसर रूपन देओल बज़ाज और केपीएस गिल जैसे मामले तीसों साल पहले से होते रहे हैं। गिल सुप्रीम कोर्ट से ही कुछ सजा पाए थे। रूपन देओल बज़ाज जैसी तेज़तर्रार महिला ऑफ़िसर की तमाम कोशिशों के बाद यह हो पाया था। वह बंद तब भी नहीं हुए थे। किसी आम आदमी का मामला होता तो वह सालों जेल में होता। ऐसे में हम लोग क्या कर पाएंगे?’
बात निचली और ऊपरी पोस्ट की नहीं है। बात सिर्फ़ इतनी है कि हम अपने अधिकारों, अपने सम्मान को लेकर कितने अवेयर हैं, कितनी जोर से अपोज़ कर सकते हैं बस। मैं सच कहती हूं कि मेरे साथ हरकत हुई तो मैं उसका इतने एक्स्ट्रीम लेविल पर अपोज़ करूंगी कि दुनिया देखेगी। तुझसे भी कहती हूं कि तू उसकी बदतमीजियों का अपोज़ कर। मैं तेरे साथ हूं, हिला कर रख दूंगी साले को।
ठीक है यार पहले तुम शादी करके आओ, तब सोचती हूं, इस बारे में। अच्छा एक बात बताओ, तू घर बाहर हर जगह ऐसे ही रहेगी तो सीए हस्बैंड को कैसे हैंडल करेगी।’ ‘उससे हमारा कोई डिफ़रेंस होगा ही नहीं तुम यह देख लेना। मैंने बहुत सोच-समझकर सेम प्रोफ़ेशन में शादी नहीं की। इससे हमारे बीच प्रोफ़ेशन को लेकर कोई कंपटीशन नहीं होगा। तुम देखना हम दोनों एक परफ़ेक्ट आयडल कपल होंगे। अच्छा तुम अब अपनी ड्यूटी देखो। शादी में आना जरूर।उसने साथी को थाने पर उतारते हुए कहा और घर गई। शादी के चार दिन बचे थे और काम बहुत था लेकिन ऑरिषा के दिमाग में रूपन देओल बज़ाज, केपीएस गिल और खुद उसको चुनौटी नाम देने वाला बॉस घूम रहा था। वह बार-बार यही सोच रही थी कि इसे लाइन पर लाऊंगी जरूर।
सादगी से शादी करने के उसके लाख आग्रह के बावजूद उसके मां-बाप बड़े धूमधाम से शादी कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए थे। एक शानदार गेस्ट हाउस में शानदार सजावट, बारातियों के स्वागत की तैयारियां की थीं, और उसको यह सब बेवजह का तमाशा लग रहा था। होने वाले हस्बैंड से उसकी एंगेजमेंट के बाद से ही बात होती रहती थी। वह भी उसी के मूड का था। लेकिन उसका मानना था कि पेरेंट्स को उनके मन की करने देना चाहिए। हमें बीच में ýकावट नहीं बनना चाहिए। उसी ने उसको भी समझाया था कि अपने विचार, अपनी इच्छा किसी पर हमें थोपनी नहीं चाहिए। जब बारात आई तो ऑरिषा ने देखा कि आजकल के तमाम दूल्हों की तरह वह कुछ खास सजा-धजा नहीं है। उससे ज़्यादा तो कई बाराती ही सजे हुए हैं।
एक चीज ने उसे बहुत परेशान कर दिया कि बाराती तय संख्या से करीब डेढ़ गुना ज़्यादा आए हुए हैं। वह डरने लगी कि कहीं खाना-पीना कम ना पड़ जाए। सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त ना हो जाए। जयमाल के बाद से ही उसके कानों में तनाव भरी कुछ बातें पड़ने लगी थीं। मंडप में शादी की तैयारियां चल रही थीं कि बवाल एकदम बढ़ गया। तोड़फोड़, मारपीट जमकर हो गई। कई लोग हॉस्पिटल पहुंच गए। शादी रुक गई। दूल्हे के नाराज फादर, रिश्तेदार सबने कह दिया कि अब यह शादी नहीं होगी। बारात वापस जाने लगी तो उसके पापा और रिश्तेदारों ने लड़के के फादर, कई रिश्तेदारों को बंधक बना लिया कि नुकसान की भरपाई करने के बाद ही जाने दिया जाएगा अन्यथा नहीं।
वह और दूल्हा दोनों ही हर संभव कोशिश करते रहे। सारे संकोच को दरकिनार कर मोबाइल से ही अपने अपनों को समझाते रहे। लेकिन दोनों किसी को यह समझाने में सफल नहीं हो पाए कि जो हो गया उसे भूल कर अब शादी होने दी जाए। बाकी रही बात नुकसान के भरपाई की, तो वह भी बैठकर समझ ली जाएगी। मगर जड़वादियों की तरह दोनों ही पक्ष जड़ बने रहे, अड़े रहे, और सवेरा हो गया मगर मामला जहां का तहां बना रहा। इसी बीच किसी के फ़ोन करने पर पुलिस गई। इस समय तक यह फाइनल हो गया था कि यह शादी तो अब किसी भी सूरत में नहीं होगी। बस क्षतिपूर्ति का मामला सेटल होना है। ऑरिषा को पुलिस आने की सूचना मिली तो वह समझ गई कि वही सुर्ती ही आया होगा। इस शादी के टूटने पर अब वह ऑफ़िस में उसे और परेशान करेगा।
वह जिस कमरे में थी वहां सामान वगैरह, कुछ रिश्तेदार महिलाएं और अम्मा थीं। कई रिश्तेदारों का बराबर आना जाना लगा हुआ था। सब तनाव और तैश में थे। और वह स्वयं बहुत दुखी और गुस्से में थी, सोच रही थी कि अब हर जगह उसकी बेइज़्ज़ती होगी। उसके सारे सपने टूट गए। अपने होने वाले पति के साथ ना जाने कितनी बार फ़ोन पर, कई बार मिलने पर कितनी-कितनी, कैसी-कैसी क्या सारी ही तरह की बातें तो दोनों के बीच होती रही थीं। कब से तो पति-पत्नी जैसे ही दोनों विहैव कर रहे थे। कितने खूबसूरत सपने दोनों ने बुने थे। अब उसे जीवन में ऐसा भला इंसान कहां मिलेगा। उनका भी तो कितना मन टूट रहा होगा। कैसे भूल पाएंगे दोनों एक दूसरे को। कम से कम मेरे दिल से तो अब वह कभी नहीं निकलेंगे। चाहे आगे कभी किसी से भी शादी हो जाए।
अवसर मिला तो इन उजड्डों को मैं छोडूंगी नहीं। मूर्खों ने हम दोनों के सुनहरे सपनों पर पानी नहीं नमक फेरा है। जो हमें नमक की हांडी की तरह ही गलाता रहेगा। काश जाने से पहले यह किसी तरह मिल लेते तो आखि़री बार ही सही मेरी तरफ से जो गलतियां हुईं कम से कम उनके लिए सॉरी तो बोल दूं। बहुत व्याकुल व्यग्र होकर उसने फ़ोन उठाया कि नहीं मिल पा रहे हैं तो कोई बात नहीं। एक बार फ़ोन ही कर लेती हूं। उसने मोबाइल उठाया ही था कि तभी उन्हीं का फ़ोन गया और उसने घनघोर घटाओं में कौंधी बिजली की तेज़ी से कॉल रिसीव कर ली।
हेलो बोलते ही उधर से बड़े स्पष्ट शब्दों में उन्होंने कहा, ‘ऑरिषा मैं अपनी तुम्हारी शादी की आधी रस्में हो जाने के बाद मूर्खों की मूर्खता के चलते शादी को खत्म करने के पक्ष में नहीं हूं। इसलिए मैं इन दोनों लोगों से अपने रिश्ते अभी के अभी खत्म करता हूं और तुम जहां हो, जिस हाल में हो तुरंत वैसी ही हालत में बाहर गेट पर जाओ। मैं कार के पास खड़ा हूं। हम आज ही किसी मंदिर में अपनी शादी पूरी कर लेंगे। आज ही अपने पहले से तय शेड्यूल के हिसाब से चल देंगे। तुम मेरी बातों से एग्री हो तो तुरंत जाओ, यदि नहीं तो कोई बात नहीं। मुझे बता दो, मैं चलूं तुम्हें भी छोड़कर।
ऑरिषा उनकी इन बातों को सुनकर ना सन्न हुई और ना ही घबराई। उसने छूटते ही कहा, ‘फ़ोन डिसकनेक्ट नहीं करना, मैं तुरन्त रही हूं। मुझे आपके पास पहुंचने में जितना टाइम लगेगा बस उतना ही वेट करिए।वह अपनी बात पूरी होने से पहले ही बाहर के लिए चल चुकी थी। अपने सुर्ख लाल डिजाइनर जोड़े में ही। मगर उसने डिजाइनर चप्पलें नहीं पहनीं। क्योंकि जिस हाल में थी वह उसी हाल में चल दी। सामने रखी चप्पल पहनने का भी उसके पास समय नहीं था।
परिवार की महिलाएं, जब-तक कुछ समझें, उसे रोकें तब-तक वह उनके पास बाएं तरफ उनकी बाहों में बाहें डाले खड़ी हो गई। कार का दरवाजा खुला हुआ था। वह अंदर बैठने ही वाली थी कि उसकी साथी ने उसे देखकर रुकने का इशारा किया। उसके पीछे-पीछे लहगर इंस्पेक्टर भी चला रहा था। उसने आते ही व्यंग्य भरे लहजे में पूछा, ‘मामला क्या है?’ तो ऑरिषा ने बहुत निश्चिंतता के साथ कहा, ‘कुछ नहीं सर। खाने में बस नमक ज़्यादा हो गया और इसी बात पर इतना बवाल हुआ।

उसने लहगर इंस्पेक्टर से दो टूक साफ-साफ शब्दों में कहा, ‘सर मैं अपने पति के साथ शादी की बची हुई रस्में पूरी करने मंदिर जा रही हूं। हम दोनों का अब इन दोनों पक्षों से कोई लेना-देना नहीं है। और यहां जो कुछ है उसे आप संभालिए। आप मेरी शादी में आए मगर इस तरह इसके लिए भी मैं आपको धन्यवाद देती हूं। आपसे अपना गिफ्ट मैं हनीमून से लौटकर ले लूंगी और आपको पार्टी भी दूंगी। मुझे जल्दी से जाने की परमिशन दीजिए, आशीर्वाद के साथ। देखिए सब इकट्ठा हो रहे हैं, अब मैं यहां एक मिनट भी रुकना नहीं चाहती। प्लीज सर प्लीज मुझे परमिशन दीजिए।’ ‘ठीक है जाइए आप दोनों। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। जाओ चुनौटी। इन सब से अभी बोहनी करता हूं। दुगनी करूंगा। सालों ने नींद हराम की है।कहकर वह ठहाका लगाकर हंस पड़ा। अब तक कई लोग चुके थे। समझाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ऑरिषा ने किसी से आंख तक नहीं मिलाई। पति के साथ गाड़ी में बैठकर तेज़ रफ्तार से निकल गई और लहगर इंस्पेक्टर बोहनी करने में जुट गया था।
                         
  प्रदीप श्रीवास्तव
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