एबॉन्डेण्ड
- प्रदीप श्रीवास्तव
इसे आप कहानी के रूप में पढ़ रहे हैं, लेकिन यह एक ऐसी घटना है जिसका मैं स्वयं प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं। चाहें तो आप इसे एक रोचक रिपोर्ट भी कह सकते हैं। इस दिलचस्प घटना के लिए पूरे विश्वास के साथ यह भी कहता हूं कि यह अपने प्रकार की अकेली घटना होगी। मेरा प्रयास है कि आप इसे घटते हुए देखने का अहसास करें। यह जिस गांव में घटी उसे मैं गांव कहना गलत समझता हूं, क्योंकि तब तक वह अच्छा-खासा बड़ा कस्बा बन चुका था। मैं भी उसी गांव या फिर कस्बे का हूं।
गांव में मुख्यतः दो समुदाय हैं, एक समुदाय कुछ बरस पहले तक बहुत छोटी संख्या में था। इसके बस कुछ ही परिवार रहा करते थे। यह छोटा समुदाय गांव में बड़े समुदाय के साथ बहुत ही मेल-मिलाप के साथ रहा करता था। पूरे गांव में बड़ी शांति रहती थी। त्योहारों में सिवईंयां खिलाना, प्रसाद खाना एक बहुत ही सामान्य सी बात हुआ करती थी। मगर बीते कुछ बरसों में बदलाव की एक ऐसी बयार चल पड़ी कि पूरा परिदृश्य ही बदल गया। सिवईंयां खिलाना, प्रसाद खाना करीब-करीब खत्म हो गया है। अब एक समुदाय इस बात से सशंकित और आतंकित रहता है कि देखते-देखते कुछ परिवारों का छोटा समूह बढ़ते-बढ़ते बराबरी पर आ पहुंचा है।
यह बात तब एक जटिल समस्या के रूप में उभरने लगी, जब दूसरे समुदाय ने यह महसूस करना शुरू कर दिया कि सिवईंयां खिलाने, खाने वाला समुदाय उनके कामकाज, त्योहारों पर ऐतराज करने का दुस्साहस करने लगा है, इस तुर्रे के साथ कि यह उनके लिए वर्जित है। इन बातों के चलते मेल-मिलाप, मिलना-जुलना बीते जमाने की बातें हो गईं। अब दोनों एक-दूसरे को संदेह की नजरों से ही देखते हैं।
संदेह की दीवारें इतनी मोटी, इतनी ऊंची हो गई हैं कि कस्बे में अनजान लोगों की पल-पल बढ़ती आमद से प्रसाद खाने-खिलाने वाला समुदाय क्रोध में है। उनका गुस्सा इस बात को लेकर है कि यह जानबूझ कर बाहर से लोगों को बुला-बुला कर उन्हें कमज़ोर करने की घृणित साजिश है। क्रोध, ईर्ष्या, कुटिलता की इबारतें दोनों ही तरफ चेहरों पर साफ-साफ दिखती हैं। ऐसे तनावपूर्ण माहौल के बीच ही एक ऐसी घटना ने कस्बे में देखते-देखते चक्रवाती तूफ़ान का रूप ले लिया जो कि समाज में आए दिन ही घटती रहती है।
मैं आपको कस्बे के उस क्षेत्र में ले चलता हूं जहां चक्रवाती तूफ़ान का बीज पड़ा। यहां एक प्राथमिक विद्यालय है। उससे कुछ दूर आगे जाकर दो-तीन फीट गहरा एक बरसाती नाला दूर तक चला गया है। जो बारिश के अलावा बाकी मौसम में सूखा ही रहता है। जिसमें बड़ी-बड़ी घास रहती है। उसके ऊपर दोनों तरफ जमीन पर झाड़-झंखाड़ हैं। यदि इस नाले में कोई उतरकर बैठ जाए, तो दूसरी तरफ बाहर से उसे कोई देख नहीं सकता, जब तक कि उसकी मुंडेर पर ही खड़े होकर नीचे की ओर ना देखे।
उस दिन वह दोनों भी इसी नाले में नीचे बैठे हुए बातें कर रहे थे। अब मैं आपको पीछे उसी समय में ले चलता हूं जब वह दोनों बातें कर रहे थे।
आइए, आप भी सुनिए उस युवक-युवती की बातें। ध्यान से। और समझने की कोशिश करिए कि ऐसा क्या है जो हम लोग अपनी आगामी पीढ़ी के बारे में नहीं सोचते, उन्हें समझने का प्रयास नहीं करते, जिसका परिणाम इस तरह की घटनाएं होती हैं।
युवक युवती को समझाते हुए कह रहा है, ‘देखो रात को साढ़े तीन बजे यहां से एक ट्रेन जाती है। उसी से हम लोग यहां से निकल लेंगे। दिन में किसी बस या ट्रेन से जाना खतरे से खाली नहीं है।’
युवक युवती के हाथों को अपने हाथों में लिए हुए है। सांवली-सलोनी सी युवती का चेहरा एकदम उसके चेहरे के करीब है। वह धीमी आवाज़ में कह रही है, ‘लेकिन इतनी रात को हम लोग स्टेशन के लिए निकलेंगे कैसे? यहां तो दिन में ही निकलना मुश्किल होता है।’
‘जानता हूं। इसलिए रात को नहीं, हम लोग स्टेशन के लिए शाम को ही चल देंगे।’
‘अरे! इतनी जल्दी घर से आकर स्टेशन पर बैठे रहेंगे तो घर वाले ढूंढ़ते-ढूंढ़ते वहीं पहुंच जाएंगे। छोटा सा तो गांव है। ज़्यादा देर नहीं लगेगी उन लोगों को वहां तक पहुंचने में। ढूंढ़ते हुए सब पहले बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन ही पहुंचेंगे । हम लोगों को वहां पा जाएंगे तो ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे, वहीं मारकर फेंक देंगे।’
युवती की इस बात से भी युवक के चेहरे पर कोई शिकन नहीं, बल्कि दृढ़ता भरी मुस्कान ही उभरी है। वह दृढ़तापूर्वक कह रहा है, ‘जानता हूं, लेकिन खतरा तो मोल लेना ही पड़ेगा ना।’
‘ऐसा खतरा मोल लेने से क्या फायदा जिसमें मौत निश्चित हो। यह तो सीधे-सीधे खुद ही मौत के मुंह में जाने जैसा है। इससे तो अच्छा है कि और इंतजार किया जाए, कुछ और तरीका ढूंढ़ा जाए, जिससे यहां से सुरक्षित निकलकर अपनी मंजिल पर पहुंच सकें।’
‘ऐसा एक ही तरीका हो सकता है और वह मैंने ढूंढ़ लिया है। उसके लिए जो जरूरी तैयारियां करनी थीं, वह सब भी कर ली हैं। पिछले तीन-चार दिन से यही कर रहा हूं।’
युवक की इस बात से युवती के चेहरे पर हल्की नाराज़गी उभर आई है। जिसे जाहिर करते हुए वह कह रही है, ‘अच्छा, तो अभी तक बताया क्यों नहीं? इतने दिनों से सब छिपा कर क्यों कर रहे हो?’
‘पहले मैं खुद ही नहीं समझ पा रहा था कि जो कर रहा हूं वह सही है कि नहीं। कहीं ऐसा ना हो कि बचने के चक्कर में खुद ही अपने को फंसा दूं और साथ ही तुम्हारी जान भी खतरे में डाल दूं।’
‘इसीलिए कहती हूं कि बात कर लिया करो, मिलकर काम करेंगे तो आसान हो जाएगा। ऐसे अकेले तो खुद भी नुकसान उठाओगे और हमारी जान भी ले लोगे।’
‘नहीं, तुम्हारी जान मेरे रहते जा ही नहीं सकती। तुम्हारी जान चली जाएगी तो मैं क्या करूंगा। मेरी जान तो तेरे से भी पहले चली जाएगी। इसलिए मैं कुछ भी करूंगा, लेकिन सबसे पहले तुम्हारी सुरक्षा की सोचुंगा, उसका इंतजाम करूंगा, भले ही हमारी जान चली जाए।’
‘तुम भी कैसी बात करते हो, मेरी तो जान ही तुम्हारे में ही बसती है। तुम्हारे साथ ही चली जाएगी, बार-बार तुम जान जाने की बात क्यों कर रहे हो। हम ज़िंदगी जीना चाहते हैं। इस दुनिया में आए हैं तो हम भी लोगों की तरह सुख उठाना चाहते हैं। ना तो किसी को हमें मारने का हक़ है और ना ही हम मरना चाहते हैं, सोचना भी नहीं चाहते, समझे। तुम भी अपने दिमाग से यह शब्द ही निकाल दो। इसी में हमारा भला है।’
‘तुम सही कह रही हो। एकदम तुम्हारी ही तरह जीना तो हम भी चाहते हैं। कौन मरना चाहता है, लेकिन जब हमारे मां-बाप ही, दुनिया ही हमारे पीछे पड़ी हो तो जान का खतरा तो है ही, और हमें कुछ ना कुछ खतरा तो उठाना ही पड़ेगा ना। इसका सामना तो करना ही पड़ेगा।’
‘यह दुनिया नहीं। इसके पास तो किसी के लिए समय ही नहीं है। सिर्फ़ हमारे मां-बाप ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं। वही पड़ेंगे। वही इज़्ज़त के नाम पर हमें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे, अगर पकड़ लिया तो हमें बड़ी बुरी मौत मारेंगे।’
‘नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है। दरअसल दुनिया में एक हालात तो वह है जिसमें परिवार में ही किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है। सबका सारा समय अपने लिए है। अपने मोबाइल के लिए है। लेकिन जब हम दोनों जैसा मामला आता है तो इनके पास समय ही समय होता है। ये अपना सब कुछ छोड़-छाड़ कर एकदम फट पड़ते हैं। जात-पात, धर्म, इज़्ज़त के नाम पर इनका पूरा जीवन न्योछावर होता है। अभी हमारे बारे में पता चल जाए तो देखो क्षण भर में सब गोली, बंदूक लेकर इकट्ठा हो जाएंगे कि यह हिन्दू-मुसलमान का मामला है। ये एक साथ रह ही नहीं सकते। यह रिश्ता हो ही नहीं सकता। ये हमें तो मारेंगे ही, साथ ही लड़कर अन्य बहुतों को भी मार डालेंगे।’
‘ये तो तुम सही कह रहे हो। तब तो इन लोगों के पास समय ही समय होगा। लेकिन पहले तुम यह बताओ जल्दी से कि इंतजाम क्या किया है? हम भी तो जाने तुमने ऐसा कौन सा इंतजाम किया जिसको करने में चार-पांच दिन लग गए।’
‘चार-पांच नहीं, हमने तीन-चार दिन कहा है।’
‘हां, हां, वही जल्दी बताओ अंधेरा होने वाला है।’
युवती थोड़ा जल्दी में है क्योंकि गोधुलि बेला बस खत्म ही होने वाली है। मगर युवक जल्दी में नहीं है। वह इत्मीनान से कह रहा है।
‘सुनो, यहां जो स्टेशन है, रेलवे स्टेशन।’
‘हां, हां, बोलो तो, आगे बोलो, तुम्हारी बड़ी खराब आदत है एक ही बात को बार-बार दोहराने की।’
‘अच्छा! तुम भी तो बेवजह बीच में कूद पड़ती हो। ये भी नहीं सोचती, देखती कि बात पूरी हुई कि नहीं।’
‘अच्छा अब नहीं कूदूंगी। चलो, अब तो बताओ ना।’
‘देखो स्टेशन से आगे जाकर एक केबिन बना हुआ है। वहां बगल में एक लाइन बनी है। जिसकी ठोकर पर एक पुराना रेल का डिब्बा बहुत सालों से खड़ा है।’
बात को लम्बा खिंचता देख युवती थोड़ा उत्तेजित हो उठी है। कह रही है, ‘हां, तो उसका हम क्या करेंगे?’
‘सुनो तो पहले, तुम तो पहले ही गुस्सा हो जाती हो।’
‘अरे गुस्सा नहीं हो रही हूं। बताओ जल्दी, अंधेरा होने जा रहा है। इसलिए मैं बार-बार जल्दी करने को कह रही हूं। घर पर इंतजार हो रहा होगा। ज़्यादा देर हुई तो हज़ार गालियां मिलेंगी। मार पड़ जाए तो आश्चर्य नहीं।’
‘देखो, मैंने बहुत सोचा, बहुत इधर-उधर दिमाग दौड़ाया। लेकिन कोई रास्ता नहीं मिला। सोचा किसी दोस्त की मोटरसाइकिल ले लूं। उस पर तुम्हें बैठाकर चुपचाप चल दूं। मगर तब दोस्त को बताना पड़ेगा। इससे बात इधर-उधर फैल सकती है। यह सोचकर मोटरसाइकिल की बात दिमाग से निकाल दी। फिर सोचा कि दोस्त को बताऊं ही ना। झूठ बोलकर चल दूं। लेकिन यह सोचकर हिम्मत नहीं हुई कि दोस्त क्या कहेगा। चोरी की एफ.आई.आर. करा दी तो और मुसीबत। सच बताऊं यदि मेरे पास मोटरसाइकिल होती तो मैं दो-तीन साल पहले ही तुम्हें कहीं इतनी दूर लेकर चला गया होता कि यहां किसी को भनक तक ना लगती। अब तक तो हमारा एक बच्चा भी हो गया होता।’
‘चल हट। इतनी जल्दी बच्चा-वच्चा नहीं। पहले यह बताओ कि मोटरसाइकिल नहीं मिली तो फिर क्या जो पुराना रेल डिब्बा खड़ा है मुझे उसमें बैठाकर ले जाओगे? क्या बिना इंजन के गाड़ी चलाओगे?’ यह कह कर युवती खिलखिला कर हंस पड़ी है।
युवक उसके सिर पर चपत लगाकर कह रह रहा है। ‘चुप कर पगली, पूरी बात सुनती नहीं। बस चिल्लाने लगती है बीच में। यह भी नहीं सोचती कि आसपास कोई सुन लेगा।’
‘तो बताओ ना। बार-बार तो कह रही हूं बोलो, जल्दी बोलो ना।’
युवती ने दोनों हाथों से युवक को पकड़ कर हिला दिया है। युवक कह रहा है, ‘देखो ट्रेन रात में साढ़े तीन बजे आती है। हम लोग शाम को ही घर नहीं पहुंचेंगे तो घरवाले ढूंढ़ना शुरू कर देंगे। वह इधर-उधर जाएंगे, बस स्टेशन जाएंगे, रेलवे स्टेशन जाएंगे। कोई जगह वो नहीं छोड़ेंगे। हर जगह जाएंगे। ऐसी हालत में बचने का एक ही रास्ता है कि हम लोग चुपचाप अंधेरा होते ही उसी डिब्बे में जाकर छुप जाएं। हम उस डिब्बे में होंगे, वह लोग ऐसा सोच भी नहीं पाएंगे। फिर यह सब रात होते-होते ढूंढ़-ढ़ांढ़ कर चले जाएंगे। जब रात को ट्रेन आएगी तो हम उसमें आराम से बैठकर अपनी दुनिया में पहुँच जाएंगे। अब बोल, इस प्लान से बढ़िया कोई प्लान हो सकता है क्या?’
‘सच में इससे अच्छा प्लान तो कुछ और हो ही नहीं सकता। और मेरे हीरो के अलावा और कोई बना भी नहीं सकता।’
युवती मारे खुशी के युवक के हाथ को अपने हाथों में लिए हुए है और पूछ रही है, ‘लेकिन यह बताओ, इतने बरसों से ट्रेन का डिब्बा वहां खड़ा है। अंदर ना जाने कितने सांप-बिच्छू, कीड़े-मकोड़े और पता नहीं क्या-क्या होंगे। कहीं सांप वगैरह ने काट लिया तो लोगों को भनक भी नहीं लगेगी और हम वहीं मरे पड़े रहेंगे। कोई कभी देख भी नहीं पाएगा।’
‘अरे, मेरी मोटी अक्ल, बीच में मत बोल। इतनी तो अक्ल होनी चाहिए कि अगर हम वहां मरे पड़े रहेंगे तो हमारी बॉडी सड़ेगी। उसकी बदबू अपने आप ही सबको बुला ही लेगी।’
‘चुप, चुप। इतनी डरावनी बात क्यों कर रहे हो।‘
‘मैं नहीं, तुम्हीं उल्टा-सीधा बोल रही हो। जब मैं कह रहा हूं कि तीन-चार दिन से इंतजाम में लगा हूं तो इन सारी बातों का भी ध्यान रखा ही होगा, यह तो तुम्हें समझना ही चाहिए ना। कॉमनसेन्स की बात है। सुनो, मैं चुपचाप डिब्बे के अंदर जाता था और वहां पर काम भर की जगह बनाता था। नौ-दस घंटे बैठने के लिए वहां पर काम भर का कुछ सामान भी रख दिया है। कई बोतल पानी और खाने का भी सामान है। कल घर से निकलने के बाद सबसे पहले हम यहीं मिलेंगे। इस नाले के अन्दर वह हमारी आख़िरी मुलाकात होगी। यहां से निकलने के बाद हम डिब्बे में जाकर छिप जाएंगे। एक बात बताऊं, ये नाला हमारा सबसे अच्छा दोस्त है। हमें सबकी आंखों से बचाकर कितने दिनों से मिलाता चला आ रहा है। इसे हम हमेशा याद रखेंगे।’
युवती युवक की बातें सुनते-सुनते उसकी जांघों पर सिर रखकर आराम से ऐसे लेट गई है जैसे कि घर जाना ही नहीं है। युवक के हाथ की उंगलियों से खेलती हुई कह रही है, ‘सच में ये नाला हमारा सबसे अच्छा दोस्त है। हमें सबकी नज़रों से बचाए रखता है। मगर यह बताओ अंधेरा होने के बाद डिब्बे में कुछ दिखाई तो देगा नहीं कि तुम हमारे साथ हो कि कोई और? वहां तो कुछ पता ही नहीं चलेगा कि तुम किधर हो, हम किधर हैं। पूरे डिब्बे में इधर-उधर भटकते टकराते रहेंगे। ऐसा ना हो कि हमें जाना कहीं है और अंधेरा हमें पहुंचा दे कहीं और।’
‘रहोगी एकदम ढक्कन ही। कितना कहता हूं कि थोड़ी अक्ल बढ़ाओ। तुम अपना मोबाइल लेकर आना। मैं भी अपना ले आऊंगा।’
‘लाने से फायदा भी क्या? मेरा मोबाइल चाहे जितना भी चार्ज कर लो, आधे घंटे में ही उसकी बैट्री खत्म हो जाती है।
‘तुम बैट्री की चिंता नहीं करो। मैंने एक पावर बैंक लेकर फुल चार्ज करके रख लिया है।’
‘और टिकट?’
‘टिकट, मैं दिन में ही आकर ले लूंगा और फिर शाम को ही डिब्बे में जाकर बैठे जाएंगे। ट्रेन के आने का टाइम होगा तो स्टेशन पर अनाउंसमेंट होगा। कुछ देर बाद ट्रेन की सीटी सुनाई देगी। तभी हम डिब्बे से निकल कर प्लेटफॉर्म के शुरूआती हिस्से में पहुंच जाएंगे। इसके बाद जो भी पहली बोगी मिलेगी, उसी में चढ़ लेंगे।’
‘तुम भी क्या बात करते हो। इतना सेकेंड-सेकेंड भर जोड़-गांठ कर टाइम सेट कर रहे हो। गाड़ी दो मिनट से ज़्यादा तो रूकती नहीं। मान लो प्लेटफॉर्म तक पहुंचने में मिनट भर की भी देरी हो गई तो ट्रेन तो चल देगी। हम प्लेटफॉर्म के शुरूआती हिस्से में होंगे तो दौड़कर चढ़ने का भी मौका नहीं मिलेगा और यदि ट्रेन तक पहुँच भी गए और तब तक स्पीड ज़्यादा हो गई तो कैसे चढ़ेंगे? कहीं तुम या मैं कोई स्टेशन पर ही छूट गया तो?’
‘ऐसा सोचकर डरो नहीं। डर गई तो अपने घर से ही नहीं निकल पाओगी। हमें थोड़ा तो खतरा मोल लेना ही पड़ेगा। ऐसा करेंगे कि जहां प्लेटफॉर्म खत्म होने वाला होता है वहीं कोने में थोड़ा पहले चल कर कहीं छिपे रहेंगे। जैसे ही ट्रेन उधर से निकलने लगेगी वैसे ही हम लोग इंजन के बाद वाली ही बोगी पर चढ़ लेंगे। उस समय तक ट्रेन की स्पीड इतनी ज़्यादा नहीं होती कि हम लोग चढ़ ना सकें।’
‘चलो, जैसे भी हो चलना तो हर हाल में है। जैसा कहोगे वैसा करूंगी। मुझे ठीक से समझाते रहो बस। तुम जानते ही हो कि मैं ढक्कन हूं। लेकिन ये बताओ आओगे कब?
युवती ने उसे कुछ देर पहले ढक्कन कहे जाने पर तंज़ करते हुए पूछा तो युवक के चेहरे पर हल्की मुस्कान उभर आई है। वह कह रहा है, ‘कल इसी टाइम। तुम यहीं मिलना। यहीं से निकल चलेंगे दोनों लोग।’
‘यह बताओ कि मान लो ट्रेन लेट हो गई तो?’
‘ओफ्फो, शुभ-शुभ बोलो ना। हर बार तुम गंदा ही काहे बोलती हो। उल्टा ही क्यों बोलती हो। सीधा नहीं बोल पाती क्या?’
‘नहीं मान लो अगर ऐसा हो गया, ट्रेन लेट हो गई। दो घंटा, तीन घंटा और सवेरा हो गया, तब क्या करेंगे?’
‘तब, तब हम लोग डिब्बे में ही बैठे रहेंगे। अगला फिर पूरा दिन वहीं बिताएंगे और जब फिर अगली रात को ट्रेन आएगी, तब जाएंगे।’
‘और टिकट, पहले वाला टिकट तो बेकार हो चुका होगा।’
‘अरे यार भेजा को एकदम उबाल काहे देती हो। सीधी सी बात है फिर दूसरा टिकट ले लेंगे।’
‘इसके लिए तो स्टेशन पर जाना ही पड़ेगा ना।’
‘देखो, अगर फिर टिकट लेने के लिए जाने में खतरा दिखेगा तो बिना टिकट ही चल देंगे।’
‘और टी.टी. ने पकड़ लिया तो।’
‘वहां पकड़े जाने पर इतनी दिक्कत नहीं आएगी। उससे रिक्वेस्ट कर लेंगे कि अर्जेंसी थी, टिकट नहीं ले पाए। टेªन छूट रही थी। जो जुर्माना हो वह दे देंगे, और सुनो अब जो भी बोलना अच्छा बोलना। कुछ उल्टा-सीधा मत बोलना कि यह हो गया तो, वह हो गया तो, अरे अच्छा बोलना कब सिखोगी? इतनी पकाऊ क्यों बनती जा रही हो।’
‘ढक्कन हूं, इसलिए।’
युवती यह कह कर हंसने लगी है। युवक उसके सिर पर प्यार भरी एक टीप मारकर कह रहा है, ‘चुप, अब किन्तु-परन्तु, लेकिन-वेकिन कुछ भी नहीं कहना। वरना बता देता हूं।’
‘देखो सावधानी तो बरतनी चाहिए ना। खाली अच्छा बोलने से तो अच्छा नहीं होने लगता ना। अच्छा यह बताओ घर से कुछ सामान भी लेकर चलना है क्या? जो-जो लेना है, वह तो बता दो ना।’
‘अजीब पगली लड़की है। घर में सामान रखना शुरू करोगी। उसे लेकर निकलोगी तो जिसे शक ना होना होगा वह भी जान जाएगा और तुरन्त पकड़ ली जाओगी।’
‘अरे कुछ कपड़े तो लूंगी। बाहर निकलूंगी तो क्या पहनूंगी, क्या करूंगी?’
‘तुम उसकी चिंता ना करो। हम कई साल ज़्यादा से ज़्यादा पैसा इकट्ठा करते आएं हैं। हमने काम भर का कर भी लिया है जिससे कि यहां से कोई सामान लेकर ना चलना पड़े। जो कपड़ा पहनें बस वही और कुछ नहीं। ताकि सामान के चक्कर में धरे ना जाएं। जब जरूरत होगी तब खरीद लेंगे।
सामान के नाम पर तुम केवल अपना आधार कार्ड, पढ़ाई के सर्टिफ़िकेट वगैरह ले आना। पॉलिथीन में रखकर सलवार में खोंस लेना, समझी। अब घर जाओ और कल इसी टाइम यहीं आ जाना। ऐसा ना करना कि मैं इंतजार करता रह जाऊं और तुम घर पर ही बैठी रहो।’
‘यह क्या कह रहे हो, मैं हर हाल में आऊंगी। ना आ पाई तो दुपट्टे से ही फांसी लगा लूंगी या फिर बाहर कुएं में कूदकर मर जाऊंगी। बहुत सालों से सूखा पड़ा है, ऊपर से पानी बरसता नहीं, नीचे पानी बचा नहीं है। मेरे खून से उसकी बरसों की प्यास बुझ जाएगी।’
‘हद कर दी है। अरे, तुम्हें मरने के लिए नहीं बोल रहा हूं। तुम मरोगी तो मैं भी मर जाऊंगा। कितनी बार बोल चुका हूं। समझती क्यों नहीं। इसलिए तुम यहां आओगी, हर हाल में आओगी और हमारे साथ चलोगी। कुछ बहाना करना क्या सोचना भी नहीं। थोड़ी बहुत देर हो जाए तो कोई बात नहीं। चलेगा। जितने काम कहे हैं वह सब आज ही कर लेना। कुछ भूलना नहीं।’
‘ठीक है, नहीं भूलूंगी। तुम भी भूलना नहीं। यह अच्छी तरह समझ लो, हमारा दिल बहुत धड़क रहा है। पता नहीं क्या होगा।’
युवती अचानक ही बड़ी गम्भीर हो गई है। चेहरे पर चिंता, भय की लकीरें उभर आईं हैं। उसका भ्रम दूर करते हुए युवक कह रहा है, ‘कुछ नहीं होगा। हमने सालों से तैयारी की है। तुम्हें हर हाल में लेकर चलेंगे। अपनी दुनिया बसाएंगे। अपनी तरह से रहेंगे। बहुत हो गयी सबकी। अब हम अपने मन की करेंगे। अच्छा, अब तुम जाओ, नहीं तो देर हो जाएगी। तुम्हारे घर वाले पचास ठो बात पूछेंगे, दुनिया भर की गालीगुत्ता करेंगे, मारेंगे।’
‘मारेंगे क्या, अम्मी अब भी चप्पलों से मारने लगती हैं तो गिनती नहीं। बस मारे चली जाएंगी। ऐसे मारती हैं जैसे कि कपड़ा धो रही हों। कोई गलती हो या नहीं। उन्हें मारना है तो मारेंगी। कहने को कोई बहाना भी नहीं ढ़ूंढ़ती।’
‘अब तुम्हें कोई छू भी नहीं पाएगा। बस एक दिन की ही बात रह गई है। ठीक है, जाओ कल मिलेंगे।’
‘इतनी बेरूखी से ना भेजो। बड़ा दुख हो रहा है।’
‘अभी प्यार का समय नहीं है। समझो इस बात को। इसलिए जाओ। हमेशा प्यार पाने के लिए थोड़ा दुख भी हंसते हुए सहना चाहिए।’
युवक युवती का हाथ मज़बूती से पकड़े-पकड़े कह रहा है। मन युवती का भी रुकने का है। लेकिन जाना जरूरी है। इसलिए वह कह रही है, ‘एक तरफ कह रहे हो जाओ-जाओ और हाथ छोड़ते ही नहीं। कुछ समझ ही नहीं पा रही हूं, क्या करना चाह रहे हो, क्या कहना चाह रहे हो?’
‘साफ-साफ तो समझा रहा हूँ। पता नहीं तेरी समझ में पहली बार में कोई बात क्यों नहीं आती? यहां पर प्यार दिखाने लगे और किसी ने देख लिया तो सारा प्यार निकल जाएगा। प्यार करेंगे, तुम्हें पूरा प्यार करेंगे। इतना करेंगे कि तुम ज़िंदगी भर भूल नहीं पाओगी। लेकिन अभी जाओ जिससे हम दोनों को ज़िंदगी भर प्यार करने को मिले, समझी। इसलिए अभी बेरूखी जरूरी है, जाओ।’
दुविधा में पड़ा युवक युवती का हाथ अब भी पकड़े रहा तो इस बार युवती हाथ छुड़ाकर चल दी। युवक ने उसका हाथ छोड़, उसे जाने दिया। असल में दोनों एक-दूसरे को पकड़े हुए थे और कोई किसी को छोड़ना नहीं चाहता था। मगर परिस्थितियों के आगे वो मज़बूर हैं। दोनों का प्यार इतना प्रगाढ़ हो गया है कि इनकी जीवन डोर दो से मिलकर एक हो गई है। चोटी की तरह मज़बूती से गुंथ गई है। इनके निश्छल प्यार, निश्छल बातों को हमें यूं ही हवा में नहीं उड़ा देना चाहिए।
यह दोनों किशोरावस्था को कुछ ही समय पहले पीछे छोड़ आए हैं। इनके बीच जब इस रिश्ते का बीज पड़ा तब यह किशोर थे। ये ना एक साथ पढ़ते हैं, ना ही पड़ोसी हैं। कभी-कभी आते-जाते बाज़ार में नज़र मिल जाती थी। पहले आंखों से बातें हुईं फिर जुबां से। जब बातें शुरू हुईं तो यह रिश्ता अंकुरित होकर आगे बढ़ने लगा, वह भी बड़ी तेज़ी से। अब देखिए यह कहां तक जाता है। कल दोनों फिर यहीं आएंगे। वचन तो यही दिया है। मैं यह वचन आपको दे रहा हूं कि तब मैं फिर आपको आँखों देखा दृश्य बताऊंगा। आगे जो होने वाला है वह बेहद दिलचस्प है। मैं गोधुलि बेला में आ जाऊंगा और आगे का हाल बताऊंगा।
मित्रों, पूरे चौबीस घंटे बीत चुके हैं। सूर्यास्त होने वाला है। केसरिया रंग का एक बड़े थाल बराबर गोला क्षितिज रेखा को छू चुका है यानी गोधुलि बेला है और मैं आपको दिये वचन को निभाने के क्रम में नाले किनारे आ गया हूं, आंखों देखा हाल बताने। युवक भी आ चुका है। उसकी बेचैनी देखिए कि दो घंटे पहले से ही आकर बैठा हुआ है, नाले में ही। कभी लेटता है, कभी बैठता है। इंतजार कर रहा है। इतना बेचैन है कि उसी में उलट-पुलट जा रहा है। पसीने से तर है, चेहरा लाल हो रहा है। कभी घास उखाड़-उखाड़ कर फेंक रहा है, कभी कोई तिनका मुंह में रख कर दूर उछाल रहा है।
लेकिन पहाड़ सा उसका इंतजार, बेचैनी खत्म ही होने वाली है। वह युवती दूर से जल्दी-जल्दी आती मुझे दिखाई दे रही है। इधर युवक फिर लेट गया है पेट के बल और युवती मुंडेर पर पहुँच कर बड़ी सतर्क नज़रों से हर तरफ देख रही है। उसे कोई खतरा नहीं दिखा तो वह बिल्ली की तरह फूर्ति से नाले में उतरकर युवक से लिपट गई है। एकदम दुबकी हुई है। उसको देखते ही युवक भनभना रहा है। अब आप सुनिए उनकी बातें, जानिए आज क्या करने वाले हैं ये दोनों।
‘कितनी देर कर दी, मालूम है तुम्हें। दो घंटे से यहां इंतजार कर रहा हूं।’
‘लेकिन मैं तो आधा घंटा ही देर से आई हूं। तुम दो घंटे पहले ही आ गये तो मेरी क्या गलती।’
‘अरे आधे घंटे की देरी कोई देरी ही नहीं है क्या?’
‘जानती हूं, लेकिन क्या करें। आज तो निकलना ही मुश्किल हो गया था। छोटे भाई ने कुछ उठा-पटक कर दी थी। अम्मी पहले से ही ना जाने किस बात पर गुस्सा थीं। बस उन्होंने पूरे घर को बवाले-ए-घर बना दिया। आज जितनी मुश्किल हुई निकलने में, उतनी पहले कभी नहीं हुई थी। दुनिया भर का बहाना बनाया, ड्रामा किया कि यह करना है, वह करना है, सामान लाना है। तब जाकर बोलीं, ‘जाओ और जल्दी आना।‘
मगर साथ ही भाई को भी लगा दिया। तो मैंने कहा, दर्जी के यहां भी जाना है। उसके यहां से काम ले कर आना है। ये रास्ते भर शैतानी करता है। इसे नहीं ले जाऊंगी। यह बात मानी तो एक काम और जोड़ दिया कि तरकारी भी लेती आना। घंटों क्या-क्या तरकीबें अपनाई, बता नहीं सकती। उनकी जिद देखकर तो मुझे लगा कि शायद अम्मी को शक हो गया है और मुझे अब सूखे कुंए में जान देनी ही पड़ेगी।’
युवती ने बहुत ही धीमी आवाज़़ में अपनी बात कहकर युवक का हाथ पकड़ कर चूम लिया है। उसकी हालत देखकर युवक कह रहा है, ‘वह तो ठीक है लेकिन ये कपड़ा कैसा पहन लिया है? एकदम खराब। रोज तो इससे अच्छा पहनती थी।’
‘क्या करूं, ज़्यादा अच्छा वाला पहनने का मौका ही नहीं मिल पाया। उनका गुस्सा देखकर तो मुझे लग रहा था कि आज घर से बाहर क़दम निकाल ही नहीं पाऊंगी। मैं यही कोशिश करती रही कि किसी तरह निकलूं यहां से। अच्छा कपड़ा भी रात में ही अलग कर लिया था। लेकिन मौका नहीं मिला तो सोचा जो मिल गया, वही सही। जल्दी में यही हो पाया। हम इतना डरे हुए थे कि दिल अभी तक घबरा रहा है। मैं बार-बार पानी पी रही थी। लेकिन फिर भी पसीना आ रहा था।’
‘चलो अच्छा, कोई बात नहीं, जैसा होगा देखा जाएगा। सारे पेपर्स रख लिए हैं ना?’
‘हां, जो-जो कहा था वह सब पॉलिथीन में रख के सलवार में खोंस लिया है। अब बताओ क्या करना है?’
युवती कुर्ते को थोड़ा सा ऊपर उठाकर दिखाते हुए कह रही है। युवक पेपर्स को देखकर निश्चिंत होकर कह रहा है, ‘बहुत अच्छा। ये पेपर्स हमारे सिक्युरिटी गॉर्ड हैं। अब यहां से जल्दी से जल्दी चल देना है। दस-पंद्रह मिनट भी देर होने पर तुम्हें घर वाले ढ़ूंढ़ना शुरू कर देंगे। इसलिए तुरन्त चलो।’ इसी के साथ युवक सिर नाले से ऊपर कर चारों तरफ एक नज़र डाल रहा है। उसे रास्ता साफ दिखा तो वह नाले से बाहर निकलते हुए कह रहा है, ‘आओ जल्दी। जल्दी-जल्दी क़दम बढ़ाओ और बात बिल्कुल ना कर। हमें थोड़ा आगे-आगे चलने दे।’
दोनों अपनी पूरी ताक़त से बड़ी तेज़ चाल से चल रहे हैं। लग रहा है कि बस दौड़ ही पड़ेंगे। उधर क्षितिज रेखा पर कुछ देर पहले तक दिख रहा केसरिया बड़े थाल सा अर्ध घेरा भी कहीं गायब हो गया है। बस धुंधली लालिमा भर रह गई है। आपने यह ध्यान दिया ही होगा कि दोनों कितने तेज़, होशियार हैं। कितने दूरदर्शी हैं कि यदि कहीं पुलिस पकड़ ले तो वह अपने सर्टिफ़िकेट्स दिखा सकें कि वह बालिग हैं और जो चाहें वह कर सकते हैं। क्या आप यह मानते हैं कि आज की पीढ़ी का आई.क्यू. लेविल आपकी पीढ़ी से बहुत आगे है। इस बारे में आप सोचते-समझते रहिए। फिलहाल वह दोनों तेज़ी से, सावधानी से आगे बढ़े जा रहे हैं। युवक ने बातें ना करने की चेतावनी दी थी, लेकिन बातें फिर भी हो रही हैं... सुनिए। युवती बिदकती हुई कह रही है।
‘ठीक है, ठीक है, तुम चलो आगे-आगे।’ कुछ ही मिनट चलने के बाद फिर कह रही है, ‘डिब्बा कितना ज़्यादा दूर है। पहले लगता था जैसे सामने खड़ा है। अब चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं और डिब्बा है कि पास आ ही नहीं रहा। लग रहा है जैसे वह भी हमारी ही चाल से और आगे चला जा रहा है।’
‘तुमसे कहा ना। चुपचाप चलती रहो। बोलो नहीं। अगल-बगल कोई हो भी सकता है। सुन सकता है।’
‘ठीक है।’ दरअसल चलने में युवक को तो कम युवती को ज़्यादा तकलीफ हो रही है। दोनों एबॉन्डेण्ड बोगी की तरफ जिस रास्ते से आगे बढ़ रहे हैं। वह एक बड़ा मैदान है। झाड़-झंखाड़, घास से भरा उबड़-खाबड़। इसीलिए युवती फिर परेशान होकर कह रही है, ‘पंद्रह-बीस मिनट हुए चलते-चलते। अब जाकर डिब्बा दिखना शुरू हुआ।’
‘हां, लेकिन सामने की तरफ से नहीं चलेंगे, उधर लाइट है। रेलवे ने भी इधर ही सबसे बड़ी लाइट लगवाई है।’
युवक ने लाइट से बचने के लिए थोड़ा लम्बा वाला रास्ता पकड़ा हुआ है। जो झाड़-झंखाड़ से ज़्यादा भरा हुआ है। युवती बड़ी डरी-सहमी हुई उससे एकदम सटकर चलना चाह रही है, तो युवक कह रहा है। ‘तुम एकदम मेरे साथ नहीं रहो। थोड़ा पीछे रहो।’
‘लेकिन मुझे डर लग रहा है। पता नहीं कौन-कौन से कीड़े-मकोड़ों की अजीब सी आवाजें आ रहीं है। कहीं सांप-बिच्छू ना हों।’
‘मैं हूं तो साथ में। बिल्कुल डरो मत, फुल लाइट में रहे तो बे-मौत मारे जाएंगे। इसलिए इधर से ही जल्दी-जल्दी चल। बहस मत कर।’
‘ठीक है।’
दोनों उबड़-खाबड़, टेढ़े-मेढ़े रास्ते से होते, लड़खड़ाते, गिरते-पड़ते करीब आधे घंटे में डिब्बे तक पहंुच ही गए हैं। दोनों के हाथ, पैर, चेहरे कई जगह छिले हुए हैं। अंधेरा घना हो चुका है और कोई समय होता तो लड़की इतने अंधेरे में बड़े-बड़े झाड़-झंखाड़ों, कीड़ों-मकोड़ों, झींगुरों की आवाज़़ से सहम जाती, डर कर बेहोश हो जाती। लेकिन पकड़े जाने के डर, युवक के साथ ने इतना हौसला बढ़ा रखा है कि अब वह पूरी हिम्मत के साथ बरसों से खड़ी, कबाड़ बन चुकी बोगी में चढ़ रही है। बेहिचक। युवक जल्दी चढ़ने को कह रहा है तो सुनिए वह क्या बोल रही है।
‘चढ़ तो रही हूं। इतनी तो ऊंची सीढ़ी है।’
‘अरे, तो क्या तुम समझती हो कि तुम्हारे घर के दरवाजे की सीढ़ी है।’
युवक उसे नीचे से सहारा देते हुए कह रहा है तो वह बोल रही है, ‘छोड़ो मुझे, मैं चढ़ गई। आओ, तुम भी जल्दी आओ।’
‘तू आगे बढ़ तब तो मैं अन्दर आऊं। और मुंह भी थोड़ा बंद रख ना। ज़्यादा बोल नहीं।’
युवक डिब्बे में आने के बाद आगे हो गया, युवती पीछे। कूड़ा-करकट, धूल-गंदगी से भरी बोगी में आगे बढ़ते हुए युवक कह रहा है। ‘सबसे पहले इधर बीच में आओ, इस तरफ। हमने जगह इधर ही बनाई है।’
युवती मोबाइल की बेहद धीमी लाइट में बहुत संभलते हुए उसके पीछे-पीछे चल रही है। रास्ते में शराब की खाली पड़ी बोतलों से उसका पैर कई बार टकराया तो बोतलें घर्रर्र करती हुईं दूर तक लुढ़कती चल गईं। युवक ने उसे संभलने को कहा। मांस खाकर फेंकी गई कई हड्डियों से भी युवती मुश्किल से बच पाई है। वह जब युवक द्वारा बोगी के बीचो -बीच बनाई गई जगह पर पहुंची तो वहां देखकर बोली, ‘अरे, यहां तो तुमने चटाई-वटाई सब डाल रखी है। बिल्कुल साफ-सुथरा बना दिया है।’
‘वाह! पानी भी रखा है।’
‘हां थोड़ा सा पानी पी लो। हांफ रही हो।‘
‘तुम भी पी लो, तुम भी बहुत हांफ रहे हो और सुनो सारे दरवाजे बंद कर दो।‘
‘नहीं, दरवाजा जैसे सालों से है वैसा ही पड़ा रहने दो। नहीं तो किसी की नजर पड़ी तो ऐसे भले ध्यान ना जाए, लेकिन बदली हुई स्थिति उसका ध्यान खींच लेगी। फिर वह चेक भी कर सकता है। इसलिए चुपचाप बैठी रहो। बोलो नहीं।’
दोनों चटाई पर बैठ गए हैं। वहीं पानी की बोतलें, खाने की चीजों के कई पैकेट भी रखे हैं। बोगी की सीटें बेहद जर्जर हालत में हैं। इसलिए युवक ने नीचे ज़मीन पर ही बैठने का इंतजाम किया है। युवक के मोबाइल ऑफ करते ही युवती उसे टटोलते हुए कह रही है, ‘लेकिन मोबाइल क्यों ऑफ कर दिया, ऑन कर लो थोड़ी सी लाइट हो जाएगी। इतना अंधेरा है कि पता ही नहीं चल रहा कि तुम किधर हो।‘
‘नहीं। एकदम नहीं। जरा सी भी लाइट बाहर अंधेरे में दूर से ही चमकेगी। किसी की नज़र में आ जाएगी। बेवजह खतरा क्यों मोल लें। शांति से बैठे रहना ही अच्छा है।’
‘ठीक है। लेकिन पूरी रात ही बैठना है। बस अपने आसपास ही लाइट रहती तो भी अच्छा था। खैर अभी कितना टाइम हो गया है?‘
‘अभी तो साढ़े सात ही हुआ है।‘
‘बाप रे! अभी तो पूरे आठ-नौ घंटे यहां बैठना पड़ेगा। इतने घने अंधेरे में कैसे बैठेंगे? डर लग रहा है।’
‘हम हैं ना। तो काहे को डर लग रहा है।’
‘इतना अंधेरा है इसलिए। कितनी तो शराब की बोतलें, हड्डियां पड़ी हैं। सब पैर से टकरा रहीं थीं। यहां के सारे शराबी यहीं अड्डा जमाए रहते हैं क्या? बदबू भी कितनी ज़्यादा हो रही है।’
‘पहले जमाए ही रहते थे, लेकिन पिछले महीने एक चोर को पुलिस ने यहीं से पकड़ कर निकाला था। उसको बहुत मारा था। उसके बाद से सारे चोर-उचक्के पीने-पाने वाले इधर का रुख नहीं करते। मैंने इन सारी चीजों का ध्यान पहले ही रखा था। लेकिन तुम मुझे इतना कसकर क्यों पकड़े हुए हो?’
‘नहीं मुझे अपने से अलग मत करो। मुझे बहुत ज़्यादा डर लग रहा है। इतना अंधेरा, ऊपर से सांप-बिच्छू, कीड़े-मकोड़े, झींगुर सब कितना शोर कर रहे हैं।’
‘क्या बार-बार एक ही बात बोल रही हो। मैं छोड़ने नहीं थोड़ा आसानी से रहने को कह रहा हूं। तुम तो इतना कसकर पकड़े हुए हो जैसे अखाड़े में दंगल कर रही हो। ये आवाजें डिब्बे के अंदर से नहीं, बाहर झाड़ियों से आ रही हैं। सांप-बिच्छू, कीड़े-मकोड़े जो भी हैं, सब बाहर हैं। इसलिए डरो नहीं। तुम तो इतना कांप रही हो जैसे बर्फीले पानी से नहाकर पंखे के सामने बैठ गई हो।’
‘मुझे बहकाओ नहीं। इतनी ही जगह तो साफ की है ना। बाकी पूरी बोगी तो वैसे ही है। सारे कीड़े-मकोड़े जहां थे अब भी वहीं हैं। आवाजें अन्दर से भी आ रही हैं। कहीं सारे कीड़े-मकोड़े सूंघते-सूंघते यहीं हमारे पास ना चले आएं। सबसे बचने के लिए इन सांप-बिच्छूओं के बीच में तो हम आ गए हैं। अब यहां से निकलेंगे कैसे?’
युवती बहुत ही ज़्यादा घबराई हुई है। युवक को इतना कसकर पकड़े हुए है जैसे कि उसी में समा जाना चाहती हो। उसकी बात शत-प्रतिशत सही थी कि बाहर की तरह तमाम जीव-जंतु बोगी में भी भरे पड़े हैं। जो उन तक पहंुच सकते हैं। लेकिन युवक उसे हिम्मत बंधाए रखने के उद्देश्य से झूठ बोलता जा रहा है, कह रहा है कि, ‘जैसे घर से यहां तक आ गए हैं, वैसे ही यहां से निकलेंगे भी। शांति से, आराम से, सब ठीक हो जाएगा। इसलिए डरो नहीं। कीड़े-मकोड़े छोटे-मोटे हैं। आएंगे भी तो भगा देंगे या मार देंगे।’ मगर युवती का डर, उसकी शंकाएं कम नहीं हो रही हैं। वह पूछ रही है, ‘मान लो थोड़ी देर को कि मुझे यहां कुछ काट लेता है और मुझे कुछ हो गया तो तुम क्या करोगे?’
युवती के इस प्रश्न से युवक घबरा गया है। इस अंधेरे में भी युवती को बांहों में कसकर जकड़ लिया है और कह रहा है, ‘मत बोल ऐसे। तुझे कुछ नहीं होगा। मुझसे बड़ी भारी भूल हुई। मुझे पूरी बोगी साफ करनी चाहिए थी। मेरे रहते तुझे कुछ नहीं होगा। ऐसा कर तू मेरी गोद में बैठ जा। कीड़े-मकोड़े तुझ तक मुझसे पहले पहंुच ही नहीं पाएंगे। मेरे पास जैसे ही आएंगे मैं वैसे ही मार डालूंगा।’
युवक की बात सुनकर युवती ने उसे और कस लिया है। बहुत भावुक होकर कह रही है, ‘तुम मुझसे इतना प्यार करते हो। मुझे कोई कीड़ा-मकोड़ा काट ही नहीं सकता। लेकिन एक चीज़ बताओ, तुम्हें डर नहीं लगता क्या?’
‘सांप-बिच्छुओं से बिल्कुल नहीं। लेकिन हमारे परिवार, गांव वालों, पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर जो हाल होगा उससे डर लग रहा है। हम इंसान हैं और इंसानों से ही बच रहे हैं। क्योंकि जब ये पकड़ेंगे हमें , तो जीते जी ही हमारी खाल उतार लेंगे। जिंदा नहीं छोड़ेंगे, उससे डर लगता है। इज़्ज़त के नाम पर ये इंसान इतने क्रूर हो जाते हैं कि इनकी क्रूरता से क्रूरता भी थर्रा उठती है। ऑनर किलिंग की कितनी ही तो घटनाएं पढ़ता रहता हूं।
एक में तो लड़के-लड़की को धोखे से वापस बुलाकर शरीर के कुछ हिस्सों को जलाया और तड़पाया। फिर खेत में कंडों व भूंसों के ढेर में ज़िंदा जला दिया। मुझे इसी से अपने से ज़्यादा तुम्हारी चिंता है कि पकड़े जाने पर तुम पर तुम्हारे घर वाले कितना अत्याचार करेंगे। तुम्हें कितना मारेंगे और मैं, तुम पर अत्याचार करने वाले को मार डालूंगा या फिर खुद ही मर जाऊंगा। इसलिए शांति से रहो। एकदम डरो नहीं। मैं तेरे साथ में हूं। मेरे पास इसी तरह चुपचाप बैठी रहो।’
‘ठीक है, मुझे ऐसे ही पकड़े रहना, छोड़ना नहीं। मैं एकदम चुप रहूंगी।’
‘ठीक है, लेकिन पहले यह बिस्कुट खाकर पानी पी लो। तुम्हारी हालत ठीक हो जाएगी। तुम अब भी कांप रही हो।’
युवक ने युवती को बिस्कुट-पानी दिया तो वह उसे भी देते हुए कह रही है, ‘लो तुम भी खा लो, तुम भी बहुत परेशान हो। मेरी वजह से तुम्हें बहुत कष्ट हो रहा है ना।’
‘नहीं, तुम्हारी वजह से नहीं। इस दुनिया के लोगों के कारण मुझे कष्ट हो रहा है। हम यहां इन्हीं लोगों के कारण तो हैं। आखिर यह लोग हम लोगों को अपने हिसाब से ज़िंदगी जीने क्यों नहीं देते। हर काम में यह इज़्ज़त का सवाल है। आखिर यह सवाल कब तक बना रहेगा।
अरे लड़का-लड़की बड़े हो गए हैं। तुमको जो करना था वह तुम कर चुके। अब उन्हें जहां जाना है, जिसके साथ जाना है, उनके साथ जाने दो, ना कि यह हमारे धर्म का नहीं है, दूसरे धर्म का है, वह हमारी जाति का नहीं है, ऊंची जाति वाला है, नीची जाति वाला है। आखिर धर्म-जाति, रीति-रिवाज, परम्परा के नाम पर यह सब नौटंकी काहे को पाले हुए हैं।’
‘अरे चुप रहो, तुम तो बोलते ही चले जा रहे हो, वह भी इतना तेज़ और हमसे कह रहो कि चुप रहो, चुप रहो।’
‘क्या करूं। इतनी गुस्सा आ रही है कि मन करता है इन सबको जंगल में ले जाकर छोड़ दूं। कह दूं कि जब हर इंसान को उसके हिसाब से जीने देने का अधिकार देने की आदत डाल सको तो इंसानों के बीच में आ जाना। ‘अच्छा सुनो, आवाज़़ बाहर तक जा रही होगी। हम दोनों अब चुप ही रहेंगे।’
‘ठीक है, नहीं बोलूंगी, लेकिन सुनो किसी ट्रेन की आवाज़़ आ रही है।’
‘कोई मालगाड़ी होगी। पैसेंजर गाड़ी तो साढ़े तीन बजे है, जो हम दोनों को यहां से दूर, बहुत दूर तक ले जाएगी।’
‘पैसेंजर है तो हर जगह रुकते-रुकते जाएगी।’
‘नहीं अब पहले की तरह पैसेंजर ट्रेन्स भी नहीं चलतीं कि रुकते-रुकते रेंगती हुई बढ़ें। समझ लो कि पहले वाली एक्सप्रेस गाड़ी हैं जो पैसेंजर के नाम पर चल रही हैं। यहां से चलेगी तो तीन स्टेशन के बाद ही इसका पहला स्टॉपेज है।’
‘सुनो, तुम सही कह रहे थे। देखो मालगाड़ी ही जा रही है।’
‘हां।’
‘लेकिन तुम इतना दूर क्यों खिसक गए हो। मेरे और पास आओ ना। मुझे पकड़ कर बैठो।’
‘पकड़े तो हूं। और कितने पास आ जाऊं? अब तो बीच में से हवा भी नहीं निकल सकती।’
‘नहीं। हम दोनों के मुंह के बीच से हवा निकल रही है। इसलिए और पास आ जाओ। इतना पास आ जाओ कि मुंह के बीच में से भी हवा ना निकल पाए।’
‘लो, आ गया। अब कहने को भी बीच से हवा नहीं निकल पाएगी।’
‘बस ऐसे ही ज़िंदगी भर साथ रहना।’
‘ये भी कोई कहने की बात है।’
‘पता नहीं कहने की बात है या नहीं लेकिन टाइम क्या हो रहा है?’
‘अरे, कितनी बार टाइम पूछोगी?’
‘टाइम ही तो पूछा है, इतना गुस्सा क्यों हो रहे हो।’
‘गुस्सा नहीं हो रहा हूं। जानती हो एक घंटे में तुम यह आठवीं बार टाइम पूछ रही हो।‘
‘पता नहीं। मैं तुम्हारी तरह गिनतीबाज़ नहीं हूं। मुझे डर लग रहा है, इसलिए बार-बार सोच रही हूं कि कितनी जल्दी ट्रेन आ जाए और हम लोग यहां से निकल चलें।’
‘टेªन अपने टाइम से ही आएगी। हमारे टाइम या सोचने से नहीं।’
‘फिर भी बताओ ना।’
‘अभी साढ़े आठ बजे हैं, ठीक है। अब टाइम पूछ-पूछ कर शोर न करो। कोई आसपास सुन भी सकता है। समझती क्यों नहीं।’
‘इतना धीरे बोल रही हूं बाहर कोई नहीं सुन पाएगा।’
‘फिर भी क्या ठिकाना।’
‘लो, इतनी बात कह डाली मगर टाइम नहीं बताया।’
‘हद कर दी, अभी बताया तो कि साढ़े आठ बजे हैं। सुनना भी भूल गई हो क्या?’
‘इतना अंधेरा है, ऊपर से जब गाड़ी का टाइम कम ही नहीं हो रहा है तो क्या करूं।’
‘तुम चुपचाप बैठी रहो बस और कुछ ना करो। सब ठीक हो जाएगा। मैं हूं ना, मुझ पर भरोसा रखो। तुमको परेशान होने, डरने की जरूरत नहीं है।’
‘परेशान नहीं हूं। तुम पर भरोसा करती हूं, तभी तो सब छोड़-छाड़ कर तुम्हारे साथ हूं।’
युवक युवती की व्याकुलता, तकलीफों से परेशान हो उठा है। उसे उस पर बड़ी दया आ रही है कि कैसे उसे आराम दे। यह सोचते हुए उसने कहा, ‘ऐसा करो तुम सो जाओ, अभी बहुत टाइम बाकी है।’
‘कहां सो जाऊं? यहां क्या बिस्तर लगा है जो मैं सो जाऊं।’
‘बिस्तर तो नहीं है लेकिन इस पर लेट कर आराम कर सकती हो। इसलिए इसी पर लेट जाओ। टाइम होने पर मैं तुम्हें उठा दूंगा।’
युवक की बातों से युवती बहुत भावुक हो रही है। कुछ देर चुप रहने के बाद कह रही है। ‘मैं सो जाऊं, आराम करूं और तुम जागते रहो।’
‘और क्या, एक आदमी को तो जागना ही पड़ेगा। नहीं तो गाड़ी आकर निकल जाएगी और पता भी नहीं चलेगा।’
‘ठीक है तो दोनों जागेंगे।’
यह लीजिए। यह कहते हुए युवती युवक से लिपट गई है। उसे बांहों में भर लिया है। दोनों अब अंधेरे में अभ्यस्त हो गए हैं। एक मोबाइल बहुत कम ब्राइटनेस के साथ ऑन करके युवक ने जमीन पर उल्टा करके रखा हुआ है। उसके एक सिरे पर नीचे कागज़ मोड़कर रख दिया है जिससे मोबाइल एक तरफ हल्का सा उठा हुआ है और आसपास कहने को कुछ लाइट हो रही है। युवक बड़े प्यार से युवती की पीठ सहलाते हुए कह रहा है, ‘जिद क्यों कर रही हो। अभी बहुत टाइम है। तुम्हारा साढ़े तीन बजे तक बैठे रहना अच्छा नहीं है। थक जाओगी फिर आगे चलना बहुत मुश्किल हो जाएगा।’
‘ऐसा करते हैं ना, पहले मैं सो लेती हूं, उसके बाद तुम सो लेना। थोड़ी-थोड़ी देर दोनों सो लेते हैं।’
‘तुम्हें ये क्या हो गया है कि सोने के ही पीछे पड़ी हो।’
‘तुम अकेले बहुत ज़्यादा थक जाओगे इसीलिए कह रही हूं।’
‘ऐसा है तुम लेट जाओ। चलो इधर आओ। अपने पैर सीधे करो और सिर मेरे पैर पर रख लो। ऐसे ही लेटी रहो।’
युवती की जिद से खीझे युवक ने एक तरह से उसे खींचते हुए जबरदस्ती लिटा लिया है। वह लेटती हुई कह रही है, ‘देखो जागते रहना, तुम भी सो मत जाना।’
‘मेरी चिंता मत करो। मैं तभी सोऊंगा जब यहां से सही-सलामत निकलकर दिल्ली पहुंच जांऊगा।’
‘ये बताओ दिल्ली ही क्यों चल रहे हो?’
‘क्योंकि वहां पर बहुत सारे लोग हैं। इसलिए वहां हमें कोई ढ़ूंढ़ नहीं पाएगा।’
‘पहले कभी गए हो वहां, जानते हो वहां के बारे में।’
‘पहले कभी नहीं गया। थोड़ा बहुत जो जानता हूं वह यू-ट्यूब, गूगल, पेपर वगैरह में जो भी पढ़ा-लिखा, देखा, बस वही जानता हूं।’
‘कहां रुकेंगे और क्या करेंगे?’
‘पहले यहां से निकलने की चिंता करो। वहां पहुंचकर देख लेंगे।’
‘हां, सही कह रहे हो।’
यह दोनों भी गजब के हैं। एक-दूसरे को बार-बार चुप रहने को कहते हैं, लेकिन बातें अनवरत करते जा रहे हैं। इसी समय फिर बोगी के आसपास कुछ आहट हुई है। सजग युवक उसे चुप कराते हुए कह रहा है ‘एकदम शांत रहना, लगता है कोई इधर से निकल रहा है।’
‘तुम्हें कैसे पता चला, हमें तो कोई आवाज़़ सुनाई नहीं दे रही।’ युवती फुसफुसाती हुई कह रही है।
‘झाड़ियों की सरसराहट नहीं सुन रही हो। अभी तुम चुप रहो, बाद में बताएंगे।’
इस समय दोनों एकदम सांस रोके हुए पड़े हैं। हिल-डुल भी नहीं रहे हैं। सच में भयभीत कर देने वाला दृश्य है। झाड़ियों से सरसराहट की ऐसी आवाज़़ आ रही है मानो कोई बड़ा जानवर उनके बीच से निकल रहा है। बोगी के एकदम करीब आकर सरसराहट की आवाज़ रुक गई है। मगर किसी जानवर की बहुत हल्की गुर्राहट, साथ ही नथुने से तेज़ सूंघने जैसी आवाज़ आ रही है। जैसे वह सूंघ कर आसपास क्या है यह जानना चाह रहा है।
भय से संज्ञा-शून्य कर देने वाला माहौल बना हुआ है। करीब तीन-चार मिनट बाद सरसराहट फिर शुरू हुई है और अब दूर जाती हुई गायब हो गई है। अब तक दोनों सांस रोके हुए बैठे हैं। युवती डर के मारे पसीने से तर हो रही है। उसकी सांसें इतनी तेज़ चल रही हैं कि जैसे वह कई किलोमीटर लगातार दौड़कर आई है। उसकी धड़कन की धुक-धुक साफ सुनाई दे रही है। झाड़ियों में हलचल खत्म होने के बाद वह कह रही है।
‘तुम सही कह रहे थे, झाड़ियों में से कुछ लोग निकले तो जरूर हैं।’
‘जिस तरह से तेज़ आवाज़़ हो रही थी झाड़ियों में उससे एक बात तो पक्की है कि कोई जानवर था। बड़ा जानवर। कुछ आदमियों के निकलने से ऐसी आवाज़ नहीं आती।’
‘तो हम लोग यहां पर सुरक्षित हैं ना।’
‘हां, हम सुरक्षित हैं। लेकिन खतरा तो बना ही हुआ है।’
‘खतरा ना होता तो हम यहां...।’
इसी समय बाहर फिर आवाज़ होने पर युवक बड़ी फुर्ती से युवती को चुप करा रहा है, ‘चुप चुप, सुन, मेरा मन कह रहा है की झाड़ियों में अब जो आवाज़ हुई है वह किसी जानवर की नहीं है। मुझे लगता है कि कई लोग हमें एक साथ ढूंढ रहे हैं। नौ बज गया है। हमारे घर वाले ही होंगे। कई लोग एक साथ निकले होंगे।’ यह सुनकर युवती हड़बड़ा कर उठ बैठी है। थोड़ा झुँझलाया हुआ युवक कह रहा है, ‘इस तरफ से ज़्यादा आवाज़ आई है। इसलिए चुपचाप लेटी रहो। बैठ क्यों गई?’
‘क्योंकि अब मुझसे और नहीं लेटा जाता।’
‘ठीक है, बैठी रहो, लेकिन इतना डर क्यों रही हो? मुझे इतना जकड़े जा रही हो, लगता है जैसे मेरी हड्डी-पसली तोड़ने की कोशिश कर रही हो।’
‘मुझे ऐसे ही पकड़े रहने दो। मुझे बहुत ज़्यादा डर लग रहा है। छोड़ दूंगी तो मेरी तो सांस ही ýक जाएगी।’
‘इतना डरने से काम नहीं चलेगा। इतना ही डरना था तो घर से निकलती ही ना। मैंने तुम्हें पहले ही कितनी बार बताया था कि हिम्मत से काम लेना पड़ेगा, तभी निकल पाएंगे। डरने से कुछ नहीं होगा, समझी। इस तरह डरोगी तो ऐन टाइम पर सब गड़बड़ कर दोगी। सबसे अच्छा है कि इस समय कुछ भी बोलो ही नहीं। रात गहराती जा रही है, ढूंढ़ने वाले पूरी ताकत से चारों तरफ लगे होंगे। सब इधर-उधर घूम रहे होंगे। इसलिए एकदम सांस रोक के लेटी रहो या बैठी रहो। जैसे भी रहो, आवाज़ बिल्कुल भी नहीं करो, जिससे मुझे कुछ बोलने के लिए मजबूर ना होना पड़े।’
‘लेकिन सुनो।’
‘हां बोलो।’
‘मतलब यह कि मुझे, मुझे जाना है.. मतलब कि...। तुमने वहां भी तो देख लिया था ना सब कुछ। सब ठीक है ना। दरवाजा बंद तो नहीं है।’
‘पता नहीं, इसका तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि इतने घंटों तक रहेंगे तो बाथरूम भी जाना पड़ेगा। अच्छा तुम यहीं पर लेटी रहो, मैं देखकर आता हूं किधर ठीक-ठाक है। फिर ले चलता हूं।’
‘नहीं। मैं भी साथ चलूंगी। यहां मैं अकेले नहीं रुकूंगी।’
‘ठीक है आओ।’
युवक युवती का हाथ पकड़कर एकदम झुके-झुके बाथरूम के पास पहुँच गया है। लाइट के लिए बीच-बीच में मोबाइल को ऑन कर रहा है। बाथरूम में नज़र डाल कर कह रहा है, ‘देखो बाथरूम तो गंदा पड़ा है। दरवाजा भी एकदम खराब है। आधा खुला है, जाम है, बंद भी नहीं होगा।’
घबराई युवती और परेशान हो उठी है। वह बड़ी जल्दी में है। कह रही है, ‘बंद नहीं होगा, तो मैं जाऊंगी कैसे?’
‘देखो दरवाजा बहुत समय से जाम है। बंद करने के चक्कर में आवाज़ हो सकती है समझी। मैं नहीं चाहता कि इस तरह का कोई खतरा उठाऊं। मैं इधर ही खड़ा हूं तुम जाओ अंदर।’
लग रहा है कि युवती के पास समय नहीं है। वह कह रही है, ‘मोबाइल की टॉर्च तो जला दो।’
‘पगली हो क्या? बार-बार कह रहा हूं कि लाइट इस अंधेरे में बहुत दूर से ही लोग देख लेंगे। स्क्रीन लाइट ही बहुत है। समझ लो दीये की रोशनी में हो। ठीक है। जल्दी से जाओ।’
‘अच्छा तुम यहीं खड़े रहना, कहीं जाना नहीं।’
‘ठीक है, मैं यहीं बगल में खड़ा हूं।’
‘नहीं, और इधर आओ। मुझसे दूर नहीं जाओ।’ डर के मारे युवती ýआंसी हो रही है। लेकिन युवक हिम्मत बढ़ा रहा है।
‘तुम तो एकदम छोटी बच्ची जैसी हरकत कर रही हो।’
‘डांटो नहीं। नहीं तो मेरी ज़ान ही निकल जाएगी।‘
‘डांट नहीं रहा हूं। तुम्हें समझा रहा हूं, रिस्क लेना अच्छा नहीं है। अब जाओ जल्दी से।‘
हड़बड़ाती, लड़खड़ाती, सहमी सी युवती अब बाथरूम से होकर लौट रही है। उसकी आंखों में आंसू चमक रहे हैं। सुनिए अब क्या कह रही है, ‘चलो, अब उधर चलो। एक मिनट रुकने को कहा तो दुनिया भर की बातें सुना डाली। तुम्हें भी करना हो तो कर लो। नहीं तो बाद में मुझे अकेला छोड़कर आओगे। लेकिन मैं आने नहीं दूंगी।’
‘हां, लगी तो मुझे भी है।’
यह सुनकर पता नहीं क्यों युवती हंस पड़ी तो युवक खिसिया गया है। कह रहा है, ‘अरे इसमें हंसने की क्या बात है। पांच घंटे हो गए हैं, तुम्हें लग सकती है तो क्या मुझे नहीं?’
इस स्थिति में भी दोनों हास-परिहास कर ही ले रहे हैं। युवक बाथरूम के दरवाजे पर है, उसकी हरकत पर युवती कह रही है, ‘क्या कर रहे हो? धक्का दे दूंगी, समझे। दरवाजा खोलो, जाओ, अंदर जाओ।’
‘अरे, तुम तो ऐसे शर्मा रही हो कि क्या बताऊं।’
‘हां तो, अभी हम पति-पत्नी तो हैं नहीं।’
इस बात का युवक लौटते वक्त जवाब दे रहा है। ‘अच्छा, तुम क्या कह रही थी अभी, हम पति-पत्नी नहीं हैं, तो क्या हैं, यह बताओगी।’
‘सही तो कह रही हूं। अभी हमारी शादी कहां हुई है। हम पति-पत्नी तो हैं नहीं। अभी तो हम दोनों एक साथ निकले हुए हैं। एक-दूसरे से प्यार करते हैं। प्रेमी हैं। एक-दूसरे की जान हैं। नहीं, नहीं एक ही जान हैं बस।’
‘मेरी नज़र में यही सबसे बड़ा रिश्ता है कि हम एक हैं। कुछ रस्में निभाने से दो अनज़ान लोगों के अचानक एक साथ मिलने से कोई फायदा नहीं। हम दोनों एक-दूसरे को चाहते हैं बस। मैं इसके अलावा कोई रिश्ता जानता ही नहीं।’
‘सही कह रहे हो तुम। मैं तो गलती कर रही थी। आओ बैठो।’ ये क्या बैठते वक्त युवती का सिर युवक की नाक से टकरा गया। तो वह बोला, ‘संभलकर।’
‘क्या करूं, अंधेरे में दिखाई नहीं दे रहा। तुम्हें ज़्यादा तेज़ तो नहीं लगी।’
युवती परेशान हुई तो वह बोला, ‘नहीं, तुम्हारा सिर भी मुझे फूल जैसा ही लगता है।’
युवक प्यार से युवती का सिर सहलाते हुए कह रहा है। जबकि नाक में उसे अच्छी खासी तेज़ चोट लगी है। युवती कह रही है, ‘अच्छा, कभी होठों को फूल कहोगे, कभी सिर को। खैर तुम चाहे जो कहो, अच्छा लगता है।’ युवती ने युवक का हाथ चूम लिया तो वह बड़ा रोमांटिक हो कह रहा है।
‘ऐसे प्यार मत जताओ, नहीं तो मुझे भी प्यार करने का मन करने लगेगा।’
‘तो करो ना। ऐसे तो अकेले में जब भी मिलते हो तो प्यार करने का कोई रास्ता छोड़ते ही नहीं हो। यहां तीन घंटे से एक साथ हैं। कोई आसपास भी नहीं है। अंधेरा भी है। मगर मैं देख रही हूं कि तुमने अब तक प्यार का एक शब्द भी नहीं बोला है। बस ये ना करो। वो ना करो। इसके अलावा कुछ बोला हो तो बताओ।’
‘मैं हर काम सही टाइम पर, सही ढंग से ही करता हूं। मेरा पूरा ध्यान ट्रेन पर लगा हुआ है कि कैसे यहां से निकलें।’ युवक बात पूरी भी नहीं कर पाया कि फिर कुछ हुआ है। उसने युवती का मुंह दबाकर उसे चुप करा दिया है। कह रहा है, ‘कुछ बोलना नहीं। लगता है दूसरी तरफ से कोई इधर ही आ रहा है। तुम यहीं रहो मैं खिड़की से झांक कर देखता हूं।’
‘नहीं, यहीं ध्यान से सुनो।’
‘बाहर देखकर ही सही बात पता चलेगी। इसलिए ऐसा है तुम एकदम सीट के नीचे जाओ, बिल्कुल नीचे। एकदम चिपक जाओ दीवार से। सांस लेने की भी आवाज़ न आए।’ युवक युवती को सीट के एकदम नीचे धकेल कर बंद खिड़की की झिरी से बाहर कुछ देर देखने के बाद वापस आया गया है। युवती से कह रहा है, ‘आओ, बाहर निकलो। तीन-चार शराबी लग रहे थे। सब आगे चले गए।’
‘मुझे बड़ा डर लग रहा है। कहीं यहां ना आ जाएं।’
‘बिल्कुल नहीं आएंगे। यहां साफ करने आया था, तो बहुत पुरानी शराब की बोतलें देखकर समझ गया था कि बहुत समय से यहां कोई नहीं आया। पुलिस रेड के बाद तो बिल्कुल भी नहीं। यह सभी आगे कहीं और ठिकाना बनाए होंगे, वहीं चले गए।’
‘सुनो, एक बात पूछूं, गुस्सा तो नहीं होगे ना।‘
‘पूछो।‘
‘देखो, अब कितना टाइम हो रहा है?’
युवती के टाइम पूछते ही युवक ने बड़े प्यार से उसके गालों को खींच लिया है। युवती भी प्यार से बोल रही है, ‘अरे, टाइम देखने को कहा है। गाल नोचने को नहीं।‘
‘मन तो कर रहा है तुम्हें पूरा का पूरा नोंच डालूं। अभी तो केवल दस बजे हैं।’
‘अब और कितने घंटे बाकी रह गए हैं।’
‘करीब साढ़े पांच घंटे बाकी हैं।’
‘अच्छा, तुम्हें भूख नहीं लग रही क्या?’
‘नहीं, मुझे भूख नहीं लगी है। तुम्हें लगी है तो लो तुम खाओ।’
युवक ने बड़ी फुर्ती से एक पैकेट उसे थमा दिया। मगर युवती कहां मानने वाली है। कह रही है, ‘नहीं, मैं अकेले नहीं खाऊंगी, तुम भी लो।’ अब दोनों ही कुछ खा रहे हैं। युवती खाते-खाते ही लेट गई है। सिर युवक की जांघों पर रख दिया है। दोनों फुसफुसाते हुए कुछ बातें भी कर रहे हैं। जो सुनाई नहीं दे रही हैं। बीच-बीच में एक-दूसरे को प्यार करते-करते दोनों जल्दी ही उसी में खो गये हैं। दोनों के प्यार की नज़र इतनी तेज़ है कि उन्हें लाइट की जरूरत ही नहीं पड़ी। बड़ी शांति से घंटा भर निकल गया। चटाई, सामान वगैरह फिर से व्यवस्थित करने के बाद युवती कह रही है, ‘मैं जानती हूं कि तुम गुस्सा होने लगे हो। लेकिन जरा एक बार फिर से टाइम देख लो।’
‘अभी तो ग्यारह ही बजे हैं।’
‘अच्छा मान लो कि ट्रेन दो घंटे लेट हो गई तो।’
‘तो सवेरा हो जाएगा। लोग हमें आसानी से देख लेंगे। तब इसी जगह छिपे रहने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचेगा ।’
‘लेकिन क्या दिन में कोई ट्रेन नहीं है?’
‘हैं तो कई, लेकिन दिन में खतरा कितना रहेगा, यह भी तो सोचो। कोई ना कोई तुम्हारे, हमारे परिवार का ढूंढ़ता हुआ यहां मिल सकता है। तब तक हो सकता है पुलिस में रिपोर्ट लिखा चुके हों। ऐसे में पुलिस भी सूंघती फिर रही होगी।’
‘मतलब कि चाहे जैसे भी हो हम लोगों को साढ़े तीन बजे वाली ट्रेन से ही चलना है और ऊपर वाले से दुआ यह करनी है कि ट्रेन टाइम से आ जाए। आधे घंटे भी लेट ना हो कि सवेरा होने लगे।’
‘मुझे पूरा विश्वास है कि ट्रेन टाइम से आएगी। भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि हे भगवान, जैसे भी हो आज ट्रेन को टाइम से ही भेजना। माना कि हम लोग अपने मां-बाप से छिपकर भाग रहे हैं, गलत कर रहे हैं। वह भी आपकी तरह भगवान ही हैं, आप ही का रूप हैं। लेकिन एक तरफ यह भी तो है कि हम एक-दूसरे को जी जान से चाहते हैं। अगर नहीं भागेंगे तो मार दिए जाएंगे। इससे हमारे मां-बाप पर भी हमारी हत्या का ही पाप चढ़ेगा। वह जीवन भर दुखी अलग रहेंगे। बाद में आप भी उनको इसके लिए सजा देंगे।
हम नहीं चाहते कि हमारे मां-बाप को आप एक मिनट की भी कोई सजा दें। हम यहां से बच के निकल जाएंगे तो कुछ दिन बाद उनका गुस्सा धीरे-धीरे कम हो जाएगा। फिर जब कभी हम वापस लौटेंगे तो वह हमें फिर से अपना लेंगे। इस तरह ना उनसे कोई पाप होगा, ना आप उनसे नाराज होंगे और हम अपना-अपना प्यार पाकर पति-पत्नी बन जाएंगे।’
‘तुम सही कह रहे हो। जैसे भी हो ट्रेन टाइम से आए ही और जब तक हम यहां से दूर बहुत दूर ना निकल जाएं तब तक किसी को कानों-कान खबर तक ना हो।’
‘भरोसा रखो भगवान पर। वह हम लोगों का अच्छा ही करेंगे। हमारी इच्छा पूरी करेंगे और हमारे मां-बाप को भी सारे कष्टों से दूर रखेंगे। जानता हूं कि इससे वह लोग बहुत दुखी होंगे। बहुत परेशान होंगे, लेकिन क्या करें और कोई रास्ता भी तो नहीं बचा है। दुनिया वालों ने ऐसे नियम-क़ानून परम्पराएं सब बना रखे हैं कि किसी को चैन से जीने ही नहीं देते। अपनी मनमर्जी से कुछ करने ही नहीं देते। जहां देखो कोई परम्परा खड़ी है। जहां देखो कोई नियम खड़ा है। कोई कुछ कर ही नहीं सकता। बस इन्हीं लोगों के हिसाब से करो। ज़िंदगी हमारी है और मालिक ये दुनिया बनी बैठी है।’
‘सख्त नियम-क़ानून, परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों से हमें दुख के अलावा मिलता ही क्या है?’
‘हां, लेकिन यह जरूरी भी तो है। अगर नियम क़ानून परम्पराएं ना हों तो सारे लोग एक-दूसरे को पता नहीं क्या कर डालेंगे।’
‘कुछ नहीं कर डालेंगे। सब सही रहेगा। ऐसा नहीं है कि तब कोई किसी को कुछ समझेगा ही नहीं, जो जैसा चाहेगा वैसा ही करेगा। सब एक-दूसरे को मारेंगे, काटेंगे जब जो चाहेंगे वह करेंगे एकदम अंधेर राज हो जाएगा। बिल्कुल जंगल के जानवरों से भी बदतर हालत हो जाएगी।’
युवती बड़े आवेश में आ गई है। युवक शांत करते हुए कह रहा है, ‘क्या बताऊं, मानता तो मैं भी यहीं हूं। लेकिन नियम-कानून समाज ने इसीलिए बनाए हैं कि हम में और जानवरों में फ़र्क़ बना रहे। मगर यह इतना सख्त भी नहीं होना चाहिए कि दो लोग अपने मन की, जीवन की बातें ना कर सकें। अपने मन से जीवन जी ना सकें। अपने मन का कुछ कर ना सकें।’ इसी समय युवती अचानक ही दोनों हाथों से युवक का मुंह टटोलने लगी है तो वह चौंकते हुए पूछ रहा है, ‘अरे! यह तुम क्या कर रही हो?’
‘तुम्हारा मुंह ढूंढ़ रही हूं। किधर है?’
‘क्यों?‘
‘चुप रहो। मुझे लग रहा है कि आसपास फिर कुछ आहट हो रही है।’
‘अच्छा, मुंह पर से हाथ तो हटाओ। मुझे सुनाई दे रहा है। यह कोई कुत्ता जैसा जानवर है। इतना फ़र्क़ तो तुम्हें पता होना चाहिए ना।’
‘अरे पहली बार ऐसी रात में इस तरह कहीं पर बैठी हूं, किसी की आहट पहचानने का कोई अनुभव थोड़ी ना है मेरे पास।’
‘होना चाहिए ना। तुम्हारे घर में तो बकरी, मुर्गी-मुर्गा, कुत्ता सब पले हुए हैं। तुम्हारी मुर्गियां तो इतनी बड़ी और जबरदस्त हैं कि कुत्तों को भी दौड़ा लेती हैं।’
‘दौड़ा तो तुम्हें भी लेती हैं।’
‘हां, तुमने मुर्गियों को खिला-खिलाकर इतना मोटा ताजा जो कर दिया है कि जब देखो तब लड़ने को तैयार रहती हैं और कुत्तों को तो खाना देती ही नहीं हो। वह सब साले एकदम सूखे से ऐसे हैं जैसे कि मॉडलों की तरह डाइटिंग करके सूख गए हैं।’
‘ऐसा नहीं है। देशी कुत्ते इसी तरह रहते हैं, दुबले-पतले।’
‘कुत्तों के बारे में इतनी जानकारी है। देशी-विदेशी, कौन मोटा होगा, पतला होगा, कैसा होगा, सब मालूम है।’
‘कमाल करते हो। घर में पले हैं तो क्या इतना भी नहीं जानूंगी।’
‘सच बताऊं, तुम्हारी बात एकदम गलत है। पूरे गांव में बाकी देशी कुत्तों को नहीं देखा है क्या, जो मोटे और बड़े भी हैं।’
‘तुमने तो हद कर दी है। गांव भर के कुत्तों की मैं जांच-परख करती फिरती हूं क्या? मेरे पास जैसे कुछ काम ही नहीं है।’
अनजाने ही दोनों नोंक-झोंक पर उतर आए हैं। युवती उत्तेजना में कुछ तेज़ बोल रही है। इसलिए युवक कह रहा है, ‘ऐसा है तू अब चुपचाप लेट जा, क्योंकि तू चुप रह ही नहीं सकती। बोलती रहेगी और कहीं किसी ने सुन लिया तो मुश्किल हो जाएगी।’
इसी बात के साथ दोनों ने ट्रैक चेंज कर दिया है। आवाज़ भी कम कर दी है। युवती एकदम फुसफुसाते हुए कह रही है।
‘ऐसे बात करते रहेंगे तो टाइम कट जाएगा नहीं तो बहुत परेशान हो जाएंगे। अभी बहुत टाइम बाकी है।’
‘परेशान होने के चक्कर में कहीं पकड़ लिए गए तो जान चली जाएगी।‘
‘तुम बार-बार जान जाने की बात करके डरा क्यों रहे हो?’
‘डरा नहीं रहा हूँ। तुम्हें सच बता रहा हूं। समझने की कोशिश करो, जहां तक हो सके शांत रहो। हो सकता है कि कोई नीचे से निकल रहा हो और हमारी बात सुन ले। बार-बार कह रहा हूं कि रात में आवाज़ बहुत दूर तक जाती है।’
‘क्यों? रात में ज़्यादा तेज़ चलती है क्या?’
‘तू अब बिल्कुल चुप रह। एकदम नहीं बोलेगी, समझी।‘
यह कहते-कहते युवक ने युवती का मुंह काफी हद तक बंद कर दिया है। युवती छूटने की कोशिश करते हुए कह रही है, ‘अरे मुंह इतना कसके मत दबाओ, मेरी जान निकल जाएगी।‘
‘और बोलोगी तो सही में कसके दबा दूंगा। तब तक छोड़ूंगा नहीं जब तक कि तू चुपचाप पड़ी नहीं रहेगी।’
‘ज़्यादा देर मत दबाना, नहीं तो मर जाऊंगी फिर यहीं की यहीं पड़ी रहूंगी।’
‘तो कितनी देर दबाऊं, यह भी बता दो।’
‘बस इतनी देर कि तुम्हें अपने अंदर देर तक महसूस करती रहूं। मगर, मगर हाथ से नहीं दबाना।’
‘तो फिर किससे दबाऊं?’
‘मुंह है तो मुंह से ही दबाओ ना।’
युवती को शरारत सूझ रही है। युवक तो खैर परम शरारती दिख रहा है। कह रहा है, ‘अच्छा तो इधर करो मुंह। बहुत बोल रही हो। अब महसूस...।’
इसके आगे युवक बोल नहीं पाया। अंधेरे में वह युवती के चेहरे तक अपना चेहरा ले जा रहा है। लेकिन थोड़ा भटक गया तो युवती कह रही है, रुको-रुको, इधर तो आंख है।’
अब दोनों के चेहरे सही जगह पर हैं। युवक की आक्रामकता पर युवती कर रही है, ‘बस करो, बस करो अब। यह सब नहीं। बस करो।’
युवक कुछ ज़्यादा ही शरारती हो रहा है। कह रहा है, ‘क्यों बस, और ज़्यादा और गहराई तक महसूस नहीं करोगी क्या?’
‘नहीं, अभी इतना ही काफी है। बाकी जब दिल्ली पहुंचेंगे सही सलामत तो पूरा महसूस करूंगी। बहुत देर तक महसूस करूंगी। इतना देर तक कि वह एहसास हमेशा-हमेशा के लिए बना रहेगा। कभी खत्म ही नहीं होगा। पूरे जीवन भर के लिए बना रहेगा। बस तुमसे इतना ही कहूंगी कि इतना एहसास कराने के बाद कभी भूलने के बारे में सोचना भी मत। यह मत सोचना कि मुझे छोड़ दोगे, क्योंकि तुम जैसे ही छोड़ोगे मैं वैसे ही यह दुनिया भी छोड़ दूंगी। अब मेरी ज़िंदगी सिर्फ़ तुम्हारे साथ ही चलेगी। जब तक तुम साथ दोगे तभी तक चलेगी उसके बाद एक सेकेंड को भी नहीं चलेगी।’
युवती फिर बहुत भावुक हो रही है। युवक गम्भीर होकर कह रहा है।
‘तुम बार-बार केवल अपने को ही क्यों कहती हो। अब हम दोनों की ज़िंदगी एक-दूसरे के सहारे ही चलेगी। अब अकेले कोई भी नहीं रहेगा।’
उसकी बात सुनते ही युवती उससे लिपटकर फिर प्यार उड़ेलने लगी तो वह उसे संभालते हुए कह रहा है।
‘ओफ्फ हो! सारा प्यार यहीं कर डालोगी क्या? मना करती हो फिर करने लगती हो। दिल्ली के लिए कुछ बचाकर नहीं रखोगी?’
‘सब बचाकर रखे हुए हूं। तुम्हारे लिए मुझमें कितना प्यार भरा है, यह तुम अभी सोच ही नहीं पाओगे। आओ अब तुम भी लेट जाओ। कब तक बैठे रहोगे। लेटे-लेटे ही जागते रहेंगे?’
‘नहीं। यह लापरवाही अच्छी नहीं। जरा सी लापरवाही, जरा सा आराम हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी।’
‘ठीक है। सोएंगे नहीं लेकिन कम से कम लेटे तो रहो, थोड़ा आराम कर लो। अभी आगे बहुत ज़्यादा चलना है। पता नहीं कब सोने, बैठने, लेटने को मिले।’
‘तुमसे बार-बार कह रहा हूं, जिद मत करो। मैं लेट जाऊंगा तो मुझे नींद आ सकती है। तुम्हें भी आ सकती है। कहीं दोनों सो गए और ट्रेन निकल गई तो जीते जी ही मर जाएंगे। दिन भर यहां से बाहर नहीं निकल पाएंगे। बिना खाना-पानी के कैसे रहेंगे। बाथरूम जाने तक का तो कोई ठिकाना नहीं है। कितनी गंदगी, कितना झाड़-झंखाड़, कूड़ा-करकट पड़ा हुआ है। पानी तक नहीं है।’
युवक एक पल का भी रिस्क लेने को तैयार नहीं है। युवती को अपने से ज़्यादा उसकी चिंता है। इसलिए कह रही है, ‘तुम यकीन करो, जितनी ज़्यादा तुम्हें चिंता है, उतनी ही मुझे भी है। हम बिल्कुल भी नहीं सोएंगे, बैठकर बात करने के कारण थोड़ी ज़्यादा आवाज़ हो जा रही है। लेटे रहेंगे तो एकदम करीब रहेंगे।
धीरे-धीरे बातें करते रहेंगे। इतनी धीरे कि हमारे अलावा और कोई भी सुन नहीं पाएगा। फिर इतने झींगुरों, कीड़े-मकोड़ों की आवाज़ बाहर हो रही है। यहां अंदर भी कितने झींगुरों की आवाज़ सुनाई दे रही है। यहां तो तुमने इतना ज़्यादा साफ कर दिया है कि पता नहीं चल रहा है। वरना बैठना भी मुश्किल हो जाता। अच्छा, जरा उधर देखो, कोई लाइट इधर की तरफ बढ़ती हुई लग रही है।’
‘हां... कोई टार्च लिए आ रहा है। ऐसा है तुम एकदम सीट के नीचे चली जाओ। और यह चटाई ऊपर ही डाल लो ऐसे जैसे कि कोई सामान रखा हुआ है।’
‘और तुम कहां जा रहे हो?’
‘मैं खिड़की के पास जा रहा हूं, देखूंगा कौन है, किधर जा रहा है।’
‘संभालकर जाना। एकदम छिपे रहना। कोई देखने ना पाए।’ अब तक युवती थोड़ी निडर हो चुकी है। इस बार युवक को जाने दिया। चिपकी नहीं रही उसके साथ।
युवक बड़ी सावधानी से बंद खिड़की की झिरी से बाहर आंख गड़ाए देख रहा है। बाहर ना जाने क्या उसे दिख रहा है कि उसकी सांसें फूलने लगी हैं। वह बड़ी देर बाद युवती के पास लौटा तो वह भी घबराई हुई पूछ रही है, ‘इतना हांफ क्यों रहे हो?’
‘मुझे अभी लगा कि जैसे हम बस अब मारे ही जाएंगे। दूर से ऐसा लग रहा था जैसे हाथ में लाठी लिए लोग चले आ रहे हैं। करीब आए तब दिखा कि वह सब रेलवे के ही कर्मचारी हैं। अपने औजार लेकर आगे जा रहे हैं। उन्हीं में से दो के हाथों में टॉर्च थी, उसी को जलाते चले आ रहे थे। जिसकी लाइट तुमने देखी थी, सोचो अगर सच में ऐसा होता कि हमारे घर वाले ही आ रहे होते, तब क्या होता।‘
‘कुछ नहीं होता।’
‘क्या पागलों जैसी बात करती हो।‘
‘पागलों जैसी नहीं। सही कर रही हूं। कुछ नहीं होता। मैं तुम्हें और तुम मुझे कसकर पकड़ लेते। फिर किसी हालत में ना छोड़ते। चाहे वह लोग हमारे-तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर डालते। और हम दोनों यहां नहीं तो मर कर ऊपर जाकर एक साथ ही रहते। ऐसे दुनिया वालों से छुटकारा मिल जाता जो हम जैसे लोगों को एक साथ रहने नहीं देते।’
‘मर जाना कहीं की भी समझदारी नहीं है, मूर्खता है मेरी नजर में।’
‘तो क्या उन लोगों के सामने लाठी-डंडा, गाली, अपमान के लिए खुद को छोड़ दिया जाएगा।’
‘नहीं, जब तक जिंदा हैं, जीवन है तब तक संघर्ष करते रहना चाहिए। हार नहीं माननी चाहिए। तुम हमेशा के लिए अपने मन में यह बात बैठा लो कि हमें हार नहीं माननी है। यहां से बचकर निकल गए तो हमेशा के लिए अच्छा ही अच्छा होगा। अगर ना निकले तो भी सामना करेंगे।’
दोनों में फिर बहस शुरू हो गई है। युवती कह रही है, ‘हम दोनों मिलकर अपने दोनों परिवारों के लोगों का क्या सामना कर लेंगे। उनके साथ पुलिस होगी। ढेर सारे लोग होंगे। सब हम पर टूट पड़ेंगे। मुझे सबसे ज़्यादा तुम्हारी चिंता है। वो तुम्हें सबसे पहले मेरे किडनैप के आरोप में पीटेंगे। हम लाख चिल्लाएंगे कि हम तुम्हारे साथ जीवन बिताने अपने मन से आए हैं। लाख सर्टिफ़िकेट दिखाएंगे कि हम बालिग हैं। लेकिन वो पिटाई के बाद ही कुछ सुनेंगे। क्योंकि हमारे घर वालों का उन पर दबाव होगा। उनकी जेबें वो गर्म कर चुके होंगे। लेकिन मैं यह सोचना भी नहीं चाहती। मैं सिर्फ़ इतना जानती हूं, मुझे पूरा यकीन है ऊपर वाले पर कि हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा। हम दोनों यहां से अच्छी तरह से दिल्ली पहुंच जाएंगे। ट्रेन टाइम से जरूर आएगी।’
‘जब इतना यकीन है तो बार-बार डर क्यों रही हो।’
‘हम भी इंसान हैं। इंसान डरता भी है और डराता भी है। वह लोग सब कुछ करेंगे ही ना, हमें अलग करने के लिए। आसानी से हमें एक नहीं होने देंगे। जी जान लगा देंगे हमें अलग करने के लिए। तो हमें भी जी जान से एक बने रहना है।’
‘तुम्हें कॉलेज में कौन टीचर समझाती है, पढ़ाती है। तुम्हारे भेजे में कुछ है भी या नहीं।’
‘टीचर पढ़ाती क्या है वह खुद ही पढ़ती रहती है।’
‘मेरे कॉलेज में तो मास्टर साहब पढ़ाते हैं। काम ना करो तो आफ़त कर देते हैं।’
‘मेरे यहां तो टीचर को ही कुछ पता नहीं है। मोबाइल पर न जाने किससे हमेशा चैटिंग करती रहती है। बीच में कुछ पूछ लो तो चिल्ला पड़ती है। गुस्सा होकर ऐसा काम देती है कि करते रहो, करते रहो लेकिन वो पूरा होने वाला नहीं। फिर चैटिंग से फुर्सत पाते ही तमाम बातें सुनाती है। अच्छा जरा एक बार फिर से तो टाइम देख लो।’
इस बार युवक ने बिना गुस्सा दिखाए कहा, ‘अभी तो बारह भी नहीं बजे, दस मिनट बाकी हैं।’
‘तो जरा मेरे साथ उधर तक एक बार फिर चलोगे क्या?‘
‘फिर से जाना है?‘
‘हां, इसीलिए तो पानी नहीं पी रही थी।‘
‘चलो, लेकिन बैठे-बैठे चलना। खड़ी नहीं होना। कई खिड़कियां खुली हुई हैं, टूटी हैं, बंद भी नहीं हो रही हैं। कई बार बंद करने कोशिश की थी, मगर सब एकदम जाम हैं। इसलिए बैठे-बैठे ही चलना जिससे बाहर कोई भी देख ना सके।’
‘बैठे-बैठे कैसे चलेंगे?’
‘जैसे बैठे-बैठे अपने घर के आंगन की सफाई करती हो, वैसे ही।’
‘अरे तुमने कब देख लिया आंगन में सफाई करते हुए।’
‘जब एक बार छोटी वाली चाची को डेंगू हो गया था तो वैद्य जी ने बताया कि बकरी का दूध बहुत फायदा करेगा। मैं सवेरे-सवेरे वही लेने तुम्हारे यहां आता था। तभी तुम्हें कई बार देखा था बैठे-बैठे आंगन की सफाई करते हुए। जैसे बूढ़ी औरतें करती हैं और धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ती जाती हैं। वैसे ही इस समय भी नीचे-नीचे चलो, मैं भी ऐसे ही चलूंगा।’
बड़ा अजीब दृश्य है। दोनों उकंड़़ू बैठे-बैठे आगे बढ़ रहे हैं। असल में अंधेरा बोगी के कुछ हिस्सों में थोड़ा कम है। बाहर दूर-दूर तक रेलवे ने जो लाइट लगा रखी हैं उनका थोड़ा असर दूर खड़ी इस बोगी के दरवाजे, टूटी-फूटी खिड़कियों से अन्दर तक होता है। दोनों बाथरूम की ओर आगे बढ़ रहे हैं। बोलते भी जा रहे हैं, ‘इस तरह वहां तक पहुंचने में तो पता नहीं कितना टाइम लग जाएगा।’
‘कुछ टाइम नहीं लगेगा, लो पहुंच गए।’
‘कहां पहुंच गए, बाथरूम किधर है। मुझे कुछ दिख नहीं रहा। मोबाइल ऑन करो ना।’
‘तुम भी आफ़त कर देती हो। लो कर दिया अब तो दिखाई दिया।’
‘हां दिखाई दिया। अभी कितनी तो दूर है और कह रहे थे कि पहुंच गए।’
‘ठीक है अब उठ जाओ इधर की खिड़कियां बंद हैं।’
बाथरूम से वापस पहुँच कर दोनों फिर अपनी जगह बैठ गए हैं। लेकिन पहले की अपेक्षा अब शांत हैं। थकान और नींद का असर अब दोनों पर दिख रहा है। ये ना हावी हो यह सोचकर युवती कह रही है।
‘बैठे-बैठे इतना टाइम हो गया, पता नहीं कब साढ़े तीन बजेगा। अभी भी दो घंटा बाकी हैं। सुनो कुछ खाने के लिए निकालो ना।’
इस समय मोबाइल युवती के हाथ में है। युवक का तंज सुनिए।
‘तुम लड़कियों के दो काम कभी नहीं छूटते।’
‘कौन-कौन से।’
‘एक तो कभी चुप नहीं रह सकतीं। दूसरे उनको हमेशा कुछ ना कुछ खाने को मिलता रहना चाहिए। जिससे उनका मुंह चपर-चपर चलता रहे।’
‘अच्छा, जैसे तुम लड़कों का दिनभर नहीं चलता। जब देखो तब मंुह में मसाला भरे चपर-चपर करते रहते हो। पिच्च-पिच्च थूक कर घर-बाहर, हर जगह गंदा किये रहते हो।’
‘मैं मसाला-वसाला कुछ नहीं खाता, समझी। इसलिए मुझे नहीं कह सकती।’
‘मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रही हूं। तुमने लड़कियों की बात की तो मैंने लड़कों के बारे में बताया। मुंह चलाते रहने के अलावा जैसे उनके पास कोई काम ही नहीं है।’
‘अच्छा ठीक है, ये लो नमकीन और बिस्कुट, खाओ। लेकिन कुछ बोलो नहीं।’
‘तुम भी खाओ ना, अकेले नहीं खा पाऊंगी।’
‘हे भगवान। बार-बार वही बकवास करती रहती है। मैं तो खा ही रहा हूं।’
‘अरे, खाने ही को तो कहा है। काहे गुस्सा हो रहे हो।’
युवती ने लगभग आधी मुट्ठी नमकीन मुंह में डालकर खाना शुरू किया है। नमकीन काफी कुरकुरी लग रही है क्योंकि उसके मुंह से कुर्र-कुर्र की आवाज़ सुनकर युवक कह रहा है।
‘तू नमकीन खा रही है कि पत्थर चबा रही है, कितनी तेज़ आवाज़ कर रही है।’
‘कमाल की बात करते हो। कड़ी चीज़ होगी तो आवाज़ तो होगी ही ना। क्या सब ऐसे ही निगल जाऊं।’
‘नहीं, जितनी तेज़ कुर्र-कुर्र कुरा सकती हो कुर्र कुराओ।
‘ठीक है, मैं अब केवल बिस्कुट ही खाऊंगी, इससे कोई आवाज़ नहीं होगी।’
‘अरे मैं मजाक कर रहा था। ले और खा और ये पानी पकड़।’
‘नहीं, पानी तो बिल्कुल नहीं पियूंगी।‘
‘क्यों?‘
‘फिर जाना पड़ेगा और तुम बोलोगे कि बैठे-बैठे चलो। और मैं कहूंगी कि तुम भी कर लो तो कहोगे क्या जबरदस्ती कर लूं। अच्छा सुनो, मैं थोड़ी देर लेटना चाहती हूं, बहुत थक गई हूं।’
‘ठीक है लेट जाओ।‘
‘चाहो तो तुम भी थोड़ी देर लेट लो ना। बहुत टाइम हो गया है। पूरे दिन से लगातार कुछ न कुछ कर रहे हो। लगातार बैठे हो या चल रहे हो।’ इस बार युवक पर थकान ज़्यादा हावी हो गई है। वह कह रहा है।
‘ठीक है, चलो थोड़ा उधर खिसको, तभी तो लेटूंगा। अरे मुझे इतना क्यों पकड़ रही हो, गुदगुदी लग रही है।’
‘तुम चटाई पर ही आओ ना, उधर जमीन पर क्यों जा रहे हो।’
‘आ तो गया हूं लेकिन तुम इतना कसकर पकड़ रही हो कि मुझे गुदगुदी लग रही है।’
‘पकड़ नहीं रही हूं, केवल साथ में ले रही हूं।’
‘ठीक है। चलो उधर खिसको, आ रहा हूं।’
दोनों चटाई पर एक-दूसरे में समाए हुए लेटे हैं। मुश्किल से दस मिनट ही हुआ है कि यह क्या युवती एकदम से हड़बड़ाकर उठ बैठी है। उसके मुंह से घुटी-घुटी सी ई-ई-ई की आवाज़ निकल गई है। युवक भी उसी के साथ उठ बैठा है। काफी घबराया हुआ है और युवती से पूछ रहा है, ‘क्या हुआ?’ युवती अपनी सलवार ऊपर खींचती हुई कह रही है।
‘लगता है कपड़े में कोई कीड़ा घुस गया है।’ युवक ने जल्दी से मोबाइल टॉर्च ऑन करके देखा तो घुटने से थोड़ा नीचे करीब दो इंच का एक कनखजूरा चिपका हुआ था। युवक ने पल भर देरी किये बिना उसे खींचकर अलग किया और जूते से मार दिया। बिल्कुल कुचल दिया। युवती थर-थर कांप रही है। युवक ने बड़ी बारीकी से उस जगह को चेक किया, जहां कनखजूरा चिपका था। बड़ी देर में दोनों निश्चिंत हो पाए कि उसने काटा नहीं है। दोनों के चेहरे पर पसीने की बूंदें साफ दिख रही हैं। युवक ने एक बार फिर से पूरी जगह को बारीकी से साफ किया और फिर से दोनों लेट गए हैं।
अब आप इस युवा कपल को क्या कहेंगे। दिन भर के थके थे। ना सोने की तय किये थे। इसलिए बार-बार बात नहीं करेंगे कहते लेकिन बात करते ही रहे। लेकिन तय समय के करीब आकर नींद से हार कर सो गए। अब यह सोना इनकी खुशकिस्मती है या बदकिस्मती। आइए देखते हैं। बड़ी देर बाद युवती घबराकर उठ बैठी है। अफनाई हुई कह रही है।
‘सुनो-सुनो, जल्दी उठो, देखो ट्रेन जा रही है क्या?’
युवक बड़ी फुर्ती से हड़बड़ा खिड़की से बाहर देख रहा है। जाती हुई ट्रेन की पहचान कर माथा पीटते हुए कह रहा है, ‘हे भगवान, यह तो वही ट्रेन है। अब क्या होगा। मैं बार-बार कह रहा था सो मत, लेकिन तू तो पता नहीं कितनी थकी हुई थी। बार-बार लेट जाओ, आओ लेट जाओ, लो लेट गए, लेट हो गए और ट्रेन चली गई। बताओ अब क्या करूं। यहीं पड़े रहे अगले चौबीस घंटे तक तो घर वाले ढूंढ़ ही लेंगे। निकाल ले जाएंगे यहां से। कल अंधेरा होने की वजह से नहीं आ पाए।
दो घंटे बाद जहां सवेरा हुआ तो पूरा दिन है उनके पास। चप्पा-चप्पा छान मारेंगे वह। हमें निश्चित ही ढूंढ़ लेंगे और तब ना ही मैं जिंदा बचूंगा और ना ही तुम। बुरी मौत मारे जाएंगे। पहले सब पंचायत करेंगे, पूरा गांव चारों तरफ से इकट्ठा होगा। हमें अपमानित किया जाएगा। मारा-पीटा जाएगा और फिर बोटी-बोटी काटकर फेंक दिया जाएगा वहीं।’
‘नहीं ऐसा मत बोलो।’
‘तो क्या बोलूं, जो सामने दिख रहा है वही तो बोलूंगा ना। अब ऐसे रोने-धोने से काम नहीं चलेगा। जो है उसे देखो और सामना करो।’
‘तुम भी तो इतनी गहरी नींद सो गए। मेरे नींद लग गई थी तो कम से कम तुम तो जागते रहते।’
‘बड़ी बेवकूफ हो, तुम्हीं पीछे पड़ गई थी कि आ जाओ, सो जाओ, तब मैं लेटा था। मैं भी थका हुआ था कि नहीं।’
‘तो मैं क्या करती। अच्छा सुनो अभी खाली यह बताओ कि किया क्या जाए?’
‘सिवाए इंतजार के और कुछ नहीं। कल रात को जब ट्रेन आएगी तभी चल पाएंगे। दिन में तो यहां से निकलना भी सीधे-सीधे मौत के मुंह में जाना है।’
‘लेकिन तुम तो कह रहे हो कि दिन होगा तो वह लोग यहां तक भी ढूंढ़ते-ढूंढ़ते पहुंच ही जाएंगे।’
‘सही तो कह रहा हूं। पूरा दिन होगा उनके पास ढूंढ़ने के लिए। एक-एक कोना, चप्पा-चप्पा छान मारेंगे। तू यह समझ ले कि मरना निश्चित हो गया है।’
‘मरना ही है तो सबके सामने बेइज़्ज़त होकर, मार खा-खा कर मरने से अच्छा है कि हम लोग यहीं अभी फांसी लगा लें। जीते जी एक साथ नहीं रह पाए तो कोई बात नहीं। कम से कम एक साथ मर तो लेंगे।’
‘चुप! मरने, मरने, बार-बार मरने की बात कर रही है। मैं इतनी जल्दी मरने के लिए तैयार नहीं हूं और अपने जीते जी तुझे भी मरने नहीं दूंगा।’
‘तो अब क्या करोगे?’
‘अभी उजाला होने में कम से कम डेढ़ घंटा है। यहां से बस स्टेशन करीब-करीब सात-आठ किलोमीटर दूर है। पैदल भी चलेंगे तो एक घंटे में पहुंच जाएंगे। वहां से कोई ना कोई बस सवेरे-सवेरे निकल ही रही होगी। वह आगे जहां तक जा रही होगी उसी से आगे चल देंगे। यहां से जितनी जल्दी, जितना ज़्यादा दूर निकल सकें पहली कोशिश यही करनी है।’
‘ठीक है चलो, फिर जल्दी निकलो यहां से।’
चलने से पहले युवक के कहने पर युवती पेपर्स वाली पॉलिथीन, चटाई पर से उठाकर फिर से सलवार में खोंसने लगी तो युवक ने ना जाने क्या सोचकर उसे लेकर अपनी शर्ट में आगे रखकर बटन लगा ली। और पूछा, ‘तू इतनी दूर तक पैदल चल लेगी?’
‘जब मौत सिर पर आती है तो सात-आठ किलोमीटर क्या आदमी सत्तर-अस्सी किलोमीटर भी चला जाता है और तुझे पाने के लिए तो मैं पूरी पृथ्वी ही नाप लूंगी।’
‘तो चल निकल। नापते हैं सारी पृथ्वी। मेरा हाथ पकड़े रहना। छोड़ना मत। जल्दी-जल्दी चलो।’
दोनों बड़े हिम्मती हैं। बोगी से निकल कर करीब-करीब भागते हुए आगे बढ़ रहे हैं। मगर थोड़ा सा आगे निकलते ही युवक कह रहा है, रुको-रुको , एक मिनट रुको ।’
‘क्या हुआ?’
‘वहां प्लेटफॉर्म के आखिर में जहां पर फायर के लिए बाल्टियां टंगी हुई हैं। वहीं पर रेलवे के कर्मचारी अपनी साइकिलें खड़ी करते हैं। तू एक मिनट इधर रुक शेड के किनारे। देखता हूं अगर किसी साईकिल का लॉक खुला हुआ मिल गया तो उसे ले आता हूं। उससे बहुत आसानी से जल्दी निकल चलेंगे।’
‘यह तो साइकिल की चोरी है।’
‘इसके बारे में बाद में बात कर लेंगे। तुम अपने बालों में से एक चिमटी निकालकर मुझे दे दो।’
चिमटी लेकर गया युवक फुर्ती से एक साइकिल उतार लाया है। जिसे देखकर युवती कह रही है।
‘मुझे तो बड़ा डर लग रहा है। क्या-क्या करना पड़ रहा है।’
‘इतना आसान थोड़ी ना है घर वालों के खिलाफ चलना, घर से भागना। आओ बैठ जाओ। लो तुम्हारी चिमटी की जरूरत ही नहीं पड़ी। पता नहीं कोई जल्दी में था या फिर शराब के नशे में, ताला तो लगाया लेकिन उसमें से चाबी निकालना भूल गया। झोले में रखा हुआ एक टिफिन भी पीछे कैरियर पर लगा हुआ था। मैंने उसे निकालकर वहीं रख दिया।’
‘तुम्हें साइकिल उठाते डर नहीं लगा। ’
‘तू बिल्कुल बोल नहीं। मुझे जल्दी-जल्दी साइकिल चलाने दे।’
युवती को आगे बैठाकर युवक पूरी ताकत से साइकिल चला रहा है। लेकिन पहली बार साइकिल पर बैठने के कारण युवती ठीक से बैठ नहीं पा रही है। उसके हिलने-डुलने पर युवक कह रहा है।
‘ठीक से बैठ ना। इतना हिल-डुल क्यों रही है।’
‘मेरे पैर सुन्न होने लगे हैं।‘
‘तुम ज़्यादातर लड़कियां इतनी नाजुक क्यों होती हैं?‘
‘पता नहीं यह तो ऊपर वाला ही जाने।‘
‘क्या ऊपर वाला जाने? तमाम लड़कियां तो पहलवान बनकर पहलवानी कर रही हैं। सेना में जाकर गोलियां, फाइटर ज़ेट, बस, कार, ट्रक चला रही हैं।’
‘तो, ऐसे तो अपने गांव में ट्रैक्टर भी चला रही हैं। तो क्या सबकी सब पहलवान हैं। काम करना आना चाहिए। जरूरत होगी तो पहलवानी भी सीख लेंगे।’
‘चुप। बिलकुल चुप कर। चुपचाप बैठी रह। बिल्कुल बोलना नहीं। नहीं तो मैं तेरा मुंह फोड़ दूंगा। जब फूट जाएगा तभी चुप रहोगी क्या?’
‘मेरा मुंह मत फोड़ो। नहीं तो फिर मुंह कहां लगाओगे?’
‘तेरी ऐसी बातों के कारण ही रात में नींद आ गई और ट्रेन छूटी। अब ये साइकिल ट्रेन चलानी पड़ रही है।’
‘ठीक है। चुप हूं। और कितनी देर तक चलना पड़ेगा?’
‘अभी तो पन्द्रह मिनट भी नहीं हुए हैं। घंटा भर तो लगेगा ही।’
‘वहां कोई बस मिल जाएगी क्या?’
‘चुप, बिल्कुल चुप रह।’
युवक बिना रुके पूरी ताकत से साइकिल चलाए जा रहा है। गजब की ताकत, हिम्मत दिखा रहा है। पसीना उसकी नाक, ठुड्डी से होता हुआ टपक रहा है। युवती के पैर सुन्न हो रहे हैं। जिसे वह बार-बार इधर-उधर कर रही है। युवक का पसीना उसके सिर पर ही टपक रहा है। वह परेशान है और पूछ रही है, ‘अभी और कितना टाइम लगेगा?’
‘बस आने वाला ही है स्टेशन।’ जल्दी ही स्टेशन दिखने लगा है तो उतावली युवती कह रही है।
‘स्टेशन दिख रहा है, लग रहा है सूरज भी निकलने वाला है। जल्दी करो और तेज़ चलाओ ना।’
‘और कितनी तेज़ चलूँ ।’
‘तुम्हें पसीना हो रहा है क्या?’
‘तुम्हें इतनी देर बाद मालूम हुआ।’
‘गर्दन पर कुछ गीला-गीला बार-बार टपक रहा है तो मुझे लगा शायद तुम्हारा पसीना ही है।’
‘पसीने से पूरा भीग गया हूं। घंटा भर हो गया साइकिल चलाते-चलाते और कोई दिन होता तो इतना ना चला पाता। मगर तेरे लिए मैं इतना क्या, यहां से दिल्ली तक चला सकता हूं।’
‘और मैं भी कभी साइकिल पर इतनी देर बैठी नहीं। पैर बार-बार सुन्न हो रहे हैं। कभी इधर कर रही हूं, कभी उधर कर रही हूं। लेकिन अगर तू दिल्ली तक चलाए तो भी ऐसे ही बैठी रह सकती हूं।’
‘अच्छा चल उतर, इतनी लम्बी फेंक दी कि अब चला नहीं पा रहा हूं।’ स्टेशन पर पहुँच कर युवक ने झटके से साइकिल रोक कर युवती को उतरने के लिए कहा और स्टेशन की बाऊंड्री से सटाकर साइकिल खड़ी कर दी यह कहते हुए, ‘साइकिल गेट पर ही छोड़ देता हूं। जिसकी है भगवान उसको रास्ता दिखाना कि उसे उसकी साइकिल मिल जाए।’
सामने कुछ दूरी पर तैयार खड़ी एक बस को देखकर उत्साहित युवती कह रही है। ‘देखो बस तैयार खड़ी है, लगता है जल्दी ही निकलने वाली है।’
युवती युवक से भी ज़्यादा जल्दी में दिख रही है। सामने खड़ी बसों पर उसकी नज़र युवक से आगे-आगे चल रही है। युवक उसका हाथ पकड़े-पकड़े बस की तरफ बढ़ते हुए कह रहा है।
‘हां और अंदर ज़्यादा लोग भी नहीं हैं। दस-पन्द्रह लोग ही दिख रहे हैं।’ दोनों जल्दी-जल्दी चढ़ गए और बीच की सीट पर बैठ गए हैं। जिससे कि आगे पीछे सब पता चलता रहे। कंडक्टर अन्दर आया तो उसे देखकर युवती कह रही है, ‘टिकट ले लो। लेकिन यह बस जा कहां रही है?’
‘रायबरेली जा रही है। सामने प्लेट पर लिखा है। वहीं तक का टिकट ले लेते हैं।’
कंडक्टर टिकट देकर आगे चल गया तो युवती पूछ रही है। ‘यह कंडक्टर हम लोगों को ऐसे घूर कर क्यों देख रहा था।’
‘चुप रहो ना। उस तक आवाज़ पहुंच सकती है। रायबरेली पहुंचकर वहां देखेंगे, कोई ट्रेन मिल ही जाएगी दिल्ली के लिए। बस लगातार चलती रहे तो अच्छा है, वरना पकड़े जाने का डर है।’
‘रायबरेली कब तक पहुंचेगी?’
‘करीब दस बजे तक।’
इसी समय युवती चिहुंकती हुई कह रही है। ‘लगता है मेरा मोबाइल छूट गया है।’
‘क्या कह रही हो?’
‘हां, जल्दी-जल्दी में ध्यान नहीं रहा।’
‘रखा कहां था?’
‘मुझे एकदम ध्यान नहीं आ रहा है, अब क्या होगा?’
‘कुछ नहीं होगा। लोगों को जल्दी मिलेगा ही नहीं। साइलेंट मोड पर है। रिंग करके देखता हूं किसी के हाथ लग गया है या वहीं पड़ा है। अरे, रिंग तो जा रही है।’
इसी बीच युवती फिर चिहुंकती हुई बोली। ‘रुको, रुको। मोबाइल तो मेरे ही पास है।’
‘कमाल है सीने में छुपा के रखा हुआ है। और बता रही हो छूट गया। तुम्हें इतना भी होश नहीं रहता है।’
‘गुस्सा नहीं हो, जल्दबाजी और हड़बड़ाहट के मारे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।’
‘अच्छा हुआ तुम हड़बड़ाई, बौखलाई। इससे एक बड़ा काम हो गया। नहीं तो चाहे जहां पहुंच जाते पकड़े निश्चित जाते। लाओ जल्दी निकालो मोबाइल। यह संभावना भी खत्म करता हूं।’
‘क्या?’
‘मोबाइल, मोबाइल निकालो जल्दी।’
युवती युवक की जल्दबाजी से सकपका गई है। उसे मोबाइल दे रही है।
‘यह लो।’
मोबाइल लेकर युवक उसकी बैट्री निकाल रहा है। कह रहा है, ‘इसकी बैट्री निकाल कर रखता हूं। ऑन रहेगा तो वो हमारी लोकेशन पता कर लेंगे। और हम तक पहुंच जाएंगे। टीवी में सुनती ही हो, बताते हैं कि मोबाइल से लोकेशन पता कर ली और वहां तक पुलिस पहुंच गई। अब यह दोनों मोबाइल कभी ऑन ही नहीं करूंगा।’
‘फिर कैसे काम चलेगा आगे।’
‘देखा जाएगा। अब तो पहला काम यह करना है कि अगले स्टेशन पर ही इस बस से उतर लेना है।’
‘क्यों?’
‘क्योंकि इस मोबाइल से वह यहां तक की लोकेशन पा चुके होंगे या जब पुलिस में जाएंगे तो वह पता कर लेगी। इस बस से उतर लेंगे और फिर कोई दूसरी पकड़ेंगे, उससे आगे बढ़ेंगे।’
हैरान परेशान दोनों आधे घंटे बाद ही अगले बस स्टॉप पर उतर गए हैं। युवक कह रहा है।
‘चलो इस बस से तो पीछा छूटा।’
‘हां, देखो अगर यहां दिल्ली के लिए ही बस मिल जाए तो बस से ही दिल्ली चला जाए।’
‘नहीं बहुत दूर है। बस में बहुत परेशान हो जाएंगे। इसलिए ट्रेन से चलेंगे।’
दोनों को संयोग से एक ट्रेन मिल गई। जो तीन घंटे लेट होने के कारण उसी समय स्टेशन पहुंचे जब वो स्टेशन पहुंचे । इसी ट्रेन से दोनों लखनऊ पहुंच गए हैं। वहां दिल्ली के लिए उन्हें चार घंटे बाद ट्रेन मिलनी है। दोनों यहां कुछ राहत महसूस कर रहे हैं और जरूरत भर का सामान लेने के लिए निकल रहे हैं। युवक बोल रहा है, ‘चलो पहले एक बैग लेते हैं और जरूरत भर का सामान भी। ऐसे दोनों खाली हाथ चलते रहेंगे तो ट्रेन में टीटी, सिक्योरिटी वाले कुछ शक कर सकते हैं। पीछे पड़ सकते हैं। सामान रहेगा तो ज़्यादा शक नहीं करेंगे। बाहर से जल्दी ही आ जाएंगे। टिकट लेकर यहीं कहीं आराम करते हैं। बाहर होटल या गेस्ट हाउस चलता हूं तो बेवजह अच्छा खासा पैसा चला जाएगा और वहां सबकी नज़र भी हम पर रहेगी। उतने पैसों में कुछ सामान ले लूंगा और तत्काल टिकट में बर्थ मिल जाए तो ट्रेन में आराम से सोते हुए चलेंगे।;
भाग्य दोनों के साथ है। सामान लेकर जल्दी ही लौट आए हैं। उन्हें रिज़र्वेशन में बर्थ भी मिल गई और आराम से वे चल दिए हैं। सुबह ट्रेन दिल्ली पहुँचने को हुई तो युवक बोला, ‘दस बजने वाले हैं। थोड़ी ही देर में स्टेशन पर होंगे। तीन-चार घंटे सो लेने से बहुत आराम मिल गया। अब हम निश्चिंत होकर कहीं भी आ जा सकते हैं। अब हमें पकड़े जाने का कोई डर नहीं है। हम पति-पत्नी की तरह आराम से रह सकेंगे।’
‘जरूर, अगर कभी कोई मिल भी गया तो हमारे पास कागज तो हैं ही। बालिग हैं। अपने हिसाब से जहां चाहें वहां रह सकते हैं। हमें यहां कोई रोक-टोक नहीं सकेगा।’
स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर युवती कह रही है, ‘कितना बड़ा है यह स्टेशन।’
‘हां, बहुत बड़ा। आखिर अपने देश की राजधानी है।’
‘यहां कोई किसी को पकड़ता नहीं क्या?’
‘ऐसा नहीं है, जो गड़बड़ करता है वह पकड़ा जाता है। हम लोग अगर अपने गांव में पकड़े जाते तो जो हाल वहां होता, वह यहां पर नहीं हो पाएगा। बस इतना अंतर है। आओ निकलते हैं। बाहर अभी और कई लड़ाई लड़नी है। एक घर की लड़ाई। नौकरी की लड़ाई। यहां की भीड़ में कुचलने से अपने को बचाने की लड़ाई। यहां के लोगों से अपने को बचा लेने के बाद अपने भविष्य को संवारने की लड़ाई। अपने सपने को सच कर लेने की लड़ाई। बस लड़ाई ही लड़ाई है। आओ चलें।’
‘हां चलो। लड़ाईयां चाहे जितनी ढेर सारी हों लेकिन हम दोनों मिलकर सब जीत लेंगे। सच बताऊं। हमें तो उम्मीद नहीं थी कि अपने गांव से निकलकर हम सुरक्षित यहां तक पहुँच पाएंगे। तुम्हारी हिम्मत देखती थी तो हमें यह जरूर लगता था कि तुम्हारी यह हिम्मत हमारे सपने को पूरा जरूर करेगी। तुम हमें जरूर, जरूर, जरूर मिलोगे।’
‘तुम्हारी हिम्मत भी तो काम आई ना। तुम अगर हार जाती तो मैं क्या करता। इसलिए हम दोनों ने मिलकर जो हिम्मत जुटाई वह काम आई और दोनों यहां तक पहुंचे। अब अपनी दुनिया भी मिलकर बना लेंगे। मैं भगवान को सारा का सारा धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे इतनी हिम्मत दी। मुझे इतना दिमाग दिया कि हम सारे काम निपटा सके। बहुत-बहुत धन्यवाद हे! मेरे भगवान।’
इन दोनों ने अपने को सफल मानकर भगवान को सारा का सारा धन्यवाद दे तो दिया है। लेकिन गांव में अभी बहुत कुछ हो रहा है। जब ये आधे रास्ते पर थे तभी वहां यह बात साफ हो गई कि दोनों मिलकर निकल गए। मामला दोनों समुदायों की इज्ज़त का बनकर उठ खड़ा हुआ। हालात इतने बिगड़े कि समय पर भारी फोर्स ना पहुँचती तो बड़ा खून-खराबा हो जाता। वास्तव में यह दोनों तो बहाना मात्र थे। इस तूफ़ान के पीछे मुख्य कारण तो वही है कि वह संख्या बढ़ाकर अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहे हैं। हमारे लिए यह वर्जित है तो यह नहीं हो सकता। इसे वर्चस्व का ही संघर्ष कहिए। यह अभी ठहरा जरूर है, समाप्त नहीं हुआ है।
फोर्स की ताकत से चक्रवाती तूफ़ान से होने वाली तबाही तो जरूर रोक दी गई है। लेकिन पूरे विश्वास से कहता हूं कि ऐसे तूफ़ान स्थायी रूप से ऐसे युवक-युवती ही रोक पाएंगे जो अपना संसार अपने हिसाब से बसाने संवारने में लगे हुए हैं। जिनका उनके परिवार वालों ने उनका जीते जी अन्तिम संस्कार कर परित्याग कर दिया है। ये त्यागे हुए लोग, पीढ़ी ही सही मायने में भविष्य हैं हमारी दुनिया के। फिलहाल आप चाहें तो इनके मां-बाप की तरह मानते रहिए इन्हें एबॉन्डेण्ड।
ई-६ एम् २१२ ,सेक्टर एम्
अलीगंज ,लखनऊ
२२६०२४
९९१९००२०९६ ,८२९९७५६४७४
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