भुइंधर का मोबाइल
- प्रदीप श्रीवास्तव
अम्मा आज विवश होकर आपको यह पत्र लिख रही हूँ , क्योंकि मोबाइल पर यह
सारी बातें कह पाने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाई। आप जानती हैं कि मैं ऐसा क्यों
कर रही हूं? क्योंकि आपका बेटा भुइंधर! सुनो अम्मा आप इस बात के लिए गुस्सा न होना कि मैं
अपने पति-परमेश्वर और आपकेे बड़े बेटे का नाम ले रही हूँ । क्योंकि दिल्ली में आकर
आपका बेटा बहुत बदल गया है। जिन साहब के यहां गाड़ी चलाते हैं, यह उन्हीं की तरह सब कुछ करने की कोशिश करते हैं। उनकी एक-एक बात की नकल करते
हैं।
साहब की बीवी और साहब नाम लेकर एक दूसरे को पुकारते हैं, यहां आने पर यही सनक इन पर भी सवार हुई। मुझसे जब पहली बार ऐसा करने को कहा तो
मैंने तो पूरा जोर लगाया,
मना किया कि ये गलत है, ऐसा न करिए, अपनी संस्कृति, अपने कुल में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि औरत अपने पति का नाम ले, आप कुल की मर्यादा मुझ से क्यों भंग
करा रहे हैं? जो अम्मा जानेंगी तो उनको बुरा लगेगा। बहुत गुस्सा होंगी, आपसे भले कुछ न कहेंगी क्योंकि आप उनके बड़े बेटे हैं। मगर हमारी तो खाल ही खींच
लेंगी। यही कहेंगी कि ‘हे करमजली, कुलबोरन अपने मनई क्यार नाव लेत है।’
ये सब समझाने के बावजूद अम्मा ये टस से मस न हुए। अड़े रहे एकदम अड़ियल बैल की
तरह। बल्कि यह कहें तो ज़्यादा ठीक होगा कि एकदम बभनै की तरह अड़ियाए गए। अपनी कसम
दे दी। मैं तब भी नहीं मानी तो मारने पीटने पर उतारू हो गए। हमने सोचा कि आज तक
नहीं मारा, शादी के पांच साल हो रहे हैं तो अब क्या मारेंगे। मगर अड़ियाय गए तो अड़ियाय गए।
और जब कई थप्पड़ मेरे पड़ गए,
मेरे कान सुन्न पड़ गए, आंखों के आगे अंधेरा छा गया, तो मैंने हार मान ली। क्यों कि मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि यहां बचाने के
लिए न आप हैं, न बाबू जी, न पड़ोस वाली काकी, और न ही छोटके भइया। तो मैंने हार मान ली। तब इन्होंने मुझ से कहा ‘सात फेरे ली थी शादी में तो इसी समय सात बार नाम लो।’ मार खा-खा कर तब तक हलकान हो चुकी मैंने मन ही मन भगवान से माफी मांगते हुए
सात बार इनका नाम लिया।
अम्मा आप मेरी बात पर यकीन करें , यह सब एकदम सच है। उस दिन यह अपने
नाम को एकदम चरितार्थ कर रहे थे। पूरी धरती सिर पर उठाए हुए थे। मैं एकदम मज़बूर हो
गई थी। और एक बात यह भी मान गई कि आपने इनका नाम भुइंधर एकदम सही रखा है। बचपन में
भी ऐसे ही धरती सिर पर उठाते रहे होंगे तभी आपने यह नाम दिया होगा।
अम्मा यह चिट्ठी और आगे पढ़ने से पहले एक काम और कर लीजिए। अपने पास जग भर कर
पानीे और कुछ खाने-पीने का सामान रख लीजिए। क्योंकि आगे बहुत सारी बातें लिखी हैं।
आपको पढ़ने में टाइम लगेगा। सिर्फ़ टाइम ही नहीं आगे ऐसी-ऐसी बातें लिखीं हैं जिनको
पढ़ कर आपका दिल जोर से धड़क सकता है। आपका गला सूख सकता है। आप परेशान हो सकती हैं।
इसलिए आप पानी और कुछ खाने का सामान ज़रूर रख लें । फिर आगे पढ़ें।
अम्मा देखिए मैंने आप को कभी सासु मां नहीं, अपनी सगी अम्मा की तरह
माना है। मैं सबसे यही कहती हूं कि हमारी सास हमें मां से भी बढ़ कर मानती हैं।
अपनी बिटिया की तरह हमारा ख़याल रखती हैं। सच बताएं अम्मा जब मैं सास-बहू के झगड़ों
के बारे में सुनती हूं तो यकीन नहीं होता है कि आखिर सास-बहू कैसे लड़ती हैं। अगर
सारी सास आप जैसी हो जाएं और बहुएं तुम्हारी बहू जैसी, मतलब की मेरी जैसी तो सोचिए अम्मा इस दुनिया में सारे घर स्वर्ग भले न बन पाएं
लेकिन कम से कम घर तो ज़रूर बन जाएंगे। लेकिन पता नहीं अम्मा ये सब घर कब बनेंगे ।
अम्मा मैं ये चिठ्ठी आपको सिर्फ़ इसलिए लिख रही हूँ जिससे कि हमारा घर जो घर है वह घर बना रहे।
नर्क न बन जाए। यह चिट्ठी इस लिए भी लिख रही हूं कि जब घर छोड़ कर मैं आपके पुत्र
के साथ यहां दिल्ली आ रही थी तो आपने एक आग्रह किया था जो मेरे लिए भगवान के दिए
आदेश से कम न था, आपने कहा था कि ‘मैं बेटे के साथ भेज रही हूं उसका ध्यान रखना। उसे कोई भी परेशानी नहीं होनी
चाहिए। बस समझ लो तुम्हारे हवाले कर रही हूं अपना बेटा। कुछ भी हुआ तो तुम्हीं से
पूछुंगी।’ तो अम्मा तुम्हारी यह बात मेरे दिलो-दिमाग में हमेशा रहती है या यह कहो कि
मेरे रग-रग में बस गई है। मैंने इनका पूरा ध्यान रखा। क्यों कि एक तो आपका आदेश था
और दूसरे मेरे पति-परमेश्वर जो ठहरे। इनको जरा सी छींक भी आ जाए तो मैं व्याकुल हो
जाती हूं। और ऐसे में जब बात इनकी जान पर आ गई हो तो मैं आपको यह चिट्ठी कैसे न
लिखती।
अम्मा पहले तो आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूं कि इस चिट्ठी के बारे में
कभी भी किसी से कुछ न कहना। नहीं तो इन्हें पता चल जाएगा। और तब तुम्हारी यह बहू
जिंदा न बचेगी। इसलिए मैं आपको अपनी कसम दे रही हूं कि कभी न बताना किसी को। और
इसे चुगली भी मत समझना। तुम्हें यह बताना ही बताना है। क्योंकि मेरे सुहाग की
रक्षा का प्रश्न आ खड़ा हुआ है। उसकी रक्षा के लिए ज़रूरी है आपको यह सब बताना। आपका
बेटा सदैव सुरक्षित रहे इसलिए भी यह बताना ज़रूरी है।
अम्मा हुआ यह कि जब हम यहां आए तो शुरू में इनकी यहां पर जो स्थिति थी, घर इन्होंने जिस ढंग का बना रखा था उसे देख कर मैं बड़ी परेशान हो गई। मेरी समझ
में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या है। घर तो क्या था कि पूरा भटियारखाना था। चार
मंजिले मकान के सबसे ऊपर एक बड़ा कमरा और उससे लगा एक छोटा कमरा है। इस छोटे कमरे
को ही रसोई बना रखा है। बाकी बहुत बड़ी सी छत है। रसोई में सामान के नाम पर कुछ
बर्तन गंदे-संदे पड़े थे। खाने का सामान कहीं खुला तो कहीं बंद। कहीं पॉलिथीन में
तो कहीं किसी में पड़ा था। हर तरफ धूल-धक्कड़ थी। चलो कोई बात नहीं इतना सब तो ठीक
था क्योंकि बिना औरत के घर-घर कहां बन पाता है। इसलिए इससे कोई दिक्कत नहीं हुई।
हां दिक्कत कमरे से घर गृहस्थी के अलावा बाकी जो चीजें मिलीं उनसे हुई। यह दिक्कत
ऐसी थी कि कलेजा फट गया। आप पढ़ेंगी इस बारे में तो आपको भी बहुत कष्ट होगा। मैं
आपको कष्ट नहीं देना चाहती थी इसीलिए इतने दिनों तक नहीं बताया था। लेकिन अब क्यों
कि मुझे लगता है कि इनके कामों के बारे में आपको बता कर, इन्हें रोकने की कोशिश न की तो गलत होगा। क्योंकि मुझे लगता है इनकी आदतें न
बदली गईं या इनके कामों पर रोक न लगाई गई तो इनकी जान खतरे में पड़ी रहेगी। आपको
बता कर मैं आपसे मदद चाहती हूं।
हां अम्मा! कमरे के बारे में आपको बताना इसलिए ज़रूरी समझती हूं जिससे कि आप
सारी बात आसानी से समझ सकें। आप अभी तक यही समझती रही हैं कि आपका बेटा
शराबी-कबाबी नहीं है। मगर ऐसा नहीं है। यह रोज शराब भी पीते हैं और मीट की तो हालत
यह है कि इंसान का मांस मिल जाए तो वह भी न छोड़ें। लेकिन अम्मा यह जानकर आप घबराइए
नहीं। आजकल सब खा रहे हैं। फिर इन शहरों में तो यह सब फैशन है। और आप तो जानती हैं
कि अपने देश के लोग तो अब फैशन के दीवाने हो गए हैं। फैशन के नाम पर तो कहो सब
कपड़े उतार कर चलें। और चलें क्या बल्कि चल ही रहे हैं। शहरों में तो जैसे आग लगी
है।
खैर अम्मा इनके कमरे में जो कुछ मिला उसे देख कर मेरे बदन में आग लग गई। इनकी
अलमारी में कई लड़कियों की फोटो मिलीं। मगर आग तो इससे लगी कि फोटो में कई लड़कियां
नंगी थीं। एक में यह एक नंगी औरत को बांहों में दबोचे हुए थे। गुस्से की आग में
मैं एकदम जल गई। तिलमिला उठी। मन में आया कि अभी पूछूं इनसे इन सब के बारे में।
मगर कुछ कहने करने की हिम्मत नहीं कर सकी। क्योंकि आपके भुइंधर के गुस्से और मार
से मेरी रुह कांपती है।
बात यहीं तक होती तो भी गनीमत थी। कमरे को साफ करते-करते एक के बाद एक तन-बदन
को आग लगाने वाली चीजें मिलती ही जा रही थीं। यह सब आपसे बताने की हिम्मत मैं कभी
न कर पाती। मगर फिर कह रही हूं कि बात इनके प्राणों की है तो मैं सब लिख दे रही
हूं। मैं इतना घबरा गई हूं कि बताने में कोई शर्म-संकोच नहीं कर सकती। चाह कर भी
नहीं क्यों कि यह करके मैं बता ही न पाऊंगी। और तब इनकी जान खतरे में पड़ी रहेगी और
साथ ही मेरी भी। इसलिए आप भी बात को पूरे ध्यान से पढ़िए और समझिए, घबराइए नहीं, घबराने से काम नहीं चलेगा। अम्मा मेरी इस बात को नसीहत नहीं पूरी तरह से मेरी
प्रार्थना समझना।
हां तो आने के बाद मैंने घर को जो भटियारखाना बना हुआ था उसे वास्तव में घर
बनाया। यह रात को लौटे तो साफ-सुथरा घर देख कर बोले ‘अरे वाह मेरी रानी तुमने तो एकदम काया ही पलट दी।’ फिर हमको बांहों में जकड़ लिया और मुंह भर चूम-चूम कर गीला कर दिया। तब मुझे
इनके मुंह से शराब का ऐसा भभका मिला कि मेरा सिर चकरा गया। ये शराब के नशे में
बुरी तरह धुत्त थे। मार हमको चूमें जाएं, रगड़े-मसले जाएं। किसी तरह खुद को
छुड़ा कर अलग हुई तो जान में जान आई। चाय बनाने लगी तो मना कर दिया। कहा ‘मैं थका हूं आराम करने दो।’ फिर कुछ ही देर में बिस्तर पर पसर के सो
गए। जूता भी नहीं उतारा, पैर बिस्तर से नीचे लटका हुआ था। मैंने जूता उतार कर किसी तरह इन्हें बिस्तर
पर सीधा लिटाया। फिर इंतजार करती रही उठने, खाने का। भूख के मारे मेरा बुरा
हाल था।
रात करीब दो बजे जब यह उठे बाथरूम जाने के लिए तो फिर मैंने पूछा तो बोले ‘सोई नहीं’ मैंने कहा ‘तुम्हें खाना खिलाए बिना कैसे सो जाती’। तो बोले ‘ये तो आते ही पीछे पड़ गई। ठीक है ले आ खाना।’ खैर किसी तरह खाना
खाया, मुश्किल से दो चार कौर,
फिर हमने भी खा लिया। अब तक इनका नशा उतर चुका था। चार घंटा
सो भी चुके थे लेकिन मुझे जोर से नींद आ रही थी सो मैं बिस्तर पर लेटते ही सो गई।
अब क्योंकि चारपाई एक ही थी तो एक ही पर सो रहे थे। मगर इनकी हरकतों से कुछ ही
देर में नींद खुल गई। फिर इन्होंने मेरे
साथ जो हरकतें कीं, मुझे जिस तरह नोचा, खसोटा, मसला कि तड़प उठी। इनका यह अवतार मेरे लिए एक नया अनुभव था। मुझ से जो करने को
कहा और करवाया, अपने मोबाइल में जो पिक्चरें दिर्खाइं वह सब मैं तुम से किसी सूरत में नहीं
बता सकती। बस ये समझ लीजिए कि जितने अरमान लेकर गांव से यहां पहुंची थी वह इनकी
हरकतों सेे इनके नए रूप से पहले ही दिन चकनाचूर हो गए।
अगले दिन सुबह जब यह तैयार होकर ड्यूटी पर निकलने वाले थे तो इन्हें खुश देख
कर मैंने बड़े मनुहार से प्रार्थना की कि ‘आज मत पीजिएगा। शाम को जल्दी आइएगा
मैं आपका मनपसंद खाना बनाऊंगी।’ बस इतना कहते ही इनकी भृकुटि तन गई तो
मैंने सहमते हुए कहा ‘देखिए ये बहुत ख़राब चीज है। कल आप अपने होश में नहीं थे तो देखिए क्या किया।’ मैंने अपने बदन के कपड़े हटा कर वे हिस्से दिखाए जो उनकी हरकतों से चोट खाकर
काले पड़ गए थे। खरोंचों, सूजन को भी दिखाया मगर इसका असर सिर्फ़ इतना हुआ कि मुझ पर एक जलती नजर डाली
और गाड़ी की चाभी उठाई फिर मुझे भी एक मोबाइल थमाते हुए कहा ‘इसे रख ज़रूरत पड़ने पर फ़ोन करना। मेरी ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं।’ कह कर चल दिए। फिर उस दिन मुंह बनाए रात बारह बजे आए खाना खाया सो गए। एक बात
न की।
मैं नींद न आने के कारण उठी और छत का पर टहलने लगी। उस ऊंची छत से दूर-दूर तक
बिजली की रोशनी और बड़े-बड़े मकान दिख रहे थे। हर तरफ जलती बिजली देखकर एक बार मन
में आया कि काश अपने गांव देहातों में भी बिजली ऐसे ही आने लगे तो कितना अच्छा
होता। हम लोग तो बिजली को तरसते रहते हैं। दो चार घंटे आ गई तो बड़ी बात है। और
यहां देखो कितनी इफरात बिजली है। सड़कों पर बड़ी-बड़ी महंगी गाड़ियां भी दौड़ती दिख रही
थीं। मगर फिर भी न जाने क्यों मेरा मन न सिर्फ़ अजीब सा व्याकुल हो रहा था बल्कि
अचानक ही रह-रह कर तुम सब की याद आ रही थी।
इतने हलचलों से भरे शहर में एकदम अकेलापन महसूस कर रही थी। सच भी तो यही था, वहां आखिर अपना था भी कौन और जब कोई अपना था नहीं तो अकेलापन डसे बिना कैसे
छोड़ता। सो वह डसता रहा। अंततः मैं ऊब कर कमरे में आ गई। वहां मेरी नजर इनके कपड़ों
पर पड़ी। अनायास ही मैं उनकी तलाशी लेने लगी। मैं जानती थी यह गलत है, लेकिन इनकी हरकतों के चलते रोक न सकी। और जानती हैं अम्मा क्या मिला इनके
कपड़ों में ? एक डिब्बी बहुत महंगी वाली सिगरेट, और नोटों की गड्डी। जिसमें दो हज़ार, पांच सौ, सौ-सौ के नोट थे। गिनने पर 12 हज़ार से ज़्यादा निकले। मैं परेशान हो
गई। आखिर कहां से आया इतना पैसा, महंगी सिगरेट। दूसरी जेब में हाथ डाला
तो उसमें इनकी घड़ी मिली। जिसे यह रोज लगाते थे। बरबस ही मेरी नजर इनकी कलाई पर गई
तो देखा एक नई घड़ी लगाए हुए हैं। जो देखने में बहुत महंगी लग रही थी। मैं परेशान
हो गई कि अपनी कमाई से दस गुना ज़्यादा यह कहां से खर्च कर रहे हैं। मैं यह सोच ही
रही थी कि यह कसमसा कर उठे फिर मेरी तरफ देखा। मैं तब तक इनका सामान वापस रख चुकी
थी। मुझे देख कर पूछा ‘सोई नहीं क्या?’
मैंने कहा ‘नींद नहीं आ रही।’
‘क्यों।’
‘अ....नई जगह है न इसीलिए, और आज अम्मा की भी बहुत याद आ रही है।’
अम्मा फिर यह उठकर बाथरूम गए और आकर पानी पीकर लेटते हुए बोले ‘लाइट ऑफ करके आ मैं तुझको सुला देता हूं।’ मैं इनकी हरकतों से समझ गई कि
यातना के मेरे क्षण शुरू। पर मैंने भी सोच लिया कि जैसे भी हो आज इनसे हक़ीक़त
पूछूँगी । जब यह अपना यातनापूर्ण खेल मेरे साथ खेल कर अघा गए तो मैंने पूछ लिया
रुपया, घड़ी, फोटो आदि के बारे में। बस फिर क्या था आग बबूला हो बोले ‘मेरी जासूसी करती है। दिमाग खराब हो गया है तेरा। देख बीवी है बीवी की तरह रह।
मास्टरनी बनने की कोशिश की तो फाड़ कर रख देंगे समझी।’
अम्मा इसके बाद और भी ऐसी बातें कहीं, गालियां दीं कि बता नहीं सकती। खैर
मैंने भी ठान रखा था इसलिए चुप मैं भी न हुई। मुझे बार-बार तुम्हारी बात याद आती
तो मैं बार-बार तनकर खड़ी हो जाती। गाली मार खाती रही मगर फिर भी पीछे न हटी। मैं
ठान चुकी थी कि इनको रास्ते पर लाकर रहूंगी। इसी समय मुझे तुम्हारी यह बात भी याद
आ जाती कि ‘ऊ मेहरिया भी कऊन जऊन अपने मनसवा का अपने वश मा न राखि सकै।’ मैं अपनी कोशिश में लगी रही कि ये पीना बंद कर दें। यह भी जानने की कि नौकरी
के अलावा कौन सा धंधा कर रहे हैं जो ऊटपटांग पैसा, सामान ले आ रहे हैं।
इस कोशिश में अम्मा आए दिन हम गाली, मार खाते रहे और कि खाते ही आ रहे
हैं।
एक दिन ये रात में साहब को एयरपोर्ट पर छोड़ कर बारह बजे के करीब आए। मैं खाना
बनाए इंतजार कर रही थी। लेकिन आए तो किसी बहुत बढ़िया होटल से अपना और मेरा खाना
लेते आए। अपने लिए मुर्गासुर्गा लाए थे। मेरे लिए शाकाहारी। सोते-सोते दो बजने
वाले थे। बहुत गर्मी हो रही थी। कि तभी कूलर में न जाने क्या हुआ कि बंद हो गया।
कमरे में पंखे की हवा भी तपाए दे रही थी। बाहर छत पर गए, वहां हवा कुछ राहत दे रही थी तो यह बोले ‘चलो आज खुले में सोते हैं। बहुत
दिन से बाहर सोए नहीं हैं।’
जमीन पर ही बिस्तर लगाया। बाहर की हवा वाकई पंखे की हवा से ज़्यादा राहत दे
रही थी। ये एकदम मस्तियाए हुए थे। मैंने मौका देख कर पूछ लिया फिर से उन सारी
बातों के बारे में तो बोले ‘ए फालतू का ड्रामा करके मूड मत खराब कर
चल इधर आ।’ कहकर मुझे खींच कर चिपकाना चाहा तो अम्मा मैंने भी छिटक कर बिस्तर के एकदम
किनारे पहुंच कर कहा ‘नहीं पहले बताओ तभी कुछ करने दूंगी।’
जानती हैं अम्मा आपका पूत बड़ा जबरा है। इतना जबरा कि मारे भी और रोने भी न दे।
मगर मेरी भी एक ही धुन थी कि इन्हें रास्ते पर लाना है, तो मैं अपनी बात पर अड़ी रही। फिर अचानक ही इन्होंने मेरी साड़ी का आंचल पकड़ कर
खींच लिया कस कर। मगर मैं इनकी पकड़ से बचने के लिए दूसरी तरफ लुढ़कती गई। इनके हाथ
मैं नहीं सिर्फ़ मेरी साड़ी लगी। अब इनका सुर बदलने लगा। बोले ‘देख नौटंकी न कर सीधे आ जा। नहीं तो दुशासन की तरह चीर हरण करते देर नहीं
लगेगी मुझे। इतना कह कर यह बाज की तरह झपट पड़े मुझ पर, अब साड़ी के बाद मेरा दूसरा कपड़ा इनके हाथ में था। पर मैं फिर इनके हाथ न लगी।
अब मैं खाली ब्लाउज में रह गई थी। तो एक तकिया जो मेरे हाथ लगा उसे लगा लिया अपने
सामने।
अम्मा यह पढ़ कर तुम्हें अचंभा हो रहा होगा और गुस्सा भी आ रहा होगा। लेकिन मैं
यही कहूँगी कि आप गुस्सा न हों , पहले बात को पूरा पढ़ लीजिए। ये रात में हमारे साथ रोज यही नंगई का खेल खेलते
हैं। ये सोच कर भी न परेशान हों कि हम छत पर यह सब कर रहे थे तो दुनिया देख रही
थी। मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि किसी और
मकान की छत से इस मकान की छत पर नहीं देखा जा सकता। अच्छा तो जब यह दूसरी बार भी
मुझे न पकड़ पाए तो एकदम भन्ना पड़े और बोले ‘साली छिनारपन दिखाती है। नहीं
...... है तो न ......। यहां साहब की बीवी ...... को..... पीछे पड़ी रहती है, उसकी ...... हूं तेरी क्या औकात। चल हट यहां से छिनार कहीं की।’
इतना कह कर इन्होंने पेटीकोट खींच कर मेरे मुंह पर मारा और दूसरी तरफ मुंह
करके करवट लेट गए। मैं हक्का-बक्का तकिया पकड़े खड़ी रह गई। क्यों कि इतना जोर का एक
नया तमाचा मेरे चेहरे पर पड़ा था कि साहब की बीवी के साथ इनके संबंध हैं। मेरे काटो
तो खून नहीं। मैं थरथर कांप रही थी। इतना बड़ा धोखा यह साहब को दे रहे हैं। मेरे
साथ इतना बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं। यह कुकर्म एक दिन ज़रूर खुलेगा। और तब इनकी क्या
हालत होगी मैं यह सोच कर पसीने-पसीने हो गई। क्योंकि अम्मा साहब बहुत गुस्से वाला
आदमी है। इन्होंने ही एक बार बताया था कि पहले किसी बड़ी कंपनी में काम करते थे
लेकिन वहां के मालिक से झगड़ कर अलग हुए और अपनी कंपनी खोली रात-दिन मेहनत कर आज
खुद बहुत बड़ी कंपनी के मालिक बन गए हैं।
मगर आज भी सोलह-सत्रह घंटे काम करते हैं। कंपनी के काम से आए दिन हवाई जहाज से
इधर-उधर जाते रहते हैं। अम्मा तुम ऐसे आदमी को देवता कह सकती हो। मैं तो यही मानती
हूं। मगर अम्मा एक मामले में वह बड़ा दुर्भाग्यशाली है। उसकी बीवी बहुत हरामजादी
है। नहीं ये गाली तो उसके लिए कुछ नहीं है। मुझे उससे बड़ी कमीनी औरत दुनिया में
दूसरी नहीं दिखाई देती। जानती हैं आदमी मेहनत करके खियाए जा रहा है और इस चुड़ैल को
अय्याशी के सिवाय कुछ और नहीं सूझता। एक लड़का है। वो बहुत ऊंची पढ़ाई के लिए बाहर
विदेश गया है। ये कमीनी घर में अकेली रहती है। जब देखो तब चमचमाती गाड़ी में घूमती
रहती है। और जब उस दिन तुम्हारे भुइंधर के मुंह से यह सुना कि इसने हमारे आदमी को
भी नहीं बख्शा तो तब से वह हमें फूटी आंखों नहीं सुहाती। खैर उस दिन रात भर मैं
सोई नहीं, आंसू बहाती पड़ी रही। ये तमाचा इतना तेज़ था कि मैं बरदाश्त नहीं कर पा रही थी।
कई बार मन में आया कि इस सबसे ऊंची छत से नीचे कूद कर मर जाऊं। आखिर किसके लिए
जीयूं। जिसके सहारे यहां आई वही इतना बड़ा धोखेबाज निकला तो इस बेगानी दुनिया में
कौन मेरा होगा। फिर सोचा यह तो कायरता होगी। हार मान कर जान देने से क्या फायदा।
कोशिश करती हूं कि इन्हें धोखेबाजी, अय्याशी, शराबखोरी की दुनिया से बाहर निकालूं।
अम्मा आप गुस्सा हो सकती हैं कि मैं आपके लड़के को धोखेबाज कह रही हूं। मगर आप
ही बता दें क्या कहूं ? मैं समझ रही हूं अम्मा तुम्हारे पास भी इसके अलावा कोई जवाब नहीं है। मैं अंदर
ही अंदर घुटती इनको रास्ते पर लाने की कोशिश में लगी रही। सोचा कि चलो लड़का-बच्चा
हो जाएंगे तो यह बदल जाएंगे। मगर मुझ करमजली के ऐेसे भाग्य कहां ? आज तक एक बच्चे की खातिर तरस रही हूं। न जाने कितनी बार डॉक्टर के यहां चलने
को कहा मगर शराब और उस चुड़ैल के साथ अय्याशी के आगे इनके कान पर जूं नहीं रेंगती।
एक बार कुछ सोच कर हमने कहा ‘ऐसा करो कहीं और इससे अच्छी नौकरी ढूंढ़
लो। किसी और मुहल्ले में चलो। जहां अपने तरह के लोग हों, यहां सब बड़े-बड़े लोग हैं। किसी से हम बात नहीं कर पाते। मन बड़ा ऊबता है। इतने
दिन हो गए इसी कमरे में पड़े-पड़े।’ जानती हो अम्मा सब कहा सुना बेकार गया।
ये चिकने घड़े से भी ज़्यादा चिकने निकले। बस उसी हरामजादी के दीवाने बने बौराए हुए
हैं। साहब के न रहने पर जब वह चुड़ैल इनको लेकर निकल जाती है तो मैं हाथ मलने के
अलावा कुछ नहीं कर पाती हूं।
मगर कब तक सहती, हर चीज़ की एक सीमा होती है न, तो मैंने भी एक दिन ठान लिया कि इनको तब
रंगे हाथों पकड़ूंगी जब ये यह कहकर नीचे चुड़ैल के पास जाते हैं कि मेम साहब बुला
रही हैं। और साथ ही मैंने यह भी तय किया कि जब रंगे हाथ पकड़ू़ंगी तो इतना चीखूंगी
-चिल्लाऊंगी कि उसकी काली करतूत से दुनिया वाकिफ़ हो जाए और तब यह हमारे
पति-परमेश्वर भुइंधर को भी निकाल देगी। ऐसे इस कमीनी से फुरसत मिल जाएगी। मैं मौक़े
की ताक में थी। अम्मा जल्दी ही एक अवसर मिल गया। साहब एक हफ़्ता के लिए टूर पर बाहर
गए। जिस दिन वह बाहर गए उसके अगले ही दिन यह दिन भर कहीं गायब रहे। अम्मा वह चुड़ैल
इतनी चालाक है कि हम क्या बताएं।
दुनिया को उसकी करतूत पर शक न हो इसके लिए न सिर्फ़ भुइंधर को हमेशा ड्राइवर
की सफेद वर्दी में रखती है बल्कि बातचीत भी खुर्राट मालकिन की तरह करती है। अपमान
करने की हद तक। खैर उस दिन शाम को लौटने के बाद यह उसके पास नहीं गए। खाने-पीने की
ढेर सारी चीजें लेकर आए। मगर मुंह लटका हुआ था। इसलिए उस दिन मैं कुछ न बोली सिवाय
इसके कि ‘तबीयत खराब है क्या?’
‘नहीं! क्या ज़रूरी है तुम्हें हर चीज बताना ?’ उनकी इस झिड़की से मैं एकदम शांत हो गई।
अगले दिन उस चुड़ैल ने एक पार्टी रखी। जिसमें उसी की तरह की पंद्रह-सोलह औरतें
आईं। जमके खाना-पीना, ताश खेलने से लेकर शराब पीने तक का काम हुआ। ऐसी बेहयाई अम्मा हमने यहीं आ के
देखी। तन उघारे इन औरतों को तुम बेहया औरतों की देवी कह सकती हो। ऐसी पार्टियों के
बारे में वहां थी तब पिक्चरों में देखा सुना था। यहां उसका असली रूप देख कर दंग रह
गई।
खैर शाम होते-होते सब खतम हुआ, रात हुई, दिनभर उनकी पार्टी का काम-धाम देख कर थके हारे भुइंधर भी आए ऊपर। खाना-पीना सब
नीचे से आया था। लेकिन वह भ्रष्ट खाना हमारे गले से नीचे नहीं उतर सकता था तो हमने
दूसरा बनाया। फिर इनकी ना नुकुर, हां ना, दुनिया भर के नखरे
उठाए। तब ये थोड़ा सा खाके टहलने लगे छत पर। इनको देख के लग रहा था कि मन इनका कहीं
और है। रात ग्यारह बजे के करीब सोने के लिए लेटे। यह भी लेट चुके थे। कि तभी मेरी
सौतन बन चुकी इनकी मोबाइल की घंटी घन-घना उठी। मेरा जी जल उठा। इन्होंने नंबर देखा
और उठकर कमरे से बाहर छत पर जाकर बात की जिससे मैं न सुन सकूं। बात करके मेरे पास
आए बोले ‘मैं काम से जा रहा हूं,
हो सकता है देर हो जाए।’ मेरा इंतजार मत करना सो जाना। फिर
यह जल्दी-जल्दी तैयार हो कर चल दिए।
मुझे शक था सो इनके निकलने के बाद मैं छत पर आकर देखने लगी कि यह कौन सी गाड़ी
लेकर जा रहे हैं। दरअसल साहब ने कई गाड़ियां रखी हैं। मैं छत पर खड़ी देखती रही
लेकिन यह बाहर दिखाई नहीं दिए। बस गेट-कीपर ऊंघता नजर आया। मैंने मन में
उमड़ती-घुमड़ती शंकाओं के बीच ठान लिया कि चाहे जो हो आज नीचे चल कर देखूंगी, जान कर रहूंगी कि नीचे क्या-क्या कुकर्म होते हैं। यह ठाने मैं दबे पांव नीचे
पहुंची। अम्मा घर में जगह-जगह बेहद फैंसी झाड़-फानूस लगे हैं। हल्की-हल्की रोशनी हर
तरफ थी। मैंने देखा बाहर जाने वाला रास्ता अंदर से बंद था मतलब घर से कोई भी बाहर
नहीं गया था। अब मेरा शक और पक्का होता जा रहा था। मैं दबे पांव मालकिन के कमरे तक
पहुंच गई। मगर अंदर से कोई आहट नहीं मिल रही थी। दरअसल अम्मा एयरकंडीशन कमरा है तो
वह हर तरफ से एकदम बंद रहता है। तो बाहर आवाज़ नहीं आ सकती। अब मैं परेशान हो उठी
कि कैसे पता करूं। मगर एक जिद मुझे बराबर आगे बढ़ा रही थी कि आज चाहे जैसे हो पता
करना है सब कुछ।
अंततः मुझे कमरे के अंदर झांकने का रास्ता नजर आ गया। मैंने खाने वाली मेज के
पास लगी कुर्सियों में से एक खींच कर उस खिड़की के पास लगाई जिसके ऊपरी हिस्से के
पास पर्दा कुछ इंच हटा था और वहां से अंदर देखा जा सकता था। मेरे पैर थरथरा रहे
थे। अम्मा पूरे बदन में मैं पसीने का गीलापन महसूस कर रही थी। दिल जोर-जोर से धड़क
रहा था। मगर जिद के आगे सब बेकार था। मैं अपने पति-परमेश्वर की रक्षा के लिए कुछ
भी करने को तैयार थी। इसीलिए कुर्सी पर चढ़ कर मालकिन के कमरे के अंदर झांकने लगी।
अम्मा अंदर मैंने जो देखा उसे लिखते हुए हाथ कांप रहे हैं। मैं शर्म के मारे
पानी-पानी हो रही थी मगर अंदर जिन दो प्राणियों को देख कर मैं पानी-पानी हो रही थी
उन पर तो
शर्म की छाया भी न थी। क्रोध के कारण मेरा खून उबल रहा था। अम्मा मैं हतप्रभ
थी। बस देखती ही रह गई। जानती हैं मैंने अंदर क्या देखा ?
अम्मा अगर आपके बेटे और मेरे पति-परमेश्वर के प्राणों की बात न होती तो मैं
कभी मुंह न खोलती मगर मज़बूर होकर लिख रही हूं। अंदर वह कमीनी शराब पी रही थी और
सिगरेट फूंक रही थी। और जानती हैं उसके तन पर कपड़ों के नाम पर एक ऐसा टुकड़ा था जो
कुछ हद तक समीज जैसा था। जिसमें ऊपर दो पतली पट्टी थी जिसके सहारे वह उसके तन पर
टिका था। कपड़े की लंबाई उसकी जांघ तक थी। इसके अलावा उसने कुछ नहीं पहना था। उसकी
बड़ी-बड़ी छाती थल-थल कर हिल रही थी। वह बेड पर मोटी तकिया के सहारे अधलेटी पड़ी थी।
और हमारे पति परमेश्वर...! अम्मा कहते हुए मैं शर्म से गड़ी जा रही हूं कि हमारे
पति परमेश्वर खाली कच्छा पहने उसके पैरों के पास बैठे शराब पी रहे थे। सिगरेट का
जैसा धुंआ वह चुड़ैल छोड़ रही थी वैसे ही यह भी छोड़ रहे थे। दोनों का मुंह मानो
पुराने जमाने वाले कोयला और भाप से चलने वाले इंजन बने हुए थे। गांव में बड़की
महराजिन जैसे हुक्का पीके धुंआ छोड़ती थीं, अम्मा यह दोनों उससे भी ज़्यादा
धुंआ छोड़ रहे थे।
इतना ही नहीं अम्मा इससे आगे भी और जान लीजिए कि हमारे प्राण प्यारे
पति-परमेश्वर ने उस चुड़ैल के साथ और क्या किया! अपने लड़के के कारनामें जो आगे
पढेंगीं तो आपका खून उबल सकता है। वैसे एक
बात बताएं अम्मा शहर में यह सब खूब हो रहा है। समझ लो कि पूरे कुंए में ही भांग
मिली हुई है। और हमारे पति-परमेश्वर वह भांग पीकर बौराए हुए हैं। अब आगे पढ़िए। उस
चुड़ैल ने फिर अपना एक पैर हमारे पति-परमेश्वर की जांघों पर रख दिया तो वो उसको
सहलाते रहे। इस बीच वह चुड़ैल दीवार पर टंगे बड़े टीवी पर, अम्मा एक चीज पहले आपको और बता दें कि अब यहां ज़्यादातर लोग पहले की तरह वह
मोटे वाले टीवी मेज पर रख कर नहीं देखते। अब नए तरह के पतले-पतले टीवी आते हैं
जिसे कैलेंडर की तरह दीवार पर टांग कर देखो।
वह चुड़ैल भी टीवी पर एक बहुत गंदी पिक्चर दारू पीते हुए देख रही थी। अम्मा इस
तरह की पिक्चरों को ब्लू फ़िल्म कहते हैं। असल में इसमें आदमी औरत जो कुछ रात में
अपने कमरों में करते हैं वही बल्कि उससे हज़ार गुना अंडबंड तरह से सब करते हुए
पिक्चर में दिखाते हैं। अम्मा ये जान कर आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा कि एक
साथ कई-कई औरतें और मर्द होते हैं। ये नारकीय लोग जानवरों तक को नहीं छोड़ते। यही
सब कुकर्म टीवी पर वह चुड़ैल देख रही थी। और हमारे पति-परमेश्वर उसके पैर मसल रहे
थे। उनके हाथ कपड़े के अंदर तक जा रहे थे।
अम्मा एक मिनट रुकिए एक बात और साफ कर दें। आप ये तो समझ गई होंगी कि ब्लू
पिक्चरों के बारे में हमें कैसे पता चला। मगर मैं फिर भी बता रही हूं कि यह सब
हमें हमारे परमेश्वर ने बताया, दिखाया। अपने मोबाइल पर आए दिन हमें
दिखाते हैं। जबरिया दिखाते हैं और उसी तरह का कुकर्म करने को कहते हैं। जब हम नहीं
करते तो हमें कूंचते हैं। महतारी, बहिन गरिया के कहते हैं ‘साली सारा मूड बरबाद कर देती है।’
खैर उस चुड़ैल ने आगे क्या किया उसे भी जान लीजिए। कुछ देर बाद नशे में
तुम्हारे भुइंधर और वह चुड़ैल एकदम चैती के बौराए कुकुर और कुकुरिया नजर आ रहे थे।
अचानक उसने हमारे पति-परमेश्वर का हाथ पकड़ कर खींच लिया अपने ऊपर, फिर पलट कर भुइंधर के ऊपर चढ़ बैठी। हमारे पति परमेश्वर एकदम चिंचियाए पड़े उस
भैंस के वजन से। अम्मा एक बात फिर बता दें कि इन दोनों की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दे
रही थी। भुइंधर जिस तरह मुंह खोले उसके बैठने पर उससे बात एकदम साफ थी कि वह
चिंचियाए।
उस चुड़ैल ने इनके होंठ...लाल कर दिए। इसके बाद बेहयाओं की उस महारानी ने अपना
वह झबला उतार कर हमारे परमेश्वर के हाथ छि... अम्मा वह सब लिखने की हिम्मत लाख
कोशिशों के बाद भी नहीं कर पा रही हूं। खैर अम्मा मैंने पहले ही आपसेे कहा था कि
मैं इस इंतजार में थी कि इन दोनों को रंगे हाथ पकड़ने पर इतना बवाल करूंगी कि
दुनिया जान जाएगी फिर यह हमको लेकर वहां से हट जाएंगे। लेकिन जब मैंने रंगे हाथ
पकड़ा तो स्तब्ध रह गई। मेरा दिमाग एकदम सुन्न पड़ गया, ठस हो गया था जैसे। कल्पना से एकदम उल्टी तसवीर देख कर हकबका गई थी। इसी लिए
उस नारकीय काम को होते देखती रह गई। अपने नारकीय कुकृत्यों के बाद यह दोनों काफी
देर तक पसरे पड़े रहे।
फिर अचानक वह चुड़ैल कुछ बोली और उठ कर बैठ गए दोनों। इसके बाद चुडै़ल उठ कर
कमरे से लगे बाथरूम की तरफ चल दी। बेहया ने अब भी एक कपड़ा तन पर नहीं डाला था।
अम्मा यहां बड़े शहरों में कमरे से लगा हुआ ही बाथरूम भी बनाए रहते हैं जिससे कमरे
से बाहर न जाना पड़े। उधर वह बाथरूम में गई इधर हम अपने परमेश्वर का एक और घिनौना
रूप देख रहे थे। जिस बिस्तर पर दोनों ने नरक मचाया था हमारे परमेश्वर ने उस पर
बिछी चादर खींच कर उठाई और कमरे से बाहर वाले बाथरूम में लेकर चले गए। हमारे वही
पति-परेमश्वर जो हमारे सामने पानी का गिलास भी बाएं से दाएं खिसकाने में अपनी
बेइज्जती समझते हैं वह उस चादर को उठाकर बाथरूम में कपड़े धोने वाली मशीन में डालने
गए थे। जब वह कमरे से निकलने लगे तो मैं जल्दी से उतर कर मेज के नीचे छिप गई थी।
कुछ देर बाद हमारे परमेश्वर बाथरूम से निकल कर फिर कमरे में दाखिल हो गए। दरवाजा फिर
बंद कर दिया था।
मैं फिर कुर्सी पर चढ़ कर अंदर देखने लगी। अब हमारे परमेश्वर दूसरी चद्दर बेड
पर बिछा कर तौलिया लपेट कर खड़े थे। कुछ ही देर में वह बेहया भी बाथरूम से बाहर आई।
गनीमत थी कि अब तन पर तौलिया लपेटे थी हालांकि तौलिया उसकी जांघ और आधी छाती ही
ढके थी। चुड़ैल आकर बैठ गई और फिर हमारे परमेश्वर ने सिगरेट सुलगा कर उसे दी और खुद
भी पीने लगे। इस बीच दोनों कुछ बतियाते रहे। फिर शराब निकाली गई और पीनी शुरू की
गई। अब तक कुर्सी पर पंजे के बल खड़े-खड़े मैं बुरी तरह थक गई थी और पूरी तरह पस्त
होकर निराश भी कि हमारे परमेश्वर अब हमारे लिए नहीं सिर्फ़ अपने लिए जीते हैं। दिल
में बनी पति-परमेश्वर की सुन्दर पवित्र
मूर्ति खंड-खंड हो टूटती जा रही थी।
मुझे लगा कि जितना देख रही हूं वह उतनी ही तेज़ी से बिखर रही है। इस डर से कि
कहीं वह पूरी तरह से न बिखर जाए और मेरी आस्था परमेश्वर की तरफ से एकदम नेस्तनाबूत
न हो जाए, मैं कुर्सी से नीचे उतरी, उसे सही जगह पर रखा और ऊपर कमरे में आ
गई।
अम्मा तब ऐसा लग रहा था कि इस दुनिया में मैं एकदम अकेली हूं। दुनिया के सारे
लोग कहीं दूसरे लोक में चले गए हैं। इंसान ही नहीं बल्कि सारे जीव जंतु भी, पेड़ पौधे भी, ताल, पोखर, नदी, समुद्र का पानी भी। पूरी धरती एकदम खाली-खाली विरान पड़ी है और मैं निपट अकेली
खड़ी हूं। कोई नहीं है मेरे साथ सिवाय धरती के । मैं फफक-फफक कर रो रही हूं, बार-बार तुम्हें, बाबूजी, माई, बाबू को चिल्ला-चिल्ला कर बुला रही हूं मगर कोई मेरी नहीं सुन रहा है। तब मैं
पछताने लगी, खीझ कर अपना सिर पीटने लगी, कि क्यों तुम्हारी इच्छा के खिलाफ मैं
अपनी मर्जी से, अपनी जड़ से कट कर यहां बेगाने सूखे हृदयहीन भीड़ से भरे शहर में आ गई। क्यों
पति-परमेश्वर को इस बात के लिए उकसाती रही कि वह मुझे साथ ले कर शहर चलें । अम्मा
आज यह बात खोल रही हूं कि मैं ही इन्हें बराबर कहती थी कि मुझे ले कर शहर चलो।
इतना ही नहीं अम्मा उस समय तुम मुझे एक खलनायिका दिखती थी, बड़ी गुस्सा आती थी तुम पर जब तुम कहती थी कि ‘अरे आपन देश दुनिया
छोड़ के कहां जइयो, भुइंधरवा का जाय द्यो नौकरी करै वह बीच-बीच मइहा आवा करी।’
अम्मा क्षमा करना तब तुम्हारी बातें हमें जहर लगतीं थीं। लगता था कि तुम हमारी
खुशियों की सबसे बड़ी दुश्मन हो। जानती हो तब मैं बड़े-बड़े सपने देखती थी कि अपने
पति-परमेश्वर के साथ शहर की रंगीन ज़िदगी का मजा लूंगी। मेरे साथ सिर्फ़ मेरा पति
होगा। उस समय मुझे परिवार के बाकी सारे सदस्य दालभात में मूसर चंद नजर आते थे। मगर
अम्मा आज बस यही कहती हूं ज़िंदगी का मजा केवल अपनों के साथ है। बेगानों के साथ
नहीं। जानती हो अम्मा उस दिन मैं खूब रोई, रोती रही मगर कोई भी आंसू पोंछने
या सांत्वना देने वाला नहीं था। मैं रोते-रोते न जाने कब सो गई। जब आंख खुली तो
देखा पति परमेश्वर अपनी सफेद वर्दी में सूजी हुई लाल-लाल आंखें लिए सामने खड़े हैं।
मैं हकबका कर उठ बैठी। मेरी आंखें बुरी तरह जल रही थीं। पूरा बदन टूट रहा था। बाहर
नजर गई तो देखा सवेरा हो चुका है। और हमारे परमेश्वर अब अपनी खरखराती आवाज़ में गरज
रहे थे कि दरवाजा बंद करके नहीं सो सकती थी। फिर खुद पसर गए सोने के लिए।
मुझे अजीब सी नफ़रत हो रही थी। ऐसा लग रहा था मानो मेरे कमरे में मेरे बिस्तर
पर कोई गैर मर्द आकर सो रहा है। मैं जितना इन्हें न देखने की कोशिश करती उतना ही
नजर बार-बार इन्हीं पर जा ठहरती और मेरा क्रोध बढ़ता जा रहा था। अंततः मैंने इनके
कपड़ों की तलाशी लेने की सोची। मगर करीब पहुंच कर भी हाथ न लगा सकी। मुझे ऐसा लग
रहा था कि कपड़ों से उस चुड़ैल की बदबू आ रही है। काफी कसमकस के बाद आखिर तलाशी ले
ही ली। मोबाइल उठा कर चेक किया तो दंग रह गई। मुझे लगा कि यह बात एकदम बकवास है कि
किसी मर्द को उसकी बीवी से ज़्यादा कोई और नहीं जान सकता। कम से कम मेरे साथ यही
हो रहा था।
मैं पति की दगाबाजी का एक और रूप देख रही थी। रात मालकिन के साथ मिल कर
इन्होंने जो भी कुकर्म किए थे वह सब इनके मोबाइल में रिकॉर्ड था। जाहिर था कि यह
सब धोखे से ही किया गया था। इसका उद्देश्य मालकिन को ब्लैकमेल करने या फिर इसे
गंदी पिक्चरों वाली दुनिया में बेच कर पैसा कमाना ही था। यह देख कर मेरी घबराहट और
बढ़ गई। मैंने तय कर लिया कि इनसे अब बात कर के ही रहूंगी चाहे अंजाम कुछ भी हो।
यह करीब चार घंटे बाद सो कर उठे और तैयार होने लगे तो मैंने बिना कुछ बोले
किसी तरह पराठा सब्जी बनाकर सामने रख दिया। जब यह खा चुके तो मैंने बात छेड़ दी।
अनजान बनने लगे तो मैंने सारी बातें खोल कर सामने रख दीं कि मुझे सब मालूम है, सब अपनी आंखों से देखा है मैंने। बस अम्मा इतना कहना था कि इन्होंने जी भर के
मुझे मारा-पीटा। उसी दौरान यह भी बोले कि मालकिन की आदतों का फायदा उठा कर वह मोटी
रकम कमाना चाहते हैं। जिससे अपना व्यवसाय खड़ा कर सकें। अब अपनी योजना के पूरा होने
के बेहद करीब हैं। और यह सब गलत नहीं है। सब ऊटपटांग ढंग से ही अमीर बने हैं। मैं
भी बनूंगा।
अम्मा उनकी योजना सुन कर मेरी रुह कांप गई। क्योंकि मालिक बहुत खूंखार है।
इनकी हरकत पता चलते ही वह हम दोनों को जिंदा नहीं छोड़ेगा। मालकिन भी कम नहीं है।
वह दोनों ही हम दोनों को कहां मार कर फेंक देंगे अम्मा यह कभी पता नहीं चलेगा। बस
अम्मा यही सोच कर घबरा गई हूं और यह चिट्ठी लिख रही हूं। यह पढ़ते ही तुम किसी भी
तरह एक बार बुला लो। उसके बाद मैं भूल कर भी अपनी जड़, अपना घर-द्वार छोड़ कर शहर का नाम न लूंगी। यहां यह जितना कमाते हैं उतना वहां
भी कमा लेंगे। बस अम्मा एक बार बुला लो। मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं। बचा लो मेरा
सुहाग, मेरे पति-परमेश्वर को। अपने प्यारे भुइंधर को। अम्मा देर बिल्कुल न करना, देर करोगी तो हमारे मरने की खबर पाओगी। अभी तो और न जाने कितनी बातें हैं
अम्मा जो आकर आपको बतानी हैं, आपके भुइंधर और उनके मोबाइल की। अच्छा
अम्मा जो भी गलतियां मुझ से हुई हैं उसके लिए क्षमा करना।
तुम्हारी बहू निर्मला
+++++++
पता - प्रदीप श्रीवास्तव
ई ६एम /२१२ सेक्टर एम
अलीगंज, लखनऊ-२२६०२४
मो-७८३९३१७०७२, ९९१९००२०९६
pradeepsrivastava.70@gmail.com
psts700@gmail.com
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