मम्मी पढ़ रही हैं
- प्रदीप श्रीवास्तव
कैसी हो हिमानी, क्या कर रही हो?
- ठीक हूं शिवा, दिव्यांश का होमवर्क पूरा करा रही हूं, तुम बताओ तुम क्या कर रही हो?
- मैं बहुत टेंशन
में हूं यार। आज सुबह ही तुम्हें फ़ोन करने वाली थी लेकिन काम इतने थे कि कर ही
नहीं पाई।
- अच्छा, लेकिन तुम्हें किस बात की टेंशन हो गई?
- क्या यार तुम
तो ऐसे बोल रही हो कि जैसे मैं इंसान ही नहीं हूं और जब मैं इंसान नहीं हूं तो
मुझे टेंशन नहीं, क्यों ऐसा ही है। है न।
- अरे नहीं भाई तुम तो बुरा मान गई। मेरा मतलब यह था कि टेंशन तो हम जैसे लोगों
को होती है कि हसबैंड के लिए सारा काम टाइम से करो नहीं तो कहीं उनका पारा सातवें
आसमान पर न पहुंच जाए। हर ग्यारह महीने बाद मकान बदलने की टेंशन, किराया बढ़ने की टेंशन। मुंह मांगा किराया देने के बाद भी मकान मालिक की भौंहें
तो नहीं तनी हैं इसका टेंशन, ज़िंदगी खानाबदोशों’ सी हो गयी है इसका टेंशन। बार-बार मकान बदलने से जो नुकसान होता है उसका
टेंशन। कोई मेहमान आ जाए तो कम जगह के चलते उसे कहां ठहराएं इसका टेंशन। मतलब कि
यहां ज़िंदगी का दूसरा नाम ही टेंशन हो गया है। जबकि निजी मकान के चलते और पति के
तीन-चार महीने के अंतर पर आने के कारण तुम इन सब टेंशन से दूर हो। हो कि नहीं, बताओ।
- कमाल है तुमने
तो पूरा लेक्चर ही दे डाला। मगर हिमानी सच यह है कि यहां भी ज़िंदगी में कम टेंशन
नहीं है। हसबैंड के होते हुए भी चार साल से अकेले ही रह रही हूं। तीन-चार महीने
में आते हैं और कब उनकी छुट्टी खत्म हो जाती है पता नहीं चलता है। सब कुछ अकेले ही
संभालना पड़ता है। दूसरे इतना बड़ा दुमंजिला मकान है, लेकिन कोई किराएदार न
रखने की इनकी जिद के चलते खाली ही रहता है। जिसकी साफ-सफाई में ही हालत खराब हो
जाती है। ऊपर से पांच साल के बच्चे के साथ अकेले रहना कितना तकलीफ़देह है इसका
अंदाजा लगा सकती हो।
- सही कह रही हो।
इसी लिए तो कहती हूं कि भाई साहब से कह कर एक पोर्सन किराए पर मुझे दे दो। मैं
किराए में कमी नहीं रखूंगी। बस हर ग्यारह महीने में मकान बदलने, ब्रोकर को कमीशन देने से थोड़ी राहत मिल जाएगी और तुम्हारा अकेलापन भी थोड़ा कम
होगा।
- हिमानी सच कहूँ
तो मैं भी यही सोचती हूं लेकिन क्या बताऊँ इनकी जिद के आगे मेरी कुछ नहीं चलती।
अकेलेपन से खीझ कर कई बार तो मैं यहां तक कह चुकी हूं कि तुम बी.एस.एफ. की नौकरी
छोड़कर यहीं कोई बिजनेस करो तो अच्छा है। लेकिन मानते ही नहीं। कहते हैं तुम क्या
जानो फौजी होने का क्या मतलब होता है। इस पर मेरे गुस्सा आ जाती है। इसीलिए पिछली
दो बार से ये बार-बार एक और बच्चे के लिए कह रहे हैं। लेकिन मैं साफ-साफ कह देती
हूं कि बच्चे पैदा करना और पालना भी कोई हंसी खेल नहीं है। जब यहां रहोगे तभी
दूसरा करेंगे नहीं तो एक ही काफी है। एक ही जब तक जागता है नाक में दम किए रहता
है। दूसरे में तो जान ही निकल जाएगी।
- तुम सही कह रही
हो। ये मियां लोग तो बस जबान चला देते हैं कि और बच्चे पैदा करना है। गोया बच्चे
पैदा करना न हो गया जैसे गोल-गप्पे खाना हो गया। यही हाल मेरे यहां है। कई महीने
से कह रहे हैं कि दिव्यांश छः साल का हो गया है अब एक और बच्चा पैदा करते हैं।
जानती हो मैंने साफ कह दिया कि देखो जब तक खानाबदोसों की ज़िंदगी है तब तक अगले
बच्चे के बारे में सोचेंगे ही नहीं। पहले मकान बनवाओ, अब अपने मकान में ही अगला बच्चा पैदा करूंगी। फिर एक की परवरिश तो कायदे से कर
लो। वकालत के पेशे में कमाई ही कितनी हो पा रही है।
- अरे कैसी बात
कर रही हो। वकीलों की इनकम का तो कोई ठिकाना ही नहीं है।
- तुम सही कह रही
हो लेकिन ऐसे कुछ ही वकील हैं जो लाखों क्या करोड़ों भी कमाते हैं। लेकिन ज़्यादातर
के लिए किसी तरह ज़िंदगी चलने भर का ही हो पाता है। मेरे यहां भी ठीक-ठाक ही कमा
लेते हैं। लेकिन इतना नहीं कि पचास-साठ लाख में मिलने वाला पांच-छः सौ स्क्वॉयर
फिट का एक छोटा सा मकान ले सकें। सच कहूँ तो आज से आठ-दस साल पहले मैंने सोचा ही
नहीं था कि लखनऊ जैसे शहर की तस्वीर इस तरह बदल जाएगी कि एक मकान लेना हम जैसे
लोगों के लिए एक सपना बन जाएगा। तुम इस मामले में लकी हो कि शादी के साल भर बाद ही
इतना बड़ा मकान कर लिया।
- क्या भाग्यशाली
यार, इनकी तनख्वाह से थोड़े ही हो गया। यह सब मेरे फादर के कारण हुआ। उन्होंने कोई
लड़का न होने के कारण सारी प्रॉपर्टी बेच कर हम चारों बहनों को बराबर-बराबर पैसा दे
दिया था। केवल एक छोटा सा मकान रखा था अपने लिए। उसके लिए भी वसीयत कर गए थे।
मां-बाप के न रहने पर वह भी बेच दिया गया। यही सारा पैसा इकट्ठा करके और थोड़ा बहुत
अपने पास से मिलाकर यह मकान बनवा पाए नहीं तो बी.एस.एफ. की नौकरी में पैसा है ही
कितना।
- फिर भी यार
वकीलों से तो लाख गुना अच्छी है ये नौकरी। मेरे मायके-ससुराल में भी काफी
प्रॉपर्टी है। दो भाई हैं इसलिए मायके की प्रॉपर्टी के बारे में सोच ही नहीं सकती।
ससुराल में ससुर की जिद है कि उनके जीते जी कुछ बिकेगा नहीं। देखो कब तक लिखी है
ज़िंदगी में खानाबदोशी। खैर,
यार तुमने अभी तक यह तो बताया ही नहीं कि फ़ोन क्यों किया।
कौन सा टेंशन हो गया है तुम्हें।
- अरे हां, इतनी लंबी बात हो गई और जिस बात के लिए फ़ोन किया था वह तो रह ही गई। असल में
नमन को जो लड़की ट्यूशन पढ़ाती थी उसकी कहीं नौकरी लग गई। उसने पहले से बताया नहीं
और अचानक ही छोड़कर चली गई। अब नमन को पढ़ाना, उसका होमवर्क कराना ये मेरे वश का
नहीं है। फिर वो मेरी सुनता भी नहीं। अभी से कहता है कि मम्मी तुम्हें कुछ
आता-जाता नहीं, मैं तुमसे नहीं पढूंगा। जब तक सोता नहीं तब तक कार्टून चैनल देखा करता है या
फिर लॉन में खेला करता है और कहीं मोबाइल हाथ लग गया तो अपनी सारी मौसियों से बात
करता है या फिर गेम खेलेगा,
इसलिए कह रही थी कि कोई अच्छा ट्यूटर हो तो बताओ।
- कोई ट्यूटर तो
यार मेरी जानकारी में है नहीं। दिव्यांश को जो पढ़ाता है वो इनके किसी परिचित का
लड़का है। यही उसे ले आए थे। मैं उससे कोई खास बात करती नहीं। बस जब आता है तो
चाय-बिस्कुट वगैरह जा कर दे देती हूं।
- पढ़ाता कैसा है?
- पढ़ाता तो बढ़िया
है। पहले वाले ट्यूटर की तरह केवल पढ़ाता ही नहीं बल्कि मैनर्स भी सिखाता है। दो
महीने में ही दिव्यांश में बड़ा फ़र्क आया है। पढ़ाई, मैनर्स दोनों में।
- अरे यार तो भाई
साहब से बोल कर मेरे लिए भी कह दो न, मैं इतने दिन से परेशान हूं।
- तुम्हारे लिए
या नमन के लिए?
- अरे यार मतलब
नमन के लिए ही। मैं थोड़े ही इस उम्र ट्यूशन पढ़ूंगी।
- हूँ... देखो आज
जब ये आएंगे तब बोलूंगी इनसे। जैसा होगा कल बताऊंगी।
- ठीक है मैं
तुम्हें कल दोपहर में फ़ोन करूंगी।
फ़ोन डिस्कनेक्ट होते ही हिमानी बुदबुदाई, ‘हां तो कह दिया इससे कि इनसे बात करके बताऊंगी, लेकिन यदि यह न
मानेंगे तो वह बुरा मान जाएगी। दस जगह तरह-तरह की बातें करेगी। है भी बड़ी
तुनक-मिजाज। बैठे-बिठाए इसने सिर दर्द करा दिया। मुझे पहले ही मना कर देना चाहिए
था।’
शाम को अपने
पति के लौटने पर जब हिमानी ने बात की तो छूटते ही वह बोले -
- तुम तो कहती हो
बड़ी परपंच करने वाली औरत है। कहीं इसके चलते टीचर दिव्यांश को पढ़ाना न बंद कर दे।
- अब क्या बताऊं
वो बिल्कुल पीछे ही पड़ गई तो एकदम से मना करते नहीं बना।
- ठीक है टीचर से
बोल देता हूं। यदि टाइम है उसके पास तो पढ़ा दे।
फीस वगैरह को लेकर तुम बीच में नहीं पड़ना।
- मुझे क्या
ज़रूरत है बीच में पड़ने की। कल दिव्यांश को जब वो पढ़ा लेगा तो भेज दूंगी उसके पास, फिर वो दोनों जानें, मुझे कुछ नहीं बोलना बीच में।
अगले दिन टीचर
को भेजने के बाद हिमानी ने फ़ोन किया
- हैलो... हां
शिवा आज टीचर पहुंचा पढ़ाने के लिए?
- हां, टाइम का बड़ा पंक्चुअल लगता है।
- हां, पंक्चुअल तो है, और पढ़ाई कैसी लगी?
- अब पहले दिन तो
सभी अच्छा पढ़ाने की कोशिश करते हैं। दूसरे एक ही दिन में समझना मुश्किल है। बड़ी
बात तो यह है कि कहीं से वह टीचर लगता ही नहीं है। अपने को हीरो से कम नहीं समझता।
एकदम विवेक ओबरॉय जैसा लुक बना रखा है।
- देखना हीरो के
चक्कर में न पड़ जाना। वैसे विवेक ओबरॉय की कॉपी सा लगता है, बहुत मिलता है उसका चेहरा।
हिमानी ने शिवा को छेड़ा तो उसने तुनक कर कहा
- घबड़ा नहीं मैं
तेरे विवेक के चक्कर में नहीं पड़ने वाली। पढ़ाता है ट्यूशन और नखरे हीरो जैसे, कि मैं चाय नहीं कॉफी पीता हूं। मेरा तो मूड ही खराब कर दिया था उसने, और पैसे भी ज़्यादा ले रहा है। मज़बूरी है इसलिए उसकी मुंह मांगी फीस देने को
तैयार होना पड़ा।
- अरे, तुम तो नाराज हो गई। मैं तो मजाक कर रही थी।
- मैं भी मजाक ही
कर रही हूं हिमानी कि जिसे तू हीरो समझ फिदा है उस पर मैं लाइन नहीं मारने वाली।
शिवा ने जोर से
हंसते हुए हिमानी को छेड़ा तो उसने बात को विराम देने की गरज से कहा
- लाइन-वाइन
मारने की उमर न जाने कब की निकल गई। अब तो उठने से लेकर सोने तक इन्हीं पर लाइन
मारती हूं कि जनाब का मूड सही बना रहे।
- मतलब, लाइन तो मारती हो न भले ही पति को मारो।
- ओफ्फ तू तो
बिल्कुल पीछे ही पड़ गई। बड़ी मस्ती में हो क्या बात है?
- कोई बात-वात
नहीं यार। अच्छा कल पैरेंट्स मीटिंग है वहीं मिलते हैं। ठीक है।
- हां,ठीक है।
अगले दिन
पैरेंट्स मीटिंग में मिलने के बाद भी दोनों के बीच ट्यूटर पुराण चर्चा का विषय बना
रहा। चर्चा जब समाप्त हुई तो दोनों एक दूसरे के प्रति खासा तनाव लिए बिदा हुईं।
फिर दोनों की हफ्तों बात नहीं हुई। फ़ोन पर भी नहीं। बच्चे स्कूल वैन से आते-जाते
थे इसलिए मुलाकात का कोई बहाना भी न बना। इस बीच दोनों ट्यूटर के जरिए एक-दूसरे के
बच्चे की पढ़ाई की स्थिति जानने का पूरा प्रयास करती रहतीं।
महीना भर भी नहीं बीत पाया था कि हिमानी से रहा
नहीं गया। क्योंकि ट्यूटर इधर कई दिनों से शिवा और नमन दोनों की तारीफ कुछ ज़्यादा
ही करने लगा था और आज पढ़ाने भी न आया। फ़ोन करने पर बराबर रिंग जा रही थी लेकिन वह
कॉल रिसीव नहीं कर रहा था। हिमानी के मन में एकदम से यही बात उमड़ने-घुमड़ने लगी कि
शिवा ने कहीं उसे भड़का कर मना तो नहीं कर दिया। यह बात मन में आते ही उसने न आव
देखा न ताव शिवा को फ़ोन कर दिया, मगर फ़ोन उसके बेटे नमन ने उठाया। हिमानी
ने उससे बड़े प्यार से कहा -
- नमन बेटा मम्मी
कहां हैं? उनसे बात करा दो।
- मम्मी...मम्मी
तो आंटी ऊपर हैं।
- अच्छा, तुम क्या कर रहे हो?
- मैं तो पढ़ रहा
हूं।
- अच्छा, टीचर जी आए हैं क्या?
- हां आए हैं।
- तो बेटा जरा
उनसे ही बात करा दो।
- लेकिन आंटी वो
तो ऊपर हैं, मम्मी को पढ़ा रहे हैं।
- क्या! मम्मी को
पढ़ा रहे हैं?
- हां।
- तुम्हें कौन
पढ़ा रहा है?
- टीचर जी।
- ओफ्फो. तुमने
तो अभी कहा कि वो ऊपर हैं।
- हां, वो मुझे पोएम लिखने, ई.वी.एस. का काम करने के लिए कह कर ऊपर मम्मी को पढ़ाने गए हैं।
- अच्छा! बेटा वो
मम्मी को कब से पढ़ा रहे हैं?
- कई दिन से।
- बेटा याद करके
बताओ कितने दिन से।
- ऊं.... आंटी
टीचर जी मम्मी को फाइव दिन से पढ़ा रहे हैं।
- अच्छा! रोज ऊपर ही
पढ़ाते हैं और तुम नीचे पढ़ते हो?
- हां।
- तो तुम ऊपर
नहीं जाते।
- नहीं, टीचर जी कहते हैं जब तक मैं नीचे न आऊं तब तक पढ़ाई करते रहना,
अपनी जगह से उठना नहीं।
- बेटा तुम
मोबाइल तो मम्मी को जाकर दे सकते हो। मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है। मैं टीचर जी से कह दूंगी वो तुम्हें
उठने पर डांटेंगे नहीं।
- नहीं आंटी, नहीं जा सकता। उन्होंने डांटने के लिए नहीं पीटने के लिए है। बोला है कि पढ़ाई
छोड़कर उठे तो बहुत पीटूंगा।
- हूं ठीक है...
ठीक है... बेटा मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया है कि तुम्हारी मम्मी कौन सी पढ़ाई कर
रहीं है। आश्चर्य तो यह है कि नकली विवेक ओबरॉय पर ही मर मिटीं। वह भी इतनी जल्दी।
- क्या कह रहीं
हैं आंटी?
- अं.. कुछ नहीं, कुछ नहीं। मैं तुमसे कुछ नहीं कह रही थी।
- अच्छा आंटी मैं
फ़ोन रखता हूं, मुझे जोर की शू-शू आई है।
- हां.... बेटा
ठीक है जाओ।
हिमानी फ़ोन
काटते हुए बुदबुदाई, ‘आदमी को देश की रक्षा करने से फुरसत नहीं और बीवी को बेटे के ट्यूटर के साथ
गुलछर्रे उड़ाने से फुरसत नहीं, और बेटा बेचारा खुद ही स्टूडेंट है ,खुद ही अपना ट्यूटर भी। कहीं यह ट्यूटर के ही साथ फुर्र हो गई तो बेचारा
नन्हीं सी जान कहां जाएगा।
लेकिन मैं कर
भी क्या सकती हूं। इससे पूछताछ की तो निश्चित ही यह लड़ बैठेगी। बेवजह बखेड़ा खड़ा
होगा। ये जानेंगे तो मेरी खैर नहीं। मगर इतना तो जरूर कहूंगी कि आज फ़ोन करें। अगर
वह फ़ोन न रिसीव करे तो देर रात उसके फादर को फ़ोन कर कहें कि उससे बात कराएं तब तक
तो पहुंच ही जाएगा घर। उसे पढ़ाना है तो आए न आना हो तो बताए। मैं दिव्यांश के लिए
कोई दूसरा ट्यूटर ढूंढ़ लूंगी। मैं दिव्यांश की पढ़ाई के साथ कम्प्रोमाइज नहीं कर
सकती।’
हिमानी ने शाम
को सारी बातें पति को बताई तो तुरंत ही वह यकीन न कर सके कि ऐसा कुछ हो सकता है और
हिमानी से कहा कि ‘बिना कायदे से जाने-समझे इस तरह की बातें किसी के लिए न किया करे। रही बात फ़ोन
करने की तो वह मैं कर लूंगा। हो सकता है वह पढ़ाना ही न चाह रहा हो।’
लेकिन उन्होंने
जब ट्यूटर को फोन किया तो उसने न सिर्फ़ पहली ही बार में कॉल रिसीव कर ली बल्कि
शालीनता से अगले दिन पढ़ाने के लिए आने की बात भी कही। यह भी बताया कि कुछ काम आ
गया था इसलिए पढ़ाने नहीं आ सका था। उसकी बात ने हिमानी को पति के सामने पशोपेश में
डाल दिया। लेकिन अगले दिन वह ट्यूटर फिर नहीं आया। हिमानी की कॉल भी रिसीव नहीं की
तो उसका गुस्सा बढ़ने लगा। उसने तुरंत शिवा को कॉल किया। लेकिन उसने भी कॉल रिसीव
नहीं की। इस पर वह अपना आपा खो बैठी। बेटे को घर पर ही छोड़कर रिक्शा कर पहुँच गई
शिवा के घर। गेट-खोलकर अंदर पहुंची तो दरवाजा खुला मिला। उसने जान बूझकर न कॉलबेल
बजाई और ना ही आवाज दी। एक तरह से दबे पांव दाखिल हो गई।
ड्रॉइंगरूम में
उसे उम्मीदों के अनुरूप नमन पढ़ता मिला। पूछने पर उसने फिर कहा ‘मम्मी ऊपर टीचर जी से पढ़ रही हैं।’ यह सुनकर हिमानी ने मन ही मन कहा
आज देखती हूं तेरी मम्मी कौन सी पढ़ाई कर रही हैं। उसने प्यार से नमन के गाल को
छूते हुए कहा ‘ठीक है बेटा मैं उनसे ऊपर ही जाकर बात कर लूँगी। तुम अपनी पढ़ाई करो।’ हिमानी इतनी उतावली थी शिवा की पढ़ाई देखने को कि नमन कुछ बोले उसके पहले ही
दबे पांव तेजी से चल दी ऊपर। मित्रता के चलते घर में पहले से आना-जाना था इसलिए घर
का कोना-कोना वह जानती थी। उसे कमरे तक पहुंचने में देर नहीं लगी। जिस कमरे के
दरवाजे बंद थे और अंदर लाइट जल रही थी। उसी के दरवाजे पर पहुंच कर उसने अंदर की
आहट लेने की कोशिश की। लेकिन कोई आवाज उसे सुनाई न दी। अपने उतावलेपन के कारण वह
अपने को चार-पांच सेकेंड से ज़्यादा न रोक सकी।
हल्के से शिवा
का नाम लेते हुए उसने दरवाजे को अंदर को धकेला तो वह एकदम से खुल गया। जितनी तेजी
से दरवाजा खुला उतनी ही तेज़ी से वह अंदर को दाखिल भी हो गयी। उसकी तेज़ी से कहीं
ज़्यादा अंदर बेड पर टीचर और शिवा हरकत में आए। फटी-फटी आंखों से गहरी-गहरी सांसे
लेते हुए वह उन दोनों को अस्त-व्यस्त हालत में देखती रही और शिवा घुटी सी आवाज में
क्रोधित होती हुई बोली ‘तुम बिना बताए घर में कैसे घुस आई।’ हिमानी कुछ बोले उसके पहले ही टीचर
उसकी बगल से बिजली की फूर्ती से निकल गया नीचे की ओर। हड़बड़ाहट में वह हिमानी का
कंधा छीलते हुए निकला था।
हतप्रभ हिमानी
शिवा की नफरत, क्रोध से काफी हद तक भयभीत हो गई बोली ‘ नहीं-नहीं मैं, मैं जा रही हूँ।’ कहकर वह पलटी और दो कदम ही आगे बढ़ी होगी कि शिवा ने कहा ‘रुको मेरी बात सुनो।’
हिमानी रुक गई तो शिवा ने उसका हाथ पकड़ कर पहले उसे बेड पर
ही बैठाया। फिर उसका हाथ पकड़े-पकड़े ही सामने ही एक मोढ़ा खींच कर बैठ गई। उसकी
आँखें आँसुओं से भर गई थीं। कुछ देर तक दोनों शांत रहीं। फिर शिवा के नीचे झुके
चेहरे को अपने दोनों हाथों से ऊपर करते हुए हिमानी ने कहा , ‘परेशान होने की ज़रूरत नहीं। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी। मगर तुम्हें गेट
वगैरह बंद रखना चाहिए था।
यहां दरवाजा भी खुला रखा था। कहीं तुम्हारा
बेटा ही आ जाता तो? सोचो तुम दोनों को इस हालत में देख लेता तो तुम्हारी क्या हालत होती। बच्चा कल
को अपने बाप को भी कह सकता है। तब क्या होगा? जीवन तबाह होते देर नहीं लगेगी।
पति चाहे जैसे हों, वह अपनी पत्नी को पल भर को भी किसी दूसरे की बांहों में बर्दाश्त नहीं कर
सकते। फिर तुम्हारे पति तो फौजी हैं। वो तो जानते ही तुम्हें गोली मार देंगे। इतनी
बड़ी लापरवाही तुम कैसे कर बैठी? मेरा शरीर अब तक थरथरा रहा है। दिमाग
में सांय-सांय सी हो रही है कि यह सब तुम क्या कर बैठी? सबसे बड़ी बात यह है कि वह तुम्हारे बच्चे का ट्यूटर है। अभी महीना भर भी नहीं
हुआ उसको यहां आते। उसने कौन सा ऐसा जादू कर दिया कि तुम अपनी सुध-बुध खो बैठी।
‘पता नहीं... उसने जादू
कर दिया या मैं ही फिसल गई। उस दिन तुमनेे मजाक में ही कहा था कि वह विवेक ओबरॉय
सा है और कि देखो उसके चक्कर में न पड़ जाना। मगर तब यह सोचा भी न था कि कुछ ही दिन
में इस हद तक पहुंच जाऊंगी। उस दिन रात को जब नमन सो गया था तो अकेले ही टी.वी.
देख रही थी। इनका फ़ोन दिन में आया था कि आज नाइट ड्यूटी है। बॉर्डर पर जहां तैनाती
है वहां आतंकवादियों का बहुत खतरा है।
बात करते हुए यह बोले ‘‘जान हथेली पर लेकर ड्यटी करनी पड़ती है। किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है।’’ मैने हमेशा की तरह फिर कहा कि चले आइए हमेशा के लिए। कुछ और बातें भी कहीं। इस
पर वह कुछ नाराज हुए। फिर समझाते-समझाते खुद भी बेहद भावुक हो गए। बोले ‘‘समझा करो, कौन होगा जो अपने बच्चे-बीवी के पास नहीं रहना चाहेगा। उन्हें छोड़ कर जान
हथेली पर लिए घूमना चाहेगा। लेकिन सब घर में ही बैठे रहेंगे तो कौन करेगा देश और
देशवासियों की रक्षा।’’
फिर उन्होंने तमाम प्यार भरी बातें कीं। यह भी
कहा कि अब की बहुत जल्दी आऊंगा। उनकी बातों से मैं बहुत भावुक हो गई थी और-और कुछ
उत्तेजित भी। असल में वह जब भी बातें करते हैं... अब तुम्हें क्या बताऊं करीब चार
सालों से हम लोग इस नौकरी की वजह से एक होकर भी अलग ही हैं। छुट्टी कुछ ही दिन की
होती है। आते ही कब खत्म हो गई पता ही नहीं चलता।
उस दिन टी.वी.
देख रही थी चैनल भी आदत के मुताबिक बदल रही थी। लेकिन दिमाग में इनसे की गईं बातें
ही घूम रही थीं। सेक्स संबंधी बातें कुछ ज़्यादा ही घूम रही थीं। उस समय इनसे बात
भी नहीं कर सकती थी। बड़ी देर बाद कहीं खुद पर नियंत्रण कर पाई और तब कहीं सोई।
दरअसल चार साल
से रोज ऐसे ही अकेले रात-दिन बीतता है। रात का सन्नाटा,अकेलापन मुझे तोड़कर रख देता है। हालत यह है कि पूरे-घर की लाइट ऑन रखती हूं
फिर भी डर लगता है। बाथरूम जाने को भी डरती हूं। जी चुराती हूं कि सुबह हो तो
जाऊँ। बस यही ज़िन्दगी जिए जा रही हूं। यकीन करो इसके बावजूद मेरे दिलो-दिमाग में
कभी भी किसी गैर मर्द के लिए कभी कोई भावना उठी ही नहीं। सामने हों या न हों हर
वक्त इनके सिवा किसी को नहीं सोचती।
मगर उस दिन न
जाने क्यों विवेक ओबरॉय की बात दिमाग से निकली ही नहीं। फिर जब वह पढ़ाने आने लगा
तो मुझे लगा कि तुमने जितना कहा था यह तो उससे कहीं ज़्यादा विवेक ओबरॉय से
मिलता-जुलता है। उसने कोई खास कोशिश नहीं की थी इसके बावजूद वह असली विवेक ओबरॉय
का छोटा भाई लग रहा था। न चाहते हुए भी मेरी नजर बार-बार उस पर चली जाती थी। फिर
अंदर-अंदर बातें करने का मन करने लगा। दो दिन में ही उससे खूब बातें करने भी लगी।
वह भी खूब बात करता।
उसके बिंदास अंदाज का मुझ पर बड़ी तेज़ी से असर पड़ रहा था। मुश्किल से पांच-छः
दिन ही बीते होंगे कि उसने एक दिन नमन को करीब घंटे भर का काम देकर मुझसे बड़े धीरे
से कहा, ‘‘नमन को पढ़ने देते हैं। हम लोगों की बातों से यह डिस्टर्ब होगा। हम लोग दूसरे
कमरे में बात करें तो अच्छा रहेगा।’’ उसकी इस बात को हां करने के सिवा
मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। क्योंकि मैं इम्प्रेस हो गई थी। मैं आश्चर्य में थी
कि नमन डिस्टर्ब होता है यह बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई।’’
शिवा इसके आगे
बोल न सकी क्योंकि तभी नमन नीचे से ऊपर आ गया। हिमानी को लगा नमन के अचानक आने से
शिवा मानो सहम सी गई है। हिमानी ने कुछ बोलना चाहा लेकिन उसके पहले ही शिवा ने
बेटे को यह कहते हुए नीचे भेज दिया कि ‘बेटा मैं तुम्हारी आंटी से कुछ
ज़रूरी बातें कर रही हूं तुम नीचे फ्रिज में से अपनी फ्रूटी लेकर वहीं पिओ।’ नमन मानो यही सुनना चाहता था। फ्रूटी ड्रिंक उसकी फेवरेट ड्रिंक थी। उसके जाते
ही हिमानी ने जैसे ही बोलना शुरू किया शिवा ने उसे टोकते हुए कहा
- नहीं हिमानी
पहले मेरी बात सुन लो।
- ठीक है बताओ...
- नमन के
डिस्टर्ब होने की बात मेरे मन में थी और मैं टीचर की बात से एकदम से सम्मोहित सी
थी। उठकर दूसरे कमरे में आ गई। पीछे-पीछे वह भी आ गया। नीचे जिस कमरे में हम
पहुंचे वहां केवल दो स्टूल और एक तखत पड़ा हुआ है। जिस पर कोई बिस्तर भी नहीं है।
मैंने सोचा यह कुछ ऐसी बातें करना चाह रहा होगा जो नमन के सामने नहीं कर सकता। इसी
लिए अलग हटने की बात कही। मगर अंदर आए तो बात कल्पना से परे निकली।
- कल्पना से परे
निकली?
- हां... पहले
उसने मुझे काफी हद तक चौंकाया अंदर आते ही दरवाजे को भेड़ कर, फिर पूरा पर्दा खींच कर। मैं कुछ समझती इसके पहले ही आकर एकदम बेधड़क होकर मुझे
बाहों में भर लिया। मैं एकदम से चिंहुँक पड़ी। घुटी-घुटी आवाज में कहा - ये क्या कर
रहे हो? इसके आगे मैं कुछ न बोल पायी उसने कसकर मेरे होंठों को अपने मुंह में दबा
लिया। मुझे इतना कस कर भींच कर पकड़ रखा था कि कसमसा भी नहीं पा रही थी। उसमें बड़ी
ताकत है। इस बीच वह एकदम पगलाया हुआ अजीब-अजीब हरकतें करने लगा। वह हांफ अलग रहा
था।
हांफ मैं भी
रही थी और शरीर में बढ़ता तनाव मुझे बेबस किए जा रहा था। मैं जैसे झूल सी गई थी
उसकी बांहों में। तभी वह मुझे लिए-लिए तखत पर लेट गया। खट् से हुई आवाज़ से मैं
थोड़ा हकबकाई। मगर अपने को अलग नहीं कर पाई। उसकी बिजली की सी तेज़ी से हो रही
हरकतों के कारण मेरे सारे कपड़े अस्त-व्यस्त हो गए। साड़ी उसने कमर से ऊपर उलट दी।
इसी उठा-पटक के बीच फिर तखत पर खट् से कुछ तेज़ आवाज, हुई तो मैं सकते में आ
गई।
एकदम डर गई कि
नमन आ गया तो मैं बेमौत मारी जाऊंगी। यह बात मन में आते ही मैंने किसी तरह उसके
मुंह पर हाथ रख पीछे धकेला और फुर्ती से उठकर खड़ी हो गई। गुस्सा होते हुए कहा होश
में आओ नहीं मैं चिल्ला पड़ूँगी। खड़ी होने पर मेरी अस्त-व्यस्त साड़ी नीचे आ गई और
मेरा बदन ढक गया। फिर ब्लाउज वगैरह सब ठीक कर बाहर को चलने को हुई तो उसने फिर
पकड़ने की कोशिश की। हाथ तक जोड़ लिया कि मैं रुक जाऊं लेकिन मैं बाहर चली आई नमन के
पास। पीछे-पीछे कुछ ही देर में वह भी आ गया। मैंने मार्क किया कि नमन कुछ अजीब सी
नज़रों से हमें देख रहा है। मैं इससे अंदर ही अंदर सहम गई। मैंने उसके ध्यान को
बंटाने के लिए कहा
बेटा टीचर सोच
रहे हैं कि तुम्हें कल से उस कमरे में पढ़ाएं। इसीलिए उन्हें कमरा दिखाने ले गई थी।
फिर टीचर की ओर देखकर कहा कल से नमन को उस कमरे में पढ़ाइए। वह कभी मुझे देखता कभी
नमन की ओर, इसके बाद कुछ समय पहले ही चला गया।
- तुम चाहती तो
उसे अगले दिन से पढ़ाने आने के लिए मना कर सकती थी।
- हां... मगर बात
ये थी कि मैं उसके... उसके... मतलब उसके जादू में फंसी हुई थी। उसके जाने के बाद
भी मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैं उसी की बांहों में कैद हूं और वो बार-बार मुझे
प्यार किए जा रहा है। इस बीच नमन जो कुछ कहता मैं बस हां हूं में उसका जवाब देती
किसी मशीन की तरह। मैं इतना बेचैन हो गई कि अंततः बाज़ार चली गई और तमाम ऐसे सामान
भी खरीद लाई जिनकी वास्तव में उस समय ज़रूरत ही नहीं थी। यहां तक कि नमन ने जो भी
कहा वह सब भी खरीद डाला।
चार सौ रुपये के उसने खिलौने ही खरीदवा
लिए। जिस चीज के लिए गई थी बाहर कि उसकी तरफ से अपना ध्यान हटा सकूं वह नहीं हो
पाया, हुआ उसका उल्टा। उसी के ख़याल में और गहरे उतरती चली जा रही थी। इधर-उधर
घूमते-घामते आठ बजे घर आई मगर उसको एक पल को भुला नहीं पाई। घर आई तो नमन के चलते
खाना बनाया। नमन को तहरी पसंद है तो उसका फायदा उठाते हुए तहरी डाल दी। फिर उसे
खिला पिला कर सुला दिया
- और खुद खाया
था।
- नहीं। मन ही
नहीं हो रहा था। फिर अचानक ही दस बजे उसका फ़ोन आ गया। उसका नंबर देखते ही मुझे न
जाने क्या हो गया कि एकदम से रिसीव कर लिया जैसे कि न जाने कितने दिनों से उसकी
प्रतीक्षा में थी। हैलो बोलते ही उसने कहा हाय सेक्सी-सेक्सी डॉर्लिंग क्या कर रही
हो? मैंने कहा ये क्या बदतमीजी है? इस पर बड़ी ढिठाई के साथ उसने कहा
डॉर्लिंग क्यों बेकार में ड्रामा कर रही हो। तुम मेरी ज़रूरत हो मैं तुम्हारी ज़रूरत
हूं। यही सच है। इतनी छोटी सी बात मानने में तुम्हें इतनी देर क्यों लग रही है। इस
पर मैंने थोड़ा झिड़कते हुए कहा ,देखो ये सब फालतू की बातें मत करो, मेरा पति है, बच्चा है। मुझे किसी की जरूरत नहीं है। समझे।
इस पर वह फिर बोला, यही तो मैं तुम्हें समझाना चाह रहा हूं कि तुम्हें वास्तव में किसी और पति और
बच्चे की ज़रूरत ही नहीं है। वो तो तुम्हारे साथ हैं ही। तुम्हें तो सिर्फ़ एक ऐसे मर्द साथी की ज़रूरत है जो पति
के बाद भी तुममें बची रह गई प्यार की ज़रूरत को पूरी ईमानदारी से पूरा कर सके, वो मैं कर सकता हूं इसका मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूं।
उसकी इस बात से
मुझे ऐसा अहसास हुआ मानो शरीर में अचानक ही कहीं कुछ चुभ गया है। मगर तुरंत अपने
को संभालते हुए बोली ,देखो मेरा पति जी भर कर मुझे प्यार देता और लेता है मुझे किसी और की ज़रूरत
नहीं। मेरे पति की जगह कोई और ले ही नहीं सकता! समझे। मेरी इस बात पर वह थोड़ा झुंझलाते हुए बोला, ओफ्फो तुम कैसी औरत हो। यार तुम औरतों की सबसे बड़ी प्रॉब्लम यही है कि मन की
बात कहने से डरती हो।
मैं बार-बार कह रहा हूं कि तुम्हारे पति
की जगह कोई ले ही नहीं सकता। मैं तुम्हारा एक सच्चा दोस्त बनना चाहता हूँ । जो अभी
तक तुम्हारे पास कोई है ही नहीं। जिस तरह तुम्हारे पति की जगह कोई नहीं ले सकता
ठीक उसी तरह तुम्हारे दोस्त की जगह कोई नहीं ले सकता। इतनी मामूली सी बात तुम्हारी
समझ में क्यों नहीं आ रही है। ज़िंदगी का जो सुख दोस्त दे सकता है वो पति नहीं और
जो पति दे सकता है वो दोस्त नहीं और मैं यही सुख तुम्हें देना चाहता हूं। क्योंकि
तुम्हें इसकी सख्त ज़रूरत है और मुझे तुम्हारी सख्त ज़रूरत है। हम दोनों एक दूसरे की
ज़रूरत पूरी करें यही आज की ज़रूरत है। उसकी यह बात मुझे गड्मड् करने लगी। फिर भी
थोड़ी सख्त बनने की कोशिश करते हुए कहा ,देखो तुम्हारी ये बातें मेरी समझ
में नही आ रही हैं। मेरे पति का फ़ोन आने वाला है अब फ़ोन रखो। इस पर उसने यह शर्त
रख दी कि पति से बात करने के बाद उसे फ़ोन करूंगी।
मेरे लाख मना करने पर भी नहीं माना। तो
मैंने फ़ोन काट दिया। इस पर उसने बार-बार फ़ोन करना शुरू कर दिया। अंततः मुझे कहना
पड़ा कि जब इनसे बात हो जाएगी तब करेंगे। हालांकि इनका फ़ोन आने की कोई संभावना नहीं
थी, लेकिन संयोग से इसके फ़ोन रखते ही इनका फ़ोन आ गया। कुछ देर ही बात हो पाई। इसके
बाद मेरे दिमाग में इस बात को लेकर उथल-पुथल मच गई कि फ़ोन करूं कि न करूं। इस
उधेड़बुन में ग्यारह बज गए। मुझे नहीं नींद आ रही थी और न ही यह तय कर पा रही थी कि
फ़ोन करूं कि न करूं। अब तक उसका भी फ़ोन नहीं आया तो मैंने समझा कि वो सो गया होगा।
मगर मैं गलत थी थोड़ी ही देर बाद उसका फ़ोन आ गया। रिसीव करूं न करूं यही
सोचते-सोचते रिंग खत्म हो गई। इसके बाद ऐसा तीन बार हुआ।
कॉल रिसीव न
करने पर उसने एस.एम.एस. किया कि फ़ोन नहीं उठाएंगी तो मैं अभी घर आ जाऊंगा। मैं
जानता हूं कि आप जाग रही हैं और यह भी जानता हूं कि आप मुझे रोक भी नहीं पाएंगी।
यह पढ़कर मैं बेहद पशोपेश में पड़ गई। उसकी यह बात सच थी कि मैं उसी के कारण सो नहीं
पा रही थी। यह उधेड़बुन और बढ़ती कि इसी बीच फिर उसकी कॉल आ गई। रिंग सुनते ही मुझे
न जाने क्या हो गया कि मैंने एक झटके में कॉल रिसीव कर बोल दिया हैलो तो उसने
तुरंत ही करीब हंसते हुए कहा।
मेरा अनुमान सही था कि तुम जाग रही हो, मेरे लिए जाग रही हो। उसकी इन बातों से मैं समझ गई कि वह बेहद तेज़ तर्रार और
बिंदास किस्म का है। वह बहुत अच्छी तरह जानता है कि कब क्या कितना कहना है। इसे
आधे अधूरे मन से रोकना संभव नहीं और मैं पूरे मन से कोशिश कहां कर रही हूं। कुछ
सेकेंड चुप रहकर मैंने कहा ,क्या बकवास कर रहे हो तुम! आखिर तुम
चाहते क्या हो? इस पर वह कुछ गंभीर आवाज़ में बोला। ‘हां।’ तुम्हारी ‘हां’ चाहता हूं।
उसकी इस बात पर
मैं कुछ असहज सी हो गई और थोड़ा अटपटाते हुए कहा ‘किस बात की ‘हां’ चाहते हो’ इस पर वह बोला ‘जानते हुए क्यों अनजान बन रही हो।’ सच यही था कि मैं जान रही थी कि वह
किस बात की हां चाह रहा था,
मैं जानबूझकर अनजान बन रही थी।
- तो वो जो चाह
रहा था उसके लिए तुमने हां कर दी।
- नहीं... सुनो
तो पहले लेकिन पहले यह बताओ कि क्या तुम समझ गई कि वह किस बात के लिए हां चाहता
था।
- हां जितना
तुमने बताया उससे एकदम साफ है कि वह तुम्हारे साथ सेक्स के लिए ही हां चाहता था।
जिस तरह दिन में उसने तुम्हारे साथ व्यवहार किया। कमरे में तुम्हारी साड़ी उलट कर
तुम्हें बेपर्दा कर दिया और फिर तुम नमन के चलते वहां से किसी तरह भागी। लेकिन इस
सबके बावजूद उसे घर से डांट-डपट पर बाहर नहीं खदेड़ा। इससे वह यह यकीन कर बैठा कि
तुम स्वयं तैयार हो, केवल घर में बेटे के चलते ही भागी। इसीलिए उसकी हिम्मत सातवें आसमान पर थी। वो
तो केवल बात बिल्कुल पक्की करने के लिए तुमसे हां कहलवा रहा था। और जैसा तुम बता
रही हो उससे यह तो साफ है कि वो पहल करे इसके लिए रास्ता तुम्हीं ने तैयार किया।
मैं गलत तो नहीं कर रही?
- सुनो हिमानी...
देखो मैं बहुत कन्फ्यूज हूं... मैंने सोच समझ कर कुछ नहीं किया। वास्तव में मैंने
कुछ किया ही नहीं समझी, ना जाने सब कैसे हो गया। सब अपने आप होता चला गया। मेरा यह भी कहने का मन होता
है कि मेरी कोई गलती नहीं। पता नहीं मैं क्या कह रही हूं। मेरी समझ में नहीं आ रहा
है।
- इतना टेंशन
लेने की ज़रूरत नहीं है। दुनिया में यह सब जमाने से होता आ रहा है। फ़र्क इतना है कि
कभी कम कभी ज़्यादा। खैर फिर तुमने उसको क्या जवाब दिया। सेक्स के लिए तुमसे हां
कहलाना चाह रहा था तुमने हां कर दी।
- नहीं... मैं
अनजान बनी रही कि किस बात के लिए वह हां कहलाना चाह रहा। इस पर वह खीझ कर बड़े फूहड़
शब्दों में बोला। तुम ड्रॉमा अच्छा कर लेती हो। लेकिन मैं तुम्हारी तरह एक्टर नहीं
हूं। सीधे बात कह रहा हूं,
इसलिए साफ-साफ कह रहा हूं कि दिन में तुम्हारे साथ सेक्स की
मैंने जो कहानी अधूरी छोड़ी थी, बल्कि सिर्फ़ मैंने नहीं तुमने भी। यानी तुमने और हमने दिन में तुम्हारे बेटे
के कारण जो कहानी अधूरी छोड़ी थी उसे पूरा करने के लिए तुम्हारी 'हाँ ', साफ-साफ 'हाँ' सुनना चाहता हूं। अब ये नहीं कहना कि मैं समझी नहीं। क्योंकि समझ तो तुम मुझसे
ज़्यादा रही हो। जितना मैं तुम्हारे तन-बदन को छूकर-देखकर एक्साइटेड हूं उससे कहीं
ज़्यादा तुम भी मेरे तन-बदन को देख कर तड़प रही हो।
ऐसा नहीं होता
तो इतनी रात गए मुझसे बात नहीं करती और दिन में ही मुझे मार कर भगाती, समझीं। एकदम साफ बात ये है कि हम दोनों एक दूसरे के साथ सेक्स करने को बेताब
हैं। इसीलिए अभी तक जाग रहे हैं और उसी के बारे में बात भी कर रहे हैं, और कल मैं तुम्हारे साथ किसी भी सूरत में सेक्स करना चाहता हूं।
इसी के लिए तुमसे अभी के अभी ‘हां’ सुनना चाहता हूं.... इतनी देर से मैं बोले जा रहा हूं तुम कुछ बोलती क्यों
नहीं?
उसकी यह बेखौफ
होकर कही गईं बातें मेरे तन-बदन में सनसनी सी पैदा कर चुकी थीं। कुछ बोलती क्यों
नहीं? उसकी यह बात सुनकर मैं जैसे नींद से जागी और झटके में बोल दिया, देखो मैं तुम्हारी कोई बात नहीं समझ रही, फ़ोन रखो समझे। इस पर वह भड़कते हुए
बोला ‘देखो ये खंड-खंड पाखंड का अखंड पाठ बंद करो। फ़ोन अब मैं तब बंद करूंगा जब तुम
एक शानदार किस करोगी। उतना ही शानदार जितना शानदार तुम्हारा बदन है और इतना तेज़ कि
यहां तक आवाज़ सुनाई दे। जल्दी - जल्दी करो।’
हिमानी शिवा के चेहरे को बड़े ध्यान से
देख रही थी मानो उसे पढ़ने की कोशिश में लगी हो। शिवा के चुप होते ही उसने फिर
कुरेदा।
- तो तुमने उसे
किस कर लिया।
- अं... नहीं
उसकी इस बात पर मैंने फ़ोन काट दिया। इस पर उसने फिर तुरंत फ़ोन किया। मैंने रिसीव
नहीं किया तो तुरंत एस.एम.एस. आया कि बात करो नहीं तो अभी आता हूं। एस.एम.एस. पढ़
ही पाई थी कि फिर फ़ोन आ गया। मैंने जैसे ही रिसीव किया वह तुरंत बोला चलो मैं ही
शुरुआत करता हूं। फिर फ़ोन पर इतनी तेज़ किस किया कि मानों फ़ोन पर ही खींच लेगा अपने
पास। फिर हालात ऐसे पैदा किये कि मुझे भी वैसा ही करना पड़ा। जैसे ही मैंने यह किया
तो वह हंसते हुए बोला, आखिर तुमने ‘हां’ कर दी। मैंने छूटते ही कहा क्या? तो वह हंसते हुए बोला इससे ज़्यादा
साफ,स्पष्ट ‘हां’ और कैसे कहोगी कि बजाए जुबान से बोलने के तुमने किस करके हां की। अब कल नमन
नीचे पढ़ेगा। हम-तुम ऊपर कमरे में तन-बदन की पढ़ाई करेंगे। इस पर मैं तिलमिला कर
बोली कि कल से पढ़ाने मत आना। तो फिर वह हंसते हुए बोला ,
मैं कल ज़रूर
आऊंगा। अगर तुम वाकई तन-बदन की पढ़ाई मेरे साथ नहीं करना चाहती तो मुझे गेट से ही
डांट कर भगा देना मैं कुछ नहीं बोलूंगा। चुपचाप चला आऊंगा फिर कभी नहीं मिलूंगा।
यदि ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हारे साथ पढ़ाई करूंगा। फिलहाल मैं बाकी की रात
तुम्हारे इस हॉट-हॉट किस और उससे भी ज़्यादा दिन में जो तुम्हारे तपते बदन की तपिस
मिली है उसी तपिस के साथ बिताऊंगा और निश्चित ही तुम भी यही करोगी। मेरे हॉट किस, जलते बदन की तपिस से तुम भी करवटें बदलोगी। सचाई कल हमारी-तुम्हारी आँखें बता
देंगी। इतना कह कर उसने एक बार फिर किस किया और गुडनाइट कह कर फ़ोन काट दिया।
शिवा इतना कह
कर चुप हो गई। चेहरे पर कुछ राहत सी दिख रही थी मानो कोई बड़ा काम अंततः किसी तरह
पुरा कर ही लिया। चेहरे पर पसीने की चमक दिख रही थी। मगर हिमानी सब कुछ जान लेने
से कम पर तैयार नही थी। वह उसके अेोर करीब जा कर बोली-
- हूं... बेहद
सनसनी पूर्ण हैं तुम्हारी बातें। तो इसके बाद तुम सो गई या जागती रही उसके किस और
उसको किस करके।
- हूं... अब तुम
बताओ मेरी जगह तुम होती तो क्या करती। तुरंत सो जाती या करवटें बदलती या उसकी ही
कल्पना में बेड पर उलटती-पलटती रहती।
- मैं...
- हां तुम, तुम क्या करती?
- तुमने तो बड़ा
असमंजस में डाल दिया।
- असमंजस नहीं
हिमानी। बहुत साफ-साफ और सही-सही जवाब देना क्योंकि तुम्हारे जवाब पर मेरे भविष्य
की एक नई राह या तो रोशन होगी या अंधकारमय हो जाएगी या फिर समाप्त हो जाएगी। इसलिए
जो कहना सही कहना।
- ठीक है सही ही
कहूंगी। शायद कुछ देर उसकी बातों, उसकी किस और क्योंकि खुद भी किस किया
हुआ है तो ऐसे में करवटें बदलती, इधर-उधर टहलती और शायद ख़यालों में उसे
ही लिए-लिए सो जाती।
- यह सब शायद
करती।
- अब शायद ही कह
सकती हूं। जब उस हालात से गुजरी नहीं तो साफ-साफ कैसे कह सकती हूं।
- देखो कुछ हालात
ऐसे होते हैं जिनके परिणाम तय होते हैं। बेड पर दिन भर के काम-धाम के बाद
पति-पत्नी मिलते हैं आपस में चिपटते हैं तो उनमें उत्तेजना पैदा ही होगी और मैंने
जिस हालात की बात की है उसमें भी चाहे आदमी हो या औरत उत्तेजना में वह भी जल्दी सो
नहीं पाएगा। सेक्स की भावना में खोया देर तक जागेगा।
- क्या शिवा पूरी
दुनिया की कहानी बता रही हो लेकिन खुद क्या किया उस बारे में नहीं बोल रही हो।
- बता तो रही हूं बड़ी देर तक उसी में खोई इधर-उधर टहलती रही, करवटें बदलती रही, बहुत देर बाद नींद आई। सुबह अलार्म नहीं बजता तो नमन को टाइम से स्कूल नहीं
भेज पाती।
- हां जब देर से
सोओ तो सुबह नींद कहां खुल पाती है। खैर फिर शाम को क्या हुआ? उसको रोका या क्या किया?
हिमानी के इस
प्रश्न से शिवा कुछ देर चुप रही फिर बिना किसी हिचक के बोली
- शाम को जब वह
पढ़ाने आया तो रोज की तरह गेट खोलने मैं नहीं गई। नमन ने गेट खोला। मैं उस कमरे में
भी नहीं गई जहां वह उसको पढ़ाता है। दूसरे कमरे में रही कि उससे नजरें ही न मिलाऊं, दूर बनी रहूं। वह चला जाएगा पढ़ा कर।
- लेकिन उसने तो
तुमसे रात में ही कह दिया था कि यदि तुमने उसे गेट से ही मना नहीं किया तो वह यही
समझेगा कि तुमने उसके साथ सेक्स के लिए ‘हां’ कर दी है। और तुमने
यही किया नमन से गेट खुलवा कर उसे अपनी ‘हां’ बता दी थी।
- मैं उसके सामने
नहीं पड़ना चाहती जिससे कि उसे देखकर कहीं कमजोर न पड़ जाऊं। इसलिए दूसरे कमरे में
बनी रही कि वह बेरुखी से नाराज होकर चला जाएगा।
- लेकिन इसे उसने
तुम्हारी ‘हां’ मान ली और तुम जिस कमरे में थी वहां पहुंच गया।
- नहीं वो बहुत
चालाक है। नमन को जल्दी-जल्दी काम देकर इतनी तेज़ आवाज़ में बोलना शुरू किया कि मैं
सब सुन सकूं। नमन से कहा आप यह सब काम पूरा करो तब तक मैं तुम्हारी मम्मी को
इंगलिश बताता हूं जिससे वो तुम्हें मेरे न आने पर भी ठीक से पढ़ा सकें। तुमको
डिस्टर्ब न हो इस लिए उन्हें मैं ऊपर कमरे में पढ़ाऊंगा। इतना कह कर वह तेज़ आवाज
में ही एक सख्त टीचर की तरह बोला आइए आप भी आइए, टाइम वेस्ट मत करिए।
जल्दी करिए।
यह कहकर वह उसी
कमरे में आने लगा जिसमें मैं थी। शायद वह सटीक अनुमान लगा चुका था कि मैं किस कमरे
में हू। अंततः मैं उसके सामने आ गई। पहले से ही उसकी आवाज़ सुन-सुन कर कमजोर पड़ रही
मैं उसके सामने पड़ कर एकदम आज्ञाकारी स्टूडेंट बन गई। बदन पर चींटियां सी रेंग रही
थीं। मैं टालने के लिए उससे यह भी नहीं कह सकी कि नमन डिस्टर्ब नहीं होगा इसी कमरे
में पढ़ाइए।
- कह भी तो नहीं
सकती थी क्योंकि जो पढ़ाई तुम दोनों करने
वाले थे वह तो सबकी नज़र बचाकर अलग कमरे में ही हो सकती थी। खैर तुम मना भी तो कर
सकती थी कि तुम्हें पढ़ना ही नहीं। उसे लेकर ऊपर जाती ही न।
- सब कर सकती थी
मगर वह कुछ करने ही नहीं दे रहा था। मैं उसे ऊपर लेकर जाऊं उसके पहले ही वह ऊपर
जीने की तरफ बढ़ता हुआ बोला,
आइए जल्दी आइए मेरे पास टाइम कम है। अभी नमन को भी देखना
है।
वह लंबे कदमों
से जीने पर चढ़ने लगा। अपनी लंबाई का वह पूरा फायदा उठा रहा था। वह ऊपर चढ़ गया तब
तक मैं नीचे ही खड़ी रही असमंजस में खुद से लड़ती हुई। एक नज़र नमन पर डालती फिर ऊपर
सीढ़ियों के दूसरे सिरे पर। तभी उसने फिर बड़े अधिकार से कहा प्लीज जल्दी आइए मेरे पास फालतू टाइम नहीं है।
उसकी इस बात से
मैं एकदम से हार गई खुद से। और नमन पर एक नज़र डाल कर कहा बेटा मन लगाकर पढ़ना नहीं
टीचर जी डांटेंगे। मैं ऊपर हूं। अब तक मेरी साँसें धौंकनी सी चलने लगी थीं। गहरी साँसे, और शरीर में जगह-जगह बढ़ते जा रहे तनाव को लिए मैं ऊपर कमरे के दरवाजे के बीच
पहुंची ही थी कि उसने बेहिचक मेरा हाथ पकड़ कर अंदर खींच लिया। मैं कुछ समझती कि
इसके पहले ही उसने झुक कर मुझे काफी नीचे से पकड़ कर ऊपर उठा लिया। मेरा चेहरा एकदम
उसके चेहरे के सामने था। मैं एकदम जैसे संज्ञाशून्य सी उसे देखे जा रही थी। मेरे
दोनों हाथ उसके कंधों पर थे। मेरी आंखें देखते हुए उसने कहा ,मैं जानता था तुम मना नहीं कर सकती थी, क्योंकि तुम्हें भी मेरी उतनी ही जरूरत है जितनी मुझे
तुम्हारी। हम दोनों किसी रिश्ते का कोई बोझ नहीं ढोएंगे, बस एक दूसरे को जीवन का मजा देंगे, लेंगे।
- तुमको वो ऐसे
उठाए हुए था और तुमने उसे एक बार भी नीचे उतारने के लिए नहीं कहा।
- सुनो तो पहले, मैं उस समय अजीब सी हालत में थी। बस गहरी-गहरी सांसें लिए जा रही थी, फिर अचानक ही उसने मेरा निचला होंठ अपने होठों के बीच में लेकर कसके चूस लिया।
मैं एकदम गनगना उठी ऊपर से नीचे तक। फिर कंधे पर रखे अपने दोनों हाथों से उस पर
दबाव डालने लगी नीचे उतारने के लिए। इस पर उसने जानबूझ कर इस तरह नीचे उतारा
धीरे-धीरे कि मेरी साड़ी सिकुड़ती हुई उसके ही हाथ में फंसी रह गई। मैं एकदम बेपर्दा
हो जाने के कारण एकदम से कसमसा उठी तो उसने मुझे बिना कोई मौका दिए एकदम गोद में
उठा लिया जैसे बच्चे को दोनों हाथों से गोद में उठाया जाता है। फिर लेकर बेड पर आ
गया।
- वह यह सब करता
रहा और तुम कुछ बोल नहीं पा रही थी या कुछ कर नहीं रही थी।
- मैं कर तो रही
थी, वह जैसे जो कर रहा था मैं करने दे रही थी तभी तो वह कर रहा था।
- फिर इसके बाद
तुम दोनों ने खूब पढ़ाई की तनमन की। नहीं ये कहें कि सिर्फ़ तन की।
- हाँ सिर्फ़ तन
की। उसने पहले ही कह दिया था कि हम किसी रिश्ते का बोझ नहीं ढोते।
- वाकई मस्त कर
देने वाली है तुम्हारी पढ़ाई। जब तुमसे सुनकर इतना सुरूर पैदा हो जा रहा है तो यह
सब करते हुए तुमने तो सारे जहां का मजा लूट लिया होगा यार, क्यों है न।
- अब जो चाहो कह
सकती हो।
- खैर उसकी इस
बात में कितना दम है कि तुम्हें सेक्स का जो मजा पति नहीं दे सकते वह वो दे सकता
है।
- पति-वो दोनों
की अपनी-अपनी बात है। दोनों अपनी जगह एक-दूसरे से अलग हैं।
- मैं मतलब नहीं
समझी।
- मतलब पति में
कोई जल्दबाजी नहीं होती। घर में आराम से अपने मन पसंद खाने का निश्चिंत होकर मजा
लेने जैसा अनुभव होता है। जबकि उसके साथ अनुभव कुछ ऐसा जैसे किसी शानदार-शादी
पार्टी में तरह-तरह के पकवानों का जल्दी-जल्दी मजा लेना। बस कह सकते हैं दोनों का
अपना ही मजा है। एक घर का खाना है, दूसरा बाहर का फास्ट फूड
- वाह यार क्या
बात कही है। ये सुनकर तो मेरा भी मन ललचाने लगा है। खैर ये पढ़ाई कितनी देर तक चली।
जो नए-नए व्यंजन चखे उनके बारे में बताओगी कुछ।
- लगता है मन
तुम्हारा भी बल्लियों उछल रहा है, क्यों?
- क्यों नहीं
उछलना चाहिए। दुनिया में दावतें कौन नहीं उड़ाना चाहता।
- बिल्कुल, तुम भी उड़ाओ, ढूंढों कोई पार्टी।
- खैर बताओ आगे
क्या हुआ?
- बताना क्या यार
जो बातें हम लोग सुनते हैं न कि टी.वी., इंटरनेट ने नई जेनरेशन को अपनी
पिछली जेनरेशन से मीलों आगे कर दिया है, मैं तो कहती हूं मीलों नहीं सैकड़ों
मील आगे कर दिया है। पोर्न साइट्स, लिटरेचर जो भी हैं दुनिया में वह
उन सब से जुड़कर पुरा मास्टर हो गया है सेक्स में। खुद के साथ-साथ अपने पार्टनर को
भी कैसे पूरा मजा दिया जाए इसका उसे पूरा ज्ञान है। जिसका अमूमन हमारे पतियों को
नहीं होता।
- क्या कह रही हो? ऐसा क्या किया उसने।
- उसने जो भी
किया, जैसा भी किया, पति की किताब में उसका ज़िक्र ही नहीं है। इसलिए उस तरह के अनुभव की उनके साथ
कल्पना ही नहीं की जा सकती। उसने उस एक घंटे में ही हर बार एक नयापन एक नई ताज़गी
से भरा अनुभव दिया। पति की तरह हर अध्याय एक सा नहीं था।
- अरे यार
साफ-साफ बताओ न कि हर बार वो क्या नया करता था कि तुम एकदम उसकी दिवानी हो गई हो।
पति भी मर्द है, वो भी मर्द है। आज के ही युग के हैं दोनों फिर ऐसा क्या कि वो बिल्कुल अलग है, दिवाना कर देने वाला है।
- नहीं हिमानी यह
गलत है कि दोनों आज के मर्द हैं। पति उस समय की सोच रखने वाला है जब इंटरनेट, फेसबुक, चैटिंग, ट्विटर जैसी चीजों की पैठ हमारे जीवन में नहीं थी। हम घर में पकौड़ी बना के खा
लिया करते थे। पिज्जा, के.एफ.सी. के चिकन, मॅकडोनल्ड्स का मजा नहीं जानते थे और टीचर इंटरनेट, फेसबुक, चैटिंग, ट्विटर के जमाने का है। वह पकौड़ी नहीं पिज़्जा, चिकन, मॅकडोनल्ड्स की जेनरेसन का है। हर क्षण एक बदलाव भरा अनुभव, खुलापन उसकी ज़िंदगी है। उसने इन चंद दिनों में ही बता दिया, करके दिखा दिया कि हमारे पति ही थकाऊ, एकरस ज़िन्दगी के लिए ज़िम्मेदार
नहीं हैं बल्कि हम भी इसके लिए बराबर के ज़िम्मेदार हैं, बल्कि हम लोग ज़्यादा हैं।
- क्या?
- हां, जरा सोचो न हम लोग क्या करते हैं, अपने पतियों के साथ एकांत क्षणों
में। अभी शादी के दस साल भी नहीं हुए लेकिन जरा बताओ तो कितनी बार खुलकर बिस्तर पर
उनके साथ होते हैं। अपने मन की करते हैं या वो जो कहते हैं वो करते हैं। बस एक ही
रटी-रटाई ज़िंदगी रोज जीते हैं। परिणाम यह होता है कि चंद बरसों में ही हम बोर हो
जाते हैं। चीखते चिल्लाते हैं बच्चों पर। एक चिड़-चिड़ी ज़िंदगी जीते हैं। उस दिन मैं
तुमसे बोल रही थी न कि नमन जब तक सोता नहीं परेशान किए रहता है। लेकिन इसने जब से
ज़िन्दगी के कुछ पन्ने नए अंदाज में पढ़ाए तबसे अब उसी नमन की शैतानियां खिजाती नहीं, चिड़-चिड़ा नहीं बनातीं।
मैं उसके बेबाक
अंदाज, खुलेपन, बिंदास आदत और इस आदत में छिपे मौज मस्ती के हिलोरें मारते सागर को देखकर एक
दम अचंभित हूं। और उसी से इतनी हिम्मत मिली है कि ये कह पा रही हूँ कि इस मस्ती
भरे सागर में डूबते-उतराते रहना चाहती हूँ। मैं जी भर के ज़िंदगी जीना चाहती हूं।
और तुमसे भी कहती हूँ बड़ी अनमोल है ज़िंदगी और साथ ही बहुत थोड़ी भी। यूं बर्बाद मत
करो। वक़्त निकल जाने के बाद आंसू बहाने की मूर्खता करके ज़िन्दगी को क्यों बर्बाद
करना चाहती हो।
- तुम कहना क्या
चाहती हो शिवा?
हिमानी ने
अर्थभरी नज़र से शिवा की आँखों में झांकते हुए पूछा तो शिवा ने उसके चेहरे की ओर
करीब जाते हुए कहा -
- तुम भी मेरी
तरह इस मौज-मस्ती के सागर में डूबो। खूब गहरे डूबकर पूरा मजा लो। देखो कितनी
शानदार है ये ज़िंदगी। जिसे हम लोग अपने हाथों से उबाऊ-थकाऊ बना कर दिन भर हाय-हाय
कर रही हैं।
- ये तुम क्या कह
रही हो, इस क्षण भर की मौज-मस्ती में कहीं बात पति तक पहुंच गई तो ज़िंदगी के नर्क बनते
भी देर नहीं लगेगी। हमारा अच्छा खासा खुशहाल परिवार इस नर्क की आग में जलकर क्षण
में राख हो जाएगा।
- ओफ्फ इतनी देर
में तुम कुछ नहीं समझ पाई। ज़िंदगी नर्क तब बन जाती है जब हम पति के रहते किसी और
से भी इश्क लड़ाने लगते हैं। पति के हिस्से का टाइम प्रेमी के बारे में सोचने, उससे मिलने की जुगत में लगा देते हैं। बच्चों की तरफ ध्यान नहीं देते। जब कि
मैं जिस बारे में कह रही हूं वह इश्क है ही नहीं। इसके उलट एक ऐसी चीज है जिसमें
किसी चीज़ की चिंता नहीं है। बल्कि बेफ़िक्री है। जिस में कुछ देर की मौज मस्ती के
बाद ज़िंदगी खिल-खिला उठती है। हम एक नई ऊर्जा के साथ अपने पति-बच्चों के काम में
लग जाते हैं। हमारा घर और खुशहाल हो जाता है। सोचो इस बात के बारे में जल्दी सोचो।
कहां इससे हमारी ज़िंदगी नर्क बनेगी। हमारी ज़िंदगी में सिर्फ मज़ा ही मज़ा होगा। बोलो
होगा कि नहीं।
यह कहते-कहते
शिवा ने हिमानी को दोनों हाथों से पकड़कर हल्के से हिला दिया और आंखों में बराबर
देखती रही। इसपर हिमानी के भी दोनों हाथ बरबस ही शिवा के दोनों कंधों पर पहुंच गए।
कुछ क्षण दोनों एक दूसरे को देखती रहीं फिर हिमानी ने गंभीर स्वर में कहा -
- शिवा तुम्हारी
बातों, तुम्हारे काम से मुझे बड़ा डर लग रहा है।
- पहले मैं भी
तुम्हारी तरह डर रही थी। मगर कल के उस छोकरे ने दो-चार दिन में ही जीवन की एक नई, एकदम अनोखी फिलॉस्फी सामने रखकर पलभर में डर छू-मंतर कर दिया। वो इतना सुलझा
हुआ है कि साफ कहता है कि तुम अभी कहो तो मैं अभी चला जाऊंगा, दुबारा छाया भी नहीं देखूंगा तुम्हारी। मैंने कहा इतना आसान है तो बोला कितनी
बार कह चुका हूं कि छोड़ना वहां मुश्किल होता है जहां इमोशनली अटैचमेंट होता है।
यहां इमोशन की बात छोड़ो सच यह है कि फिजिकल रिश्ता भी नहीं है। यहां बस एक ही फंडा
है कि जहां ज़िंदगी का मजा मिल जाए लो और अगली बार मिले इसके लिए आगे बढ़ चलो।
- शिवा ऐसा आदमी
हमें यूज भी तो कर सकता है। कल को ब्लैकमेल करके न जाने क्या-क्या कराने लगे।
- ओफ्फ हिमानी अब
इतना भी क्या डरना। किस्मत में यदि यही सब लिखा होगा तो पति भी यही सब कर सकता है।
हम इंसान है, हम क़दम आगे बढ़ाएंगे नहीं तो जीवन में आगे बढ़ेंगे कैसे? एक जगह ठहरे रह जाएंगे मकान की इन दीवारों की तरह। जिसमें चाहे जितना रंग रोगन
करा लो एक वक्त के बाद लोना लगने ही लगता है। कहते हैं न कि चलता पानी कभी नहीं
सड़ता। ठहरा पानी चंद दिनों में ही सड़ने लगता है। इसलिए कहती हूं कि एक बार ही सही
कोशिश तो करो, क़दम तो बढ़ाओ हिमानी क़दम तो बढ़ाओ।
- अरे शिवा क्या
क़दम बढ़ाऊँ। एक बार को तुम्हारी बात मान भी लूं तो तुम्हें तो संयोग से मिल गया है
विवेक ओबरॉय। मैं कहां ढूढ़ने जाऊं? कहीं अनाड़ी का खेल खेल का सत्यानाश
न हो जाए।
- तुम्हें भी
ढूंढ़ने की ज़रूरत कहां?
- क्यों?
- क्योंकि वह
विवेक ओबरॉय उतना ही तुम्हारे लिए भी तैयार है जितना मेरे लिए रहता है।
- मतलब... मैं
तुम्हारा मतलब नहीं समझ पा रही।
- देखो बात ध्यान
से सुनना-समझना, उतावलापन, गुस्सा वगैरह कुछ नहीं करना।
- मुझमें न कोई
गुस्सा है और न ही कोई उतावलापन। मगर बात साफ-साफ करो। साफ कहूं तो मैं अभी तक
तुम्हारी कुछ बातों
से हैरान ज़रूर हो जा रही हूं क्योंकि आज
के पहले मैं तुम्हें जो समझती थी उससे उलट इस समय मैं तुम्हारी बिल्कुल उलट
दूसरी तस्वीर देख रही हूं।
- पहले तुम जो
तस्वीर देख रही थी मेरी वही तस्वीर थी। आज जो देख रही हो वह तब थी ही नहीं। और मैं
साफ-साफ ही कह रही हूं कि तुम्हें कुछ ढूढ़ने-ढाँढ़ने की जरूरत ही नहीं। जो विवेक
मेरा है वही तुम्हारा भी है। वह तुम्हारे फिगर का भी दिवाना है। बस तुम्हें अपने
क़दम बढ़ाने हैं। वो तो तुम्हें बांहों में भरने को न जाने कब से तैयार है।
- अरे , तुम ये क्या कह रही हो। मैंने तो कभी उससे बात ही नहीं की। तुमसे किसने बताया
यह सब।
- उसी ने। मैंने
कहा न कि वो एकदम अलग तरह का इंसान है। भीड़ से एकदम अलग।
- क्या कहा उसने?
- दो दिन पहले
रात में फ़ोन पर वह बात कर रहा था। असल में पहले मिलन के बाद से रात में इनसे बात
करने के बाद उससे रोज सोने जाने तक बात होती रहती है। वह तरह-तरह की बड़ी दिलचस्प
बातें करता है। उस दिन मैंने उससे पूछा कि ये बताओ कि मैं तुम्हारे जीवन में आने
वाली पहली औरत हूं या पहले भी कोई आ चुका है। तो वह हंसकर बोला -
- कोई नहीं, कई और आ चुकी हैं।
- मैंने नाम पूछा
तो वह नहीं बताया। सिर्फ़ इतना बताया कि तीन औरतों से मिला। लेकिन कब तक मिला, कब तक मिलता रहा याद नहीं। मैंने कहा तुमने अपने से बड़ी उम्र की औरतों से ही
संबंध क्यों बनाए। तुम्हें कोई हम उम्र लड़की नहीं मिलती क्या? तो उसने तमाम बातें बताते हुए कहा कि यह महज एक संयोग है। फिर उसने तुम्हारी
बात शुरू कर दी। मुझसे कहा कि तुम्हारा कुछ ज़्यादा ही गदराया बदन मुझे बहुत मजा
देते हैं। फिर तुम्हारा नाम लेता हुआ बोला कि वो मुझे बेहद अच्छी लगती है।
दुबली-पतली, इनका अपना एक ख़ास मजा होता है। सोचो एक ही बेड तुम दोनों और मैं कितना मजा
आएगा। एक अमेजिंग वर्ल्ड में होंगे हम लोग, इसके बाद हम तीनों के बीच सेक्स की
क्या-क्या स्थिति हो सकती है। उसने ऐसी अकल्पनीय दुनिया सामने रखी कि मैं अजीब सी दुनिया
में पहुंच गई। उसकी बातों ने मुझे अकल्पनीय दुनिया की सैर करा दी थी।
- शिवा-शिवा, क्या हो गया है तुझे। उस एक तक तुम्हारे संबंध किसी तरह समझ पा रही हूं। मगर
अब आगे तुम दोनों और जो करने को उतावले हो उसे मैं समझ नहीं पा रही इसे क्या नाम
दूं। ग्रुप सेक्स के बारे में पढ़ती सुनती हूं मगर जो कह रही हो वह तो समलिंगी, विपरीत लिंगी, उभयलिंगी, सामूहिक सेक्स सब है जिसमें तुम तैरना डुपकी लगाना चाहती हो।
यह कहते हुए
हिमानी के चेहरे पर अच्छा खासा तनाव उभर आया था। जिसे शिवा तुरंत भांप गई। बात
कहीं हाथ से निकल न जाए इसलिए अपनी आवाज़ में और नम्रता लाते हुए बोली।
- मैं और वह
सिर्फ़ जीवन को जीने की बात कर रहे हैं। वो जो कहता है उसके हिसाब से यदि तुम जीवन
को इतने टुकड़ों में बांटोगी तो सिवाय कष्ट परेशानी के कुछ नहीं पाओगी।
- तो तुम क्या
चाहती हो कि मैं तुम दोनों के साथ हो जाऊं।
- नहीं हम दोनों
यह कुछ नहीं कहते। हम सिर्फ़ यह चाहते हैं कि यदि तुम ठीक समझो तो ही हमारे साथ
आओ। हम दोनों के बीच तुमको लेकर बातें अक्सर होती हैं। लेकिन कभी यह नहीं सोचा कि
तुमसे इस बारे में बात भी करूंगी। तुम अचानक ही हम दोनों के बीच उस स्थिति में आ
पहुंची। और बातचीत में मैंने देखा कि तुम पूरा रस लेकर सुन रही हो बल्कि मुझे लगा
कि तुम भी कहीं कुछ ऐसा ही मजा लेना चाहती हो तो बात कहने की हिम्मत जुटा पाई। और
सच कहना कि तुम्हारे मन में क्या ऐसा कुछ एकदम नहीं उठा, बोलो, बोलो हिमानी तुम्हें मेरी कसम है।
हिमानी चुप उसे
देखती रही तो शिवा ने उसे कंधों पर फिर से पकड़ लिया और दबाव देकर पूछने लगी।
- हिमानी जवाब
दो। क्या तुममें ऐसी कोई भावना कभी पनपी नहीं या मैं जो कर रही हूं उसे तुम गुनाह
मान रही हो। मुझे जब तक जवाब नहीं दोगी तब तक मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं।
शिवा के जिद के
आगे अंततः हिमानी झुकी और कहा -
- तुम कोई गुनाह
नहीं कर रही हो। रही बात मेरी तो मैं भी इंसान हूं एक औरत हूं। मेरे पति ने एक
मुकदमे का जिक्र करते हुए एक बार कहा था सेक्स के बारे में कि यह ह्यूमन नेचर है।
इंसान ने इसे टैबू का रूप देकर इसे एक गंदी चीज का रूप दे दिया है। यह भी तो ईश्वर
की बनाई चीज है। फिर गंदी कैसे हो गई? इसे नैसर्गिक रूप में ही स्वीकार
करना चाहिए। हां इतना भी इसके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए कि यह लत या बीमारी बन
जाए।
- वाह हिमानी, वाह मुझे मेरा जवाब मिल गया और नसीहत भी कि इसे बीमारी नहीं बनने देना है। सब
कुछ लिमिट में होना चाहिए।
कहते-कहते अचानक ही शिवा ने हिमानी को
बांहों में जकड़ लिया। हिमानी की तरफ से भी कुछ अनमना सा पल भर का ही प्रतिरोध था।
कुछ देर बाद दोनों अलग हुईं तो शिवा बोली -
- तुम्हारे
होंठों को कुछ नहीं हुआ है हिमानी, यह उस सुख की छाया मात्र है।
तुम्हारे चेहरे पर छायी सुर्खी, यह फूलती सांसें साफ कह रही हैं कि तुम
भी इस अनजान सुख को पाकर आश्चर्य में हो। कल जब दिव्यांश, नमन स्कूल में रहेंगे तब तुम यहां आ जाना। फिर हम तीनों मजे की उस दुनिया की
सैर करेंगे। जिसकी अभी हम सिर्फ़ कल्पना ही कर पाएंगे। एक बात और कहूंगी कि कल जब
तक तुम आओगी नहीं तब तक तुम खोई-खोई सी रहोगी। रात भर सो न सकोगी। पति की बांहों
में होगी तो भी कल जल्दी आए इसके लिए तड़पती रहोगी। तुम्हारा चेहरा यही सब कह रहा
है।
शिवा के चुप
होने पर हिमानी ने एक भरपूर नजर उसके चेहरे पर डाली। फिर अस्त-व्यस्त हुए कपड़ों को
एक बार फिर ठीक किया और कमरे से बाहर निकलने को मुड़ चली, तभी शिवा ने कहा रुको। वह रुक कर जैसे ही मुड़ी शिवा ने फुर्ती से उसके होठों
को एक पल को अपने होंठो के बीच लेकर भरपूर रस पान किया। फिर छोड़ते हुए बोली,
- मुझे चिंता थी
कि कल आने तक तुम कैसे अपना समय काटोगी। अब मैं निश्चिंत रहूंगी, क्योंकि यह ‘किस’ तुम्हें कल तक सम्हाले रहेगा।
हिमानी चेहरे
पर अब तक कायम सुर्खी को लिए घर के लिए मुड़ चली। उसके दिलो-दिमाग में इस
अप्रत्याशित अनुभव ने एक अंधड़ चला रखा था। तरह-तरह के प्रश्नों के थपेड़ों से वह
चोटिल होती सी महसूस कर रही थी। यह क्या किया मैंने, कल आऊं कि न आऊं, मुझमें क्या है कि वह मुझ पर मरा जा रहा है? शिवा जैसा बता रही है
क्या वह वाकई ऐसा अद्भुत अनुभव देता है। ऐसे अनगिनत क्यों के उत्तर ढूंढती वह बढ़ी जा रही थी। क़दम घर की ओर कुछ ऐसे बढ़ रहे
थे मानो पीछे से खूब तेज़ हवा के झोंके धकेल रहे हों।
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पता - प्रदीप श्रीवास्तव
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अलीगंज, लखनऊ-२२६०२४
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